स्वर्ग में इंद्र का राज्य था।
•• नाके इन्द्रस्य राज्यं बभूव।
एक बार दुर्वासा ऋषि के अपमान के कारण इंद्र को उनके शाप का भागी बना पड़ा।
••कस्मिंश्चित् दिने ऋषे: दुर्वासस: अपमानात्वात् इन्द्रेण तस्य शाप: भोक्तव्य: बभूव।
दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण इंद्र बल हीन हो गया।
•• दुर्वासस: शापात् इन्द्र: शक्तिहीनो बभूव।
इंद्र को बलहीन देख दैत्यों ने स्वर्ग में उत्पात मचाना शुरू कर दिया।
•• इन्द्रं शक्तिहीनमवलोक्य दैत्या: नाके उत्पातं कर्तुमारेभिरे।
इंद्र कहीं जाकर छिप गए।
•• इन्द्र: क्वचित् गत्वा जुगूह।
इस पर दैत्यों का साहस और बढ़ गया।
•• एतस्मिन् दैत्यानां साहस: इतोऽपि ववृधे।
रोज स्वर्ग पर अलग-अलग तरह से हमले होने लगे ।
•• प्रत्यहं नाके बहुविधिना आक्रमणं भवितुमारेभे।
तब अन्य देवताओं ने सप्त ऋषियों से मंत्रणा करके धरती के उस समय के सबसे तेजस्वी राजा नहुष को स्वर्ग का राजा बना दिया।
•• तदनन्तरं अन्ये देवा: सप्तर्षिभि: सह परामृश्य तदानीं भूलोकस्य सर्वाधिकं तेजस्विनं राजानं नहुषं नाकराज: घोषयञ्चक्रु:।
नहुष वीर और प्रतापी थे।
नहुष: वीर: प्रतापी: च बभूव।
उनके प्रभाव के कारण दैत्य फिर शांत बैठ गए और स्वर्ग में शांति हो गई।
•• तस्य प्रभावात् दैत्या: पुनः शान्ता: बभूवतु नाके च शान्ति: व्याप्ता बभूव।
~उमेशगुप्तः
#vakyabhyas
•• नाके इन्द्रस्य राज्यं बभूव।
एक बार दुर्वासा ऋषि के अपमान के कारण इंद्र को उनके शाप का भागी बना पड़ा।
••कस्मिंश्चित् दिने ऋषे: दुर्वासस: अपमानात्वात् इन्द्रेण तस्य शाप: भोक्तव्य: बभूव।
दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण इंद्र बल हीन हो गया।
•• दुर्वासस: शापात् इन्द्र: शक्तिहीनो बभूव।
इंद्र को बलहीन देख दैत्यों ने स्वर्ग में उत्पात मचाना शुरू कर दिया।
•• इन्द्रं शक्तिहीनमवलोक्य दैत्या: नाके उत्पातं कर्तुमारेभिरे।
इंद्र कहीं जाकर छिप गए।
•• इन्द्र: क्वचित् गत्वा जुगूह।
इस पर दैत्यों का साहस और बढ़ गया।
•• एतस्मिन् दैत्यानां साहस: इतोऽपि ववृधे।
रोज स्वर्ग पर अलग-अलग तरह से हमले होने लगे ।
•• प्रत्यहं नाके बहुविधिना आक्रमणं भवितुमारेभे।
तब अन्य देवताओं ने सप्त ऋषियों से मंत्रणा करके धरती के उस समय के सबसे तेजस्वी राजा नहुष को स्वर्ग का राजा बना दिया।
•• तदनन्तरं अन्ये देवा: सप्तर्षिभि: सह परामृश्य तदानीं भूलोकस्य सर्वाधिकं तेजस्विनं राजानं नहुषं नाकराज: घोषयञ्चक्रु:।
नहुष वीर और प्रतापी थे।
नहुष: वीर: प्रतापी: च बभूव।
उनके प्रभाव के कारण दैत्य फिर शांत बैठ गए और स्वर्ग में शांति हो गई।
•• तस्य प्रभावात् दैत्या: पुनः शान्ता: बभूवतु नाके च शान्ति: व्याप्ता बभूव।
~उमेशगुप्तः
#vakyabhyas
शब्दरूपाणि (ŚABDARŪPĀNI)
Each word form has a specific meaning which is known as its कारकम् (Kārakam) and the group in which it belongs is known as the विभक्तिः (Vibhaktiḥ).
Sanskrit Word forms for words of a particular kind are generally similar, e.g. If the word forms of the Pratipadikam, 'देव (Deva)' which is an अकारान्तः (Akārāntaḥ) (ending in (a)) पुँल्लिङ्गम् (Pullingam) (masculine gender) word are used, they will be similar for Akārāntaḥ Pullingam words.
However, there are some words, which have slightly different forms, despite having the same letter at the ending and the same grammatical gender.
They are of two types:
1. स्वरान्तशब्दरूपाणि : These words have vowels or स्वराः at their end.
2. व्यञ्जनान्तशब्दरूपाणि : These words have Consonants or व्यञ्जनानि at their end.
You should check शब्दरूपमाला for finding the words forms of any word.
🌐 Sanskritwisdom.com
#sanskritlessons
Each word form has a specific meaning which is known as its कारकम् (Kārakam) and the group in which it belongs is known as the विभक्तिः (Vibhaktiḥ).
Sanskrit Word forms for words of a particular kind are generally similar, e.g. If the word forms of the Pratipadikam, 'देव (Deva)' which is an अकारान्तः (Akārāntaḥ) (ending in (a)) पुँल्लिङ्गम् (Pullingam) (masculine gender) word are used, they will be similar for Akārāntaḥ Pullingam words.
However, there are some words, which have slightly different forms, despite having the same letter at the ending and the same grammatical gender.
They are of two types:
1. स्वरान्तशब्दरूपाणि : These words have vowels or स्वराः at their end.
2. व्यञ्जनान्तशब्दरूपाणि : These words have Consonants or व्यञ्जनानि at their end.
You should check शब्दरूपमाला for finding the words forms of any word.
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संसापशाला
संस्कृत संवादः (Sanskrit Samvadah)
#samlapshala
चन्द्रग्रहणं लक्ष्मीपूजा शरत्पूर्णिमा च
चन्द्रग्रहणं लक्ष्मीपूजा शरत्पूर्णिमा च
यः वृष्टिसमये कवितां रचयति सः उत्तमः कविः।
यः वृष्टिसमये वातायने प्रसारणार्थं विद्यमानानि वस्त्राणि स्मरति सः उत्तमः गृहस्थः 😜
#hasya
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩तिथि - द्वितीया रात्रि 10:22 तक तत्पश्चात तृतीया
⛅ दिनांक - 30 अक्टूबर 2023
⛅ दिन - सोमवार
⛅ शक संवत् - 1945
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - हेमंत
⛅ मास - कार्तिक
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - कृतिका 31 अक्टूबर प्रातः 04:01 तक तत्पश्चात रोहिणी
⛅ योग - व्यतिपात शाम 05:33 तक तत्पश्चात वरियान
⛅ राहु काल - सुबह 08:08 से 09:33 तक
⛅ सूर्योदय - 06:43
⛅ सूर्यास्त - 06:03
⛅ दिशा शूल - पूर्व दिशा में
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:02 से 05:53 तक
#panchang
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩तिथि - द्वितीया रात्रि 10:22 तक तत्पश्चात तृतीया
⛅ दिनांक - 30 अक्टूबर 2023
⛅ दिन - सोमवार
⛅ शक संवत् - 1945
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - हेमंत
⛅ मास - कार्तिक
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - कृतिका 31 अक्टूबर प्रातः 04:01 तक तत्पश्चात रोहिणी
⛅ योग - व्यतिपात शाम 05:33 तक तत्पश्चात वरियान
⛅ राहु काल - सुबह 08:08 से 09:33 तक
⛅ सूर्योदय - 06:43
⛅ सूर्यास्त - 06:03
⛅ दिशा शूल - पूर्व दिशा में
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:02 से 05:53 तक
#panchang
🍃
🔅 विद्या, कामधेनु समा, सदा एव फलदायिनी (अस्ति) । ( सा आवां) प्रवासे मातृवत् (रक्षति ) । तस्मात् विद्या गुप्त-धनम् स्मृतम्।
⚜ Kowledge is like Kamdhenu (the wish fulfilling cow), always helping to get desired objects. ( (For example,)Knowledge (protects us ) like a mother while travelling. (That is why ), it is called hidden treasure.
⚜ विद्या कामधेनु (इच्छा पूरी करने वाली गाय) के समान है, जो हमेशा वांछित वस्तुओं को प्राप्त करने में मदद करती है। यात्रा के समय विद्या माँ की तरह हमारी रक्षा करती है। (इसीलिए), इसे छिपा हुआ धन कहा जाता है।
#subhashitam
कामधेनुसमा विद्या सदैव फलदायिनी ।
प्रवासे मातृवत्तस्मात् विद्या गुप्तधनं स्मृतम्॥
🔅 विद्या, कामधेनु समा, सदा एव फलदायिनी (अस्ति) । ( सा आवां) प्रवासे मातृवत् (रक्षति ) । तस्मात् विद्या गुप्त-धनम् स्मृतम्।
⚜ Kowledge is like Kamdhenu (the wish fulfilling cow), always helping to get desired objects. ( (For example,)Knowledge (protects us ) like a mother while travelling. (That is why ), it is called hidden treasure.
⚜ विद्या कामधेनु (इच्छा पूरी करने वाली गाय) के समान है, जो हमेशा वांछित वस्तुओं को प्राप्त करने में मदद करती है। यात्रा के समय विद्या माँ की तरह हमारी रक्षा करती है। (इसीलिए), इसे छिपा हुआ धन कहा जाता है।
#subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
स्वर्ग में इंद्र का राज्य था। •• नाके इन्द्रस्य राज्यं बभूव। एक बार दुर्वासा ऋषि के अपमान के कारण इंद्र को उनके शाप का भागी बना पड़ा। ••कस्मिंश्चित् दिने ऋषे: दुर्वासस: अपमानात्वात् इन्द्रेण तस्य शाप: भोक्तव्य: बभूव। दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण इंद्र…
लेकिन, स्वर्ग का राजपद और इंद्र का आसन मिलने के कुछ ही दिनों में नहुष पर सत्ता और शक्ति का नशा छाने लगा।
•• परन्तु , नाकस्य राजपदस्य इन्द्रासनस्य च प्राप्तेः अनन्तरं किञ्चिद्दिनेषु हि नहुषः प्रशासनशक्त्योः मदान्धः भवितुमारेभे।
वो अपनी मनमानियों पर उतर आया।
•• स स्वेच्छारे संलग्नो जज्ञे।
इंद्र का पद मिलने के बाद उसने इंद्र की पत्नी शचि को भी अपने सामने पेश होने का फरमान सुना दिया।
•• इन्द्रपदस्य प्राप्ते: अनन्तरं स इन्द्रपत्नीं शचिमपि आत्मन: समक्षं उपस्थातुम् आदेशं श्रावयञ्चकार।
नहुष ने इंद्र की पत्नी शचि से कहा कि जब इंद्र का आसन और उसकी शक्तियां मेरे पास हैं, तो तुम भी मुझे अपना पति स्वीकार कर लो।
•• नहुष: इन्द्रपत्नीं शचिम् कथयाञ्चकार यत् यदा इन्द्रासन: तस्य च शक्तय: मम पार्श्वे सन्ति चेत् त्वमपि माम् आत्मानं स्वपतिं स्वीकुरु।
शचि ने मना किया।
•• शचि: अस्वीञ्चकार।
नहुष उसे तरह-तरह से परेशान करने लगा।
•• नहुष: तां बहुविधिना दोतुमारेभे।
तब परेशान होकर शचि देवगुरु बृहस्पति के पास गईं, उन्हें सारी बातें बताईं।
•• तदा उद्विग्नोभूय शचि: देवगुरुं बृहस्पतिं निकषा आगत्य तं सर्ववृत्तान्तं ज्ञापयञ्चकार।
नहुष की मनमानियों से सभी ऋषि भी परेशान थे।
•• नहुषस्य स्वेच्छाचारीत्वात् सर्वे ऋषय: अपि चिन्तिता: बभूवु।
तब देवगुरु ने शचि को एक युक्ति सुझाई।
•• तदा देवगुरु: शचे एकां युक्तिं परामर्शयञ्चकार।
उन्होंने शचि से कहा कि तुम नहुष का प्रस्ताव मान लो और उससे कहो कि अगर वो सप्त ऋषियों को कहार बनाकर खुद उनकी डोली में बैठकर आए तो तुम उसको अपना पति स्वीकार कर लोगी।
•• स शचिं कथयञ्चकार यत् त्वं नहुषस्य प्रस्तावं स्वीकृत्य तं कथय यत् यदि स सप्तर्षीन् कहारान् भावयित्वा तस्या: शिविकायाम् उपविश्य आगच्छेत् तर्हि त्वं तं स्वपतिं स्वीकुर्या:
~उमेशगुप्तः
#vakyabhyas
•• परन्तु , नाकस्य राजपदस्य इन्द्रासनस्य च प्राप्तेः अनन्तरं किञ्चिद्दिनेषु हि नहुषः प्रशासनशक्त्योः मदान्धः भवितुमारेभे।
वो अपनी मनमानियों पर उतर आया।
•• स स्वेच्छारे संलग्नो जज्ञे।
इंद्र का पद मिलने के बाद उसने इंद्र की पत्नी शचि को भी अपने सामने पेश होने का फरमान सुना दिया।
•• इन्द्रपदस्य प्राप्ते: अनन्तरं स इन्द्रपत्नीं शचिमपि आत्मन: समक्षं उपस्थातुम् आदेशं श्रावयञ्चकार।
नहुष ने इंद्र की पत्नी शचि से कहा कि जब इंद्र का आसन और उसकी शक्तियां मेरे पास हैं, तो तुम भी मुझे अपना पति स्वीकार कर लो।
•• नहुष: इन्द्रपत्नीं शचिम् कथयाञ्चकार यत् यदा इन्द्रासन: तस्य च शक्तय: मम पार्श्वे सन्ति चेत् त्वमपि माम् आत्मानं स्वपतिं स्वीकुरु।
शचि ने मना किया।
•• शचि: अस्वीञ्चकार।
नहुष उसे तरह-तरह से परेशान करने लगा।
•• नहुष: तां बहुविधिना दोतुमारेभे।
तब परेशान होकर शचि देवगुरु बृहस्पति के पास गईं, उन्हें सारी बातें बताईं।
•• तदा उद्विग्नोभूय शचि: देवगुरुं बृहस्पतिं निकषा आगत्य तं सर्ववृत्तान्तं ज्ञापयञ्चकार।
नहुष की मनमानियों से सभी ऋषि भी परेशान थे।
•• नहुषस्य स्वेच्छाचारीत्वात् सर्वे ऋषय: अपि चिन्तिता: बभूवु।
तब देवगुरु ने शचि को एक युक्ति सुझाई।
•• तदा देवगुरु: शचे एकां युक्तिं परामर्शयञ्चकार।
उन्होंने शचि से कहा कि तुम नहुष का प्रस्ताव मान लो और उससे कहो कि अगर वो सप्त ऋषियों को कहार बनाकर खुद उनकी डोली में बैठकर आए तो तुम उसको अपना पति स्वीकार कर लोगी।
•• स शचिं कथयञ्चकार यत् त्वं नहुषस्य प्रस्तावं स्वीकृत्य तं कथय यत् यदि स सप्तर्षीन् कहारान् भावयित्वा तस्या: शिविकायाम् उपविश्य आगच्छेत् तर्हि त्वं तं स्वपतिं स्वीकुर्या:
~उमेशगुप्तः
#vakyabhyas
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उपशीर्षके दोषाः क्षन्तव्याः।
सर्वनामपदानि (sarvanāmapadāni) means pronouns in Sanskrit. These are used to replace nouns when excessive repetition in the sentence is unwieldy.
The pronouns in Sanskrit follow the noun to be replaced in all aspects, i.e. to use a pronoun in place of a noun, we would use the same grammatical gender, grammatical case and grammatical number as we would have done for the noun.
Note: Pronouns generally have no सम्बोधनम् as their कारकम्, since we can not actually call someone using a pronoun, and सम्बोधनम् is the case used to call someone directly.
You should check शब्दरूपमाला for finding the words forms of pronouns.
🌐 Sanskritwisdom.com
#sanskritlessons
The pronouns in Sanskrit follow the noun to be replaced in all aspects, i.e. to use a pronoun in place of a noun, we would use the same grammatical gender, grammatical case and grammatical number as we would have done for the noun.
Note: Pronouns generally have no सम्बोधनम् as their कारकम्, since we can not actually call someone using a pronoun, and सम्बोधनम् is the case used to call someone directly.
You should check शब्दरूपमाला for finding the words forms of pronouns.
🌐 Sanskritwisdom.com
#sanskritlessons