संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

आत्मा तु सततं प्राप्तोऽप्यप्राप्तवदविद्यया।
तन्नाशे प्राप्तवद्भाति स्वकण्ठाभरणं यथा।।44।।

44. Atman is an ever-present Reality. Yet, because of ignorance it is not realised. On the destruction of ignorance Atman is realised. It is like the missing ornament of one’s neck.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 44:

आत्म-बोध के 44th श्लोक में आचार्यश्री हमें एक प्रचलित प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं। प्रश्न है - कि, महाराज हमने इतनी साधना करि, इतनी पढ़ाई करी लेकिन अभी तक हमें आत्मा की प्राप्ति नहीं हुई है, कब होगी? ऐसे लोगों को आचार्य कहते है की आत्मा की प्राप्ति किसी दिव्य अज्ञात तत्व की प्राप्ति नहीं होती है। आत्मा तो मैं को बोलते हैं और वो तो प्राप्त ही है। समस्या तो अपने आप को ठीक से न जानने की है। न जानना ही अज्ञान ही - और अज्ञान के दो रूप होते हैं - न जानना और गलत जानना। वेदान्त शास्त्र इन्ही दोनों को दूर कर देते हैं और उसके बाद हमें मनो प्राप्त हो जाती है - जैसे गले में पड़ा हुआ माला।

#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : "होली" उत्सवः
दिनाङ्कः : 17th March 2022,
गुरुवासरः

Please Join the voicechat on time.

😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (कथं भवतां स्थाने एतस्याः आचरणं भवति, कश्चन अनुभवः अस्ति,का पौराणिकी कथा अस्ति, कः संदेशः प्राप्यते। ) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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BVGch10vs16
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.16]
🍃वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि
।।10.16।।

♦️vaktumarhasyasheSheNa divyaa hyaatmavibhuutayaH|
yaabhirvibhuutibhirlokaanimaaMstvaM vyaapya tiShThasi10.16

(Therefore), You alone are able to fully describe Your own divine glories, the manifestations, by which You exist pervading all the universe. (10.16)

आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को अशेषत कहने के लिए योग्य हैं जिन विभूतियों के द्वारा इन समस्त लोकों को आप व्याप्त करके स्थित हैं।।10.16।।

#geeta
BVGch10vs17
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.17]
🍃कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया
।।10.17।।

♦️kathaM vidyaamahaM yogiMstvaaM sadaa parichintayan|
keShu keShu cha bhaaveShu chintyo'si bhagavanmayaa10.17

How may I know You, O Lord, by constant contemplation? In what form (of manifestation) are You to be thought of by me, O Lord? (10.17)

हे योगेश्वर मैं किस प्रकार निरन्तर चिन्तन करता हुआ आपको जानूँ? और हे भगवन् आप किनकिन भावों में मेरे द्वारा चिन्तन करने योग्य हैं।।10.17।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - चतुर्दशी 01:29 पी. एम. तक ततपश्चात पूर्णिमा

⛅️ दिनांक 17 मार्च 2022
⛅️ दिन - गुरुवार
⛅️ शक संवत - 1943
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - वसंत
⛅️ मास - फाल्गुन
⛅️ पक्ष - शुक्ल
⛅️ नक्षत्र - पूर्वाफाल्गुनी 12:34 ए. एम तक,मार्च 18 तपश्चात उत्तराफाल्गुनी
⛅️ योग - शूल 01:09 ए. एम मार्च 18 तत्पश्चात गण्ड
⛅️ राहुकाल -2:18 पी.एम से 03:49 पी.एम. तक
⛅️ सर्योदय - 06:47 ए. एम.
⛅️ सर्यास्त - 06:49 पी.एम
⛅️ चन्द्रोदय - 06:04 पी.एम.
⛅️ दिशाशूल - दक्षिण
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कालावधिः : 45 निमेषाः
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विषयः : "होली" उत्सवः
दिनाङ्कः : 17th March 2022,
गुरुवासरः

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"न हि वैरेण वैराणि, शाम्यन्तीह कदाचन।
अवैरेण तु शाम्यन्ति, एष धर्मः सनातनः।।"

अर्थात - "शत्रुता कभी भी शत्रुता से शांत नहीं होती । वह प्रेमभाव से ही शांत होती है । यही सत्य और शाश्वत सनातन धर्म है ।"

संस्कृतार्थः -
शत्रुभावस्य नाशः कदापि शत्रुभावेन न भवति अपितु प्रेमणः भावेन एव तस्य नाशः भवति, एषः एव सनातनः धर्मः वर्तते।

#Subhashitam
हनुमान् पर्वतात् रामलक्ष्मणौ _______।
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4%
स्तः
22%
अपश्यताम्
59%
अपश्यत्
6%
अपश्यतम्
9%
अदर्शताम्
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
आत्माऽपराधवृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम्। दारिद्र्यरोगदुःखानि बन्धनव्यसनानि च।। = दरिद्रता, रोग, कष्ट, दुःख, बन्धन और आपत्तियां ये सब मनुष्य के अपने ही किए पापरूप वृक्ष के फल हैं। यद् व्यङ्गाः कुष्ठिनश्चान्धाः पङ्गवश्च दरिद्रिणः। पूर्वोपार्जितपापस्य फलमश्नाति…
श्चुत्व सन्धिः

{(स्तोः श्चुना श्चुः) सकार या तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) से पहले या बाद में शकार या चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) कोई भी हो तो सकार और तवर्ग को क्रमशः शकार और चवर्ग हो जाता है। (अर्थात् ‘स्’ को ‘श्’, ‘त्’ को ‘च्’, ‘थ्’ को ‘छ्’, ‘द्’ को ‘ज्’, ‘ध्’ को ‘झ्’ और ‘न्’ को ‘ञ्’ हो जाता है।)}

श्/तवर्ग + स्/तवर्ग अथवा स्/तवर्ग + श्/चवर्ग है तो स् = श् तथा तवर्ग = चवर्ग।

रामस् + च = रामश् च = रामश्च।
सत् + चित् = सच् चित् = सच्चित्।
यद् + ज्योतिः = यज् + ज्योतिः = यज्ज्योतिः।
याच् + ना = याच् ञा = याच्ञा

यद् + ज्योतिर् = यज्ज्योतिर्।

यज्ज्योतिरन्तरमृतम्प्रजासु तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु।
= जो ज्योतिस्वरूप शरीर के अन्दर विद्यमान, उत्पन्न हुए समस्त पदार्थों में अविनाशी है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्पवाला होवे।

तत् + चक्षुर् = तच्चक्षुर्;

उत् + चरत् = उच्चरत्।

तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्।
= वह सबका मार्गदर्शक, देवों का हितकारी, शुद्धस्वरूप सामने उपस्थित है।

सत् + चित् = सच्चित्।

ईश्वरः सच्चिदानन्दस्वरूपोऽस्ति
= ईश्वर सत्, चित् व आनन्दस्वरूप है।

कस् + चिद् = कश्चिद्।

मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः।।
= हजारों में कोई एकाद योग सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है। यत्न करनेवालों में कोई एकाद ही मुझे यथार्थरूप में जान पाता है।

योगात् + चलितमानसः = योगाच्चलितमानसः।

अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति।।
= हे कृष्ण ! श्रद्धायुक्त हो योगमार्ग पर चलनेवाले साधक का मन उसका यत्न पूरा न होने के कारण योग से विचलित हो गया है, ऐसा साधक योगसिद्धियों को प्राप्त न करके किस गति को प्राप्त करता है ?

यत् + चन्द्रमसि = यच्चन्द्रमसि;
यत् + चाग्नौ = यच्चाग्नौ।

यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्।।
= सूर्य में विद्यमान तेज जो सकल जगत को प्रकाशित करता है, और जो चन्द्रमा तथा अग्नि में विद्यमान है, वह मेरा ही तेज है ऐसा जान।

कस् + चिद् = कश्चिद्।

न हि कल्याणकृत्कश्चिद् दुर्गतिं तात गच्छति।
= हे तात ! कल्याण करनेवाला कभी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।

#vakyabhyas