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Sanskrit-1820-1830
AIR Sanskrit News (Evening)
Forwarded from संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah (Markdown)
Pāninīya Pāthaśālā invites you to a scheduled Zoom meeting.
Topic: Abhyasa
Time: This is a regular meeting meet anytime
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Meeting ID: 879 9650 1401
Topic: Abhyasa
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🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - अष्टमी पूर्ण रात्रि तक
⛅️ दिनांक - 31 जुलाई 2021
⛅️ दिन - शनिवार
⛅️ विक्रम संवत - 2078
⛅️ शक संवत - 1943
⛅️ अयन - दक्षिणायन
⛅️ ऋतु - वर्षा
⛅️ मास - श्रावण
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - अश्विनी शाम 08:38 तक तत्पश्चात भरणी
⛅️ योग - शूल रात्रि 09:02 तक तत्पश्चात गण्ड
⛅️ राहुकाल - सुबह 09:28 से सुबह 11:07 तक
⛅️ सर्योदय - 06:13
⛅️ सर्यास्त - 19:16
⛅️ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
🌥 🚩यगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - अष्टमी पूर्ण रात्रि तक
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⛅️ विक्रम संवत - 2078
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⛅️ ऋतु - वर्षा
⛅️ मास - श्रावण
⛅️ पक्ष - कृष्ण
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वार्ता: संस्कृत में समाचार | 31/7/2021
✊ चाणक्य नीति ⚔️
✒️ षोडशः अध्याय
♦️श्लोक :- १७
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।१७।।
♦️भावार्थ - मधुर वचन बोलने से सब जन्तु प्रसन्न और सन्तुष्ट होते हैं। अतः मधुर वचन ही बोलना चाहिए, क्यों कि वचनों में क्या दरिद्रता?
♦️श्लोक :- १८
संसारविषवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे ।
सुभाषितं च सुस्वादु सङ्गतिः सज्जने जने।।18।।
♦️भावार्थ - संसार एक कड़वा वृक्ष है, इसके दो फल ही अमृत जैसे मीठे होते हैं, एक मधुर वाणी और दूसरी सज्जनों की संगति।
जो व्यक्ति मधुर वाणी का प्रयोग करता है वह शत्रुओं को भी जीत लेता है और दूसरी है मधुर संगति, सज्जनों की संगति अर्थात् मनुष्यों को मधुर प्रिय वचन बोलने और सज्जनों की संगति करने में कभी हिचकिचाना नहीं चाहिए। संसार में शेष सब तो कड़वा ही है।
♦️श्लोक :- १९
जन्म जन्म यदभ्यस्तं दानमध्ययनं तपः ।
तेनैवाभ्यासयोगेन देही चाभ्यस्यते पुनः ।।19।।
♦️भावार्थ - अनेक जन्मों में मनुष्य ने दान, अध्ययन और तप आदि जिन बातों का अभ्यास किया, उसी अभ्यास के कारण वह उन्हें बार बार दोहराता है।
इस श्लोक का भाव यह है कि मनुष्य को अपना भावी जीवन सुधारने के लिए इस जन्म में अच्छे कार्य करने का अभ्यास करना चाहिए। पहले के अभ्यास का ही परिणाम है हमारा आज और भविष्य में जो हम होंगे वह होगा आज के अभ्यास का प्रतिफल।
#chanakya
✒️ षोडशः अध्याय
♦️श्लोक :- १७
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।१७।।
♦️भावार्थ - मधुर वचन बोलने से सब जन्तु प्रसन्न और सन्तुष्ट होते हैं। अतः मधुर वचन ही बोलना चाहिए, क्यों कि वचनों में क्या दरिद्रता?
♦️श्लोक :- १८
संसारविषवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे ।
सुभाषितं च सुस्वादु सङ्गतिः सज्जने जने।।18।।
♦️भावार्थ - संसार एक कड़वा वृक्ष है, इसके दो फल ही अमृत जैसे मीठे होते हैं, एक मधुर वाणी और दूसरी सज्जनों की संगति।
जो व्यक्ति मधुर वाणी का प्रयोग करता है वह शत्रुओं को भी जीत लेता है और दूसरी है मधुर संगति, सज्जनों की संगति अर्थात् मनुष्यों को मधुर प्रिय वचन बोलने और सज्जनों की संगति करने में कभी हिचकिचाना नहीं चाहिए। संसार में शेष सब तो कड़वा ही है।
♦️श्लोक :- १९
जन्म जन्म यदभ्यस्तं दानमध्ययनं तपः ।
तेनैवाभ्यासयोगेन देही चाभ्यस्यते पुनः ।।19।।
♦️भावार्थ - अनेक जन्मों में मनुष्य ने दान, अध्ययन और तप आदि जिन बातों का अभ्यास किया, उसी अभ्यास के कारण वह उन्हें बार बार दोहराता है।
इस श्लोक का भाव यह है कि मनुष्य को अपना भावी जीवन सुधारने के लिए इस जन्म में अच्छे कार्य करने का अभ्यास करना चाहिए। पहले के अभ्यास का ही परिणाम है हमारा आज और भविष्य में जो हम होंगे वह होगा आज के अभ्यास का प्रतिफल।
#chanakya
ओ३म्
561. संस्कृत वाक्याभ्यासः
रात्रौ एक वादने जागरितवान्।
= रात एक बजे जागा ।
मुखं प्रक्षाल्य स्वस्थः अभवम्।
= मुख साफ कर के स्वस्थ हो गया।
अनन्तरं चन्द्रयानस्य अवतरणप्रक्रियायाः दर्शनम् आरब्धवान्।
= बाद में चन्द्रयान की लैंडिंग प्रक्रिया को देखना शुरू किया।
प्रधानमंत्री महोदयः अपि इसरो केन्द्रं प्राविशत्।
= प्रधानमंत्री महोदय भी इसरो केंद्र में प्रविष्ट हुए।
विविधानां विद्यालयानां छात्राः अपि तत्र उपविष्टाः आसन्।
= विविध विद्यालयों के छात्र भी वहाँ बैठे थे।
अवतरणयानस्य गतिः मन्दा क्रियते स्म।
= लैंडर की गति को धीमा किया जा रहा था।
शनैः शनैः अवतरणयानस्य गतिः मन्दा कृता।
= धीरे धीरे लैंडर की गति धीमी की गई।
अवतरणयानं शनैःशनैः चन्द्रमसि अवतरति स्म।
= लैंडर धीरे धीरे उतर रहा था
सर्वे वैज्ञानिकाः इसरो-नियंत्रणकक्षतः यानस्य संचालनं कुर्वन्ति स्म।
= सभी वैज्ञानिक इसरो नियंत्रण कक्ष से यान का संचालन कर रहे थे।
तदनीमेव सर्वे स्तब्धाः अभवन्।
= तभी सारे स्तब्ध रह गए।
अवतरणयानेन सह सम्पर्कः समाप्तः जातः।
= लैंडर के साथ संपर्क कट गया।
परिक्रमायानं सुरक्षितम् अस्ति।
= ऑर्बिटर सुरक्षित है।
तावती सफलता वैज्ञानिकैः प्राप्ता।
= उतनी सफलता वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त की गई।
वैज्ञानिकाः पुनः प्रयासं करिष्यन्ति।
= वैज्ञानिक पुनः प्रयास करेंगे।
अवश्यमेव सफलतां प्राप्स्यन्ति।
= अवश्य ही सफलता पायेंगे।
ओ३म्
562. संस्कृत वाक्याभ्यासः
मम भोजनम् अभवत्।
= मेरा भोजन हो गया।
अहं भोजनं कृतवान्।
= मैंने भोजन कर लिया।
मम भार्या अपि भोजनं कृतवती।
= मेरी पत्नी ने भी भोजन कर लिया।
अहम् एक होरा अनन्तरं शयनं करिष्यामि।
= मैं एक घंटे बाद सो जाऊँगा।
मध्यरात्रौ एक वादने जागरिष्यामि।
= आधी रात एक बजे जागूँगा।
रात्रौ चन्द्रमसि चन्द्रयानस्य अवतरणं द्रक्ष्यामि।
= रात में चन्द्रमा पर चन्द्रयान का अवतरण देखूँगा।
अस्माकं कृते गौरवस्य विषयः।
= हमारे लिये गौरव की बात है।
इसरो संस्थानस्य सर्वेभ्यः वैज्ञानिकेभ्यः शुभकामनाः।
= इसरो संस्थान के सभी वैज्ञानिकों को शुभकामनाएँ।
भवन्तः सर्वे एतद् गौरवपूर्णं दृश्यम् अवश्यमेव पश्यन्तु।
= आप सभी इस गौरवपूर्ण दृश्य को अवश्य देखें।
ओ३म्
563. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अहं सप्तम्यां कक्षायाम् आसम्।
= मैं सातवीं कक्षा में था।
किञ्चित् चंचलतां कृतवान् अहम्।
= कुछ चंचलता की मैंने ।
मम शिक्षिका दृष्टवती।
= मेरी शिक्षिका ने देख लिया।
शिक्षिका – किमर्थं ???
= क्यों ???
– तुभ्यं चञ्चलता बहु रोचते।
= तुम्हें चंचलता बहुत पसंद है।
– तव कर्णौ गृह्णातु।
= तुम्हारे दोनों कान पकड़ो।
अहं मम कर्णौ गृहीतवान्।
= मैंने मेरे दोनों कान पकड़े।
शिक्षिका – वद …. पुनः चञ्चलतां न करिष्यामि।
– बोलो …. फिर से चंचलता नहीं करूँगा।
अहम् – न करिष्यामि….
= नहीं करूँगा ….
शिक्षिका – किं न करिष्यसि ?
= क्या नहीं करोगे ?
अहम् – चञ्चलतां न करिष्यामि।
= चंचलता नहीं करुँगा ।
एवम् उक्त्वा अहम् अरोदम्।
= ऐसा कहकर मैं रो दिया।
सा शिक्षिका माता ह्यः मार्गे मिलितवती।
= वह शिक्षिका माता कल रास्ते में मिल गईं।
अहं तस्याः चरणस्पर्शं कृतवान्।
= मैंने उनके चरण छुए।
सर्वेभ्यः शिक्षकेभ्यः , सर्वाभ्यः शिक्षिकाभ्यश्च शिक्षकदिवसस्य मङ्गलकामनाः।
ओ३म्
564. संस्कृत वाक्याभ्यासः
तस्य ओष्ठौ रक्तवर्णीयौ स्तः।
= उसके दोनों होंठ लाल हैं।
किमर्थम् ?
= क्यों ?
सः ताम्बूलं खादति।
= वह पान खाता है।
तस्य ताम्बूले तमाखू न भवति।
= उसके पान में तम्बाकू नहीं होती है।
( ताम्रचूडः न भवति।
= तम्बाकू नहीं होती है। )
सः ताम्बूले चूर्णकं , कत्थां च लिम्पति।
= वह पान पर चूना और कत्था लीपता है।
पुगीफलम् एलां च स्थापयति।
= सुपारी और इलायची डालता है।
यदाकदा सः लवंगम् अपि स्थापयति।
= कभी कभी लौंग भी डालता है।
( देवकुसुमम् = लौंग )
भोजनान्तरं सः एकं ताम्बूलं खादति।
= भोजन के बाद वह एक पान खाता है।
सः कुत्रापि निष्ठीवनं न करोति।
= वह कहीं भी थूकता नहीं है।
सः औषधरूपेण एव ताम्बूलं खादति।
= वह औषधि के रूप में ही पान खाता है।
#vakyabhyas
561. संस्कृत वाक्याभ्यासः
रात्रौ एक वादने जागरितवान्।
= रात एक बजे जागा ।
मुखं प्रक्षाल्य स्वस्थः अभवम्।
= मुख साफ कर के स्वस्थ हो गया।
अनन्तरं चन्द्रयानस्य अवतरणप्रक्रियायाः दर्शनम् आरब्धवान्।
= बाद में चन्द्रयान की लैंडिंग प्रक्रिया को देखना शुरू किया।
प्रधानमंत्री महोदयः अपि इसरो केन्द्रं प्राविशत्।
= प्रधानमंत्री महोदय भी इसरो केंद्र में प्रविष्ट हुए।
विविधानां विद्यालयानां छात्राः अपि तत्र उपविष्टाः आसन्।
= विविध विद्यालयों के छात्र भी वहाँ बैठे थे।
अवतरणयानस्य गतिः मन्दा क्रियते स्म।
= लैंडर की गति को धीमा किया जा रहा था।
शनैः शनैः अवतरणयानस्य गतिः मन्दा कृता।
= धीरे धीरे लैंडर की गति धीमी की गई।
अवतरणयानं शनैःशनैः चन्द्रमसि अवतरति स्म।
= लैंडर धीरे धीरे उतर रहा था
सर्वे वैज्ञानिकाः इसरो-नियंत्रणकक्षतः यानस्य संचालनं कुर्वन्ति स्म।
= सभी वैज्ञानिक इसरो नियंत्रण कक्ष से यान का संचालन कर रहे थे।
तदनीमेव सर्वे स्तब्धाः अभवन्।
= तभी सारे स्तब्ध रह गए।
अवतरणयानेन सह सम्पर्कः समाप्तः जातः।
= लैंडर के साथ संपर्क कट गया।
परिक्रमायानं सुरक्षितम् अस्ति।
= ऑर्बिटर सुरक्षित है।
तावती सफलता वैज्ञानिकैः प्राप्ता।
= उतनी सफलता वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त की गई।
वैज्ञानिकाः पुनः प्रयासं करिष्यन्ति।
= वैज्ञानिक पुनः प्रयास करेंगे।
अवश्यमेव सफलतां प्राप्स्यन्ति।
= अवश्य ही सफलता पायेंगे।
ओ३म्
562. संस्कृत वाक्याभ्यासः
मम भोजनम् अभवत्।
= मेरा भोजन हो गया।
अहं भोजनं कृतवान्।
= मैंने भोजन कर लिया।
मम भार्या अपि भोजनं कृतवती।
= मेरी पत्नी ने भी भोजन कर लिया।
अहम् एक होरा अनन्तरं शयनं करिष्यामि।
= मैं एक घंटे बाद सो जाऊँगा।
मध्यरात्रौ एक वादने जागरिष्यामि।
= आधी रात एक बजे जागूँगा।
रात्रौ चन्द्रमसि चन्द्रयानस्य अवतरणं द्रक्ष्यामि।
= रात में चन्द्रमा पर चन्द्रयान का अवतरण देखूँगा।
अस्माकं कृते गौरवस्य विषयः।
= हमारे लिये गौरव की बात है।
इसरो संस्थानस्य सर्वेभ्यः वैज्ञानिकेभ्यः शुभकामनाः।
= इसरो संस्थान के सभी वैज्ञानिकों को शुभकामनाएँ।
भवन्तः सर्वे एतद् गौरवपूर्णं दृश्यम् अवश्यमेव पश्यन्तु।
= आप सभी इस गौरवपूर्ण दृश्य को अवश्य देखें।
ओ३म्
563. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अहं सप्तम्यां कक्षायाम् आसम्।
= मैं सातवीं कक्षा में था।
किञ्चित् चंचलतां कृतवान् अहम्।
= कुछ चंचलता की मैंने ।
मम शिक्षिका दृष्टवती।
= मेरी शिक्षिका ने देख लिया।
शिक्षिका – किमर्थं ???
= क्यों ???
– तुभ्यं चञ्चलता बहु रोचते।
= तुम्हें चंचलता बहुत पसंद है।
– तव कर्णौ गृह्णातु।
= तुम्हारे दोनों कान पकड़ो।
अहं मम कर्णौ गृहीतवान्।
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शिक्षिका – वद …. पुनः चञ्चलतां न करिष्यामि।
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अहम् – न करिष्यामि….
= नहीं करूँगा ….
शिक्षिका – किं न करिष्यसि ?
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एवम् उक्त्वा अहम् अरोदम्।
= ऐसा कहकर मैं रो दिया।
सा शिक्षिका माता ह्यः मार्गे मिलितवती।
= वह शिक्षिका माता कल रास्ते में मिल गईं।
अहं तस्याः चरणस्पर्शं कृतवान्।
= मैंने उनके चरण छुए।
सर्वेभ्यः शिक्षकेभ्यः , सर्वाभ्यः शिक्षिकाभ्यश्च शिक्षकदिवसस्य मङ्गलकामनाः।
ओ३म्
564. संस्कृत वाक्याभ्यासः
तस्य ओष्ठौ रक्तवर्णीयौ स्तः।
= उसके दोनों होंठ लाल हैं।
किमर्थम् ?
= क्यों ?
सः ताम्बूलं खादति।
= वह पान खाता है।
तस्य ताम्बूले तमाखू न भवति।
= उसके पान में तम्बाकू नहीं होती है।
( ताम्रचूडः न भवति।
= तम्बाकू नहीं होती है। )
सः ताम्बूले चूर्णकं , कत्थां च लिम्पति।
= वह पान पर चूना और कत्था लीपता है।
पुगीफलम् एलां च स्थापयति।
= सुपारी और इलायची डालता है।
यदाकदा सः लवंगम् अपि स्थापयति।
= कभी कभी लौंग भी डालता है।
( देवकुसुमम् = लौंग )
भोजनान्तरं सः एकं ताम्बूलं खादति।
= भोजन के बाद वह एक पान खाता है।
सः कुत्रापि निष्ठीवनं न करोति।
= वह कहीं भी थूकता नहीं है।
सः औषधरूपेण एव ताम्बूलं खादति।
= वह औषधि के रूप में ही पान खाता है।
#vakyabhyas
Forwarded from पठत संस्कृतम् (Learn Sanskritam)
मुंशी-प्रेमचन्दः (जुलायि ३१, १८८० – अक्टू. ८, १९३६) तु आधुनिकहिन्दी-उर्दु-साहित्ययोः प्रख्यातः लेखकः आसीत्। स तु भारते व्यापकतया एव विंशतितमस्य शताब्दस्य हिन्दी-उर्दुयोः अग्र्यः लेखकः गण्यते। अयं ह्येकः उपन्यासलेखकः, कथालेखकः, नाटककारश्चासीत्। अस्य तु उपन्याससम्राट् इत्यभिधानं प्रसिद्धम्।
जीवनम्
प्रेमचन्दस्तु जुलायिमासस्य 31 तमायां 1880 तमे क्रि.वर्षे वाराणसीनिकटे लमहीनाम्नि ग्रामे अजायत। अस्य पिता मुंशी-अजायबलालः प्रेषविभागे लिपिक आसीत्। तस्य पितरौ तस्य धनपतराय (अर्थात् धनस्य स्वामी) इति नामकरणमकुरुताम्। तस्य पितृव्यः सम्पन्नः भूपतिः कश्चित् महाबीराख्यः तं नवाब् इति नाम अददत्। अयं खलु प्रेमचन्दस्य प्रथमतया चितः साहित्यिकाभिधानमभूत्। तस्य प्रारम्भिकी शिक्षा स्थानीये एकस्मिन् मदरसा इति पाठशालायां अभवत्। तत्र स उर्दुभाषां पठितवान्। प्रेमचन्दस्य पितरौ तस्याल्पायुषि एव परलोकं गतवन्तौ।
साहित्यिक-कृतयः
प्रेमचन्दः त्रिशताधिकानि लघुकथाः लिखितवान् अपि च चतुर्दश उपन्यासाः रचितवान्। बहवस्तस्य निबन्धाः, पत्राणि, नाटकानि अनुवादाश्च सन्ति। प्रेमचन्दस्य बह्वः कृतयः आङ्ग्लभाषायां रूसीयभाषायां च अनूदिताः सन्ति।
तस्य अन्तिम उपन्यासः गोदान इत्ययं हिन्दीभाषायाः उत्कृष्टतमः उपन्यासः परिगण्यते। तस्य प्रमुखपात्रः होरी इत्ययं दरिद्रकृषकः। स तु उत्कण्ठितः एकां धेनुमवाप्तुम्। यस्मात् सा ग्रामीणे भारते सम्पत्त्याः प्रतिष्ठायाश्च प्रतिमानम्।
कफ़न् इत्यस्मिन् एकः अकिञ्चनजनः तस्य मृतायाः भार्यायाः अन्तिमसंस्कारं कर्तुं धनं एकत्रीकरोति, परन्तु तद्धनं भोजनपानयोः व्यययति।
अद्य तस्य पुण्यतिथि🙏🏼🥀
मोहम्मद रफी ( क्रि.श.१९२४तमवर्षस्य डिसेम्बर-मासस्य २४दिनाङ्कतः क्रि.श. १९८०तमवर्षस्य जुलाई-मासस्य ३१दिनाङ्कतः अस्य जीवनकालः)चत्वरदशकवर्षाणि वृत्तिजीवने स्थितः ख्यातः भारतीयनेपथ्यगायकः । अनेन ५ राष्ट्रियपुरस्कारा: ६ फिल्मफेर-प्रशस्तयः च प्राप्ताः । अस्मै क्रि.श. १९६७तमे वर्षे पद्मश्रीप्रशस्तिः भारतसर्वकारेण दत्ता । स्वस्य ४०वर्षाणां चलच्चित्रसङ्गीतजीवने २६०००चलच्चित्रगीतानि कण्ठदानं कृतवान् । अस्य गानेषु शास्त्रीयसङ्गीततः आरभ्य देशभक्तिगीतपर्यन्तं सन्ति । कवाली, भजनानि, मृदुमधुर प्रेमगीतानि च अस्य कण्ठयुतानि सन्ति । हिन्दीभाषायां उर्दू भाषायां च अस्य प्रभुत्वम् आस्ति अतः एदादृशा उपलब्धिः प्राप्ता । हिन्दी, उर्दू, कोङ्खणि, भोजपुरी, ओरिया, पञ्जाबी, बङ्गाली, मराठी, सिन्धि, कन्नड, गुजरती, तेलुगु, माघि, मैथिली, अस्सामी,इत्यादिषु अनेकासु भाषासु भारतीयभाषाभिः एषः गीतानि गीतवान् । अपि च कानिचन पर्शियन्, स्प्यानिश्, डच् भाषायाः गीतानि अपि ध्वनिमुद्रितानि अभवन् ।
जीवनम्
प्रेमचन्दस्तु जुलायिमासस्य 31 तमायां 1880 तमे क्रि.वर्षे वाराणसीनिकटे लमहीनाम्नि ग्रामे अजायत। अस्य पिता मुंशी-अजायबलालः प्रेषविभागे लिपिक आसीत्। तस्य पितरौ तस्य धनपतराय (अर्थात् धनस्य स्वामी) इति नामकरणमकुरुताम्। तस्य पितृव्यः सम्पन्नः भूपतिः कश्चित् महाबीराख्यः तं नवाब् इति नाम अददत्। अयं खलु प्रेमचन्दस्य प्रथमतया चितः साहित्यिकाभिधानमभूत्। तस्य प्रारम्भिकी शिक्षा स्थानीये एकस्मिन् मदरसा इति पाठशालायां अभवत्। तत्र स उर्दुभाषां पठितवान्। प्रेमचन्दस्य पितरौ तस्याल्पायुषि एव परलोकं गतवन्तौ।
साहित्यिक-कृतयः
प्रेमचन्दः त्रिशताधिकानि लघुकथाः लिखितवान् अपि च चतुर्दश उपन्यासाः रचितवान्। बहवस्तस्य निबन्धाः, पत्राणि, नाटकानि अनुवादाश्च सन्ति। प्रेमचन्दस्य बह्वः कृतयः आङ्ग्लभाषायां रूसीयभाषायां च अनूदिताः सन्ति।
तस्य अन्तिम उपन्यासः गोदान इत्ययं हिन्दीभाषायाः उत्कृष्टतमः उपन्यासः परिगण्यते। तस्य प्रमुखपात्रः होरी इत्ययं दरिद्रकृषकः। स तु उत्कण्ठितः एकां धेनुमवाप्तुम्। यस्मात् सा ग्रामीणे भारते सम्पत्त्याः प्रतिष्ठायाश्च प्रतिमानम्।
कफ़न् इत्यस्मिन् एकः अकिञ्चनजनः तस्य मृतायाः भार्यायाः अन्तिमसंस्कारं कर्तुं धनं एकत्रीकरोति, परन्तु तद्धनं भोजनपानयोः व्यययति।
अद्य तस्य पुण्यतिथि🙏🏼🥀
मोहम्मद रफी ( क्रि.श.१९२४तमवर्षस्य डिसेम्बर-मासस्य २४दिनाङ्कतः क्रि.श. १९८०तमवर्षस्य जुलाई-मासस्य ३१दिनाङ्कतः अस्य जीवनकालः)चत्वरदशकवर्षाणि वृत्तिजीवने स्थितः ख्यातः भारतीयनेपथ्यगायकः । अनेन ५ राष्ट्रियपुरस्कारा: ६ फिल्मफेर-प्रशस्तयः च प्राप्ताः । अस्मै क्रि.श. १९६७तमे वर्षे पद्मश्रीप्रशस्तिः भारतसर्वकारेण दत्ता । स्वस्य ४०वर्षाणां चलच्चित्रसङ्गीतजीवने २६०००चलच्चित्रगीतानि कण्ठदानं कृतवान् । अस्य गानेषु शास्त्रीयसङ्गीततः आरभ्य देशभक्तिगीतपर्यन्तं सन्ति । कवाली, भजनानि, मृदुमधुर प्रेमगीतानि च अस्य कण्ठयुतानि सन्ति । हिन्दीभाषायां उर्दू भाषायां च अस्य प्रभुत्वम् आस्ति अतः एदादृशा उपलब्धिः प्राप्ता । हिन्दी, उर्दू, कोङ्खणि, भोजपुरी, ओरिया, पञ्जाबी, बङ्गाली, मराठी, सिन्धि, कन्नड, गुजरती, तेलुगु, माघि, मैथिली, अस्सामी,इत्यादिषु अनेकासु भाषासु भारतीयभाषाभिः एषः गीतानि गीतवान् । अपि च कानिचन पर्शियन्, स्प्यानिश्, डच् भाषायाः गीतानि अपि ध्वनिमुद्रितानि अभवन् ।
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मोहम्मद रफी
मोहम्मद रफी (हिन्दीभाषा-मोहम्मद रफ़ीمحمد رفیع - उर्दू-भाशषा क्रि.श.१९२४तमवर्षस्य डिसेम्बर-मासस्य २४दिनाङ्कतः क्रि.श. १९८०तमवर्षस्य जुलाई-मासस्य ३१दिनाङ्कतः अस्य जीवनकालः)चत्वरदशकवर्षाणि वृत्तिजीवने स्थितः ख्यातः भारतीयनेपथ्यगायकः । अनेन ५ राष्ट्रियपुरस्कारा:…
अद्य तस्यापि जन्मजयंती🙏🏼🌺
डा. श्रीधरभास्करवर्णेकरः कश्चन सुप्रसिद्धः संस्कृतज्ञः आसीत् । सः आधुनिकसंस्कृतसाहित्यनिर्मातृषु अन्यतमः ।
बाल्यम्
१९१८ जुलै ३१ तमे दिनाङ्के सः महाराष्ट्रस्य नागपुरे जन्म प्राप्तवान् । सम्प्रदायस्थमराठीपरिवारे वर्णेकरः जन्म प्राप्तवान् । तस्य जन्मग्राम सताराजनपदस्य वर्णे । वर्णेकरस्य पितामहः नागपुरमागतः । वर्णेकरस्य पिता भास्करराववर्णेकरः भवननिर्माणउत्तरदायित्वानि पश्यति स्म । तस्य माता अन्नपूर्णेश्वरी गृहिणी आसीत् ।
शिक्षणम्
श्रीधरः बाल्यकालतः एव संस्कृतभाषाम् इच्छति स्म । स्वातन्त्र्यान्दोलने अपि भागं गृहीतवान् । तत्पिता संस्कृतपाठनार्थं हनुमन्तशास्त्रिखेवाले इति काशीपण्डितस्य सकाशे श्रीधरं प्रेषयति स्म । श्रीधरः राष्ट्रियस्वयंसेवकसङ्घस्य कार्यपद्धत्या बाल्ये एव आकृष्टः अभवत् । प्रथमसरसङ्घचालकं केशवबलिरामहेडिगेवार् वर्येण सह धैर्येण सम्भाषणं कृत्वा प्रथमः शिशुस्वयंसेवकः अभवत्। तस्मिन् समये स्वतन्त्रतान्दोलनकारणतः शालाः पिहिताः आसन् । अतः शास्त्रीयपद्धत्या शिक्षणप्राप्तिः अनिवार्या अभवत् । केवाले शास्त्रिणः सकाशात् श्रीधरः अमरकोषं पञ्चमहाकाव्यानि, व्याकरणम्, नाटकानि च पठितवान् । तस्मिन् काले पुस्तकानि विरलानि महार्घानि च आसन् इति कारणतः श्रीधरः सर्वं विषयं कण्ठे स्थापयति स्म । तेन गायने, शास्त्रीयसङ्गीते च तस्य रुचिः अवर्धत । अग्रे सङ्गीताधारितं तीर्थभरतम् इति कृतिं च सः लिखितवान् । ततः दशमकक्ष्यापरीक्षालेखनार्थं श्रीधरेण अनुमतिः प्राप्ता । तदनन्तरं शिक्षणाय धनसमस्या तेन अनुभूता । परन्तु अन्धशालायां शिक्षकरूपेण कार्यं कुर्वता, गृहपाठान् च चालयता तेन महाविद्यालयशिक्षणं प्राप्तम् । तदन्तरं नागपुरविश्वविद्यालयतः एम् ए पदवीं च प्राप्तवान् ।
कार्यक्षेत्रम्
वर्णेकरः संस्कृतप्राध्यापकरूपेण नागपुरविश्वविद्यालये नियुक्तः । संस्कृतविभागाध्यक्षः भूत्वा निवृत्तः अभवत् । संस्कृतविश्वपरिषदः अखिलभारतीयप्रचारमन्त्रीरूपेण १९५० तः १९६२ पर्यन्तं कार्यम् अकरोत् । अस्मिन् काले बहुत्र संस्कृतविषये अनेकानि भाषणानि तेन कृतानि । भारतीयसाहित्य-अगाडम्याः सदस्यः अपि आसीत् । नागपुरविश्वविद्यालयस्य हस्तलेखविभागेस्य प्रमुखः आसीत् । भारतीयवैज्ञानिकभाषापरिषदः सदस्यः अपि आसीत् । संस्कृतभवितव्यम् इत्यस्याः संस्कृतसाप्ताहिकपत्रिकायाः राष्ट्रशक्ति इत्यस्याः मराठीसाप्ताहिकपत्रिकायाश्च सम्पादकः आसीत् । योगाभ्यासी मण्डलस्य अध्यक्षरूपेण अपि कार्यं कृतवान् । ततः योगप्रकाशः इति मासपत्रिका बहुवर्षं यावत् प्रकाशिता । एतेन सह सः अनेकानि पुस्तकानि संस्कृतेन मराठीभाषया हिन्दीभाषया च रचितवान् । संस्कृतवाङ्मयकोषः इत्यस्य संस्कृतसाहित्यिकविश्वकोषस्य रचना वर्णेकरस्य सङ्ग्रहात्मककार्येषु प्रसिद्धा वर्तते । सामाजिक-सांस्कृतिककार्येषु अफि सः सक्रियरूपेण भागम् ऊढवान् ।
कृतयः
तेन बहूनि काव्यानि रचितानि, बहवः श्लोकाः च रचिताः ।
शिवराज्योदयम् – महाकाव्यम्
विवेकानन्दविजयम् – नाटकम्
शिवराज्याभिषेकः – नाटकम्
मन्दोमिमाला – खण्डकाव्यम्
वात्सल्यरसायनम् – खण्डकाव्यम्
रामकृष्णपरमहंसीयम् – खण्डकाव्यम्
कालिदासरहस्यम् – खण्डकाव्यम्
विनायकवैजयन्ती – खण्डकाव्यम्
जवाहरतरङ्गिणी – खण्डकाव्यम्
कथावल्लरी – गद्यम्
श्रीरामसङ्गीतिका – गीतकाव्यम्
श्रीकृष्णसङ्गीतिका – गीतकाव्यम्
श्रीशिवराज्योदयम्
तस्य सुप्रसिद्धं महाकाव्यमस्ति “श्रीशिवराज्योदयम्” यत् १९७४ तमे वर्षे संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कारेण सम्मानितमस्ति । एतत् महाकाव्यं श्रीशिवाजेः जननं, बाल्यं, यौवनं, तस्य साहसकार्याणि, राज्यस्थापनम् इत्यादि विषयान् रमणीयरीत्या वर्णयति । इदं ६८ सर्गात्मकं महाकाव्यं दशवर्षाणां परिश्रमस्य फलमस्ति । अस्मिन् महाकाव्ये ३८५० अधिकाः श्लोकाः सन्ति ।
पुरस्काराः
राष्ट्रपतिपुरस्कारः
कालिदासपुरस्कारः
बिर्ला फौण्डेशन् सरस्वती सम्मान
प्रज्ञाभारती
श्रीवाण्यलङ्करणप्रशस्तिः
मराठीभाषया लिखितस्य “संस्कृत साहित्य चा इतिहास” ग्रन्थस्य कृते सः डि. लिट् उपाधिना सम्मानितः अस्ति ।
मृत्युः
वर्णेकरः ८३ तमे वयसि संस्कृतसम्मेलने भाषणं कर्तुं गच्छन् आसीत् । तदा यानापघातेन सः दिवङ्गतः।
डा. श्रीधरभास्करवर्णेकरः कश्चन सुप्रसिद्धः संस्कृतज्ञः आसीत् । सः आधुनिकसंस्कृतसाहित्यनिर्मातृषु अन्यतमः ।
बाल्यम्
१९१८ जुलै ३१ तमे दिनाङ्के सः महाराष्ट्रस्य नागपुरे जन्म प्राप्तवान् । सम्प्रदायस्थमराठीपरिवारे वर्णेकरः जन्म प्राप्तवान् । तस्य जन्मग्राम सताराजनपदस्य वर्णे । वर्णेकरस्य पितामहः नागपुरमागतः । वर्णेकरस्य पिता भास्करराववर्णेकरः भवननिर्माणउत्तरदायित्वानि पश्यति स्म । तस्य माता अन्नपूर्णेश्वरी गृहिणी आसीत् ।
शिक्षणम्
श्रीधरः बाल्यकालतः एव संस्कृतभाषाम् इच्छति स्म । स्वातन्त्र्यान्दोलने अपि भागं गृहीतवान् । तत्पिता संस्कृतपाठनार्थं हनुमन्तशास्त्रिखेवाले इति काशीपण्डितस्य सकाशे श्रीधरं प्रेषयति स्म । श्रीधरः राष्ट्रियस्वयंसेवकसङ्घस्य कार्यपद्धत्या बाल्ये एव आकृष्टः अभवत् । प्रथमसरसङ्घचालकं केशवबलिरामहेडिगेवार् वर्येण सह धैर्येण सम्भाषणं कृत्वा प्रथमः शिशुस्वयंसेवकः अभवत्। तस्मिन् समये स्वतन्त्रतान्दोलनकारणतः शालाः पिहिताः आसन् । अतः शास्त्रीयपद्धत्या शिक्षणप्राप्तिः अनिवार्या अभवत् । केवाले शास्त्रिणः सकाशात् श्रीधरः अमरकोषं पञ्चमहाकाव्यानि, व्याकरणम्, नाटकानि च पठितवान् । तस्मिन् काले पुस्तकानि विरलानि महार्घानि च आसन् इति कारणतः श्रीधरः सर्वं विषयं कण्ठे स्थापयति स्म । तेन गायने, शास्त्रीयसङ्गीते च तस्य रुचिः अवर्धत । अग्रे सङ्गीताधारितं तीर्थभरतम् इति कृतिं च सः लिखितवान् । ततः दशमकक्ष्यापरीक्षालेखनार्थं श्रीधरेण अनुमतिः प्राप्ता । तदनन्तरं शिक्षणाय धनसमस्या तेन अनुभूता । परन्तु अन्धशालायां शिक्षकरूपेण कार्यं कुर्वता, गृहपाठान् च चालयता तेन महाविद्यालयशिक्षणं प्राप्तम् । तदन्तरं नागपुरविश्वविद्यालयतः एम् ए पदवीं च प्राप्तवान् ।
कार्यक्षेत्रम्
वर्णेकरः संस्कृतप्राध्यापकरूपेण नागपुरविश्वविद्यालये नियुक्तः । संस्कृतविभागाध्यक्षः भूत्वा निवृत्तः अभवत् । संस्कृतविश्वपरिषदः अखिलभारतीयप्रचारमन्त्रीरूपेण १९५० तः १९६२ पर्यन्तं कार्यम् अकरोत् । अस्मिन् काले बहुत्र संस्कृतविषये अनेकानि भाषणानि तेन कृतानि । भारतीयसाहित्य-अगाडम्याः सदस्यः अपि आसीत् । नागपुरविश्वविद्यालयस्य हस्तलेखविभागेस्य प्रमुखः आसीत् । भारतीयवैज्ञानिकभाषापरिषदः सदस्यः अपि आसीत् । संस्कृतभवितव्यम् इत्यस्याः संस्कृतसाप्ताहिकपत्रिकायाः राष्ट्रशक्ति इत्यस्याः मराठीसाप्ताहिकपत्रिकायाश्च सम्पादकः आसीत् । योगाभ्यासी मण्डलस्य अध्यक्षरूपेण अपि कार्यं कृतवान् । ततः योगप्रकाशः इति मासपत्रिका बहुवर्षं यावत् प्रकाशिता । एतेन सह सः अनेकानि पुस्तकानि संस्कृतेन मराठीभाषया हिन्दीभाषया च रचितवान् । संस्कृतवाङ्मयकोषः इत्यस्य संस्कृतसाहित्यिकविश्वकोषस्य रचना वर्णेकरस्य सङ्ग्रहात्मककार्येषु प्रसिद्धा वर्तते । सामाजिक-सांस्कृतिककार्येषु अफि सः सक्रियरूपेण भागम् ऊढवान् ।
कृतयः
तेन बहूनि काव्यानि रचितानि, बहवः श्लोकाः च रचिताः ।
शिवराज्योदयम् – महाकाव्यम्
विवेकानन्दविजयम् – नाटकम्
शिवराज्याभिषेकः – नाटकम्
मन्दोमिमाला – खण्डकाव्यम्
वात्सल्यरसायनम् – खण्डकाव्यम्
रामकृष्णपरमहंसीयम् – खण्डकाव्यम्
कालिदासरहस्यम् – खण्डकाव्यम्
विनायकवैजयन्ती – खण्डकाव्यम्
जवाहरतरङ्गिणी – खण्डकाव्यम्
कथावल्लरी – गद्यम्
श्रीरामसङ्गीतिका – गीतकाव्यम्
श्रीकृष्णसङ्गीतिका – गीतकाव्यम्
श्रीशिवराज्योदयम्
तस्य सुप्रसिद्धं महाकाव्यमस्ति “श्रीशिवराज्योदयम्” यत् १९७४ तमे वर्षे संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कारेण सम्मानितमस्ति । एतत् महाकाव्यं श्रीशिवाजेः जननं, बाल्यं, यौवनं, तस्य साहसकार्याणि, राज्यस्थापनम् इत्यादि विषयान् रमणीयरीत्या वर्णयति । इदं ६८ सर्गात्मकं महाकाव्यं दशवर्षाणां परिश्रमस्य फलमस्ति । अस्मिन् महाकाव्ये ३८५० अधिकाः श्लोकाः सन्ति ।
पुरस्काराः
राष्ट्रपतिपुरस्कारः
कालिदासपुरस्कारः
बिर्ला फौण्डेशन् सरस्वती सम्मान
प्रज्ञाभारती
श्रीवाण्यलङ्करणप्रशस्तिः
मराठीभाषया लिखितस्य “संस्कृत साहित्य चा इतिहास” ग्रन्थस्य कृते सः डि. लिट् उपाधिना सम्मानितः अस्ति ।
मृत्युः
वर्णेकरः ८३ तमे वयसि संस्कृतसम्मेलने भाषणं कर्तुं गच्छन् आसीत् । तदा यानापघातेन सः दिवङ्गतः।