संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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संस्कृतभाषायां प्रसिद्धा: लोकोक्तय: -

1. संघे शक्ति: कलौ युगे। – एकता में बल है।
2. अविवेक: परमापदां पद्म। – अज्ञानता विपत्ति का घर है।
3. कालस्य कुटिला गति:। – विपत्ति अकेले नहीं आती।
4. अल्पविद्या भयंकरी। – नीम हकीम खतरे जान।
5. बह्वारम्भे लघुक्रिया। – खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
6. वरमद्य कपोत: श्वो मयूरात। – नौ नगद न तेरह उधार।
7. वीरभोग्य वसुन्धरा। – जिकसी लाठी उसकी भैंस।
8. शठे शाठ्यं समाचरेत् – जैसे को तैसा।
9. दूरस्था: पर्वता: रम्या:। – दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।
10. बली बलं वेत्ति न तु निर्बल : जौहर की गति जौहर जाने।
11. अतिदर्पे हता लंका। – घमंडी का सिर नीचा।
12. अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम्। – थोथा चना बाजे घना।
13. कष्ट खलु पराश्रय:। – पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।
14. क्षते क्षारप्रक्षेप:। – जले पर नमक छिड़कना।
15. विषकुम्भं पयोमुखम। – तन के उजले मन के काले।
16. जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट:। – बूँद-बूँद घड़ा भरता है।
17. गत: कालो न आयाति। – गया वक्त हाथ नहीं आता।
18. पय: पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम्। – साँपों को दूध पिलाना उनके विष को बढ़ाना है।
19. सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्य​जति पण्डित:। – भागते चोर की लंगोटी सही।
20. यत्नं विना रत्नं न लभ्यते। – सेवा बिन मेवा नहीं।
-सङकलन- वशिष्ठ कुमार व्यास
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
श्चुत्व सन्धिः {(स्तोः श्चुना श्चुः) सकार या तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) से पहले या बाद में शकार या चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) कोई भी हो तो सकार और तवर्ग को क्रमशः शकार और चवर्ग हो जाता है। (अर्थात् ‘स्’ को ‘श्’, ‘त्’ को ‘च्’, ‘थ्’ को ‘छ्’, ‘द्’ को ‘ज्’, ‘ध्’…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (२३) षष्ठी विभक्ति (२) + ष्टुत्व सन्धिः

(बहुतों में एक को छांटने में जिसमें से छांटा जाए उसमें षष्ठी तथा सप्तमी दोनों का प्रयोग देखा जाता है।)

व्याकरणअध्येतृणां व्याकरणाध्येतृषु दयानन्दः पटुः अस्ति
= व्याकरण पढ़नेवालों में दयानन्द चतुर/कुशल है।

कविषु कवीनां वा कालिदासः श्रेष्ठोऽस्ति
= कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है।

गवां गोषु वा देशि-गौ श्रेष्ठतमा भवति
= गायों में देशी गाय सर्वोत्तम होती है।

पशुनां पशुषु वा सिंहः शूरो भवति
= पशुओं में शेर शूर होता है।

मृगानां मृगेषु वा चित्रकः वेगेन धावति
= जंगली पशुओं में चीता तेजी से दौड़ता है।

वयसां वयस्सु हंसः दूरम् उड्डयति
= पक्षियों में हंस लम्बी उड़ान भरता है।

पेयानां पेयेषु वा दुग्धं सम्पूर्णाहार इति कथ्यते
= पेय पदार्थों में दूध को सम्पूर्णाहार कहा जाता है।

जीवेषु जीवानां वा मानवः श्रेष्ठः
= प्राणियों में मनुष्य श्रेष्ठ है।

मानवानां मानवेषु वा पण्डिताः श्रेष्ठाः
= मानवों में पण्डित श्रेष्ठ है।

वृक्षानां वृक्षेषु वा चन्दनं शीतलं वर्तते
= वृक्षों में चन्दन शीतल होता है।

वस्त्रेषु वस्त्राणां वा कार्पासं वस्त्रं स्वास्थ्यप्रदं भवति
= कपड़ों में सूती कपड़ा स्वास्थ्यप्रद होता है।

धातूनां धातुषु वा सुवर्णस्य महिमा अधिकोऽस्ति =
धातुओं में सोने का महत्व अधिक है।

सैनिकानां सैनिकेषु वा पञ्च सैनिकाः अद्य वीरगतिं प्राप्नुवन्
= सैनिकों में आज पांच सैनिक शहीद हो गए।

राजनीतिज्ञानां राजनीतिज्ञेषु वा कृष्णोऽन्यतमः
= राजनीतिज्ञों में कृष्ण जैसा कोई नहीं है।

पुरुषेषु पुरुषाणां वा राम एव मर्यादापुरुषोत्तमो बभूव
= पुरुषों में श्रीराम ही मर्यादापुरुषोत्तम हुए।

देशेषु देशाणां वा भारत एव जगद्गुरु-नाम्ना लब्धख्यातिकोऽस्ति
= देशों में केवल भारत ही जगद्गुरु नाम से प्रसिद्ध है।

भाषाणां भाषासु वा संस्कृतस्य साहित्यं विशालं वर्तते
= सकल भाषाओं में संस्कृत भाषा का साहित्य विशाल है।

ऋतुनां ऋतुषु वा शरदृतुर्जीवग्राही वर्तते वसन्तर्तु च स्वास्थ्यदायी
= ऋतुओं में शरद्-ऋतु जानलेवा होती है जबकि वसन्त-ऋतु स्वास्थ्यदायी।

भोजनानां भोजनेषु वा उष्णिका शीतर्तौ स्वद्यते
= व्यंजनों में गरमागरम लप्सी ठंड में खूब स्वादिष्ट लगती है।

धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते।
जन्म-जन्मनि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्।।
= जिस मानव ने अपने जीवन में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में से एक भी नहीं प्राप्त किया, उसे इस मृत्यु लोक में बार-बार जन्म लेने और मृत्युदुःख भोगने का ही विकल्प बचता है।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

तत्त्वस्वरूपानुभवादुत्पन्नं ज्ञानमञ्जसा।
अहं ममेति चाज्ञानं बाधते दिग्भ्रमादिवत्।।46।।

46. The ignorance characterised by the notions’I’ and’Mine’ is destroyed by the knowledge produced by the realisation of the true nature of the Self, just as right information removes the wrong notion about the directions.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 46:

आत्म-बोध के 46th श्लोक में आचार्यश्री हमें आत्म-साक्षात्कार अर्थात आत्म-अनुभव का क्या चमत्कारी प्रभाव होता है वो बताते हैं। सबसे पहले तो आत्मानुभव के बारे में पू गुरूजी ने यह स्पष्ट किया की यह साक्षात्कार जीव-भाव बाधित करने के बाद ही होता है। अगर हम रस्सी को सर्प समझते ही रहेंगें तब तक उसके अधिष्ठान की असलियत का कभी भी पता नहीं चल सकता है। जब कल्पना रहित अर्थात विरक्त अर्थात सन्यस्त मन से वेदांत चिंतन करते हैं तो पहले बुद्धि को संतुष्ट करें, फिर ज्ञान को हृदयांवित करें - तभी अनुभव होता है। जब अनुभव होता है तब उसी क्षण सब ग्रंथियों का भेदन हो जाता है - अहं और मम सब जड़ से समाप्त हो जाते हैं। यह वैसे ही होता है जैसे एक दिशाओं से भ्रमित व्यक्ति को एक दिशा मिलते ही सभी दिशाओं का पता चल जाता है।

#Atmabodha
🍁 प्रतिदिनं संस्कृतम् 🍁

नमः सर्वेभ्यः,
नूतनसम्भाषणशिबिरार्थिनां कृते विशेष सूचना

मार्च मासस्य 14 दिनाङ्कतः 31 दिनाङ्कपर्यन्तं अभ्यासकक्ष्या चाल्यते।

समयः -- सायं 7pm-7.40pm

विषयः -- सुलभसम्भाषणम्

पुस्तकम् -- संस्कृतभारती पुस्तकविभागस्य अभ्यास पुस्तकम्

-- https://us05web.zoom.us/j/7286226080?pwd=a0hNQnJ4aHVvVXUvWm1SSm9HTjFkUT09

Meeting ID:
7286226080
Passcode:
9TXy4g

🍁*सर्वेषां हार्दं स्वागतम्* 🍁
https://youtu.be/zU6gJE0iadw
#SanskritCarnaticMusic
अरुणाचल नाथम् - रागं सारङ्गा - ताळं रूपकं

पल्लवि
अरुणाचल नाथं स्मरामि अनिशं
अपीत कुचाम्बा समेतम्

अनुपल्लवि
स्मरणात् कैवल्य प्रद चरणारविन्दं
तरुणादित्य कोटि संकाश चिदानन्दं
(मध्यम काल साहित्यम्)
करुणा रसादि कन्दं शरणागत सुर बृन्दम्

चरणम्
अप्राकृत तेजो-मय लिङ्गं
अत्यद्भुत कर धृत सारङ्गं
अप्रमेयं अपर्णाब्ज भृङ्गं
आरूढोत्तुङ्ग वृष तुरङ्गम्
(मध्यम काल साहित्यम्)
विप्रोत्तम विशेषान्तरङ्गं
वीर गुरु गुह तार प्रसङ्गं
स्व-प्रदीप मौलि विधृत गङ्गं
स्व-प्रकाश जित सोमाग्नि पतङ्गम्

Meaning
pallavi
smarAmi - I think
aniSaM - incessantly
aruNAcala nAthaM - (of) the lord of Arunachala,
apIta kucAmbA samEtam - the one in the company of Goddess Apitakuchamba,

anupallavi
kaivalya prada caraNa-aravindaM - the one whose lotus-feet grant liberation
smaraNAt - (simply) upon remembrance,
taruNa-Aditya kOTi saMkASa - the one resembling a crore (i.e. countless) rising suns,
cidAnandaM - the embodiment of the bliss of consciousness,
karuNA rasa-Adi kandaM - the prime root (source) of the sentiment of mercy,
SaraNa-Agata sura bRndam - the one in whom the assembly of gods has sought protection,

caraNam
aprAkRta tEjO-maya lingaM - the unearthly, extraordinary Linga of fire,
ati-adbhuta kara dhRta sArangaM - the one holding a marvelous deer in his hand,
apramEyaM - the immeasurable one,
aparNA-abja bhRngaM - the honey-bee to the lotus that is Parvati,
ArUDha-uttunga vRsha turangam - the one who has ascended a lofty bull as his mount,
vipra-uttama viSEsha-antarangaM - the one who is specially dear to superior (saintly) Brahmins,
vIra guru guha tAra prasangaM - the one greatly attached to the brave Guruguha,
sva-pradIpa mauli vidhRta gangaM - the one who bears Ganga on his luminous head,
sva-prakASa jita sOma-agni patangam - the one who has surpassed the moon, fire and sun with his radiance.

Comments:
This kriti is in the second Vibhakti
Among the Pancha-bhuta kritis, this is on the lord of Arunachala, where he is worshipped as Agni(fire)
The greatness of Arunachala is described as
‘jananAt kamalAlayE darSanAd-abhrasadasi
kASyAM tu maraNan-muktih smaraNad-arunAcale’
(Meaning: Liberation is possible by being born in Tiruvarur, or seeing Chidambaram, or dying in Kashi or (just) remembering Arunachala. )
Hence the use of the verb ‘smarAmi’ in the Kriti, as well as the epithet “smaraNAt kaivalya prada caraNa-aravindaM”
The phrase ‘ati-adbhuta kara dhRta sArangaM’ contains the Raga Mudra
जिज्ञासा — एक संस्कृत प्रश्नोत्तर समूह

व्याकरण के विषय की अथवा संस्कृतसम्भाषण के विषय की शंकासमाधान के लिए आइए जिज्ञासा नाम के गण में।

इस गण में आप संस्कृत भाषा से सम्बन्धित प्रश्न पूछ सकते हैं तथा अपनी व्याकरण के ज्ञान की प्यास को शान्त कर सकते हैं।
गण में लोगों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर जानकार लोग दे सकते हैं।

हम सभी परस्पर सहायता से संस्कृत के अपने ज्ञान को बढ़ाते हुए संस्कृतक्षेत्र में अपना योगदान दे सकते हैं।
जैसा कि श्रीमद्भगवद्गीता में भी कहा गया है कि "परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ" (एक दूसरे को उन्नत करते हुए परमपद को प्राप्त करें) ।
इस रीति का अनुसरण करते हुए हम सभी ज्ञानलाभ कर सकते हैं।

परन्तु किसी गण संस्था आदि को सम्यक् प्रकार से चलाने के लिए कुछ नियम आवश्यक होते हैं, उसी प्रकार इस गण में भी संस्कृतसंबंद्धित प्रश्नों को छोड़कर अन्य संदेश नहीं भेजने हैं ।

इस वाक्य का पालन न करने पर आप उचित कार्यवाही के पात्र होंगे।

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जिज्ञासा - A Sanskrit Q&A group

To solve the doubts of the subject of grammar or spoken Sanskrit, Join the group named जिज्ञासा.

In this group you can ask questions related to Sanskrit language and quench your thirst for knowledge of Sanskrit grammar.
Knowledgeable people can give answers to the questions asked by people in Gana.

We can all contribute to the field of Sanskrit by increasing our knowledge of Sanskrit with mutual help.
As also stated in the Srimad Bhagavad Gita, “parasparaM bhaavayantaH shreyaH paramavaapsyatha” (nourishing one another, ye shall attain to the highest good).
We can all gain knowledge by following this method.

But some rules are necessary for proper running of any institution. Similarly, in this Group also, other messages should not be sent except questions related to Sanskrit.

If you do not follow this sentence, you will be eligible for appropriate action.


👉🏼 t.me/Ask_Sanskrit 👈🏼
जिज्ञासा — संस्कृतस्य प्रश्नोत्तरेभ्यः

व्याकरणविषये अथवा संस्कृतसम्भाषणविषये कापि शंका अस्ति चेत् आयात जिज्ञासा नामकं गणम्।

अस्मिन् गणे सर्वे संस्कृतसम्बद्धान् प्रश्नान् प्रष्टुम् अर्हन्ति स्वव्याकरणपिपासां पूरयितुं च शक्नुवन्ति।

एतस्मिन् गणे वयं प्रश्नान् पृच्छामः तथा गणे वर्तमानाः ये जनाः तेषाम् उत्तराणि जानन्ति ते उत्तरं वक्तुम् अर्हन्ति।

वयं सर्वे परस्परसाहाय्येन संस्कृते स्वज्ञानं
वर्धामहे तथा संस्कृतक्षेत्रे स्वयोगदानं दद्मः।

श्रीमद्भगवद्गीतायाम् अपि एतस्मिन् विषये उक्तं यत् "परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ"(परस्परं सहायतां कुर्वन्तः वयं परं पदं प्राप्स्यामः)।
इत्यनया रीत्या वयं ज्ञानलाभं प्राप्तुं शक्नुमः।

कस्यचिदपि गणस्य संस्थायाः सम्यक् सञ्चालनाय केचन नियमाः आवश्यकाः तथैव अत्रापि एकः ध्यातव्यः विषयः अस्ति यत् अस्मिन् गणे संस्कृतप्रश्नेभ्यः इतराः विषयाः न प्रेषणीयाः एव (यथा शुभकामनाः वार्ताः ....इत्यादयः)।
नो चेत् तस्य उचितदण्डविधानं भवेत्।

अत्र नुन्दत👇🏼
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah pinned «जिज्ञासा — संस्कृतस्य प्रश्नोत्तरेभ्यः व्याकरणविषये अथवा संस्कृतसम्भाषणविषये कापि शंका अस्ति चेत् आयात जिज्ञासा नामकं गणम्। अस्मिन् गणे सर्वे संस्कृतसम्बद्धान् प्रश्नान् प्रष्टुम् अर्हन्ति स्वव्याकरणपिपासां पूरयितुं च शक्नुवन्ति। एतस्मिन् गणे वयं प्रश्नान्…»
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : धनम्
दिनाङ्कः : 19th March 2022,
शनिवासरः

Please Join the voicechat on time.

😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (धनस्य का आवश्यकता अस्ति, तस्य विषये शास्त्रेषु किम् उक्तम् अस्ति,धनं प्रति अस्माकं दृष्टिः कथं भवेत् , धनस्य सुभाषितं वा वदन्तु।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
Live stream scheduled for
🍀 प्रतिदिनं संस्कृतम् 🍀

नमः सर्वेभ्यः

प्रतिदिनं वयं मिलित्वा लकारपठनं करिष्यामः
लट् , लोट्, लङ्,विधिलिँङ् लकाराः

समयः - 9.30-10.10. PM (भारतीय समयानुसारम् ) केवलं 40 निमेषाः

सोमवासरतः शुक्रवासरपर्यन्तम्

कक्ष्या मार्च मासस्य 16 दिनाङ्कतः आरभते

https://meet.google.com/dck-rnvy-hhn
BVGch10vs20
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.20]
🍃अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च
।।10.20।।

♦️ahamaatmaa guDaakesha sarvabhuutaashayasthitaH|
ahamaadishcha madhyaM cha bhuutaanaamanta eva cha10.20

O Arjuna, I am the Atma abiding in the heart of all beings. I am also the beginning, the middle, and the end of all beings. (10.20)

हे गुडाकेश (निद्राजित्) मैं समस्त भूतों के हृदय में स्थित सबकी आत्मा हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों का आदि? मध्य और अन्त भी मैं ही हूँ।।10.20।।

#geeta
BVGch10vs21
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.21]
🍃आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी
।।10.21।।

♦️aadityaanaamahaM viShNurjyotiShaaM raviraMshumaan|
mariichirmarutaamasmi nakShatraaNaamahaM shashii10.21

I am Vishnu among the (twelve) sons of Aditi, I am the radiant sun among the luminaries, I am Marici among the gods of wind, I am the moon among the stars. (10.21)

मैं (बारह) आदित्यों में विष्णु और ज्योतियों में अंशुमान् सूर्य हूँ मैं (उनचास) मरुतों (वायु देवताओं) में मरीचि हूँ और नक्षत्रों में शशी (चन्द्रमा) हूँ।।10.21।।

#geeta