संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🚩जय सत्य सनातन 🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७७
🚩तिथि - प्रतिपदा रात्रि 11:41 तक तत्पश्चात द्वितीया

दिनांक - 29 जनवरी 2021
दिन - शुक्रवार
विक्रम संवत - 2077
शक संवत - 1942
अयन - उत्तरायण
ऋतु - शिशिर
मास - माघ
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - अश्लेशा 30 जनवरी प्रातः 03:21 तक तत्पश्चात मघा
योग - आयुष्मान् शाम 05:28 तक तत्पश्चात सौभाग्य
राहुकाल - सुबह 11:28 से दोपहर 12:22 तक
सूर्योदय - 07:17
सूर्यास्त - 18:25
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
व्रत पर्व विवरण -
💥 विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

🌷 माघ में तिलदान 🌷
👉🏻 28 जनवरी से लेकर 27 फरवरी तक (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार माघ मास दिनांक 12 फरवरी से) माघ महिना रहेगा।

🙏🏻 माघ में तिलों का दान जरूर जरूर करना चाहिए। विशेषतः तिलों से भरकर ताम्बे का पात्र दान देना चाहिए।

🙏🏻 शिवपुराण के अनुसार "तिलदानं बलार्थं हि सदा मृत्युजयं विदुः" तिलदान बलवर्धक एवं मृत्यु का निवारक होता हैं।

🙏🏻 महाभारत अनुशासनपर्व में वर्णित तिलदान का महत्व
🌷 पितॄणां प्रथमं भोज्यं तिलाः सृष्टाः स्वयंभुवा। तिलदानेन वै तस्मात्पितृपक्षः प्रमोदते।।
माघमासे तिलान्यस्तु ब्राह्मणेभ्यः प्रयच्छति।
सर्वसत्वसमाकीर्णं नरकं स न पश्यति।।
सर्वसत्रैश्च यजते यस्तिलैर्यजते पितॄन्।
न चाकामेन दातव्यं तिलैः श्राद्धं कदाचन।।
महर्षेः कश्यपस्यैते गात्रेभ्यः प्रसृतास्तिलाः। ततो दिव्यं गता भावं प्रदानेषु तिलाः प्रभो।।
पौष्टिका रूपदाश्चैव तथा पापविनाशनाः। तस्मात्सर्वप्रदानेभ्यस्तिलदानं विशिष्यते।।
आपस्तम्बश्च मेधावी शङ्खश्च लिखितस्तथा।
महर्षिर्गौतमश्चापि तिलदानैर्दिवं गताः।।
तिलहोमरता विप्राः सर्वे संयतमैथुनाः।
समा गव्येन हविषा प्रवृत्तिषु च संस्थिताः।।
सर्वेषामिति दानानां तिलदानं विशिष्यते। अक्षयं सर्वदानानां तिलदानमिहोच्यते।।
उच्छिन्ने तु पुरा हव्ये कुशिकर्षिः परन्तपः। तिलैरग्नित्रयं हुत्वा प्राप्तवान्गतिमुत्तमाम्।।

🙏🏻 ब्रह्माजी ने जो तिल उत्पन्न किये हैं, वे पितरों के सर्वश्रेष्ठ खाद्य पदार्थ हैं। इसलिये तिल दान करने से पितरों को बड़ी प्रसन्नता होती है। जो माघ मास में ब्राह्माणों को तिल दान करता है, वह समस्त जन्तुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नहीं करता। जो तिलों के द्वारा पितरों का पूजन करता है, वह मानो सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लेता है। तिल-श्राद्ध कभी निष्काम पुरूष को नहीं करना चाहिये। प्रभो। यह तिल महर्षि कश्‍यप के अंगों से प्रकट होकर विस्तार को प्राप्त हुए है; इसलिये दान के निमित्त इनमें दिव्यता आ गयी है। तिल पौष्टिक पदार्थ है। वे सुन्दर रूप देने वाले और पाप नाशक हैं इसलिये तिल-दान सब दानों से बढ़कर है। परम बुद्विमान महर्षि आपस्तम्ब, शंख, लिखित तथा गौतम- ये तिलों का दान करके दिव्य लोक को प्राप्त हुए हैं। वे सभी ब्राह्माण स्त्री-समागम से दूर रहकर तिलों का हवन किया करते थे, तिल गौर घृत के समान हवी के योग्य माने गये हैं इसलिये यज्ञों में गृहित होते हैं एवं हर एक कर्मों में उनकी आवश्‍यकता है। अतः तिल दान सब दानों से वढ़कर है। तिल दान यहां सब दानों में अक्षय फल देने वाला बताया जाता है।पूर्व काल में परंतप राजर्षि कुशिक हविष्य समाप्त हो जाने पर तिलों से ही हवन करके तीनों अग्नियों को तृप्त किया था; इससे उन्हें उत्तम गति प्राप्त हुई।

🙏🏻 ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखण्ड, अध्याय 27 तथा देवीभागवतपुराण, स्कन्ध 09, अध्यायः 30 के अनुसार
🌷 तिलदानं ब्राह्मणाय यः करोति च भारते । तिलप्रमाणवर्षं च मोदते विष्णुमन्दिरे ।।
ततः स्वयोनिं संप्राप्य चिरजीवी भवेत्सुखी। ताम्रपात्रस्थदानेन द्विगुणं च फलं लभेत्।।

🙏🏻 जो भारतवर्ष में ब्राह्मण को तिलदान करता है, वह तिल के बराबर वर्षों तक विष्णुधाम में सम्मान पाता है। उसके बाद उत्तम योनि में जन्म पाकर चिरजीवी हो सुख भोगता है। ताँबे के पात्र में तिल रखकर दान करने से दुगना फल मिलता है।
हरिःॐ। भृगुवासर-सुप्रभातम्।

आकाशवाण्या अद्यतनप्रातःकालवार्ताः।

जयतु संस्कृतम्॥
हरिःॐ। २०२१-०१-२९ शुक्रवासरः।

https://youtu.be/sHdnXwYQLgU

जयतु संस्कृतम्॥
ಚತುರದಶಲೋಕಗಳಲ್ಲಿ ತಮ್ಮ ಉದ್ಗ್ರಂಥಗಳ ಕೀರ್ತಿಯೆಂಬ ಕಿರಣಗಳಿಂದ ರಾರಾಜಿಸುವ, ಅಪ್ರತಿಮದೇವತೆಗಳಾದ, ತ್ರೇತೆಯಲಿ ಶ್ರೀ ಹನುಮಂತದೇವರೂ, ದ್ವಾಪರದಲಿ ಶ್ರೀಭೀಮಸೇನದೇವರೂ ಹಾಗೂ ಕಲಿಯುಗದಲ್ಲೂ ಕಲಿವೈರಿಮುನಿಗಳೆಂದು ಪ್ರಸಿದ್ಧರಾದ, ಓದುಗರ, ಅಧ್ಯಯನಕಾರರ, ಹಾಗೂ ಭಕ್ತರ ಮನಸ್ಸಿಗೆ ಸದಾ ಆನಂದವನ್ನು ಕೊಡುವ ಗ್ರಂಥಗಳ ರಚನೆಯಿಂದ ಆನಂದತೀರ್ಥರೆಂಬ ಬಿರುದಾಂಕಿತರಾದ ಶ್ರೀಮನ್ಮಧ್ವಾಚಾರ್ಯರ ಕರಕಮಲಗಳಿಂದ ವಿರಚಿತವಾದ ಭಕ್ತಿರಸಪ್ರಧಾನಗ್ರಂಥವಾದ "ದ್ವಾದಶಸ್ತೋತ್ರಾಣಿ" ಎಂಬ ಸ್ತೋತ್ರ ಕಾವ್ಯದ ಎಂಟನೇ ಅಧ್ಯಾಯದ ಒಂಭತ್ತನೇಯ ಶ್ಲೋಕವಿದು.

ಈ ಗ್ರಂಥಕಾವ್ಯದಲ್ಲಿ ಆಚಾರ್ಯಮಧ್ವರು ಶ್ರೀಮನ್ಮಹಾವಿಷ್ಣುವಿನ ರೂಪ, ಮಹಿಮೆ, ಗುಣಗಳನ್ನು, ಕಾರ್ಯಗಳನ್ನು ಭಗವದ್ಭಕ್ತರ ಮನಮುಟ್ಟುವಂತೇ ಅದರೊಂದಿಗೆ ಭಕ್ತರಲ್ಲಿ ಜ್ಞಾನ, ಭಕ್ತಿಗಳು ವೃದ್ಧಿಯಾಗಿ ಮೋಕ್ಷಪ್ರಾಪ್ತಿಯಾಗುವಂತೇ ಭಗವಂತನ ಬಗ್ಗೆ ವಿವರಿಸಿ ಗೇಯಯೋಗ್ಯವಾದ ಛಂದಸ್ಸುಗಳನ್ನು ಉಪಯೋಗಿಸಿ ಶ್ಲೋಕರಚನೆಮಾಡಿದ್ದಾರೆ. ಈ ಶ್ಲೋಕಗಳ ಪಾರಾಯಣ, ಶ್ರವಣ, ಮನನ, ಧ್ಯಾನ, ಕೀರ್ತನ, ಗಾಯನ, ಅಧ್ಯಯನ, ಪೂಜಾಸಮಯದಲ್ಲಿ ಭಗವಂತನ ಮುಂದೆ ಪಠನ, ಮುಂತಾದ ಕಾರ್ಯಗಳನ್ನು ಭಗವದ್ಭಕ್ತರು ಕೈಗೊಂಡರೆ ಅವರಿಗೆ ಇಹಲೋಕದ ಸುಖಗಳೆಲ್ಲವೂ ದೊರಕಿ ಶಾಶ್ವತವಾದ ಮೋಕ್ಷವೂ ಕೂಡ ಲಭಿಸುತ್ತದೆ.

ಪ್ರಕೃತ ಎಂಟನೇ ಅಧ್ಯಾಯದ ಈ ಶ್ಲೋಕದಲ್ಲಿ ಆಚಾರ್ಯಮಧ್ವರು ಭಗವಂತನ ಕಾರ್ಯವನ್ನು ವಿವರಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಅನಂತಕೋಟಿಬ್ರಹ್ಮಾಂಡಗಳ ನಾಯಕನಾದ ಶ್ರೀಮನ್ಮಹಾವಿಷ್ಣುವು ಈ ಬ್ರಹ್ಮಾಂಡದ ಬ್ರಹ್ಮದೇವರೇ ಮೊದಲಾದ ಜೀವರಾಶಿಯನ್ನು ಧರಿಸಿದ್ದಾನೆ. ಅನಂತಕೋಟಿಬ್ರಹ್ಮಾಂಡಗಳ ಜೀವರಾಶಿಗಳ ದುಃಖಾದಿ ಕಷ್ಟಗಳನ್ನು ಆಯಾ ಜೀವಿಗಳ ಯೋಗ್ಯತೆಗೆ ತಕ್ಕಂತೇ ಕಳೆಯುತ್ತಾನೆ, ಯಾವ ಕಾರ್ಯವು ಬ್ರಹ್ಮಾದಿ ಸಕಲ ಜೀವಿಗಳಿಂದ ಮಾಡಲ್ಪಡುವುದಿಲ್ಲವೋ, ಆ ಕಾರ್ಯವೂ ಈ ಭಗವಂತನಿಂದಲೇ ಮಾಡಲ್ಪಡುತ್ತದೆ. ಹಾಗೆಯೇ ಈ ಶ್ರೀಮನ್ಮಹಾವಿಷ್ಣುವಿನ ಪ್ರೇರಣೆಯಿಂದಲೇ, ಸಕಲ ಜೀವಿಗಳ ಸರ್ವಕಾರ್ಯವೂ ಮಾಡಲ್ಪಡುತ್ತದೆ. ಇಂತಹ ಸಕಲ ದೇವತೆಗಳ ಸಮೂಹಕ್ಕೆ ಪ್ರಧಾನನಾದ ವಸುದೇವನ ಸುತನಾದ ವಾಸುದೇವಶ್ರೀಕೃಷ್ಣನನ್ನು ನಾವು ಪ್ರೀತಿಸುತ್ತೇವೆ ಎಂದು ಶ್ರೀಮದಾನಂದತೀರ್ಥರು ಈ ಶ್ಲೋಕದಲ್ಲಿ ಉಲ್ಲೇಖಿಸಿದ್ದಾರೆ.

ಪ್ರಕೃತಶ್ಲೋಕದ ವಿಶೇಷತೆ ಏನೆಂದರೆ ಕರ್ಮಣಿಪ್ರಯೋಗವಿರುವ ಕ್ರಿಯಾಪದಗಳ ಉಪಯೋಗ. ಈ ಶ್ಲೋಕದ ಪ್ರತಿ ಪಾದದಲ್ಲಿ ಬರುವ ಮೊದಲನೇ ಪದವಾದ "ಧಾರ್ಯತೇ", "ವಾರ್ಯತೇ", "ಪಾರ್ಯತೇ" ಮತ್ತು "ಕಾರ್ಯತೇ" ಎಂಬ ಕ್ರಿಯಾಪದಗಳು ವಿವಿಧ ಧಾತುಗಳಿಂದ ಹಾಗೂ ಪ್ರತ್ಯಯಗಳಿಂದ ವಿಕೃತಿಯನ್ನು ಹೊಂದಿ ಪ್ರಾಸಬದ್ಧವಾಗಿ ಶ್ರೀಮದಾಚಾರ್ಯರ ಕರಕಮಲಗಳಿಂದ ಶ್ಲೋಕದಲ್ಲಿ ಉಪಯೋಗಿಸಲ್ಪಟ್ಟಿವೆ. ಕರ್ಮಣಿ ಕ್ರಿಯಾಪದಗಳಲ್ಲಿ ಕರ್ಮಕ್ಕೆ ಪ್ರಾಧಾನ್ಯವಿರುತ್ತದೆ. ಕರ್ಮವು ಈ ಕ್ರಿಯಾಪದವಿರುವ ವಾಕ್ಯಗಳಲ್ಲಿ ಪ್ರಥಮಾವಿಭಕ್ತಿಯಲ್ಲಿರುತ್ತದೆ. ಕರ್ತೃಪದವು ತೃತಿಯಾವಿಭಕ್ತಿಯಲ್ಲಿರುತ್ತದೆ. ಉದಾಹರಣೆಗೆ...

ಯೇನ ವಿಶ್ವಂ ಧಾರ್ಯತೇ ಎಂಬಲ್ಲಿ ಯೇನ ಪದವು ತೃತಿಯಾ ವಿಭಕ್ತಿಯಲ್ಲಿದೆ.

ಸುಲಭವಾದ ಉದಾಹರಣೆ ಎಂದರೆ ...

ರಾಮಃ ರಾವಣಂ ಹಂತಿ |

ರಾವಣಃ ರಾಮೇಣ ಹನ್ಯತೇ |

ಇಲ್ಲಿ ರಾವಣ ಎಂಬ ಪದವು ಕರ್ಮಪದವಾಗಿದೆ. ಕರ್ತರಿಪ್ರಯೋಗದಲ್ಲಿ ಕರ್ಮವು ದ್ವಿತಿಯಾವಿಭಕ್ತಿಯಲ್ಲಿದೆ. ಅದೇ ಕರ್ಮಣಿಪ್ರಯೋಗದಲ್ಲಿ ಕರ್ಮವು ಪ್ರಥಮಾವಿಭಕ್ತಿಯಲ್ಲಿರುತ್ತದೆ. ಹೀಗೇ ಆಚಾರ್ಯ ಮಧ್ವರು ತಾವು ರಚಿಸಿದ ಗ್ರಂಥಗಳಲ್ಲಿ ಏನಾದರೂ ಒಂದು ವ್ಯಾಕರಣವಿಶೇಷದ ಜೊತೆಗೆ ಭಕ್ತಿಯನ್ನೂ, ವಿಶೇಷಪದಗಳನ್ನೂ ಸೇರಿಸಿ ಶ್ಲೋಕವನ್ನು ಓದುಗರ ಮನದಲ್ಲಿ ಶಾಶ್ವತವಾಗಿ ಉಳಿಯುವಂತೇ ಮಾಡುತ್ತಾರೆ. ಪ್ರಕೃತಶ್ಲೋಕದ ಪ್ರತಿ ಪಾದದಲ್ಲಿಯೂ 12 ಅಕ್ಷರಗಳಿವೆ. ಇದು "ವಂಶಸ್ಥವಿಲ" ಎಂಬ ಛಂದಸ್ಸಿನಲ್ಲಿದೆ.

ಓಂ ಶ್ರೀಮದಾನಂದತೀರ್ಥಾಂತರ್ಗತಹಯತುಂಡಾಕೃತಿನೇ ನಮಃ ||
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। नवमः सर्गः ।।

🍃 अथ हृष्टो दशरथः सुमन्त्रं प्रत्यथाषत। यथश्यभृङ्गस्त्वानीतो विस्तरेण त्वयेच्यताम्॥१९॥

👉🏻 🚩इति नवमः सर्गः॥

⚜️ यह सुन महाराज दशरथ प्रसन्न हुए और सुमंत्र से वाले कि जिस प्रकार रोमपाद ने ऋष्यश्रृंग को बुलाया वह हाल हमसे व्योरे बार कहे ॥ १९ ॥

👉🏻🚩बालकाण्ड का नवा सर्ग समाप्त हुआ।

#ramayan
📙 ऋग्वेद

सूक्त - १८ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ०३ , देवता - ब्रह्मणस्पति आदि।

🍃 मा नः शंसो अररुषो धूर्तिः प्रणङ् मर्त्यस्य. रक्षा णो ब्रह्मणस्पते.. (३)

⚜️ उपद्रव करने वाले एवं द्वेषपूर्ण निंदा के शब्द बोलने वाले शत्रु हमसे दूर रहें। हे ब्रह्मणस्पति! उनसे हमारी रक्षा करो (३)

#rgveda
चाणक्य नीति ⚔️
✒️ अष्टमः अध्याय

♦️श्लोक :- ११

काष्ठपाषाण धातूनां कृत्वा भावेन सेवनम्।
श्रद्धया च तथा सिद्धिस्तस्य विष्णोः प्रसादतः ॥११॥

♦️भावार्थ - काष्ठ, पाषाण व धातु की मूर्तियों की भावना से सेवा करनी चाहिए। श्रद्धा से उनकी सेवा करने पर साक्षात् भगवान विष्णु सिद्धि देते हैं।

#chanakya
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

प्रस्तावसदृशं वाक्यं
सद्भावसदृशं प्रियम् ।।
आत्मशक्तिसमं कोपं
यो जानाति स पण्डितः ।। 295/048

अर्थः:

जो व्यक्ति स्थिति के अनुसार उपयुक्त बातें करना जानता है, उत्तम स्वभाव वाले मित्र को पहचानता है, और अपनी शक्ति के अनुसार क्रोध को नियंत्रित करता है, वही पण्डित कहलाता है।

MEANING:

A scholar is one who knows how to speak appropriately according to the situation, can identify and value a friend with good qualities, and manages his anger according to his own capacity.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

#Subhashitam
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। दशमः सर्गः ।।

सुमन्त्रश्चोदितो राज्ञा मोवाचेदं वचस्तदा ।
यथर्यशृङ्गस्त्वानीतः भृणु मे मन्त्रिभिः सह॥१॥

महाराज दशरथ के इस प्रकार पूछने पर सुमंत्र ने विस्तार पूर्वक वृत्तान्त कहना आरम्भ किया । सुमंत्र बोले, हे महाराज ! जिस उपाय से रोमपाद के मंत्रिवर्ग ऋष्यशृङ्ग को लाये सो मैं कहता हूँ। उसे आप मंत्रियों सहित सुनिये ॥१॥

🍃 रोमपादमुवाचेदं सहामात्यः पुरोहितः।
उपायोनिरपायोऽयमस्माभिरभिगन्त्रितः ॥ २ ॥

⚜️ मंत्री और पुरोहित रोमपाद से बोले कि हमने निर्विघ्न कृतकार्य होने का एक उपाय सोचा है॥२॥

#ramayan
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

किमप्यस्ति स्वभानेन
सुन्दरं वाप्यसुन्दरम् ।।
यदेव रोचते यस्मै
भवेत्तत्तस्य सुन्दरम् ।। 297/050

अर्थः:

कोई भी वस्तु अपने स्वभाव के अनुसार सुंदर या असुंदर होती है। जो वस्तु किसी को पसंद आती है, वही वस्तु उसके लिए सुंदर होती है।

MEANING:

A substance may be beautiful or ugly depending on its nature. The person who likes a particular thing finds it beautiful.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

©Sanju GN #Subhashitam
हरिःॐ। बुधवासर-सायङ्कालशुभेच्छाः।

आकाशवाण्या अद्यतनसायङ्कालवार्ताः।

जयतु संस्कृतम्॥
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। दशमः सर्गः ।।

🍃 ऋश्यशृङ्गो वनंचरस्तपःस्वाध्यायने रतः।
अनभिज्ञः स नारीणां विषयाणां सुखस्य च ॥३॥

⚜️ ऋष्यश्रृंग वन के रहने वाले और सदा तप और स्वाध्याय में निरत रहते हैं। उनको स्त्री सुख और अन्य विषयों का सुख बिल्कुल नहीं मालूम है॥३॥

🍃 इन्द्रियार्थैरभिमतैर्नर चित्तप्रमाथिभिः।
पुरमानाययिष्यामः क्षिप्रं चाध्यवसीयताम्॥४॥

⚜️ अतः मनुष्यों को मुग्ध करने वाली इन्द्रियों के विषयों द्वारा उनको शीघ्र नगर में ले पायेंगे। बस अब इसका शीघ निश्चय करना चाहिये॥४॥

#ramayan
📙 ऋग्वेद

सूक्त - १८ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ०५ , देवता - ब्रह्मणस्पति आदि।

🍃 त्वं तं ब्रह्मणस्पते सोम इन्द्रश्च मर्त्यम्. दक्षिणा पात्वंहसः.. (५)

⚜️ हे ब्रह्मणस्पति! तुम, सोम, इंद्र एवं दक्षिणा नामक देवी उस यजमान की पाप से रक्षा करो (५)

#rgveda