दीवारों पर गोबर लगाने से कमरा ठंडा होता है? इस सवाल का AI ने क्या जवाब दिया..? और गोबर कौनसा होना चाहिए ये भी बताया
हां, दीवार पर गोबर लगाने से कमरा ठंडा हो सकता है। गोबर एक प्राकृतिक इन्सुलेटर है, जो गर्मी को कम करता है और तापमान को नियंत्रित करता है। यह खासकर गर्म जलवायु में प्रभावी है, क्योंकि इसकी तापीय चालकता कम होती है। परंपरागत रूप से, भारत में गोबर को दीवारों पर प्लास्टर के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। यह गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्मी देता है।
वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, गोबर में सेल्यूलोज रेशे होते हैं, जो इसे बेहतर इन्सुलेटर बनाते हैं। हालांकि, प्रभाव दीवार की मोटाई और लगाने के तरीके पर निर्भर करता है। आधुनिक वेदिक प्लास्टर जैसे उत्पाद भी गोबर का उपयोग करते हैं, जो ऊर्जा बचत में मदद करते हैं।
गोबर गाय का ही होना चाहिए या भैंस का भी चलेगा ? और सीमेंट की दीवार(गांवों में मिट्टी की दीवार पर गोबर लगाते थे) पर अंदर से गोबर लीपना संहि होगा या बाहर से ग्रीन नेट लगा दिया जाए ताकि धूप ही ज्यादा न लगे ? कौन सा उपाय संहि है?
गाय का गोबर पारंपरिक रूप से दीवारों के लिए बेहतर है, क्योंकि इसके इन्सुलेशन गुण अच्छे हैं और यह ज्यादा अध्ययन किया गया है। भैंस का गोबर भी काम कर सकता है, लेकिन यह कम प्रचलित है। सीमेंट की दीवार पर अंदर से गोबर-आधारित प्लास्टर, जैसे वैदिक प्लास्टर, लगाना इन्सुलेशन देता है। बाहर ग्रीन नेट लगाना धूप कम करने के लिए ज्यादा प्रभावी है। दोनों का संयोजन सबसे अच्छा है, लेकिन गर्मी कम करने के लिए ग्रीन नेट बाहर लगाना बेहतर है।
हां, दीवार पर गोबर लगाने से कमरा ठंडा हो सकता है। गोबर एक प्राकृतिक इन्सुलेटर है, जो गर्मी को कम करता है और तापमान को नियंत्रित करता है। यह खासकर गर्म जलवायु में प्रभावी है, क्योंकि इसकी तापीय चालकता कम होती है। परंपरागत रूप से, भारत में गोबर को दीवारों पर प्लास्टर के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। यह गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्मी देता है।
वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, गोबर में सेल्यूलोज रेशे होते हैं, जो इसे बेहतर इन्सुलेटर बनाते हैं। हालांकि, प्रभाव दीवार की मोटाई और लगाने के तरीके पर निर्भर करता है। आधुनिक वेदिक प्लास्टर जैसे उत्पाद भी गोबर का उपयोग करते हैं, जो ऊर्जा बचत में मदद करते हैं।
गोबर गाय का ही होना चाहिए या भैंस का भी चलेगा ? और सीमेंट की दीवार(गांवों में मिट्टी की दीवार पर गोबर लगाते थे) पर अंदर से गोबर लीपना संहि होगा या बाहर से ग्रीन नेट लगा दिया जाए ताकि धूप ही ज्यादा न लगे ? कौन सा उपाय संहि है?
गाय का गोबर पारंपरिक रूप से दीवारों के लिए बेहतर है, क्योंकि इसके इन्सुलेशन गुण अच्छे हैं और यह ज्यादा अध्ययन किया गया है। भैंस का गोबर भी काम कर सकता है, लेकिन यह कम प्रचलित है। सीमेंट की दीवार पर अंदर से गोबर-आधारित प्लास्टर, जैसे वैदिक प्लास्टर, लगाना इन्सुलेशन देता है। बाहर ग्रीन नेट लगाना धूप कम करने के लिए ज्यादा प्रभावी है। दोनों का संयोजन सबसे अच्छा है, लेकिन गर्मी कम करने के लिए ग्रीन नेट बाहर लगाना बेहतर है।
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राहुल गाँधी का यह statement सुन कर बताइये इसमें क्या गलती है 😂
सुप्रीम कोर्ट की मूर्खता का एक और नमूना देखिए।
इसके लिये आपको 2004 में लिए चलते हैं।
बेस्ट बेकरी केस की सुनवाई गुजरात के हाई कोर्ट में चल रही है। 12 अप्रैल 2004 को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए केस को मुम्बई ट्रांसफर कर दिया कि उन्हें गुजरात गवर्नमेंट पर भरोसा नहीं है। क्यों भरोसा नहीं है? क्योंकि वहाँ भाजपा की सरकार है, नरेन्द्र मोदी की सरकार है। महाराष्ट्र पर भरोसा क्यों है? क्योंकि वहाँ कांग्रेस की सरकार है।
भाई, केस की सुनवाई हाई कोर्ट करेगा या सरकार करेगी? हाई कोर्ट करेगा न? मतलब जज करेगा? वही जज जिसे आपकी कॉलेजियम ने ही नियुक्त किया है। मतलब वो आपका अपना आदमी है। तो फिर आपको उस पर भरोसा क्यों नहीं है? भई, कमाल है! खुद ही जज बनाते हो और खुद के बनाये जज पर ही भरोसा नहीं करते। तो इसका मतलब यही हुआ न कि आपका कॉलेजियम सिस्टम सही लोगों की पहचान करने में नाकामयाब रहा है। तो फिर बदल क्यों नहीं देते ऐसे घटिया कॉलेजियम सिस्टम को जो सही और गलत इंसान की पहचान ही नहीं कर पा रहा। और अगर खुद नहीं बदल पा रहे तो जो बदलना चाह रहा है और जिसके पास ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार भी है, उसे बदलने दो ना। पर ना! न खुद बदलना है, न संसद को बदलने देना है। मतलब कॉलेजियम सिस्टम न हुआ, अल्लाह का सिस्टम हो गया कि वो sacrosanct है, उसमें फेर बदल हो ही नहीं सकता।
अच्छा चलिए! शायद आप ये कहना चाह रहे हैं कि समस्या जजों के साथ नहीं है। जज तो हमने अच्छे नियुक्त किये हैं पर ये जो नरेन्द्र मोदी की सरकार है न गुजरात में वो गवाहों को influence करने का प्रयास कर रही है, उन्हें धमका रही है, उन्हें तोड़ने का प्रयास कर रही है। इसीलिए केस को मुम्बई ट्रांसफर कर रहे हैं। क्योंकि महाराष्ट्र में तो कांग्रेस की सरकार है न!
पर उससे क्या हुआ? भाजपा वालों को गवाहों को धमकाना हो तो उसके लिए मुम्बई जाने की जरूरत थोड़ी न है। गवाह तो गुजरात में ही रहेंगे न? जब गवाही देनी होगी तभी मुम्बई जायेंगे न? तो गुजरात में ही धमका देंगे। मुम्बई जा के वही कहेंगे जो भाजपा वाले उन्हें कहने को कहेंगे। और ऐसा तो है नहीं कि मुम्बई में भाजपा के लोग नहीं हैं, वहाँ भी हैं। तो वो भी अलग से धमका देंगे गवाहों को। काम हो जाएगा।
क्या कहा? भाजपा वाले ऐसा नहीं कर पायेंगे। क्यों? क्योंकि आप गवाहों को मुम्बई भेज देंगे। अब वो वहीं रहेंगे, केस का फैसला आने तक। पर भाई साहब! आपको पता है न कि अभी अप्रैल का महीना चल रहा है। और मात्र छह महीने के बाद, यानि कि अक्टूबर 2004 में, महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। तो उस समय अगर भाजपा जीत गई तो? महाराष्ट्र में भी भाजपा की सरकार बन गई तो? तो फिर कहाँ ट्रांसफर करेंगे केस को? कर्नाटक में? पर मई 2004 में तो कर्नाटक में भी चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में अगर वहाँ भी पहले से भाजपा की सरकार हुई तो? कहाँ ट्रांसफर करेंगे? केरल में? हाँ, ये ठीक रहेगा, क्योंकि केरल में भाजपा के सत्ता में आने का अभी दूर दूर तक कोई सीन नहीं है। तो मुम्बई क्यों? अभी से ही केरल ट्रांसफर कर दीजिये केस को! कोई टेंशन ही नहीं रहेगी। वहाँ या तो LDF आयेगी या UDF, BJP का कोई चाँस ही नहीं है।
मतलब सोचिये! कितना हास्यास्पद था, सुप्रीम कोर्ट द्वारा बेस्ट बेकरी केस को गुजरात से बाहर महाराष्ट्र ट्रांसफर करने का फैसला। तर्कशून्य! मतलब इन्होंने जस्टिस डिलीवर करने के लिए ऐसा process बनाया हुआ है जो इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ सरकार किसकी है। मतलब इन्हें अपने judges पर, अपने processes पर ही भरोसा नहीं है। क्या ऐसी कल्पना की थी हमारे संविधान निर्माताओं ने कि इधर का केस उधर करो, उधर का केस इधर करो। तभी न्याय मिलेगा।
और ये बेस्ट बेकरी का केस कोई एक्सेप्शन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ऐसा अक्सर करता रहता है। खास कर भाजपा शासित राज्यों में। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन "फर्जी" मुठभेड़ मामले की सुनवाई भी, जिसमें CBI ने गुजरात के पूर्व मंत्री अमित शाह को आरोपी बनाया था, मुंबई स्थानांतरित कर दी थी। पर अक्टूबर 2014 में महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गई। इससे पहले कि सुप्रीम कोर्ट उस केस को किसी ओर राज्य में ट्रांसफर करने की सोचे, दिसंबर 2014 में CBI कोर्ट ने अमित शाह को इस मामले से बाइज़्ज़त बरी कर दिया।
करते रहिये ट्रांसफर!
इसके लिये आपको 2004 में लिए चलते हैं।
बेस्ट बेकरी केस की सुनवाई गुजरात के हाई कोर्ट में चल रही है। 12 अप्रैल 2004 को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए केस को मुम्बई ट्रांसफर कर दिया कि उन्हें गुजरात गवर्नमेंट पर भरोसा नहीं है। क्यों भरोसा नहीं है? क्योंकि वहाँ भाजपा की सरकार है, नरेन्द्र मोदी की सरकार है। महाराष्ट्र पर भरोसा क्यों है? क्योंकि वहाँ कांग्रेस की सरकार है।
भाई, केस की सुनवाई हाई कोर्ट करेगा या सरकार करेगी? हाई कोर्ट करेगा न? मतलब जज करेगा? वही जज जिसे आपकी कॉलेजियम ने ही नियुक्त किया है। मतलब वो आपका अपना आदमी है। तो फिर आपको उस पर भरोसा क्यों नहीं है? भई, कमाल है! खुद ही जज बनाते हो और खुद के बनाये जज पर ही भरोसा नहीं करते। तो इसका मतलब यही हुआ न कि आपका कॉलेजियम सिस्टम सही लोगों की पहचान करने में नाकामयाब रहा है। तो फिर बदल क्यों नहीं देते ऐसे घटिया कॉलेजियम सिस्टम को जो सही और गलत इंसान की पहचान ही नहीं कर पा रहा। और अगर खुद नहीं बदल पा रहे तो जो बदलना चाह रहा है और जिसके पास ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार भी है, उसे बदलने दो ना। पर ना! न खुद बदलना है, न संसद को बदलने देना है। मतलब कॉलेजियम सिस्टम न हुआ, अल्लाह का सिस्टम हो गया कि वो sacrosanct है, उसमें फेर बदल हो ही नहीं सकता।
अच्छा चलिए! शायद आप ये कहना चाह रहे हैं कि समस्या जजों के साथ नहीं है। जज तो हमने अच्छे नियुक्त किये हैं पर ये जो नरेन्द्र मोदी की सरकार है न गुजरात में वो गवाहों को influence करने का प्रयास कर रही है, उन्हें धमका रही है, उन्हें तोड़ने का प्रयास कर रही है। इसीलिए केस को मुम्बई ट्रांसफर कर रहे हैं। क्योंकि महाराष्ट्र में तो कांग्रेस की सरकार है न!
पर उससे क्या हुआ? भाजपा वालों को गवाहों को धमकाना हो तो उसके लिए मुम्बई जाने की जरूरत थोड़ी न है। गवाह तो गुजरात में ही रहेंगे न? जब गवाही देनी होगी तभी मुम्बई जायेंगे न? तो गुजरात में ही धमका देंगे। मुम्बई जा के वही कहेंगे जो भाजपा वाले उन्हें कहने को कहेंगे। और ऐसा तो है नहीं कि मुम्बई में भाजपा के लोग नहीं हैं, वहाँ भी हैं। तो वो भी अलग से धमका देंगे गवाहों को। काम हो जाएगा।
क्या कहा? भाजपा वाले ऐसा नहीं कर पायेंगे। क्यों? क्योंकि आप गवाहों को मुम्बई भेज देंगे। अब वो वहीं रहेंगे, केस का फैसला आने तक। पर भाई साहब! आपको पता है न कि अभी अप्रैल का महीना चल रहा है। और मात्र छह महीने के बाद, यानि कि अक्टूबर 2004 में, महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। तो उस समय अगर भाजपा जीत गई तो? महाराष्ट्र में भी भाजपा की सरकार बन गई तो? तो फिर कहाँ ट्रांसफर करेंगे केस को? कर्नाटक में? पर मई 2004 में तो कर्नाटक में भी चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में अगर वहाँ भी पहले से भाजपा की सरकार हुई तो? कहाँ ट्रांसफर करेंगे? केरल में? हाँ, ये ठीक रहेगा, क्योंकि केरल में भाजपा के सत्ता में आने का अभी दूर दूर तक कोई सीन नहीं है। तो मुम्बई क्यों? अभी से ही केरल ट्रांसफर कर दीजिये केस को! कोई टेंशन ही नहीं रहेगी। वहाँ या तो LDF आयेगी या UDF, BJP का कोई चाँस ही नहीं है।
मतलब सोचिये! कितना हास्यास्पद था, सुप्रीम कोर्ट द्वारा बेस्ट बेकरी केस को गुजरात से बाहर महाराष्ट्र ट्रांसफर करने का फैसला। तर्कशून्य! मतलब इन्होंने जस्टिस डिलीवर करने के लिए ऐसा process बनाया हुआ है जो इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ सरकार किसकी है। मतलब इन्हें अपने judges पर, अपने processes पर ही भरोसा नहीं है। क्या ऐसी कल्पना की थी हमारे संविधान निर्माताओं ने कि इधर का केस उधर करो, उधर का केस इधर करो। तभी न्याय मिलेगा।
और ये बेस्ट बेकरी का केस कोई एक्सेप्शन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ऐसा अक्सर करता रहता है। खास कर भाजपा शासित राज्यों में। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन "फर्जी" मुठभेड़ मामले की सुनवाई भी, जिसमें CBI ने गुजरात के पूर्व मंत्री अमित शाह को आरोपी बनाया था, मुंबई स्थानांतरित कर दी थी। पर अक्टूबर 2014 में महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गई। इससे पहले कि सुप्रीम कोर्ट उस केस को किसी ओर राज्य में ट्रांसफर करने की सोचे, दिसंबर 2014 में CBI कोर्ट ने अमित शाह को इस मामले से बाइज़्ज़त बरी कर दिया।
करते रहिये ट्रांसफर!
झारखंड में मारे गए 6 नक्सली, बोकारो के जंगलों में हुआ सुरक्षाबलों से आमना-सामना
🇮🇳⚡🇧🇩 India suspends funding for Bangladesh railway projects valued at around ₹5000 crores.
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This is Divine ❤️
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Theives from Bangladesh caught red-handed and serviced by the locals of Tripura, near Indo-Bangladesh border.
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A Wing Commander of Indian Air Force was brutally attacked in Bangalore for not speaking Kannada.
Is it safe for non-Kannada citizens to visit for business?
How can a citizen be beaten in their own country over language?
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How can a citizen be beaten in their own country over language?
लोग कहते हैं, भाजपा पूर्ण बहुमत ले ही आई तो क्या हुआ?
बहुमत लेकर क्या उखाड़ लिया? दस साल में बहुत कुछ किया जा सकता था.
दस वर्षों में क्या क्या किया जा सकता था जो नहीं हुआ, यह कहने का आपका यार्ड स्टिक क्या है? आपकी तुलना का आधार क्या है? किसी और ने कर लिया? या कोई और कर लेता? या किसी और देश में किसी ने कर दिखाया? कोई तो आधार होगा, या सिर्फ अपनी कल्पना, विशफुल थिंकिंग ही आधार है? यूं होता तो क्या होता...
ऑब्जेक्टिवली, अगर मोदीजी न होकर वहां मैं होता तो क्या क्या कर गुजरता... (क्योंकि मैं तो दुनिया में सबसे स्मार्ट, सबसे समझदार और सबसे दूरदर्शी हूँ). पहले तो गुजरात से निकल कर दिल्ली पहुंचते तो निबटना पड़ता एक ब्यूरोक्रेसी से, जो पिछले साठ सत्तर वर्षों से व्यवस्था की लाभार्थी है. सबसे पहले तो गर्दन पकड़ कर वही आपको डुबा मारती. आपके किस विभाग में कौन से घोटाले निकल आते, आपको पता भी नहीं चलता. और फिर मीडिया उसी को खबर चला चला कर अगले चुनाव में ही हरा देती. शायद याद नहीं होगा कि बंगारू लक्ष्मण के साथ तहलका में क्या हुआ था... एक पैसे का करप्शन नहीं हुआ था लेकिन पैसे लेते हुए उनकी तस्वीरें साल भर मीडिया में घूमती रहीं.
आज दस वर्षों में ऊपर के स्तर पर करप्शन की एक भी खबर नहीं बनी है. सरकार चल रही है और ब्यूरोक्रेसी को मालूम है कि ये कहीं नहीं जाने वाले... इन्हीं से डील करना है...दस साल में इतना अचीवमेंट ही बहुत होता. उसके ऊपर जितना अचीव किया वह सब बोनस है. आतंकी हमले बंद हो गए, नक्सल हिंसा खत्म हो गई, देश कोरोना से निकल आया, यूक्रेन युद्ध का हमपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
तुलना के लिए यूके को देख रहा हूँ, कोरोना और यूक्रेन युद्ध के असर में कंजर्वेटिव पार्टी बिल्कुल साफ हो गई. लेबर आई, प्रॉपर्टी की कीमतें गिर गईं, मॉर्गेज की किश्तें दो गुनी हो गईं, महंगाई उछाल मार रही है, स्कूल और ज्यूडिशियरी जिहादियों के हाथ में चले गए. आज यूएस में डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यवस्था से खुली जंग छेड़ रखी है. पूरा देश उथल पुथल में है. उसका बड़े से बड़ा समर्थक हिल गया है. भारत में हमें जो मिला है, बिना विशेष टर्मॉयल के मिला है. यूएस में जितना हुआ है उतना टर्मॉयल आप बर्दाश्त ही नहीं करते.
अक्सर जो नहीं हुआ वह देखना संभव नहीं होता.
भाजपा ने अपने दस वर्षों में जो किया है उसका मूल्य मापना है तो इसकी तुलना में मापें कि भाजपा नहीं होती तो आज हम कहां होते. हम कहां हो सकते थे, और क्या क्या किया जा सकता था जो नहीं किया गया इसके लिए आपकी विश्फुल थिंकिंग अच्छा पैरामीटर नहीं है. जो किया जाना है, वह उन सबके बिना नहीं किया जा सकता था जो किया गया है. आप स्टेप्स A,B,C छड़प कर स्टेज D,E नहीं जा सकते थे. और जितना हुआ है वह अपने आप नहीं हो गया है. उसको करने में समय और श्रम लगा है. आपको वह "बेसिक मिनिमम" लग सकता है, लेकिन बेसिक मिनिमम भी अपने आप नहीं हो जाता.
फिर भी, भारत की अवस्था में एक यूनिक बात है... हमारे पास समय सीमित है. हम डेमोग्राफी की क्राइसिस से गुजर रहे हैं. हम इसीलिए अधीर हैं. लेकिन इस सीमित समय में जो करना है उसके लिए सत्ता में बने रहना पहली शर्त है. जिस किसी को लगता है कि मोदी को हटा देंगे तो कोई और आकर उनके सपने पूरे कर देगा वह या तो मूर्ख है या जान बूझकर झूठ बोल रहा है. हमें जो मांगना है, मोदी की सरकार से ही मांगना है. और अगर कुछ किया जाना संभव है तो मोदी की ही सरकार से मिलेगा. यह मोदी भक्ति नहीं है, व्यावहारिक आकलन है.
राजीव मिश्राजी द्वारा
बहुमत लेकर क्या उखाड़ लिया? दस साल में बहुत कुछ किया जा सकता था.
दस वर्षों में क्या क्या किया जा सकता था जो नहीं हुआ, यह कहने का आपका यार्ड स्टिक क्या है? आपकी तुलना का आधार क्या है? किसी और ने कर लिया? या कोई और कर लेता? या किसी और देश में किसी ने कर दिखाया? कोई तो आधार होगा, या सिर्फ अपनी कल्पना, विशफुल थिंकिंग ही आधार है? यूं होता तो क्या होता...
ऑब्जेक्टिवली, अगर मोदीजी न होकर वहां मैं होता तो क्या क्या कर गुजरता... (क्योंकि मैं तो दुनिया में सबसे स्मार्ट, सबसे समझदार और सबसे दूरदर्शी हूँ). पहले तो गुजरात से निकल कर दिल्ली पहुंचते तो निबटना पड़ता एक ब्यूरोक्रेसी से, जो पिछले साठ सत्तर वर्षों से व्यवस्था की लाभार्थी है. सबसे पहले तो गर्दन पकड़ कर वही आपको डुबा मारती. आपके किस विभाग में कौन से घोटाले निकल आते, आपको पता भी नहीं चलता. और फिर मीडिया उसी को खबर चला चला कर अगले चुनाव में ही हरा देती. शायद याद नहीं होगा कि बंगारू लक्ष्मण के साथ तहलका में क्या हुआ था... एक पैसे का करप्शन नहीं हुआ था लेकिन पैसे लेते हुए उनकी तस्वीरें साल भर मीडिया में घूमती रहीं.
आज दस वर्षों में ऊपर के स्तर पर करप्शन की एक भी खबर नहीं बनी है. सरकार चल रही है और ब्यूरोक्रेसी को मालूम है कि ये कहीं नहीं जाने वाले... इन्हीं से डील करना है...दस साल में इतना अचीवमेंट ही बहुत होता. उसके ऊपर जितना अचीव किया वह सब बोनस है. आतंकी हमले बंद हो गए, नक्सल हिंसा खत्म हो गई, देश कोरोना से निकल आया, यूक्रेन युद्ध का हमपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
तुलना के लिए यूके को देख रहा हूँ, कोरोना और यूक्रेन युद्ध के असर में कंजर्वेटिव पार्टी बिल्कुल साफ हो गई. लेबर आई, प्रॉपर्टी की कीमतें गिर गईं, मॉर्गेज की किश्तें दो गुनी हो गईं, महंगाई उछाल मार रही है, स्कूल और ज्यूडिशियरी जिहादियों के हाथ में चले गए. आज यूएस में डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यवस्था से खुली जंग छेड़ रखी है. पूरा देश उथल पुथल में है. उसका बड़े से बड़ा समर्थक हिल गया है. भारत में हमें जो मिला है, बिना विशेष टर्मॉयल के मिला है. यूएस में जितना हुआ है उतना टर्मॉयल आप बर्दाश्त ही नहीं करते.
अक्सर जो नहीं हुआ वह देखना संभव नहीं होता.
भाजपा ने अपने दस वर्षों में जो किया है उसका मूल्य मापना है तो इसकी तुलना में मापें कि भाजपा नहीं होती तो आज हम कहां होते. हम कहां हो सकते थे, और क्या क्या किया जा सकता था जो नहीं किया गया इसके लिए आपकी विश्फुल थिंकिंग अच्छा पैरामीटर नहीं है. जो किया जाना है, वह उन सबके बिना नहीं किया जा सकता था जो किया गया है. आप स्टेप्स A,B,C छड़प कर स्टेज D,E नहीं जा सकते थे. और जितना हुआ है वह अपने आप नहीं हो गया है. उसको करने में समय और श्रम लगा है. आपको वह "बेसिक मिनिमम" लग सकता है, लेकिन बेसिक मिनिमम भी अपने आप नहीं हो जाता.
फिर भी, भारत की अवस्था में एक यूनिक बात है... हमारे पास समय सीमित है. हम डेमोग्राफी की क्राइसिस से गुजर रहे हैं. हम इसीलिए अधीर हैं. लेकिन इस सीमित समय में जो करना है उसके लिए सत्ता में बने रहना पहली शर्त है. जिस किसी को लगता है कि मोदी को हटा देंगे तो कोई और आकर उनके सपने पूरे कर देगा वह या तो मूर्ख है या जान बूझकर झूठ बोल रहा है. हमें जो मांगना है, मोदी की सरकार से ही मांगना है. और अगर कुछ किया जाना संभव है तो मोदी की ही सरकार से मिलेगा. यह मोदी भक्ति नहीं है, व्यावहारिक आकलन है.
राजीव मिश्राजी द्वारा
यूपी में पहली बार किसी अपराधी की प्रॉपर्टी सरकार के नाम हो गई
दुबई में बैठे शारिक साठा की 2.31 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी संभल की जिला अदालत ने सरकार को दे दी है
शारिक साठा पर संभल हिंसा की साजिश रचने का आरोप है
दुबई में बैठे शारिक साठा की 2.31 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी संभल की जिला अदालत ने सरकार को दे दी है
शारिक साठा पर संभल हिंसा की साजिश रचने का आरोप है
2014 के बाद एक चीज बहुत देखी गई है.....जो भी इंसान मोदी सरकार का समर्थन करता है, या भारत की अच्छाईयों की बात करता है... उसे गोबरभक्त बोल दिया जाता है.
खासकर मिडिल ईस्ट के देशों के लोग, जो सोशल मीडिया पर हैं (उनमे से भतेरी भारतीय मूल के लोगों की ID हैं, और ढेरों Fake भी हैं ).... उनका एक pet डायलाग है.... कि भारत के लोग तो गोबर खाते हैं.
लेकिन सच इसका एकदम उल्टा है.
मिडिल ईस्ट और अरब के देश हर साल कई सौ करोड़ का गाय का गोबर भारत से import करते हैं.... और कोई छोटे मोटे अनजान देश नहीं... सऊदी अरब, UAE, कतर जैसे देशों की बात हो रही है.
अब आप पूछेंगे कि ये भला गोबर क्यों import करते हैं?
क्यूंकि इन देशों ने research करके पता लगाया ( whatsapp news नहीं है, बाकायदा Research paper छपे हैं) कि गाय के गोबर का उपयोग करने से खजूर की खेती अच्छी होती है.. Yeild बढ़ जाती है.... इसलिए भारत से गोबर मंगा कर उसे सुखा कर उसका पाउडर बना कर खजूर के पेड़ की जड़ो में डाला जाता है.
फिर खजुर बनता है... जिसे बड़े ही चाव से खाया जाता है.
मतलब साफ है... हम इंडिया के लोग गोबर नहीं खाती... तुम खाती 🤣🤣
खासकर मिडिल ईस्ट के देशों के लोग, जो सोशल मीडिया पर हैं (उनमे से भतेरी भारतीय मूल के लोगों की ID हैं, और ढेरों Fake भी हैं ).... उनका एक pet डायलाग है.... कि भारत के लोग तो गोबर खाते हैं.
लेकिन सच इसका एकदम उल्टा है.
मिडिल ईस्ट और अरब के देश हर साल कई सौ करोड़ का गाय का गोबर भारत से import करते हैं.... और कोई छोटे मोटे अनजान देश नहीं... सऊदी अरब, UAE, कतर जैसे देशों की बात हो रही है.
अब आप पूछेंगे कि ये भला गोबर क्यों import करते हैं?
क्यूंकि इन देशों ने research करके पता लगाया ( whatsapp news नहीं है, बाकायदा Research paper छपे हैं) कि गाय के गोबर का उपयोग करने से खजूर की खेती अच्छी होती है.. Yeild बढ़ जाती है.... इसलिए भारत से गोबर मंगा कर उसे सुखा कर उसका पाउडर बना कर खजूर के पेड़ की जड़ो में डाला जाता है.
फिर खजुर बनता है... जिसे बड़े ही चाव से खाया जाता है.
मतलब साफ है... हम इंडिया के लोग गोबर नहीं खाती... तुम खाती 🤣🤣