ओ३म्
392. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अद्य रजकः न आगतवान्।
= आज धोबी नहीं आया।
सः स्वं पुत्रं प्रेषितवान्।
= उसने अपने पुत्र को भेजा।
मम प्रक्षालितानि वस्त्राणि तेन सह प्रेषितवान्।
= मेरे साफ किये हुए वस्त्र उसके साथ भेज दिये।
रजकस्य पुत्रः मम वस्त्राणि आनयति स्म।
= धोबी का पुत्र मेरे वस्त्र ला रहा था।
रजकस्य पुत्रः द्विचक्रिकया आगच्छति स्म।
= धोबी का पुत्र साइकिल से आ रहा था।
मार्गे गर्तः आसीत् ।
= रास्ते में गड्ढा था।
सः बालकः पतितवान्।
= वह बालक गिर गया।
मम वस्त्राणि अपि पतितानि।
= मेरे कपड़े भी गिर गए।
तस्य जानौ व्रणः अभवत्।
= उसकी जांघ पर घाव हो गया।
रक्तम् अपि प्रवहति स्म।
= खून भी बह रहा था।
सः तत्रैव उपविश्य रोदनम् आरब्धवान्।
= उसने वहीं बैठकर रोना शुरू कर दिया।
मम पुत्रः मार्गे तं दृष्टवान्।
= मेरे पुत्र ने रास्ते में उसे देख लिया।
मम पुत्रः तम् उत्थापितवान्।
= मेरे पुत्र ने उसे उठाया।
तस्य चिकित्सां कारितवान्।
= उसकी चिकित्सा करवाई।
मम वस्त्राणि गृहे आनीतवान्।
= मेरे वस्त्र घर ले आया।
केवलं द्वे वस्त्रे एव मलिने जाते।
= केवल दो ही वस्त्र मैले हुए।
ओ३म्
393. संस्कृत वाक्याभ्यासः
शीतलभगिनी यात्रां कृत्वा प्रत्यागतवती।
= शीतल बहन यात्रा करके लौट आई।
सा विवृणोति।
= वह वर्णन करती है।
सर्वप्रथमम् अहम् अमृतसरं गतवती।
= सबसे पहले मैं अमृतसर गई।
तत्र अहं स्वर्णमन्दिरं दृष्टवती।
= वहाँ मैंने स्वर्णमंदिर देखा।
अहं जलियांवाला उद्यानम् अपि गतवती।
= मैं जलियांवाला बाग भी गई।
तत्र अहं प्राणत्यागिभ्यः श्रद्धाञ्जलिम् अर्पितवती।
= वहाँ मैंने शहीदों को श्रद्धांजलि दी।
अमृतसरतः अहं बाघां गतवती।
= अमृतसर से मैं बाघा गई।
तत्र अहं बाघासीमां दृष्टवती।
= वहाँ मैंने बाघा सीमा देखी।
तत्रत्यानां सैनिकानाम् अभिवादनं कृतवती।
= वहाँ के सैनिकों को मैंने अभिवादन किया।
पंजाबराज्ये अहं सतलज , झेलम , रावी नदीषु स्नानं कृतवती।
= पंजाब राज्य में मैंने सतलज , झेलम , रावी नदियों में स्नान किया।
पंजाबतः अद्य अहं गृहम् आगतवती।
= पंजाब से मैं आज घर आ गई।
ओ३म्
394. संस्कृत वाक्याभ्यासः
पौत्री आगत्य पश्यति।
= पोती आकर देखती है।
पौत्री – पितामही शेते ।
= दादीजी सो रही हैं।
कथम् एतस्यै औषधं ददानि।
= इनको औषधि कैसे दूँ ?
माता उक्तवती नववादने पितामह्यै औषधं देहि।
= माँ ने कहा था नौ बजे दादीजी को औषधि देना।
अहं सपाद नववादने दास्यामि।
= मैं सवा नौ बजे दूँगी।
( सपाद नववादने पुनः पौत्री पश्यति )
पौत्री – पितामही गाढनिद्रायां स्वपिति।
= दादीजी तो गहरी नींद में सो रही हैं।
सा शयनं करोतु नाम।
= इनको सोने दो ।
रात्रौ मां कथां श्रावितवती।
= रात को मुझे कथा सुनाई।
रात्रौ पितामही बहु कासते स्म।
= रात में दादीजी बहुत खाँस रही थीं।
औषधं दशवादने दास्यामि।
= औषधि दस बजे दूँगी।
अधुना तु सुखेन निद्राति।
= अभी तो सुख से सो रही हैं।
माता विद्यालयतः द्वादशवादने आगमिष्यति।
= माँ विद्यालय से बारह बजे आएँगी।
तावद् दास्यामि।
= तब तक दे दूँगी।
ओ३म्
395. संस्कृत वाक्याभ्यासः
एका बालिका गणेशमण्डपं गच्छति।
= एक बच्ची गणेशमंडप जाती है।
तत्र सा जनान् पूजनं कुर्वतः पश्यति।
= वहाँ वह लोगों को पूजा करते हुए देखती है।
सा अपश्यत् ।
= उसने देखा।
सर्वे किमपि न किमपि याचन्ते।
= सभी कुछ न कुछ माँग रहे हैं।
सा अपि तत्र गत्वा तिष्ठति।
= वह भी वहाँ जाकर खड़ी हो जाती है।
सा प्रार्थयते।
= वह प्रार्थना करती है।
” भवान् तु गणनायकः अस्ति।”
= आप तो गणनायक हैं।
” मम पितरं जानाति स्यात्।”
= मेरे पिता को जानते होंगे।
“सः मद्यपानं करोति।”
= वो शराब पीते हैं।
” गृहम् आगत्य मम मातरं ताड़यति।”
= घर आकर मेरी माँ को मारते हैं।
“गृहे धनाभावः अस्ति।”
= घर में धन का अभाव है।
“अतः अहं विद्यालयात् आगत्य गृहेषु कार्यं करोमि।”
= इसलिये मैं विद्यालय से आकर घरों में काम करती हूँ।
“अहं पठितुम् इच्छामि।”
= मैं पढ़ना चाहती हूँ।
“मम गृहे शान्तिम् इच्छामि।”
= मेरे घर में शान्ति चाहती हूँ।
“मम पिता मद्यपानं त्यजेत् इति अहम् इच्छामि।”
= मेरे पिता मद्यपान छोड़ दें यह मैं चाहती हूँ।
“मम इच्छापूर्तिः भवति तदा अहं बालकेभ्यः मोदकानि दास्यामि।”
= मेरी इच्छापूर्ति होगी तो मैं बच्चों को लड्डू दूँगी।
“बालकेषु अपि भवान् अस्ति एव।”
= बच्चों में भी आप हैं ही।
सा बालिका बहु श्रद्धया प्रार्थनां कृतवती।
= उस बच्ची ने बहुत श्रद्धा से प्रार्थना की।
#vakyabhyas
392. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अद्य रजकः न आगतवान्।
= आज धोबी नहीं आया।
सः स्वं पुत्रं प्रेषितवान्।
= उसने अपने पुत्र को भेजा।
मम प्रक्षालितानि वस्त्राणि तेन सह प्रेषितवान्।
= मेरे साफ किये हुए वस्त्र उसके साथ भेज दिये।
रजकस्य पुत्रः मम वस्त्राणि आनयति स्म।
= धोबी का पुत्र मेरे वस्त्र ला रहा था।
रजकस्य पुत्रः द्विचक्रिकया आगच्छति स्म।
= धोबी का पुत्र साइकिल से आ रहा था।
मार्गे गर्तः आसीत् ।
= रास्ते में गड्ढा था।
सः बालकः पतितवान्।
= वह बालक गिर गया।
मम वस्त्राणि अपि पतितानि।
= मेरे कपड़े भी गिर गए।
तस्य जानौ व्रणः अभवत्।
= उसकी जांघ पर घाव हो गया।
रक्तम् अपि प्रवहति स्म।
= खून भी बह रहा था।
सः तत्रैव उपविश्य रोदनम् आरब्धवान्।
= उसने वहीं बैठकर रोना शुरू कर दिया।
मम पुत्रः मार्गे तं दृष्टवान्।
= मेरे पुत्र ने रास्ते में उसे देख लिया।
मम पुत्रः तम् उत्थापितवान्।
= मेरे पुत्र ने उसे उठाया।
तस्य चिकित्सां कारितवान्।
= उसकी चिकित्सा करवाई।
मम वस्त्राणि गृहे आनीतवान्।
= मेरे वस्त्र घर ले आया।
केवलं द्वे वस्त्रे एव मलिने जाते।
= केवल दो ही वस्त्र मैले हुए।
ओ३म्
393. संस्कृत वाक्याभ्यासः
शीतलभगिनी यात्रां कृत्वा प्रत्यागतवती।
= शीतल बहन यात्रा करके लौट आई।
सा विवृणोति।
= वह वर्णन करती है।
सर्वप्रथमम् अहम् अमृतसरं गतवती।
= सबसे पहले मैं अमृतसर गई।
तत्र अहं स्वर्णमन्दिरं दृष्टवती।
= वहाँ मैंने स्वर्णमंदिर देखा।
अहं जलियांवाला उद्यानम् अपि गतवती।
= मैं जलियांवाला बाग भी गई।
तत्र अहं प्राणत्यागिभ्यः श्रद्धाञ्जलिम् अर्पितवती।
= वहाँ मैंने शहीदों को श्रद्धांजलि दी।
अमृतसरतः अहं बाघां गतवती।
= अमृतसर से मैं बाघा गई।
तत्र अहं बाघासीमां दृष्टवती।
= वहाँ मैंने बाघा सीमा देखी।
तत्रत्यानां सैनिकानाम् अभिवादनं कृतवती।
= वहाँ के सैनिकों को मैंने अभिवादन किया।
पंजाबराज्ये अहं सतलज , झेलम , रावी नदीषु स्नानं कृतवती।
= पंजाब राज्य में मैंने सतलज , झेलम , रावी नदियों में स्नान किया।
पंजाबतः अद्य अहं गृहम् आगतवती।
= पंजाब से मैं आज घर आ गई।
ओ३म्
394. संस्कृत वाक्याभ्यासः
पौत्री आगत्य पश्यति।
= पोती आकर देखती है।
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= दादीजी सो रही हैं।
कथम् एतस्यै औषधं ददानि।
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माता उक्तवती नववादने पितामह्यै औषधं देहि।
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ओ३म्
395. संस्कृत वाक्याभ्यासः
एका बालिका गणेशमण्डपं गच्छति।
= एक बच्ची गणेशमंडप जाती है।
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= वहाँ वह लोगों को पूजा करते हुए देखती है।
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= उसने देखा।
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= सभी कुछ न कुछ माँग रहे हैं।
सा अपि तत्र गत्वा तिष्ठति।
= वह भी वहाँ जाकर खड़ी हो जाती है।
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” भवान् तु गणनायकः अस्ति।”
= आप तो गणनायक हैं।
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= मेरे पिता को जानते होंगे।
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” गृहम् आगत्य मम मातरं ताड़यति।”
= घर आकर मेरी माँ को मारते हैं।
“गृहे धनाभावः अस्ति।”
= घर में धन का अभाव है।
“अतः अहं विद्यालयात् आगत्य गृहेषु कार्यं करोमि।”
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= मैं पढ़ना चाहती हूँ।
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“मम इच्छापूर्तिः भवति तदा अहं बालकेभ्यः मोदकानि दास्यामि।”
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#vakyabhyas
अद्य पी•वी•नरसिंहाराववर्यस्य जयंती 🙏🏼
भारतस्य प्रधानमन्त्रिषु अन्यतमः । अस्य जन्म १९२१ तमे वर्षे अभवत् । अयं भारतस्य प्रधानमन्त्रिरूपेण १९९१ तमात् वर्षात् -१९९६ तमवर्षपर्यन्तं कार्यम् अकरोत् ।
भारतस्य प्रधानमन्त्रिषु अन्यतमः । अस्य जन्म १९२१ तमे वर्षे अभवत् । अयं भारतस्य प्रधानमन्त्रिरूपेण १९९१ तमात् वर्षात् -१९९६ तमवर्षपर्यन्तं कार्यम् अकरोत् ।
आत्मीयबन्धो !
सादरं नमो नमः।
परिश्रम पूर्वक प्राप्त किये हुए संस्कृतसम्भाषण कौशल को बनाये रखने के लिए निरन्तर भाषा अभ्यास करना होता है। इसके लिए कोई न कोई माध्यम होना आवश्यक है। आप सभी के समक्ष ऐसा ही एक माध्यम है -
*सम्भाषणसन्देश:*
यह संस्कृतमासिकपत्रिका आपके सम्भाषण कौशल को जीवन्त बनाये रखने में शत-प्रतिशत सक्षम है, अत: आज ही इसकी ग्राहकता लिजिये ...
ग्राहकता के लिए आवश्यक जानकारी --
👉 *सम्भाषणसन्देश पत्रिका प्रिंट रूप में और E-पत्रिका के रूप में उपलब्ध है*
👉दोनो ही रूपों के लिए सहयोग राशि एक समान है।
👉 एकवार्षिक -- 200/-
👉 द्वैवार्षिक -- 400/-
👉 त्रैवार्षिक -- 550/-
👉 चातुर्वार्षिक -- 750/-
👉 पाञ्चवार्षिक -- 950/-
👉यदि आप E-पत्रिका प्राप्त करना चाहते हैं तो
सम्भाषणसन्देश की इस वेबसाईट पर जाकर रजिस्ट्रेशन करके E-पत्रिका प्राप्त कर सकते हैं। http://sambhashanasandesha.in/
👉 यदि आप प्रिंट स्वरूप में पत्रिका चाहते हैं तो --
१ - सर्वप्रथम सम्भाषण सन्देश के नीचे लिखे हुए खाते में किसी भी ऑनलॉईन के माध्यम से अपना शुल्क जमा कीजिये ।
*Name of account -* *Sambhashana Sandesha*
*Bank details: Union Bank of India, Girinagar, Bangalore*
*Account Type - CLSB*
*A/c No. – 520141000016922*
*IFSC No – UBIN0907464*
२- आपके द्वारा भेजी गई धनराशि का बैंक विवरण ( ट्रांजेक्शन आईडी) आपको मेसेज के माध्यम से या अन्यलॉईन माध्यम से बैंक से प्राप्त होगा।
३ - शुल्क भेजने के बाद आपको नीचे दिये हुए गुगल् फार्म को भरना है जिसमें आपकी सभी आवश्यक जानकारी सही रूप से देना है।
गुगल् फार्म की लिंक --
https://forms.gle/6irvM7GkZVmARFqV9
४- गुगल् फार्म में ही आपको भेजे गये शुल्क का विवरण देना है।
५ -अन्त में फार्म सबमिट करना है
६ - आपके द्वारा फार्म सबमिट करने के बाद आपकी जानकारी हमारे द्वारा सन्देशकार्यालय बैंगलोर को पहूँचा दी जायेगी जिससे आपकी ग्राहकता सुनिश्चित हो जायेगी ।
धन्यवाद:
संस्कृतं सरलम् अस्ति ।
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सम्भाषण-सन्देशः
संस्कृतमासिकपत्रिकायाः ग्राहकतायाः कृते
पत्नी – (पतिम्) नाथ ! पतिकृते ” करवा चौथ ” व्रतम् अपेक्षया केनपि सम्यक् व्रतम् अस्ति चेत् सूचयतु l
पतिः – अस्ति अस्ति !
पत्नी – किम् ?
पतिः – मौनव्रतम् l
😁😄🤣😂😀😂😁
#hasya
पतिः – अस्ति अस्ति !
पत्नी – किम् ?
पतिः – मौनव्रतम् l
😁😄🤣😂😀😂😁
#hasya
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
⛅ 🚩तिथि - पंचमी दोपहर 01:22 तक तत्पश्चात षष्ठी
⛅ दिनांक - 29 जून 2021
⛅ दिन - मंगलवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - वर्षा
⛅ मास - आषाढ़
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - शतभिषा 30 जून रात्रि 01:02 तक तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद
⛅ योग - प्रीति दोपहर 12:21 तक तत्पश्चात आयुष्मान्
⛅ राहुकाल - शाम 04:03 से शाम 05:44 तक
⛅ सूर्योदय - 06:01
⛅ सूर्यास्त - 19:23
⛅ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
⛅ 🚩तिथि - पंचमी दोपहर 01:22 तक तत्पश्चात षष्ठी
⛅ दिनांक - 29 जून 2021
⛅ दिन - मंगलवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - वर्षा
⛅ मास - आषाढ़
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - शतभिषा 30 जून रात्रि 01:02 तक तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद
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An ode to jackfruit - Sanskrit poem
योऽन्तः प्रविश्य मम वाचमिमां प्रसुप्तां
सञ्जीवयत्यखिलशक्तिधरः स्वधाम्ना ।
अन्यांश्च हस्तचरणश्रवणत्वगादीन्
प्राणान् नमो भगवते पनसाय तुभ्यम् ॥१॥ (सक्षमायाचनम्)
घर्मादपेतकरुणादुरुदाहधर्माद्
वर्षाच्च भूरिविरुवत्सलिलप्रकर्षात् ।
त्रात्वा निजं रसमयानि फलानि दत्से
तत्र त्वदीयमधुरप्रकृतिर्निदानम् ॥२॥
बाह्येऽजिरे विधरतोत्कटकण्टकानि
बाह्येतरे च मधुमन्ति फलोत्तमानि ।
सत्यं सनातनमिदं भवता स्फुटं यद्
व्यक्ता भवेन्न वपुषा प्रकृतिर्जनस्य ॥३॥
दाक्ष्यं श्रमं च सहनां च धरेन्नृणां य-
स्तेनैव तावकरसो भवतीह लभ्यः ।
सञ्चोदनाय भविनां सुगुणेष्वमीषु
मन्ये स्वयं त्वमवहस्तदिदं स्वरूपम् ॥४॥
आमं नु तेमनमुखेषु नियुञ्जते त्वां
पक्वं च पायसमुखेषु लषन्ति लोकाः ।
धन्यस्त्वमेव यदुपैषि दशासु सर्वा-
स्वेवं जनातिशयितां जननार्थवत्ताम् ॥५॥
काष्ठैस्तव प्रचलिता भुवि नैकयज्ञाः
पर्णैश्च ते कलशकर्म समेति पूर्तिम् ।
पीठादिकान्यपि भवत्त्वगपेक्षकाणि
प्रेम त्वयि क्रतुभुजामपि वागगम्यम् ॥६॥
स्तुत्यानया पनस! नन्द यथार्थगत्या
प्रेष्ठं वरं च वितर त्वमुदारमत्या ।
येनाप्नुयामकृतपुण्यचयैर्दुरापं
त्वां हायनेषु निखिलेषु विना प्रयासम् ॥७॥
फलश्रुतिः -
यः स्तोत्रमेतदनघं पठति प्रभाते
भक्त्या समाहितमना नियतेन्द्रियश्च ।
सोयं न याति पनसान्मनुजो वियोगं
जन्मान्तरेष्वपि पुनर्लभतेsपवर्गम् ।।८।।
डा. रामकृष्णपेजत्तायः
॥ तस्मै नमो भगवते पनसाय तुभ्यम् ॥
योऽन्तः प्रविश्य मम वाचमिमां प्रसुप्तां
सञ्जीवयत्यखिलशक्तिधरः स्वधाम्ना ।
अन्यांश्च हस्तचरणश्रवणत्वगादीन्
प्राणान् नमो भगवते पनसाय तुभ्यम् ॥१॥ (सक्षमायाचनम्)
घर्मादपेतकरुणादुरुदाहधर्माद्
वर्षाच्च भूरिविरुवत्सलिलप्रकर्षात् ।
त्रात्वा निजं रसमयानि फलानि दत्से
तत्र त्वदीयमधुरप्रकृतिर्निदानम् ॥२॥
बाह्येऽजिरे विधरतोत्कटकण्टकानि
बाह्येतरे च मधुमन्ति फलोत्तमानि ।
सत्यं सनातनमिदं भवता स्फुटं यद्
व्यक्ता भवेन्न वपुषा प्रकृतिर्जनस्य ॥३॥
दाक्ष्यं श्रमं च सहनां च धरेन्नृणां य-
स्तेनैव तावकरसो भवतीह लभ्यः ।
सञ्चोदनाय भविनां सुगुणेष्वमीषु
मन्ये स्वयं त्वमवहस्तदिदं स्वरूपम् ॥४॥
आमं नु तेमनमुखेषु नियुञ्जते त्वां
पक्वं च पायसमुखेषु लषन्ति लोकाः ।
धन्यस्त्वमेव यदुपैषि दशासु सर्वा-
स्वेवं जनातिशयितां जननार्थवत्ताम् ॥५॥
काष्ठैस्तव प्रचलिता भुवि नैकयज्ञाः
पर्णैश्च ते कलशकर्म समेति पूर्तिम् ।
पीठादिकान्यपि भवत्त्वगपेक्षकाणि
प्रेम त्वयि क्रतुभुजामपि वागगम्यम् ॥६॥
स्तुत्यानया पनस! नन्द यथार्थगत्या
प्रेष्ठं वरं च वितर त्वमुदारमत्या ।
येनाप्नुयामकृतपुण्यचयैर्दुरापं
त्वां हायनेषु निखिलेषु विना प्रयासम् ॥७॥
फलश्रुतिः -
यः स्तोत्रमेतदनघं पठति प्रभाते
भक्त्या समाहितमना नियतेन्द्रियश्च ।
सोयं न याति पनसान्मनुजो वियोगं
जन्मान्तरेष्वपि पुनर्लभतेsपवर्गम् ।।८।।
डा. रामकृष्णपेजत्तायः
ओ३म्
396. संस्कृत वाक्याभ्यासः
कथं गच्छामि ?
= कैसे जाऊँ ?
यानं तु सः नीतवान्।
= वाहन तो वह ले गया।
पदभ्यां गच्छामि।
= पैदल जाता हूँ।
न…न…मम पार्श्वे भारः अपि अस्ति।
= नहीं …नहीं … मेरे पास भार भी है।
कथं नेष्यामि ?
= कैसे ले जाऊँगा ?
प्रतिवेशी अपि गृहे नास्ति।
= पड़ोसी भी घर में नहीं है।
अस्तु, मुख्य मार्गं गच्छामि।
= ठीक है, मेन रोड पर जाता हूँ।
कमपि हस्तं दर्शयामि।
= किसी को भी हाथ दिखाता हूँ।
कदाचित् कोsपि तिष्ठेत् ।
= शायद कोई रुक जाए।
कदाचित् कोsपि नयेत् ।
= शायद कोई ले चले।
ओ३म्
397. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सः कदा विरंस्यति
= वह कब रुकेगा।
द्विहोरातः सः व्यायामं करोति।
= दो घंटे से व्यायाम कर रहा है।
पञ्चदश निमेष पर्यन्तं सः अकूर्दत।
= पंद्रह मिनट तक वह कूदा।
अर्धहोरा पर्यन्तं सः अधावत्।
= आधा घंटे तक वह दौड़ा।
पञ्चदश निमेष पर्यन्तं सः दण्डम् अकरोत्।
= पन्द्रह मिनट तक उसने दण्ड किये।
पञ्चदश निमेष पर्यन्तं सः हस्तौ चालितवान्।
= पन्द्रह मिनट तक उसने दोनों हाथ चलाए।
पञ्चदश निमेष पर्यन्तं सः मुद्गरम् अधुनोत्
= पन्द्रह मिनट तक उसने मुद्गर घुमाया।
अधुना सः आसनानि करोति।
= अभी वह आसन कर रहा है।
अर्धहोरा अभवत्।
= आधा घंटा हो गया।
विविधानि आसनानि कुर्वन् अस्ति सः।
= वह विविध आसन कर रहा है।
तस्य शरीरात् प्रस्वेदः निर्गच्छति।
= उसके शरीर से पसीना निकल रहा है।
अधुना कदाचित् विरमेत्।
= अब शायद रुक जाए।
अधुना सः शवासनं करोति।
= अभी वह शवासन कर रहा है।
ओ३म्
398. संस्कृत वाक्याभ्यासः
वयं सर्वे लाहौर-नगरस्य नाम श्रुतवन्तः।
= हम सबने लाहौर नगर का नाम सुना है।
लवकुशाभ्यां तस्य निर्माणं कृतम्।
= लवकुश द्वारा उसका निर्माण किया गया।
आधुनिकस्य लाहौरस्य निर्माणं केन कृतं तद् वयं न जानीमः।
= आधुनिक लाहौर का निर्माण किसने किया वह हम नहीं जानते।
सर गंगाराम नाम्नः एकः अभियन्ता आसीत्।
= सर गंगाराम नाम के एक इंजीनियर थे।
तस्य जन्म 1851 तमे वर्षे अभवत्।
= उनका जन्म 1851 के वर्ष में हुआ था।
( एक सहस्र अष्ट शतं एक पञ्चाशत् )
सः मरुभूमौ कृषिकार्यम् आरब्धवान्।
= उन्होंने मरुभूमि पर खेती शुरू की।
सः यत्किमपि धनम् अर्जयति स्म तस्य सदुपयोगं लाहौरस्य विकासाय एव करोति स्म।
= वह जो कुछ भी धन कमाते थे उसका सदुपयोग लाहौर के विकास के लिये ही करते थे।
लाहौर नगरे मुख्य पत्रालयः, लाहौर संग्रहालयः , मेयो महाविद्यालयः , गंगाराम चिकित्सालयः इत्यादीनां भवनानां निर्माणं तेनैव कृतम्।
= लाहौर नगर में मुख्य डाकघर , लाहौर संग्रहालय, मेयो कॉलेज गंगाराम चिकित्सालय, आदि भवनों का निर्माण उन्होंने ही किया।
विद्युत्उत्पादन केन्द्रस्य निर्माणम् अपि तेनैव कृतम्।
= बिजली उत्पन्न करने के केंद्र का भी निर्माण उन्होंने किया।
पठानकोटतः अमृतसर पर्यन्तं रेलमार्गस्य निर्माणम् अपि सः एव कृतवान् आसीत्।
= पठानकोट से अमृतसर तक रेलमार्ग का निर्माण भी उन्होंने ही किया था।
दिल्ही-नगरे अपि सर गंगाराम चिकित्सालयः वर्तते।
= दिल्ली में भी सर गंगाराम अस्पताल है।
लाहौर नगरे अधुना अपि सर गंगारामस्य समाधिः विद्यते।
= लाहौर में आज भी सर गंगाराम की समाधि है।
वयं सर गंगारामं वन्दामहे।
= हम सर गंगाराम को वन्दन करते हैं।
दुःखस्य विषयः लाहौर अधुना पाकिस्थाने अस्ति।
= दुख का विषय है लाहौर अब पाकिस्तान में है।
ओ३म्
399. संस्कृत वाक्याभ्यासः
मातुलानी – संजय ! उत्तिष्ठ ।
= संजय , उठो ।
– संजयः तु अत्र नास्ति।
= संजय तो यहाँ नहीं है।
– शीघ्रमेव उत्थितवान् ।
= जल्दी उठ गया वह।
– एषः तु अत्र ध्यानं करोति।
= ये तो यहाँ ध्यान कर रहा है।
– संजयः ध्यानं करोति !!! आश्चर्यम्
= संजय ध्यान कर रहा है , आश्चर्य ।
( संजयः यदा उत्थास्यति तदा प्रक्ष्यामि।
= संजय जब उठता है तब पूछती हूँ। )
मातुलानी – त्वं कदा आरभ्य ध्यानं करोषि ?
= तुम कब से ध्यान करने लगे।
संजयः – गतमासे अहं संस्कारशिबिरं गतवान्।
= पिछले महीने मैं संस्कार शिबिर गया था।
तत्र ते योगध्यानस्य अभ्यासं कारितवन्तः ।
= वहाँ उन्होंने योग ध्यान का अभ्यास कराया।
मातुलानी – संजय !! त्वं तु श्रेष्ठः जातः।
= तुम तो सुधर गए।
#vakyabhyas
396. संस्कृत वाक्याभ्यासः
कथं गच्छामि ?
= कैसे जाऊँ ?
यानं तु सः नीतवान्।
= वाहन तो वह ले गया।
पदभ्यां गच्छामि।
= पैदल जाता हूँ।
न…न…मम पार्श्वे भारः अपि अस्ति।
= नहीं …नहीं … मेरे पास भार भी है।
कथं नेष्यामि ?
= कैसे ले जाऊँगा ?
प्रतिवेशी अपि गृहे नास्ति।
= पड़ोसी भी घर में नहीं है।
अस्तु, मुख्य मार्गं गच्छामि।
= ठीक है, मेन रोड पर जाता हूँ।
कमपि हस्तं दर्शयामि।
= किसी को भी हाथ दिखाता हूँ।
कदाचित् कोsपि तिष्ठेत् ।
= शायद कोई रुक जाए।
कदाचित् कोsपि नयेत् ।
= शायद कोई ले चले।
ओ३म्
397. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सः कदा विरंस्यति
= वह कब रुकेगा।
द्विहोरातः सः व्यायामं करोति।
= दो घंटे से व्यायाम कर रहा है।
पञ्चदश निमेष पर्यन्तं सः अकूर्दत।
= पंद्रह मिनट तक वह कूदा।
अर्धहोरा पर्यन्तं सः अधावत्।
= आधा घंटे तक वह दौड़ा।
पञ्चदश निमेष पर्यन्तं सः दण्डम् अकरोत्।
= पन्द्रह मिनट तक उसने दण्ड किये।
पञ्चदश निमेष पर्यन्तं सः हस्तौ चालितवान्।
= पन्द्रह मिनट तक उसने दोनों हाथ चलाए।
पञ्चदश निमेष पर्यन्तं सः मुद्गरम् अधुनोत्
= पन्द्रह मिनट तक उसने मुद्गर घुमाया।
अधुना सः आसनानि करोति।
= अभी वह आसन कर रहा है।
अर्धहोरा अभवत्।
= आधा घंटा हो गया।
विविधानि आसनानि कुर्वन् अस्ति सः।
= वह विविध आसन कर रहा है।
तस्य शरीरात् प्रस्वेदः निर्गच्छति।
= उसके शरीर से पसीना निकल रहा है।
अधुना कदाचित् विरमेत्।
= अब शायद रुक जाए।
अधुना सः शवासनं करोति।
= अभी वह शवासन कर रहा है।
ओ३म्
398. संस्कृत वाक्याभ्यासः
वयं सर्वे लाहौर-नगरस्य नाम श्रुतवन्तः।
= हम सबने लाहौर नगर का नाम सुना है।
लवकुशाभ्यां तस्य निर्माणं कृतम्।
= लवकुश द्वारा उसका निर्माण किया गया।
आधुनिकस्य लाहौरस्य निर्माणं केन कृतं तद् वयं न जानीमः।
= आधुनिक लाहौर का निर्माण किसने किया वह हम नहीं जानते।
सर गंगाराम नाम्नः एकः अभियन्ता आसीत्।
= सर गंगाराम नाम के एक इंजीनियर थे।
तस्य जन्म 1851 तमे वर्षे अभवत्।
= उनका जन्म 1851 के वर्ष में हुआ था।
( एक सहस्र अष्ट शतं एक पञ्चाशत् )
सः मरुभूमौ कृषिकार्यम् आरब्धवान्।
= उन्होंने मरुभूमि पर खेती शुरू की।
सः यत्किमपि धनम् अर्जयति स्म तस्य सदुपयोगं लाहौरस्य विकासाय एव करोति स्म।
= वह जो कुछ भी धन कमाते थे उसका सदुपयोग लाहौर के विकास के लिये ही करते थे।
लाहौर नगरे मुख्य पत्रालयः, लाहौर संग्रहालयः , मेयो महाविद्यालयः , गंगाराम चिकित्सालयः इत्यादीनां भवनानां निर्माणं तेनैव कृतम्।
= लाहौर नगर में मुख्य डाकघर , लाहौर संग्रहालय, मेयो कॉलेज गंगाराम चिकित्सालय, आदि भवनों का निर्माण उन्होंने ही किया।
विद्युत्उत्पादन केन्द्रस्य निर्माणम् अपि तेनैव कृतम्।
= बिजली उत्पन्न करने के केंद्र का भी निर्माण उन्होंने किया।
पठानकोटतः अमृतसर पर्यन्तं रेलमार्गस्य निर्माणम् अपि सः एव कृतवान् आसीत्।
= पठानकोट से अमृतसर तक रेलमार्ग का निर्माण भी उन्होंने ही किया था।
दिल्ही-नगरे अपि सर गंगाराम चिकित्सालयः वर्तते।
= दिल्ली में भी सर गंगाराम अस्पताल है।
लाहौर नगरे अधुना अपि सर गंगारामस्य समाधिः विद्यते।
= लाहौर में आज भी सर गंगाराम की समाधि है।
वयं सर गंगारामं वन्दामहे।
= हम सर गंगाराम को वन्दन करते हैं।
दुःखस्य विषयः लाहौर अधुना पाकिस्थाने अस्ति।
= दुख का विषय है लाहौर अब पाकिस्तान में है।
ओ३म्
399. संस्कृत वाक्याभ्यासः
मातुलानी – संजय ! उत्तिष्ठ ।
= संजय , उठो ।
– संजयः तु अत्र नास्ति।
= संजय तो यहाँ नहीं है।
– शीघ्रमेव उत्थितवान् ।
= जल्दी उठ गया वह।
– एषः तु अत्र ध्यानं करोति।
= ये तो यहाँ ध्यान कर रहा है।
– संजयः ध्यानं करोति !!! आश्चर्यम्
= संजय ध्यान कर रहा है , आश्चर्य ।
( संजयः यदा उत्थास्यति तदा प्रक्ष्यामि।
= संजय जब उठता है तब पूछती हूँ। )
मातुलानी – त्वं कदा आरभ्य ध्यानं करोषि ?
= तुम कब से ध्यान करने लगे।
संजयः – गतमासे अहं संस्कारशिबिरं गतवान्।
= पिछले महीने मैं संस्कार शिबिर गया था।
तत्र ते योगध्यानस्य अभ्यासं कारितवन्तः ।
= वहाँ उन्होंने योग ध्यान का अभ्यास कराया।
मातुलानी – संजय !! त्वं तु श्रेष्ठः जातः।
= तुम तो सुधर गए।
#vakyabhyas