Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (डोकानियोपनामको मोहितः)
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साप्ताहिक संस्कृत पत्रिका Vaartavali
#vaarta #vaartavali #newsinsanskrit
साप्ताहिक संस्कृत पत्रिका Vaartavali
DD News 24x7 | Breaking News & Latest Updates | Live Updates | News in Hindi
DD News is India’s 24x7 news channel from the stable of the country’s Public Service Broadcaster, Prasar…
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एक पुरानी तिब्बती कथा है कि दो उल्लू एक ही वृक्ष पर आ कर बैठे।
•• तिब्बतस्य एका पुरातना कथा अस्ति यत् दिवान्धौ एकस्मिन्नेव वृक्षे आगत्य उपाविष्टाम्।
एक ने साँप अपने मुँह में पकड़ रखा था।
•• एक: स्वमुखे सर्पम् अगृह्णात्।
सांप भोजन था उनका, सुबह के नाश्ते की तैयारी थी।
•• सर्प: तस्य भोजनमासीत् , प्रातराशस्य सिद्धता आसीत्।
दूसरा एक चूहा पकड़ लाया था।
••अन्य: एकं मूषिकं ग्रहीत्वा आनीतवान् आसीत्।
दोनों एक ही वृक्ष पर पास-पास आकर बैठे।
•• उभौ एकस्मिन्नेव वृक्षम् आगत्य एकस्यां शाखायां समीपतया उपाविष्टाम्।
एक के मुँह में साँप, एक के मुँह में चूहा ।
•• एकस्य मुखे सर्प: , एकस्य मुखे मूषिक:।
साँप ने चूहे को देखा तो वह यह भूल ही गया कि वह उल्लू के मुँह में है और मौत के करीब है।
••यदा सर्पो मूषिकं दृष्ट्वान् तदा स एतत् विस्मृतवान्नेव यत् स दिवान्धस्य मुखे अस्ति मृत्यो: च समीपोऽस्ति।
चूहे को देख कर उसके मुँह में लार बहने लगी।
•• मूषकं दृष्ट्वा तस्यानने रसधारो वहितुमारभत।
वह भूल ही गया कि मौत के मुँह में है।
•• स विस्मृतवान्नेव यत् स मृत्यो: मुखे अस्ति।
उसको अपनी जीवन जीने की इच्छा ने पकड़ लिया और चूहे ने जैसे ही देखा साँप को, वह भयभीत हो गया, वह काँपने लगा।
•• तस्य जीजीविषा तं गृहीतवती तथा मूषक: यथैव सर्पं दृष्टवान् , स भीत्वा कम्पितुमारभत।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
•• तिब्बतस्य एका पुरातना कथा अस्ति यत् दिवान्धौ एकस्मिन्नेव वृक्षे आगत्य उपाविष्टाम्।
एक ने साँप अपने मुँह में पकड़ रखा था।
•• एक: स्वमुखे सर्पम् अगृह्णात्।
सांप भोजन था उनका, सुबह के नाश्ते की तैयारी थी।
•• सर्प: तस्य भोजनमासीत् , प्रातराशस्य सिद्धता आसीत्।
दूसरा एक चूहा पकड़ लाया था।
••अन्य: एकं मूषिकं ग्रहीत्वा आनीतवान् आसीत्।
दोनों एक ही वृक्ष पर पास-पास आकर बैठे।
•• उभौ एकस्मिन्नेव वृक्षम् आगत्य एकस्यां शाखायां समीपतया उपाविष्टाम्।
एक के मुँह में साँप, एक के मुँह में चूहा ।
•• एकस्य मुखे सर्प: , एकस्य मुखे मूषिक:।
साँप ने चूहे को देखा तो वह यह भूल ही गया कि वह उल्लू के मुँह में है और मौत के करीब है।
••यदा सर्पो मूषिकं दृष्ट्वान् तदा स एतत् विस्मृतवान्नेव यत् स दिवान्धस्य मुखे अस्ति मृत्यो: च समीपोऽस्ति।
चूहे को देख कर उसके मुँह में लार बहने लगी।
•• मूषकं दृष्ट्वा तस्यानने रसधारो वहितुमारभत।
वह भूल ही गया कि मौत के मुँह में है।
•• स विस्मृतवान्नेव यत् स मृत्यो: मुखे अस्ति।
उसको अपनी जीवन जीने की इच्छा ने पकड़ लिया और चूहे ने जैसे ही देखा साँप को, वह भयभीत हो गया, वह काँपने लगा।
•• तस्य जीजीविषा तं गृहीतवती तथा मूषक: यथैव सर्पं दृष्टवान् , स भीत्वा कम्पितुमारभत।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
प्लुत स्वर
वस्तुतः प्लुत स्वर केवल संस्कृत में ही नहीं, अपितु दुनिया की हर भाषा में होते हैं। परन्तु इनका शास्त्रीय अभ्यास केवल संस्कृत में ही किया गया है।
प्लुत स्वर वे होते हैं जिनका उच्चारण काल तीन मात्राएं होता है। प्लुत स्वरों का उच्चारण कुछ ज्यादा ही लंबा होता है। यानी दीर्घ से भी ज्यादा। प्लुत स्वर नौ (९) हैं।
अ३। इ्३। उ३। ऋ३। ऌ३। ए३। ऐ३। ओ३। ओ३॥
सामान्यतः किसी को दूर से बुलाने के लिए प्लुत स्वर का प्रयोग होता है – आगच्छ कृष्ण३।
ॐ इस चिह्न को बहुत बार ओ३म् ऐसा लिखा जाता है। यहां भी ओ३ यह स्वर प्लुत है।
🌐 kakshakaumudi.in
#sanskritlessons
वस्तुतः प्लुत स्वर केवल संस्कृत में ही नहीं, अपितु दुनिया की हर भाषा में होते हैं। परन्तु इनका शास्त्रीय अभ्यास केवल संस्कृत में ही किया गया है।
प्लुत स्वर वे होते हैं जिनका उच्चारण काल तीन मात्राएं होता है। प्लुत स्वरों का उच्चारण कुछ ज्यादा ही लंबा होता है। यानी दीर्घ से भी ज्यादा। प्लुत स्वर नौ (९) हैं।
अ३। इ्३। उ३। ऋ३। ऌ३। ए३। ऐ३। ओ३। ओ३॥
सामान्यतः किसी को दूर से बुलाने के लिए प्लुत स्वर का प्रयोग होता है – आगच्छ कृष्ण३।
ॐ इस चिह्न को बहुत बार ओ३म् ऐसा लिखा जाता है। यहां भी ओ३ यह स्वर प्लुत है।
🌐 kakshakaumudi.in
#sanskritlessons
@samvadah organises संलापशाला - A Sanskrit Voicechat Room
🔰 विषयः - वार्ताः
🗓१८/१२/२०२३ ॥ IST ११:०० AM
🔴 It's recording would be shared on our channel.
📑कृपया दैववाचा चर्चार्थं एतद्विषयम् (कामपि स्थानीयां प्रादेशिकीं राष्ट्रीयां अन्ताराष्ट्रीयां वार्तां वा वदन्तु) अभिक्रम्य आगच्छत।
https://t.me/samvadah?livestream
पूर्वचर्चाणां सङ्ग्रहः अधोदत्तः
https://archive.org/details/samlapshala_
🔰 विषयः - वार्ताः
🗓१८/१२/२०२३ ॥ IST ११:०० AM
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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Super group @Ask_sanskrit
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🚩 जय सत्य सनातन 🚩
🚩 आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩तिथि - षष्ठी दोपहर 03:13 तक तत्पश्चात सप्तमी
⛅ दिनांक - 18 दिसम्बर 2023
⛅ दिन - सोमवार
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - हेमंत
⛅ मास - मार्गशीर्ष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - शतभिषा रात्रि 01:22 तक तत्पश्चात पूर्वभाद्रपद
⛅ योग - वज्र रात्रि 09:32 तक तत्पश्चात सिद्धि
⛅ राहु काल - सुबह 08:35 से 09:55 तक
⛅ सूर्योदय - 07:14
⛅ सूर्यास्त - 05:58
⛅ दिशा शूल - पूर्व
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:28 से 06:21 तक
⛅ निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:10 से 01:03 तक
⛅ व्रत पर्व विवरण - चम्पा षष्ठी
#panchang
🚩 आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩तिथि - षष्ठी दोपहर 03:13 तक तत्पश्चात सप्तमी
⛅ दिनांक - 18 दिसम्बर 2023
⛅ दिन - सोमवार
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - हेमंत
⛅ मास - मार्गशीर्ष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - शतभिषा रात्रि 01:22 तक तत्पश्चात पूर्वभाद्रपद
⛅ योग - वज्र रात्रि 09:32 तक तत्पश्चात सिद्धि
⛅ राहु काल - सुबह 08:35 से 09:55 तक
⛅ सूर्योदय - 07:14
⛅ सूर्यास्त - 05:58
⛅ दिशा शूल - पूर्व
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:28 से 06:21 तक
⛅ निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:10 से 01:03 तक
⛅ व्रत पर्व विवरण - चम्पा षष्ठी
#panchang
🍃त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: |
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ||
🔆नरकं प्राप्तुं त्रयः मार्गाः सन्ति ते च कामभावः क्रोधः तथा लोभः अतः एतेषां त्यागं कुर्यात्।
⚜BG 16.21: The three gates leading to hell—lust, anger, and greed—are destructive of the self (atman); therefore, one should abandon these three.
⚜नरक की ओर ले जाने वाले तीन द्वार काम, क्रोध और लोभ जीवात्मा के लिए विनाशकारी हैं; अत: इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए।
#Subhashitam
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ||
🔆नरकं प्राप्तुं त्रयः मार्गाः सन्ति ते च कामभावः क्रोधः तथा लोभः अतः एतेषां त्यागं कुर्यात्।
⚜BG 16.21: The three gates leading to hell—lust, anger, and greed—are destructive of the self (atman); therefore, one should abandon these three.
⚜नरक की ओर ले जाने वाले तीन द्वार काम, क्रोध और लोभ जीवात्मा के लिए विनाशकारी हैं; अत: इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए।
#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
एक पुरानी तिब्बती कथा है कि दो उल्लू एक ही वृक्ष पर आ कर बैठे। •• तिब्बतस्य एका पुरातना कथा अस्ति यत् दिवान्धौ एकस्मिन्नेव वृक्षे आगत्य उपाविष्टाम्। एक ने साँप अपने मुँह में पकड़ रखा था। •• एक: स्वमुखे सर्पम् अगृह्णात्। सांप भोजन था उनका, सुबह के नाश्ते…
ऐसे मौत के मुँह में बैठा है, मगर साँप को देख कर काँपने लगा।
•• एवं मृत्यो: समीपम् उपविष्टोऽस्ति,परन्तु सर्पं दृष्टवा कम्पितुमारभत।
वे दोनों उल्लू बड़े हैरान हुए।
•• उभौ दिवान्धौ भृशम् आश्चर्यचकितौ अभवताम्।
एक उल्लू ने दूसरे उल्लू से पूछा कि भाई, इसका कुछ राज समझे ?
•• एको दिवान्ध: अपरं दिवान्धं पृष्टवान् यत् भ्रात:!भवान् अस्य किमपि रहस्यम् अवगतवान् वा ?
दूसरे ने कहा, बिलकुल समझ में आया।
•• अपरोऽवदत् , "मया पूर्णत: अवगतम्।"
जीभ की, रस की, स्वाद की इच्छा इतनी प्रबल है कि सामने मृत्यु खड़ी हो तो भी दिखाई नहीं पड़ती और यह भी समझ में आया कि भय मौत से भी बड़ा है।
•• जिह्वाया: रसस्य स्वादस्य च इच्छा एतावती प्रबला अस्ति यत् समक्षं मृत्यु: उपस्थितोऽस्ति चेदपि न दृश्यते तथा एतदपि अवगतो यत् भयं मृत्योरपि महत्तरम् अस्ति।
मौत सामने खड़ी है, उससे भयभीत नहीं है यह चूहा, लेकिन भय से भयभीत है कि कही सांप मुझ पर हमला न कर दे।
••मृत्यु: समीपे उपस्थितोऽस्ति,एष मूषिक: तस्मात् भयभीतो नास्ति ,परन्तु भयात् भीतोऽस्ति यत् कदाचित् सर्प: ममोपरि आक्रमणं न कुर्यात्।
मौत से हम भयभीत नहीं हैं, हम भय से ज्यादा भयभीत है।
•• मृत्यो: वयं भीता: न स्म:,वयं भयात् अतीव भीता: स्म:।
और लोभ के साथ स्वाद का ,इन्द्रियों का , जीवन जीने की इच्छा का इतना मजबूत सम्बन्ध है कि मौत चौबीसों घंटा खड़ा है , तो भी हमें दिखाई नहीं देता।
•• अपिच लोभेन सह स्वादस्य,इन्द्रियाणां च जिजीविषाया: च एतावान् प्रगाढ: सम्बन्धोऽस्ति यत् मृत्यु: अस्माकं समक्षं सदैव उपस्थित: भवति ,तथापि अस्माभि: न दृश्यते।
हम अंधे बने हुए है।
•• इदानीं वयं अन्धसदृशा: स्म:।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
•• एवं मृत्यो: समीपम् उपविष्टोऽस्ति,परन्तु सर्पं दृष्टवा कम्पितुमारभत।
वे दोनों उल्लू बड़े हैरान हुए।
•• उभौ दिवान्धौ भृशम् आश्चर्यचकितौ अभवताम्।
एक उल्लू ने दूसरे उल्लू से पूछा कि भाई, इसका कुछ राज समझे ?
•• एको दिवान्ध: अपरं दिवान्धं पृष्टवान् यत् भ्रात:!भवान् अस्य किमपि रहस्यम् अवगतवान् वा ?
दूसरे ने कहा, बिलकुल समझ में आया।
•• अपरोऽवदत् , "मया पूर्णत: अवगतम्।"
जीभ की, रस की, स्वाद की इच्छा इतनी प्रबल है कि सामने मृत्यु खड़ी हो तो भी दिखाई नहीं पड़ती और यह भी समझ में आया कि भय मौत से भी बड़ा है।
•• जिह्वाया: रसस्य स्वादस्य च इच्छा एतावती प्रबला अस्ति यत् समक्षं मृत्यु: उपस्थितोऽस्ति चेदपि न दृश्यते तथा एतदपि अवगतो यत् भयं मृत्योरपि महत्तरम् अस्ति।
मौत सामने खड़ी है, उससे भयभीत नहीं है यह चूहा, लेकिन भय से भयभीत है कि कही सांप मुझ पर हमला न कर दे।
••मृत्यु: समीपे उपस्थितोऽस्ति,एष मूषिक: तस्मात् भयभीतो नास्ति ,परन्तु भयात् भीतोऽस्ति यत् कदाचित् सर्प: ममोपरि आक्रमणं न कुर्यात्।
मौत से हम भयभीत नहीं हैं, हम भय से ज्यादा भयभीत है।
•• मृत्यो: वयं भीता: न स्म:,वयं भयात् अतीव भीता: स्म:।
और लोभ के साथ स्वाद का ,इन्द्रियों का , जीवन जीने की इच्छा का इतना मजबूत सम्बन्ध है कि मौत चौबीसों घंटा खड़ा है , तो भी हमें दिखाई नहीं देता।
•• अपिच लोभेन सह स्वादस्य,इन्द्रियाणां च जिजीविषाया: च एतावान् प्रगाढ: सम्बन्धोऽस्ति यत् मृत्यु: अस्माकं समक्षं सदैव उपस्थित: भवति ,तथापि अस्माभि: न दृश्यते।
हम अंधे बने हुए है।
•• इदानीं वयं अन्धसदृशा: स्म:।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas