कविग्राम
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यह चैनल कवि, कविता तथा कवि सम्मेलनों के साथ ही सृजन की समस्त संभावनाओं को समर्पित है।
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सिंदूर चढ़ाऊँ या मिट्टी, दोनों के नियम एक से हैं
घूंघट में मुखड़ा छिपता है, चूनर और क़फ़न एक से हैं
इस डोली और उस डोली के चढ़ने के शगुन एक से हैं
दो बार आठ पग साथ चले, आठों के चलन एक से हैं
तुम मन मधुबन का पथ दे दो तो मैं तन का मरघट छोड़ूँ
तुम एक बार प्रिये आ जाओ, तो आँचल भर सुहाग ओढूँ

~माया गोविन्द

#hindipoetry #mayagovind #kavigram
आचमन जब-जब किया, कुछ रत्न आये हाथ में
दे गयी हर लहर मुझको गीत कुछ सौगात में
जब कभी मैली हुई तो आँख ने धोयी नदी
बह रही मुझमें निरन्तर सोच की कोई नदी

इंदिरा गौड़

#IndiraGaud #hindipoetry #kavigram
हँसे हेरत, टेरत काहे उन्हें, किस गंध पे छंद लुटावत हो
अँखियाँ न रिझावत हैं छवि जो, अँखियान में क्यों न बसावत हो
मन काहे मरोरत हो हरि सों, हिय कौन से रंग रंगावत हो
जब नैनन में हरि नाचत हैं, तब काहे को नैन नचावत हो

-शिशुपाल सिंह निर्धन

#Kavigram #ShishupalSinghNirdhan #HindiPoetry
पत्थर इतने उछले ऊपर, टूट गये हैं शीशे के घर
नफ़रत के तीखे नेज़ों से, छिदा हुआ मटमैला अम्बर
आओ! उगता सूरज बेलें
पूरब की आँखों मे अब भी घने अन्धेरे बसे हुए हैं

आओ! मिलकर इन्हें धकेलें
मिट्टी के कच्चे रस्ते में
रथ के पहिये धँसे हुए हैं

~ कुमार शिव

#hindipoetry #kavigram
तुमने जितनी संज्ञाओं से
मेरा नामकरण कर डाला
मैंनें उनको गूँथ-गूँथ कर
सांसों की अर्पण की माला
जितना तीखा व्यंग्य तुम्हारा
उतना मेरा अंतर मानी
एक साथ कैसे रह पाये
मन में आग, नयन में पानी।

~स्नेहलता स्नेह

#HindiPoetry #SnehlataSneh #Kavigram
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बड़ी कई झीलें हैं
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर विष-तंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

~बाबा नागार्जुन

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#BabaNagarjun
एक गीत ऐसा है जिसमें बस पढ़ने वाला रोता है
एक गीत ऐसा है जिसमें हर सुनने वाला रोता है
एक गीत ऐसा है मुझ पर जो मन को आह्लादित कर दे
एक गीत ऐसा भी है जो हर धड़कन को बाधित कर दे
शब्दों का भी मान रखोगे?
या केवल संगीत सुनाऊँ?
तुम्हीं बताओ यारो तुमको
आज कौन-सा गीत सुनाऊँ?

© गुणवीर राणा

#HindiPoetry #GunveerRana #kavigram
प्राण ने हँस अधर पर अधर रख दिये,
तप्त चुम्बन गगन तक दहकने लगे
आर पुरवा भी चन्दन चुरा लायी है,
प्रीति के अंग-उपवन महकने लगे

~ शिवसागर शर्मा

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आँखों में हैं सिन्दूरी दिन, साथ रहे जब पल-पल, छिन-छिन
शबनम को ज्यों फूल संभाले, तुमको रक्खा पलकों पर गिन
प्यार के बिखरे मोती कितने
तुमको यह अनुमान नहीं है
तुम्हें भूलना चाहूँ लेकिन
यह इतना आसान नहीं है

© डॉ रमा सिंह

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थक गये हैं जंग खाये तीर-
अब टूटी कमानों पर चढ़े
प्रश्न है, थामे पताका कौन?
पहले कौन रथ आगे बढ़े?
जीततीं भूखे सवालों से समर में
तृप्त सेनाएँ जवाबों की
फिर हमें पहुँचा गयी जलते वनों तक
वंचना हँसते गुलाबों की

~किशन सरोज

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