संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
स्वप्नक् स्वप्नेषु लोटति = ख्वाबों का शहंशाह ख्वाबों में लोट-पलोट लगा रहा है। स्वप्नजा स्वप्नेषु लुट्यते = ख्वाबों के शहंशाह द्वारा ख्वाबों मंे लोट-पलोट लगाई जा रही है। मूले सति छिन्नोऽपि तरुः रोहति = जड़ के रहने पर कटा हुआ पेड़ भी पुनः उग आता है।…
कदाचित् गर्जन् मेघोऽपि वर्षति
= कभी-कभी गरजता बादल भी बरस जाता है।
कदाचित् गर्जता मेघेनापि वृष्यते
= कभी-कभी गरजते बादल के द्वारा भी बरसा जाता है।
आपदां कथितः पन्था इन्द्रियाणामसंयमः।
तज्जयः सम्पदां मार्गो येनेष्टं तेन गम्यताम्।।
= इन्द्रियों का असंयम असंख्य आपत्तियों को बुलावा है जबकि इन्द्रिय-संयम सम्पत्तियों भरा मार्ग है। दोनों में से तुम्हें जो पसन्द हो उसी पर गमन करो।
तादृशी भूयते बुद्धिर्व्यवसायोऽपि तादृशः।
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता।।
= जैसी होनहार होती है, मनुष्य की बुद्धि भी वैसी ही हो जाती है। उसके निर्णय, साधन तथा सहायक भी वैसे ही होते चले जाते हैं।
दिवा दृश्यते नोलूकेन काकेन नक्तं न दृश्यते।
अपूर्वेण कामान्धेन दिवा नक्तं न दृश्यते।।
= उल्लू को दिन में तथा कौए को रात में दिखाई नहीं देता, जबकि कामान्ध व्यक्ति को रात और दिन दोनों में ही नहीं दिखाई देता।
न दृश्यते जन्मान्धेन कामान्धेन न दृश्यते।
नैव दृश्यते मत्तेन न चार्थी दोषान् पश्यति।।
= जन्मान्ध को दिखाई नहीं देता, कामान्ध को दिखाई नहीं देता, नशेबाज को दिखाई नहीं देता तथा स्वार्थी को भी दोष दिखाई नहीं देते।
कल्पकोटिशतैरपि नाभुक्तेन कर्मणा क्षीयते।
= करोड़ों कल्प बीत जाने पर भी बिना भोगे कर्म नष्ट नहीं होते।
एतेनाऽमर्त्येन देवेनपर्णवीरिव डीयते।
= इस अविनाशी जीव के द्वारा पक्षी की भांति उड़ा जा रहा है।
दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते।
यदन्नं भक्षयेन्नित्यं भूयते तादृशी प्रजा।।
= जैसे दिया अंधेरा खाता है और काजल उत्पन्न करता है, इसी प्रकार मनुष्य जैसा अन्न खाता है उसकी विचाररूपी सन्तान भी वैसी ही होती है।
मलिनचेतसि बुद्धिप्ररोहेण न भूयते।
= मैले चित्त में बुद्धि (ज्ञान) का अंकुरण नहीं होता।
गामश्वं पुरुषं पशुमहरहर्नयमानेन वैवस्वतेन न तृप्यते सुराया इव दुर्मदिना।
= जैसे पियक्कड शराब से तृप्त नहीं होता, वैसे ही प्रतिदिन गाय, अश्व, पुरुष आदि प्राणियों को ले जानेवाला यम भी तृप्त नहीं होता।
सन्ध्या येन न विज्ञाता सन्ध्या येनानुपासिता।
जीवमानो भवेच्छूद्रो मृतः श्वा चैव भूयते।।
= जिसने संध्या की महिमा को नहीं जाना, जीवन में कभी संध्योपासना नहीं की, वह जीते जी शूद्र हो जाता है और मरने के बाद कुत्ता बन जाता है।
यः सर्वभूतेभ्योऽभयं दत्त्वा चरति, तेन कदाचिदपि केनापि न भीयते।
= जो समस्त प्राणियों को अभयदान देकर चलता है, उसे कभी भी किसी से भय नहीं होता।
बोधयन्ति न याचन्ते भिक्षाद्वारा गृहे गृहे।
दीयतां दीयतां नित्यमदातुः फलमीदृशम्।।
= भिक्षुक लोग भीख नहीं मांगते हैं, अपितु वे घर-घर जाकर भिक्षा मांगते हुए लोगों को बोध प्रदान करते हैं कि सदा दान दिया करो क्योंकि दान न देनेवाले की दुर्गति हमारे जैसी ही होती है।
#vakyabhyas
= कभी-कभी गरजता बादल भी बरस जाता है।
कदाचित् गर्जता मेघेनापि वृष्यते
= कभी-कभी गरजते बादल के द्वारा भी बरसा जाता है।
आपदां कथितः पन्था इन्द्रियाणामसंयमः।
तज्जयः सम्पदां मार्गो येनेष्टं तेन गम्यताम्।।
= इन्द्रियों का असंयम असंख्य आपत्तियों को बुलावा है जबकि इन्द्रिय-संयम सम्पत्तियों भरा मार्ग है। दोनों में से तुम्हें जो पसन्द हो उसी पर गमन करो।
तादृशी भूयते बुद्धिर्व्यवसायोऽपि तादृशः।
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता।।
= जैसी होनहार होती है, मनुष्य की बुद्धि भी वैसी ही हो जाती है। उसके निर्णय, साधन तथा सहायक भी वैसे ही होते चले जाते हैं।
दिवा दृश्यते नोलूकेन काकेन नक्तं न दृश्यते।
अपूर्वेण कामान्धेन दिवा नक्तं न दृश्यते।।
= उल्लू को दिन में तथा कौए को रात में दिखाई नहीं देता, जबकि कामान्ध व्यक्ति को रात और दिन दोनों में ही नहीं दिखाई देता।
न दृश्यते जन्मान्धेन कामान्धेन न दृश्यते।
नैव दृश्यते मत्तेन न चार्थी दोषान् पश्यति।।
= जन्मान्ध को दिखाई नहीं देता, कामान्ध को दिखाई नहीं देता, नशेबाज को दिखाई नहीं देता तथा स्वार्थी को भी दोष दिखाई नहीं देते।
कल्पकोटिशतैरपि नाभुक्तेन कर्मणा क्षीयते।
= करोड़ों कल्प बीत जाने पर भी बिना भोगे कर्म नष्ट नहीं होते।
एतेनाऽमर्त्येन देवेनपर्णवीरिव डीयते।
= इस अविनाशी जीव के द्वारा पक्षी की भांति उड़ा जा रहा है।
दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते।
यदन्नं भक्षयेन्नित्यं भूयते तादृशी प्रजा।।
= जैसे दिया अंधेरा खाता है और काजल उत्पन्न करता है, इसी प्रकार मनुष्य जैसा अन्न खाता है उसकी विचाररूपी सन्तान भी वैसी ही होती है।
मलिनचेतसि बुद्धिप्ररोहेण न भूयते।
= मैले चित्त में बुद्धि (ज्ञान) का अंकुरण नहीं होता।
गामश्वं पुरुषं पशुमहरहर्नयमानेन वैवस्वतेन न तृप्यते सुराया इव दुर्मदिना।
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जीवमानो भवेच्छूद्रो मृतः श्वा चैव भूयते।।
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यः सर्वभूतेभ्योऽभयं दत्त्वा चरति, तेन कदाचिदपि केनापि न भीयते।
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@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा।
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।।
⏳45 निमेषाः
🕚 IST 11:00 AM विषयः
🔰वार्ताः
🗓25th April 2022,सोमवासरः
🔴Voicechat would be recorded and shared on this channel.
📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (स्वस्थानीयां,प्रादेशीयां, अन्ताराष्ट्रीयां उत्तमां वार्तां वदन्तु) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु ⏰
👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
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🍃
♦️arjuna uvaacha
dRRiShTvedaM maanuShaM ruupaM tavasaumyaM janaardana|
idaaniimasmi saMvRRittaH sachetaaH prakRRitiM gataH
⚜Arjuna said:
O Krishna, seeing this gentle human form of Yours, I have now become composed and I am normal again. (11.51)
⚜अर्जुन ने कहा --
हे जनार्दन आपके इस सौम्य मनुष्य रूप को देखकर अब मैं शांतचित्त हुआ अपने स्वभाव को प्राप्त हो गया हूँ।।11.51।।
#geeta
अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तवसौम्यं जनार्दन।
इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः
।।11.51।।♦️arjuna uvaacha
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#geeta
🍃
♦️shrii bhagavaanuvaacha
sudurdarshamidaM ruupaM dRRiShTavaanasi yanmama|
devaa apyasya ruupasya nityaM darshanakaa~NkShiNaH
⚜The Supreme Lord said:
This (four-armed) form of Mine that you have seen is very difficult, indeed, to see. Even the gods are ever longing to see this form. (11.52)
⚜श्रीभगवान् ने कहा --
मेरा यह रूप देखने को मिलना अति दुर्लभ है जिसको कि तुमने देखा है। देवतागण भी सदा इस रूप के दर्शन के इच्छुक रहते हैं।।11.52।।
#geeta
श्री भगवानुवाच
सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम।
देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिणः
।।11.52।।♦️shrii bhagavaanuvaacha
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मेरा यह रूप देखने को मिलना अति दुर्लभ है जिसको कि तुमने देखा है। देवतागण भी सदा इस रूप के दर्शन के इच्छुक रहते हैं।।11.52।।
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🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅ 🚩तिथि - दशमी रात्रि 01:38 तक तत्पश्चात एकादशी
⛅दिनांक - 25 अप्रैल 2022
⛅दिन - सोमवार
⛅विक्रम संवत - 2079
⛅शक संवत - 1944
⛅अयन - उत्तरायण
⛅ऋतु - ग्रीष्म
⛅मास - वैशाख
⛅पक्ष - कृष्ण
⛅नक्षत्र - धनिष्ठा शाम 05:13 तक तत्पश्चात शतभिषा
⛅योग - शुक्ल रात्रि 08:56 तक तत्पश्चात ब्रह्म
⛅राहुकाल - सुबह 07:48 से 09:24 तक
⛅सूर्योदय - 06:11
⛅सूर्यास्त - 07:04
⛅दिशाशूल - पूर्व दिशा में
⛅ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:42 से 05:27 तक
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Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (Bhavani Raman)
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
https://youtu.be/yGKwsXVlju0
https://youtu.be/yGKwsXVlju0
YouTube
Vaarta: News in Sanskrit | France's Emmanuel Macron re-elected as President
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिकायां स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
🗣सहैव तानि वाक्यानि उक्त्वा ध्वनिमाध्यमेन अपि प्रेषयत।
🔰 चित्र देखकर पांच वाक्य बनायें।
✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।
🗣 साथ हि वें वाक्य बोलकर भी वाइस नोट भेजें।
🔰Make 5 sentences, Observing the attached image.
✍🏼You can type in the comment box or you can also send a photo by writing on the notebook.
🗣 Also, Send voice message by uttering those sentences.
#chitram
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🍃
⚜Let the body be purified by working for the welfare of others; words be purified for the happiness of others; and the mind be purified with thoughts of generosity.
🔅अस्माकं शरीरं परोपकारेषु वाणी परसुखेषु उदारभावनायाः विचारेषु चेतः(मनः) च शुद्धतां प्राप्नुवन्तु।
#Subhashitam
वपुः परोपकारेषु वचः परसुखेषु च।
उदारेषु विचारेषु चेतः पूतं प्रवर्तताम्
॥⚜Let the body be purified by working for the welfare of others; words be purified for the happiness of others; and the mind be purified with thoughts of generosity.
🔅अस्माकं शरीरं परोपकारेषु वाणी परसुखेषु उदारभावनायाः विचारेषु चेतः(मनः) च शुद्धतां प्राप्नुवन्तु।
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