संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ: (40) कृदन्त 7 (क्त्वा + णमुल् प्रत्ययौ) + तुमुन् प्रत्ययाः (”बार-बार करना“ इस अर्थ में एक ही वाक्य में प्रयुक्त समान = एक कर्त्तावाली दो धातुओं में से पूर्वकालिक धातु से क्त्वा तथा णमुल् प्रत्ययों का…
तुमुन् प्रत्यय

(”के लिए“ अर्थ में एक वाक्य में प्रयुक्त समान कर्तावाली दो या दो से अधिक धातुओं का प्रयोग होने पर पूर्वकालिक धातु/धातुओं से तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग होता है। तुमुनान्त क्रियावाची शब्द भी अव्यय होने से सभी विभक्तियों में इसके रूप नहीं चलते। अर्ह तथा शक् धातुओं के साथ भी तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग होता है।)

भोक्तुं बालो गृहं व्रजति
= खाने के लिए बच्चा घर जा रहा है।

चिकित्सालये गहनचिकित्साप्रकोष्ठे (आय.सी.यू.) विद्यमानं स्वकं पितरं द्रष्टुं स आकुली भवति
= अस्पताल में गहन चिकित्सा कक्ष में विद्यमान अपने पिता को देखने के लिए वह व्याकुल हो रहा है।

भोजनार्थं घण्टिका निनादिता, भोक्तुं गच्छामि
= भोजन की घण्टी बज गई है, खाने के लिए जा रहा/रही हूं।

सुखेन जीवितुं स्वाधीनं राष्ट्रं स्यात्
= सुख से जीने के लिए राष्ट्र स्वाधीन होना चाहिए।

भारतदेशं स्वाधीनं कर्त्तंु प्रयतेमहि
= भारत को स्वाधीन करने के लिए हमें प्रयत्न करना चाहिए।

सम्यक् कार्याणि विधातुं पूर्वं सम्यक् ज्ञानं स्यात्
B= कार्यों को ठीक तरह से करने के लिए पहले सटीक ज्ञान होना चाहिए।

स्व-संस्कृतिं रक्षितुं सर्वे जाग्रतु
= अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए सभी जागृत होवें।

स्वराष्ट्रं निर्मातुं जात्याग्रहं त्यजेत्
= स्वराज्य के निर्माण के लिए जातिवाद का त्याग करना चाहिए।

स्वाम्याज्ञां विना समर्थः सेवकोऽपि किं कर्त्तुमर्हति
= स्वामी के आदेश के बिना समर्थ सेवक भी क्या कर सकता है ?

व्यस्ते जीवने जनानां समीपे पर्यटितुं कालोऽस्ति, किन्तु धर्मं ज्ञातुं नास्ति
= व्यस्त जीवन में भी लोगों के पास घूमने-फिरने के लिए तो समय है पर धर्म को जानने के लिए नहीं है।

स्वसंस्कृतिम् उन्नेतुं गुरुकुलानि सर्वथा आवश्यकानि
= अपनी संस्कृति के उत्थान के लिए गुरुकुल व्यवस्था नितान्त आवश्यक है।

बालकान् गुरुकुलं प्रेषयितुमद्यापि जनाः उत्सुकाः सन्ति, किन्तु न स्वबालान्
= गुरुकुल में बच्चों को भेजने के लिए आज भी लोग उत्सुक हैं, किन्तु अपने बच्चों को छोड़कर।

अद्यत्वे सर्वे केवलं धनं प्राप्तुमेवाऽधीयते
= आजकल सब धनप्राप्ति के लिए ही पढ़ते हैं।

महदाश्चर्यमेतत् आध्यात्मिकज्ञानरूपां नावं विना दुःखसागरं तरितुमिच्छति
= बहुत आश्चर्य की बात है आध्यात्मिक ज्ञानरूपी नाव के बिना दुःखसागर पार करना चाहते हैं।

छिन्नपक्षः पुरुषार्थशतेनाऽपि उड्डयितुं न समर्थः पंखकटा
= पक्षी लाख कोशिश करने पर भी उड़ने में समर्थ नहीं होता।

विशाखं वृक्षं क आश्रयितुं वा´्छति ?
= विना शाखा के पेड़ का आश्रय कौन लेना चाहता है ?

कृपया उपवेष्टुं कि´्चित स्थानं दद्यात्
= कृपा करके बैठने के लिए थोड़ा स्थान दीजिए।

शय्यायां शयितुं मनः कामयते
= मन खाट पर सोने की इच्छा कर रहा है।

सर्वप्रदम् ईश्वरं ध्यातुं कस्यापि समीपे कालो नास्ति
= सबकुछ देनेवाले ईश्वर का ध्यान करने के लिए किसी के पास भी समय नहीं है।

चलितुं शिक्षमाणः बालः मुहुर्मुहुः पतति
= चलना सीखता हुआ बच्चा बार-बार गिर रहा है।

अविनाशी तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्। विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्त्तुमर्हति
= उसे तू अविनाशी जान जिसने यह संसार फैलाया है। इस अव्यय = अविनाशी का कोई विनाश नहीं कर सकता।

समर्थं को पराजेतुं शक्नोति ?
= समर्थ को कौन पराजित कर सकता है ?

ईश्वरं तिरस्कर्तुं कः समर्थः ?
= ईश्वर का तिरस्कार अर्थात् उसकी आज्ञा का उल्लंघन कौन कर सकता है ?

#vakyabhyas
"पादरक्षकाभ्यां विना वयं तु चलितुं शक्नुमः परन्तु अस्माभिः विना पादरक्षके चलितुं न शक्नुतः।"
आत्ममन्थनशिबिरे राहुलस्य एतद् भाषणम्। 😜

#hasya
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [13.34]
🍃यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत
।।13.34।।

♦️yathaa prakaashayatyekaH kRRitsnaM lokamimaM raviH|
kShetraM kShetrii tathaa kRRitsnaM prakaashayati bhaarata

Just as the one sun illumines the whole world, so also the Lord of the field (Supreme Self) illumines the whole field, O Arjuna.(13.34)

हे भारत जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण लोक को प्रकाशित करता है उसी प्रकार एक ही क्षेत्री (क्षेत्रज्ञ) सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है।।13.34।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [13.35]
🍃क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा।
भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्
।।13.35।।

♦️kShetrakShetraj~nayorevamantaraM j~naanachakShuShaa|
bhuutaprakRRitimokShaM cha ye viduryaanti te param

They who, by the eye of knowledge, perceive the distinction between the field and its knower and also the liberation from the Nature of being, go to the Supreme.(13.35)

इस प्रकार जो पुरुष ज्ञानचक्षु के द्वारा क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को तथा प्रकृति के विकारों से मोक्ष को जानते हैं वे परम ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।।13.35।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩 यगाब्द - ५१२४
🌥 🚩 विक्रम संवत - २०७९
⛅️ 🚩 तिथि - नवमी सुबह 10:45 तक तत्पश्चात दशमी

⛅️ दिनांक - 24 मई 2022
⛅️ दिन - मंगलवार
⛅️ विक्रम संवत - 2079
⛅️ शक संवत - 1944
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - ग्रीष्म
⛅️ मास - ज्येष्ठ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - पूर्वभाद्रपद रात्रि 10:33 तक तत्पश्चात उत्तर भाद्रपद
⛅️ राहुकाल - शाम 03:57 से 05:37 तक
⛅️ सर्योदय - 05:56
⛅️ सर्यास्त - 07:18
⛅️ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
⛅️ बरह्म मुहूर्त- प्रातः 04:30 से 05:13 तक
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिकायां स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
🗣सहैव तानि वाक्यानि उक्त्वा ध्वनिमाध्यमेन अपि प्रेषयत।

Read in English
हिन्दी में पढें


#chitram
🍃कः कालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमौ ।
कस्याहं का च मे शक्तिः, इति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः

- चाणक्यनीतिः 4.18

कैसा समय (परिस्थिति) है, कौन मेरे मित्र हैं, में किस देश में हूं, मेरी आय और तदनुसार व्यय कितना है, में कौन हूं और मुझ में कितनी शक्ति है, इन विषयों पर बारम्बार विचार करना चाहिये। (और तदनुसार आचरण करना चाहिये )

One should always and repeatedly ponder over as to what are the prevailing circumstances, who are my friends, in which country I am, what is my income and expenditure, who am I and what is my ability and strength ( before undertaking any task and then take the appropriate action).

🔅कस्मादपि कार्यारम्भात् पूर्वं कीदृशः समयः अस्ति कानि मित्राणि सन्ति कस्मिन् स्थाने अस्मि मम आयः कः तथा व्ययः कियान् अस्ति अहं कः अस्मि मम सामर्थ्यं कियत् एते विषयाः पुनःपौन्येन चिन्तनीयाः तथा तद्वत् आचरणं विधातव्यम्।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
तुमुन् प्रत्यय (”के लिए“ अर्थ में एक वाक्य में प्रयुक्त समान कर्तावाली दो या दो से अधिक धातुओं का प्रयोग होने पर पूर्वकालिक धातु/धातुओं से तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग होता है। तुमुनान्त क्रियावाची शब्द भी अव्यय होने से सभी विभक्तियों में इसके रूप नहीं चलते।…
हन्ता चेन्मन्यते हन्तुं हतश्चेन्मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।
= मारनेवाला यदि मारना चाहता है और मरा हुआ अपने आप को मरा जानता है, वे दोनों (मारनेवाला-मरनेवाला) ही नहीं जानते कि आत्मा न तो मारता है न मरता है।

स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि। धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत् क्षत्रियस्य न विद्यते।।
= स्वधर्म = अपने कर्त्तव्य को देखते हुए भी हिम्मत हारना उचित नहीं है। क्षत्रिय के लिए धर्मयुद्ध से बढ़कर और कोई कर्त्तव्य नहीं है।

नहि देहभृता शक्यं त्यक्तंु कर्माण्यशेषतः। यस्तुकर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते।।
= किसी भी देहधारी के लिए कर्मों का पूर्णरूपेण त्याग सम्भव नहीं है, परन्तु जो कर्म के फल को त्याग देता है, वही त्यागी कहलाता है।

अम्भोजिनीवनविहारविलासमेव हंसस्य हन्ति नितरां कुपितो विधाता। न त्वस्य दुग्धजलभेदविधौ प्रसिद्धां, वैदग्ध्यकीर्तिमपहर्त्तुमसौ समर्थः।।
= अत्यन्त क्रुद्ध विधाता भी हंस को कमलवन का आनन्द लूटने से तो एकदम रोक सकता है परन्तु उसके नीर-क्षीर विवेक के प्रसिद्ध चातुर्य को नष्ट करने में वह भी असमर्थ है।

पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किम्, नोलूकोऽप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम्।
धारा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणम्, यत्पूर्वं विधिना ललाटलिखितं तन्मार्जितुं कः क्षमः।।
= यदि वसन्त ऋतु आने पर भी करीर के वृक्ष पर पत्ते नहीं फूटते तो इसमें वसन्त ऋतु का क्या दोष ? यदि उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता तो इसमें सूर्य का क्या अपराध ? यदि चातक के मुख में वर्षा की बूंदें नहीं पड़ती तो इसमें बादल का क्या दोष ? भाग्य में जो लिखा है उसे कौन मिटा सकता है ? (अर्थात् किया हुआ अवश्य भरना पड़ता है।)

त्याज्यं न ध्यैर्यं विधुरेऽपि काले धैर्यात्कदाचित् स्थितिमाप्नुयाद्धि।
जाते समुद्रेऽपि च पोत भङ्गे सांयात्रिको वा´्छति तर्त्तुमेव।।
= कठिनाई के समय के उपस्थित होने पर भी ध्यैर्य नहीं त्यागना चाहिए, किन्तु ध्यैर्य से मनुष्य किसी समय फिर से अपनी पूर्वस्थिति को प्राप्त कर सकता है। जैसे समुद्र के मध्य में जहाज के टूट जाने पर भी जहाज का यात्री तैरकर बचने की ही कामना करते हैं।

न दैवमिति सञ्चिन्त्य त्यजेदुद्योगमात्मनः। अनुद्योगेन तैलानि तिलेभ्यो नाप्तुमर्हति।।
= मनुष्य ”भाग्य ही सब कुछ है“ ऐसा विचार करके अपने पुरुषार्थ का त्याग न करे बिना पुरुषार्थ के तो मनुष्य तिलों से तैल भी प्राप्त नहीं कर सकता।

स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्त्तुमन्यथा। सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम्।।
= उपदेश से कोई किसी के स्वभाव को नहीं बदल सकता। भलीभांति खौलाया हुआ पानी भी पुनः शीतल हो जाता है।

#vakyabhyas
नमाज इति शब्दः संस्कृतात् एव निष्पन्नः अस्ति । नमाज इत्यस्य विग्रहे द्वौ शब्दौ स्तः नमः‌ अजः चेति।

संस्कृते नमः इत्युक्ते प्रणतिः तथा अजः इत्युक्ते न जातो न जनिष्यते इति

द्वयोः समासेन नमाजः इति‌ शब्दः सिद्धः (नम + अज: )

संक्षेपार्थे ईश्वराय नमस्कारः वा नमः शिवाय‌


The word NAMAZ/J is derived from Sanskrut itself. the Namaz/j has two sylables i.e. Namas( नमस् ) and Ajah ( अज: ) .

In Samskrut Namas (नमस् = नमः ) means to Bow, Salutation, and Ajah ( अज: ) means the unborn (Shiva, Vishnu or brahma generally)

Both words combined with samas (conjunction) makes नमाज (नमः +अज: ) i. e. Namaz/j.

In short it is the word having meaning , Salutation to God / Namah Shivay (नमः शिवाय )


नमाज शब्द संस्कृत से लिया गया है। नमाज के विग्रह में दो शब्द हैं, नमः और अजः

संस्कृत में नमः का अर्थ है झुकना और अजः का अर्थ है वो जो‌ न जन्मा है न जन्मेगा अर्थात् ईश्वर

दोनों के समास से नमाज (नमः +अज:) शब्द सिद्ध होता है।

संक्षेप में, मैं भगवान् को नमन करता हूं या नमः शिवाय , यह अर्थ निकलता है।