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♦️sattvan rajastama iti gunah prakrtisanbhavah.
nibadhnanti mahabaho dehe dehinamavyayam৷৷14.5৷৷
⚜Purity, passion and inertia these alities, O Arjuna, born of Nature, bind fast in the body, the embodied, the indestructible.(14.5)
⚜हे महाबाहो सत्त्व रज और तम ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण देही आत्मा को देह के साथ बांध देते हैं।।14.5।।
#geeta
सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवाः।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्
।।14.5।।♦️sattvan rajastama iti gunah prakrtisanbhavah.
nibadhnanti mahabaho dehe dehinamavyayam৷৷14.5৷৷
⚜Purity, passion and inertia these alities, O Arjuna, born of Nature, bind fast in the body, the embodied, the indestructible.(14.5)
⚜हे महाबाहो सत्त्व रज और तम ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण देही आत्मा को देह के साथ बांध देते हैं।।14.5।।
#geeta
🍃
♦️tatra sattvan nirmalatvatprakasakamanamayam.
sukhasangena badhnati jnanasangena canagha৷৷14.6৷৷
⚜Of these, Sattva, which from its stainlessness is luminous and healthy, binds by attachment to happiness and by attachment to knowledge, O sinless one.(14.6)
⚜हे निष्पाप अर्जुन इन (तीनों) में सत्त्वगुण निर्मल होने से प्रकाशक और अनामय (निरुपद्रव निर्विकार या निरोग) है (वह जीव को) सुख की आसक्ति से और ज्ञान की आसक्ति से बांध देता है।।14.6।।
#geeta
तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्।
सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ
।।14.6।।♦️tatra sattvan nirmalatvatprakasakamanamayam.
sukhasangena badhnati jnanasangena canagha৷৷14.6৷৷
⚜Of these, Sattva, which from its stainlessness is luminous and healthy, binds by attachment to happiness and by attachment to knowledge, O sinless one.(14.6)
⚜हे निष्पाप अर्जुन इन (तीनों) में सत्त्वगुण निर्मल होने से प्रकाशक और अनामय (निरुपद्रव निर्विकार या निरोग) है (वह जीव को) सुख की आसक्ति से और ज्ञान की आसक्ति से बांध देता है।।14.6।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द - ५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत - २०७९
🌥 🚩शक संवत - १९४४
⛅️ 🚩तिथि - द्वादशी सुबह 11:47 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
⛅️ दिनांक - 27 मई 2022
⛅️ दिन - शुक्रवार
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - ग्रीष्म
⛅️ मास - ज्येष्ठ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - आश्विनी रात्रि 12:39 तक तत्पश्चात भरणी
⛅️ योग - सौभाग्य रात्रि 10:09 तक तत्पश्चात शोभन
⛅️ राहुकाल - सुबह 10:56 से दोपहर 12:37 तक
⛅️ सर्योदय - 05:55
⛅️ सर्यास्त - 07:19
⛅️ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
⛅️ बरह्म मुहूर्त- प्रातः 04:30 से 05:12 तक
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द - ५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत - २०७९
🌥 🚩शक संवत - १९४४
⛅️ 🚩तिथि - द्वादशी सुबह 11:47 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
⛅️ दिनांक - 27 मई 2022
⛅️ दिन - शुक्रवार
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - ग्रीष्म
⛅️ मास - ज्येष्ठ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - आश्विनी रात्रि 12:39 तक तत्पश्चात भरणी
⛅️ योग - सौभाग्य रात्रि 10:09 तक तत्पश्चात शोभन
⛅️ राहुकाल - सुबह 10:56 से दोपहर 12:37 तक
⛅️ सर्योदय - 05:55
⛅️ सर्यास्त - 07:19
⛅️ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
⛅️ बरह्म मुहूर्त- प्रातः 04:30 से 05:12 तक
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (Bhavani Raman)
वार्ता: संस्कृत में समाचार | पीएम मोदी आज भारत ड्रोन महोत्सव 2022 का उद्घाटन करेंगे - YouTube
https://m.youtube.com/watch?v=OtSF7ZsULbQ
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YouTube
वार्ता: संस्कृत में समाचार | पीएम मोदी आज भारत ड्रोन महोत्सव 2022 का उद्घाटन करेंगे
🍃न पश्यति च जन्मान्धः कामान्धो नैव पश्यति।
न पश्यति मदोन्मत्तो ह्यर्थी दोषान् न पश्यति ॥
⚜जन्म के अन्धे को दिखाई नहीं देता, कामान्ध को भी कुछ नहीं दीखता, शराब आदि के कारण उन्मत्त को भी कुछ नहीं सूझता और स्वार्थी अपने काम को सिद्ध करने की धुन में किसी काम में दोष नहीं देखता ।।
🔅जन्मतः अन्धः न पश्यति, कामकारणेन अपि न पश्यति, व्यसनकारणेनापि न द्रष्टुं किमपि कर्तुं वा शक्नोति तथा च स्वार्थी जनः स्वकार्यं साधयितुम् अपि दोषान् न पश्यति।
#Subhashitam
न पश्यति मदोन्मत्तो ह्यर्थी दोषान् न पश्यति ॥
⚜जन्म के अन्धे को दिखाई नहीं देता, कामान्ध को भी कुछ नहीं दीखता, शराब आदि के कारण उन्मत्त को भी कुछ नहीं सूझता और स्वार्थी अपने काम को सिद्ध करने की धुन में किसी काम में दोष नहीं देखता ।।
🔅जन्मतः अन्धः न पश्यति, कामकारणेन अपि न पश्यति, व्यसनकारणेनापि न द्रष्टुं किमपि कर्तुं वा शक्नोति तथा च स्वार्थी जनः स्वकार्यं साधयितुम् अपि दोषान् न पश्यति।
#Subhashitam
________ नासिकां ________।
Anonymous Quiz
10%
करेण,प्रोञ्छति
62%
करवस्त्रेण, प्रोञ्छति
12%
करवस्त्रात् , स्वच्छिकरोति
16%
करवस्त्रेण, मार्जते
पठित्वा वद सुखम् अभवत् वा दु≍खम्।
जीवनस्य चतसृषु अवस्थायां मनुष्यस्य प्रमुखं प्रश्नम्।
बाल्यावस्थायां केन सह क्रीडितव्यः इति।
युवावस्थायां केन सह विवाहं कर्तव्यम् इति।
प्रौढावस्थायां किमर्थं विवाहम् अकुर्वि इति।
वृद्धावस्थायां किमर्थं मम जीवनसङ्गी मत् पूर्वम् अम्रियत् इति।
जीवनस्य चतसृषु अवस्थायां मनुष्यस्य प्रमुखं प्रश्नम्।
बाल्यावस्थायां केन सह क्रीडितव्यः इति।
युवावस्थायां केन सह विवाहं कर्तव्यम् इति।
प्रौढावस्थायां किमर्थं विवाहम् अकुर्वि इति।
वृद्धावस्थायां किमर्थं मम जीवनसङ्गी मत् पूर्वम् अम्रियत् इति।
Aunty - Your wedding day is near no ? How's the preparations going on ?
Girl - Whats app, Facebook, Instagram... all accounts deleted. Only Changing the phone number is remaining.
#hasya
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#hasya
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ: (41) कृदन्त (9) शतृ प्रत्यय (जब नाम शब्दों के विशेषण के रूप में वर्तमानकाल तथा भविष्यकाल में विद्यमान परस्मैपद संज्ञक धातु का प्रयोग किया जाता है, तब उस धातु से शतृ प्रत्यय का प्रयोग होता है। शतृ प्रत्ययान्त…
जीवन्तं मतवन्मन्ये देहिनं धर्मवर्जितं।
मृतो धर्मेण संयुक्तो दीर्घजीवी न संशयः।।
= मैं धर्मरहित मनुष्य को मरे हुए के समान समझता हूं। इस में कोई सन्देह नहीं कि धार्मिक मनुष्य मरने के बाद भी जीवित रहता है, क्योंकि उसकी कीर्ति अमर रहती है।
सुशीघ्रपमि धावन्तं विधानमनुधावति।
शेते सह शयानेन येन येन यथाकृतम्।।
उपतिष्ठति तिष्ठन्तं गच्छन्तमनु गच्छति।
करोति कुर्वतः कर्म च्छायेवानुविधीयते।।
= जिस-जिस मनुष्य ने जैसा-जैसा कर्म किया है, वह उसके पीछे लगा रहता है। यदि कर्मकर्त्ता शीघ्रतापूर्वक दौड़ता है तो वह कर्म भी उतने ही वेग से उसके पीछे भागता है। जब वह सोता है तो उसका भाग्य भी उसके साथ सो जाता है। जब वह खड़ा होता है तो उसका भाग्य भी उसके पास ही खड़ा होता है। और जब मनुष्य चलता है तो उसका किया हुआ कर्म भी उसके पीछे-पीछे चलने लगता है। इतना ही नहीं, कोई भी कार्य करते हुए कर्म संस्कार उसका पीछा नहीं छोड़ता, अपितु सदा छाया के समान उसके पीछे लगा रहता है।
यदिच्छसि वशीकर्त्तुं जगदेकेन कर्मणा।
परापवादसस्येभ्यो गां चरन्तीं निवारय।।
= हे मनुष्य यदि तू एक ही कर्म के द्वारा संसार को अपने वश में करना चाहता है तो दूसरों की निन्दा करने में लगी हुई अपनी वाणी को वश में कर अर्थात् किसी की निन्दा मत कर।
छिन्नोपि रोहति तरुः क्षीणोप्युपचीयते पुनश्चन्द्रः।
इति विमृशन्तः सन्तः सन्तप्यन्ते न दुःखेषु।।
= कट जाने पर भी वृक्ष फिर समय पाकर अंकुरित हो जाता है। क्षीण होने पर भी चन्द्रमा पुनः बढ़ता है। इसी प्रकार विचारशील सज्जन विपत्ति पड़ने पर दुःखी नहीं होते।
खल्वाटो दिवसेश्वरस्य किरणैः सन्तापिते मस्तके,
वा´्छन्देशमनातपं विधिवशात्तालस्य मूलं गतः।
तत्राप्यस्य महाफलेन पतता भग्नं सशब्दं शिरः,
प्रायो गच्छति यत्र दैवहतकस्तप्तैव यान्त्यापदः।।
= सिर पर पड़नेवाली सूर्यकिरणों से सन्तप्त होकर कोई गंजा व्यक्ति छाया खोजता हुआ भाग्यवश ताड़ के वृक्ष के नीचे जा पहुंचा। वहां पर एक बहुत बड़ा फल धडाम् से उसके सिर पर गिर पड़ा और उसका सिर फट गया। प्रायः भाग्यहीन मनुष्य जहां भी जाता है विपत्तियां उसके पीछे वहीं पहुंच जाती हैं।
#vakyabhyas
मृतो धर्मेण संयुक्तो दीर्घजीवी न संशयः।।
= मैं धर्मरहित मनुष्य को मरे हुए के समान समझता हूं। इस में कोई सन्देह नहीं कि धार्मिक मनुष्य मरने के बाद भी जीवित रहता है, क्योंकि उसकी कीर्ति अमर रहती है।
सुशीघ्रपमि धावन्तं विधानमनुधावति।
शेते सह शयानेन येन येन यथाकृतम्।।
उपतिष्ठति तिष्ठन्तं गच्छन्तमनु गच्छति।
करोति कुर्वतः कर्म च्छायेवानुविधीयते।।
= जिस-जिस मनुष्य ने जैसा-जैसा कर्म किया है, वह उसके पीछे लगा रहता है। यदि कर्मकर्त्ता शीघ्रतापूर्वक दौड़ता है तो वह कर्म भी उतने ही वेग से उसके पीछे भागता है। जब वह सोता है तो उसका भाग्य भी उसके साथ सो जाता है। जब वह खड़ा होता है तो उसका भाग्य भी उसके पास ही खड़ा होता है। और जब मनुष्य चलता है तो उसका किया हुआ कर्म भी उसके पीछे-पीछे चलने लगता है। इतना ही नहीं, कोई भी कार्य करते हुए कर्म संस्कार उसका पीछा नहीं छोड़ता, अपितु सदा छाया के समान उसके पीछे लगा रहता है।
यदिच्छसि वशीकर्त्तुं जगदेकेन कर्मणा।
परापवादसस्येभ्यो गां चरन्तीं निवारय।।
= हे मनुष्य यदि तू एक ही कर्म के द्वारा संसार को अपने वश में करना चाहता है तो दूसरों की निन्दा करने में लगी हुई अपनी वाणी को वश में कर अर्थात् किसी की निन्दा मत कर।
छिन्नोपि रोहति तरुः क्षीणोप्युपचीयते पुनश्चन्द्रः।
इति विमृशन्तः सन्तः सन्तप्यन्ते न दुःखेषु।।
= कट जाने पर भी वृक्ष फिर समय पाकर अंकुरित हो जाता है। क्षीण होने पर भी चन्द्रमा पुनः बढ़ता है। इसी प्रकार विचारशील सज्जन विपत्ति पड़ने पर दुःखी नहीं होते।
खल्वाटो दिवसेश्वरस्य किरणैः सन्तापिते मस्तके,
वा´्छन्देशमनातपं विधिवशात्तालस्य मूलं गतः।
तत्राप्यस्य महाफलेन पतता भग्नं सशब्दं शिरः,
प्रायो गच्छति यत्र दैवहतकस्तप्तैव यान्त्यापदः।।
= सिर पर पड़नेवाली सूर्यकिरणों से सन्तप्त होकर कोई गंजा व्यक्ति छाया खोजता हुआ भाग्यवश ताड़ के वृक्ष के नीचे जा पहुंचा। वहां पर एक बहुत बड़ा फल धडाम् से उसके सिर पर गिर पड़ा और उसका सिर फट गया। प्रायः भाग्यहीन मनुष्य जहां भी जाता है विपत्तियां उसके पीछे वहीं पहुंच जाती हैं।
#vakyabhyas
नमो नमः
27 मई 2022 साप्ताहिकमेलनस्य कृते सर्वे निश्चयेन आगच्छन्तु
https://bit.ly/melanam
All are invited. No eligibility.
27 मई 2022 साप्ताहिकमेलनस्य कृते सर्वे निश्चयेन आगच्छन्तु
https://bit.ly/melanam
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♦️rajo ragatmakan viddhi trsnasangasamudbhavam.
tannibadhnati kaunteya karmasangena dehinam৷৷14.7৷৷
⚜Know thou Rajas to be of the nature of passion, the source of thirst (for sensual enjoyment) and attachment; it binds fast, O Arjuna, the embodied one by attachment to action.(14.7)
⚜हे कौन्तेय रजोगुण को रागस्वरूप जानो जिससे तृष्णा और आसक्ति उत्पन्न होती है। वह देही आत्मा को कर्मों की आसक्ति से बांधता है।।14.7।।
#geeta
रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम्।
तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम्
।।14.7।।♦️rajo ragatmakan viddhi trsnasangasamudbhavam.
tannibadhnati kaunteya karmasangena dehinam৷৷14.7৷৷
⚜Know thou Rajas to be of the nature of passion, the source of thirst (for sensual enjoyment) and attachment; it binds fast, O Arjuna, the embodied one by attachment to action.(14.7)
⚜हे कौन्तेय रजोगुण को रागस्वरूप जानो जिससे तृष्णा और आसक्ति उत्पन्न होती है। वह देही आत्मा को कर्मों की आसक्ति से बांधता है।।14.7।।
#geeta
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♦️tamastvajnanajan viddhi mohanan sarvadehinam.
pramadalasyanidrabhistannibadhnati bharata৷৷14.8৷৷
⚜But know thou Tamas to be born of ignorance, deluding all embodied beings; it binds fast, O Arjuna, by heedlessness, indolence and sleep.(14.8)
⚜और हे भारत तमोगुण को अज्ञान से उत्पन्न जानो जो समस्त देहधारियों (जीवों) को मोहित करने वाला है। वह प्रमाद आलस्य और निद्रा के द्वारा जीव को बांधता है।।14.8।।
#geeta
तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत
।।14.8।।♦️tamastvajnanajan viddhi mohanan sarvadehinam.
pramadalasyanidrabhistannibadhnati bharata৷৷14.8৷৷
⚜But know thou Tamas to be born of ignorance, deluding all embodied beings; it binds fast, O Arjuna, by heedlessness, indolence and sleep.(14.8)
⚜और हे भारत तमोगुण को अज्ञान से उत्पन्न जानो जो समस्त देहधारियों (जीवों) को मोहित करने वाला है। वह प्रमाद आलस्य और निद्रा के द्वारा जीव को बांधता है।।14.8।।
#geeta