संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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उपसर्गाणां त्रय गतिः

उपसर्गों की तीन गति होती हैं; जैसे कि कहा गया है

धात्वर्यं बाधते कश्चित्, कश्चित् चिन्तमनुवर्तते।
तमेव विशिष्ट्यन्यः उपसर्गगति स्त्रिधा॥


अर्थात् कोई उपसर्ग धातु के अर्थ को विपरीत कर देता है, कोई उपसर्ग उसी अर्थ का अनुसरण करता है तथा कोई उपसर्ग उस अर्थ में विशेषता उत्पन्न कर देता है। इस प्रकार उपसर्गों की गति तीन प्रकार की कही गई है। जैसे

1. जय का अर्थ जीत है। उसके पूर्व परा उपसर्ग जोड़ देने पर पराजय का अर्थ हार हो जाता है। परा उपसर्ग ने अर्थ को
विपरीत कर दिया।

2. भू धातु का अर्थ होना है। उसके पूर्व प्र उपसर्ग जोड़ देने पर प्र + भू धातु का अर्थ सामर्थ्यवान् होना हो जाता है। यहाँ प्र
उपसर्ग ने उसी अर्थ का अनुकरण किया है। अर्थ विपरीत नहीं हुआ है।

3. कृष् धातु का अर्थ खींचना है। उसमें प्र उपसर्ग जोड़ देने पर कृष् धातु का अर्थ खूब जोर से खींचना हो जाता है। यहाँ प्र
उपसर्ग ने अर्थ में विशेषता उत्पन्न कर दी है।
Accused:- Judge sir, I was not drunk then but was just drinking !
Judge :- Oh...is it so ? Then I will reduce your imprisonment from one month to 30 days.

#hasya
🍃वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः
।।11.27।।

♦️
vaktraaNi te tvaramaaNaa vishanti
daMShTraakaraalaani bhayaanakaani|
kechidvilagnaa dashanaantareShu
saMdRRishyante chuurNitairuttamaa~NgaiH

11.27 Some hurriedly enter Thy mouths with their terrible teeth, fearful to behold. Some are found sticking in the gaps between the teeth with their heads crushed to powder.

तीव्र वेग से आपके विकराल दाढ़ों वाले भयानक मुखों में प्रवेश करते हैं और कई एक चूर्णित शिरों सहित आपके दांतों के बीच में फँसे हुए दिख रहे हैं।।11.27।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.27]
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.28]
🍃यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखाः द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति
।।11.28।।

♦️yathaa nadiinaaM bahavo'mbuvegaaH
samudramevaabhimukhaaH dravanti|
tathaa tavaamii naralokaviiraa
vishanti vaktraaNyabhivijvalanti

As many torrents of the rivers rush toward the ocean, similarly, those warriors of the mortal world are entering Your blazing mouths. (11.28)

जैसे नदियों के बहुत से जलप्रवाह समुद्र की ओर वेग से बहते हैं वैसे ही मनुष्यलोक के ये वीर योद्धागण आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश करते हैं।।11.28।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - द्वादशी 14 अप्रैल प्रातः 04:49 तक तत्पश्चात त्रयोदशी

⛅️दिनांक 13 अप्रैल 2022
⛅️दिन - बुधवार
⛅️शक संवत - 1944
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - चैत्र
⛅️पक्ष - शुक्ल
⛅️नक्षत्र - मघा सुबह 9:37 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
⛅️योग - गण्ड सुबह 11:15 तक तत्पश्चात वृद्धि
⛅️राहुकाल - दोपहर 12:40 से 02:15 तक
⛅️सर्योदय - 06:21
⛅️सर्यास्त - 07:00
⛅️दिशाशूल - उत्तर दिशा में
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिका (comment box) मध्ये स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।

🔰 चित्र देखकर पांच वाक्य बनायें।
✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।

🔰Make 5 sentences, Observing the attached image.
✍🏼You can type in the comment box or you can also send a photo by writing on the notebook.

#chitram
क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां,
देहस्थितो देहविनाशनाय ।
यथास्थितः काष्ठगतो हि वह्निः,
स एव वह्निर्दहते शरीरम्
॥5॥

अन्वय – हि नराणां देहविनाशनाय प्रथमः शत्रुः देहस्थितः क्रोधः (अस्ति)। हि यथा काष्ठगतः स्थितः वह्निः काष्ठम् एव दहते (तथैव) सः एव (शरीरस्थः क्रोधः) शरीरं दहते।

सरलार्थ - निश्चय ही मनुष्यों के शरीर के विनाश के लिए प्रथम शत्रु शरीर में स्थित क्रोध है। क्योंकि जैसे लकड़ी में स्थित आग लकड़ी को ही जलाती है, वैसे ही शरीर में स्थित क्रोध ही शरीर को जला देता है।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनाऽऽगमे। मित्रं चाऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये।। = कार्य में नियुक्त करने पर नौकरों की, दुःख आने पर बान्धवों की, विपत्ति काल में मित्रों की और धन नष्ट होने पर स्त्री की परीक्षा होती है। आतुरे व्यसने प्राप्ते…
तुष्यन्ति भोजने विप्रा मयुरा घनगर्जिते।
साधवः परसम्पत्तौ खलः परविपत्तिषु।।
= ब्राह्मण भरपेट भोजन मिलने पर, मोर बादलों के गरजने पर, सज्जन दूसरों के सम्पन्न होने पर और दुष्ट अन्यों की विपत्ति में प्रसन्न होते हैं।

आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः।
स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः।।
= आहार (इन्द्रियों के विषय) के शुद्ध हो जाने पर अन्तःकरण की मलिनता दूर हो जाती है। अन्तःकरण के शुद्ध होने पर आत्मस्वरूप की स्थिर स्मृति प्राप्त होती है। आत्मस्वरूप के सतत स्मरण से (अविद्यारूपी) सब गांठे खुल जाती हैं।

अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम्।
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम्।।
= अपच में पानी पीना औषध के समान है, भोजन पचने पर पीना बलदायक है, भोजन के मध्य जल का सेवन अमृत के समान है और भोजन के अन्त में पानी पीना विषतुल्य हानिकारक है।

एकवृक्षसमारूढा नाना वर्णाः विहङ्गमाः।
प्रभाते दिक्षु दशसु का तत्र परिदेवना।।
= अनेक रंग व रूपोंवाले पक्षी सायंकाल होने पर एक वृक्ष पर आकर बैठ जाते हैं और प्रातःकाल होने पर समस्त दसों दिशाओं में उड़ जाते हैं। (ऐसे ही बन्धु-बान्धव एक परिवार में मिलते हैं और बिछुड़ जाते हैं) इस विषय में शोक यानी रोना-धोना कैसा ?

सम्पत्सु महतां चित्तं भवत्युत्पलकोमलम्।
आपत्सु च महाशैलशिलासंघातकर्कशम्।।
= समृद्धि में महापुरुषों का चित्त नीलकमल के समान कोमल हो जाता है परन्तु आपत्ति में वह महापर्वत के पत्थरों के समान कठोर हो जाता है।

राज्ञि धर्मिणि धर्मिष्ठाः पापे पापाः समे समाः।
राजानमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजाः।।
= राजा के धार्मिक होने पर प्रजा भी धर्मपरायण, राजा के पापी होने पर प्रजा भी पापी तथा राजा के उदासीन होने पर प्रजा भी उदासीन होती है। प्रजा राजा का अनुसरण करती है अर्थात् जैसा राजा हुआ करता है प्रजा भी वैसे ही हो जाती है।

देहाभिमाने गलिते विज्ञाते परमात्मनि।
यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयः।।
= देह के अभिमान का नाश और परमात्म-निष्ठ हो जाने पर जहां-जहां मन जाता है वहीं-वहीं समाधि समझनी चाहिए।

यथा धेनुसहस्रेषु वत्सो गच्छति मातरम्।
तथा यच्च कृतं कर्म कर्त्तारमनुगच्छति।।
= हजारों गायों में भी बछड़ा अपनी मां के पास पहुंच जाता है, वैसे ही असंख्य जीवों के होने पर भी किया हुआ कर्म कर्ता तक पहुंच ही जाता है।

वहेदमित्रं स्कन्धेन यावत्कालस्य पर्ययः।
ततः प्रत्यागते काले भिन्द्यात् घटमिवाश्मनि।।
= जब तक समय अपने अनुकूल न हो तब तक शत्रु को अपने कन्धे पर ढोना चाहिए अर्थात् उसका आदर-सत्कार करना चाहिए। परन्तु जब समय अपने अनुकूल आ जाए तो उसे उसी प्रकार नष्ट कर दे जैसे घड़े को पत्थर पर पटककर फोड़ डालते हैं।

रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं, भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजश्रीः।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे, हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार।।
= सायंकाल प्रेम के बन्धन में फंसकर मुंदी हुई कमलिनी के भीतर बैठा हुआ एक भौंरा इस प्रकार सोच रहा था- रात बीत जाएगी, सुन्दर प्रभात होगा, सूर्योदय होगा और कमल खिल उठेगा, तब मैं यहां से मुक्त हो जाऊंगा। किन्तु दुःख है कि भौंरा इस प्रकार चिन्तन कर ही रहा था कि एक हाथी ने उस कमल को उखाड़कर फैंक दिया।

यस्मिन्रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनागमः।
निग्रहोऽनुग्रहो नास्ति स रुष्टः किं करिष्यति।।
= जिसके क्रोधित होने पर कोई भय नहीं है और प्रसन्न होने पर धन-प्राप्ति की कोई आशा भी नहीं है, जो न दण्ड दे सकता है और कृपा ही कर सकता है, ऐसा व्यक्ति रुष्ट होता है तो क्या बिगाड़ लेगा ?

#vakyabhyas
Teacher :- You didn't wash your mouth well, right ? I can tell you from your face , what you ate in the morning !
Student :- Is it so ? Then please tell !
Teacher :- Its Biriyani , no ?
Student :- No madam, you are wrong ! I ate biriyani last night only. Ha..ha..ha

#hasya
🍃यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः
।।11.29।।

♦️yathaa pradiiptaM jvalanaM pata~Ngaa
vishanti naashaaya samRRiddhavegaaH|
tathaiva naashaaya vishanti lokaa
stavaapi vaktraaNi samRRiddhavegaaH

As moths rush with great speed into the blazing flame for destruction, similarly all these people are rapidly rushing into Your mouths for destruction. (11.29)

जैसे पतंगे अपने नाश के लिए प्रज्वलित अग्नि में अतिवेग से प्रवेश करते हैं? वैसे ही ये लोग भी अपने नाश के लिए आपके मुखों में अतिवेग से प्रवेश करते हैं।।11.29।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.29]
🍃लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ता ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो
।।11.30।।

♦️lelihyase grasamaanaH samantaa
llokaansamagraanvadanairjvaladbhiH|
tejobhiraapuurya jagatsamagraM
bhaasastavograaH pratapanti viShNo

You are licking up all the worlds with Your flaming mouths, swallowing them from all sides. Your powerful radiance is burning the entire universe, and filling it with splendor, O Krishna.(11.30)

हे विष्णो आप प्रज्वलित मुखों के द्वारा इन समस्त लोकों का ग्रसन करते हुए आस्वाद ले रहे हैं आपका उग्र प्रकाश सम्पूर्ण जगत् को तेज के द्वारा परिपूर्ण करके तपा रहा है।।11.30।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.30]