कविग्राम
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यह चैनल कवि, कविता तथा कवि सम्मेलनों के साथ ही सृजन की समस्त संभावनाओं को समर्पित है।
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हँसे हेरत, टेरत काहे उन्हें, किस गंध पे छंद लुटावत हो
अँखियाँ न रिझावत हैं छवि जो, अँखियान में क्यों न बसावत हो
मन काहे मरोरत हो हरि सों, हिय कौन से रंग रंगावत हो
जब नैनन में हरि नाचत हैं, तब काहे को नैन नचावत हो

-शिशुपाल सिंह निर्धन

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