संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।

🍃 एवं दत्त्वा वरं देवो देवानां विष्णुरात्मवान्।
मानुषे चिन्तयामास जन्मभूमिमथात्मनः॥२९॥

⚜️ भावार्थ - इस प्रकार भगवान् विष्णु देवताओं को वरदान दे अपने जन्म लेने योग्य मनुष्य लोक में स्थान चुनने लगे॥२९ ॥

ततः पद्मपलाशाक्षः कृत्वाऽऽत्मानं चतुर्विधम्।
पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम्॥३०॥

⚜️ भावार्थ - कमलनयन भगवान् विष्णु ने अपने चार रूपों से महाराज दशरथ को अपना पिता बनाना, अर्थात् उनके घर में जन्म लेना पसंद किया॥३०॥

🍃 ततो देवर्षिगन्धवः सरुद्राः साप्सरोगणाः।
स्तुति॑भिर्दिव्यरूपाभिस्तुष्टवुर्मधुसूदनम् ॥३१॥

⚜️ भावार्थ - तब देवर्षि, गन्धर्व, रुद्र, अप्सरा इन सब ने मधुसूदन भगवान् की स्तुति कर, उनको सन्तुष्ट किया॥३१॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।

🍃 तमुद्धतं रावणमुग्रतेजसं प्रवृद्धदर्प त्रिदशेश्वरद्विपम्।
विरावणं साधु तपस्विकण्टकं तपस्विनामुद्धर तं भयावहम् ॥३२॥

तमेव हत्वा सबलं सवान्धवं विरावणं रावणमुग्रपौरुपम्।
स्वर्लोकमागच्छ गतज्वरविरं सुरेन्द्रगुप्तं गतदोपकल्मषम् ॥३३॥

👉 🚩॥ इति पञ्चदशः सर्गः॥

⚜️ भावार्थ - और कहा, हे प्रभु ! इस उद्दण्ड, बड़े तेजस्वी, अहंकारी, देवताओं के शत्रु, लोकों को रुलाने वाले, साधु तपस्वियों को सताने वाले और भयदाता रावण का नाश कीजिये। उस लोकों को रुलाने वाले और उग्र पुरुषार्थी रावण को बंधु, वान्धव तथा सेना सहित मार कर और संसार के दुःख को दूर कर इन्द्र पालित तथा पाप एवं दोषशून्य स्वर्ग में पधारिये ।।३२।।३३।।

👉 🚩बालकाण्ड का पन्द्रहवाँ सर्ग समाप्त हुआ।

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 ततो नारायणो देवा नियुक्तः सुरसत्तमैः।
जानन्नपि सुरानेवं श्लक्ष्णं वचनमब्रवीत् ॥१॥

⚜️ भावार्थ - देवताओं की स्तुति सुनकर, सब जानने वाले साक्षात् परब्रह्म नारायण, देवताओं के सम्मानार्थ यह मधुर वचन बोले ॥१॥

🍃 उपाय: को वधे तस्य राक्षसाधिपतेः सुराः।
यमहं तं समास्थाय निहन्यामृपिकण्टकम् ॥२॥

⚜️ भावार्थ - हे देवताओ ! यह तो बतलाओ कि, उस राक्षसों के राजा और मुनिनयों के शत्रु को हम किस उपाय से मारें ॥२॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 एवमुक्ताः सुराः सर्वे प्रत्यूचुर्विष्णुमव्ययम्।
मानुषीं तनुमास्थाय रावणं जहि संयुगे॥३॥

⚜️ भावार्थ - यह सुन देवताओं ने अव्यय विष्णु से कहा- मनुष्य रूप अवतीर्ण हो, रावण को युद्ध में मारिये ॥३॥

⚜️ स हि तप तपस्तीत्रं दीर्घकालमरिन्दम।
येन तुष्टोऽभवद्ब्रह्मा लोककृल्लोकपूजितः॥४॥

⚜️ भावार्थ - हे अमिरिन्द्र उसने बहुत दिनों तक कठोर तप कर लोककर्त्ता और लोकपूजित ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया॥४॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 संतुष्टः मददौ तस्मै राक्षसाय वरं प्रभुः।
नानाविधेभ्यो भूतेभ्यो भयं नान्यत्र मानुपात्॥५॥

⚜️ भावार्थ - तब उन्होंने प्रसन्न होकर उस राक्षस को यह वर दिया कि मनुष्य सिवाय हमारी सृष्टि के किसी भी जीव के मारे तुम न मरोगे ॥५॥

🍃 अवज्ञाता: पुरा तेन वरदानेन मानवाः।
एवं पितामहात्तस्माद्वरं प्राप्य स दर्पितः ॥६॥

⚜️ भावार्थ - वह मनुष्य को तुच्छ समझता था। अतः उसने मनुष्यों से मरने का वर न माँगा ब्रह्मा जी के वर से वह गर्वित हो गया॥६॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 उत्सादयति लोकां स्त्रीन्स्त्रय श्चाप्यपकर्पति।
तस्मात्तस्य वधो दृष्टो मानुपेभ्यः परन्तप॥७॥

⚜️ भावार्थ - इस समय यह तीनों लोकों को उजाड़ता है और स्त्रियों को पकड़ कर ले जाता है, अतःएव वह मनुष्य के हाथ से ही मर सकता है। ॥७॥

🍃इत्येतद्वचनं श्रुत्वा सुराणां विष्णुरात्मवान्।
पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम् ॥८॥

⚜️ भावार्थ - देवताओं की इन बातों को सुनकर भगवान् विष्णु ने महाराज दशरथ को अपना पिता बनाना पसंद किया ॥८॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 स चाप्यपुत्रो नृपतिस्तस्मिन्काले महाद्युतिः।
अयजत्पुत्रियामिष्टिं पुत्रेप्सुररिसूदनः॥९॥

⚜️ भावार्थ - उसी समय पुत्रहीन, महाद्युतिमान् शत्रुहन्ता महाराज दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिये पुत्रेष्टियज्ञ करना प्रारम्भ किया ॥९॥

🍃 स कृत्वा निश्चयं विष्णुरामन्त्र्य च पितामहम्।
अन्तर्धानं गतो देवैः पूज्यमाना महर्षिभिः॥१०॥

⚜️ भावार्थ - इस प्रकार महाराज दशरथ के घर में जन्म लेने का निश्चय कर और ब्रह्मा जी से बातचीत कर भगवान् विष्णु वहाँ से अन्तर्धान हो गये ॥१०॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 ततो वै यजमानस्य पावकादतुलमभम् ।
प्रादूर्भूतं महद्भूतं महावीर्य महावलम् ॥११॥

कृष्णं रक्ताम्बरधरं रक्ताक्षं दुन्दुभिस्वनम्
स्निग्धहर्यक्षतनुजश्मश्रुमवर सूर्धजम्॥ १२॥

शुभलक्षणसंपन्नं दिव्याभरणभूषितम्।
शैलशृङ्गसमुत्सेधं दृप्तशार्दूलविक्रमम् ॥१३॥

दिवाकरसमाकार दीप्तानलशिखोपमम्।
तप्तजाम्बूनदमयीं राजतान्तपरिच्छदाम्।।१४।।

दिव्यपायससंपूर्ण पात्रीं पत्नीमिन प्रियाम्।
प्रगृह्य विपुलां दोर्भ्यां स्वयं मायामयीमिव।।१५॥

⚜️ भावार्थ - उधर महाराज दशरथ के अग्निकुण्ड के अग्नि से महाबली, अतुल प्रभा वाला, काले रंग का लाल वस्त्र धारण किये हुए, लाल रंग के मुँह वाला, नगाड़े जैसा शब्द करता हुआ; सिंह के रोम जैसे रोम और मूँछो वाला, शुभ लक्षणों से युक्त, सुन्दर आभूषणों को धारण किये हुए, पर्वत के शिखर के समान लंवा, सिंह जैसी चाल वाला, सूर्य के समान तेजस्वी और प्रज्वलित अग्नि शिखा की तरह रूप वाला, दोनों हाथों में सोने के थाल में, जो चांदी के ढकने से ढका हुआ था, पत्नी की तरह प्रिय और दिव्य खीर लिये हुए, मुस्कुराता हुआ एक पुरुष निकला ॥११॥१२॥ १३॥१४॥१५।।

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 समवेक्ष्याब्रवीद्वाक्यमिदं दशरथं नृपम् ।
प्राजापत्यं नरं विद्धि मामिहाभ्यागतं नृप ॥१६॥

भावार्थ - वह महाराज दशरथ की ओर देख कर यह बोले- "महाराज ! मैं प्रजापति के पास से यहाँ आया हूँ ॥१६॥

🍃 ततः परं तदा राजा प्रत्युवाच कृताञ्जलिः।
भगवन्वागतं तेऽस्तु किमहं करवाणि ते ॥१७।।

⚜️ भावार्थ - भगवन् ! यह सुन महाराज दशरथ ने हाथ जोड़ कर कहा - आपका मैं स्वागत करता हूँ कहिये, मेरे लिये क्या आज्ञा है।।१७।।

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 अथो पुनरिंदं वाक्यं प्रजापत्यो नरोऽब्रवीत्।
राजन्नचयता देवानद्य प्राप्तमिदं त्वया ॥१८॥

⚜️ भावार्थ - इस पर प्रजापति के भेजे उस मनुष्य ने फिर कहा - देवताओं का पूजन करने से आज तुमको यह पदार्थ मिला है। ॥१८॥

🍃 इदं तु नरशार्दूल पायसं देवनिर्मितम्।
प्रजाकरं गृहाण त्वं धन्यमारोग्यवर्धनम् ॥१९॥

⚜️ भवार्थ - 'हें नरशार्दूल ! यह देवताओं की बनाई हुई खीर है, जो सन्तान की देने वाली तथा धन और ऐश्वर्य की बढ़ाने वाली है, इसे आप लीजिये ॥१९॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 भार्याणामनुरूपाणामश्रीतेति प्रयच्छ वै।
तासु त्वं लप्स्य पुत्रान्यदर्थं यजसे नृप॥२०॥

⚜️ भावार्थ - और इसको अपने अनुरूप रानियों को खिलाइये। इसके प्रभाव से आपकी रानियों के पुत्र उत्पन्न होंगे, जिसके लिये आपने यह यज्ञ किया है ॥२०॥

🍃 तथेति नृपतिः प्रीतः शिरसा प्रतिगृह्य ताम्।
पात्रीं देवानसंपूर्णा देवदत्तां हिरण्मयीम् ॥२१॥

⚜️ भावार्थ - इस बात को सुन महाराज ने प्रसन्न हो, उस देवताओं की बनाई हुई और भेजी हुई खीर से भरे सुवर्णपात्र को ले अपने माथे चढ़ाया॥२१॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 अभिवाद्य च तद्भूतमद्भुतं प्रियदर्शनम्।
मुदा परमया युक्त श्चकारा भिप्रदक्षिणम्॥२२॥

⚜️ भावार्थ - तदनन्तर उस अद्भुत पवं प्रियदर्शन पुरुष को महाराज ने प्रणाम किया और परम प्रसन्न हो उसकी परिक्रमा की॥२२॥

🍃 ततो दशरथः प्राप्यं पायसं देवनिर्मितम्।
वृभूव परमजीतः प्राप्य वित्तमिवाधनः ॥२३॥

⚜️ भावार्थ - उस देवनिमित खीर को पा कर महाराज दशरथ उसी तरह, परम प्रसन्न हुए, जिस तरह कोई निर्धन मनुष्य धन पा कर परम प्रसन्न होता है ॥२३॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 ततस्तदद्भुतप्रख्यं भूतं परमभास्वरम्।
संवर्तयित्वा तत्कर्म तत्रैवान्तरधीयत ॥२४॥

⚜️ भावार्थ - वह महा तेजस्वी अद्भुत पुरुष महाराज दशरथ को पायस पात्र दे कर वहीं अन्तर्धान हो गया ॥२४॥

🍃हर्षरश्मिभिरुचो तस्यान्तःपुरमावभौ।
शारदस्वाभिरामस्य चन्द्रस्येव नभशुभिः ॥२५॥

⚜️ भावार्थ - महाराज की रानियाँ भी यह सुख-संवाद सुन, शरद् कालीन चन्द्रमा की किरणों से प्रकाश की भाँति ( प्रसन्नता से ) खिल उठीं अर्थात् शोभायमान हुई ॥२५॥

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🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 सोन्तःपुरं प्रविश्यैव कौसल्यामिदमब्रवीत्।
पायसं प्रतिगृह्णीव पुत्रीयं त्विदमात्मनः ॥२६॥

⚜️ भावार्थ - महाराज दशरथ रनवास में गये और महारानी कौशल्या जी से यह बोले - “लीजिए यह खीर है, इससे आपको पुत्र की प्राप्ति होगी।

🍃 कौसल्यायै नरपतिः पायसार्धं ददौ तदा।
अर्धादर्भ ददौ चापि सुमित्रायै नराधिपः॥२७॥

⚜️ भावार्थ - तदनन्तर महाराज दशरथ ने उस खीर में से आधी तो कौशल्या जो को और बची हुए आधी में से आधी सुमित्रा को दे दी ॥२७॥

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🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 कैकेय्यै चावशिष्टार्धं ददौ पुत्रार्थकारणात्।
प्रददौ चावशिष्टार्धं पायसस्यामृतोपमम्॥२८॥

अनुचिन्त्य सुमित्राय पुनरेव महीपतिः।
एवं तासां ददौ राजा भार्याणां पायसं पृथक्॥२९॥

⚜️ भावार्थ - कुल खीर का आठवाँ हिस्सा कैकई को दिया और उस अमृतोपम खीर का बचा हुआ भाग कुछ सोचकर सुमित्रा को दे दिया। इस प्रकार महाराज ने अपनी रानियों को अलग अलग हिस्से कर खीर दी। ॥२८॥२९॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 ताश्चैव पायसं प्राप्य नरेन्द्रस्योत्तमस्त्रियः ।
सम्मानं मेनिरे सर्वाः प्रहर्षोदितचेतसः ॥ ३० ॥

⚜️ भावार्थ : उस खीर को खा कर महाराज की कौशल्यादि सुन्दरी रानियाँ बहुत प्रसन्न हुई और अपने को भाग्यवती माना॥ ३०॥


🍃 ततस्तु ताः प्राश्य तदुत्तमस्त्रियो
     महीपतेरुत्तमपायसं पृथक् ।
हुताशनादित्य समानतेजसो-
     ऽचिरेण गर्भान् प्रतिपेदिरे तदा ॥ ३१ ॥

भावार्थ - तदनन्तर उन उत्तम रानियों ने महाराज की पृथक पृथक दी हुई खीर खा कर अग्नि और सूर्य के समान तेज वाले गर्भ शीघ्र धारण किये॥३१॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 ततस्तु राजा प्रसमीक्ष्य ताः स्त्रियः
प्ररूढगर्भाः प्रतिलब्धमानसः।
बभूव हृष्टस्त्रिदिवे यथा हरि सुरेन्द्रसिद्धर्षिगणाभिपूजितः॥३२॥

🚩॥ इति षोडशः सर्गः॥

⚜️ भावार्थ - महाराज दशरथ भी अपनी रानियों की गर्भवती और अपना मनोरथ पूर्ण होता देख, उसी प्रकार प्रसन्न हुए, जिस प्रकार भगवान् विष्णु देवताओं, ऋषियों और सिद्धों से पूजित होते हैं।।३२।।

👉🏻🚩बालकांड का सोहलवा सर्ग समाप्त हुआ।

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। सप्तदशः सर्गः ।।

🍃 पुत्रत्वं तु गते विष्णौ राज्ञस्तस्य सुमहात्मनः।
उवाच देवताः सर्वाः स्वयंभूर्भगवानिदम्॥१॥

⚜️ भावार्थ - महात्मा महाराज दशरथ के घर में भगवान् विष्णु को पुत्र रूप से भवतीर्ण होते देख, ब्रह्मा जी ने सब देवताओं से कहा॥१॥

🍃 सत्यसंघस्य वीरस्य सर्वेषां नो हितैषिणः।
विष्णो: सहायान्बलिन: सृजध्वं कामरूपिणः॥२॥

मायाविदवश्च शूरांश्च वायुवेगसमाञ्जवे। नयजान्बुद्धिसंपन्नान्विष्णुतुल्यपराक्रमान्॥३॥

⚜️ भावार्थ - सत्यसंध, वीर, और सब का हित चाहने वाले भगवान् विष्णु की सहायता के लिये तुम लोग भी बलवान, कामरूपी ( जैसा चाहै वैसा रूप बनाने वाले ) माया को जानने वाले, वेग में पवन तुल्य, नीतिज्ञ, बुद्धिमान, पराक्रम में विष्णु के ही समान ही अनेक रूपो में जन्म लो।

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