संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🍃जन्ममृत्यू हि यात्येको भुनक्त्येकः शुभाशुभम्।
नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम्॥


🌞मनुष्यः जन्म एकाकी प्राप्नोति तथैव एकाकी मृत्युमपि कर्मणां शुभफलानि अशुभफलानि च स्वयमेव भुनक्ति तथैव एकाकी एव नरकं स्वर्गं वा प्राप्नोति।

🌷एक व्यक्ति अकेला ही इस संसार में जन्म लेता है, उसे अकेले ही अच्छे कर्मों का फल मिलता है, बुरे कर्मों का दण्ड भुगतना पड़ता है और एक दिन वह अकेला ही इस संसार को छोड़ देता है ।

🌹A person is born alone in this world, he alone gets the reward of good deeds, he alone suffers the punishment of bad deeds and one day he leaves this world alone.

📍चाणक्यनीतिः । ५।१३॥ #Subhashitam
🍃अत्रैव नरकः स्वर्ग इति मातः प्रचक्षते।
या यातना वै नारक्यस्ता इहाप्युपलक्षिताः।।


🌞 महामुनिः कपिलः स्वमातरम् उपदिशति श्रीमद्भागवते यत् नरकः स्वर्गश्च अत्रैव स्तः यतः याः पीडाः नरके दीयन्ते ताः अत्रापि प्राप्यन्ते। अतः धर्माचरणे रतः भवतु मनुष्यः।

🌷महामुनि कपिल श्रीमद्भागवत में अपनी माता को उपदेश देते हुए कहते हैं कि - हे मातः ! नरक और स्वर्ग तो यहीं हैं । जो जो पीड़ाएं नरक में मिलती हैं वे सभी यहाँ भी दिखलायी देती हैं ।

🌹Heaven and hell are in this world only. All types of pain of hell are visible in this world itself.

📍श्रीमद्भागवतम् । ३।३०।२९॥ #Subhashitam
🍃भक्तं रक्तं सदासक्तं निर्दोषं न परित्यजेत्।
रामस्त्यक्त्वा सतीं सीतां शोकशल्याकुलोऽभवत्।।

🌞 यः अस्माकं भक्तः अनुरक्तः च स्यात् सदैव अस्माभिः सह प्रवर्तते तथा निर्दोषी स्यात् तादृशस्य त्यागः न कादाचित् कर्तव्यः यथा रामः सतीसीतां त्यक्त्वा सदैव शोकरूपिणा कण्टकेन व्याकुलः तिष्ठति स्म।

🌷जो अपना भक्त हो,अपने प्रति अनुरक्त हो,सदा साथ देता हो व निर्दोष हो उसे कभी त्यागना नही चाहिए।राम सीता को त्यागकर शोकरूपी शल्य से सदा व्याकुल ही रहे।

🌹One who is your devotee, is devoted to you, always supports you and is innocent, should never be abandoned. After abandoning Sita, Rama was always troubled by the pain of grief.

#Subhashitam
🍃श्रुत्या यदुक्तं परमार्थमेतत्
तत्संशयो नात्र ततः समस्तम् ।
श्रुत्या विरोधे न भवेत् प्रमाणं
भवेदनर्थाय विना प्रमाणम्॥


🌞 वेदकथनं निस्सन्देहं परमर्थरूपं भवति यत् वेदविरुद्धं स्यात् तत् सर्वम् अप्रमाणमेव तथा च तत् अनर्थकारी एव भवति।

🌷वेद का कथन निस्संदेह परमार्थ रूप ही है, वेद का विरोधी होने पर कुछ भी प्रमाण नहीं रहता है और जो अप्रमाण होता है वह अनर्थकारी होता है।

🌹The statement of the Vedas is undoubtedly the ultimate form, when the Vedas are opposed, there is no proof and what is unproven is harmful.

📍ब्रह्मविद्योपनिषद् । ३२॥ #Subhashitam
🍃पारुष्यमनृतं चैव पैशुन्यं चापि सर्वशः ।
असम्बद्धप्रलापश्च वाङ्मयं स्याच्चतुर्विधम्॥


🌞कठोरवचनम् असत्यम् पिशुनता निरर्थकसंवादः इमानि चत्वारि वाणीसम्बन्धितानि पापानि भवन्ति।

🌷कठोर वचन बोलना, झूठ बोलना, दूसरे की चुगली करना, और अनावश्यक बातें करना – ये चार वाणी के पाप हैं ।

🌹Harsh words, lying, gossiping about others, and talking unnecessarily – these are the four sins of speech.

#Subhashitam
🍃अयथाविहितानां यन्मनोज्ञतासंपादौ न स्तः।
कथयाम्यतस्तरूणां रोपविधानं यथोद्दिष्टम्।।

🌞यदि कार्यं पूर्णव्यवस्थितरीत्या न कृतं स्यात् तर्हि न तत् सुपरिणामकारकं समृद्धिदायकं च भवति ।
व्यवस्थितरूपेण वृक्षरोपणं संवर्धनञ्च उत्तमं कार्यमस्ति यत् सुपरिणामादिकं ददाति।

🌷यदि कार्य अव्यवस्थित ढंग से किये जायेंगे तो परिणाम सुखद एवं समृद्धिदायक नहीं होगा। अत: व्यवस्थित रूप से वृक्षों का संवर्धन श्रेष्ठ कार्य है, जिसका परिणाम सुखद व समृद्धिकारक है।

🌹If the work is done in an unsystematic manner, the result will not be pleasant and prosperous. Therefore, systematic tree cultivation is the best work, which results in pleasant and enriching.

#Subhashitam
🍃सुखं च दुःखं च भवाभवौ च लाभालाभौ मरणं जीवितं च।
पर्यायशः सर्वमेते स्पृशन्ति तस्माद् धीरो न हृष्येन्न शोचेत्।


🌞सुखं दुःखं जीवनं मृत्युः लाभः अलाभः च कर्मेण सर्वं मनुष्यं स्पृशन्ति अतः धीरः मनुष्यः न एतेषु हृष्येत् शोकं वा कुर्यात्।

🌷सुख-दुःख, लाभ-हानि, जीवन-मृत्यु, उत्पति-विनाश, ये समय-समय पर सबको प्राप्त होते हैं । ज्ञानी को इनके बारे में सोचकर शोक नहीं करना चाहिए । ये सब शाश्वत कर्म हैं ।

🌹Happiness and sorrow, gain and loss, life and death, origin and destruction, these are attained by all from time to time. The wise should not grieve thinking about them. These are all eternal karma.

#Subhashitam
🍃अतीताब्दशता मूर्तिः या पूज्या स्यान्महत्तमैः ।
खण्डिता स्फुटिताऽप्यर्थ्या अन्यथा दुखदायकाः।।


🌞 शतवर्षेभ्यः पुरातनीमूर्तिः यदि ईषद् अपि खण्डिता स्यात्तथापि पूजनयोग्या भवति तत् किन्तु यदि तस्मात् न्यूनवर्षेभ्यः पुरातनी स्यात् चेत् न सा पूजनयोग्या ।

🌷सौ वर्ष से अधिक प्राचीन मूर्ति यदि खण्डित हो जाये या चटक जाए तब भी पूजा के योग्य है, किन्तु इससे कम अवधि की खण्डित या चटकी प्रतिमा का पूजन दुःखप्रद होता है।

🌹An idol more than a hundred years old is still worthy of worship if it is broken or chipped, but worship of a broken or chipped statue of less than that is painful.

📍रूपमण्डनम् । १।११॥ #Subhashitam
🍃प्राणिनामवधस्तात सर्वज्यायान् मतो मम।
अनृतां वा वदेद्वाचं न तु हिंस्यात् कथञ्चन ।।


🌞हे तात मम मतेन प्राणिनामवधः सर्वतः निकृष्टं कार्यमस्ति यदि कस्यचित् जीवनरक्षणाय असत्यवदनमपि आवश्यकं स्यात् तर्हि तदेव वरं किन्तु तद्हिंसा न कथञ्चित् भवेत्।

🌷हे तात मेरे विचार से प्राणियों की हिंसा न करना ही सबसे श्रेष्ठ धर्म है।
किसी की प्राण-रक्षा के लिए झूठ बोलना पड़े तो बोल दें, किन्तु उसकी हिंसा किसी तरह न होने दें।

🌹Hey, Father! In my opinion, non-violence against living beings is the best religion.
If you have to lie to save someone's life, tell them, but don't let their violence happen in any way.

📍महाभारतम् । ८।६९।२३॥ #Subhashitam
🍃सर्व एव नरा मोहाद् दुराशापाशपाशिनः।
दोषगुल्मकसारंगा विशीर्णा जन्मजङ्गले।।

🌞सर्वः लोक मोहकारणेन दुःखदायिनिभ्यः आशाभिः बद्धः अस्ति तथा दोषरूपिषु गुल्मेषु आपत्य जन्मरूपिणे वने पुनः पुनः आयान्ति।

🌷सभी मनुष्य मोहवश दुःख देनेवाली आशाओं के पाश में बँधे हुए और दोषरूपी झाड़ी में अटके हुए मृगों के समान जन्मरूपी जंगल मे भटक रहे हैं।

🌹All men are wandering in the forest of birth like deer, bound in the noose of painful hopes by delusion and stuck in the bush of faults.

📍योगवासिष्ठः । १।२६।४१॥ #Subhashitam
🍃मृत्युव्याधिजराधर्मा मृत्युव्याधिजरात्मभिः।
रममाणो ह्यसंविग्नः समानो मृगपक्षिभिः॥

🌞मृत्युव्याधिजराणाम् अधीनः मनुष्यः यदि अन्यमनुष्याणैः सह भूत्वापि न विरक्तः भवति तर्हि सः पशुसमानः एव।

🌷मृत्यु, व्याधि और जरा (बुढ़ापा) के अधीन रहनेवाला मनुष्य यदि मृत्यु-व्याधि-जरा के अधीन रहनेवालों के साथ रमण करता हुआ संविग्न (विरक्त) न हो तो वह पशु-पक्षियों के समान है।

🌹A man who is subject to death, disease and old age is like animals and birds if he is not detached while enjoying with those who are subject to death, disease and old age.

📍बुद्धचरितम् । ४।८९॥ #Subhashitam
🍃अब्धेः क्षारं जलं पीत्वा वर्षन्ति मधुरं भुविम्।
परोपकारे निरताः कथं मेघा न सज्जनाः॥


🌞 सागरस्य लवणयुक्तं जलमपि पीत्वा मेघा मधुरं जलमेव वर्षन्ति यथा सज्जनाः परोपकारे निरताः भवन्ति तथैव मेघाः अपि अतः तेषां गणना अपि सज्जनेषु भवेत्।

🌷सागर के नमकीन जल का सेवन करके भी पृथ्वी पर बादल मधुर जल की वर्षा ही करते हैं जिस प्रकार सज्जन लोक परोपकार में निरत रहते है उसी प्रकार मेघ भी अतः वे सज्जन की श्रेणी मे आ गए।

🌹After consuming salty water from ocean the clouds give/return sweet water the earth. Aren't clouds noble, as they are constantly helping others!(irrespective of what they get, they spread sweetness!)

#Subhashitam
🍃असन्त्यागात् पापकृतामपापांस्तुल्यो दण्डः स्पृशते मिश्रभावात्।
शुष्केणार्द्रं दह्यते मिश्रभावात्तस्मात् पापैः सह सन्धिं न कुर्य्यात्॥

🌞दुर्जनसङ्गत्या सज्जनोऽपि दण्डाधिकारी भवति यथा शुष्केण काष्ठेन सह वर्तमानः आर्द्रः काष्ठः अपि दह्यते।

🌷दुर्जनों की संगति में सज्जन भी समान दंड पा जाते है; जैसे सूखी लकड़ियों के साथ गीली भी जल जाती हैं । अतः दुर्जनों से मैत्री नहीं करनी चाहिए ।

🌹In the company of the wicked, the righteous receive the same punishment; Like dry wood, wet wood burns. Therefore, one should not make friends with the wicked.

📍महाभारतम् । ५।३४।७१॥ #Subhashitam
🍃अस्मिञ्जगति महत्यपि किमपि न तद्वस्तु वेधसा विहितम्।
अनिमित्तवत्सलाया भवति यतो मातुरुपकारः॥

🌞विस्तृतेऽस्मिन् जगति एकमपि वस्तु तत् नास्ति यत् कारणं विना कृतस्य मातुः उपकारस्य समानतां कुर्यात्।

🌷यद्यपि संसार बहुत व्यापक है फिर भी विधाता द्वारा बनाई एक भी वस्तु माता के उपकार की बराबरी नहीं कर सकती, जो बिना किसी पर्याप्त कारण के ही अपने बच्चों से स्नेह करती है।

🌹Though the world is very vast yet nothing created by the Creator can equal the kindness of a mother, who loves her children without any sufficient reason

#Subhashitam
🍃सर्वाश्रमानुपादाय स्वाश्रमेण कलत्रवान्।
व्यसनार्णवमत्येति जलयान्नैर्यथार्णवम् ।।

🌞 यथा जलयानेन समुद्रस्य पारं क
गम्यते तथैव सर्वान् आश्रमान् पुष्टीकृत्य गृहस्थः स्वाश्रमेण दुखालयरूपिणः संसारस्य पारं गच्छति।

🌷जिस प्रकार जलयान से समुद्र पार किया जाता है उसी प्रकार सभी आश्रमों का भरण-पोषण करते हुए गृहस्थ अपने आश्रम से दुःखरूपी समुद्र के पार चला जाता है।

🌹Just as the sea is crossed by a boat, so the householder goes across the sea of ​​suffering from his ashram, supporting all the ashrams.

📍श्रीमद्भागवतम् । ३।१४।१७॥ #Subhashitam
🍃नाकालतो म्रियते जायते वा
नाकालतो व्याहरते च बालः।
नाकालतो यौवनमभ्युपैति
नाकालतो रोहति बीजमुप्तम् ।।

🌞असमये न बालः जायते न म्रियते न व्यवहरति न वा यौवनम् अवाप्यते तथैव न च असमयेन उप्तं बीजं बहिरागच्छति सर्वं निश्चितसमयेनैव परिवर्तते।

🌷बालक समय आए बिना न जन्म लेता है, न मरता है और न असमय में बोलता ही है। बिना समय के युवा अवस्था नहीं आती और बिना समय के बोया हुवा बीज भी नहीं उगता। अतः संसार में सबकुछ समय से होता है। अपने समय की प्रतीक्षा करना ही श्रेयस्कर है।

🌹A child is not born, does not die, and does not speak untimely. Youth does not come without time and a seed sown without time does not grow. So everything in the world happens on time. It is better to bide your time.

📍महाभारत, शान्तिपर्व - २५।१२॥ #Subhashitam
🍃यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥

🌞 यथा कच्छपः स्वाङ्गानि सङ्कुचति तथैव यः मनुष्यः इन्द्रियविषयेभ्यः स्वबुद्धिम् आकर्षति सङ्कुचति स एव स्थिरबुद्धिमान् अस्ति।

🌷जैसे कछुआ अपने अंगों को सब ओर से समेट लेता है, उसी प्रकार जो मनुष्य इन्द्रियों के विषयों से बुद्धि को खींच लेता है, उसी की बुद्धि स्थिर हो जाती है ।

🌹Just like a tortoise, which hides its organs in the shell, human needs to control and hold senses to restrain associated desires. This helps in making the wavering mind stable.

📍महाभारत - भीष्मपर्व - २६।५४ #Subhashitam
🍃यावद् विभाति तमसो निशि वैजयन्ती
यावन्न भानुरुदितः स्मयते न पद्मम्।
उत्थाय यावदभिगर्जति नात्र सिंहः
तावच्छृगालकुलरोदनघोषकालः॥

🌞यावत् अन्धकारः व्याप्तः अस्ति सुर्यः न उदितः कमलं न विकसति सिंहश्च उत्थाय न गर्जति तावदेव शृगालानां विचरणकालः रोदनकालः वा वर्तते।

🌷जब तक रात में अन्धकार की पताका लहराती है, सूर्य नहीं उगता है, कमल नहीं खिलता है, और उठकर सिंह नहीं गरजता है, तभी तक सियारों के झुण्ड के बोलने का समय है।

🌹Until the banner of darkness waves in the night, the sun rises, the lotus blooms, and the lion rises and roars, it is time for the pack of jackals to cry.

#Subhashitam
🍃यत् सुखं सेवमानोपि धर्मार्थाभ्यां न हीयते।
कामं तदुपसेवेत न मूढव्रतमाचरेत्।।

🌞मानवः धर्ममार्गे स्थित्वा यथेष्टं सुखानुभवी भवतु किन्तु केषु तावान् न रममाणः स्यात् येन अधर्ममार्गे गच्छेत्।

🌷व्यक्ति को यह छूट है कि वह न्यायपूर्वक और धर्म के मार्ग पर चलकर इच्छानुसार सुखों का भरपूर उपभोग करे, परंतु उनमें इतना आसक्त न हो जाए कि अधर्म का मार्ग पकड़ ले ।

🌹A person is free to follow the path of righteousness and enjoy pleasures as he pleases, but not to become so attached to them that he takes the path of iniquity.

#Subhashitam
🍃उद्यच्छेदेव न नमेदुद्यमो ह्येव पौरुषम् ।
अप्यपर्वणि भज्येत न नमेदिह कर्हिचित् ।।


🌞वीरपुरुषाः सदा उद्योगरताः स्युः न तु नताः भवतु नाम असमये नाशः स्वस्य तथापि न कुर्यात् नमनं शत्रोः पुरतः।

🌷वीर पुरुष को चाहिए कि वह सदा उद्योग ही करे, किसी के सामने नतमस्तक न हो, क्योंकि उद्योग करना ही पुरुषत्व है। वीर पुरुष असमय में ही नष्ट भले ही हो जाय, परन्तु कभी शत्रु के सामने सिर न झुकावे।

🌹A brave man should always be active, not bow before anyone, because being active is manhood. A brave man may be destroyed untimely, but never bow his head to the enemy.

📍महाभारत उद्योग पर्व - १२७/१९

#subhashitam