झारखंड में मारे गए 6 नक्सली, बोकारो के जंगलों में हुआ सुरक्षाबलों से आमना-सामना
🇮🇳⚡🇧🇩 India suspends funding for Bangladesh railway projects valued at around ₹5000 crores.
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Theives from Bangladesh caught red-handed and serviced by the locals of Tripura, near Indo-Bangladesh border.
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A Wing Commander of Indian Air Force was brutally attacked in Bangalore for not speaking Kannada.
Is it safe for non-Kannada citizens to visit for business?
How can a citizen be beaten in their own country over language?
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How can a citizen be beaten in their own country over language?
लोग कहते हैं, भाजपा पूर्ण बहुमत ले ही आई तो क्या हुआ?
बहुमत लेकर क्या उखाड़ लिया? दस साल में बहुत कुछ किया जा सकता था.
दस वर्षों में क्या क्या किया जा सकता था जो नहीं हुआ, यह कहने का आपका यार्ड स्टिक क्या है? आपकी तुलना का आधार क्या है? किसी और ने कर लिया? या कोई और कर लेता? या किसी और देश में किसी ने कर दिखाया? कोई तो आधार होगा, या सिर्फ अपनी कल्पना, विशफुल थिंकिंग ही आधार है? यूं होता तो क्या होता...
ऑब्जेक्टिवली, अगर मोदीजी न होकर वहां मैं होता तो क्या क्या कर गुजरता... (क्योंकि मैं तो दुनिया में सबसे स्मार्ट, सबसे समझदार और सबसे दूरदर्शी हूँ). पहले तो गुजरात से निकल कर दिल्ली पहुंचते तो निबटना पड़ता एक ब्यूरोक्रेसी से, जो पिछले साठ सत्तर वर्षों से व्यवस्था की लाभार्थी है. सबसे पहले तो गर्दन पकड़ कर वही आपको डुबा मारती. आपके किस विभाग में कौन से घोटाले निकल आते, आपको पता भी नहीं चलता. और फिर मीडिया उसी को खबर चला चला कर अगले चुनाव में ही हरा देती. शायद याद नहीं होगा कि बंगारू लक्ष्मण के साथ तहलका में क्या हुआ था... एक पैसे का करप्शन नहीं हुआ था लेकिन पैसे लेते हुए उनकी तस्वीरें साल भर मीडिया में घूमती रहीं.
आज दस वर्षों में ऊपर के स्तर पर करप्शन की एक भी खबर नहीं बनी है. सरकार चल रही है और ब्यूरोक्रेसी को मालूम है कि ये कहीं नहीं जाने वाले... इन्हीं से डील करना है...दस साल में इतना अचीवमेंट ही बहुत होता. उसके ऊपर जितना अचीव किया वह सब बोनस है. आतंकी हमले बंद हो गए, नक्सल हिंसा खत्म हो गई, देश कोरोना से निकल आया, यूक्रेन युद्ध का हमपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
तुलना के लिए यूके को देख रहा हूँ, कोरोना और यूक्रेन युद्ध के असर में कंजर्वेटिव पार्टी बिल्कुल साफ हो गई. लेबर आई, प्रॉपर्टी की कीमतें गिर गईं, मॉर्गेज की किश्तें दो गुनी हो गईं, महंगाई उछाल मार रही है, स्कूल और ज्यूडिशियरी जिहादियों के हाथ में चले गए. आज यूएस में डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यवस्था से खुली जंग छेड़ रखी है. पूरा देश उथल पुथल में है. उसका बड़े से बड़ा समर्थक हिल गया है. भारत में हमें जो मिला है, बिना विशेष टर्मॉयल के मिला है. यूएस में जितना हुआ है उतना टर्मॉयल आप बर्दाश्त ही नहीं करते.
अक्सर जो नहीं हुआ वह देखना संभव नहीं होता.
भाजपा ने अपने दस वर्षों में जो किया है उसका मूल्य मापना है तो इसकी तुलना में मापें कि भाजपा नहीं होती तो आज हम कहां होते. हम कहां हो सकते थे, और क्या क्या किया जा सकता था जो नहीं किया गया इसके लिए आपकी विश्फुल थिंकिंग अच्छा पैरामीटर नहीं है. जो किया जाना है, वह उन सबके बिना नहीं किया जा सकता था जो किया गया है. आप स्टेप्स A,B,C छड़प कर स्टेज D,E नहीं जा सकते थे. और जितना हुआ है वह अपने आप नहीं हो गया है. उसको करने में समय और श्रम लगा है. आपको वह "बेसिक मिनिमम" लग सकता है, लेकिन बेसिक मिनिमम भी अपने आप नहीं हो जाता.
फिर भी, भारत की अवस्था में एक यूनिक बात है... हमारे पास समय सीमित है. हम डेमोग्राफी की क्राइसिस से गुजर रहे हैं. हम इसीलिए अधीर हैं. लेकिन इस सीमित समय में जो करना है उसके लिए सत्ता में बने रहना पहली शर्त है. जिस किसी को लगता है कि मोदी को हटा देंगे तो कोई और आकर उनके सपने पूरे कर देगा वह या तो मूर्ख है या जान बूझकर झूठ बोल रहा है. हमें जो मांगना है, मोदी की सरकार से ही मांगना है. और अगर कुछ किया जाना संभव है तो मोदी की ही सरकार से मिलेगा. यह मोदी भक्ति नहीं है, व्यावहारिक आकलन है.
राजीव मिश्राजी द्वारा
बहुमत लेकर क्या उखाड़ लिया? दस साल में बहुत कुछ किया जा सकता था.
दस वर्षों में क्या क्या किया जा सकता था जो नहीं हुआ, यह कहने का आपका यार्ड स्टिक क्या है? आपकी तुलना का आधार क्या है? किसी और ने कर लिया? या कोई और कर लेता? या किसी और देश में किसी ने कर दिखाया? कोई तो आधार होगा, या सिर्फ अपनी कल्पना, विशफुल थिंकिंग ही आधार है? यूं होता तो क्या होता...
ऑब्जेक्टिवली, अगर मोदीजी न होकर वहां मैं होता तो क्या क्या कर गुजरता... (क्योंकि मैं तो दुनिया में सबसे स्मार्ट, सबसे समझदार और सबसे दूरदर्शी हूँ). पहले तो गुजरात से निकल कर दिल्ली पहुंचते तो निबटना पड़ता एक ब्यूरोक्रेसी से, जो पिछले साठ सत्तर वर्षों से व्यवस्था की लाभार्थी है. सबसे पहले तो गर्दन पकड़ कर वही आपको डुबा मारती. आपके किस विभाग में कौन से घोटाले निकल आते, आपको पता भी नहीं चलता. और फिर मीडिया उसी को खबर चला चला कर अगले चुनाव में ही हरा देती. शायद याद नहीं होगा कि बंगारू लक्ष्मण के साथ तहलका में क्या हुआ था... एक पैसे का करप्शन नहीं हुआ था लेकिन पैसे लेते हुए उनकी तस्वीरें साल भर मीडिया में घूमती रहीं.
आज दस वर्षों में ऊपर के स्तर पर करप्शन की एक भी खबर नहीं बनी है. सरकार चल रही है और ब्यूरोक्रेसी को मालूम है कि ये कहीं नहीं जाने वाले... इन्हीं से डील करना है...दस साल में इतना अचीवमेंट ही बहुत होता. उसके ऊपर जितना अचीव किया वह सब बोनस है. आतंकी हमले बंद हो गए, नक्सल हिंसा खत्म हो गई, देश कोरोना से निकल आया, यूक्रेन युद्ध का हमपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
तुलना के लिए यूके को देख रहा हूँ, कोरोना और यूक्रेन युद्ध के असर में कंजर्वेटिव पार्टी बिल्कुल साफ हो गई. लेबर आई, प्रॉपर्टी की कीमतें गिर गईं, मॉर्गेज की किश्तें दो गुनी हो गईं, महंगाई उछाल मार रही है, स्कूल और ज्यूडिशियरी जिहादियों के हाथ में चले गए. आज यूएस में डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यवस्था से खुली जंग छेड़ रखी है. पूरा देश उथल पुथल में है. उसका बड़े से बड़ा समर्थक हिल गया है. भारत में हमें जो मिला है, बिना विशेष टर्मॉयल के मिला है. यूएस में जितना हुआ है उतना टर्मॉयल आप बर्दाश्त ही नहीं करते.
अक्सर जो नहीं हुआ वह देखना संभव नहीं होता.
भाजपा ने अपने दस वर्षों में जो किया है उसका मूल्य मापना है तो इसकी तुलना में मापें कि भाजपा नहीं होती तो आज हम कहां होते. हम कहां हो सकते थे, और क्या क्या किया जा सकता था जो नहीं किया गया इसके लिए आपकी विश्फुल थिंकिंग अच्छा पैरामीटर नहीं है. जो किया जाना है, वह उन सबके बिना नहीं किया जा सकता था जो किया गया है. आप स्टेप्स A,B,C छड़प कर स्टेज D,E नहीं जा सकते थे. और जितना हुआ है वह अपने आप नहीं हो गया है. उसको करने में समय और श्रम लगा है. आपको वह "बेसिक मिनिमम" लग सकता है, लेकिन बेसिक मिनिमम भी अपने आप नहीं हो जाता.
फिर भी, भारत की अवस्था में एक यूनिक बात है... हमारे पास समय सीमित है. हम डेमोग्राफी की क्राइसिस से गुजर रहे हैं. हम इसीलिए अधीर हैं. लेकिन इस सीमित समय में जो करना है उसके लिए सत्ता में बने रहना पहली शर्त है. जिस किसी को लगता है कि मोदी को हटा देंगे तो कोई और आकर उनके सपने पूरे कर देगा वह या तो मूर्ख है या जान बूझकर झूठ बोल रहा है. हमें जो मांगना है, मोदी की सरकार से ही मांगना है. और अगर कुछ किया जाना संभव है तो मोदी की ही सरकार से मिलेगा. यह मोदी भक्ति नहीं है, व्यावहारिक आकलन है.
राजीव मिश्राजी द्वारा
यूपी में पहली बार किसी अपराधी की प्रॉपर्टी सरकार के नाम हो गई
दुबई में बैठे शारिक साठा की 2.31 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी संभल की जिला अदालत ने सरकार को दे दी है
शारिक साठा पर संभल हिंसा की साजिश रचने का आरोप है
दुबई में बैठे शारिक साठा की 2.31 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी संभल की जिला अदालत ने सरकार को दे दी है
शारिक साठा पर संभल हिंसा की साजिश रचने का आरोप है
2014 के बाद एक चीज बहुत देखी गई है.....जो भी इंसान मोदी सरकार का समर्थन करता है, या भारत की अच्छाईयों की बात करता है... उसे गोबरभक्त बोल दिया जाता है.
खासकर मिडिल ईस्ट के देशों के लोग, जो सोशल मीडिया पर हैं (उनमे से भतेरी भारतीय मूल के लोगों की ID हैं, और ढेरों Fake भी हैं ).... उनका एक pet डायलाग है.... कि भारत के लोग तो गोबर खाते हैं.
लेकिन सच इसका एकदम उल्टा है.
मिडिल ईस्ट और अरब के देश हर साल कई सौ करोड़ का गाय का गोबर भारत से import करते हैं.... और कोई छोटे मोटे अनजान देश नहीं... सऊदी अरब, UAE, कतर जैसे देशों की बात हो रही है.
अब आप पूछेंगे कि ये भला गोबर क्यों import करते हैं?
क्यूंकि इन देशों ने research करके पता लगाया ( whatsapp news नहीं है, बाकायदा Research paper छपे हैं) कि गाय के गोबर का उपयोग करने से खजूर की खेती अच्छी होती है.. Yeild बढ़ जाती है.... इसलिए भारत से गोबर मंगा कर उसे सुखा कर उसका पाउडर बना कर खजूर के पेड़ की जड़ो में डाला जाता है.
फिर खजुर बनता है... जिसे बड़े ही चाव से खाया जाता है.
मतलब साफ है... हम इंडिया के लोग गोबर नहीं खाती... तुम खाती 🤣🤣
खासकर मिडिल ईस्ट के देशों के लोग, जो सोशल मीडिया पर हैं (उनमे से भतेरी भारतीय मूल के लोगों की ID हैं, और ढेरों Fake भी हैं ).... उनका एक pet डायलाग है.... कि भारत के लोग तो गोबर खाते हैं.
लेकिन सच इसका एकदम उल्टा है.
मिडिल ईस्ट और अरब के देश हर साल कई सौ करोड़ का गाय का गोबर भारत से import करते हैं.... और कोई छोटे मोटे अनजान देश नहीं... सऊदी अरब, UAE, कतर जैसे देशों की बात हो रही है.
अब आप पूछेंगे कि ये भला गोबर क्यों import करते हैं?
क्यूंकि इन देशों ने research करके पता लगाया ( whatsapp news नहीं है, बाकायदा Research paper छपे हैं) कि गाय के गोबर का उपयोग करने से खजूर की खेती अच्छी होती है.. Yeild बढ़ जाती है.... इसलिए भारत से गोबर मंगा कर उसे सुखा कर उसका पाउडर बना कर खजूर के पेड़ की जड़ो में डाला जाता है.
फिर खजुर बनता है... जिसे बड़े ही चाव से खाया जाता है.
मतलब साफ है... हम इंडिया के लोग गोबर नहीं खाती... तुम खाती 🤣🤣
भाजपा के नॉन यादव की ही तर्ज़ पर अखिलेश यादव नॉन ठाकुर वोट बैंक पर राजनीति करना चाहते हैँ..
बिना संदेह उत्तर प्रदेश का 2014, 2017, 2019 चुनाव जातिय गणित को तोड़ कर हुआ और जीता गया...
लेकिन भाजपा ने उम्मीद के विपरीत 2022 जूनाव में पुनः इस भूत को जिंदा कर दिया...
नतीजा अखिलेश को पूर्वांचल में भरपूर फायदा हुआ..
गोरखपुर और मिर्ज़ापुर डिवीज़न के अलावा लगभग हर जगह कांटे का मुकाबला और बराबरी की सीटें सपा ले गयी.. अयोध्या और आजमगढ़ डिवीज़न में तो पटकने में भी कामयाब रहे..
इसके उलट जिस पश्चिम और मध्य UP से उम्मीद ज्यादा थीं वहाँ मुरादाबाद और सहारनपुर डिवीज़न के अलावा कहीं बड़ी सफलता हाथ आयी नहीं....
ख़ास कर सेंट्रल UP जो सपाई गढ़ माना जाता है यहाँ सपा को तगड़ा झटका लगा...
ऐसा तब हुआ जब मुस्लिम और यादव वोट बिलकुल एकतरफा अखिलेश को मिला.... इससे पूर्व कभी ऐसा नहीं हुआ था जब 85% से ऊपर यादव वोट सपा को मिला हो खुद मुलायम 65% तक ही पाते थे...
लेकिन फिर भी हार ही हाथ आयी सेंट्रल UP में...
ऐसे में नये ध्रुविकरण की दरकार हुईं.... 2024 में लोकसभा में अपने पुराने वफ़ादार राजपूत क्षत्रप और कुछ टिकट वितरण में मुस्लिम यादव को दरकिनार कर अखिलेश ने समीकरण बनाया....
पूर्वांचल में सफलता और बढ़ गयी....25 में से 14 सीट हाथ आयी बुंदेलखंड भी फ़तेह रहा और रुहेलखण्ड भी
सेंट्रल भी ट्रेक पर आगया
लेकिन पश्चिम ने फिर गच्चा दे दिया... यहाँ भाजपा भारी रही.... 17 में 11 पर सफल हुईं..
और ये पश्चिम सिर्फ एक फार्मूले से सफल होगा.... दलित वोट...
अगर दलित वोट भाजपा और बसपा से टूटता है... सपा जीतेगी...
सारी कावायद उसी की है...
अगर आज विधानसभा चुनाव हो पूर्वांचल और बुंदेलखंड में अखिलेश बढ़त पर है..... हाँ सेंट्रल और रुहेलखण्ड में मामला बराबरी का है...
लेकिन पश्चिम की मुस्लिम बहुल सीट छोड़ अन्य पर अखिलेश आज भी कमजोर है.... यहाँ हार है
और इनके बिना आप बहुमत को छू नहीं सकते...
भाजपा लड़खड़ाते हुए भी सरकार बचा लेगी...
अब दलित वोट क्या टूटेगा??
ये दो बातों पर निर्भर करेगा...
1. बहन जी क़िस तरह 2027 के रण में अपना हाथी हाँकतीं हैँ
2. योगी समर्थक अतिवादी कितना अखिलेश के लिए राह आसान करते हैँ...
गोरखपुर से दिल्ली बिना लखनऊ रुके आप नहीं पहुंच सकते....!
Ajai Singh Talk
बिना संदेह उत्तर प्रदेश का 2014, 2017, 2019 चुनाव जातिय गणित को तोड़ कर हुआ और जीता गया...
लेकिन भाजपा ने उम्मीद के विपरीत 2022 जूनाव में पुनः इस भूत को जिंदा कर दिया...
नतीजा अखिलेश को पूर्वांचल में भरपूर फायदा हुआ..
गोरखपुर और मिर्ज़ापुर डिवीज़न के अलावा लगभग हर जगह कांटे का मुकाबला और बराबरी की सीटें सपा ले गयी.. अयोध्या और आजमगढ़ डिवीज़न में तो पटकने में भी कामयाब रहे..
इसके उलट जिस पश्चिम और मध्य UP से उम्मीद ज्यादा थीं वहाँ मुरादाबाद और सहारनपुर डिवीज़न के अलावा कहीं बड़ी सफलता हाथ आयी नहीं....
ख़ास कर सेंट्रल UP जो सपाई गढ़ माना जाता है यहाँ सपा को तगड़ा झटका लगा...
ऐसा तब हुआ जब मुस्लिम और यादव वोट बिलकुल एकतरफा अखिलेश को मिला.... इससे पूर्व कभी ऐसा नहीं हुआ था जब 85% से ऊपर यादव वोट सपा को मिला हो खुद मुलायम 65% तक ही पाते थे...
लेकिन फिर भी हार ही हाथ आयी सेंट्रल UP में...
ऐसे में नये ध्रुविकरण की दरकार हुईं.... 2024 में लोकसभा में अपने पुराने वफ़ादार राजपूत क्षत्रप और कुछ टिकट वितरण में मुस्लिम यादव को दरकिनार कर अखिलेश ने समीकरण बनाया....
पूर्वांचल में सफलता और बढ़ गयी....25 में से 14 सीट हाथ आयी बुंदेलखंड भी फ़तेह रहा और रुहेलखण्ड भी
सेंट्रल भी ट्रेक पर आगया
लेकिन पश्चिम ने फिर गच्चा दे दिया... यहाँ भाजपा भारी रही.... 17 में 11 पर सफल हुईं..
और ये पश्चिम सिर्फ एक फार्मूले से सफल होगा.... दलित वोट...
अगर दलित वोट भाजपा और बसपा से टूटता है... सपा जीतेगी...
सारी कावायद उसी की है...
अगर आज विधानसभा चुनाव हो पूर्वांचल और बुंदेलखंड में अखिलेश बढ़त पर है..... हाँ सेंट्रल और रुहेलखण्ड में मामला बराबरी का है...
लेकिन पश्चिम की मुस्लिम बहुल सीट छोड़ अन्य पर अखिलेश आज भी कमजोर है.... यहाँ हार है
और इनके बिना आप बहुमत को छू नहीं सकते...
भाजपा लड़खड़ाते हुए भी सरकार बचा लेगी...
अब दलित वोट क्या टूटेगा??
ये दो बातों पर निर्भर करेगा...
1. बहन जी क़िस तरह 2027 के रण में अपना हाथी हाँकतीं हैँ
2. योगी समर्थक अतिवादी कितना अखिलेश के लिए राह आसान करते हैँ...
गोरखपुर से दिल्ली बिना लखनऊ रुके आप नहीं पहुंच सकते....!
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