🚩 जय सत्य सनातन 🚩
🚩 आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩 तिथि - एकादशी रात्रि 07:26 तक तत्पश्चात द्वादशी
⛅ दिनांक - 21 जनवरी 2024
⛅ दिन - रविवार
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - शिशिर
⛅ मास - पौष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - रोहिणी 22 जनवरी प्रातः 03:52 तक तत्पश्चात मृगशिरा
⛅ योग - शुक्ल सुबह 09:47 तक तत्पश्चात ब्रह्म
⛅ राहु काल - शाम 04:57 से 06:19 तक
⛅ सूर्योदय - 07:23
⛅ सूर्यास्त - 06:19
⛅ दिशा शूल - पश्चिम
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक
#panchang
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#panchang
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (ॐ पीयूषः)
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Vaartavali | साप्ताहिक संस्कृत पत्रिका
#vaartavali #sanskrit #sanskritnews
साप्ताहिक संस्कृत पत्रिका 'वार्तावली'
DD News 24x7 | Breaking News & Latest Updates | Live Updates | News in Hindi
DD News is India’s 24x7 news channel from the stable of the country’s Public Service Broadcaster, Prasar…
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🌿
🌞 धीमतां कालः काव्य-शास्त्र-विनोदेन गच्छति। मूर्खाणां ( कालः) व्यसनेन, निद्रया वा कलहेन (गच्छति )।
🌷 बुद्धिमान लोग अपना समय साहित्यिक कार्यों का आनंद लेने, धर्मग्रंथ पढ़ने में बिताते हैं जबकि मूर्ख बुरी आदतों, नींद या झगड़े में अपना समय व्यतीत करते हैं।
🌹 Wise men spend their time enjoying literary work, reading scriptures while the fools ( indulge) in bad habits, sleep or quarrel.
#Subhashitam
काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम्।
व्यसनेन च मूर्खाणां, निद्रया कलहेन वा॥
🌞 धीमतां कालः काव्य-शास्त्र-विनोदेन गच्छति। मूर्खाणां ( कालः) व्यसनेन, निद्रया वा कलहेन (गच्छति )।
🌷 बुद्धिमान लोग अपना समय साहित्यिक कार्यों का आनंद लेने, धर्मग्रंथ पढ़ने में बिताते हैं जबकि मूर्ख बुरी आदतों, नींद या झगड़े में अपना समय व्यतीत करते हैं।
🌹 Wise men spend their time enjoying literary work, reading scriptures while the fools ( indulge) in bad habits, sleep or quarrel.
#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
एक भिखारी रोज एक दरवाजे पर जाता और भीख के लिए आवाज लगाता और जब घर मालिक बाहर आता तो उसे गंदी गंदी गालिया और ताने देता •• एकः भिक्षुकः प्रतिदिनं द्वारं गत्वा भिक्षाटनार्थं उद्घोषयति स्म तथा च यदा गृहस्वामी बहिः आगच्छति स्म, तदा स तस्मिन् अश्लीलशब्दानां वृष्टि:…
यह सोचकर उस भिखारी के पीछे-पीछे चलने लगा।
••इति विचिन्त्य सः भिक्षुकस्य अनुसरणं कर्तुमारभत।
भिखारी जहाँ भी जाता सेठ उसके पीछे-पीछे जाता।
•• यत्र यत्र भिक्षुकः गच्छति स्म तत्र-तत्र श्रेष्ठी: तस्यानुसरणं करोति स्म।
कही कोई उस भिखारी को कोई भीख दे देता तो कोई उसे मारता, जलिल करता, गालियाँ देता, पर भिखारी इतना ही कहता, "ईश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करें।"
•• कुत्रचित् कश्चित् तस्मै भिक्षुकाय काञ्चित् भिक्षां ददाति स्म ,कुत्रचित् कश्चित् तं ताडयति स्म, अपमानयति स्म, अपशब्दं वदति स्म, परन्तु भिक्षुकः केवलं "ईश्वरः भवतः पापान् क्षंसीष्ट" इति वदति स्म।
अब अंधेरा हो चला था।
•• इदानीं अन्धकारः शनै:-शनै: वर्धते स्म।
भिखारी अपने घर लौट रहा था
••भिक्षुकः स्वगृहं प्रति गच्छति स्म।
सेठ भी उसके पीछे था
••श्रेष्ठी: अपि तस्य पृष्ठत:-पृष्ठत: गच्छति स्म।
भिखारी जैसे ही अपने घर लौटा तो एक टूटी फूटी खाट पर जाकर लेट गया।
••यथैव भिक्षुकः स्वगृहं प्रत्यागत:,तथैव स भग्नखट्वां प्रति गत्वा शयनं कृतवान् ।
उसी पर एक बुढ़िया सोई हुई थी जो भिखारी की पत्नी थी।
••तत्रैव एकः वृद्धा सुप्तवती आसीत् या भिक्षुकस्य पत्नी आसीत्।
जैसे ही उसने अपने पति को देखा तो उठ खड़ी हुई और भीख का कटोरा देखने लगी।
•• पतिं पश्यन्ती एव सा उत्थाय भिक्षाकटोरम् अवलोकयितुमरब्ध।
उस भीख के कटोरे मे मात्र एक आधी बासी रोटी थी
••तस्मिन् भिक्षाकटोरे एका एव अर्धपर्युषिता रोटिका आसीत्।
उसे देखते ही बुढिया बोली-" बस इतना ही। और कुछ नही।और ये आपका सर कैसे फूट गया?
••तत् दृष्ट्वैव वृद्धा उक्तवती - "केवलम् एतावदेव!अन्यत् किमपि न! भवतः शिरः च कथं भग्नम्?
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
••इति विचिन्त्य सः भिक्षुकस्य अनुसरणं कर्तुमारभत।
भिखारी जहाँ भी जाता सेठ उसके पीछे-पीछे जाता।
•• यत्र यत्र भिक्षुकः गच्छति स्म तत्र-तत्र श्रेष्ठी: तस्यानुसरणं करोति स्म।
कही कोई उस भिखारी को कोई भीख दे देता तो कोई उसे मारता, जलिल करता, गालियाँ देता, पर भिखारी इतना ही कहता, "ईश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करें।"
•• कुत्रचित् कश्चित् तस्मै भिक्षुकाय काञ्चित् भिक्षां ददाति स्म ,कुत्रचित् कश्चित् तं ताडयति स्म, अपमानयति स्म, अपशब्दं वदति स्म, परन्तु भिक्षुकः केवलं "ईश्वरः भवतः पापान् क्षंसीष्ट" इति वदति स्म।
अब अंधेरा हो चला था।
•• इदानीं अन्धकारः शनै:-शनै: वर्धते स्म।
भिखारी अपने घर लौट रहा था
••भिक्षुकः स्वगृहं प्रति गच्छति स्म।
सेठ भी उसके पीछे था
••श्रेष्ठी: अपि तस्य पृष्ठत:-पृष्ठत: गच्छति स्म।
भिखारी जैसे ही अपने घर लौटा तो एक टूटी फूटी खाट पर जाकर लेट गया।
••यथैव भिक्षुकः स्वगृहं प्रत्यागत:,तथैव स भग्नखट्वां प्रति गत्वा शयनं कृतवान् ।
उसी पर एक बुढ़िया सोई हुई थी जो भिखारी की पत्नी थी।
••तत्रैव एकः वृद्धा सुप्तवती आसीत् या भिक्षुकस्य पत्नी आसीत्।
जैसे ही उसने अपने पति को देखा तो उठ खड़ी हुई और भीख का कटोरा देखने लगी।
•• पतिं पश्यन्ती एव सा उत्थाय भिक्षाकटोरम् अवलोकयितुमरब्ध।
उस भीख के कटोरे मे मात्र एक आधी बासी रोटी थी
••तस्मिन् भिक्षाकटोरे एका एव अर्धपर्युषिता रोटिका आसीत्।
उसे देखते ही बुढिया बोली-" बस इतना ही। और कुछ नही।और ये आपका सर कैसे फूट गया?
••तत् दृष्ट्वैव वृद्धा उक्तवती - "केवलम् एतावदेव!अन्यत् किमपि न! भवतः शिरः च कथं भग्नम्?
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
🚩 जय सत्य सनातन 🚩
🚩 आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩 तिथि - द्वादशी रात्रि 07:51 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
⛅ दिनांक - 22 जनवरी 2024
⛅ दिन - सोमवार
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - शिशिर
⛅ मास - पौष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - मृगशिरा 23 जनवरी प्रातः 04:58 तक तत्पश्चात आर्द्रा
⛅ योग - ब्रह्म सुबह 08:47 तक तत्पश्चात इन्द्र
⛅ राहु काल - सुबह 08:45 से 10:07 तक
⛅ सूर्योदय - 07:22
⛅ सूर्यास्त - 06:20
⛅ दिशा शूल - पूर्व
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक
#panchang
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⛅ नक्षत्र - मृगशिरा 23 जनवरी प्रातः 04:58 तक तत्पश्चात आर्द्रा
⛅ योग - ब्रह्म सुबह 08:47 तक तत्पश्चात इन्द्र
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#panchang
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🌞 अयम् आत्मा प्रवचनेन न लभ्यः। न मेधया न बहुधा श्रुतेन। एषः यं एव वॄणुते तेन लभ्यः। तस्य एषः आत्मा त्वां तनूं विवृणुते ॥
🌷 "यह 'आत्मा' प्रवचन द्वारा लभ्य नहीं है, न मेधाशक्ति से, न बहुत शास्त्रों के श्रवण से 'यह' लभ्य है। यह आत्मा जिसका वरण करता है उसी के द्वारा 'यह' लभ्य है, उसी के प्रति यह 'आत्मा' अपने कलेवर को अनावृत करता है।
🌹 The Self is not to be won by eloquent teaching, nor by brain power, nor by much learning: but only he whom this being chooses can win Him, for to him this Self bares His body.
📍कठोपनिषदि १।२।२३॥ #Subhashitam
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन।
यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्॥
🌞 अयम् आत्मा प्रवचनेन न लभ्यः। न मेधया न बहुधा श्रुतेन। एषः यं एव वॄणुते तेन लभ्यः। तस्य एषः आत्मा त्वां तनूं विवृणुते ॥
🌷 "यह 'आत्मा' प्रवचन द्वारा लभ्य नहीं है, न मेधाशक्ति से, न बहुत शास्त्रों के श्रवण से 'यह' लभ्य है। यह आत्मा जिसका वरण करता है उसी के द्वारा 'यह' लभ्य है, उसी के प्रति यह 'आत्मा' अपने कलेवर को अनावृत करता है।
🌹 The Self is not to be won by eloquent teaching, nor by brain power, nor by much learning: but only he whom this being chooses can win Him, for to him this Self bares His body.
📍कठोपनिषदि १।२।२३॥ #Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
यह सोचकर उस भिखारी के पीछे-पीछे चलने लगा। ••इति विचिन्त्य सः भिक्षुकस्य अनुसरणं कर्तुमारभत। भिखारी जहाँ भी जाता सेठ उसके पीछे-पीछे जाता। •• यत्र यत्र भिक्षुकः गच्छति स्म तत्र-तत्र श्रेष्ठी: तस्यानुसरणं करोति स्म। कही कोई उस भिखारी को कोई भीख दे देता तो…
भिखारी बोला- हाँ, बस इतना ही ।किसी ने कुछ नही दिया ।सबने गालिया दी, पत्थर मारें, इसलिए ये सर फूट गया।
•• भिक्षुक: अवदत् - "आम्!केवलम् एतावदेव।कश्चनापि किमपि न दत्तवान् ।सर्वे अपशब्दान् कथयितवन्त:, प्रस्तरै: प्रहृतवन्त:, अत: एतत् शिर: भग्नम्।"
भिखारी ने फिर कहा- "सब अपने ही पापों का परिणाम हैं।याद है ना तुम्हें? कुछ वर्षो पहले मैं कितना रईस हुआ करते था। क्या नही था मेरे पास?पर मैंने कभी दान नही किया। याद है तुम्हें वो अंधा भिखारी।"
••भिक्षुकः पुनः उक्तवान्- "एष सर्व: स्वपापानामेव परिणामोऽस्ति। किं त्वया स्मृतम्? अहं कतिपयवर्षेभ्यः पूर्वं कियान् धनी आसीत्। मम किं नासीत्? परन्तु अहं कदापि दानं न कृतवान्।किं त्वया स्मृतमस्ति- स अन्धो भिक्षुक:।"
बुढिया की आँखों में ऑसू आ गये और उसने कहा- हाँ।कैसे हम उस अंधे भिखारी का मजाक उड़ाते थे, कैसे उसे रोटियों की जगह खाली कागज रख देते थे, कैसे हम उसे जलिल करते थे, कैसे हम उसे कभी कभी मार या धकेल देते थे।"
•• वृद्धायाः नेत्राभ्याम् अश्रुपातः अभवत्, सा च अवदत् - "कथम् आवां तस्य अन्धभिक्षुकस्य उपहासं कुर्व: स्म, कथं आवां तस्मै रोटिकाया: स्थाने रिक्तकागदं ददाव: स्म, कथं वयं तम् अपमानितम् अकुर्वन्ताम्, कथं वयं तं ताडयाव: स्म वा धक्कायाव: स्म वा।"
अब बुढिया ने कहा- हाँ !सब याद है मुझे। कैसे मैंने भी उसे राह नही दिखाई और घर के बनें नालें में गिरा दिया था।जब भी वहाँ रोटिया मांगता मैंने बस उसे गालियाँ ही देता था।एक बार तो उसका कटोरा तक फेंक दिया।
•• इदानीं सा वृद्धा अवदत्- "आम्!सर्वं स्मरामि। कथं अहम् अपि तस्मै मार्गं न दर्शयित्वा गृहे निर्मितेषु नालिकेषु तं पातितवती। यदा यदा स तत्र रोटिकां याचितवान् तदा अहं केवलं तम् अपशब्दं वदामि स्म।एकदा अहं तस्य भिक्षापात्रमपि क्षिप्तवती।"
और वो अंधा भिखारी हमेशा कहता था, तुम्हारे पापों का हिसाब ईश्वर जरूर ही करेंगे।परन्तु आज उस भिखारी की बद्दुआ और हाय हमें ले डूबी।
•• सः च अन्धः भिक्षुकः सर्वदा वदति स्म, "ईश्वरः भवत्या: पापानां गणनां अवश्यमेव करिष्यति। परन्तु अद्य तस्य भिक्षुकस्य बदसः धिक् च आवां मज्जितवन्तौ।
फिर भिखारी ने कहा-" पर मैं किसी को बद्दुआ नही देता,चाहे मेरे साथ कितनी भी ज्यादती क्यूं ना हो जाए, मेरे लब पर हमेशा दुआ रहती हैं, मैं अब नही चाहता कि कोई और इतने बुरे दिन देखे, मेरे साथ अन्याय करने वालों को भी मैं दुआ देता हूं, क्योंकि उनको मालूम ही नही हैं कि वे क्या पाप कर रहे हैं, जो सीधा ईश्वर देख रहा हैं, जैसी हमने भुगती है, कोई और ना भुगते, इसलिए मेरे दिल से बस अपना हाल देख दुआ ही निकलती हैं।"
•• पुन: भिक्षुक: अवदत् -"तथापि अहं कस्मैचित् शापं न ददामि,कामं मया सह कियानपि अत्याचार: किमर्थं न भवेत्, मम अधरयो: सदैव परजनेभ्य: शुभचिन्तनमेव भवति। इदानीम् अहं नेच्छामि यत् अन्यजनेऽपि एतावत् दुष्टदिनं पश्यन्तु, मया सह ये अन्यायं कृतवन्त:, तेभ्योऽपि अहं शुभमङ्गलस्य कामनां करोमि, यतोहि तेषामेव न ज्ञातं यत् ते किम्-किं पापं कुर्वन्ति, यान् प्रत्यक्षत: ईश्वर: अवलोकयति, यथा आवां दुःखं प्राप्नुव तथैव अन्यः कोऽपि दुःखं न प्राप्नुयात्, अतः एव स्वस्थितिं दृष्ट्वा एव मम हृदयात् तेभ्योऽपि आशीर्वादा: एव बहिः आगच्छन्ति।"
सेठ चुपके-चुपके सब सुन रहा था।उसे अब सारी बात समझ में आ गयी थी।बुढ़े और बुढ़िया ने आधी रोटी मिलकर खाया।और, प्रभु की यही महिमा है" बोल कर सो गये।
•• श्रेष्ठी: मौनेन सर्वं शृणोति स्म । सः इदानीं सर्वं अवगच्छत्।वृद्ध वृद्धा च एकत्र अर्धरोटिकां खादितवन्तौ, "एषः भगवतः महिमा" इति वदन्तौ निद्रां गतौ।
अगले दिन वह भिखारी सेठ के यहां भीख मांगने के लिए गया।सेठ ने पहले से ही रोटियां निकाल कर अलग रख दिया था।उसने भिखारी को रोटियां दी और हल्की से मुस्कान भरे शब्दों में कहा - " माफ करना बाबा।गलती हो गयी।"
•• अन्येद्यु स भिक्षुक: भिक्षायाचनाय श्रेष्ठिनो गृहं गत:।श्रेष्ठी पूर्वमेव रोटिका: निष्कास्य पृथक् स्थापितवान् आसीत्।स भिक्षुकाय रोटिकां दत्तवान् किञ्चित् च स्मितवदनं कृत्वा अवदत् -" क्षम्यतां महोदय!मया त्रुतिरभवत्।"
सेठ को एक बात समझ में आ गयी।इंसान तो बस दुआ-बद्दुआ देता है , परन्तु ईश्वर मनुष्य के पाप और पुण्य का हिसाब समय आने पर जरूर करता है।
••श्रेष्ठिनः एक: वचन: मस्तिष्के आगत: ।
मनुष्या: तु आशीर्वादं शापं च ददति, परन्तु ईश्वरः निश्चितरूपेण मनुष्यस्य पापानां पुण्यानाञ्च निर्णयं करोति यदा समयः आगच्छति।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
•• भिक्षुक: अवदत् - "आम्!केवलम् एतावदेव।कश्चनापि किमपि न दत्तवान् ।सर्वे अपशब्दान् कथयितवन्त:, प्रस्तरै: प्रहृतवन्त:, अत: एतत् शिर: भग्नम्।"
भिखारी ने फिर कहा- "सब अपने ही पापों का परिणाम हैं।याद है ना तुम्हें? कुछ वर्षो पहले मैं कितना रईस हुआ करते था। क्या नही था मेरे पास?पर मैंने कभी दान नही किया। याद है तुम्हें वो अंधा भिखारी।"
••भिक्षुकः पुनः उक्तवान्- "एष सर्व: स्वपापानामेव परिणामोऽस्ति। किं त्वया स्मृतम्? अहं कतिपयवर्षेभ्यः पूर्वं कियान् धनी आसीत्। मम किं नासीत्? परन्तु अहं कदापि दानं न कृतवान्।किं त्वया स्मृतमस्ति- स अन्धो भिक्षुक:।"
बुढिया की आँखों में ऑसू आ गये और उसने कहा- हाँ।कैसे हम उस अंधे भिखारी का मजाक उड़ाते थे, कैसे उसे रोटियों की जगह खाली कागज रख देते थे, कैसे हम उसे जलिल करते थे, कैसे हम उसे कभी कभी मार या धकेल देते थे।"
•• वृद्धायाः नेत्राभ्याम् अश्रुपातः अभवत्, सा च अवदत् - "कथम् आवां तस्य अन्धभिक्षुकस्य उपहासं कुर्व: स्म, कथं आवां तस्मै रोटिकाया: स्थाने रिक्तकागदं ददाव: स्म, कथं वयं तम् अपमानितम् अकुर्वन्ताम्, कथं वयं तं ताडयाव: स्म वा धक्कायाव: स्म वा।"
अब बुढिया ने कहा- हाँ !सब याद है मुझे। कैसे मैंने भी उसे राह नही दिखाई और घर के बनें नालें में गिरा दिया था।जब भी वहाँ रोटिया मांगता मैंने बस उसे गालियाँ ही देता था।एक बार तो उसका कटोरा तक फेंक दिया।
•• इदानीं सा वृद्धा अवदत्- "आम्!सर्वं स्मरामि। कथं अहम् अपि तस्मै मार्गं न दर्शयित्वा गृहे निर्मितेषु नालिकेषु तं पातितवती। यदा यदा स तत्र रोटिकां याचितवान् तदा अहं केवलं तम् अपशब्दं वदामि स्म।एकदा अहं तस्य भिक्षापात्रमपि क्षिप्तवती।"
और वो अंधा भिखारी हमेशा कहता था, तुम्हारे पापों का हिसाब ईश्वर जरूर ही करेंगे।परन्तु आज उस भिखारी की बद्दुआ और हाय हमें ले डूबी।
•• सः च अन्धः भिक्षुकः सर्वदा वदति स्म, "ईश्वरः भवत्या: पापानां गणनां अवश्यमेव करिष्यति। परन्तु अद्य तस्य भिक्षुकस्य बदसः धिक् च आवां मज्जितवन्तौ।
फिर भिखारी ने कहा-" पर मैं किसी को बद्दुआ नही देता,चाहे मेरे साथ कितनी भी ज्यादती क्यूं ना हो जाए, मेरे लब पर हमेशा दुआ रहती हैं, मैं अब नही चाहता कि कोई और इतने बुरे दिन देखे, मेरे साथ अन्याय करने वालों को भी मैं दुआ देता हूं, क्योंकि उनको मालूम ही नही हैं कि वे क्या पाप कर रहे हैं, जो सीधा ईश्वर देख रहा हैं, जैसी हमने भुगती है, कोई और ना भुगते, इसलिए मेरे दिल से बस अपना हाल देख दुआ ही निकलती हैं।"
•• पुन: भिक्षुक: अवदत् -"तथापि अहं कस्मैचित् शापं न ददामि,कामं मया सह कियानपि अत्याचार: किमर्थं न भवेत्, मम अधरयो: सदैव परजनेभ्य: शुभचिन्तनमेव भवति। इदानीम् अहं नेच्छामि यत् अन्यजनेऽपि एतावत् दुष्टदिनं पश्यन्तु, मया सह ये अन्यायं कृतवन्त:, तेभ्योऽपि अहं शुभमङ्गलस्य कामनां करोमि, यतोहि तेषामेव न ज्ञातं यत् ते किम्-किं पापं कुर्वन्ति, यान् प्रत्यक्षत: ईश्वर: अवलोकयति, यथा आवां दुःखं प्राप्नुव तथैव अन्यः कोऽपि दुःखं न प्राप्नुयात्, अतः एव स्वस्थितिं दृष्ट्वा एव मम हृदयात् तेभ्योऽपि आशीर्वादा: एव बहिः आगच्छन्ति।"
सेठ चुपके-चुपके सब सुन रहा था।उसे अब सारी बात समझ में आ गयी थी।बुढ़े और बुढ़िया ने आधी रोटी मिलकर खाया।और, प्रभु की यही महिमा है" बोल कर सो गये।
•• श्रेष्ठी: मौनेन सर्वं शृणोति स्म । सः इदानीं सर्वं अवगच्छत्।वृद्ध वृद्धा च एकत्र अर्धरोटिकां खादितवन्तौ, "एषः भगवतः महिमा" इति वदन्तौ निद्रां गतौ।
अगले दिन वह भिखारी सेठ के यहां भीख मांगने के लिए गया।सेठ ने पहले से ही रोटियां निकाल कर अलग रख दिया था।उसने भिखारी को रोटियां दी और हल्की से मुस्कान भरे शब्दों में कहा - " माफ करना बाबा।गलती हो गयी।"
•• अन्येद्यु स भिक्षुक: भिक्षायाचनाय श्रेष्ठिनो गृहं गत:।श्रेष्ठी पूर्वमेव रोटिका: निष्कास्य पृथक् स्थापितवान् आसीत्।स भिक्षुकाय रोटिकां दत्तवान् किञ्चित् च स्मितवदनं कृत्वा अवदत् -" क्षम्यतां महोदय!मया त्रुतिरभवत्।"
सेठ को एक बात समझ में आ गयी।इंसान तो बस दुआ-बद्दुआ देता है , परन्तु ईश्वर मनुष्य के पाप और पुण्य का हिसाब समय आने पर जरूर करता है।
••श्रेष्ठिनः एक: वचन: मस्तिष्के आगत: ।
मनुष्या: तु आशीर्वादं शापं च ददति, परन्तु ईश्वरः निश्चितरूपेण मनुष्यस्य पापानां पुण्यानाञ्च निर्णयं करोति यदा समयः आगच्छति।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
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🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩 तिथि - त्रयोदशी रात्रि 08:39 तक तत्पश्चात चतुर्दशी
⛅ दिनांक - 23 जनवरी 2024
⛅ दिन - मंगलवार
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - शिशिर
⛅ मास - पौष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - आर्द्रा 24 जनवरी प्रातः 06:26 तक तत्पश्चात पुनर्वसु
⛅ योग - इन्द्र सुबह 08:05 तक तत्पश्चात वैधृति
⛅ राहु काल - शाम 03:36 से 04:58 तक
⛅ सूर्योदय - 07:22
⛅ सूर्यास्त - 06:21
⛅ दिशा शूल - उत्तर
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक
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@samvadah organises संलापशाला - A Sanskrit Voicechat Room
🔰विषयः - प्राणप्रतिष्ठामहोत्सवः
🗓२३/१/२०२४ ॥ IST ११:०० AM
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📑कृपया दैववाचा एतद्विषयम् (श्रीराममन्दिरप्राणप्रतिष्ठायाः महोत्सवः सम्पूर्णे देशे कथं जातः) अभिक्रम्य आगच्छत।
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पूर्वचर्चाणां सङ्ग्रहः अधोदत्तः
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🔰विषयः - प्राणप्रतिष्ठामहोत्सवः
🗓२३/१/२०२४ ॥ IST ११:०० AM
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