🌿
🌞 कर्मेन्द्रियाणि हस्तादीनि संयम्य संहृत्य यः आस्ते तिष्ठति मनसा स्मरन् चिन्तयन् इन्द्रियार्थान् विषयान् विमूढात्मा विमूढान्तःकरणः मिथ्याचारो मृषाचारः पापाचारः सः उच्यते॥
🌷 जो मूढ बुद्धि पुरुष कर्मेन्द्रियों का निग्रह कर इन्द्रियों के भोगों का मन से स्मरण (चिन्तन) करता रहता है वह मिथ्याचारी (दम्भी) कहा जाता है।
🌹 He who, controlling the organs of action, lets his mind dwell on the objects of senses, is a deluded person and a hypocrite.
📍 श्रीमद्भगवद्गीता ३।६॥ #Subhashitam
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते॥
🌞 कर्मेन्द्रियाणि हस्तादीनि संयम्य संहृत्य यः आस्ते तिष्ठति मनसा स्मरन् चिन्तयन् इन्द्रियार्थान् विषयान् विमूढात्मा विमूढान्तःकरणः मिथ्याचारो मृषाचारः पापाचारः सः उच्यते॥
🌷 जो मूढ बुद्धि पुरुष कर्मेन्द्रियों का निग्रह कर इन्द्रियों के भोगों का मन से स्मरण (चिन्तन) करता रहता है वह मिथ्याचारी (दम्भी) कहा जाता है।
🌹 He who, controlling the organs of action, lets his mind dwell on the objects of senses, is a deluded person and a hypocrite.
📍 श्रीमद्भगवद्गीता ३।६॥ #Subhashitam
एतेषु किं वाक्यं शुद्धम्।
Anonymous Quiz
8%
रामः राक्षसाः हतवान्।
24%
रामेण राक्षसान् हताः।
10%
रामः राक्षसान् हताः।
58%
रामेण राक्षसाः हताः।
श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द
----------------------------
(१)पद्मा (स्त्रीलिंग)-लक्ष्मी।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि दिपावली में यदि कोई श्रद्धाभाव के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करते है,तो उसके घर में दरिद्रता का कभी वास नहीं होता है =
एवं विश्वस्यते यत् दिपोत्सवे यदि कश्चन श्रद्धापूर्वकं मातरं पद्मां इट्टे ,तर्हि तस्य गृहे निर्धनत्वं कदापि न तिष्ठति।
-------
पद्मम् (नपुंसक)- कमल।
जो व्यक्ति ज्ञान पाने के इच्छुक रहता है, पढ़ता है,लिखता है,देखता है, प्रश्न पूछता है,बुद्धिमानों का सहारा लेता है।उसकी बुद्धि उसी प्रकार बढ़ती है जैसे कि सूर्य की किरणों से कमल की पंखुड़ियां फैल जाती है=
यो जिज्ञासु भवति,पठति,लिखति,पश्यति,परिपृच्छति,पण्डितान् आश्रयति।तस्य बुद्धि: दिवाकरकिरणै: पद्मदलमिव विस्तारिता भवति।
(२)रस:(पुल्लिंग)-रस।
जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आंवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं =
उभयो: पक्षयो: एकादश्यो: आमलरसं प्रयुज्य ये स्नानं कुर्वन्ति, तेषां सर्वपापानि उत्सीदन्ति।
--------
रस:(पुल्लिंग)-स्वाद।
शुद्ध सरसो का तेल खाने में स्वाद के साथ साथ आपकी स्वास्थ्य को भी बनाए रखता है = शुद्धं सर्षपतैलं खादने रसेन सह भवत: स्वास्थ्यमपि रक्षति।
------
रसा (स्त्रीलिंग)-पृथ्वी।
पृथ्वी के सबसे वृद्ध हिन्दू संत श्री हनुमानदास जी , जो १७० वर्ष से भी अधिक उम्र के है, उन्होंने गौ सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है =
रसाया: वृद्धतम: सनातन: साधो: वय: सप्ततिरधिकशतात्दधिकं अस्ति स च गौसेवायै स्वपूर्णजीवनं समर्पितवान्।
बच्चे के कान उमेठने के लिए नहीं बना है
•• बालकानां कर्ण: आकुञ्चनाय न भवति।
गलती होने पर भी बच्चे को सीने से लगा कर प्यार से समझा कर देखिये तो सही
•• दोषे सत्यपि बालं वक्षसा सम्यग् आश्लिष्य प्रीतिपूर्वकं तं प्रबोध्य विचारयतु
वह अपने उसी कान से आपके दिल की धड़कन सुन कर सब समझ जाएगा जिस
कान को आप उमेठने को बेताब रहते हैं।
•• स स्वकीयेन तेनैव कर्णेन भवत: हृदयस्पन्दनं श्रुत्वा सर्वम् अवगमिष्यति , यस्य कर्णस्य आकुञ्चनाय भवान् व्यग्रो भवति।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
----------------------------
(१)पद्मा (स्त्रीलिंग)-लक्ष्मी।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि दिपावली में यदि कोई श्रद्धाभाव के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करते है,तो उसके घर में दरिद्रता का कभी वास नहीं होता है =
एवं विश्वस्यते यत् दिपोत्सवे यदि कश्चन श्रद्धापूर्वकं मातरं पद्मां इट्टे ,तर्हि तस्य गृहे निर्धनत्वं कदापि न तिष्ठति।
-------
पद्मम् (नपुंसक)- कमल।
जो व्यक्ति ज्ञान पाने के इच्छुक रहता है, पढ़ता है,लिखता है,देखता है, प्रश्न पूछता है,बुद्धिमानों का सहारा लेता है।उसकी बुद्धि उसी प्रकार बढ़ती है जैसे कि सूर्य की किरणों से कमल की पंखुड़ियां फैल जाती है=
यो जिज्ञासु भवति,पठति,लिखति,पश्यति,परिपृच्छति,पण्डितान् आश्रयति।तस्य बुद्धि: दिवाकरकिरणै: पद्मदलमिव विस्तारिता भवति।
(२)रस:(पुल्लिंग)-रस।
जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आंवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं =
उभयो: पक्षयो: एकादश्यो: आमलरसं प्रयुज्य ये स्नानं कुर्वन्ति, तेषां सर्वपापानि उत्सीदन्ति।
--------
रस:(पुल्लिंग)-स्वाद।
शुद्ध सरसो का तेल खाने में स्वाद के साथ साथ आपकी स्वास्थ्य को भी बनाए रखता है = शुद्धं सर्षपतैलं खादने रसेन सह भवत: स्वास्थ्यमपि रक्षति।
------
रसा (स्त्रीलिंग)-पृथ्वी।
पृथ्वी के सबसे वृद्ध हिन्दू संत श्री हनुमानदास जी , जो १७० वर्ष से भी अधिक उम्र के है, उन्होंने गौ सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है =
रसाया: वृद्धतम: सनातन: साधो: वय: सप्ततिरधिकशतात्दधिकं अस्ति स च गौसेवायै स्वपूर्णजीवनं समर्पितवान्।
बच्चे के कान उमेठने के लिए नहीं बना है
•• बालकानां कर्ण: आकुञ्चनाय न भवति।
गलती होने पर भी बच्चे को सीने से लगा कर प्यार से समझा कर देखिये तो सही
•• दोषे सत्यपि बालं वक्षसा सम्यग् आश्लिष्य प्रीतिपूर्वकं तं प्रबोध्य विचारयतु
वह अपने उसी कान से आपके दिल की धड़कन सुन कर सब समझ जाएगा जिस
कान को आप उमेठने को बेताब रहते हैं।
•• स स्वकीयेन तेनैव कर्णेन भवत: हृदयस्पन्दनं श्रुत्वा सर्वम् अवगमिष्यति , यस्य कर्णस्य आकुञ्चनाय भवान् व्यग्रो भवति।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
यण्-सन्धिः
सूत्रम् - इको यणचि।
The letters य्, व्, र्, ल् replace the letters इ/ ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ, ऌ, whe they are followed by a असवर्ण-स्वर (dissimilar vowel).
१.यदि + एवम् = यद्येवम् ।
२.स्मरतु + इति = स्मरत्विति ।
३. पितृ + अग्रजः = पित्रग्रजः ।
४.ऌ + आकृतिः = लाकृतिः।
Note: सवर्ण is a techical term of grammar. Two letters which have the same place of origin (उत्पत्तिस्थान) and same internal effort (आभ्यन्तरप्रयत्न) will be सवर्णs of each other.
For the purposes of executing सन्धिs, short and long varieties of any स्वर are सवर्णs of each other. For example, For the letter इ, इ-ई are सवर्णs, and all other स्वरs are अ-सवर्णs (not सवर्णs). ऋ, ॠ and ऌ are all सवर्णs of each other. #sanskritlessons
सूत्रम् - इको यणचि।
The letters य्, व्, र्, ल् replace the letters इ/ ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ, ऌ, whe they are followed by a असवर्ण-स्वर (dissimilar vowel).
१.यदि + एवम् = यद्येवम् ।
२.स्मरतु + इति = स्मरत्विति ।
३. पितृ + अग्रजः = पित्रग्रजः ।
४.ऌ + आकृतिः = लाकृतिः।
Note: सवर्ण is a techical term of grammar. Two letters which have the same place of origin (उत्पत्तिस्थान) and same internal effort (आभ्यन्तरप्रयत्न) will be सवर्णs of each other.
For the purposes of executing सन्धिs, short and long varieties of any स्वर are सवर्णs of each other. For example, For the letter इ, इ-ई are सवर्णs, and all other स्वरs are अ-सवर्णs (not सवर्णs). ऋ, ॠ and ऌ are all सवर्णs of each other. #sanskritlessons
@samvadah organises संलापशाला - A Sanskrit Voicechat Room
🔰विषयः - सुभाषचन्द्रबोसः
🗓२४/१/२०२४ ॥ IST ११:०० AM
🔴 It's recording would be shared on our channel.
📑कृपया दैववाचा चर्चार्थं एतद्विषयम् अभिक्रम्य आगच्छत।
https://t.me/samvadah?livestream
पूर्वचर्चाणां सङ्ग्रहः अधोदत्तः
https://archive.org/details/samlapshala_
🔰विषयः - सुभाषचन्द्रबोसः
🗓२४/१/२०२४ ॥ IST ११:०० AM
🔴 It's recording would be shared on our channel.
📑कृपया दैववाचा चर्चार्थं एतद्विषयम् अभिक्रम्य आगच्छत।
https://t.me/samvadah?livestream
पूर्वचर्चाणां सङ्ग्रहः अधोदत्तः
https://archive.org/details/samlapshala_
Telegram
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
Daily dose of Sanskrit.
Network
https://t.me/samvadah/11287
Linked group @samskrta_group
News and magazines @ramdootah
Super group @Ask_sanskrit
Network
https://t.me/samvadah/11287
Linked group @samskrta_group
News and magazines @ramdootah
Super group @Ask_sanskrit
🚩 जय सत्य सनातन 🚩
🚩 आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩 तिथि - चतुर्दशी रात्रि 09:49 तक तत्पश्चात पूर्णिमा
⛅ दिनांक - 24 जनवरी 2024
⛅ दिन - बुधवार
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - शिशिर
⛅ मास - पौष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - पुनर्वसु पूर्ण रात्रि तक
⛅ योग - वैधृति सुबह 07:40 तक तत्पश्चात विष्कम्भ
⛅ राहु काल - दोपहर 12:52 से 02:14 तक
⛅ सूर्योदय - 07:22
⛅ सूर्यास्त - 06:21
⛅ दिशा शूल - उत्तर
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक
⛅ निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:26 से 01:18 तक
#panchang
🚩 आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩 तिथि - चतुर्दशी रात्रि 09:49 तक तत्पश्चात पूर्णिमा
⛅ दिनांक - 24 जनवरी 2024
⛅ दिन - बुधवार
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - शिशिर
⛅ मास - पौष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - पुनर्वसु पूर्ण रात्रि तक
⛅ योग - वैधृति सुबह 07:40 तक तत्पश्चात विष्कम्भ
⛅ राहु काल - दोपहर 12:52 से 02:14 तक
⛅ सूर्योदय - 07:22
⛅ सूर्यास्त - 06:21
⛅ दिशा शूल - उत्तर
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक
⛅ निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:26 से 01:18 तक
#panchang
🌿
🌞 न मां परमेश्वरं नारायणं दुष्कृतिनः पापकारिणः मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः नराणां मध्ये अधमाः निकृष्टाः। ते च मायया अपहृतज्ञानाः संमुषितज्ञानाः आसुरं भावं हिंसानृतादिलक्षणम् आश्रिताः॥
🌷 दुष्कृत्य करने वाले, मूढ, नराधम पुरुष मुझे नहीं भजते हैं; माया के द्वारा जिनका ज्ञान हर लिया गया है, वे आसुरी भाव को धारण किये रहते हैं।
🌹 The foolish evildoers, who are the most depraved among men, who are deprived of (their) wisdom by Maya, and who resort to demoniacal ways, do not take refuge in Me.
📍 श्रीमद्भगवद्गीता ७।१५॥ #Subhashitam
न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः॥
🌞 न मां परमेश्वरं नारायणं दुष्कृतिनः पापकारिणः मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः नराणां मध्ये अधमाः निकृष्टाः। ते च मायया अपहृतज्ञानाः संमुषितज्ञानाः आसुरं भावं हिंसानृतादिलक्षणम् आश्रिताः॥
🌷 दुष्कृत्य करने वाले, मूढ, नराधम पुरुष मुझे नहीं भजते हैं; माया के द्वारा जिनका ज्ञान हर लिया गया है, वे आसुरी भाव को धारण किये रहते हैं।
🌹 The foolish evildoers, who are the most depraved among men, who are deprived of (their) wisdom by Maya, and who resort to demoniacal ways, do not take refuge in Me.
📍 श्रीमद्भगवद्गीता ७।१५॥ #Subhashitam
संलापशाला
संस्कृत संवादः (Sanskrit Samvadah)
सुभाषचन्द्रबोसः
#samlapshala
#samlapshala
षण्णां मातॄणाम् अपत्यम् इति किं समस्यते।
Anonymous Quiz
18%
षण्मात्रः
46%
षाण्मातुरः
27%
षाण्मातरः
9%
षाण्मात्रः
एक गरुड़ शिकार की खोज में किसी पर्वत के शिखर पर बैठा था।
•• एको गरुडः भोजनान्वेषणे कस्यचित् पर्वतस्य शिखरस्य उपरि उपविष्टः आसीत्।
वहीं बैठे हुए एक शिकारी ने उसपर बाण चलाकर घायल कर दिया।
••तत्रैव उपविष्टः सन् एकः व्याध: तं प्रति सायकं चालयित्वा व्रणितवान्।
मरते समय गरुड ने उस बाण के पंख देखे।
•• मृत्युकाले गरुड: तस्य सायकस्य पक्षान् अपश्यत्।
तब उसने कहा - इस बाण मे तीव्र गति हमारे ही पंखों के कारण आयी है।
•• तदा स: अवदत् - " अस्मिन् सायके तीव्रगति: अस्माकमेव पक्षेभ्य: आगत: ।"
इस का मुझे मृत्यु से अधिक दुःख हो रहा है।
•• एतेन मम मृत्युतः अधिकं दुःखस्य अनुभूति: भवति।
सीख - " अपने ही जब पीठ में खंजर घोंपते है तब वह क्षण बडा ही दुःखदायक होता है" ।
•• शिक्षा - "यदा स्वजन: एव पृष्ठे छुरिकां गाहते तदा तत्क्षण: अतीव दुःखितो भवति।"
मैं कोई बेल नहीं जिसे ऊपर चढ़ने को सहारा चाहिए
मैं छोटा ही सही एक पौधा हूं , एक सदाबहार पौधा।
•• अहं काचित् न लतास्मि यस्यै उपरि आरोहणार्थं समर्थनस्य आवश्यकता वर्तते।
अहं लघ्वाकार: अवश्यम्,परन्तु एक: पादपोऽस्मि, एको नित्यहरित: पादप:।
जो सर्दी ,गर्मी,बरसात,ऑंधी,तुफान सब झेलता हुआ अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है
•• य: शिशिरम्,ग्रीष्मम्,वर्षणम् ,प्रकम्पनम् ,
वर्षणयुक्तप्रकम्पनं इत्यादीन् सर्वान् ऋतून् सहमानः स्वस्य उपस्थितिं कुर्वन् एव तिष्ठति।
नहीं चाहिए मुझे जीने के लिए और के पोषक तत्त्व मैं खूद ही खूद के लिए पर्याप्त हूं
•• मम कृते जीवितुम् अन्येषां पोषकतत्त्वानाम् आवश्यकता नास्ति तथा च अहं स्वस्य कृते स्वयमेव पर्याप्तोऽस्मि।
बस कायम रखनी है मुझे अपनी जीने की इच्छा और झेल जाने हैं, हंसते हुए सारे झंझावत
•• केवलं मया स्वस्य जिजीविषा अक्षुण्णा स्थापनीया अस्ति
तथा च मया हसन् सर्वप्रकम्पन: सहनीय: अस्ति।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
•• एको गरुडः भोजनान्वेषणे कस्यचित् पर्वतस्य शिखरस्य उपरि उपविष्टः आसीत्।
वहीं बैठे हुए एक शिकारी ने उसपर बाण चलाकर घायल कर दिया।
••तत्रैव उपविष्टः सन् एकः व्याध: तं प्रति सायकं चालयित्वा व्रणितवान्।
मरते समय गरुड ने उस बाण के पंख देखे।
•• मृत्युकाले गरुड: तस्य सायकस्य पक्षान् अपश्यत्।
तब उसने कहा - इस बाण मे तीव्र गति हमारे ही पंखों के कारण आयी है।
•• तदा स: अवदत् - " अस्मिन् सायके तीव्रगति: अस्माकमेव पक्षेभ्य: आगत: ।"
इस का मुझे मृत्यु से अधिक दुःख हो रहा है।
•• एतेन मम मृत्युतः अधिकं दुःखस्य अनुभूति: भवति।
सीख - " अपने ही जब पीठ में खंजर घोंपते है तब वह क्षण बडा ही दुःखदायक होता है" ।
•• शिक्षा - "यदा स्वजन: एव पृष्ठे छुरिकां गाहते तदा तत्क्षण: अतीव दुःखितो भवति।"
मैं कोई बेल नहीं जिसे ऊपर चढ़ने को सहारा चाहिए
मैं छोटा ही सही एक पौधा हूं , एक सदाबहार पौधा।
•• अहं काचित् न लतास्मि यस्यै उपरि आरोहणार्थं समर्थनस्य आवश्यकता वर्तते।
अहं लघ्वाकार: अवश्यम्,परन्तु एक: पादपोऽस्मि, एको नित्यहरित: पादप:।
जो सर्दी ,गर्मी,बरसात,ऑंधी,तुफान सब झेलता हुआ अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है
•• य: शिशिरम्,ग्रीष्मम्,वर्षणम् ,प्रकम्पनम् ,
वर्षणयुक्तप्रकम्पनं इत्यादीन् सर्वान् ऋतून् सहमानः स्वस्य उपस्थितिं कुर्वन् एव तिष्ठति।
नहीं चाहिए मुझे जीने के लिए और के पोषक तत्त्व मैं खूद ही खूद के लिए पर्याप्त हूं
•• मम कृते जीवितुम् अन्येषां पोषकतत्त्वानाम् आवश्यकता नास्ति तथा च अहं स्वस्य कृते स्वयमेव पर्याप्तोऽस्मि।
बस कायम रखनी है मुझे अपनी जीने की इच्छा और झेल जाने हैं, हंसते हुए सारे झंझावत
•• केवलं मया स्वस्य जिजीविषा अक्षुण्णा स्थापनीया अस्ति
तथा च मया हसन् सर्वप्रकम्पन: सहनीय: अस्ति।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas