संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
अकर्मक धातुएं

श्रोतारः तकन्ति।
• श्रोता खूब हंस रहे हैं। (तकः हंस हंस के लोट-पोट हो जाना।)
परिहासी श्रोतॄन् ताकयति।
• मजाकिया श्रोताओं को हंसा रहा है।

सर्वे प्रत्यहं हसेयुः।
• सभी प्रतिदिन हसें।
हास्यप्रशिक्षकः सर्वान् प्रतिदिनं हासयेयुः।
• हास्यप्रशिक्षक सभी को प्रतिदिन हंसाए।

सुखिनः कखिष्यन्ति।
• सुखी लोग हंसेंगे।
ईश्वरः सुखिनः काखयिष्यति।
• ईश्वर सुखी लोगों को हंसाएगा।

पापी रोदितु।
• पापी रोवे = पापी रोए।
रौद्रः पापिनं रोदयतु।
• रुद्रस्वरूप ईश्वर पापी को रुलाए।

दुःखिणो जनाः अपि अघाघिषुः।
• दुःखी लोग भी हंसे।
सुखदो दुःखिणो जनानपि अजीघघत्।
• सुख देनेवाले ईश्वर ने दुःखी लोगों को भी हंसाया।

को हसति?
• कौन हंसता है?
कः कं हासयति?
• सुखस्वरूप ईश्वर किसे हंसाता है?

निर्मलो हसति।
• निर्मल व्यक्ति हंसता है।
कः निर्मलं हासयति?
• सुखस्वरूप ईश्वर निर्मल व्यक्ति को हंसाता है।

प्राणिनः प्राणन्ति।
• प्राणी जी रहे हैं।
प्राणाः प्राणिनः प्राणयन्ति।
• प्राण प्राणियों को जिलाए हुए हैं।

सविता उदेति अस्तमेति च।
• सूर्य उदय एवं अस्त होता है।
कः सवितारम् उदयति अस्तमयति च?
• कौन सूर्य को उदित एवं अस्त कर रहा है?

पुत्रः अजागः।
• पुत्र जागा।
पिता पुत्रम् अजागरयत्।
• पिता ने पुत्र को जगाया।

वृद्धः अपप्तत्।
• बूढ़ा गिर गया।
दुष्टः वृद्धम् अपीपतत्।
• दुष्ट ने बूढ़े को गिराया।

सुरभिः प्रियते।
• गाय प्रसन्न हो रही है।
सौरभेयी सुरभिं प्राययति।
• बछिया गाय को प्रसन्न कर रही है।

(निम्नलिखित शब्दों के योग में भी द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है- अन्तरा, अन्तरेण, उभयतः, अभितः, परितः, सर्वतः, समया, निकषा, हा, प्रति, धिक्, उपर्युपरि, अध्यधि, अधोऽधः, विना)

ईश्वरं जीवम् अन्तरा अज्ञानगता दूरी वर्तते।
• ईश्वर और जीव के बीच में अज्ञानगत दूरी है।
द्युलोकं पृथ्वीलोकमन्तरा अन्तरिक्षलोको विद्यते।
• द्युलोक और पृथ्वी के बीच में अन्तरिक्षलोक है।

विद्यामन्तरेण कोऽपि विद्वान् कथं स्यात्?
• विद्या के बिना कोई भी विद्वान् कैसे बन सकता है?
मातरमन्तरेण शिशोः निर्माणं कथं स्यात्?
• मां के बिना बच्चे का निर्माण कैसे हो सकता है?

निर्मातारं विना जगतः निर्माणं कथं स्यात्?
• निर्माता के बिना संसार का निर्माण कैसे होवे?
स्रष्टारं विना सृष्टिः न स्यात्।
• स्रष्टा के बिना सृष्टि नहीं हो सकती।
भारतीं विना न कदाचित् भाति भारतम्।
• संस्कृत के बिना भारत कभी सुशोभित नहीं हो सकता है।

#vakyabhyas
कौतुकः जन्तुशालयां वृत्तिं प्राप्तवान्।
एकदा सः सिंहपञ्जरस्य द्वारे तालं न स्थापितवान् ।
(तदा अधिकारी पृच्छति )
त्वं किमर्थं न तालं स्थापितवान्?
कौतुकः - का आवश्यकता, एतावन्तं हिंसकं पशुं कः चोरयेत्।

#hasya
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)

ूलश्लोकः-85
अभिषिच्य च लङ्कायां राक्षसेन्द्रं विभीषणम्‌ ।
कृतकृत्यस्तदा रामो विज्वर: प्रमुमोद ह।।85।।

श्लोकान्वयः -
तदा राक्षसेन्द्रं विभीषणं लङ्कायाम्‌ अभषिच्य
कृतकृत्य विज्वर: च राम: प्रमुमोद ह।।85।।

हिन्दी-अनुवाद -
सीतासमागम के पश्चात्‌ लङ्काराजसिंहासन पर राक्षसश्रेष्ठ विभषण का विधिपूर्वक
अभिषेक कराकर कृतार्थ एवं निश्चिन्त श्रीराम परम प्रसन्न हुए।।85।।

English Meaning

राम: Rama, विभीषणम् Vibhisana, राक्षसेन्द्रम् king of rakshasas, लङ्कायाम् in the city of Lanka, अभिषिच्य coronated, तदा then, कृतकृत्य: having accomplished his objective, विज्वर: free from distress, प्रमुमोद ह was exceedingly rejoiced.

After coronating the rakshasa chief Vibhishana in the city of Lanka, Rama free from distress, exceedingly rejoiced after having accomplished his objective.

#SankshepaRamayanam
Forwarded from ॐ पीयूषः
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

Duration : 30 minutes only
Time : IST 11:00 AM 🕚
Topic : One year of vaccination.
सूच्यौषधस्वीकरणस्य एकवर्षम्।
Date : 19thJanuary 2022,
Wednesday.
Please Join the voicechat on time.
😇 Please come prepared to discuss ( स्वानुवभं, चिकित्साक्षेत्रे भारतस्य प्रगतिविषयं वा वदन्तु।)in Sanskrit , If possible.
We are waiting for you.😇
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Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [06.41]
🍃प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः। 
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते
।।6.41।। 

♦️praapya puNyakRRitaaM lokaanuShitvaa shaashvatiiH samaaH|
shuchiinaaM shriimataaM gehe yogabhraShTo'bhijaayate6.41

6.41 Having attained to the worlds of the righteous and having dwelt there for everlasting years, he who fell from Yoga is born in a house of the pure and wealthy. 

।।6.41।। योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यवानों के लोकों को प्राप्त होकर वहाँ दीर्घकाल तक वास करके शुद्ध आचरण वाले श्रीमन्त (धनवान) पुरुषों के घर में जन्म लेता है।। 

#geeta
🍀 प्रतिदिनं संस्कृतम् 🍀

नमः सर्वेभ्यः

प्रतिदिनं वयं मिलित्वा विभक्तिपठनं करिष्यामः


समयः - 9.30--10.10. PM (भारतीय समयानुसारम् ) केवलं 40 निमेषाः

सोमवासरतः शुक्रवासरपर्यन्तम्

डिसेम्बर 1 दिनाङ्कतः मासद्वयम्

👉🏼प्रवेश👈🏼
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [06.42]
🍃अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्। 
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्
।।6.42।। 

♦️athavaa yoginaameva kule bhavati dhiimataam|
etaddhi durlabhataraM loke janma yadiidRRisham6.42

6.42 Or he is born in a family of even the wise Yogis; verily a birth like this is very difficult to obtain in this world. 

।।6.42।। अथवा (साधक) ज्ञानवान् योगियों के ही कुल में जन्म लेता है परन्तु इस प्रकार का जन्म इस लोक में निसंदेह अति दुर्लभ है।। 

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - द्वितीया पूर्ण रात्रि तक

दिनांक - १९ जनवरी २०२२
दिन - बुधवार
शक संवत -१९४३
अयन - उत्तरायण
ऋतु - शिशिर
मास - माघ
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - अश्लेशा पूर्ण रात्रि तक
योग - प्रीति शाम ०४:०६ तक तत्पश्चात आयुष्मान
राहुकाल - दोपहर १२:४९ से दोपहर ०२:१२ तक
सूर्योदय - ०७:१९
सूर्यास्त - १८:१८
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

Duration : 30 minutes only
Time : IST 11:00 AM 🕚
Topic : One year of vaccination.
सूच्यौषधस्वीकरणस्य एकवर्षम्।
Date : 19thJanuary 2022,
Wednesday.
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मोदीवर्यः कया स्वच्छतां करोति?
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मार्जनायाः
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
अकर्मक धातुएं श्रोतारः तकन्ति। • श्रोता खूब हंस रहे हैं। (तकः हंस हंस के लोट-पोट हो जाना।) परिहासी श्रोतॄन् ताकयति। • मजाकिया श्रोताओं को हंसा रहा है। सर्वे प्रत्यहं हसेयुः। • सभी प्रतिदिन हसें। हास्यप्रशिक्षकः सर्वान् प्रतिदिनं हासयेयुः। • हास्यप्रशिक्षक…
दीपम् उभयतः शलभाः सन्ति।
• दीपक के दोनों ओर पतंगे हैं।

दीपावलीम् उभयतः पतङ्गाः पतन्ति।
• दीपमाला के दोनों ओर पतंगे गिर रहे हैं।

चम्पापुष्पम् अभितः चञ्चरिकौ स्तः।
• चम्पापुष्प के दोनों ओर भौंरे हैं।

इन्दीवरं सर्वतः इन्दिन्दिराः विराजन्ते।
• नीलकमल के चारों ओर भौंरे दिखाई दे रहे हैं।

रजनीगन्धां सर्वतः द्विरेफाः दृश्यन्ते।
• रातरानी के चारों ओर भौंरे दिखाई दे रहे हैं।

मालतीं परितः मधुलिहः मधुरं गुञ्जन्ति।
• चमेली के चारों ओर भौंरे मधुर गुंजार कर रहे हैं।

जपापुष्पं परितः पुष्पलोलुपाः लोलुप्यन्ते।
• गुड़हल के फूल के चारों ओर भौंरे लार टपका रहे हैं।

गन्धपुष्पं परितः भृङ्गाः भ्रमन्ति।
• गेंदे के फूल के चारों ओर भौंरे उड़ रहे हैं।


सज्जनं समया सज्जनाः वसन्ति।
• सज्जन के पास सज्जन रहते हैं।

गुरुकुले अन्तेवासिनः गुरुं समया निवसन्ति।
• गुरुकुल में विद्यार्थी गुरु के सानिध्य में रहते हैं।

चिकित्सालयं निकषा उद्यानं स्यात्।
• अस्पताल के समीप बगीचा होना चाहिए।


हा पुत्रम् इति कृत्वा माता शोचति।
• माता पुत्र के लिए शोक कर रही है।

हा धनम् इति कृत्वा वणिक् संतपति।
• बनिया धन के लिए संताप कर रहा है।

धिक् शिष्यं यो गुरुम् अभिद्रुह्यति।
• गुरुद्रोह करनेवाले शिष्य को धिक्कार है!

धिक् अधिकारिणम् उत्कोचं गृह्णाति।
• रिश्वत लेनेवाले अधिकारी पर लानत है।


वेदं प्रति प्रत्यावर्तेत विश्वम्।
• वेद की ओर संसार लौटे।

बुभुक्षितं न प्रतिभाति किञ्चित्।
• भूखे को कुछ भी अच्छा नहीं लगता।


प्राणीरूप-अप्राणीरूप-जगत् उपर्युपरि परमेश्वरो वर्तते।
• जड़ और चेतन जगत के ऊपर परमेश्वर है।

मेघान् अध्यधि वायुयानम् उड्डीयते।
• बादलों के ऊपर विमान उड़ रहा है।

वृक्षम् अधोऽधः तपस्वी शेते।
• पेड़ के नीचे तपस्वी सो रहा है।

अनुस्वार सन्धि

वर्ण/वर्ग    प्रथम   द्वितीय   तृतीय   चतुर्थ   पञ्चम
कवर्ग        क्        ख्        ग्        घ्        ङ्
चवर्ग        च्        छ्        ज्        झ्        ञ्
टवर्ग        ट्        ठ्        ड्        ढ्        ण्
तवर्ग        त्        थ्        द्        ध्        न्
पवर्ग        प्        फ्        ब्        भ्        म्

अन्तस्थ वर्ण      य्        र्        ल्        व्
ऊष्म वर्ण         श्        ष्        स्        ह्

अच् = स्वर (अ आ… आदि)
हल् = व्यञ्जन (क् ख्… आदि)
अनुस्वार = ं (कं)
अनुनासिक = ँ (कँ)
अवग्रह चिह्न = ऽ (रामो ऽ स्ति)

(पदान्त मकार को हल अर्थात् कोई व्यञ्जन बाद में हो तो अनुस्वार ( ं ) आदेश हो जाता है। यथा-)

रामम् पश्यति। > रामं पश्यति।
• राम को देख रहा है।

भाण्डम् शुध्यति > भाण्डं शुध्यति।
• बरतन शुद्ध कर रहा है।

वस्त्रम् शुष्यति > वस्त्रं शुष्यति।
• कपड़ा सुखा रहा है।

काष्ठम् भिनत्ति > काष्ठं भिनत्ति।
• लकड़ी फाड़ रहा है।

पटम् दृणाति > पटं दृणाति।
• थान को फाड़ रहा है।

पिष्टान्नम् खादति > पिष्टान्नं खादति।
• पंजीरी खा रहा है।

#vakyabhyas