संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - तृतीया दोपहर 01:54 तक तपश्चात चतुर्थी

⛅️ दिनांक 04 अप्रैल 2022
⛅️ दिन - सोमवार
⛅️ शक संवत - 1944
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - वसंत
⛅️ मास - चैत्र
⛅️ पक्ष - शुक्ल
⛅️ नक्षत्र - भरणी दोपहर 02:29 तक तपश्चात कृतिका
⛅️योग - विष्कम्भ सुबह 07:43 तक तत्पश्चात प्रीती
⛅️ राहुकाल - सुबह 08:03 से 09:36 तक
⛅️सर्योदय - 06:29
⛅️ सर्यास्त - 06:56
⛅️ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
🔰ददाति दा धातोः लट्लकारस्य नवरूपेभ्यः एकैकं वाक्यं रचयत।
🎏प्रयासं कुरुत यत् वाक्यानि समानानि न भवेयुः।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिका (comment box) मध्ये स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।


🔰ददाति (दा धातु )के लट् लकार के ९ रूपों से एक-एक वाक्य बनायें।
🎏 प्रयास करें की सभी वाक्य एक जैसे न हों।
✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।


🔰Make a sentence each from the 9 forms of ददाति (दा धातु) Latlakār.
🎏Try not to have all the sentences similar.
✍🏼You can type in the comment box or you can also send a photo by writing on the notebook.
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ : (२८) सप्तमी विभक्ति (२) (वैषयिक आधार :- विषयता सम्बन्ध से जब किसी को आधार माना जाता है, तब वह वैषयिक आधार कहाता है।) मुमुक्षोः मोक्षे इच्छाऽस्ति = मुमुक्षु की मोक्ष (के विषय) में इच्छा है। सर्वेषां…
सदा प्रहृष्टया भाव्यं गृहकार्येषु दक्षया।
सुसंस्कृतोपस्करया व्यये चामुक्तहस्तया।।
= स्त्री को सदा प्रसन्न रहना चाहिए, गृहकार्यों में वह कुशल हो, घर के बर्तन आदि को स्वच्छ तथा घर को सफाई, लेपन आदि द्वारा शुद्ध रखनेवाली हो, खर्च करने में खुले हाथवाली न हो अर्थात् निरर्थक धन न लुटाए ऐसी हो।

अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा।
अनुग्रहश्च दानं च शीलमेतत्प्रशस्यते।।
= मन, वचन और कर्म से किसी भी प्राणी से द्रोह याने वैर न करना, सब पर दया करना और दान देना यह शील कहाता है जिसकी सभी प्रशंसा करते हैं।

तावद् भयेषु भेतव्यं यावद्भयमनागतम्।
आगतं तु भयं दृष्ट्वा प्रहर्तव्यमशङ्कया।।
= आपत्तियों तथा संकटों से तभी तक डरना चाहिए जब तक वे दूर हैं, परन्तु जब भय और संकट सिर पर आ पड़े तब शंकारहित होकर उस पर टूट पड़ना चाहिए अर्थात् उस भय या संकट को दूर करने का यत्न करना चाहिए।

एकोदरसमुद्भूता एकनक्षत्रजातकाः।
न भवन्ति समाः शीले यथा बदरकण्टकाः।।
= एक ही माता से उत्पन्न अथवा एक ही नक्षत्र में जन्म लेनेवाले सभी बालक गुण-कर्म-स्वभाव में समान नहीं होते, जैसे एक ही पेड़ में उत्पन्न होनेवाले बेर और कांटे समान नहीं होते।

न स्वसुखे वै कुरुते प्रहर्षं चान्यस्य दुःखे भवति विषादी। दत्त्वा न पश्चात्कुरुतेऽनुतापं स कथ्यते सत्पुरुषार्यशीलः।।
= जो व्यक्ति अपने सुख में खुश नहीं होता, दूसरों के दुःख में दुःखी हो जाता है तथा दान देकर जो पश्चाताप नहीं करता, वही सज्जनों में आर्य पुरुष माना जाता है।

सखायः प्रविविक्तेषु भवन्त्येताः प्रियंवदाः।
पितरो धर्मकार्येषु भवन्त्यार्तस्य मातरः।।
= पत्नी एकान्त में प्रियवचन बोलनवाली मित्र है। धर्मकार्य में पत्नी पिता की तरह हितैषिणी है और संकटकाल में माता के समान दुःख दूर करनेवाली है।

सन्तोषस्त्रिषु कर्त्तव्यः स्वदारे भोजने धने।
त्रिषु चैव न कर्त्तव्योऽध्ययने तपदानयोः।।
= स्व-पत्नी, भोजन और धन इन तीनों में व्यक्ति को सन्तोष करना चाहिए। परन्तु अध्ययन, तप और दान में सन्तोष कभी नहीं करना चाहिए।

धनधान्यप्रयोगेषु विद्यासंग्रहणेषु च।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।।
= धन के लेन-देन में, धान्य के क्रय-विक्रय में, विद्या के संग्रह में, आहार और व्यवहार में लज्जा न करनेवाला मनुष्य सुखी होता है।

गुणेष्वेव हि कर्त्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा।
गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः।।
= मनुष्य को सदा दया, दाक्षिण्य आदि शुभगुणों की प्राप्ति में प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि गुणी दरिद्र व्यक्ति भी गुणहीन धनिकों से श्रेष्ठ है।

दाक्षिण्यं स्वजने दया परजने शाठ्यं सदा दुर्जने। प्रितिः साधुजने स्मयः खलजने विद्वज्जने चार्जवम्। शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरुजने नारिजने धृष्टता। इत्थं ये पुरुषाः कलासु कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः।।
= अपनों के प्रति प्रसन्नता, परायों पर दया, दुर्जनों के प्रति दुष्टता, सज्जनों के प्रति प्रेम, दुष्टों के प्रति अकड़, विद्वानों के साथ सरलता, शत्रुओं के प्रति शूरता, बड़े लोगों के प्रति क्षमाभाव, स्त्रियों के प्रति विश्वास, इस प्रकार से उपरोक्त कलाओं याने व्यवहारों में जो लोग कुशल होते हैं, ऐसे लोगों के कारण ही पृथ्वी टिकी हुई है।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

जगद्विलक्षणं ब्रह्म ब्रह्मणोऽन्यन्न किंचन।
ब्रह्मान्यद्भाति चेन्मिथ्या यथा मरुमरीचिका।।63।।

63. Brahman is other than this, the universe. There exists nothing that is not Brahman. If any object other than Brahman appears to exist, it is unreal like the mirage.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 63:

आत्म-बोध के 63rd श्लोक में भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की अद्वितीयता की सिद्धि का तरीका बताते हैं। ध्यान रहे की जब तक द्वैत रहता है तब तक हमारा छोटापना, अर्थात जीव-भाव बना रहता है - तब तक कितना भी ज्ञान प्राप्त करलो मुक्ति नहीं मिलती है। द्वैत का मतलब होता है की हमारी यह धरना की हमसे पृथक किसी स्वतंत्र वस्तु का अस्तित्व है। यही नहीं वह वस्तु ही हमें पूर्णता, आनंद और सुरक्षा प्रदान करेगी - इसलिए हम सब ऐसी वस्तुओं की कामना करते है, उनसे आसक्त होते है, उनपर आश्रित होते हैं। इसी को अन्तहीन संसार कहते हैं। अब अगर हमें मोक्ष की सिद्धि करनी हो तो हमें मात्र अपने से पृथक समस्त दृश्य वस्तुओं के मिथ्यात्व का निश्चय करना होगा। यह ही इस श्लोक का विषय है। जिसे पूज्य गुरूजी ने अत्यंत सरलता और स्पष्टता से समझाया है।

#Atmabodha
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.11]
🍃दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्।
सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्
।।11.11।।

♦️divyamaalyaambaradharaM divyagandhaanulepanam|
sarvaashcharyamayaM devamanantaM vishvatomukham ।।11.11।।

Wearing divine garlands and apparel, anointed with celestial perfumes and ointments, full of all wonders, the limitless God with faces on all sides. (11.11)

दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुये और दिव्य गन्ध का लेपन किये हुये एवं समस्त प्रकार के आश्चर्यों से युक्त अनन्त विश्वतोमुख (विराट् स्वरूप) परम देव (को अर्जुन ने देखा)।।11.11।।

#geeta
🍃दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः
।।11.12।।

♦️divi suuryasahasrasya bhavedyugapadutthitaa|
yadi bhaaH sadRRishii saa syaadbhaasastasya mahaatmanaH ।।11.12।।

If the splendor of thousands of suns were to blaze forth all at once in the sky, even that would not resemble the splendor of that exalted being. (11.12)

आकाश में सहस्र सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश होगा वह उस (विश्वरूप) परमात्मा के प्रकाश के सदृश होगा।।11.12।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.12]
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - चतुर्थी दोपहर 03:45 तक तत्पश्चात पंचमी

⛅️ दिनांक 05 अप्रैल 2022
⛅️ दिन -मंगलवार
⛅️ शक संवत - 1944
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - वसंत
⛅️ मास - चैत्र
⛅️ पक्ष - शुक्ल
⛅️ नक्षत्र - कृतिका दोपहर 04:52 तक तत्पश्चात रोहिणी
⛅️योग - प्रीती सुबह 08:00 तक तत्पश्चात आयुष्मान
⛅️ राहुकाल - दोपहर 03:49 से 05:23 तक
⛅️सर्योदय - 06:29
⛅️ सर्यास्त - 06:56
⛅️ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिका (comment box) मध्ये स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।

🔰 चित्र देखकर पांच वाक्य बनायें।
✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।

🔰Make 5 sentences, Observing the attached image.
✍🏼You can type in the comment box or you can also send a photo by writing on the notebook.

#chitram