संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - दशमी रात्रि 04:30 तक ( 12 अप्रैल सुबह ) तक तत्पश्चात एकादशी

⛅️दिनांक 11अप्रैल 2022
⛅️दिन - सोमवार
⛅️शक संवत - 1944
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - चैत्र
⛅️पक्ष - शुक्ल
⛅️नक्षत्र - पुष्य सुबह 06:51 तक तत्पश्चात अश्लेषा
⛅️योग - धृति दोपहर 12:19 तक तत्पश्चात शूल
⛅️राहुकाल - सुबह 07:57 से 09:32 तक
⛅️सर्योदय - 06:23
⛅️सर्यास्त - 06:59
⛅️दिशाशूल पूर्व दिशा में
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिका (comment box) मध्ये स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।

🔰 चित्र देखकर पांच वाक्य बनायें।
✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।

🔰Make 5 sentences, Observing the attached image.
✍🏼You can type in the comment box or you can also send a photo by writing on the notebook.

#chitram
निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति,
ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति । अकारणद्वेषि मनस्तु यस्य वै,
कथं जनस्तं परितोषयिष्यति
॥3॥

अन्वय - यः निमित्तम् उद्दिश्य प्रकुप्यति सः तस्य (निमित्तस्य) अपगमे ध्रुवं प्रसीदति। (तु) यस्य मनः अकारणद्वेषि (अस्ति) जनः तं कथं परितोषयिष्यति।

सरलार्थ - जो निमित्त (किसी वजह) को लक्ष्य कर अधिक क्रोध करता है, वह उसकी (निमित्त की) समाप्ति पर निश्चय ही प्रसन्न होता है। लेकिन जिसका मन अकारण द्वेष करता है मनुष्य उसको (मन को) कैसे संतुष्ट करेगा।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
पञ्चमेऽहनि षष्ठे वा शाकं पचति स्वगृहे। अनृणी चाप्रवासी च स वारिचर मोदते।। = हे यक्ष ! भले ही कोई पांचवे या छठे दिन में अपने घर में शाक पकाकर खाता हो, किन्तु यदि वह किसी का ऋणी नहीं है और विदेश में नहीं रहता है तो वह सुखी माना जाता है। धर्मार्थकाममोक्षाणां…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (३०) सप्तमी विभक्ति (४)

(सति- सप्तमी :- जिस क्रिया से अन्य क्रिया बताई जा रही हो, तब उस पूर्ववाली क्रिया में तथा उस क्रिया के कर्ता व कर्म में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

मयि भक्षितेऽतिथयः आगमन्
= मेरे द्वारा भोजन कर लेने पर अतिथि आए।

उत्तीर्णे बाले पिता पर्यटनार्थमनैषीत्
= बालक के उत्तीर्ण हो जाने पर पिता उसे घुमाने ले गया।

हूयमानेषु गतो रामो हुतेषु आगतः
= हवन के चलते हुए गया राम हवन के समाप्त होने पर वापस आया।

उदिते सवितरि जुहोति
= सूर्योदय होने पर हवन करता है।

अस्तमिते सवितरि ग्रामिणाः अश्नन्ति
= सूर्यास्त के समय गांव के लोग भोजन करते हैं।

मार्जितेषु भाण्डेषु पात्रेषु वा सेविका प्रोञ्छनमकरोत्
= बरतन साफ करने के बाद नौकरानी ने पौंछा लगाया।

उदरे पूरिते सति आत्मन् भृशं विकुर्वते
= पेट भर जाने पर आत्मन् खूब मस्ती करता है।

स्वयं मृते सति स्वर्गो दृश्यते
= खुद मरने पर ही स्वर्ग देखा जाता है।

चलिते पथि लक्ष्यं प्राप्यते
= मार्ग पर चलने से ही लक्ष्य प्राप्त किया जाता है।

सति ज्ञाने मुक्तिर्नान्यथा
= ज्ञान के होने पर ही मुक्ति होती है, और किसी प्रकार से नहीं।

सति क्लेशे कर्माणि बन्धकारणानि, क्लेशाभावे मोक्षसाधनानि
= क्लेश के होने पर ही कर्म बांधनेवाले होते हैं, क्लेश का अभाव हो जाने पर कर्म मोक्ष का साधन बन जाते हैं।

सति शरीरे प्रियाप्रिययोरपहतिर्नास्ति
= जब तक शरीर है (संसार में) प्रिय-अप्रिय (सुख-दुःख) बने ही रहेंगे।

पुरुषार्थे कृतेऽपि काले (एव) फलं प्राप्नोति
= पुरुषार्थ करने पर भी समय आने पर ही फल मिलता है।

सति विभवे न जीर्णमलवद्वासाः स्यात्
= धन होते हुए मनुष्य पुराने व मैले कपड़े न पहने।

नरेशे जीवलोकोऽयं निमीलति निमीलति
= राजा के नष्ट हो जाने पर राज्य भी नष्ट हो जाता है।

विकारहेतौ सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः
= विकार के कारणों के उपस्थित होने पर भी जिनके चित्त विकृत नहीं होते वे ही धीर हैं।

यस्मिन्जीवति जीवन्ति बहवः सोऽत्र जीवन्तु
= जिसके जीवित रहने पर बहुतों को जीवन मिलता है, वह इस लोक में दीर्घायु होवे।

काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः।
वसन्तकाले सम्प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः।।
= प्रश्न :- दिखने में कौआ और कोयल दोनों काले वर्ण के हैं, फिर दोनों में फर्क क्या है ? उत्तर :- वसन्त ऋतु आने पर (कोयल की कूक से सिद्ध हो जाता है कि) कौआ कौआ है और कोयल कोयल है अर्थात् व्यक्ति की पहचान बाह्य रूप से नहीं अपितु गुणों से होती है।

#vakyabhyas
कश्चन वृद्धः प्रतिवर्षं स्वपत्न्या सह विवाहं रचयति स्म।
कामपि बाधां विना सर्वः माङ्गलिककार्यक्रमः सुसम्पन्नः भवति स्म। एवमेव प्रतिवर्षं तस्यैव पुनरावृत्तिः भवति स्म।
सम्पूर्णे ग्रामे विवाहोत्सवोऽयं कुतूहलस्य विषयः अभवत्।
अन्ते च एतद्दृष्ट्वा कश्चन तूष्णीं स्थातुं न अशक्नोत्, स च तस्य कारणं तम् अपृच्छत् भोः! भवान् किमर्थं प्रतिवर्षम् एकया सहैव पुनः पुनः विवाहं करोति?
वृद्धः तदा हसन् प्रत्यवदत् - भोः! अहं तमेव शब्दं श्रुत्वा अतीव प्रसन्नः भवामि, अतः पुनः पुनः विवाहं करोमि।
सः पुनः अपृच्छत् कः स शब्दः?

वृद्धः अवदत् यदा पण्डितः वदति युवानम् (वरम्) आह्वयन्तु। इत्येव पण्डितस्य मुखात् युवान् इति शब्दं श्रुत्वा अहं प्रसन्नः भवामि।

#hasya
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.25]
🍃दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि।
दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास
।।11.25।।

♦️daMShTraakaraalaani cha te mukhaani
dRRiShTvaiva kaalaanalasannibhaani|
disho na jaane na labhe cha sharma
prasiida devesha jagannivaasa

Seeing Your mouths, with fearful teeth, glowing like fires of cosmic dissolution, I lose my sense of direction and find no comfort. Have mercy on me! O Lord of gods, refuge of the universe.(11.25)

आपके विकराल दाढ़ों वाले और प्रलयाग्नि के समान प्रज्वलित मुखों को देखकर मैं न दिशाओं को जान पा रहा हूँ और न शान्ति को प्राप्त हो रहा हूँ इसलिए हे देवेश हे जगन्निवास आप प्रसन्न हो जाइए।।11.25।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.26]
🍃अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसङ्घैः।
भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथाऽसौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः
।।11.26।।

♦️amii cha tvaaM dhRRitaraaShTrasya putraaH
sarve sahaivaavanipaalasa~NghaiH|
bhiiShmo droNaH suutaputrastathaa'sau
sahaasmadiiyairapi yodhamukhyaiH

The sons of Dhritaraashtra along with the hosts of kings; Bheeshma, Drona, and Karna together with chief warriors on our side are also quickly entering into Your fearful mouths having terrible teeth. Some are seen caught in between the teeth with their heads crushed.(11.26-27)

और ये समस्त धृतराष्ट्र के पुत्र राजाओं के समुदाय सहित आप में प्रवेश करते हैं। भीष्म द्रोण तथा कर्ण और हमारे पक्ष के भी प्रधान योद्धाओं के सहित.।।11.26।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - एकादशी 13 अप्रैल सुबह 05:02 तक तत्पश्चात द्वादशी


⛅️दिनांक 12 अप्रैल 2022
⛅️दिन - मंगलवार
⛅️शक संवत - 1944
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - चैत्र
⛅️पक्ष - शुक्ल
⛅️नक्षत्र - अश्लेषा सुबह 08:35 तक तत्पश्चात मघा
⛅️योग - शूल दोपहर 12:04 तक तत्पश्चात गण्ड
⛅️राहुकाल - अपरान्ह 03:50 से 05:24 तक
⛅️सर्योदय - 06:22
⛅️सर्यास्त - 06:59
⛅️दिशाशूल - उत्तर दिशा में
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिका (comment box) मध्ये स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।

🔰 चित्र देखकर पांच वाक्य बनायें।
✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।

🔰Make 5 sentences, Observing the attached image.
✍🏼You can type in the comment box or you can also send a photo by writing on the notebook.

#chitram
उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः। अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः ॥4॥

अन्वय - पशुना अपि उदीरितः अर्थः गृह्यते, (यथा) हयाः नागाः च बोधिताः (भार) वहन्ति। पण्डितः जनः अनुक्तम् अपि ऊहति, बुद्धयः परेङ्गितज्ञानफलाः भवन्ति ।

सरलार्थ - पशु के द्वारा भी कहा गया अर्थ समझ लिया जाता है। जैसे घोड़े और हाथी बताए गए (भार को) ढ़ोते हैं। ज्ञानी पुरुष बिना कहे हुए का भी अनुमान लगा लेते हैं, बुद्धियाँ दूसरों के संकेत से उत्पन्न ज्ञान रूपी फल वाली होती हैं।

#Subhashitam
________ पात्रे जलम् अस्ति।
Anonymous Quiz
23%
तत्
4%
तद्
4%
तस्मै
66%
तस्मिन्
4%
तेषु
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ : (३०) सप्तमी विभक्ति (४) (सति- सप्तमी :- जिस क्रिया से अन्य क्रिया बताई जा रही हो, तब उस पूर्ववाली क्रिया में तथा उस क्रिया के कर्ता व कर्म में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) मयि भक्षितेऽतिथयः आगमन्…
जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनाऽऽगमे।
मित्रं चाऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये।।
= कार्य में नियुक्त करने पर नौकरों की, दुःख आने पर बान्धवों की, विपत्ति काल में मित्रों की और धन नष्ट होने पर स्त्री की परीक्षा होती है।

आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे।
राजद्वारे स्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः।।
= रोगी होने पर, दुःखी होने पर, अकाल पड़ने पर शत्रु से संकट उपस्थित होने पर, किसी मुकदमे आदि में फंस जाने पर गवाह एवं सहायक के रूप में राजसभा में और मरने पर जो स्मशान में भी साथ देता है, वही सच्चा बन्धु है।

अस्ति पुत्रो वशे यस्य भृत्यो भार्या तथैव च।
अभावे सति सन्तोषः स्वर्गस्थोऽसौ महीतले।।
= जिसका पुत्र, सेवक और पत्नी वश में है, धन का अभाव होने पर भी जो सन्तुष्ट है वह मनुष्य भूतल पर भी स्वर्ग में रहता है।

उद्योगे नास्ति दारिद्र्यं जपतो नास्ति पातकम्।
मौने च कलहो नास्ति नास्ति जागरिते भयम्।।
= पुरुषार्थी के पास दरिद्रता नहीं फटकती, जप करनेवाले के पास पाप नहीं रहता, मौन रहने पर लड़ाई-झगड़ा नहीं होता और जागनेवाले को भय नहीं होता।

लालयेत् पञ्चवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्।।
= पांच वर्ष की आयु तक पुत्र का प्यार दुलार करना चाहिए, तत्पश्चात दस वर्ष तक (हठ, दुराग्रह करने पर) ताड़ना करनी चाहिए। और सोलहवां वर्ष आरम्भ होते ही पुत्र के साथ मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए।

उपसर्गेऽन्यचक्रे च दुर्भिक्षे भयावहे।
असाधुजनसम्पर्के यः पलायेत् स जीवति।।
= बाढ, महामारी आदि उपद्रव उठने पर, आक्रमण होने पर, भयंकर दुर्भिक्ष में और दुष्टों का संग होने पर जो भागता है वही जीवित रहता है।

यावत्स्वस्थो ह्ययं देहो यावन्मृत्युश्च दूरतः।
तावदात्महितं कुर्यात् प्राणान्ते किं करिष्यति।।
= जब तक शरीर निरोग है और मृत्यु दूर है, तब तक आत्मकल्याण का उपाय कर लेना चाहिए। क्योंकि मृत्यु हो जाने पर कोई कुछ नहीं कर सकता।

यावत्स्वस्थमिदं शरीरमरुजं यावज्जरा दूरतो, यावच्चेन्द्रियशक्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुषः।
आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्यः प्रयत्नो महान्, सन्दीप्ते भवने तु कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः।।
= जब तक शरीर स्वस्थ और रोग रहित है, जब तक बुढापा दूर है, जब तक सभी इन्द्रियों में भरपूर शक्ति है, जब तक प्राणशक्ति क्षीण नहीं हुई है तब तक बुद्धिमान् को चाहिए कि अपने आत्मकल्याण के लिए महान् प्रयत्न करे। अन्यथा घर में आग लग जाने पर कुंआ खेदने से क्या लाभ ?

अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्।।
= अभ्यास (आवृत्ति) के बिना शास्त्र विष है, अर्थात् अर्थों की संगति लगाना समझाना कठिन है, अपच में भोजन विषतुल्य है, दरिद्र के लिए सभा विषसमान है अर्थात् सभा में कंगले को कोई नहीं पूछता और बूढे के लिए युवती विष समान है।

असम्भवं हेममृगस्य जन्म तथाऽपि रामो लुलुभे मृगाय।
प्रायः समापन्न विपत्तिकाले धियोऽपि पुंसां मलिनी भवन्ति।।
= सोने के हिरण का जन्म असम्भव है, फिर भी श्रीराम स्वर्णमृग में लुब्ध हो गए। अतः निश्चय होता है कि विपत्ति आने के समय मनुष्य मलिनबुद्धि अर्थात् विचारशून्य हो जाता है।

कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः।।
= काल सब प्राणियों को पकाता है, काल ही सब प्रजा को नष्ट करता है। सब के सो जाने पर भी काल जागता रहता है। सचमुच काल बड़ा बलवान है, काल को कोई लांघ नहीं सकता।

#vakyabhyas