संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🍃क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा।
भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्
।।13.35।।

♦️kShetrakShetraj~nayorevamantaraM j~naanachakShuShaa|
bhuutaprakRRitimokShaM cha ye viduryaanti te param

They who, by the eye of knowledge, perceive the distinction between the field and its knower and also the liberation from the Nature of being, go to the Supreme.(13.35)

इस प्रकार जो पुरुष ज्ञानचक्षु के द्वारा क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को तथा प्रकृति के विकारों से मोक्ष को जानते हैं वे परम ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।।13.35।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩 यगाब्द - ५१२४
🌥 🚩 विक्रम संवत - २०७९
⛅️ 🚩 तिथि - नवमी सुबह 10:45 तक तत्पश्चात दशमी

⛅️ दिनांक - 24 मई 2022
⛅️ दिन - मंगलवार
⛅️ विक्रम संवत - 2079
⛅️ शक संवत - 1944
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - ग्रीष्म
⛅️ मास - ज्येष्ठ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - पूर्वभाद्रपद रात्रि 10:33 तक तत्पश्चात उत्तर भाद्रपद
⛅️ राहुकाल - शाम 03:57 से 05:37 तक
⛅️ सर्योदय - 05:56
⛅️ सर्यास्त - 07:18
⛅️ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
⛅️ बरह्म मुहूर्त- प्रातः 04:30 से 05:13 तक
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिकायां स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
🗣सहैव तानि वाक्यानि उक्त्वा ध्वनिमाध्यमेन अपि प्रेषयत।

Read in English
हिन्दी में पढें


#chitram
🍃कः कालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमौ ।
कस्याहं का च मे शक्तिः, इति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः

- चाणक्यनीतिः 4.18

कैसा समय (परिस्थिति) है, कौन मेरे मित्र हैं, में किस देश में हूं, मेरी आय और तदनुसार व्यय कितना है, में कौन हूं और मुझ में कितनी शक्ति है, इन विषयों पर बारम्बार विचार करना चाहिये। (और तदनुसार आचरण करना चाहिये )

One should always and repeatedly ponder over as to what are the prevailing circumstances, who are my friends, in which country I am, what is my income and expenditure, who am I and what is my ability and strength ( before undertaking any task and then take the appropriate action).

🔅कस्मादपि कार्यारम्भात् पूर्वं कीदृशः समयः अस्ति कानि मित्राणि सन्ति कस्मिन् स्थाने अस्मि मम आयः कः तथा व्ययः कियान् अस्ति अहं कः अस्मि मम सामर्थ्यं कियत् एते विषयाः पुनःपौन्येन चिन्तनीयाः तथा तद्वत् आचरणं विधातव्यम्।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
तुमुन् प्रत्यय (”के लिए“ अर्थ में एक वाक्य में प्रयुक्त समान कर्तावाली दो या दो से अधिक धातुओं का प्रयोग होने पर पूर्वकालिक धातु/धातुओं से तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग होता है। तुमुनान्त क्रियावाची शब्द भी अव्यय होने से सभी विभक्तियों में इसके रूप नहीं चलते।…
हन्ता चेन्मन्यते हन्तुं हतश्चेन्मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।
= मारनेवाला यदि मारना चाहता है और मरा हुआ अपने आप को मरा जानता है, वे दोनों (मारनेवाला-मरनेवाला) ही नहीं जानते कि आत्मा न तो मारता है न मरता है।

स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि। धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत् क्षत्रियस्य न विद्यते।।
= स्वधर्म = अपने कर्त्तव्य को देखते हुए भी हिम्मत हारना उचित नहीं है। क्षत्रिय के लिए धर्मयुद्ध से बढ़कर और कोई कर्त्तव्य नहीं है।

नहि देहभृता शक्यं त्यक्तंु कर्माण्यशेषतः। यस्तुकर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते।।
= किसी भी देहधारी के लिए कर्मों का पूर्णरूपेण त्याग सम्भव नहीं है, परन्तु जो कर्म के फल को त्याग देता है, वही त्यागी कहलाता है।

अम्भोजिनीवनविहारविलासमेव हंसस्य हन्ति नितरां कुपितो विधाता। न त्वस्य दुग्धजलभेदविधौ प्रसिद्धां, वैदग्ध्यकीर्तिमपहर्त्तुमसौ समर्थः।।
= अत्यन्त क्रुद्ध विधाता भी हंस को कमलवन का आनन्द लूटने से तो एकदम रोक सकता है परन्तु उसके नीर-क्षीर विवेक के प्रसिद्ध चातुर्य को नष्ट करने में वह भी असमर्थ है।

पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किम्, नोलूकोऽप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम्।
धारा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणम्, यत्पूर्वं विधिना ललाटलिखितं तन्मार्जितुं कः क्षमः।।
= यदि वसन्त ऋतु आने पर भी करीर के वृक्ष पर पत्ते नहीं फूटते तो इसमें वसन्त ऋतु का क्या दोष ? यदि उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता तो इसमें सूर्य का क्या अपराध ? यदि चातक के मुख में वर्षा की बूंदें नहीं पड़ती तो इसमें बादल का क्या दोष ? भाग्य में जो लिखा है उसे कौन मिटा सकता है ? (अर्थात् किया हुआ अवश्य भरना पड़ता है।)

त्याज्यं न ध्यैर्यं विधुरेऽपि काले धैर्यात्कदाचित् स्थितिमाप्नुयाद्धि।
जाते समुद्रेऽपि च पोत भङ्गे सांयात्रिको वा´्छति तर्त्तुमेव।।
= कठिनाई के समय के उपस्थित होने पर भी ध्यैर्य नहीं त्यागना चाहिए, किन्तु ध्यैर्य से मनुष्य किसी समय फिर से अपनी पूर्वस्थिति को प्राप्त कर सकता है। जैसे समुद्र के मध्य में जहाज के टूट जाने पर भी जहाज का यात्री तैरकर बचने की ही कामना करते हैं।

न दैवमिति सञ्चिन्त्य त्यजेदुद्योगमात्मनः। अनुद्योगेन तैलानि तिलेभ्यो नाप्तुमर्हति।।
= मनुष्य ”भाग्य ही सब कुछ है“ ऐसा विचार करके अपने पुरुषार्थ का त्याग न करे बिना पुरुषार्थ के तो मनुष्य तिलों से तैल भी प्राप्त नहीं कर सकता।

स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्त्तुमन्यथा। सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम्।।
= उपदेश से कोई किसी के स्वभाव को नहीं बदल सकता। भलीभांति खौलाया हुआ पानी भी पुनः शीतल हो जाता है।

#vakyabhyas
नमाज इति शब्दः संस्कृतात् एव निष्पन्नः अस्ति । नमाज इत्यस्य विग्रहे द्वौ शब्दौ स्तः नमः‌ अजः चेति।

संस्कृते नमः इत्युक्ते प्रणतिः तथा अजः इत्युक्ते न जातो न जनिष्यते इति

द्वयोः समासेन नमाजः इति‌ शब्दः सिद्धः (नम + अज: )

संक्षेपार्थे ईश्वराय नमस्कारः वा नमः शिवाय‌


The word NAMAZ/J is derived from Sanskrut itself. the Namaz/j has two sylables i.e. Namas( नमस् ) and Ajah ( अज: ) .

In Samskrut Namas (नमस् = नमः ) means to Bow, Salutation, and Ajah ( अज: ) means the unborn (Shiva, Vishnu or brahma generally)

Both words combined with samas (conjunction) makes नमाज (नमः +अज: ) i. e. Namaz/j.

In short it is the word having meaning , Salutation to God / Namah Shivay (नमः शिवाय )


नमाज शब्द संस्कृत से लिया गया है। नमाज के विग्रह में दो शब्द हैं, नमः और अजः

संस्कृत में नमः का अर्थ है झुकना और अजः का अर्थ है वो जो‌ न जन्मा है न जन्मेगा अर्थात् ईश्वर

दोनों के समास से नमाज (नमः +अज:) शब्द सिद्ध होता है।

संक्षेप में, मैं भगवान् को नमन करता हूं या नमः शिवाय , यह अर्थ निकलता है।
Audio
🍃श्री भगवानुवाच
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः
।।14.1।।

♦️sri bhagavanuvaca
paran bhuyah pravaksyami jnananan jnanamuttamam.
yajjnatva munayah sarve paran siddhimito gatah৷৷14.1৷৷

The Blessed Lord said --
I will again declare (to thee) that supreme knowledge, the best of all knowledge, having known which all the sages have gone to the supreme perfection after this life.(14.01)

श्री भगवान् ने कहा --
समस्त ज्ञानों में उत्तम परम ज्ञान को मैं पुन कहूंगा जिसको जानकर सभी मुनिजन इस (लोक) से जाकर (इस जीवनोपरान्त) परम सिद्धि को प्राप्त हुए हैं।।14.01।।

#geeta
Audio
🍃इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः।
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च
।।14.2।।

♦️idan jnanamupasritya mama sadharmyamagatah.
sarge.pi nopajayante pralaye na vyathanti ca৷৷14.2৷৷

They who, having taken refuge in this knowledge, have attained to unity with Me, are neither born at the time of creation nor are they disturbed at the time of dissolution.(14.2)

इस ज्ञान का आश्रय लेकर मेरे स्वरूप (सार्धम्यम्) को प्राप्त पुरुष सृष्टि के आदि में जन्म नहीं लेते और प्रलयकाल में व्याकुल भी नहीं होते हैं।।14.2।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द - ५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत - २०७९
⛅️ 🚩तिथि - दशमी सुबह 10:32 तक तत्पश्चात एकादशी

⛅️ दिनांक - 25 मई 2022
⛅️ दिन - बुधवार
⛅️ शक संवत - 1944
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - ग्रीष्म
⛅️ मास - ज्येष्ठ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद रात्रि 11:20 तक तत्पश्चात रेवती
⛅️ योग - प्रिती रात्रि 10:45 तक तत्पश्चात आयुष्मान
⛅️ राहुकाल - दोपहर 12:37 से 02:17 तक
⛅️ सर्योदय - 05:55
⛅️ सर्यास्त - 07:18
⛅️ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
⛅️ बरह्म मुहूर्त- प्रातः 04:30 से 05:13 तक
वार्ता: संस्कृत में समाचार | यासीन मलिक की सजा पर फै़सला आज - YouTube
https://m.youtube.com/watch?v=uRLuuDxfgLM

प्रतिदिनं प्रातः ७:१५ वादने १५ निमेषात्मिकायै वार्तायै डी डी न्यूज् इति पश्यत।
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिकायां स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
🗣सहैव तानि वाक्यानि उक्त्वा ध्वनिमाध्यमेन अपि प्रेषयत।

Read in English
हिन्दी में पढें


#chitram
🍃कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥

इस संसार में सभी जीवित प्राणियों को काल अपना ग्रास बना लेता है (उनकी मृत्यु हो जाती है ) और काल ही किसी देश की प्रजा को  भी नष्ट कर देता है  और काल के ही प्रभाव  से 
(परिस्थिति वश) एक निष्क्रिय  व्यक्ति भी सक्रिय हो  जाता है | निश्चय ही काल को कोई भी अपने वश में नहीं कर सकता है |

It is the passage of time which ultimately brings to an end all  the living beings on the Earth and also untimely kills the citizens of a country.  An inactive person awakens and becomes very active if  the time is favourable to him.
Definitely the time is insurmountable. 

🔅अस्मिन् संसारे कालः(समयः) सर्वान् प्राणिनः ग्रसति, कालः एव निष्क्रियं जनं परिस्थित्यनुगुणं सक्रिय करोति एतादृशं कालं न कोऽपि वशे कर्तुं अर्हति।

#Subhashitam