संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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. ।। ॐ ।।
‌ चिरन्तन-हासः ।
राहुलः मेहुलः च मित्रद्वयम् । कदाचित् मार्गे मिलति ।

मेहुलः - नमो नमः राहुल ! कथं प्रचलति सर्वम् ?

राहुलः - नमः नमः मेहुल ! प्रणोदेन प्रचलति ।

मेहुलः - नमः नमः इति एतत् किं नूतनम् ?

राहुलः - अरे मम जनन्या कठोरतया कथितम् अस्ति यद् नमो इति एतस्य महत्त्वं न एव वर्धनीयम् । अतः नमो इति कदा अपि कुत्र अपि न निर्गच्छेत् मम मुखात् । तथा वदिष्यामि चेत् जननी दण्डनं करिष्यति ।

भवतां सर्वेषां समयः
सुखशान्त्या गच्छेत् ।
-------- संस्कृतानन्दः ।

#hasya
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)

मूलश्लोकः-28 -29
पौरैरनुगतोदूरं पित्रा दशरथेन च।। 28।।
शृङ्गवेरपुरे सूतं गङ्गाकूले व्यसर्जयत्‌।
गुहमासाद्य धर्मात्मा निषादाधिपतिं प्रियम्‌ ।।29।।

श्लोकान्वयः 28 -29
पौरै: पित्रा दशरथेन च दूरम्‌ अनुगत: धर्मात्मा (राम:)
श्रृङ्गवेरपुरे निषादाधिपतिं प्रियं गुहम्‌ आसाद्य गङ्गाकूले सूतं व्यसर्जयत्‌।।28-29।।

हिन्दी - अनुवाद -28 -29
वनगमन के समय पुरवासियों एवं पिता दशरथ के द्वारा बहुत दूर तक राम का अनुसरण किया गया।
धर्मात्मा राम ने शृङ्गवेरपुर में निषादों के राजा तथा अत्यन्त प्रिय गुह को पाकर समीपस्थ गङ्गातट पर सूत को छोड़ दिया।।28-29।।

English Meaning

पौरै: by citizens, पित्रा दशरथेन च by his father Dasaratha also, दूरम् for a long distance, अनुगत: followed, धर्मात्मा राम: Rama of righteous nature (the protector of those who take refuge in him), गङ्गाकूले on the bank of river Ganga, शृङ्गिबेरपुरे at Shrungiberapura, निषादाधिपतिम् the king of Nishadas, प्रियम् endeared to him, गुहम् Guha, आसाद्य having approached, गुहेन along with Guha, लक्ष्मणेन by Lakshmana, सीतया च and by Sita, सहित: accompanied सूतम् charioteer Sumantra, व्यसर्जयत् sent back.

The citizens and Dasaratha followed Rama for a long distance. Rama of righteous nature having approached Guha, king of nishadas, at Shrungiberapura sent back charioteer Sumantra and Rama along with Sita and Lakshmana crossed river Ganga.

Note: The second line of 30th Shloka will follow together with 31st Shloka

#SankshepaRamayanam
🍃यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः। 
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते
।।4.22।। 

♦️yadRRichChaalaabhasantuShTo dvandvaatiito vimatsaraH|
samaH siddhaavasiddhau cha kRRitvaapi na nibadhyate||4.22||

4.22 Content with what comes to him without effort, free from the pairs of opposites and envy, even-minded in success and failure, though acting, he is not bound. 

।।4.22।। यदृच्छया (अपने आप) जो कुछ प्राप्त हो उसमें ही सन्तुष्ट रहने वाला द्वन्द्वों से अतीत तथा मत्सर से रहित सिद्धि व असिद्धि में समभाव वाला पुरुष कर्म करके भी नहीं बन्धता है।। 

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [04.22]
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [04.23]
🍃गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः। 
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते
।।4.23।। 

♦️gatasa~Ngasya muktasya j~naanaavasthitachetasaH|
yaj~naayaacharataH karma samagraM praviliiyate||4.23||

4.23 To one who is devoid of attchment, who is liberated, whose mind is established in knowledge, who works for the sake of sacrifice (for the sake of God), the whole action is dissolved. 

।।4.23।। जो आसक्तिरहित और मुक्त है जिसका चित्त ज्ञान में स्थित है यज्ञ के लिये आचरण करने वाले ऐसे पुरुष के समस्त कर्म लीन हो जाते हैं।। 

#geeta
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - प्रतिपदा सुबह ०९:२७ तक तत्पश्चात द्वितीया

दिनांक - ०५ दिसम्बर २०२१
दिन - रविवार
शक संवत -१९४३
अयन - दक्षिणायन
ऋतु - हेमंत
मास - मार्ग शीर्ष मास
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - ज्येष्ठा सुबह ०७:४७ तक तत्पश्चात मूल
योग - शूल रात्रि १२:०७ तक तत्पश्चात गण्ड
राहुकाल - शाम ०४:३५ से शाम ०५:५८ तक
सूर्योदय - ०७:०३
सूर्यास्त - १७:५५
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
MAJY : Master of Arts(JYOTISH) course
IGNOU Distance Education
Course details click here

PROGRAMME TYPE DEGREE
MODE Open Distance Learning
SCHOOL School of Humanities
DURATION 2 Years
MEDIUM HINDI
SPECIALIZATION JYOTISH

DESCRIPTION

स्नातकोत्तर कला उपाधि (ज्योतिष) कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों को भारतीय प्राच्य विद्या के अंतर्गत काल ज्ञान, ग्रह गति, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण से लेकर भारतीय ऋषियों के मतों के आधार पर अंतरिक्ष में होने वाली घटनाओं के साथ मानव मात्र के व्यावहारिक जीवन का संचालन किस प्रकार होता है, इन तथ्थों का प्रामाणिक और विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है. इस कार्यक्रम में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को वेदांग नामक ज्योतिषशास्त्र का ज्योतिर्विज्ञान के रूप में किस प्रकार अध्ययन किया जाता है, यह भी परिज्ञान होगा. प्राचीन भारत में ज्योतिषीय गणित, सिद्धांत एवं फलित की अवधारणा का विशेष ज्ञान कराने के साथ साथ विद्यार्थियों को इस कार्यक्रम की अध्ययन सामग्री के द्वारा ज्योतिष की समग्र जानकारी प्रदान की जाएगी. इस प्रकार के अध्ययन से विद्यार्थी समाज के सरोकार में रह कर अपनी विद्या से स्वयं लाभान्वित रहते हुए, सभी के हित चिंतन संलग्न रहेंगे. विषय ज्ञान के साथ साथ रोज़गार के प्रति प्रेरित करना और उसके लिए योग्य होने की क्षमता विकसित करना भी इस कार्यक्रम में सन्निहित है.

ELIGIBILITY
मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक अथवा उच्चतर उपाधि

FEE STRUCTURE
रु. 12600/- संपूर्ण कार्यक्रम के लिए
प्रथम वर्ष : रु. 6300/- + रु. 200/- पंजीकरण शुल्क
द्वितीय वर्ष: रु. 6300/-

PROGRAMME COORDINATOR डॉ. देवेश कुमार मिश्र, एसोसिएट प्रोफेसर (संस्कृत), मानविकी विद्यापीठ। ईमेल : drdkmishr@ignou.ac.in फोन: 01129572788

Course Details
प्रथम वर्ष:
1. भारतीय ज्योतिष का परिचय एवं ऐतिहासिकता
2. सिद्धांत ज्योतिष एवं काल
3. पंचांग एवं मुहूर्त
4. कुंडली निर्माण

द्वितीय वर्ष:
1. ज्योतिर्विज्ञान
2. गणित, ग्रहण वेध एवं यंत्रादि विचार
3. संहिता ज्योतिष
4. फल विचार
Last Date to Apply 07.12.2021
To apply Click here

#SanskritEducation
ॐ.. जयश्रीकृष्ण ॥ वन्देमातरम् ॥

शिवाजीमहाराजः
•१)भारतवर्षस्य महान् योद्धा छत्रपतिशिवाजी फाल्गुनकृष्णतृतीयातिथौ अजायत ।
=भारत के महान् योद्धा छत्रपतिशिवाजी फागुनमाह कृष्णपक्ष तृतीया तिथि में पैदा हुए थे ।

•२)आधुनिके फरवरीमासे एकोनविंशतिदिनाङ्के छत्रपतेः जन्म मन्यते ।
=वर्तमान में १९ फरवरी को शिवाजी का जन्म माना जाता है ।

•३)शैशवे अस्य माता जीजाबाई एतं शिवबा नाम्ना आह्वयति स्म ।
=बचपन में इनकी माँ जीजाबाई इनको शिवबा नाम से बुलाती थी ।

•४)दशमे वर्षे हि शिवाजी विवाहितः जातः ।
=दसवें वर्ष में ही शिवाजी विवाहित हो गये थे ।

•५)एतस्य प्रथमः विवाहः मईमासे षोडशदिनाङ्के चत्वारिंशतोत्तरषोडशशततमे वर्षे अभवत् ।
=इनका प्रथम विवाह १६ मई सन १६४० में हुआ था ।

•६)शिवाजी किशोरावस्थायां हि अस्त्रशस्त्रयोः विद्याः दादोजीकोंडदेवेन शिक्षितवान् ।
=शिवाजी किशोरावस्था में ही अस्त-शस्त्र की विद्याओं को दादोजी कोंडदेव के द्वारा सीख गये थे ।

•७)अनेकशत्रूणां नाशकस्य शिवायाः खड्गस्य नाम भवानी आसीत् ।
=अनेकशत्रुओं का नाश करने वाले शिवाजी के खड्ग का नाम भवानी था ।

•८)शिवाजी शिवाभक्तः आसीत् ।
=शिवाजी भवानीभक्त थे ।

•९)शिवाजीमहाराजस्य जीवनचरित्रम् अस्मान् विषमपरिस्थितिषु अपि देशरक्षार्थं वीरतापूर्णं जीवनं जीवितुं शिक्षयति ।
=शिवाजी का जीवनचरित्र हमको विषम परिस्थितियों में वीरतापूर्ण जीवन जीना सिखाता है ।

जयतु संस्कृतम्।। जयतु भारतम्।।

🕉️ नमः सरस्वत्यै मात्रे 🙏🌹

अहं_किं_किं_करोमि
अहं = मैं
लिखामि = लिखता/ती हूँ ।
पठामि = पढ़ता/ती हूँ ।
गायामि = गाता/ती हूँ ।
शृणोमि = सुनता/ती हूँ ।
श्रावयामि = सुनाता/ती हूँ ।
हसामि = हँसता/ती हूँ ।
हासयामि = हँसाता/ती हूँ ।

~आप भी लिखें!!!
~~~~~~~~

जयतुसंस्कृतम् ॥ॐ॥ जयतुभारतम् ||

#vakyabhyas
Inventory of Sanskrit Scholars.pdf
3.4 MB
Inventory of Sanskrit Scholars.pdf
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)

मूलश्लोकः-30-32
गुहेन सहितो रामो लक्ष्मणेन च सीतया ।
ते वनेन वनं गत्वा नदीस्तीर्त्वा बहूदका:।। 30।।
चित्रकूटमनुप्राप्य भरद्वाजस्य शासनात्‌ ।
रम्यमावसथं कृत्वा रममाणा वने त्रय:।। 31।।
देवगन्धर्वसङ्काशास्तत्र ते न्यवसन्‌ सुखम्‌ ।।32।।

श्लोकान्वयः 30-32
गुहेन लक्ष्मणेन सीतया च सहित: राम: वनेन वनं गत्वा बहूदका: नदी: तीर्त्वा
भरद्वाजस्य शासनात्‌ चित्रकूटमनुप्राप्य वने रम्यम्‌ आवसथं कृत्वा देवगन्धर्वसङ्काशा: ते त्रय: रममाणा: सुखं न्यवसन्‌।।30-32।।

हिन्दी - अनुवाद -30-32
गुह नामक निषादराज, अनुज लक्ष्मण एवं पत्नी जानकी के साथ राम एक जंगल से दूसरे जंगल जाते हुए गहरी नदियों को पार कर भरद्वाज जी की आज्ञा से चित्रकूट गए। वहाँ उन्हों­ने एक सुन्दर आवास बनाकर देव एवं गन्धर्वों की भाँति सुख पूर्वक निवास किया।।30-32।।

English Meaning

ते they, वनेन from one forest, वनम् to another forest, गत्वा having gone, बहूदका: नदी: deep and broad rivers with plenty of waters, तीर्त्वा having crossed, भरद्वाजस्य sage Bharadwaja's, शासनात् order, चित्रकूटम् Chitrakuta mountain, अनुप्राप्य having reached, रम्यम् delightful, आवसथम् abode (a hut made of leaves), कृत्वा having constructed, ते they (having enjoyed such comforts), त्रय: three, तत्र वने in the forest located in Chitrakuta mountain, रममाणा: enjoying, देवगन्धर्वसङ्काशा: resembling devas and gandharvas, सुखम् happily, न्यवसन् dwelt.

Moving from one forest to another and crossing deep and wide rivers with plenty of waters, reached the Chitrakuta mountain by the command of sage Bharadwaja. They raised a hut made of leaves in the forest located in Chitrakuta mountain. and dwelt there happily resembling devas and gandharvas.

#SankshepaRamayanam
CTET Dec2018 Paper I - Qn paper with Answer Key
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