संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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श्रीधराचार्य ने इस बहुमूल्य सूत्र को भास्कराचार्य का नाम लेकर अविकल रूप से उद्धृत किया —

चतुराहतवर्गसमैः रूपैः पक्षद्वयं गुणयेत् ।
अव्यक्तवर्गरूपैर्युक्तौ पक्षौ ततो मूलम् ॥ 


भास्करीय बीजगणित
अव्यक्त-वर्गादि-समीकरण, पृ. - 221

प्रथम अव्यक्त वर्ग के चतुर्गुणित रूप या गुणांक (4a) से दोनों पक्षों के गुणांको को गुणित करके द्वितीय अव्यक्त गुणांक (b) के वर्गतुल्य रूप दोनों पक्षों में जोड़ें। पुनः द्वितीय पक्ष का वर्गमूल प्राप्त करें।

#celebrating_sanskrit
🌷~समुत्पत्य = उछलकर~🌷

•कपिः समुत्पत्य वृक्षम् आरोहति ।
(बन्दर उछलकर पेड़ पर चढ़ता है।)
•बालकः समुत्पत्य फलं त्रोटयति ।
(बालक उछलकर फल तोड़ता है।)
•एकदा अहम् अपश्यं यत् -
(एकबार मैंने देखा था कि-)
•-एका मार्जारी समुत्पत्य चटकाम् अगृह्णात् ।
(एक बिल्ली उछलकर चिड़िया पकड़ ली थी।)
🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

नम्(प्रणाम करना, झुकना) धातुः
🔻लोट् लकारस्य वाक्यानि🔻



प्रथमपुरुषस्य वाक्यानि ➡️

🔴सः नमतु(वह प्रणाम करे) । कः नमतु(वह प्रणाम करे)? रामः नमतु(राम प्रणाम करें) ।🔴 सा नमतु(वह प्रणाम करे)। का नमतु(कौन प्रणाम करे)? राधा नमतु (राधा प्रणाम करे)।🔴 भवान् नमतु(आप प्रणाम करें)। भवती नमतु(आप प्रणाम करें)।🔴सः कं नमतु(वह किसको प्रणाम करे)? अयं देवं नमतु (यह देवता को प्रणाम करे)। इयं पितरं नमतु (यह प्रणाम करे)। भवती मातरं नमतु(आप माता को प्रणाम करें)।🙏

मध्यमपुरुषस्य वाक्यानि ➡️
🔴 त्वं नम(तुम प्रणाम करो)। त्वं कं नम(तुम किसको प्रणाम करो)? त्वं देवं नम(तुम देवता को प्रणाम करो)। त्वं मातरं पितरं च नम(तुम माता-पिता को प्रणाम करो)।🙏

उत्तमपुरुषस्य वाक्यानि ➡️
🔴अहं नमानि (मैं प्रणाम करूं)। अहं गुरुं नमानि(मैं प्रणाम करूं) । अहं कं नमानि (मैं किसको प्रणाम करूं)? अहं मातरं नमानि(मैं मां को प्रणाम करूं) । अहं पितरं नमानि(मैं पिता को प्रणाम करूं) ।

सः पठितुं पाठशालां गच्छति।
=वह पढ़ने के लिए पाठशाला जाता है।
सा पक्तुं पाकशालां गच्छति ।
=वह पकाने के लिए पाकशाला जाती है।
सा पूजयितुं देवालयं याति ।
=वह पूजा करने के लिए मन्दिर जाती है।
अयं खादितुं भोजनालयं पद्यते।
=यह खाने के लिए भोजनालय जाता है।
भवान्/भवती भ्रमितुं वाटिकां व्रजति।
=आप घूमने के उपवन जाते/जाती हैं।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

भवती पठितुं कदा गच्छति?
=आप पढ़ने कब जाती हैं?
सा भ्रमितुं कुत्र गच्छति?
=वह भ्रमण करने कब जाती है?
सा किमर्थं पाकशालां याति?
=वह पाकशाला में किसलिए जाती है?
भवान् भोजनालयं कथं याति?
=आप भोजनालय कैसे जाते हैं?
सा पूजयितुं कदा कुत्र च गच्छति?
=वह पूजा करने कब और कहां जाती है?

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

#vakyabhyas
भारतीयसेनायाः अनुशासनम्, अदम्यसाहसः, अद्भूतपराक्रमश्च इत्येतेषाम् ऐतिहासिकी उपलब्धिरस्ति विजयदिवसः।

१९७१ तमे वर्षे दिसम्बरमासस्य षोडशे दिवसे अर्थात् अस्मिन्नेव दिने भारतपाकिस्तानयोः युद्धे स्वेन अप्रतिमशौर्येण विजयं प्राप्तवद्भ्यः भारतमातुः वीरसैनिकेभ्यः कोटिशः नमः।
जय हिन्द् वन्दे मातरम्।
🇮🇳🇮🇳
*-प्रदीपः!*
. ।। ॐ ।।
चिरन्तन-हासः ।

राहुलः मेहुलः च मित्रद्वयम् अस्ति । कदाचित् मार्गे मिलति ।

मेहुलः - अरे राहुल ! कथं यापितः ह्यस्तनः रविवासरः ?

राहुलः - ( म्लानमुखेन ) सख्या सह मम विवादः जातः ।

मेहुलः - हा हन्त ! कीदृशः विवादः ?

राहुलः - सा नाटकं द्रष्टुम् इष्टवती अहं च चित्रपटम् ।

मेहुलः - तर्हि किं नाटकं दृष्टं भवद्वयेन ?

विवादे सर्वदा भवतां विजयः भवेत् ।
🙏
------ संस्कृतानन्दः ।

#hasya
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)

ूलश्लोक:-44-45

स तेषां प्रतिशुश्राव राक्षसानां तदा वने।।44।।
प्रतिज्ञातश्च रामेण वध: संयति रक्षसाम्‌।
ऋषीणामग्निकल्पानां दण्डकारण्यवासिनाम्‌।। 45।।

श्लोकान्वयः -
स: तेषां (ऋषीणां) राक्षसानां (वधं) प्रतिशुश्राव।।
रामेण च अग्निकल्पानां दण्डकारण्यवासिनाम्‌
ऋषीणां (सन्निधौ) संयति रक्षसां वध: प्रतिज्ञात:।।45।।

हिन्दी - अनुवाद -
श्रीराम ने राक्षसों के संहार हेतु ऋषियों की प्रार्थना स्वीकार किया।।
राम ने दण्डकारण्य निवासी, अग्नितुल्य ऋषियों के सामने राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा की।।45।।

English Meaning

स: Rama, राक्षसानाम् for rakshsas (abode of), वने in that forest, तेषां to those asetics, तथा that prayer, प्रतिशुश्राव assented, ऋषीणाम् of the ascetics, अग्निकल्पानाम् in lustre resembling flaming fire, दण्डकारण्यवासिनाम् inhabitants of Dandakaranya, संयति in the battle, रक्षसाम् of rakshasas, वधश्च slaying also, रामेण by Rama, प्रतिज्ञातः was promised.

Rama promised those ascetics, who resembled flaming fire in lustre living in Dandakaranya inhabited by rakshasas to slay them.

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श्रीमद्भगवद्गीता [05.04]
🍃सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः।
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम्
।।5.4।।

♦️saaMkhyayogau pRRithagbaalaaH pravadanti na paNDitaaH|
ekamapyaasthitaH samyagubhayorvindate phalam||5.4||

5.4 Children, not the wise, speak of knowledge and the Yoga of action or the performance of action as though they are distinct and different; he who is truly established in one obtains the fruits of both.

।।5.4।। बालक अर्थात् बालबुद्धि के लोग सांख्य (संन्यास) और योग को परस्पर भिन्न समझते हैं किसी एक में भी सम्यक् प्रकार से स्थित हुआ पुरुष दोनों के फल को प्राप्त कर लेता है।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [05.05]
🍃यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते।
एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति
।।5.5।।

♦️yatsaaMkhyaiH praapyate sthaanaM tadyogairapi gamyate|
ekaM saaMkhyaM cha yogaM cha yaH pashyati sa pashyati||5.5||

5.5 That place which is reached by the Sankhyas or the Jnanis is reached by the Yogis (Karma Yogis). He sees, who sees knowledge and the performance of action (Karma Yoga) as one.

।।5.5।। जो स्थान ज्ञानियों द्वारा प्राप्त किया जाता है उसी स्थान पर कर्मयोगी भी पहुँचते हैं। इसलिए जो पुरुष सांख्य और योग को (फलरूप से) एक ही देखता है वही (वास्तव में) देखता है।।

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