धर्म ज्ञान : जय श्री राम
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सत्य पंथ का करी प्रचारा॥
देश धर्म का करि विस्तारा ||
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फरवरी 5, 2025 ईस्वी आज का दिन आप, आपके परिवार, आपके कुटुम्ब तथा आपके इष्ट मित्रों के लिए शुभ,सफल और मंगलमय हो।
।। ॐ सुभाषित ॐ ।।
नाश्चर्यमिदं विश्वं न किंचिदिति निश्चयी।
निर्वासनः स्फूर्तिमात्रो न किंचिदिव शाम्यति॥
अनेक आश्चर्यों से युक्त यह विश्व अस्तित्वहीन है, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला, इच्छा रहित और शुद्ध अस्तित्व हो जाता है। वह अपार शांति को प्राप्त करता है।
जय श्री गणेश
जय श्री राम
*..अच्छा और खराब स्वयं होता है..*

आप कहते हैं कि मन बड़ा खराब है, पर वास्तवमें मन अच्छा और खराब होता ही नहीं। अच्छा और खराब स्वयं ही होता है। स्वयं अच्छा होता है तो संकल्प अच्छे होते हैं और स्वयं खराब होता है तो संकल्प खराब होते हैं। अच्छा और खराब ये दोनों ही प्रकृतिके सम्बन्धसे होते हैं। प्रकृतिके सम्बन्धके बिना न अच्छा होता है और न बुरा होता है। जैसे सुख और दुःख दो चीज हैं, पर आनन्दमें दो चीज नहीं हैं अर्थात् आनन्दमें न सुख है, न दुःख है। ऐसे ही प्रकृतिके सम्बन्धसे रहित तत्त्वमें न अच्छा है, न बुरा है। इसलिये अच्छे और बुरेका भेद करके राजी और नाराज न हों।

संकल्प आयें अथवा जायँ, उसमें पहलेसे ही यह विचार कर लें कि वास्तवमें संकल्प आता नहीं है, प्रत्युत जाता है। भूतकालमें हमने जो काम किये हैं, उनकी याद आती है अथवा भविष्यमें कुछ करनेका विचार पकड़ रखा है, उसकी याद आती है कि वहाँ जाना है, वह काम करना है आदि। इस तरह भूत और भविष्यकी याद आती है, जो अभी है ही नहीं। वास्तवमें उसकी याद आ नहीं रही है, प्रत्युत स्वतः जा रही है। मनमें जो बातें जमी हैं, वे निकल रही हैं। अतः आप उससे सम्बन्ध मत जोड़ें, तटस्थ हो जायँ। सम्बन्ध नहीं जोड़नेसे आपको उन संकल्पोंका दोष नहीं लगेगा और वे संकल्प भी अपने-आप नष्ट हो जायँगे; क्योंकि उत्पन्न होनेवाली वस्तु स्वतः नष्ट होती है- यह नियम है।
आपने एक बात नोट की है? जब भी कोई विपत्ति आती है तो जिन्हें आप सेलिब्रेटी समझते हैं वे पहले गायब होते हैं। कुंभ में हुई दुर्घटना के बाद अगले चार दिन में न खूबसूरत अदाओं वाले इन्फ्लुएंसर, न जनता की आवाज होने का दावा करने वाले पत्रकार सहायता के लिए कहीं दिखे, न नेता न अभिनेता, न बुद्धिजीवी न सोशल मीडिया से लेकर अन्य क्षेत्रों के गाल बजाने वाले मठाधीश, दिखे तो केवल वे अनाम चेहरे जिन्हें आप जानते नहीं थे। उन्होंने सेवा की और अपने राह हो लिए।

तत्वज्ञ वेदस्य, अरविंद पटेल, सुमित शर्मा, बालेंदु शुक्ला, सिद्धांत पाठक समेत जाने कितने नाम हैं जिन्होंने सेवा में दिन रात एक कर दिया, ये असली हीरो हैं जिन्हें मीडिया कवर नहीं कर पाई बल्कि यूं कहें कि कवर करना नहीं चाहती। इसका कारण लोगों की कृतघ्नता भी है, उन्हें मसाला चाहिए, मनोरंजन चाहिए इसलिए कुंभ से सेवा की, करुणा की, धर्म की खबरें गायब हैं और ऊल जलूल बातों से सोशल मीडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पटा पड़ा है। जिन्होंने कुछ नहीं किया, केवल बॉल इधर से उधर पास की वह मीडिया मैनेजमेंट के चलते लाइम लाइट में आए, जिन्होंने कोसोवाद चलाया वह कुंभ चिंतक बने, जिन्होंने सहायता करने वालों का मनोबल गिराया वह मीडिया में कुंभ के चेहरे बने।

आपको तय करना है कि आपकी प्राथमिकता क्या है? जो चाहोगे, मिलेगा वही। अपनी "पहचान का विवेक" जागृत करिए।

जय गंगा माई
तल्खी बढ़ाने में अखिलेश कांग्रेस को भी मात दे रहे हैं।राहुल का निशाना मोदी हैं तो अखिलेश का योगी।सच है,दोनों की अपनी अपनी मजबूरियाँ हैं।राहुल को दिल्ली की सल्तनत वापस चाहिए और अखिलेश को लखनऊ की नवाबी। राहुल ने तो कईं बार चरम पर जाकर देख लिया,कितना हाथ लगा वे भी जानते हैं और कांग्रेस भी।अखिलेश की तैयारी इस बार चरम पर जाने की है। जहाँ तक देश की जनता का सवाल है, उसने देश का चरम भी देख लिया,अब दो वर्ष बाद लखनऊ का भी देख लेगी।

फिलहाल प्रयाग कुंभ को लेकर तलवारें खिंची हैं।चूंकि संसद का सत्र चल रहा है,अतः कुश्ती दिखाने का मौका मिल गया।विपक्ष कुंभ की आड में केंद्र और उत्तर प्रदेश को निकम्मा साबित करना चाहता है।अखिलेश कुंभ हादसे की जमीन पर 2027 साधना चाहते हैं। सामान्य बात है।राजनीति में जो लोग हैं उनका अंतिम मकसद सत्ता प्राप्ति ही तो होता है।सत्ता मिल भी जाती है।

असल कहानी सत्ता मिलने के बाद शुरू होती है।कुछ लोग सत्ता में आकर उलझनें सुलझाते हैं,विकास यात्रा प्रारंभ करते हैं,सत्ता के माध्यम से सेवा प्रकल्प चलाते हैं।कुछ लोग ऐसे हैं जो सत्ता के माध्यम से देश को लूटकर खाते हैं।अब यह आप स्वयं पहचानिए कि कौन वैसा है और कौन ऐसा ?

संसद के सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने विपक्ष को खूब धोया।पर एक बात है, कुंभ में हुए हादसे पर मृतकों को श्रद्धांजलि देने में क्या हर्ज था ?मृतकों और घायलों की संख्या बता दी जाती तो क्या गलत हो जाता ?आखिर विश्वभर को कुंभ ने आकर्षित किया है।

कांग्रेस को भी याद रखना चाहिए। 1986 में कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह की सरकार थी जब हरिद्वार कुंभ हादसा हुआ था,दर्जनों मरे थे और सैकड़ों के बारे कहा गया था कि उन्हें बहा दिया गया है।2013 में हरीश रावत और मनमोहन सिंह यानि सोनिया गांधी की सरकार थी जब केदारनाथ हादसे में हजारों श्रद्धालु मारे गए थे,हजारों बह गए थे,सैकड़ों परिवार आज भी अपने परिजनों को ढूंढते फिरते हैं।अखिलेश के तो माथे पर ही कार सेवकों की हत्याओं का महापाप लिखा हुआ है।

प्रयाग में बेहद दुखदाई हादसा हुआ है, बहुत से श्रद्धालु हताहत हुए हैं,बहुत से घायल हैं और बहुत से लापता हैं।केवल विपक्ष को ही नहीं,देश की जनता को भी मृतकों और घायलों की सूची जानने का हक है।इतनी ओपन व्यवस्था और हजारों कैमरों से युक्त डिजिटल कुंभ में कुछ छिपा पाना संभव है क्या?नहीं बिल्कुल नहीं।लोग सच्चाई जानना चाहते हैं तो बताइए,जांच की आड में छिपाना क्यों?

असल बात यह है कि ये सब हालात दस साल पहले बीजेपी के आगमन और मोदी नाम की शख्शियत से घोर नफ़रत या यूं कहें कि घृणा के कारण उत्पन्न हुए।मोदी का राष्ट्रवादी दृष्टिकोण उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल से ही कांग्रेस को हिंदूवादी दृष्टिकोण लगता था।अब कांग्रेस को राष्ट्रवादी हिन्दुत्व से कितनी घोर एलर्जी है यह सबको पता है।ऊपर से तुर्रा यह कि मोदी ने बरसों से चली आ रही जागीर लगातार तीन बार छीन ली।

एक व्यक्ति के प्रति घृणा को सभी विरोधी दलों ने गोद ले लिया।उन्हें मौत का सौदागर,चौकीदार चोर,महानीच आदि न जाने क्या क्या कहा गया।तो इतना कहेंगे तो राजनीति में प्रतिक्रिया तो होगी ही।सारे दल यदि भाजपा से दुश्मनी निभाएंगे तो मोदी भी आपके लिए थाल नहीं सजाएंगे।नतीजा सामने है।कांग्रेस एक एक कर सभी राज्यों से साफ हो रही है।यही नहीं इंडी में साथ आए दल भी डूब रहे हैं।उद्धव और शरद इसके जीवंत प्रमाण हैं।
#मौत_के_गणित!!

SI अंजनी कुमार राय की दुःखद मृत्यु कुम्भ में ड्यूटी के दौरान हुईं...
सोशल मीडिया पर लेफ़्ट विंग ने बड़ी तत्परता दिखाते हुए उनकी मृत्यु पर शोक प्रकट किया लेकिन उन्हें भगदड़ के चलते जान जाने वालों में गिन...
सच क्या था.... उनकी ड्यूटी भगदड़ वाले स्थान यानी संगम नोज़ से दो किलोमीटर दूर थी... जहाँ उन्हें दिल का दौरा पड़ा और अस्पताल ले जाया गया जहाँ उनका देहांत हुआ...

खैर लेफ़्ट जो खेला सो खेला बिना सोचे समझे राइट विंग भी उनकी कहानी को कॉपी पेस्ट करने में जुट गया
ये है एक व्यक्ति की दुःखद मृत्यु पर राजनैतिक लाभ लेने के धेय से किया गया कृत्य.... और इसे करने वालों को अगर गिद्ध की उपाधि न दें तो क्या कहें...

एक बात समझें... भारत की 150 करोड़ पार कर चुकी आबादी में मृत्यु जो एक अटल सत्य है उसे रोज 26789 प्राप्त होते हैं....
हर एक करोड़ लोगों में से 178 लोग रोज मर जाते हैं
ऐसे में अगर कुम्भ में कुल 40 करोड़ लोग पहुँच रहे हैं प्रबल संभावना है कि 7120 लोग अलग अलग करणों से इस संसार को त्याग दें.... स्वास्थ्य... स्वाभाविक आयु... या अन्य....
7120 ये आंकड़ा बेहद स्वाभाविक अनुमान है.... अगर सबकुछ सर्वश्रेष्ठ रहे तब भी.... एक भी अकाल मृत्यु न हो तब भी ये हो सकता है...
तो अगर एक दिन यानी 29-30 जनवरी की रात वहाँ हम पांच करोड़ लोगों का होना मानें... 900 लोगों का प्राण त्यागना स्वाभाविक करणों से एक सामान्य स्थिति है...

तो क्या ये सभी जानें किसी दुर्घटना... किसी व्यवस्था की कमी के माथे मढ़ दी जायेंगी....
ये अपने घरों में होते तब भी ये होता...

उस रात संगम नोज पर 30 लोग दुःखद मृत्यु को प्राप्त हुए... निश्चय ही मेला क्षेत्र.... प्रयागराज में तमाम अन्य लोगों ने भी प्राण तजे होंगे.... उनमें से कई को परिजन सीधे अपने घर ले गए होंगे... कई को अस्पताल और फिर वहाँ से घर...
इनमें कुछ ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो स्वाभाविक मृत्यु को दुर्घटना से जोड़ मरा हाथी सवा लाख की जुगत भिड़ाने वाले हों...
थोड़ी कड़वी बातें हैं पर सत्य को स्वीकारिये...

संगम नोज पर उस रोज 30 लोगों की दुःखद मृत्यु हुईं.... और सरकार द्वारा उसकी विधिवत स्वीकृति भी हुईं...
इसके अलावा प्रयागराज में 100KM दायरे में हुईं किसी भी मौत को इस घटना से जोड़ आंकड़े प्रस्तुत करना सिर्फ राजनैतिक गिद्धता है...
हाँ सम्भावना है की अस्पताल में इससे ज्यादा लाशें हों... संभावना है कि उस दिन ज्यादा मौत हुईं हों... पर उन्हें इस घटना से नहीं जोड़ा जा सकता...

सबसे बड़ी बात उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं.... कोई मुलायम नहीं जो राम भक्तों की हत्या करवा सरयू में फिकवा दें...
अयोध्या पञ्चाङ्ग
दिन : गुरुवार
दिनांक: 06 फरवरी 2025
सूर्योदय : 7:05 प्रात:
सूर्यास्त : 5:58 सांय
विक्रम संवत : 2081
मास : माघ
पक्ष : शुक्ल
तिथि : नवमी 10:56 रात्रि तक फिर दशमी
नक्षत्र : कृतिका 7:30 रात्रि तक फिर रोहिणी
योग : ब्रह्म 6:35 सांय तक फिर इन्द्र
राहुकाल : 1:53 - 3:15 अपराह्न तक
श्री अयोध्या नगरी
जय श्री राम
फरवरी 6, 2025 ईस्वी आज का दिन आप, आपके परिवार, आपके कुटुम्ब तथा आपके इष्ट मित्रों के लिए शुभ,सफल और मंगलमय  हो।
।। ॐ सुभाषित ॐ ।।
सिंहवत्सर्ववेगेन पतन्त्यर्थे किलार्थिनः॥
जो कार्य संपन्न करना चाहते हैं, वे सिंह की तरह अधिकतम वेग से कार्य पर टूट पड़ते हैं।
जय श्री हरिविष्णु
जय श्री राम
फरवरी 6, 2025 ईस्वी आज का दिन आप, आपके परिवार, आपके कुटुम्ब तथा आपके इष्ट मित्रों के लिए शुभ,सफल और मंगलमय हो।
।। ॐ सुभाषित ॐ ।।
असतो मा सदगमय ॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥
हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले जाओ। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाओ। मुझे मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाओ।
जय श्री हरि
जय श्री राम
जैसे एक गृहस्थ
व्यक्ति का अपने पूरे परिवार के साथ सम्बन्ध रहता है।
वैसे ही परमात्मा का भी
पूरे संसार के साथ सम्बन्ध है।
संसार में भले या बुरे श्रेष्ठ या निकृष्ट कैसे ही प्राणी क्यों न हों
पर परमात्मा का सम्बन्ध सबके साथ समान ही होता है।
समोऽहं सर्वभूतेषु ||
भगवान कहते हैं कि
प्राणियों के साथ ही नहीं
परिस्थितियाँ अवस्थाओं घटनाओं आदि के साथ भी एक समान सम्बन्ध है।
अब आप ध्यान दें कि
किसी व्यक्ति में यदि विशेष योग्यता है तो क्या उसके साथ परमात्मा का विशेष सम्बन्ध है ?
नहीं है।
उसमें जो विशेषता प्रतीत होती है वह सांसारिक दृष्टि से ही है।
परमात्मा का तो सबके साथ सम्बन्ध है उस सम्बन्ध में कभी कमी या अधिकता नहीं होती।
अतः किसी गुण योग्यता या विशेषता से हम परमात्मा को प्राप्त कर लेंगे
तो यह बात संसार की विशेषता या महत्ता को लेकर की जाती है।
यदि संसार से विमुख होकर देखें तो सब-के-सब परमात्मा को प्राप्त करने के अधिकारी हैं।
सांसारिक दृष्टि से जितनी योग्यता विलक्षणता विशेषता है वह पूरी-की-पूरी मिलकर भी परमात्मा को खरीद ले
यह बात नहीं है। जय श्री हरि विष्णु जी 🙏🙏🌹🌹
सच्चिदानंद
सत+चित+आनन्द
1: सत्
तीनो कालों में जो अबाधित है उसको "सत" कहते हैं।
तीनो अवस्थाऐ अर्थात् जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति बदलती हैं मगर उसके जानने वाला साक्षी सदा रहता है।
भूत, भविष्य, वर्तमान काल बदलता रहता है मगर उसको जानने वाला अपरिवर्तनशील है।
काल नित्य है।
ब्रह्म काल की अपेक्षा सूक्ष्म और काल से भी पहले है।
2: चित्त
अलुप्त प्रकाश या ज्ञान सम्पूर्ण शान के समान वृत्तियों के मूल में ज्ञान स्वरूप सत्ता।
3: आनन्द
सर्व से अधिक प्रीति का जो विषय है उसको आनन्द कहते हैं सम्पूर्ण सुखों का स्रोत है आनन्द माने सुख या दुःख की आत्यान्तिक निवृत्ति।
भौतिक पदार्थ क्षनिक सुख दे सकता है मगर आनन्द तो आत्मा के सिवाय कोई प्रदान नही कर सकता।
3: आनन्द
आनंद स्त्रोत बह रहा है।
पर तू उदास है।
अचरज है
जल में रहकर मछली को प्यास है।
परमात्मा जो आनन्द स्वरूप है।
परम प्रेमास्पद है
वह हमारी हृदय गुफा में छिपा है।
उसकी खोज हम मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा में करते हैं।
जहाँ वह है वहाँ झांकने की हमें फुरसत नही है।
आत्मा का आनन्द परम शान्ति की एक बार झलक मिल जाए तो संसार के सभी सुख तुच्छ लगते हैं।
जिसके हाथ पारसमणि आ गया वह लोहे का संग क्यो करेगा ?
फरवरी 6, 2025 ईस्वी आज का दिन आप, आपके परिवार, आपके कुटुम्ब तथा आपके इष्ट मित्रों के लिए शुभ,सफल और मंगलमय हो।
।। ॐ सुभाषित ॐ ।।
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् ।
तथा पुरूषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ।।
जिस प्रकार एक पहिए से रथ नहीं चलता,उसी प्रकार विना पुरूषार्थ किए भाग्य नहीं फलता ।
जय श्री हरि
जय श्री राम
#mahakumbh2025 = एकोन्मुख

कुंभ में आज भी न केवल करोड़ों भारतीयों ने डुबकी लगाकर इसका मान बढ़ाया बल्कि अब वैश्विक स्तर पर यह व्यापक चर्चा का विषय बन चुका है।

प्रयागराज का यह कुंभ अब धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ रहा है अतः पुनः इसका आध्यात्मिक आधिभौतिक और आधिदैविक रूप देख लिया जाये।

पौराणिक कथा से कुंभ और अमृत का पुनः स्मरण कर लिया जाये।

ऋषि दुर्वासा के गले में एक माला था और उन्होंने वह माला इंद्र के गले में डाल दी।इंद्र को लगा कि मैं सबसे ऐश्वर्यवान मैं किसी गंदे संदे कपड़ा पहने व्यक्ति की माला क्यों पहनूँ ?

उसने वह माला ऐरावत के गले में डाल दी।और ऐरावत ने अपने सूँड़ से माला खींची और अपने पैरों तले रौंद दिया। और यह सब एक पलक झपकते हो गया।

दुर्वासा जी को लगा कि ऐश्वर्य का यह अभिमान ?तो शाप दे दिया कि तुम्हारा ऐश्वर्य नष्ट हो जाये और अगले ही पल ऐरावत भी समुद्र में लीन हो गया।

अब देवता घबराये।भागे भागे ब्रह्मा जी के पास पहुँचे।#ब्रह्मा अर्थात् हमारा अंतःकरण ( मन बुद्धि चित्त अहंकार ) ।

और ब्रह्मा जी ने कहा कि इस समस्या का हल “ #व्यापक_दृष्टिकोण “ से ही हो सकता है।व्यापक दृष्टिकोण अर्थात् विष्णु।

अब देखा जाये कि इंद्र भी तब तक नारायण की शरण में नहीं जाता है जब तक उसे चोंट न लगें जैसे हम सभी मनुष्य अपनी इंद्रिय सुख में लगे रहते हैं और जब चोंट लगती है तब भगवान याद आते हैं।

श्री नारायण ने कहा कि विवेक की मथानी से कारणवारि का मंथन करना पड़ेगा।

#कारणवारि के मंथन से ही हम और आप सब उत्पन्न हुये हैं ।सूक्ष्म रूप से वीर्य और रज का मंथन ही सभी जीव जंतुओं वनस्पतियों की उत्पत्ति का कारण है।

विवेक का प्रतीक मंदराचल और सभी प्रकार की शक्तियों को ( सतो गुणी , रजो गुणी और तमों गुणी ) को इकट्ठा किया गया।

विवेक ( मंदराचल ) समाधिस्थ न हो जाये ( डूब न जाये ) तो श्री भगवान ने कच्छप का सहारा दिया अन्यथा विवेक या डूब सकता था ( समाधिस्थ) अथवा छोटी छोटी बातों में उछलने लगता।

और यहां तक कि कपट तक का सहारा लिया गया।देवतागण,बलि के सम्मुख निशस्त्र होकर गये,सहायता मांगने और गठबंधन करने के लिये।ध्यान रहे कि देवता जब गठबंधन कर रहे थे तब भी उन्हें पता था कि अंततः इन दैत्यों को हम अमृत नहीं पीने देंगे।

मित्रों,जीवन में अमृत प्राप्त करना है तो हमें एकोन्मुख होकर विवेक का मंथन करके हुये सनातन धर्म की रक्षा करनी है।और उस क्रम में बहुत से ऐसे अवसर आयेंगे जब हमें असुरों से भी सहायता कुछ देर के लिये लेनी पड़ेगी।हम उस अस्थायी गठबंधन से विचलित न हों। कभी भी।
मैं इस घटना से भारत का आने वाला समय सुखद देख रहा हूं....

जब ट्रंप ने दो सौ भारतीयों का पहला जत्था अमेरिका से भारत रवाना कर दिया है। जो कि आज दिल्ली आ पहुंचे। ये लोग भारत में पारिवारिक जायदाद की खेती बाड़ी दुकान मकान बेचकर, एजेंटों को लाखों रुपए देकर और अनेक कष्ट सहकर मैक्सिको के रास्ते ऊंची बाड़ फांदकर अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचे थे.......

फिर अवैध तो अवैध है।
चाहे देश मे हो या कोई और देश में हो...

इनके जैसे कुल अठारह हज़ार तो पहली खेप में सौंपे जाने हैं, वैसे लाखों हैं और अधिकांश गुजरात व पंजाब से वहां गये हैं.....

और घुसपैठियों के निष्कासन का अमेरिका द्वारा उठाया गया कदम भारत के अवैध घुसपैठीयों को देश के बहार करने का निश्चय ही मार्ग प्रशस्त करेगा...
*साभार..


जो लोग 40-50 लाख देकर बॉर्डर कूदकर (NRI) बन ने अमरीका गए थे .
वो अभी अमृतसर हवाई अड्डे पे पहुंच गए है ..
कृपया उनके परिवार वाले उन्हें लेने पहुंच जाए....
अहंकार
अहंकार
विमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते
आंखे देखती हैं।
अहंकार मूर्छित हम मानते हैं।
हम देखते हैं।
सारा उपद्रव उसी के कारण है।
देखने वाले की जगह
हम दिखने वाले हो जायें
तो कुछ संभावना है।
इसमें भी एक बाधा है
तब हम बाहर से अपने को देखने लगते हैं।
जब हम दिखते हैं तब स्वयं के रुप में दीखते हैं।
स्वयं द्वारा स्वयं अनुभव रुप होते हैं।
यह बाहर से अलग खडे होकर स्वयं को देखना नहीं है।
यह वैसा ही है
जैसे हम दर्पण में अपना प्रतिबिंब तो देखें परंतु उसी में अटके न रह जायें।
उल्टे कदम लौटें अपनी तरफ
और अपने आपको प्राप्त हो जायें।
तब प्रतिबिंब दिखना बंद हो जायेगा।
ऐसा जो प्रतिबिंम्ब रहित द्रष्टा है
वह अपने होने के अर्थ में शाश्वत सत्य है।
या तो उल्टे कदम वापस अपनी तरफ आ जायें और हृदय में स्रोत में समाहित हो जायें।
या फिर अपने दृश्य रूप को देखना सीख जायें।
हम किसी को देखकर नाराज होते हैं।
और किसी को देखकर खुश होते हैं।
अब उसे देखना बंद करें।
उससे कोई समाधि लगने वाली नहीं है।
आवरण और विक्षेप बने रहेंगे।
अब हम नाराज या खुश अपने आपको देखें-द्रष्टा रुप में कर्तारुप में नहीं अपितु दृश्य रुप में।
हम नाराज या खुश द्रष्टा नही हैं।
हम नाराज या खुश दृश्य हैं।
दूसरे को हम ऐसा ही तो दिखते हैं।
तो हम अपने आपको भी वैसे ही दीखें।
हम उसी रुप में बने रहें।
यह हमारा दृश्य रुप है।
हमने देह से मन से चित्त की तमाम वृत्तियों से तादात्म्य किया हुआ है।
ये सब दृश्य हैं
इसलिए इनके साथ हम भी दृश्य हैं।
द्रष्टा होकर अलगाव रखते हुए अपने को नहीं देखना है अपितु दृश्य रुप में स्वयं को अनुभव होने देना है जानते रहना है।
यह अपने घर लौट आना है।
यह स्रोत या स्वरुप में समाहित होने की शुरुआत है।
आपकी सच्ची मुसकान भी उसी दिन निकलेगी होठों से दिल खोलकर आप हंस पायेंगे जिस दिन आप दृश्यरूप होकर स्वयं को प्राप्त हो जायेंगे।
क्षेत्र ऊपर ऊपर रह जायेगा भीतर आप क्षेत्रज्ञ को उपलब्ध हो जायेंगे जो आपका सच्चा स्वरुप है।
जो हर व्यक्ति का सच्चा स्वरुप है जब तक चित्त बहिर्मुखी है यह संभव न होगा।
प्रत्येक इंद्रिय आंख कान आदि के विषय में रागद्वेष-अनुकूलता और प्रतिकूलता को लेकर स्थित हैं।
इसलिए मनुष्य रागद्वेष के वशीभूत होकर कर्म न करे।
क्योंकि ये दोनों ही उसके शत्रु हैं
हाथी के पैर में बड़ी बेड़ी उसे नहीं रोकती,बचपन से बंधी बेड़ी के कारण पैदा हुई गुलामी की मानसिकता उसे भागने से रोकती है।पालतू हाथी जब काबू से बाहर होता है और उसे पागल बताया जाता है,हाथी के नजरिए से तब उसे अपनी शक्ति का भान हो चुका होता है।
विचारधारा की गुलामी भी कुछ ऐसी ही है।

राम राम रहेगी