कविग्राम
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यह चैनल कवि, कविता तथा कवि सम्मेलनों के साथ ही सृजन की समस्त संभावनाओं को समर्पित है।
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प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल,
टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल।
नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की,
जय बोल बेईमान की !

काका हाथरसी
जन्म : 18 सितम्बर 1906
निधन : 18 सितम्बर 1995

#KakaHathrasi #HindiPoetry
आचमन जब-जब किया, कुछ रत्न आये हाथ में
दे गयी हर लहर मुझको गीत कुछ सौगात में
जब कभी मैली हुई तो आँख ने धोयी नदी
बह रही मुझमें निरन्तर सोच की कोई नदी

इंदिरा गौड़

#IndiraGaud #hindipoetry #kavigram
हँसे हेरत, टेरत काहे उन्हें, किस गंध पे छंद लुटावत हो
अँखियाँ न रिझावत हैं छवि जो, अँखियान में क्यों न बसावत हो
मन काहे मरोरत हो हरि सों, हिय कौन से रंग रंगावत हो
जब नैनन में हरि नाचत हैं, तब काहे को नैन नचावत हो

-शिशुपाल सिंह निर्धन

#Kavigram #ShishupalSinghNirdhan #HindiPoetry
पत्थर इतने उछले ऊपर, टूट गये हैं शीशे के घर
नफ़रत के तीखे नेज़ों से, छिदा हुआ मटमैला अम्बर
आओ! उगता सूरज बेलें
पूरब की आँखों मे अब भी घने अन्धेरे बसे हुए हैं

आओ! मिलकर इन्हें धकेलें
मिट्टी के कच्चे रस्ते में
रथ के पहिये धँसे हुए हैं

~ कुमार शिव

#hindipoetry #kavigram
तुमने जितनी संज्ञाओं से
मेरा नामकरण कर डाला
मैंनें उनको गूँथ-गूँथ कर
सांसों की अर्पण की माला
जितना तीखा व्यंग्य तुम्हारा
उतना मेरा अंतर मानी
एक साथ कैसे रह पाये
मन में आग, नयन में पानी।

~स्नेहलता स्नेह

#HindiPoetry #SnehlataSneh #Kavigram
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बड़ी कई झीलें हैं
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर विष-तंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

~बाबा नागार्जुन

#Kavigram
#HindiPoetry
#BabaNagarjun
एक गीत ऐसा है जिसमें बस पढ़ने वाला रोता है
एक गीत ऐसा है जिसमें हर सुनने वाला रोता है
एक गीत ऐसा है मुझ पर जो मन को आह्लादित कर दे
एक गीत ऐसा भी है जो हर धड़कन को बाधित कर दे
शब्दों का भी मान रखोगे?
या केवल संगीत सुनाऊँ?
तुम्हीं बताओ यारो तुमको
आज कौन-सा गीत सुनाऊँ?

© गुणवीर राणा

#HindiPoetry #GunveerRana #kavigram
प्राण ने हँस अधर पर अधर रख दिये,
तप्त चुम्बन गगन तक दहकने लगे
आर पुरवा भी चन्दन चुरा लायी है,
प्रीति के अंग-उपवन महकने लगे

~ शिवसागर शर्मा

#kavigram #hindipoetry #romanticpoetry
आँखों में हैं सिन्दूरी दिन, साथ रहे जब पल-पल, छिन-छिन
शबनम को ज्यों फूल संभाले, तुमको रक्खा पलकों पर गिन
प्यार के बिखरे मोती कितने
तुमको यह अनुमान नहीं है
तुम्हें भूलना चाहूँ लेकिन
यह इतना आसान नहीं है

© डॉ रमा सिंह

#kavigram #hindipoetry
थक गये हैं जंग खाये तीर-
अब टूटी कमानों पर चढ़े
प्रश्न है, थामे पताका कौन?
पहले कौन रथ आगे बढ़े?
जीततीं भूखे सवालों से समर में
तृप्त सेनाएँ जवाबों की
फिर हमें पहुँचा गयी जलते वनों तक
वंचना हँसते गुलाबों की

~किशन सरोज

#kavigram #hindipoetry #kishansaroj
कीचड़ उसके पास था, मेरे पास गुलाल।
जो भी जिसके पास था, उसने दिया उछाल।।

~माणिक वर्मा

#kavigram #hindipoetry
अब तो नाम ग़रीबी का भी लेने में डर लगता है
सरकारी दस्तावेज़ों में खुशहाली है बाबूजी

मिट्टी बेच रहा हूँ जिसमें कोई जाल फरेब नहीं
सोना चांदी दूध मिठाई सब जाली है बाबूजी

~ज्ञानप्रकाश आकुल

#Kavigram #hindipoetry #GyanPrakashAakul
सूरज गया है काम से आएगा लौटकर
जुगनू की बद्दुआ से अंधेरा हुआ है क्या

© पंकज पलाश

#Kavigram #hindipoetry
यह मरघट का सन्नाटा तो रह-रहकर काटे जाता है
दुःख दर्द तबाही से दबकर मुफ़लिस का दिल चिल्लाता है
यह झूठा सन्नाटा टूटे
पापों का भरा घड़ा फूटे
तुम ज़ंजीरों की झनझन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!
जो जीने का आनंद मिले
जो मरने का आनंद मिले

© गोपाल सिंह नेपाली

#HindiPoetry #Kavigram
एक दल बोलता है हमको थमा दो देश
हम लोकतंत्र की ज़मीन बेच देते हैं
एक दल बोलता है हमको थमा दो देश
जनता का धर्म और दीन बेच देते हैं
एक नेता बोला हम बन के मुंगेरी लाल
जनता को सपने हसीन बेच देते हैं
जनता ने कहा हम वायदों की बीन पर
काले कोबरा को आस्तीन बेच देते हैं

© चिराग़ जैन

#ChiragJain #kavigram #hindipoetry
सत्ता चाहे जिसकी भी हो अहम् नहीं स्वीकार प्रजा को
कर्मकाण्ड से कर्मयोग ने पल में लिया उबार प्रजा को
गोकुलवालो! छोड़ो छलिया इंद्रदेव का पूजन करना
पर्वत ढोकर ही मिलता है जीने का अधिकार प्रजा को

© चिराग़ जैन

गौवर्द्धन पर्व की शुभेषणा!

#Govardhan
#HindiPoetry
#kavigram
#ChiragJain
ये भी मुमकिन है ये बौनों का शहर हो; इसलिए
छोटे दरवाज़ों की ख़ातिर अपना क़द छोटा न कर

~ राजगोपाल सिंह

#kavigram #hindipoetry
हर दिशा में विष घुला है
मृत्यु का फाटक खुला है
इक धुँआ-सा हर किसी के
प्राण लेने पर तुला है
साँस ले पाना कठिन है, घुट रहा है दम
नीलकंठी हो गए हैं हम

हम ज़हर के घूँट को ही श्वास कहने पर विवश हैं
ज़िन्दगी पर हो रहे आघात सहने पर विवश हैं
श्वास भी छलने लगी है
पुतलियाँ जलने लगी हैं
इस हलाहल से रुधिर की
वीथियाँ गलने लगी हैं
उम्र आदम जातियों की हो रही है कम
नीलकंठी हो गए हैं हम

पेड़-पौधों के नयन का स्वप्न तोड़ा है शहर ने
हर सरोवर, हर नदी का मन निचोड़ा है शहर ने
अब हवा तक बेच खाई
भेंट ईश्वर की लुटाई
श्वास की बाज़ी लगाकर
कौन-सी सुविधा जुटाई
जो सहायक थे, उन्हीं से हो गए निर्मम
नीलकंठी हो गए हैं हम

लोभ की मथनी चलाई, नाम मंथन का लिया है
सत्य है हमने समूची सृष्टि का दोहन किया है
देवता नाराज़ हैं सब
यंत्र धोखेबाज़ हैं सब
छिन चुके वरदान सारे
किस क़दर मोहताज हैं सब
हद हुई है पार, बाग़ी हो गया मौसम
नीलकंठी हो गए हैं हम

अब प्रकृति के देवता को पूज लेंगे तो बचेंगे
जो मिटाया है उसे फिर से रचेंगे तो बचेंगे
साज हैं पर स्वर नहीं हैं
राह है रहबर नहीं हैं
विष पचाकर जी सकेंगे
हम कोई शंकर नहीं हैं
मृत्यु ताण्डव कर रही है, द्वार पर है यम
नीलकंठी हो गए हैं हम

© चिराग़ जैन

#ChiragJain #pollution #hindipoetry