संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
खर्जूः मां खर्जति।
• खाज मुझे व्याकुल कर रही है।
व्यथा सर्वान् व्यथति।
• व्यथा सबको बेचैन करती है।
वटुकं बुभुक्षा बाधते।
• छोटे बच्चे को भूख सता रही है।
पीड़ा पीड़ितं पीड़यति।
• दर्द रोगी को दुःख दे रहा है।
रोगः रोगिणं / रोगिणः रुजति।
• रोग रोगी को कष्ट दे रहा है।
सन्तापः अस्मान् सन्तापयति।
• सन्ताप हमें दुःख दे रहा है।
ज्वरः ज्वरिणं ज्वरयति।
• बुखार रोगी को कष्ट दे रहा है।
कष्टानि युष्मान् कष्टयन्ति।
• कष्ट तुम्हें पीड़ित कर रहे हैं।
आमयः आमयाविनम् आमयति।
• रोग रोगी को कष्ट दे रहा है।
गदः प्राणिनं दुःखयति।
• रोग प्राणियों को दुःख देता है।
नूतनं वसनं गात्रं कण्डूयति।
• नया कपड़ा शरीर को काट रहा है।
नूतनं पादत्राणं पादं पीड़यति।
• नया जूता पैर में चुभ रहा है।
मूषिका मुद्गान् मुष्णाति।
• चुहिया मूंग चुरा रही है।
चौरः आभूषणानि चोरयति / चोरयते।
• चोर गहने चुराता है।
लुण्टाकः पदातीन् लुण्टति।
• लुटेरा पथिकों को लूटता है।
कटुवाक्याणि सर्वान् कण्टन्ति।
• कड़वे बोल सभी को कांटे की तरह चुभते हैं।
माता भोजनं वण्टति।
• मां भोजन परोसती है।
परिवेषकः पायसं परिवेषयति।
• परोसने वाला खीर परोस रहा है।
जठरः भुक्तं जठति।
• उदर खाए-पीए अन्नादि को धारण करता / रखता है।
शुण्ठिः श्लेष्म शुण्ठति।
• सौंठ कफ को सुखाती है।
उद्दण्डः चाकखण्डं खण्डति।
• शरारती बालक चॉक (श्यामफलक की चूने से बनी लेखनी) के टुकड़े कर रहा है।
काष्ठाहरः काष्ठानि आहरति खण्डति च।
• लकड़हारा लकड़ियां लाता है और उन्हें फाड़ता है।
चण्डी प्रतिवेशिनं चण्डति।
• गुस्सैल महिला पड़ोसी पर क्रोध कर रही है।
मुण्डकः मुण्डं मुण्डति।
• नाई सिर मूंड रहा है।
भवान् किं अन्वेषयति।
• आप क्या ढूंढ रहे हैं?
अहं संस्कृत-शब्दान् अन्वेषयामि।
• मैं संस्कृत भाषा के शब्दों को खोज रहा हूँ।
वैज्ञानिकः किं आविष्करोति?
• वैज्ञानिक क्या आविष्कार कर रहा है?
वैज्ञानिकः नवं विज्ञानं विवृणुते।
• वैज्ञानिक नई खोज को प्रस्तुत (उद्घाटित) कर रहा है।
गुप्तचरः रहस्यं उद्घाटयति।
• जासूस रहस्य खोल रहा है।
#vakyabhyas
• खाज मुझे व्याकुल कर रही है।
व्यथा सर्वान् व्यथति।
• व्यथा सबको बेचैन करती है।
वटुकं बुभुक्षा बाधते।
• छोटे बच्चे को भूख सता रही है।
पीड़ा पीड़ितं पीड़यति।
• दर्द रोगी को दुःख दे रहा है।
रोगः रोगिणं / रोगिणः रुजति।
• रोग रोगी को कष्ट दे रहा है।
सन्तापः अस्मान् सन्तापयति।
• सन्ताप हमें दुःख दे रहा है।
ज्वरः ज्वरिणं ज्वरयति।
• बुखार रोगी को कष्ट दे रहा है।
कष्टानि युष्मान् कष्टयन्ति।
• कष्ट तुम्हें पीड़ित कर रहे हैं।
आमयः आमयाविनम् आमयति।
• रोग रोगी को कष्ट दे रहा है।
गदः प्राणिनं दुःखयति।
• रोग प्राणियों को दुःख देता है।
नूतनं वसनं गात्रं कण्डूयति।
• नया कपड़ा शरीर को काट रहा है।
नूतनं पादत्राणं पादं पीड़यति।
• नया जूता पैर में चुभ रहा है।
मूषिका मुद्गान् मुष्णाति।
• चुहिया मूंग चुरा रही है।
चौरः आभूषणानि चोरयति / चोरयते।
• चोर गहने चुराता है।
लुण्टाकः पदातीन् लुण्टति।
• लुटेरा पथिकों को लूटता है।
कटुवाक्याणि सर्वान् कण्टन्ति।
• कड़वे बोल सभी को कांटे की तरह चुभते हैं।
माता भोजनं वण्टति।
• मां भोजन परोसती है।
परिवेषकः पायसं परिवेषयति।
• परोसने वाला खीर परोस रहा है।
जठरः भुक्तं जठति।
• उदर खाए-पीए अन्नादि को धारण करता / रखता है।
शुण्ठिः श्लेष्म शुण्ठति।
• सौंठ कफ को सुखाती है।
उद्दण्डः चाकखण्डं खण्डति।
• शरारती बालक चॉक (श्यामफलक की चूने से बनी लेखनी) के टुकड़े कर रहा है।
काष्ठाहरः काष्ठानि आहरति खण्डति च।
• लकड़हारा लकड़ियां लाता है और उन्हें फाड़ता है।
चण्डी प्रतिवेशिनं चण्डति।
• गुस्सैल महिला पड़ोसी पर क्रोध कर रही है।
मुण्डकः मुण्डं मुण्डति।
• नाई सिर मूंड रहा है।
भवान् किं अन्वेषयति।
• आप क्या ढूंढ रहे हैं?
अहं संस्कृत-शब्दान् अन्वेषयामि।
• मैं संस्कृत भाषा के शब्दों को खोज रहा हूँ।
वैज्ञानिकः किं आविष्करोति?
• वैज्ञानिक क्या आविष्कार कर रहा है?
वैज्ञानिकः नवं विज्ञानं विवृणुते।
• वैज्ञानिक नई खोज को प्रस्तुत (उद्घाटित) कर रहा है।
गुप्तचरः रहस्यं उद्घाटयति।
• जासूस रहस्य खोल रहा है।
#vakyabhyas
देववाणीविलासः
(संस्कृतभाषा शिक्षण- मध्यमस्तरीय कक्षा)
समय- हर शनिवार मध्याह्न 4:30 से 5:30 तक
माध्यम- जूम् माध्यम द्वारा
प्रवेश संकेत- https://indicacademy.zoom.us/j/98231927653
प्रवेश संख्या- 982 3192 7653
(संस्कृतभाषा शिक्षण- मध्यमस्तरीय कक्षा)
समय- हर शनिवार मध्याह्न 4:30 से 5:30 तक
माध्यम- जूम् माध्यम द्वारा
प्रवेश संकेत- https://indicacademy.zoom.us/j/98231927653
प्रवेश संख्या- 982 3192 7653
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♦️sukhamaatyantikaM yattadbuddhigraahyamatiindriyam|
vetti yatra na chaivaayaM sthitashchalati tattvataH||6.21||
⚜6.21 When he (the Yogi) feels that Infinite Bliss which can be grasped by the (pure) intellect and which transcends the senses, and established wherein he never moves from the Reality.
⚜।।6.21।। इन्द्रियातीत केवल (शुद्ध) बुद्धि के द्वारा ग्राह्य जो अनन्त आनन्द है उसे जिस अवस्था में अनुभव करता है और जिसमें स्थित हुआ है यह योगी तत्त्व से कभी दूर नहीं होता है।।
#geeta
सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम्।
वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः
।।6.21।। ♦️sukhamaatyantikaM yattadbuddhigraahyamatiindriyam|
vetti yatra na chaivaayaM sthitashchalati tattvataH||6.21||
⚜6.21 When he (the Yogi) feels that Infinite Bliss which can be grasped by the (pure) intellect and which transcends the senses, and established wherein he never moves from the Reality.
⚜।।6.21।। इन्द्रियातीत केवल (शुद्ध) बुद्धि के द्वारा ग्राह्य जो अनन्त आनन्द है उसे जिस अवस्था में अनुभव करता है और जिसमें स्थित हुआ है यह योगी तत्त्व से कभी दूर नहीं होता है।।
#geeta
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)
मूलश्लोकः-73
तत्र लङ्कां समासाद्य पुरीं रावणपालिताम् ।
ददर्श सीतां ध्यायन्तीमशोकवनिकां गताम्।।73।।
श्लोकान्वयः -
(हनुमान्) रावणपालितां लङ्कां पुर समासाद्य
तत्र अशोकवनिकां गतां (रामं) ध्यायन्तीं सीतां ददर्श।।73।।
हिन्दी-अनुवाद -
हनुमान् रावण द्वारा पालित लङ्का में जाकर
वहाँ अशोकवाटिका में राम का ध्यान करती हुई सीता को देखा।।73।।
English Meaning
रावणपालिताम् ruled by Ravana, लङ्काम् पुरीम् city of Lanka, समासाद्य having reached, तत्र there, अशोकवनिकाम् गताम् who had gone to Ashoka garden, ध्यायन्तीम् contemplating (on Rama), सीताम् Sita, ददर्श found.
Hanuman arrived at the city of Lanka ruled by Ravana and found Sita in the Ashoka garden meditating on Rama.
#SankshepaRamayanam
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)
मूलश्लोकः-73
तत्र लङ्कां समासाद्य पुरीं रावणपालिताम् ।
ददर्श सीतां ध्यायन्तीमशोकवनिकां गताम्।।73।।
श्लोकान्वयः -
(हनुमान्) रावणपालितां लङ्कां पुर समासाद्य
तत्र अशोकवनिकां गतां (रामं) ध्यायन्तीं सीतां ददर्श।।73।।
हिन्दी-अनुवाद -
हनुमान् रावण द्वारा पालित लङ्का में जाकर
वहाँ अशोकवाटिका में राम का ध्यान करती हुई सीता को देखा।।73।।
English Meaning
रावणपालिताम् ruled by Ravana, लङ्काम् पुरीम् city of Lanka, समासाद्य having reached, तत्र there, अशोकवनिकाम् गताम् who had gone to Ashoka garden, ध्यायन्तीम् contemplating (on Rama), सीताम् Sita, ददर्श found.
Hanuman arrived at the city of Lanka ruled by Ravana and found Sita in the Ashoka garden meditating on Rama.
#SankshepaRamayanam
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♦️yaM labdhvaa chaaparaM laabhaM manyate naadhikaM tataH|
yasminsthito na duHkhena guruNaapi vichaalyate||6.22||
⚜6.22 Which, having obtained, he thinks there is no other gain superior to it; wherein estabished, he is not moved even by heavy sorrow.
⚜।।6.22।। और जिस लाभ को प्राप्त होकर उससे अधिक अन्य कुछ भी लाभ नहीं मानता है और जिसमें स्थित हुआ योगी बड़े भारी दुख से भी विचलित नहीं होता है।।
#geeta
यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते
।।6.22।। ♦️yaM labdhvaa chaaparaM laabhaM manyate naadhikaM tataH|
yasminsthito na duHkhena guruNaapi vichaalyate||6.22||
⚜6.22 Which, having obtained, he thinks there is no other gain superior to it; wherein estabished, he is not moved even by heavy sorrow.
⚜।।6.22।। और जिस लाभ को प्राप्त होकर उससे अधिक अन्य कुछ भी लाभ नहीं मानता है और जिसमें स्थित हुआ योगी बड़े भारी दुख से भी विचलित नहीं होता है।।
#geeta
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
https://youtu.be/aQdTwz9RZVw
https://youtu.be/aQdTwz9RZVw
YouTube
वार्ता: संस्कृत में आज के मुख्य समाचार
वार्ता: संस्कृत में आज के मुख्य समाचार
DD News is India’s 24x7 news channel from the stable of the country’s Public Service Broadcaster, Prasar Bharati. It has the distinction of being India’s only terrestrial cum satellite News Channel. Launched in 2003…
DD News is India’s 24x7 news channel from the stable of the country’s Public Service Broadcaster, Prasar Bharati. It has the distinction of being India’s only terrestrial cum satellite News Channel. Launched in 2003…
🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞
⛅ *दिनांक - 09 जनवरी 2022*
⛅ *दिन - रविवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2078*
⛅ *शक संवत -1943*
⛅ *अयन - दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु - शिशिर*
⛅ *मास - पौस*
⛅ *पक्ष - शुक्ल*
⛅ *तिथि - सप्तमी सुबह 11:10 तक तत्पश्चात अष्टमी*
⛅ *नक्षत्र - रेवती पूर्ण रात्रि तक*
⛅ *योग - परिघ सुबह 10:50 तक तत्पश्चात शिव*
⛅ *राहुकाल - शाम 04:52 से शाम 06:14 तक*
⛅ *सूर्योदय - 07:19*
⛅ *सूर्यास्त - 18:12*
⛅ *दिशाशूल - पश्चिम दिशा में*
⛅ *दिनांक - 09 जनवरी 2022*
⛅ *दिन - रविवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2078*
⛅ *शक संवत -1943*
⛅ *अयन - दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु - शिशिर*
⛅ *मास - पौस*
⛅ *पक्ष - शुक्ल*
⛅ *तिथि - सप्तमी सुबह 11:10 तक तत्पश्चात अष्टमी*
⛅ *नक्षत्र - रेवती पूर्ण रात्रि तक*
⛅ *योग - परिघ सुबह 10:50 तक तत्पश्चात शिव*
⛅ *राहुकाल - शाम 04:52 से शाम 06:14 तक*
⛅ *सूर्योदय - 07:19*
⛅ *सूर्यास्त - 18:12*
⛅ *दिशाशूल - पश्चिम दिशा में*
गुरुगोविंदसिंहः सिक्खानां ________ गुरुः आसीत्।
Anonymous Quiz
12%
दशः
65%
दशमः
7%
दशवः
11%
दशमम्
5%
दशमी
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
खर्जूः मां खर्जति। • खाज मुझे व्याकुल कर रही है। व्यथा सर्वान् व्यथति। • व्यथा सबको बेचैन करती है। वटुकं बुभुक्षा बाधते। • छोटे बच्चे को भूख सता रही है। पीड़ा पीड़ितं पीड़यति। • दर्द रोगी को दुःख दे रहा है। रोगः रोगिणं / रोगिणः रुजति। • रोग रोगी…
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*महाभारतस्य प्रसङ्गः! दुर्योधनस्य दूतस्य उलुकस्य युधिष्ठिरेण सह संवादः।*
महाभारतस्य युद्धात् प्राक् दुर्योधनः शकुनिपुत्रम् उलुकं कौरवाणां दूतत्वेन पाण्डवानां सकाशम् अप्रेषयत्।
पाण्डवानां सभायां पाण्डवाः भगवान् श्रीकृष्णः, धृष्टद्युम्नः च आसन्।
उलुकः तत्र गत्वा धर्मराजं युधिष्ठिरं प्रणम्य अवदत् हे राजन्! अहं केवलं दूतोऽस्मि। अपिच मम विश्वासः अस्ति यद् भवान् दूतस्य रक्षणं कुर्यात्। दुर्योधनस्य सन्देशं श्रावयितुम् अहम् आगतवान्। सन्देशः तस्यैव अस्ति शब्दावलिः अपि तस्यैव अस्ति।
युधिष्ठिरः तस्मै आश्वासनं प्रदाय अवदत् हे उलुक! मम प्रियानुजः दुर्योधनः यदुक्तवान् तदेव निर्भयेण कथय! इति।
उलुकः अवदत् महाराज!
धृतराष्ट्रपुत्रः दुर्योधनः एवम् उक्तवान् - त्वं द्यूते पराजितः अभवः। तव पत्नीं यदा राजसभाम् आनीय तस्याः वस्त्रहरणं भवति स्म तदा यूयं सर्वे तूष्णीं स्थित्वा सर्वम् अपमानं सहध्वे स्म।
यूयं मम दासाः स्थ। मम आदेशानुसारं यूयं द्वादशवर्षाणि यावत् वनवासं समाप्य एकवर्षं यावद् अज्ञातवासत्वेन विराटराजस्य दासत्वं स्वीकृत्य कालयापनस्य अन्तिमे काले अहं युष्माकम् अज्ञातवासं भङ्गम् अकरवम्।
नियमानुसारं युष्माभिः पुनः वनं प्रति गन्तव्यम्। युद्धस्य विचारः युष्माभिः कदापि न करणीयः यतः ये स्वपत्न्याः रक्षां कर्तुं न शक्नुवन्ति ते नपुंसकाः भवन्ति।
अतः मम आदेशः यद् यूयं पुनः वनवासं गच्छत, ततः आगत्य माम् इन्द्रप्रस्थं याचत, सम्भवतः तदा अहं युष्मभ्यम् इन्द्रप्रस्थं दद्याम्।
यदि एवं कर्तुं न शक्नोषि तर्हि आत्मानं धर्मात्मा इति कथनं त्यज।
वासुदेवः कृष्णः युष्माकं कृते मां पञ्चग्रामान् अयाचत परन्तु अहं न अददाम्, यतोहि त्वम् अधर्मी असि। तव पत्न्याः स्वाभिमानस्य अपेक्षया तव राजमुकुटं प्रति मोहः अधिकः। यदि एवं न अभविष्यत् तर्हि त्वं दूतं न अप्रेषयिष्यः, प्रत्युत युद्धम् अकरिष्यः।
यः स्वपत्न्याः अपमानं सोढ्वा अपि तूष्णीमेव तिष्ठति सः क्षत्रियः तु न, मनुष्योऽपि न भवति। सः नपुंसकः भवति।
अतः पुनः कथयामि यद् युद्धस्य विचारं त्यक्त्वा यूयं विराटराजस्य दासत्वं स्वीकृत्य पुनः जीवनं कुरुत।
परन्तु यदि युद्धं भवेत् तर्हि निश्चयेन अहं युष्मान् सर्वान् हनिष्यामि। अतः यूयम् इदानीं यत्र स्थ तत्रैव तिष्टत।
अन्ते श्रीकृष्णः अवदत् हे धूर्तशकुनिपुत्र उलुक! त्वं तु दुर्योधनस्य सन्देशं श्रावयित्वा स्वकर्तव्यस्य पालनम् अकरोः। वयं च तच्छ्रुत्वा अस्माकं कर्तव्यस्य पालनं कुर्मः।
इदानीं त्वं गच्छ। गत्वा मूढदुर्योधनं कथय यद् हे दुर्योधन! त्वं तु क्षत्रियवद् जीवितुं तु न अशक्नोः, परन्तु क्षत्रियवद् वीरगतिं प्राप्तुं प्रयत्नं कुरु। यतः क्षत्रियः भूत्वा मृत्युवरणं सरलकार्यं न अपितु कठिनकार्यं भवति।
*-प्रदीपः!*
महाभारतस्य युद्धात् प्राक् दुर्योधनः शकुनिपुत्रम् उलुकं कौरवाणां दूतत्वेन पाण्डवानां सकाशम् अप्रेषयत्।
पाण्डवानां सभायां पाण्डवाः भगवान् श्रीकृष्णः, धृष्टद्युम्नः च आसन्।
उलुकः तत्र गत्वा धर्मराजं युधिष्ठिरं प्रणम्य अवदत् हे राजन्! अहं केवलं दूतोऽस्मि। अपिच मम विश्वासः अस्ति यद् भवान् दूतस्य रक्षणं कुर्यात्। दुर्योधनस्य सन्देशं श्रावयितुम् अहम् आगतवान्। सन्देशः तस्यैव अस्ति शब्दावलिः अपि तस्यैव अस्ति।
युधिष्ठिरः तस्मै आश्वासनं प्रदाय अवदत् हे उलुक! मम प्रियानुजः दुर्योधनः यदुक्तवान् तदेव निर्भयेण कथय! इति।
उलुकः अवदत् महाराज!
धृतराष्ट्रपुत्रः दुर्योधनः एवम् उक्तवान् - त्वं द्यूते पराजितः अभवः। तव पत्नीं यदा राजसभाम् आनीय तस्याः वस्त्रहरणं भवति स्म तदा यूयं सर्वे तूष्णीं स्थित्वा सर्वम् अपमानं सहध्वे स्म।
यूयं मम दासाः स्थ। मम आदेशानुसारं यूयं द्वादशवर्षाणि यावत् वनवासं समाप्य एकवर्षं यावद् अज्ञातवासत्वेन विराटराजस्य दासत्वं स्वीकृत्य कालयापनस्य अन्तिमे काले अहं युष्माकम् अज्ञातवासं भङ्गम् अकरवम्।
नियमानुसारं युष्माभिः पुनः वनं प्रति गन्तव्यम्। युद्धस्य विचारः युष्माभिः कदापि न करणीयः यतः ये स्वपत्न्याः रक्षां कर्तुं न शक्नुवन्ति ते नपुंसकाः भवन्ति।
अतः मम आदेशः यद् यूयं पुनः वनवासं गच्छत, ततः आगत्य माम् इन्द्रप्रस्थं याचत, सम्भवतः तदा अहं युष्मभ्यम् इन्द्रप्रस्थं दद्याम्।
यदि एवं कर्तुं न शक्नोषि तर्हि आत्मानं धर्मात्मा इति कथनं त्यज।
वासुदेवः कृष्णः युष्माकं कृते मां पञ्चग्रामान् अयाचत परन्तु अहं न अददाम्, यतोहि त्वम् अधर्मी असि। तव पत्न्याः स्वाभिमानस्य अपेक्षया तव राजमुकुटं प्रति मोहः अधिकः। यदि एवं न अभविष्यत् तर्हि त्वं दूतं न अप्रेषयिष्यः, प्रत्युत युद्धम् अकरिष्यः।
यः स्वपत्न्याः अपमानं सोढ्वा अपि तूष्णीमेव तिष्ठति सः क्षत्रियः तु न, मनुष्योऽपि न भवति। सः नपुंसकः भवति।
अतः पुनः कथयामि यद् युद्धस्य विचारं त्यक्त्वा यूयं विराटराजस्य दासत्वं स्वीकृत्य पुनः जीवनं कुरुत।
परन्तु यदि युद्धं भवेत् तर्हि निश्चयेन अहं युष्मान् सर्वान् हनिष्यामि। अतः यूयम् इदानीं यत्र स्थ तत्रैव तिष्टत।
अन्ते श्रीकृष्णः अवदत् हे धूर्तशकुनिपुत्र उलुक! त्वं तु दुर्योधनस्य सन्देशं श्रावयित्वा स्वकर्तव्यस्य पालनम् अकरोः। वयं च तच्छ्रुत्वा अस्माकं कर्तव्यस्य पालनं कुर्मः।
इदानीं त्वं गच्छ। गत्वा मूढदुर्योधनं कथय यद् हे दुर्योधन! त्वं तु क्षत्रियवद् जीवितुं तु न अशक्नोः, परन्तु क्षत्रियवद् वीरगतिं प्राप्तुं प्रयत्नं कुरु। यतः क्षत्रियः भूत्वा मृत्युवरणं सरलकार्यं न अपितु कठिनकार्यं भवति।
*-प्रदीपः!*
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)
मूलश्लोकः-74
निवेदयित्वाऽभिज्ञानं प्रवृत्तिं विनिवेद्य च।
समाश्वास्य च वैदेहीं मर्दयामास तोरणम्।।74।।
श्लोकान्वयः -
(ततश्च हनुमान्) अभिज्ञानं निवेदयित्वा* प्रवृत्तिं च
(रामस्य) विनिवेद्य वैदहीं समाश्वास्य च तोरणं मर्दयामास।74।।
हिन्दी-अनुवाद -
उसके बाद हनुमान् राम की परिचायक अंगूठी सीता को देकर सीताहरण के बाद राम सुग्रीव की मैत्री पर्यन्त का सारा वृत्तन्त सुनाया। फिर केवल सीता को ही जो पता हो ऐसे राम के अंग के चिह्न के बारे में बताया एवं ‘शीघ्र ही राम आने वाले हैं’ ऐसा कहकर सीता को आश्वस्त कर अशोक वाटिका एवं उसके प्रवेशद्वार को ध्वस्त कर दिया।।74।।
English Meaning
अभिज्ञानम् as token of recognition (Rama's ring), निवेदयित्वा having presented, प्रवृत्तिं च the entire account, निवेद्य च having related, वैदेहीम् daughter of the king of Videha with its capital at Mithila, Sita, समाश्वास्य having consoled, तोरणम् outer gate of the garden, मर्दयामास crushed.
Hanuman delivered Rama's ring to Sita as a token of recognition, related the whole story and consoled her. He then crushed the arch (of the outer gate of the garden) before leaving.
#SankshepaRamayanam
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)
मूलश्लोकः-74
निवेदयित्वाऽभिज्ञानं प्रवृत्तिं विनिवेद्य च।
समाश्वास्य च वैदेहीं मर्दयामास तोरणम्।।74।।
श्लोकान्वयः -
(ततश्च हनुमान्) अभिज्ञानं निवेदयित्वा* प्रवृत्तिं च
(रामस्य) विनिवेद्य वैदहीं समाश्वास्य च तोरणं मर्दयामास।74।।
हिन्दी-अनुवाद -
उसके बाद हनुमान् राम की परिचायक अंगूठी सीता को देकर सीताहरण के बाद राम सुग्रीव की मैत्री पर्यन्त का सारा वृत्तन्त सुनाया। फिर केवल सीता को ही जो पता हो ऐसे राम के अंग के चिह्न के बारे में बताया एवं ‘शीघ्र ही राम आने वाले हैं’ ऐसा कहकर सीता को आश्वस्त कर अशोक वाटिका एवं उसके प्रवेशद्वार को ध्वस्त कर दिया।।74।।
English Meaning
अभिज्ञानम् as token of recognition (Rama's ring), निवेदयित्वा having presented, प्रवृत्तिं च the entire account, निवेद्य च having related, वैदेहीम् daughter of the king of Videha with its capital at Mithila, Sita, समाश्वास्य having consoled, तोरणम् outer gate of the garden, मर्दयामास crushed.
Hanuman delivered Rama's ring to Sita as a token of recognition, related the whole story and consoled her. He then crushed the arch (of the outer gate of the garden) before leaving.
#SankshepaRamayanam