हनुमान् पर्वतात् रामलक्ष्मणौ _______।
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4%
स्तः
22%
अपश्यताम्
59%
अपश्यत्
6%
अपश्यतम्
9%
अदर्शताम्
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
आत्माऽपराधवृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम्। दारिद्र्यरोगदुःखानि बन्धनव्यसनानि च।। = दरिद्रता, रोग, कष्ट, दुःख, बन्धन और आपत्तियां ये सब मनुष्य के अपने ही किए पापरूप वृक्ष के फल हैं। यद् व्यङ्गाः कुष्ठिनश्चान्धाः पङ्गवश्च दरिद्रिणः। पूर्वोपार्जितपापस्य फलमश्नाति…
श्चुत्व सन्धिः
{(स्तोः श्चुना श्चुः) सकार या तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) से पहले या बाद में शकार या चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) कोई भी हो तो सकार और तवर्ग को क्रमशः शकार और चवर्ग हो जाता है। (अर्थात् ‘स्’ को ‘श्’, ‘त्’ को ‘च्’, ‘थ्’ को ‘छ्’, ‘द्’ को ‘ज्’, ‘ध्’ को ‘झ्’ और ‘न्’ को ‘ञ्’ हो जाता है।)}
श्/तवर्ग + स्/तवर्ग अथवा स्/तवर्ग + श्/चवर्ग है तो स् = श् तथा तवर्ग = चवर्ग।
रामस् + च = रामश् च = रामश्च।
सत् + चित् = सच् चित् = सच्चित्।
यद् + ज्योतिः = यज् + ज्योतिः = यज्ज्योतिः।
याच् + ना = याच् ञा = याच्ञा
यद् + ज्योतिर् = यज्ज्योतिर्।
यज्ज्योतिरन्तरमृतम्प्रजासु तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु।
= जो ज्योतिस्वरूप शरीर के अन्दर विद्यमान, उत्पन्न हुए समस्त पदार्थों में अविनाशी है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्पवाला होवे।
तत् + चक्षुर् = तच्चक्षुर्;
उत् + चरत् = उच्चरत्।
तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्।
= वह सबका मार्गदर्शक, देवों का हितकारी, शुद्धस्वरूप सामने उपस्थित है।
सत् + चित् = सच्चित्।
ईश्वरः सच्चिदानन्दस्वरूपोऽस्ति
= ईश्वर सत्, चित् व आनन्दस्वरूप है।
कस् + चिद् = कश्चिद्।
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः।।
= हजारों में कोई एकाद योग सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है। यत्न करनेवालों में कोई एकाद ही मुझे यथार्थरूप में जान पाता है।
योगात् + चलितमानसः = योगाच्चलितमानसः।
अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति।।
= हे कृष्ण ! श्रद्धायुक्त हो योगमार्ग पर चलनेवाले साधक का मन उसका यत्न पूरा न होने के कारण योग से विचलित हो गया है, ऐसा साधक योगसिद्धियों को प्राप्त न करके किस गति को प्राप्त करता है ?
यत् + चन्द्रमसि = यच्चन्द्रमसि;
यत् + चाग्नौ = यच्चाग्नौ।
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्।।
= सूर्य में विद्यमान तेज जो सकल जगत को प्रकाशित करता है, और जो चन्द्रमा तथा अग्नि में विद्यमान है, वह मेरा ही तेज है ऐसा जान।
कस् + चिद् = कश्चिद्।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद् दुर्गतिं तात गच्छति।
= हे तात ! कल्याण करनेवाला कभी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।
#vakyabhyas
{(स्तोः श्चुना श्चुः) सकार या तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) से पहले या बाद में शकार या चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) कोई भी हो तो सकार और तवर्ग को क्रमशः शकार और चवर्ग हो जाता है। (अर्थात् ‘स्’ को ‘श्’, ‘त्’ को ‘च्’, ‘थ्’ को ‘छ्’, ‘द्’ को ‘ज्’, ‘ध्’ को ‘झ्’ और ‘न्’ को ‘ञ्’ हो जाता है।)}
श्/तवर्ग + स्/तवर्ग अथवा स्/तवर्ग + श्/चवर्ग है तो स् = श् तथा तवर्ग = चवर्ग।
रामस् + च = रामश् च = रामश्च।
सत् + चित् = सच् चित् = सच्चित्।
यद् + ज्योतिः = यज् + ज्योतिः = यज्ज्योतिः।
याच् + ना = याच् ञा = याच्ञा
यद् + ज्योतिर् = यज्ज्योतिर्।
यज्ज्योतिरन्तरमृतम्प्रजासु तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु।
= जो ज्योतिस्वरूप शरीर के अन्दर विद्यमान, उत्पन्न हुए समस्त पदार्थों में अविनाशी है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्पवाला होवे।
तत् + चक्षुर् = तच्चक्षुर्;
उत् + चरत् = उच्चरत्।
तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्।
= वह सबका मार्गदर्शक, देवों का हितकारी, शुद्धस्वरूप सामने उपस्थित है।
सत् + चित् = सच्चित्।
ईश्वरः सच्चिदानन्दस्वरूपोऽस्ति
= ईश्वर सत्, चित् व आनन्दस्वरूप है।
कस् + चिद् = कश्चिद्।
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः।।
= हजारों में कोई एकाद योग सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है। यत्न करनेवालों में कोई एकाद ही मुझे यथार्थरूप में जान पाता है।
योगात् + चलितमानसः = योगाच्चलितमानसः।
अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति।।
= हे कृष्ण ! श्रद्धायुक्त हो योगमार्ग पर चलनेवाले साधक का मन उसका यत्न पूरा न होने के कारण योग से विचलित हो गया है, ऐसा साधक योगसिद्धियों को प्राप्त न करके किस गति को प्राप्त करता है ?
यत् + चन्द्रमसि = यच्चन्द्रमसि;
यत् + चाग्नौ = यच्चाग्नौ।
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्।।
= सूर्य में विद्यमान तेज जो सकल जगत को प्रकाशित करता है, और जो चन्द्रमा तथा अग्नि में विद्यमान है, वह मेरा ही तेज है ऐसा जान।
कस् + चिद् = कश्चिद्।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद् दुर्गतिं तात गच्छति।
= हे तात ! कल्याण करनेवाला कभी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।
#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
स्थाणौ पुरुषवद्भ्रान्त्या कृता ब्रह्मणि जीवता।
जीवस्य तात्त्विके रूपे तस्मिन्दृष्टे निवर्तते।।45।।
45. Brahman appears to be a’Jiva’ because of ignorance, just as a post appears to be a ghost. The ego-centric-individuality is destroyed when the real nature of the’Jiva’ is realised as the Self.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 45:
आत्म-बोध के 45th श्लोक में आचार्यश्री एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डाल रहे हैं। यह विषय है की आत्मा का दर्शन और उसमे निष्ठा कब होगी। क्या हम सदैव आत्मा का ध्यान करें? आचार्य बोलते हैं कि नहीं, आत्मा का नहीं 'जीव' पर ध्यान दो। जीव किसको कहते हैं? ये कैसे उत्पन्न होता है? इसकी संकुचिताएँ कैसे आती हैं, और कैसे जाती हैं? वे कहते हैं की वस्तुतः जीव आत्मा को ठीक से न जानने के कारण एक भ्रान्ति मात्र होती है, और भ्रान्ति की समाप्ति से यह भी दूर हो जाता है, और उसके स्थान पर एक अनन्त सत्ता विद्यमान होती है - वो ब्रह्म है।
#Atmabodha
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
स्थाणौ पुरुषवद्भ्रान्त्या कृता ब्रह्मणि जीवता।
जीवस्य तात्त्विके रूपे तस्मिन्दृष्टे निवर्तते।।45।।
45. Brahman appears to be a’Jiva’ because of ignorance, just as a post appears to be a ghost. The ego-centric-individuality is destroyed when the real nature of the’Jiva’ is realised as the Self.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 45:
आत्म-बोध के 45th श्लोक में आचार्यश्री एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डाल रहे हैं। यह विषय है की आत्मा का दर्शन और उसमे निष्ठा कब होगी। क्या हम सदैव आत्मा का ध्यान करें? आचार्य बोलते हैं कि नहीं, आत्मा का नहीं 'जीव' पर ध्यान दो। जीव किसको कहते हैं? ये कैसे उत्पन्न होता है? इसकी संकुचिताएँ कैसे आती हैं, और कैसे जाती हैं? वे कहते हैं की वस्तुतः जीव आत्मा को ठीक से न जानने के कारण एक भ्रान्ति मात्र होती है, और भ्रान्ति की समाप्ति से यह भी दूर हो जाता है, और उसके स्थान पर एक अनन्त सत्ता विद्यमान होती है - वो ब्रह्म है।
#Atmabodha
🍁 प्रतिदिनं संस्कृतम् 🍁
नमः सर्वेभ्यः,
नूतनसम्भाषणशिबिरार्थिनां कृते विशेष सूचना
मार्च मासस्य 14 दिनाङ्कतः 31 दिनाङ्कपर्यन्तं अभ्यासकक्ष्या चाल्यते।
समयः -- सायं 7pm-7.40pm
विषयः -- सुलभसम्भाषणम्
पुस्तकम् -- संस्कृतभारती पुस्तकविभागस्य अभ्यास पुस्तकम्
-- https://us05web.zoom.us/j/7286226080?pwd=a0hNQnJ4aHVvVXUvWm1SSm9HTjFkUT09
Meeting ID:
Passcode:
🍁*सर्वेषां हार्दं स्वागतम्* 🍁
नमः सर्वेभ्यः,
नूतनसम्भाषणशिबिरार्थिनां कृते विशेष सूचना
मार्च मासस्य 14 दिनाङ्कतः 31 दिनाङ्कपर्यन्तं अभ्यासकक्ष्या चाल्यते।
समयः -- सायं 7pm-7.40pm
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7286226080
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🍀 प्रतिदिनं संस्कृतम् 🍀
नमः सर्वेभ्यः
प्रतिदिनं वयं मिलित्वा लकारपठनं करिष्यामः
लट् , लोट्, लङ्,विधिलिँङ् लकाराः
समयः - 9.30-10.10. PM (भारतीय समयानुसारम् ) केवलं 40 निमेषाः
सोमवासरतः शुक्रवासरपर्यन्तम्
कक्ष्या मार्च मासस्य 16 दिनाङ्कतः आरभते
https://meet.google.com/dck-rnvy-hhn
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BVGch10vs18
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.18]
🍃
♦️vistareNaatmano yogaM vibhuutiM cha janaardana|
bhuuyaH kathaya tRRiptirhi shrRRiNvato naasti me'mRRitam10.18
⚜O Lord, explain to me again in detail, Your yogic power and glory; because, I am not satiated by hearing Your nectar-like words. (10.18)
⚜हे जनार्दन अपनी योग शक्ति और विभूति को पुन विस्तारपूर्वक कहिए क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मुझे तृप्ति नहीं होती।।10.18।।
#geeta
विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन।
भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्
।।10.18।।♦️vistareNaatmano yogaM vibhuutiM cha janaardana|
bhuuyaH kathaya tRRiptirhi shrRRiNvato naasti me'mRRitam
⚜O Lord, explain to me again in detail, Your yogic power and glory; because, I am not satiated by hearing Your nectar-like words. (10.18)
⚜हे जनार्दन अपनी योग शक्ति और विभूति को पुन विस्तारपूर्वक कहिए क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मुझे तृप्ति नहीं होती।।10.18।।
#geeta
BVGch10vs19
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.19]
🍃
♦️shrii bhagavaanuvaacha
hanta te kathayiShyaami divyaa hyaatmavibhuutayaH|
praadhaanyataH kurushreShTha naastyanto vistarasya me10.19
⚜The Supreme Lord said:
O Arjuna, now I shall explain to you My prominent divine manifestations, because My manifestations are endless. (10.19)
⚜श्रीभगवान् ने कहा --
हन्त अब मैं तुम्हें अपनी दिव्य विभूतियों को प्रधानता से कहूँगा। हे कुरुश्रेष्ठ मेरे विस्तार का अन्त नहीं है।।10.19।।
#geeta
श्री भगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे
।।10.19।।♦️shrii bhagavaanuvaacha
hanta te kathayiShyaami divyaa hyaatmavibhuutayaH|
praadhaanyataH kurushreShTha naastyanto vistarasya me
⚜The Supreme Lord said:
O Arjuna, now I shall explain to you My prominent divine manifestations, because My manifestations are endless. (10.19)
⚜श्रीभगवान् ने कहा --
हन्त अब मैं तुम्हें अपनी दिव्य विभूतियों को प्रधानता से कहूँगा। हे कुरुश्रेष्ठ मेरे विस्तार का अन्त नहीं है।।10.19।।
#geeta
अग्ने॒ नय॑ सु॒पथा॑ रा॒ये अ॒स्मान्।
Hindi Translation:
हे अग्नि, सभी प्रकार के ज्ञान को जानकर, हमें अच्छे मार्ग से धन की ओर ले चलो।
English Translation:
O Agni, knowing all kinds of knowledge, lead us to wealth in good ways.
Source:
(bṛhadāraṇyaka-upaniṣad 5.15.1) (īśa-upaniṣad 18) (ṛgvedaḥ 1.189.1) (yajurvedaḥ 5.36)
सर्वेभ्य: होलिका पर्वण्: हार्दिक्य शुभकामना:।
आप सभी को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
Hindi Translation:
हे अग्नि, सभी प्रकार के ज्ञान को जानकर, हमें अच्छे मार्ग से धन की ओर ले चलो।
English Translation:
O Agni, knowing all kinds of knowledge, lead us to wealth in good ways.
Source:
(bṛhadāraṇyaka-upaniṣad 5.15.1) (īśa-upaniṣad 18) (ṛgvedaḥ 1.189.1) (yajurvedaḥ 5.36)
सर्वेभ्य: होलिका पर्वण्: हार्दिक्य शुभकामना:।
आप सभी को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅ 🚩तिथि - पूर्णिमा 12:47 पी. एम. तक ततपश्चात प्रतिपदा
⛅ दिनांक 18 मार्च 2022
⛅ दिन - शुक्रवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसंत
⛅ मास - फाल्गुन
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी 12:18 ए. एम तक,मार्च 19 तपश्चात हस्त
⛅ योग - गण्ड 11:15 पी. एम तक तत्पश्चात वृद्धि
⛅ राहुकाल -11:17 ए.एम से 12:48 पी.एम. तक
⛅ सूर्योदय - 06:46 ए. एम.
⛅ सूर्यास्त - 06:50 पी.एम
⛅ चन्द्रोदय - 07:01 पी.एम.
⛅ दिशाशूल - पश्चिम
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅ 🚩तिथि - पूर्णिमा 12:47 पी. एम. तक ततपश्चात प्रतिपदा
⛅ दिनांक 18 मार्च 2022
⛅ दिन - शुक्रवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसंत
⛅ मास - फाल्गुन
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी 12:18 ए. एम तक,मार्च 19 तपश्चात हस्त
⛅ योग - गण्ड 11:15 पी. एम तक तत्पश्चात वृद्धि
⛅ राहुकाल -11:17 ए.एम से 12:48 पी.एम. तक
⛅ सूर्योदय - 06:46 ए. एम.
⛅ सूर्यास्त - 06:50 पी.एम
⛅ चन्द्रोदय - 07:01 पी.एम.
⛅ दिशाशूल - पश्चिम
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform
https://youtu.be/Hp6Fe0FvgvM
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
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YouTube
वार्ता: संस्कृत समाचार बुलेटिन
चिन्ता चिता समानास्ति बिन्दुमात्रविशेषतः।
सजीवन्दहते चिन्ता निर्जीवन्दहते चिता।।
संस्कृतार्थः -
"चिन्ता" "चिता" शब्दयोः मध्ये बिन्दुमात्रः भेदः अस्ति।
परन्तु तयोः कार्यं पूर्णतः भिन्नम् अस्ति, चिता तु मृतं शरीरम् एव दहति किन्तु चिन्ता जीवन्तं मनुष्यं दहति।
#Subhashitam
सजीवन्दहते चिन्ता निर्जीवन्दहते चिता।।
संस्कृतार्थः -
"चिन्ता" "चिता" शब्दयोः मध्ये बिन्दुमात्रः भेदः अस्ति।
परन्तु तयोः कार्यं पूर्णतः भिन्नम् अस्ति, चिता तु मृतं शरीरम् एव दहति किन्तु चिन्ता जीवन्तं मनुष्यं दहति।
#Subhashitam