🍃 सागसा भरताय इभमाभाता मन्युमत्तया।
स अत्र मध्यमय तापे पोताय अधिगता रसा ॥ ९॥
🔸पाप से परिपूर्ण कैकेयी पुत्र भरत के लिए क्रोधाग्नि से पागल तप रही थी। लक्ष्मी की कान्ति से उज्जवलित धरती (अयोध्या) को उस मध्यमा (मझली पत्नी) ने पापी विधि से भरत के लिए ले लिया।
🍃 सारतागधिया तापोपेता या मध्यमत्रसा।
यात्तमन्युमता भामा भयेता रभसागसा ॥ ९॥
🔸सूक्ष्मकटि (पतले कमर वाली), अति विदुषी, सत्यभामा कृष्ण द्वारा उतावलेपन में भेदभावपूर्वक पारिजात पुष्प रुक्मिणी को देने से आहत होकर क्रोध और घृणा से भर गई।
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स अत्र मध्यमय तापे पोताय अधिगता रसा ॥ ९॥
🔸पाप से परिपूर्ण कैकेयी पुत्र भरत के लिए क्रोधाग्नि से पागल तप रही थी। लक्ष्मी की कान्ति से उज्जवलित धरती (अयोध्या) को उस मध्यमा (मझली पत्नी) ने पापी विधि से भरत के लिए ले लिया।
विलोम श्लोक :—
🍃 सारतागधिया तापोपेता या मध्यमत्रसा।
यात्तमन्युमता भामा भयेता रभसागसा ॥ ९॥
🔸सूक्ष्मकटि (पतले कमर वाली), अति विदुषी, सत्यभामा कृष्ण द्वारा उतावलेपन में भेदभावपूर्वक पारिजात पुष्प रुक्मिणी को देने से आहत होकर क्रोध और घृणा से भर गई।
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🍃 तानवात् अपका उमाभा रामे काननद आस सा।
या लता अवृद्धसेवाका कैकेयी महद अहह ॥ १०॥
🔸क्षीणता के कारण, लता जैसी बनी, पीतवर्णी, समस्त आनन्दों से परे कैकेयी, राम के वनगमन का कारण बन, उनके अभिषेक को अस्वीकारते हुए, वृद्ध राजा की सेवा से विमुख हो गयी।
🍃 हह दाहमयी केकैकावासेद्धवृतालया।
सा सदाननका आमेरा भामा कोपदवानता ॥ १०॥
🔸सुमुखी (सुन्दर चहरे वाली) सत्यभामा, अत्यंत विचलित और अशांत होकर दावाग्नि (जंगल की आग) की तरह क्रोध से लाल हो अपने भवन, जो मयूरों का वास और क्रीडास्थल था, उनके कपाटों को बंद कर दिया ताकि सेविकाओं का प्रवेश अवरुद्ध हो जाए।
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या लता अवृद्धसेवाका कैकेयी महद अहह ॥ १०॥
🔸क्षीणता के कारण, लता जैसी बनी, पीतवर्णी, समस्त आनन्दों से परे कैकेयी, राम के वनगमन का कारण बन, उनके अभिषेक को अस्वीकारते हुए, वृद्ध राजा की सेवा से विमुख हो गयी।
विलोम श्लोक :—
🍃 हह दाहमयी केकैकावासेद्धवृतालया।
सा सदाननका आमेरा भामा कोपदवानता ॥ १०॥
🔸सुमुखी (सुन्दर चहरे वाली) सत्यभामा, अत्यंत विचलित और अशांत होकर दावाग्नि (जंगल की आग) की तरह क्रोध से लाल हो अपने भवन, जो मयूरों का वास और क्रीडास्थल था, उनके कपाटों को बंद कर दिया ताकि सेविकाओं का प्रवेश अवरुद्ध हो जाए।
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🍃 वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरात् अहो।
भास्वरः स्थिरधीरः अपहारोराः वनगामी असौ ॥ ११॥
🔸विनम्र, आदरणीय, सत्य के त्याग से और वचन पालन ना करने से लज्जित होने वाले, पिता के सम्मान में अद्भुत राम – तेजोमय, मुक्ताहारधारी, वीर, साहसी - वन को प्रस्थान किए।
🍃 सौम्यगानवरारोहापरः धीरः स्स्थिरस्वभाः।
हो दरात् अत्र आपितह्री सत्यासदनम् आर वा ॥ ११॥
🔸संगीत की धनी, यानि सत्यभामा, के प्रति समर्पित प्रभु (कृष्ण) – वीर, दृढ़चित्त – कदाचित भय व लज्जा से आक्रांत हो सत्यभामा के निवास पंहुचे।
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भास्वरः स्थिरधीरः अपहारोराः वनगामी असौ ॥ ११॥
🔸विनम्र, आदरणीय, सत्य के त्याग से और वचन पालन ना करने से लज्जित होने वाले, पिता के सम्मान में अद्भुत राम – तेजोमय, मुक्ताहारधारी, वीर, साहसी - वन को प्रस्थान किए।
विलोम श्लोक :—
🍃 सौम्यगानवरारोहापरः धीरः स्स्थिरस्वभाः।
हो दरात् अत्र आपितह्री सत्यासदनम् आर वा ॥ ११॥
🔸संगीत की धनी, यानि सत्यभामा, के प्रति समर्पित प्रभु (कृष्ण) – वीर, दृढ़चित्त – कदाचित भय व लज्जा से आक्रांत हो सत्यभामा के निवास पंहुचे।
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🍃 या नयानघधीतादा रसायाः तनया दवे।
सा गता हि वियाता ह्रीसतापा न किल ऊनाभा ॥ १२॥
🔸अपने शरणागतों को शास्त्रोचित सद्बुद्धि देने वाली, धरती पुत्री सीता, इस लज्जाजनक कार्य से आहत, अपनी कान्ति को बिना गँवाए, वन गमन का साहस कर गईं।
🍃 भान् अलोकि न पाता सः ह्रीता या विहितागसा।
वेदयानः तया सारदात धीघनया अनया ॥ १२॥
🔸तेजस्वी रक्षक कृष्ण - वैभवदाता, जिनका वाहन गरुड़ है – उनकी ओर, गूढ़ ज्ञान से परिपूर्ण सत्यभामा ने अपने को नीचा दिखाने से अपमानित, (रुक्मिणी को पुष्प देने से) देखा ही नहीं।
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सा गता हि वियाता ह्रीसतापा न किल ऊनाभा ॥ १२॥
🔸अपने शरणागतों को शास्त्रोचित सद्बुद्धि देने वाली, धरती पुत्री सीता, इस लज्जाजनक कार्य से आहत, अपनी कान्ति को बिना गँवाए, वन गमन का साहस कर गईं।
विलोम श्लोक :—
🍃 भान् अलोकि न पाता सः ह्रीता या विहितागसा।
वेदयानः तया सारदात धीघनया अनया ॥ १२॥
🔸तेजस्वी रक्षक कृष्ण - वैभवदाता, जिनका वाहन गरुड़ है – उनकी ओर, गूढ़ ज्ञान से परिपूर्ण सत्यभामा ने अपने को नीचा दिखाने से अपमानित, (रुक्मिणी को पुष्प देने से) देखा ही नहीं।
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🍃 रागिराधुतिगर्वादारदाहः महसा हह।
यान् अगात भरद्वाजम् आयासी दमगाहिनः ॥ १३॥
🔸तामसी, उपद्रवी, दम्भी, अनियंत्रित शत्रुदल को अपने तेज से दहन करने वाले शूरवीर राम के निकट, भारद्वाज आदि संयमी ऋषि, थकान से क्लांत पँहुच याचना की।
🍃 नो हि गाम् अदसीयामाजत् व आरभत गा; न या।
हह सा आह महोदारदार्वागतिधुरा गिरा ॥ १३॥
🔸सत्यभामा, अदासी पुष्पधारी कृष्ण, के शब्दों पर ना तो ध्यान ही दी ना तो कुछ बोली जब तक कि कृष्ण ने पारिजात वृक्ष को लाने का संकल्प ना लिया।
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यान् अगात भरद्वाजम् आयासी दमगाहिनः ॥ १३॥
🔸तामसी, उपद्रवी, दम्भी, अनियंत्रित शत्रुदल को अपने तेज से दहन करने वाले शूरवीर राम के निकट, भारद्वाज आदि संयमी ऋषि, थकान से क्लांत पँहुच याचना की।
विलोम श्लोक :—
🍃 नो हि गाम् अदसीयामाजत् व आरभत गा; न या।
हह सा आह महोदारदार्वागतिधुरा गिरा ॥ १३॥
🔸सत्यभामा, अदासी पुष्पधारी कृष्ण, के शब्दों पर ना तो ध्यान ही दी ना तो कुछ बोली जब तक कि कृष्ण ने पारिजात वृक्ष को लाने का संकल्प ना लिया।
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🍃 यातुराजिदभाभारं द्यां व मारुतगन्धगम्।
सः अगम् आर पदं यक्षतुंगाभः अनघयात्रया ॥ १४॥
🔸असंख्य राक्षसों का नाश अपने तेजप्रताप से करनेवाले (राम), स्वर्गतुल्य सुगन्धित पवन संचारित स्थल (चित्रकूट) पर यक्षराज कुबेर तुल्य वैभव व आभा संग लिए पंहुचे।
🍃 यात्रया घनभः गातुं क्षयदं परमागसः।
गन्धगं तरुम् आव द्यां रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥
🔸मेघवर्ण के श्रीकृष्ण, सत्यभामा को घोर अन्याय से शांत करने हेतु, अप्सराओं से शोभायमान, रम्भा जैसी सुंदरियों से चमकते आँगन, स्वर्ग को गए ताकि वे सुगन्धित पारिजात वृक्ष तक पहुँच सकें।
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सः अगम् आर पदं यक्षतुंगाभः अनघयात्रया ॥ १४॥
🔸असंख्य राक्षसों का नाश अपने तेजप्रताप से करनेवाले (राम), स्वर्गतुल्य सुगन्धित पवन संचारित स्थल (चित्रकूट) पर यक्षराज कुबेर तुल्य वैभव व आभा संग लिए पंहुचे।
विलोम श्लोक :—
🍃 यात्रया घनभः गातुं क्षयदं परमागसः।
गन्धगं तरुम् आव द्यां रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥
🔸मेघवर्ण के श्रीकृष्ण, सत्यभामा को घोर अन्याय से शांत करने हेतु, अप्सराओं से शोभायमान, रम्भा जैसी सुंदरियों से चमकते आँगन, स्वर्ग को गए ताकि वे सुगन्धित पारिजात वृक्ष तक पहुँच सकें।
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🍃 दण्डकां प्रदमो राजाल्या हतामयकारिहा।
सः समानवतानेनोभोग्याभः न तदा आस न ॥ १५॥
🔸दंडकवन में संयमी (राम) - स्वस्थ नरेशों के शत्रु (परशुराम) को पराजित करनेवाले, मानवयोनि वाले व्यक्तियों (मनुष्यों) को अपने निष्कलंक कीर्ति से आनन्दित करनेवाले - ने प्रवेश किया।
🍃 न सदातनभोग्याभः नो नेता वनम् आस सः।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥
🔸सदा आनंददायी जननायक श्रीकृष्ण नन्दनवन को जा पहुंचे, जो इंद्र के अतिआनंद का श्रोत था – वही इन्द्र जो आकर्षक काया वाली अहिल्या का प्रेमी था, जिसने (छलपूर्वक) अहिल्या की सहमति पा ली थी।
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सः समानवतानेनोभोग्याभः न तदा आस न ॥ १५॥
🔸दंडकवन में संयमी (राम) - स्वस्थ नरेशों के शत्रु (परशुराम) को पराजित करनेवाले, मानवयोनि वाले व्यक्तियों (मनुष्यों) को अपने निष्कलंक कीर्ति से आनन्दित करनेवाले - ने प्रवेश किया।
विलोम श्लोक :—
🍃 न सदातनभोग्याभः नो नेता वनम् आस सः।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥
🔸सदा आनंददायी जननायक श्रीकृष्ण नन्दनवन को जा पहुंचे, जो इंद्र के अतिआनंद का श्रोत था – वही इन्द्र जो आकर्षक काया वाली अहिल्या का प्रेमी था, जिसने (छलपूर्वक) अहिल्या की सहमति पा ली थी।
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🍃 सः अरम् आरत् अनज्ञाननः वेदेराकण्ठकुंभजम्।
तं द्रुसारपटः अनागाः नानादोषविराधहा ॥ १६॥
🔸वे राम शीघ्र ही महाज्ञानी - जिनकी वाणी वेद है, जिन्हें वेद कंठस्थ है - कुम्भज (मटके में जन्मने के कारण अगस्त्य ऋषि का एक अन्य नाम) के निकट जा पंहुचे। वे निर्मल वृक्ष वल्कल (छाल) परिधानधारी हैं, जो नाना दोष (पाप) वाले विराध के संहारक हैं।
🍃 हा धराविषदह नानागानाटोपरसात् द्रुतम्।
जम्भकुण्ठकराः देवेनः अज्ञानदरम् आर सः ॥ १६॥
🔸हाय, वो इंद्र, पृथ्वी को जलप्रदान करने वाले, किन्नरों-गन्धर्वों के सुरीले संगीत रस का आनंद लेने वाले, देवाधिपति ने ज्यों ही जम्बासुर संहारक (कृष्ण) का आगमन सुना, वे अनजाने भय से ग्रसित हो गए।
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तं द्रुसारपटः अनागाः नानादोषविराधहा ॥ १६॥
🔸वे राम शीघ्र ही महाज्ञानी - जिनकी वाणी वेद है, जिन्हें वेद कंठस्थ है - कुम्भज (मटके में जन्मने के कारण अगस्त्य ऋषि का एक अन्य नाम) के निकट जा पंहुचे। वे निर्मल वृक्ष वल्कल (छाल) परिधानधारी हैं, जो नाना दोष (पाप) वाले विराध के संहारक हैं।
विलोम श्लोक :—
🍃 हा धराविषदह नानागानाटोपरसात् द्रुतम्।
जम्भकुण्ठकराः देवेनः अज्ञानदरम् आर सः ॥ १६॥
🔸हाय, वो इंद्र, पृथ्वी को जलप्रदान करने वाले, किन्नरों-गन्धर्वों के सुरीले संगीत रस का आनंद लेने वाले, देवाधिपति ने ज्यों ही जम्बासुर संहारक (कृष्ण) का आगमन सुना, वे अनजाने भय से ग्रसित हो गए।
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🍃 सागमाकरपाता हाकंकेनावनतः हि सः।
न समानर्द मा अरामा लंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७॥
🔸वेदों में निपुण, सन्तों के रक्षक (राम) का गरुड़ (जटायु) ने झुक कर नमन किया जिनके प्रति अपूर्ण कामयाचना चुड़ैल, लंकेश की बहन (शूर्पणखा), को भी थी।
🍃 तं रसासु अजराकालं म आरामार्दनम् आस न।
स हितः अनवनाकेकं हाता अपारकम् आगसा ॥ १७॥
🔸वे (कृष्ण) - वृद्धावस्था व मृत्यु से परे - पारिजात वृक्ष के उन्मूलन की इच्छा से गए, तब इंद्र - स्वर्ग में रहते हुए भी कृष्ण के हितैषी – को अपार दुःख प्राप्त हुआ।
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न समानर्द मा अरामा लंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७॥
🔸वेदों में निपुण, सन्तों के रक्षक (राम) का गरुड़ (जटायु) ने झुक कर नमन किया जिनके प्रति अपूर्ण कामयाचना चुड़ैल, लंकेश की बहन (शूर्पणखा), को भी थी।
विलोम श्लोक :—
🍃 तं रसासु अजराकालं म आरामार्दनम् आस न।
स हितः अनवनाकेकं हाता अपारकम् आगसा ॥ १७॥
🔸वे (कृष्ण) - वृद्धावस्था व मृत्यु से परे - पारिजात वृक्ष के उन्मूलन की इच्छा से गए, तब इंद्र - स्वर्ग में रहते हुए भी कृष्ण के हितैषी – को अपार दुःख प्राप्त हुआ।
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🍃 तां सः गोरमदोश्रीदः विग्राम् असदरः अतत।
वैरम् आस पलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥
🔸पृथ्वी को प्रिय (विष्णु यानि राम) के दाहिनी भुजा व उन्हें गौरव देने वाले, निडर लक्ष्मण द्वारा नाक काटे जाने पर, उस माँसभक्षी नासाविहीन (शूर्पणखा) ने सूर्यवंशी (राम) के प्रति वैर पाल लिया।
🍃 केशवं विरसानाविः आह आलापसमारवैः।
ततरोदसम् अग्राविदः अश्रीदः अमरगः असताम् ॥ १८॥
🔸उल्लास, जीवनीशक्ति और तेज के ह्रास होने का भान होने पर केशव (कृष्ण) से मित्रवत वाणी में इंद्र – जिसने उन्नत पर्वतों को परास्त कर महत्वहीन किया (उद्दंड उड़नशील पर्वतों के पंखों को इंद्र ने अपने वज्रायुध से काट दिया था), जिसने अमर देवों के नायक के रूप में दुष्ट असुरों को श्रीविहीन किया - ने धरा व नभ के रचयिता (कृष्ण) से कहा।
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वैरम् आस पलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥
🔸पृथ्वी को प्रिय (विष्णु यानि राम) के दाहिनी भुजा व उन्हें गौरव देने वाले, निडर लक्ष्मण द्वारा नाक काटे जाने पर, उस माँसभक्षी नासाविहीन (शूर्पणखा) ने सूर्यवंशी (राम) के प्रति वैर पाल लिया।
विलोम श्लोक :—
🍃 केशवं विरसानाविः आह आलापसमारवैः।
ततरोदसम् अग्राविदः अश्रीदः अमरगः असताम् ॥ १८॥
🔸उल्लास, जीवनीशक्ति और तेज के ह्रास होने का भान होने पर केशव (कृष्ण) से मित्रवत वाणी में इंद्र – जिसने उन्नत पर्वतों को परास्त कर महत्वहीन किया (उद्दंड उड़नशील पर्वतों के पंखों को इंद्र ने अपने वज्रायुध से काट दिया था), जिसने अमर देवों के नायक के रूप में दुष्ट असुरों को श्रीविहीन किया - ने धरा व नभ के रचयिता (कृष्ण) से कहा।
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