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We need atleast 1000 supporters until tomorrow evening, When we will send an email regarding this campaign to the government.
Don't hesitate to share it to your friends and relatives.
We shall get a TV channel named Doordarshan Samskrit very soon.
Change.org/Doordarshan_Sanskrit
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🌺🌺 *प्रतिदिनं संस्कृतं* 🌺🌺
*कथापठनशृङ्खला*
केवलं 30 निमेषा:
*समय: - 12 Noon to 12.30*
Google Meet joining info
Video call link: https://meet.google.com/anj-tyfb-aum
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केवलं 30 निमेषा:
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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚
🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।
🍃 अथो पुनरिंदं वाक्यं प्रजापत्यो नरोऽब्रवीत्।
राजन्नचयता देवानद्य प्राप्तमिदं त्वया ॥१८॥
⚜️ भावार्थ - इस पर प्रजापति के भेजे उस मनुष्य ने फिर कहा - देवताओं का पूजन करने से आज तुमको यह पदार्थ मिला है। ॥१८॥
🍃 इदं तु नरशार्दूल पायसं देवनिर्मितम्।
प्रजाकरं गृहाण त्वं धन्यमारोग्यवर्धनम् ॥१९॥
⚜️ भवार्थ - 'हें नरशार्दूल ! यह देवताओं की बनाई हुई खीर है, जो सन्तान की देने वाली तथा धन और ऐश्वर्य की बढ़ाने वाली है, इसे आप लीजिये ॥१९॥
#ramayan
🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।
🍃 अथो पुनरिंदं वाक्यं प्रजापत्यो नरोऽब्रवीत्।
राजन्नचयता देवानद्य प्राप्तमिदं त्वया ॥१८॥
⚜️ भावार्थ - इस पर प्रजापति के भेजे उस मनुष्य ने फिर कहा - देवताओं का पूजन करने से आज तुमको यह पदार्थ मिला है। ॥१८॥
🍃 इदं तु नरशार्दूल पायसं देवनिर्मितम्।
प्रजाकरं गृहाण त्वं धन्यमारोग्यवर्धनम् ॥१९॥
⚜️ भवार्थ - 'हें नरशार्दूल ! यह देवताओं की बनाई हुई खीर है, जो सन्तान की देने वाली तथा धन और ऐश्वर्य की बढ़ाने वाली है, इसे आप लीजिये ॥१९॥
#ramayan
📙 ऋग्वेद
सूक्त - २५ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - १४ , देवता - वरुण
🍃 न यं दिप्सन्ति दिप्सवो न द्रुह्वाणो जनानाम् न देवमभिमातयः (१४)
⚜️ भावार्थ - हिंसा करने वाले लोग भयभीत होकर वरुण की शत्रुता छोड़ देते हैं। मनुष्यों को पीड़ा पहुँचाने वाले लोग उन्हें पीड़ा नहीं पहुँचाते। पाप करने वाले लोग उनके प्रति पाप का आचरण त्याग देते हैं। (१४)
#Rgveda
सूक्त - २५ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - १४ , देवता - वरुण
🍃 न यं दिप्सन्ति दिप्सवो न द्रुह्वाणो जनानाम् न देवमभिमातयः (१४)
⚜️ भावार्थ - हिंसा करने वाले लोग भयभीत होकर वरुण की शत्रुता छोड़ देते हैं। मनुष्यों को पीड़ा पहुँचाने वाले लोग उन्हें पीड़ा नहीं पहुँचाते। पाप करने वाले लोग उनके प्रति पाप का आचरण त्याग देते हैं। (१४)
#Rgveda
✊ चाणक्य नीति ⚔️
✒️ चतुर्दशः अध्याय
♦️श्लोक :- ४
बहूनां चैव सत्तवानां रिपुञ्जयः।
वर्षान्धाराधरो मेघस्तृणैरपि निवार्यते।।४।।
♦️भावार्थ - निश्चय ही बहुत से लोगों का समुदाय शत्रु को भी जीत लेता है, जैसे वर्षा की धारा को धारण करने वाला बादल तिनकों के समूह द्वारा भी रोक दिया जाता है अर्थात् घास की झोपड़ी के भीतर वर्षा का जल नहीं पहुंच पाता।
#Chanakya
✒️ चतुर्दशः अध्याय
♦️श्लोक :- ४
बहूनां चैव सत्तवानां रिपुञ्जयः।
वर्षान्धाराधरो मेघस्तृणैरपि निवार्यते।।४।।
♦️भावार्थ - निश्चय ही बहुत से लोगों का समुदाय शत्रु को भी जीत लेता है, जैसे वर्षा की धारा को धारण करने वाला बादल तिनकों के समूह द्वारा भी रोक दिया जाता है अर्थात् घास की झोपड़ी के भीतर वर्षा का जल नहीं पहुंच पाता।
#Chanakya
ओ३म्
173. संस्कृत वाक्याभ्यासः
जयेष्ठ भ्राता – न भ्रातः न
अहं तरणं न जानामि।
अहं तरितुं न शक्नोमि।
ओह , जलं बहु गहनम् अस्ति।
त्वमेव तर ।
अनुजः – व्यर्थमेव बिभेति ।
तरणं तु बहु सरलं अस्ति।
जलम् अधिकं गहनं नास्ति।
भवतः ग्रीवा पर्यन्तमेव स्यात्।
= आपकी गर्दन तक ही होगा।
यावद् भवान् तुङ्गः तावदेव जलम्
= जितने तुम ऊँचे हो उतना ही जल है।
यावद् भवतः तुङ्गता तावदेव जलम्
जितनी आपकी ऊँचाई है उतना ही पानी है
आगच्छतु।
तरावः
ओ३म्
174. संस्कृत वाक्याभ्यासः
ह्यः रात्रौ लोकयाने आसम् ।
= कल रात बस में था।
राज्यपरिवहन-निगमस्य लोकयानम् आसीत्।
= राज्य परिवहन निगम की बस थी।
लोकयाने सप्तविंशतिः जनाः आसन्।
= बस में सत्ताईस लोग थे।
मम पुरतः षोडश जनाः आसन्।
= मेरे आगे सोलह लोग थे।
मम पृष्ठतः अष्ट जनाः आसन्।
= मेरे पीछे नौ लोग थे।
मया सह द्वौ जनौ आस्ताम् ।
= मेरे साथ दो जन थे ।
मां सम्मेल्य सप्तविंशतिः जनाः आसन्।
= मुझे मिलाकर सत्ताईस लोग थे।
चालकः यानं चालयति स्म।
= ड्राइवर वाहन चला रहा था।
परिचालकः यात्रापत्रं ( चिटिकां) ददाति स्म।
= कंडक्टर टिकट दे रहा था।
यात्रिभ्यः शुल्कं स्वीकरोति स्म।
= यात्रियों से शुल्क ले रहा था।
मार्गे कोsपि अवतरितुम् इच्छति तदा यानं स्थगयति स्म।
= रास्ते में कोई उतरना चाहे तो वाहन रोकता था।
मार्गे नूतनाः यात्रिणः आरोहन्ति स्म।
= रास्ते में नए यात्री चढ़ रहे थे।
ओ३म्
175. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सः प्रज्ञाचक्षु: अस्ति।
= वह सूरदास है
सः द्रष्टुं न शक्नोति।
= वह देख नहीं सकता है।
तथापि सः रवं श्रुत्वा परिचिनोति।
= फिर भी आवाज़ सुनकर पहचान लेता है।
प्रज्ञाचक्षु: – एषः अखिलेशः।
– एषः हरिसिंहः
– ऋषिदेवः , कथम् अस्ति ऋषिदेव !
– एषः बालकः , एतस्य नाम कोविदः
– एषा पार्वती भगिनी ।
– नमस्ते गोमती माता
– ओह जागृति भगिनि! बहूनि दिनानि अनन्तरम् आगतवती।
सः प्रज्ञाचक्षु: सर्वेषां नामानि जानाति
ओ३म्
176. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अद्य सृष्टिसम्वत्सरः अस्ति।
= आज सृष्टि सम्वत्सर है।
नूतनस्य सृष्टिसम्वत्सरस्य प्रथमं दिनम्।
= नए सम्वत्सर का पहला दिन।
1,96,08,53,119 वर्षेभ्यः पूर्वम् एतद् जगत् सृष्टम्।
= 1,96,08,53,119 वर्ष पहले यह जगत बना था।
सम्पूर्णे ब्रह्माण्डे या सृष्टि: दृश्यते …
= सारे ब्रह्माण्ड में जो सृष्टि दिख रही है ….
सा परमेश्वरेण एव सृष्टा ।
= वह परमेश्वर द्वारा रची गई है।
ब्रह्माण्डे न केवलं पृथ्वी अस्ति …
= ब्रह्माण्ड में न केवल पृथ्वी है …..
अपितु अनेकानि नक्षत्राणि , अनेके सूर्याः , ग्रहाः अपि सन्ति।
बहु विशालम् अस्ति ब्रह्माण्ड।
= ब्रह्माण्ड बहुत विशाल है
सर्वत्र नवसम्वत्सरस्य हर्षं दृश्यते।
= सब जगह नए सम्वत्सर की खुशी दिख रही है।
नवसम्वत्सरे सर्वेषां जीवने शुभं भवतु।
= नए सम्वत्सर में सबके जीवन में शुभ हो
ओ३म्
177. संस्कृत वाक्याभ्यासः
क्षम्यताम् = क्षमा करिये , क्षमा करियेगा
क्षम्यताम् अधुना समयः नास्ति।
= क्षमा करियेगा अभी समय नहीं है
क्षम्यताम् अहं न आगमिष्यामि।
= क्षमा करियेगा मैं नहीं आऊँगा/ आऊँगी।
क्षम्यताम् , अहं तद् कार्यं विस्मृतवान् / विस्मृतवती।
= क्षमा करियेगा , मैं वो काम भूल गया / भूल गई।
क्षम्यताम् अद्य लेखनीं न आनीतवान्।
= क्षमा करियेगा , आज पेन नहीं लाया / लाई हूँ।
क्षमस्व, तव गानं न अरोचत्।
= क्षमा करना तुम्हारा गाना पसंद नहीं आया।
क्षम्यताम् , अहं शर्करां न इच्छामि।
= क्षमा करियेगा, मैं चीनी नहीं चाहता हूँ।
क्षम्यतां , मम कारणात् भवतः युतकं मलिनं जातम्।
= क्षमा करियेगा, मेरे कारण आपकी शर्ट गंदी हो गई
क्षमस्व माम् , त्वं पुरस्कारं न प्राप्तवान्।
= क्षमा करो , तुमने पुरस्कार नहीं पाया।
ओ३म्
177. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अहं पनसम् आनीतवान्।
= मैं कटहल लाया।
तस्य शाकं निर्मेयम् अस्ति।
= उसकी सब्जी बनानी है।
पनसः तु कठोरः भवति।
= कटहल तो कठोर होता है।
सा कर्तितुं न शक्नोति।
= वह काट नहीं सकती है।
अहं कृन्तामि ।
= मैं काटता हूँ।
हस्ते सर्षपस्य तैलं योजयामि।
= हाथ में सरसों का तेल लगाता हूँ।
अनन्तरं छुरिकया पनसं कृन्तामि।
= बाद में छुरी से कटहल काटता हूँ।
पनसं कर्तयित्वा तस्यै ददामि।
= कटहल काटकर उसे देता हूँ।
मम हस्तं प्रक्षालयामि।
= मेरा हाथ साफ करता हूँ।
छुरिकाम् अपि प्रक्षालयामि।
= छुरी भी साफ करता हूँ।
#vakyabhyas
173. संस्कृत वाक्याभ्यासः
जयेष्ठ भ्राता – न भ्रातः न
अहं तरणं न जानामि।
अहं तरितुं न शक्नोमि।
ओह , जलं बहु गहनम् अस्ति।
त्वमेव तर ।
अनुजः – व्यर्थमेव बिभेति ।
तरणं तु बहु सरलं अस्ति।
जलम् अधिकं गहनं नास्ति।
भवतः ग्रीवा पर्यन्तमेव स्यात्।
= आपकी गर्दन तक ही होगा।
यावद् भवान् तुङ्गः तावदेव जलम्
= जितने तुम ऊँचे हो उतना ही जल है।
यावद् भवतः तुङ्गता तावदेव जलम्
जितनी आपकी ऊँचाई है उतना ही पानी है
आगच्छतु।
तरावः
ओ३म्
174. संस्कृत वाक्याभ्यासः
ह्यः रात्रौ लोकयाने आसम् ।
= कल रात बस में था।
राज्यपरिवहन-निगमस्य लोकयानम् आसीत्।
= राज्य परिवहन निगम की बस थी।
लोकयाने सप्तविंशतिः जनाः आसन्।
= बस में सत्ताईस लोग थे।
मम पुरतः षोडश जनाः आसन्।
= मेरे आगे सोलह लोग थे।
मम पृष्ठतः अष्ट जनाः आसन्।
= मेरे पीछे नौ लोग थे।
मया सह द्वौ जनौ आस्ताम् ।
= मेरे साथ दो जन थे ।
मां सम्मेल्य सप्तविंशतिः जनाः आसन्।
= मुझे मिलाकर सत्ताईस लोग थे।
चालकः यानं चालयति स्म।
= ड्राइवर वाहन चला रहा था।
परिचालकः यात्रापत्रं ( चिटिकां) ददाति स्म।
= कंडक्टर टिकट दे रहा था।
यात्रिभ्यः शुल्कं स्वीकरोति स्म।
= यात्रियों से शुल्क ले रहा था।
मार्गे कोsपि अवतरितुम् इच्छति तदा यानं स्थगयति स्म।
= रास्ते में कोई उतरना चाहे तो वाहन रोकता था।
मार्गे नूतनाः यात्रिणः आरोहन्ति स्म।
= रास्ते में नए यात्री चढ़ रहे थे।
ओ३म्
175. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सः प्रज्ञाचक्षु: अस्ति।
= वह सूरदास है
सः द्रष्टुं न शक्नोति।
= वह देख नहीं सकता है।
तथापि सः रवं श्रुत्वा परिचिनोति।
= फिर भी आवाज़ सुनकर पहचान लेता है।
प्रज्ञाचक्षु: – एषः अखिलेशः।
– एषः हरिसिंहः
– ऋषिदेवः , कथम् अस्ति ऋषिदेव !
– एषः बालकः , एतस्य नाम कोविदः
– एषा पार्वती भगिनी ।
– नमस्ते गोमती माता
– ओह जागृति भगिनि! बहूनि दिनानि अनन्तरम् आगतवती।
सः प्रज्ञाचक्षु: सर्वेषां नामानि जानाति
ओ३म्
176. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अद्य सृष्टिसम्वत्सरः अस्ति।
= आज सृष्टि सम्वत्सर है।
नूतनस्य सृष्टिसम्वत्सरस्य प्रथमं दिनम्।
= नए सम्वत्सर का पहला दिन।
1,96,08,53,119 वर्षेभ्यः पूर्वम् एतद् जगत् सृष्टम्।
= 1,96,08,53,119 वर्ष पहले यह जगत बना था।
सम्पूर्णे ब्रह्माण्डे या सृष्टि: दृश्यते …
= सारे ब्रह्माण्ड में जो सृष्टि दिख रही है ….
सा परमेश्वरेण एव सृष्टा ।
= वह परमेश्वर द्वारा रची गई है।
ब्रह्माण्डे न केवलं पृथ्वी अस्ति …
= ब्रह्माण्ड में न केवल पृथ्वी है …..
अपितु अनेकानि नक्षत्राणि , अनेके सूर्याः , ग्रहाः अपि सन्ति।
बहु विशालम् अस्ति ब्रह्माण्ड।
= ब्रह्माण्ड बहुत विशाल है
सर्वत्र नवसम्वत्सरस्य हर्षं दृश्यते।
= सब जगह नए सम्वत्सर की खुशी दिख रही है।
नवसम्वत्सरे सर्वेषां जीवने शुभं भवतु।
= नए सम्वत्सर में सबके जीवन में शुभ हो
ओ३म्
177. संस्कृत वाक्याभ्यासः
क्षम्यताम् = क्षमा करिये , क्षमा करियेगा
क्षम्यताम् अधुना समयः नास्ति।
= क्षमा करियेगा अभी समय नहीं है
क्षम्यताम् अहं न आगमिष्यामि।
= क्षमा करियेगा मैं नहीं आऊँगा/ आऊँगी।
क्षम्यताम् , अहं तद् कार्यं विस्मृतवान् / विस्मृतवती।
= क्षमा करियेगा , मैं वो काम भूल गया / भूल गई।
क्षम्यताम् अद्य लेखनीं न आनीतवान्।
= क्षमा करियेगा , आज पेन नहीं लाया / लाई हूँ।
क्षमस्व, तव गानं न अरोचत्।
= क्षमा करना तुम्हारा गाना पसंद नहीं आया।
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= क्षमा करियेगा, मैं चीनी नहीं चाहता हूँ।
क्षम्यतां , मम कारणात् भवतः युतकं मलिनं जातम्।
= क्षमा करियेगा, मेरे कारण आपकी शर्ट गंदी हो गई
क्षमस्व माम् , त्वं पुरस्कारं न प्राप्तवान्।
= क्षमा करो , तुमने पुरस्कार नहीं पाया।
ओ३म्
177. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अहं पनसम् आनीतवान्।
= मैं कटहल लाया।
तस्य शाकं निर्मेयम् अस्ति।
= उसकी सब्जी बनानी है।
पनसः तु कठोरः भवति।
= कटहल तो कठोर होता है।
सा कर्तितुं न शक्नोति।
= वह काट नहीं सकती है।
अहं कृन्तामि ।
= मैं काटता हूँ।
हस्ते सर्षपस्य तैलं योजयामि।
= हाथ में सरसों का तेल लगाता हूँ।
अनन्तरं छुरिकया पनसं कृन्तामि।
= बाद में छुरी से कटहल काटता हूँ।
पनसं कर्तयित्वा तस्यै ददामि।
= कटहल काटकर उसे देता हूँ।
मम हस्तं प्रक्षालयामि।
= मेरा हाथ साफ करता हूँ।
छुरिकाम् अपि प्रक्षालयामि।
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#vakyabhyas
महाभारत संबंधी एका महत्वपूर्ण कथा
महाभारतस्य युद्धे प्रायः विश्वस्य सर्वे राजानः सैनिकाश्च भागं गृहीतवन्तः आसन्।
तस्मिन् युद्धे केवलं रुक्मिणी बलरामः च भागं न गृहीतवन्तौ आस्ताम्।
परन्तु इतोपि एकः महाराजः आसीत् यः युद्धे भागं न गृहीतवान् आसीत् सः उडुपी-नगरस्य महाराजः आसीत्।
कौरवाणां पाण्डवानां च पक्षे ये योद्धारः आसन् तेषां समष्टिः पञ्चाशत् लक्षाधिकाः आसन्।
यदा सः महाराजः युद्धे भागं ग्रहीतुम् आगतवान् आसीत् तदा भ्रातॄणां मध्ये युद्धं दृष्ट्वा तस्मै न अरोचत।
सः महाराजः अत्यन्तं दूरदर्शी आसीत्।
सः महाराजः युद्धे भागं न गृहीतवान् आसीत्। सः भगवन्तं श्रीकृष्णं पृष्टवान् भगवन्! अस्मिन् युद्धे सर्वे योद्धारः युद्धाय तत्पराः दृश्यन्ते परन्तु तेषां भोजनस्य व्यवस्था कथं भवेत् इति विषये भवता का योजना कृता अस्ति इति।
तदा श्रीकृष्णः उक्तवान् हे राजन्! भवतः उत्तमः प्रश्नः। अस्मिन् विषये तु कापि योजना न कृता। परन्तु अस्मिन् विषये भवतः समीपे कापि योजना अस्ति चेत् कृपया वदतु इति।
तदा महाराजः उक्तवान् भगवन्! मम इच्छा सन्ति यद् अस्मिन् युद्धे ये ये योद्धारः सैनिकाः च आसन् तेषां सर्वेषां कृते अहं भोजनस्य व्यवस्थां करोमि, मम सैनिकाः पाकं करिष्यन्ति इति।
भगवान् श्रीकृष्णः तस्मै महाराजाय अनुमतिम् अददात्।
पञ्चाशत् लक्षजनानां कृते भोजनस्य व्यवस्था न सहजा , तथापि सः महाराजः कुशलतया तत् कार्यं करोति स्म।
प्रतिदिनं सहस्रसैनिकानां मृत्युः भवति चेदपि तद्दिने यद् भोजनस्य निर्माणं भवति तेन भोजनेन सर्वेषां उदरः पूर्णः भवति। मनागपि भोजनं न अवशिष्टं भवति तेन कस्यापि न्यूनमपि न भवति स्म।
एवमेव युद्धं समाप्तम् अभवत्।
तस्य महाराजस्य पाककार्ये निपुनतां दृष्ट्वा महाराजः युधिष्ठिरः तं पृष्टवान् महाराज। भवान् प्रतिदिनं यद् भोजनस्य निर्माणं करोति तेन सर्वेषाम् उदरः पूर्णः भवति मनागपि अन्नकणा अवशिष्टा न भवति। भवता कथं ज्ञायते यद् अद्यतने युद्धे एतावन्तः सैनिकाः योद्धारः च म्रियन्ते इति।
तदा सः महाराजः युधिष्ठिरं पृष्टवान् महाराज! अस्मिन् युद्धे भवतः विजयः अभवत् इति तु सत्यम्, परन्तु अस्य विजयस्य श्रेयः भवान् कस्मै दातुम् इच्छति इति।
तदा युधिष्ठिरः उक्तवान् निश्चयेन भगवते वासुदेवाय एव ददामि इति।
तदा सः महाराजः उक्तवान् तर्हि शृणोतु राजन् ( युधिष्ठिरम्) buscar! प्रत्येकं दिने युद्धस्य समाप्तेः परं सायंकाले यदा भगवान् श्रीकृष्णः स्वप्रकोष्टम् आगच्छति तदा सः बादामफलानि खादति स्म।
भगवान् यद् फलं खादति तदनु सैनिकानां मृत्युः भवति तन्नाम यदि भगवान् श्रीकृष्णः एकं फलं खादति तर्हि एकसहस्रसैनिकाः म्रियन्ते इति अर्थात् सहस्रगुणाः म्रियन्ते इति।
तदा महाराज युधिष्ठिरः अस्मिन् युद्धे अस्माकं विजयः भगवतः श्रीकृष्णस्य एव कृपा इति ज्ञात्वा तं नमस्कृतवान् आसीत् इति शुभम्।
-प्रदीपः!
महाभारतस्य युद्धे प्रायः विश्वस्य सर्वे राजानः सैनिकाश्च भागं गृहीतवन्तः आसन्।
तस्मिन् युद्धे केवलं रुक्मिणी बलरामः च भागं न गृहीतवन्तौ आस्ताम्।
परन्तु इतोपि एकः महाराजः आसीत् यः युद्धे भागं न गृहीतवान् आसीत् सः उडुपी-नगरस्य महाराजः आसीत्।
कौरवाणां पाण्डवानां च पक्षे ये योद्धारः आसन् तेषां समष्टिः पञ्चाशत् लक्षाधिकाः आसन्।
यदा सः महाराजः युद्धे भागं ग्रहीतुम् आगतवान् आसीत् तदा भ्रातॄणां मध्ये युद्धं दृष्ट्वा तस्मै न अरोचत।
सः महाराजः अत्यन्तं दूरदर्शी आसीत्।
सः महाराजः युद्धे भागं न गृहीतवान् आसीत्। सः भगवन्तं श्रीकृष्णं पृष्टवान् भगवन्! अस्मिन् युद्धे सर्वे योद्धारः युद्धाय तत्पराः दृश्यन्ते परन्तु तेषां भोजनस्य व्यवस्था कथं भवेत् इति विषये भवता का योजना कृता अस्ति इति।
तदा श्रीकृष्णः उक्तवान् हे राजन्! भवतः उत्तमः प्रश्नः। अस्मिन् विषये तु कापि योजना न कृता। परन्तु अस्मिन् विषये भवतः समीपे कापि योजना अस्ति चेत् कृपया वदतु इति।
तदा महाराजः उक्तवान् भगवन्! मम इच्छा सन्ति यद् अस्मिन् युद्धे ये ये योद्धारः सैनिकाः च आसन् तेषां सर्वेषां कृते अहं भोजनस्य व्यवस्थां करोमि, मम सैनिकाः पाकं करिष्यन्ति इति।
भगवान् श्रीकृष्णः तस्मै महाराजाय अनुमतिम् अददात्।
पञ्चाशत् लक्षजनानां कृते भोजनस्य व्यवस्था न सहजा , तथापि सः महाराजः कुशलतया तत् कार्यं करोति स्म।
प्रतिदिनं सहस्रसैनिकानां मृत्युः भवति चेदपि तद्दिने यद् भोजनस्य निर्माणं भवति तेन भोजनेन सर्वेषां उदरः पूर्णः भवति। मनागपि भोजनं न अवशिष्टं भवति तेन कस्यापि न्यूनमपि न भवति स्म।
एवमेव युद्धं समाप्तम् अभवत्।
तस्य महाराजस्य पाककार्ये निपुनतां दृष्ट्वा महाराजः युधिष्ठिरः तं पृष्टवान् महाराज। भवान् प्रतिदिनं यद् भोजनस्य निर्माणं करोति तेन सर्वेषाम् उदरः पूर्णः भवति मनागपि अन्नकणा अवशिष्टा न भवति। भवता कथं ज्ञायते यद् अद्यतने युद्धे एतावन्तः सैनिकाः योद्धारः च म्रियन्ते इति।
तदा सः महाराजः युधिष्ठिरं पृष्टवान् महाराज! अस्मिन् युद्धे भवतः विजयः अभवत् इति तु सत्यम्, परन्तु अस्य विजयस्य श्रेयः भवान् कस्मै दातुम् इच्छति इति।
तदा युधिष्ठिरः उक्तवान् निश्चयेन भगवते वासुदेवाय एव ददामि इति।
तदा सः महाराजः उक्तवान् तर्हि शृणोतु राजन् ( युधिष्ठिरम्) buscar! प्रत्येकं दिने युद्धस्य समाप्तेः परं सायंकाले यदा भगवान् श्रीकृष्णः स्वप्रकोष्टम् आगच्छति तदा सः बादामफलानि खादति स्म।
भगवान् यद् फलं खादति तदनु सैनिकानां मृत्युः भवति तन्नाम यदि भगवान् श्रीकृष्णः एकं फलं खादति तर्हि एकसहस्रसैनिकाः म्रियन्ते इति अर्थात् सहस्रगुणाः म्रियन्ते इति।
तदा महाराज युधिष्ठिरः अस्मिन् युद्धे अस्माकं विजयः भगवतः श्रीकृष्णस्य एव कृपा इति ज्ञात्वा तं नमस्कृतवान् आसीत् इति शुभम्।
-प्रदीपः!
7–8जनाः द्यूतः खेलन्तः आसन्।
तदैव आरक्षकाः आगच्छन्ति।
तद् दृष्ट्वैव एकः द्यूतक्रीडकः शीघ्रं गत्वा आरक्षकानां याने उपविशति।
तदा आरक्षकाः तं वदति त्वं कथं पूर्वमेव गत्वात्रोपाविशः।
अरे महोदयः एतत्पूर्वं भवान् यदा माम् याने नीतवान् तदा मे उपवेष्टुं स्थानमेव न लब्धं अतः पूर्वमेव आगत्य उपाविशम्।
दर्शना
😆😂😁🤣😆😂😁😆
#hasya
तदैव आरक्षकाः आगच्छन्ति।
तद् दृष्ट्वैव एकः द्यूतक्रीडकः शीघ्रं गत्वा आरक्षकानां याने उपविशति।
तदा आरक्षकाः तं वदति त्वं कथं पूर्वमेव गत्वात्रोपाविशः।
अरे महोदयः एतत्पूर्वं भवान् यदा माम् याने नीतवान् तदा मे उपवेष्टुं स्थानमेव न लब्धं अतः पूर्वमेव आगत्य उपाविशम्।
दर्शना
😆😂😁🤣😆😂😁😆
#hasya
पठनेन बुद्धि: वर्धते इति मतिमुन्नीय गवेषका:॥ संस्कृतेन सर्वदा व्यवहर्तुं प्रयतत - जगद्गुरु भारतीतीर्थस्वामिनः
Tuesday, May 18, 2021
गासा - मरणानि २०० अतीतानि।
गासानगरं> इस्रयेल-पालस्तीनसंघर्षः आरभ्य सप्तदिनेषु अतीतेषु गासानगरे हतानां संख्या २०० अतीता। हतेषु ५९ बालकाः ३५ महिलाश्च अन्तर्भवन्ति। १०३५ जनाः आहताः जाता इति हमास् शासनस्य स्वास्थ्यमन्त्रालयेन निगदितम्। १३० हमास् निहता इति इस्रायलेन उच्यते।
गतदिने गासाप्रदेशस्य उदग्रभूमौ वर्तमानानि १५ कि मी परिमितानि भूगर्भगह्वराणि तथा नवानां हमास् अधिकारिणां भवनानि च इस्रयेलः बोम्बस्फोटकेन विनाशमकरोत्। इस्रयेलं विरुध्य प्रयोज्यमानानि अायुधानि नेतुं निर्मितानि गह्वराण्येव विनाशितानि इति इस्रयलेन उक्तम्।
भारते ब्रिट्टण् राष्ट्रे च प्रत्यभिज्ञातस्य कोविड्वैराणुविभेदानां प्रतिरोधाय कोवाक्सिन् फलप्रदम् इति परीक्षणानि सूचयन्ति।
नवदिल्ली> भारतेन सम्पुष्टीकृतं स्वदेशीयं कोवाक्सिन् नाम सूच्यौषधं प्रत्याशादायकं भवति। भारते ब्रिट्टण् राष्ट्रे च प्रथमतया प्रत्यभिज्ञातस्य बि १.१६७,बि१.१.७ इत्यादि वैराणुभेदान् अपरान् भेदान् च प्रतिरोद्घुं कोवाक्सिन् फलप्रदम् इति तस्य उद्पादकाः अभिप्रयन्ति।
परीक्षितान् सर्वान् वैराणुभेदान् कोवाक्सिन् निर्वीर्यं करोति इति तस्य उद्पादकया भारत बयोडेक् नामिकया औषधनिर्माणशालया निगदितम्। इदानीं भारते लभ्ययमानेषु कोविड् सूच्यौषधत्रयेषु अन्यतमं भवति कोवाक्सिन्।
केन्द्रस्वास्थ्यमन्त्रालयस्य गणनामनुसृत्य राष्ट्रे सर्वत्र इतःपर्यन्तं १८,२२,२०,१५४ मात्रामितं कोविड्सूच्यौषधम् वितीरितम् अस्ति।
~ संप्रति वार्ता
Tuesday, May 18, 2021
गासा - मरणानि २०० अतीतानि।
गासानगरं> इस्रयेल-पालस्तीनसंघर्षः आरभ्य सप्तदिनेषु अतीतेषु गासानगरे हतानां संख्या २०० अतीता। हतेषु ५९ बालकाः ३५ महिलाश्च अन्तर्भवन्ति। १०३५ जनाः आहताः जाता इति हमास् शासनस्य स्वास्थ्यमन्त्रालयेन निगदितम्। १३० हमास् निहता इति इस्रायलेन उच्यते।
गतदिने गासाप्रदेशस्य उदग्रभूमौ वर्तमानानि १५ कि मी परिमितानि भूगर्भगह्वराणि तथा नवानां हमास् अधिकारिणां भवनानि च इस्रयेलः बोम्बस्फोटकेन विनाशमकरोत्। इस्रयेलं विरुध्य प्रयोज्यमानानि अायुधानि नेतुं निर्मितानि गह्वराण्येव विनाशितानि इति इस्रयलेन उक्तम्।
भारते ब्रिट्टण् राष्ट्रे च प्रत्यभिज्ञातस्य कोविड्वैराणुविभेदानां प्रतिरोधाय कोवाक्सिन् फलप्रदम् इति परीक्षणानि सूचयन्ति।
नवदिल्ली> भारतेन सम्पुष्टीकृतं स्वदेशीयं कोवाक्सिन् नाम सूच्यौषधं प्रत्याशादायकं भवति। भारते ब्रिट्टण् राष्ट्रे च प्रथमतया प्रत्यभिज्ञातस्य बि १.१६७,बि१.१.७ इत्यादि वैराणुभेदान् अपरान् भेदान् च प्रतिरोद्घुं कोवाक्सिन् फलप्रदम् इति तस्य उद्पादकाः अभिप्रयन्ति।
परीक्षितान् सर्वान् वैराणुभेदान् कोवाक्सिन् निर्वीर्यं करोति इति तस्य उद्पादकया भारत बयोडेक् नामिकया औषधनिर्माणशालया निगदितम्। इदानीं भारते लभ्ययमानेषु कोविड् सूच्यौषधत्रयेषु अन्यतमं भवति कोवाक्सिन्।
केन्द्रस्वास्थ्यमन्त्रालयस्य गणनामनुसृत्य राष्ट्रे सर्वत्र इतःपर्यन्तं १८,२२,२०,१५४ मात्रामितं कोविड्सूच्यौषधम् वितीरितम् अस्ति।
~ संप्रति वार्ता
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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This is very important for the upliftment of Samskrta.
Change.org/Doordarshan_Sanskrit
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*🙏।।ओ३म्।।🙏*
*🌷महामृत्युञ्जय मंत्र🌷*
*🌻खरबूजे के समान बन्धन से छूटो*
*त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥* - ऋग्वेद ७/५९/१२
*पदार्थः* - (त्र्यम्बकं = त्रि+अम्बकम्) तीनों लोकों - द्यौ, पृथ्वी और मोक्षलोक के रक्षक/पालक वा द्रष्टा अथवा ज्ञान, कर्म और उपासना रूप त्रयीविद्या युक्त वेदों के उपदेष्टा/रक्षक, वा द्विपात्, चतुष्पात् और सरीसृप तीनों प्रकार के प्राणियों के माता के समान पालक, (सु-गन्धिं) उत्तम ज्ञान और कर्म रूपी गन्ध से युक्त, सत्कर्मा, ज्ञानी (पुष्टिवर्धनम्) समृद्धि बढ़ानेवाले पूज्य पुरुष वा प्रभु को हम (यजामहे) यजते वा उपासना/पूजा करते हैं। मैं (मृत्योः बन्धनात्) मृत्यु के बन्धन से (उर्वारुकम् इव) खरबूजे के फल के समान (मुक्षीय) मुक्त होऊँ और (अमृतात्) अमृतमय मोक्ष से (मा मुक्षीय) पृथक् न होऊँ।
*भावार्थः* - सत्कर्म करनेवाले, वेदों के उपदेष्टा विद्वानों की सुसंगति से उपदेश प्राप्त कर मनुष्य लोग अज्ञान और दुष्कर्मों से छूटकर ज्ञानी बनें तथा सांसारिक सुखों का उपभोग करें। जैसे पका हुआ खरबूजा स्वतः ही शाखा/डाली से अलग हो जाता है, वैसे ही अन्त में शुद्ध ज्ञान, कर्म और उपासना से परिपक्व होकर मनुष्य मृत्यु के बन्धन से छूट जाये और परमात्मा के अमृतमय मोक्ष के आनन्द को प्राप्त करे।
*🌷महामृत्युञ्जय मंत्र🌷*
*🌻खरबूजे के समान बन्धन से छूटो*
*त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥* - ऋग्वेद ७/५९/१२
*पदार्थः* - (त्र्यम्बकं = त्रि+अम्बकम्) तीनों लोकों - द्यौ, पृथ्वी और मोक्षलोक के रक्षक/पालक वा द्रष्टा अथवा ज्ञान, कर्म और उपासना रूप त्रयीविद्या युक्त वेदों के उपदेष्टा/रक्षक, वा द्विपात्, चतुष्पात् और सरीसृप तीनों प्रकार के प्राणियों के माता के समान पालक, (सु-गन्धिं) उत्तम ज्ञान और कर्म रूपी गन्ध से युक्त, सत्कर्मा, ज्ञानी (पुष्टिवर्धनम्) समृद्धि बढ़ानेवाले पूज्य पुरुष वा प्रभु को हम (यजामहे) यजते वा उपासना/पूजा करते हैं। मैं (मृत्योः बन्धनात्) मृत्यु के बन्धन से (उर्वारुकम् इव) खरबूजे के फल के समान (मुक्षीय) मुक्त होऊँ और (अमृतात्) अमृतमय मोक्ष से (मा मुक्षीय) पृथक् न होऊँ।
*भावार्थः* - सत्कर्म करनेवाले, वेदों के उपदेष्टा विद्वानों की सुसंगति से उपदेश प्राप्त कर मनुष्य लोग अज्ञान और दुष्कर्मों से छूटकर ज्ञानी बनें तथा सांसारिक सुखों का उपभोग करें। जैसे पका हुआ खरबूजा स्वतः ही शाखा/डाली से अलग हो जाता है, वैसे ही अन्त में शुद्ध ज्ञान, कर्म और उपासना से परिपक्व होकर मनुष्य मृत्यु के बन्धन से छूट जाये और परमात्मा के अमृतमय मोक्ष के आनन्द को प्राप्त करे।
Harshacharitam (Baana)
अतिरोषणश्चक्षुष्मानप्यन्ध एव
Atiroshanashchakshushmaanapyandha eva janah
The angry person, though possessing eyes, is blind.
न सन्त्येव ते येषां सतामपि न विद्यन्ते मित्रोदासीनशत्रवः
Na santyeva te yeshaam sataamapi sataam na vidyante mitrodaaseenashatravah
There are no such persons who do not have friends, enemies or neutrals even though such persons possess good qualities.
उपयोगं तु न प्रीतिर्विचारयति
Upayogam tu na preetirvichaarayati
Love does not consider use or benefit.
अतिरोषणश्चक्षुष्मानप्यन्ध एव
Atiroshanashchakshushmaanapyandha eva janah
The angry person, though possessing eyes, is blind.
न सन्त्येव ते येषां सतामपि न विद्यन्ते मित्रोदासीनशत्रवः
Na santyeva te yeshaam sataamapi sataam na vidyante mitrodaaseenashatravah
There are no such persons who do not have friends, enemies or neutrals even though such persons possess good qualities.
उपयोगं तु न प्रीतिर्विचारयति
Upayogam tu na preetirvichaarayati
Love does not consider use or benefit.
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
⛅ 🚩तिथि - सप्तमी दोपहर 12:51 तक तत्पश्चात अष्टमी
⛅ दिनांक - 19 मई 2021
⛅ दिन - बुधवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - ग्रीष्म
⛅ मास - वैशाख
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - अश्लेशा शाम 03:48 तक तत्पश्चात मघा
⛅ योग - ध्रुव 20 मई रात्रि 01:10 तक तत्पश्चात व्याघात
⛅ राहुकाल - दोपहर 12:35 से दोपहर 02:14 तक
⛅ सूर्योदय - 06:00
⛅ सूर्यास्त - 19:10
⛅ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
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⛅ योग - ध्रुव 20 मई रात्रि 01:10 तक तत्पश्चात व्याघात
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⛅ सूर्यास्त - 19:10
⛅ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
https://youtu.be/Ibh4h4skNMA
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes sanskrit news.
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Vaarta: Daily Sanskrit news bulletin | 19.5.2021