संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
4.6K subscribers
3.07K photos
285 videos
307 files
5.82K links
Daily dose of Sanskrit.

Network
https://t.me/samvadah/11287

Linked group @samskrta_group
News and magazines @ramdootah
Super group @Ask_sanskrit
Download Telegram
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
(प्रभृति, आरभ्य, बहिः, ऊर्ध्वम्, अनन्तरम् के योग में भी पञ्चमी विभक्ति होती है।) इतः प्रभृति नगर पर्यन्तं वृष्टो देवः = यहां से लेकर शहर तक वर्षा हुई। हिमालयात् प्रभृति रामेश्वर पर्यन्तं भारतवर्षं वर्तते = हिमालय से लेकर रामेश्वर तक भारतवर्ष है।…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (२२) षष्ठी विभक्ति (१) + श्चुत्व सन्धिः

(सम्बन्ध का बोध कराने के लिए षष्ठी विभक्ति होती है।)

इदं रामस्य पुस्तकमस्ति
= यह राम की पुस्तक है।

एषः सीतायाः सेवकोऽस्ति
= यह सीतायाः का सेवक है।

तक्षकः तक्षण्या हस्तस्याऽङ्गुलीः अप्यतक्षत्
= बढ़ई ने रंदे से हाथ की ऊंगलियां भी छील दीं।

ग्रामीणाः बालाः ग्रामस्य विद्यालये पठितुं नेच्छन्ति
= गांव के बच्चे गांव के विद्यालय में पढ़ना नहीं चाहते हैं।

किं रामस्य पिता दशरथो रामं वनं प्रैषयत् ?
= क्या राम के पिता दशरथ ने राम को वन में भेजा था ?

कर्मकाण्डे विविधानां यागानां षोडश ऋत्विजः भवन्ति
= कर्मकाण्ड में विविध यागों के सोलह ऋत्विग् होते हैं।

अतिप्रयोगात् घटस्य तले छिद्रं जातम्
= अधिक प्रयोग के कारण घड़े के तले में छेद हो गया है।

लब्धप्रतिष्ठाः पुष्करस्य पयोऽपूपाः
= पुष्कर के दूध के मालपूए विख्यात हैं।

घृतस्य घटः चिक्कणोऽस्ति, सम्यक् मार्जय
= घी का घड़ा चिकना है ठीक से साफ कर।

रामस्य सेतुरिदानीं नष्टप्रायः संजातोऽस्ति
= राम के द्वारा निर्मित पुल अब प्रायः नष्ट-भ्रष्ट हो गया है।

चन्दनचौराः चन्दनस्य वनं प्राविशत्
= चन्दनचोर चन्दन के वन में घुस गए।

वने रावणो रामस्य सीतां अपजहार
= वन में रावण ने राम की सीता का अपहरण किया।

अरबदेशस्य खर्जुराणि संसारे प्रसिद्धानि सन्ति
= अरब देश के खजूर संसारभर में प्रसिद्ध हैं।

रामोजीरावस्य चलचित्रनगरं जगति प्रसिद्धमस्ति
= रामोजीराव की फिल्मसिटि जगप्रसिद्ध है।

रे मूर्खा ! सेटकस्य स्थाल्यां सेटकतण्डुलान् पचति
= अरे मूर्ख स्त्री ! एक किलो की पतीली में एक किलो चावल पका रही है।

बकस्य धौर्त्यं ‘बकभक्ति’ इति नाम्ना जगति प्रसिद्धमस्ति
= बगुले की धूर्तता ‘बगुलाभक्ति’ नाम से जगविख्यात है।

एकडद्वयस्य क्षेत्रे गुरुकुलाय भवनं निर्मातुमिच्छति
= दो एकड़ के खेत में गुरुकुल के लिए भवन बनाना चाहता है।

रथे नियुक्तं विवाहस्य घोटकं चालयितुं चालकः वाद्यं वादयति
= रथ में जोते हुए विवाह के घोड़े को चलाने के लिए चालक बाजा बजाता है।

कोकिलानां स्वरो रूपं स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम्। विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम्।।
= कोयल की शोभा स्वर के कारण से है, स्त्रियों की शोभा पतिव्रत धर्म से है, कुरूपों की शोभा विद्या से है और तपस्वी लोग क्षमा से शोभायमान होते हैं।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

एवमात्मारणौ ध्यानमथने सततं कृते।
उदितावगतिज्वाला सर्वाज्ञानेन्धनं दहेत्।।42।।

42. When this the lower and the higher aspects of the Self are well churned together, the fire of knowledge is born from it, which in its mighty conflagration shall burn down all the fuel of ignorance in us.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 42:

आत्म-बोध के 42nd श्लोक में आचार्यश्री हमें निदिध्यासन रूपी ध्यान की प्रक्रिया को एक दृष्टांत से समझते हैं। वो दृष्टांत है अरणी का। किसी यज्ञ में अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए प्राचीन तरीका होता है - दो लकड़ियों के घर्षण और मंथन का। लकड़ियों के घर्षण से अग्नि प्रज्वलित होती है जिससे यज्ञ आदि कार्य संपन्न किये जाते हैं। दो लकड़ियां ऊपर और नीचे होती है और एक मथानी बीच में खड़ी होती है - जिसे किसी रस्सी आदि से अथवा हाथ से मथा जाता है। इसमें नीचे की लकड़ी को जीव भाव समझें और ऊपर को अपना ब्रह्म-स्वरूपता का लक्ष्य। बीच की खड़ी लकड़ी को वेदांत ज्ञान समझें। मंथन से जो ज्ञान रुपी अग्नि निकलती है वो हमारे अज्ञान रुपी संसार के ईंधन को जला देती है।

#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः :किमर्थं संस्कृतम् वैज्ञानिकी भाषा वर्तते।
(Why samskrit is a scientific language)
दिनाङ्कः : 15th March 2022,
मङ्गलवासरः

Please Join the voicechat on time.

😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (संस्कृतस्य व्याकरणे,उच्चारणे ,लेखने,वाक्यनिर्माणे, शब्दनिर्माणे इत्यादिषु विषयेषु किं वैज्ञानिकम् अस्ति। ) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
BVGch10vs12
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.12]
🍃अर्जुन उवाच
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्
।।10.12।।

♦️arjuna uvaacha
paraM brahma paraM dhaama pavitraM paramaM bhavaan|
puruShaM shaashvataM divyamaadidevamajaM vibhum10.12

Arjuna said: 
You are the Supreme Brahman, the supreme abode, the supreme purifier, the eternal divine spirit, the primal God, the unborn, and the omnipresent. (10.12)

अर्जुन ने कहा --
आप परम ब्रह्म परम धाम और परम पवित्र हंै सनातन दिव्य पुरुष देवों के भी आदि देव जन्म रहित और सर्वव्यापी हैं।।10.12।।

#geeta
BVGch10vs13
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.13]
🍃आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे
।।10.13।।

♦️aahustvaamRRiShayaH sarve devarShirnaaradastathaa|
asito devalo vyaasaH svayaM chaiva braviiShi me10.13

All sages have thus acclaimed You. The divine sage Narada, Asita, Devala, Vyaasa, and You Yourself tell me. (10.13)

ऐसा आपको समस्त ऋषिजन कहते हैं वैसे ही देवर्षि नारद? असित? देवल ऋषि तथा व्यास और स्वयं आप भी मेरे प्रति कहते हैं।।10.13।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - द्वादशी 01:12 पी. एम. तक ततपश्चात त्रयोदशी

दिनांक 15 मार्च 2022
दिन - मंगलवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - फाल्गुन
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - अश्लेषा 11:33 पी. एम तक तपश्चात मघा
योग - सुकर्मा 03:42 ए. एम मार्च 16 तत्पश्चात धृति
राहुकाल -3:49 पी.एम से 05:19 पी.एम. तक
सूर्योदय - 06:49 ए. एम.
सूर्यास्त - 06:49 पी.एम
चन्द्रोदय - 04:10 पी.एम.
चन्द्रोस्त - 5:41 ए.एम मार्च 16
दिशाशूल - उत्तर
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः :किमर्थं संस्कृतम् वैज्ञानिकी भाषा वर्तते।
(Why samskrit is a scientific language)
दिनाङ्कः : 15th March 2022,
मङ्गलवासरः

Please Join the voicechat on time.

😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (संस्कृतस्य व्याकरणे,उच्चारणे ,लेखने,वाक्यनिर्माणे, शब्दनिर्माणे इत्यादिषु विषयेषु किं वैज्ञानिकम् अस्ति। ) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
Live stream scheduled for
पश्यतोsप्यस्य लोकस्य मरणं पुरतः स्थितम्।
अमरस्येव चरितम् अत्याश्चर्यं सुरोत्तम।।

हे देवोत्तम! संसार मे लोग यह महसूस करते हैं कि उनके सामने उनकी मृत्यु सदैव खड़ी है, फिर भी मनुष्य स्वयं ही मृत्युरहित व्यक्ति के समान ही आचरण करता है - यह भी बड़े आश्चर्य की बात है।

संस्कृतार्थः -
अस्मिन् संसारे महदाश्चर्यकरी वार्ता अस्ति, यत् जनाः अन्येषां मृत्युं पश्यन्ति तथा जानन्ति अपि यत् अहम् अपि मरिष्यामि चेदपि ते तथा व्यवहरन्ति यथा ते अमराः स्युः।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ : (२२) षष्ठी विभक्ति (१) + श्चुत्व सन्धिः (सम्बन्ध का बोध कराने के लिए षष्ठी विभक्ति होती है।) इदं रामस्य पुस्तकमस्ति = यह राम की पुस्तक है। एषः सीतायाः सेवकोऽस्ति = यह सीतायाः का सेवक है। …
यस्य पुत्रो न वै विद्वान्न शूरो न च धार्मिकः। अप्रकाशं कुलं तस्य नष्टचन्द्रेव शर्वरी।।
= जिसका पुत्र न विद्वान् हो, न शूरवीर हो और न धार्मिक हो उसका कुल उसी प्रकार प्रकाशरहित (प्रसिद्धिरहित) रहता है जैसे चन्द्रमा से रहित रात्रि।

संसारतापदग्धानां त्रयो विश्रान्तिहेतवः।
अपत्यं च कलत्रं च सतां संगतिरेव च।।
= संसार के तापों (कष्टों) से तप्त (त्रस्त) व्यक्ति के लिए शान्ति प्राप्ति के तीन ही साधन हैं- पुत्र, पत्नी और सज्जनों की संगति।

अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शून्यास्त्वबान्धवाः। मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता।।
= पुत्र रहित मनुष्य का घर सूना होता है। बन्धु-बान्धव से रहित मनुष्य की चारों दिशाएं सूनी होती हैं। मूर्ख का हृदय सूना होता है और दरिद्र व्यक्ति का तो घर दिशादि सब कुछ सूना होता है।

अग्निर्देवो द्विजातीनां मुनीनां हृदि देवतम्।
प्रतिमा स्वल्पबुद्धीनां सर्वत्र समदर्शिनः।।
= द्विजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) का देवता अग्निहोत्र अर्थात् यज्ञ है। मुनियों का देवता हृदय में रहता है। मूर्खों का देवता प्रतिमा अर्थात् मूर्ति है और समदर्शियों के लिए सर्वत्र देवता विराजमान है।

मूर्खाणां पण्डिता द्वेष्या अधनानां महाधनाः। वाराऽङ्गनाः कुलस्त्रीणां दुर्भगानां च सुभगाः।।
= मूर्खों के शत्रु विद्वान् हैं, निर्धन धनिकों से शत्रुता रखते हैं। कुलीन स्त्रियां वेश्या से द्वेष करती हैं और विधवाएं सुहागिन नारियों से द्वेष करती हैं।

सुखस्य मूलं धर्मः। धर्मस्य मूलमर्थः।।
= सुख का मूल (कारण) धर्म है और धर्म का मूल (आधार) अर्थ (धन) है।

मम माता मम पिता ममेयं गृहिणी गृहम्।
एतदन्यं ममत्वं यत् स मोह इति कीर्त्तितः।।
= मेरी माता, मेरे पिता, मेरी पत्नी, मेरा घर.. यह और अन्य सब प्रकार के ममत्व (आसक्ति) को मोह कहते हैं।

विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च।
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च।।
= प्रवास (यात्रा) में विद्या मनुष्य का मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है। रोगी का मित्र औषध है और मरे हुए (पतित व्यक्ति) का मित्र धर्म है।

उद्यन्त्सूर्य इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।
= जैसे उदय होता हुआ सूर्य सोए हुए आलसियों के तेज को हर लेता है, उसी प्रकार मैं (वीर) शत्रुओं के तेज को खींच लेता हूं।

सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तचेतसाम्। न च तद् धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावताम्।।
= सन्तोषरूपी अमृत से तृप्त और शान्त चित्तवाले मनुष्य को जो सुख-शान्ति मिलती है, वह धन के लोभ से इधर-उधर भागनेवाले मनुष्य को नहीं मिल सकती।

यस्याऽर्थास्तस्य मित्राणि यस्याऽर्र्थातस्य बान्धवाः। यस्याऽर्थाः स पुमांल्लोके यस्याऽर्थाः स च जीवति।।
= संसार में जिसके पास धन है उसी के सब मित्र होते हैं, उसी के सब बन्धु-बान्धव होते हैं। वही लोक में श्रेष्ठ पुरुष गिना जाता है और वही सुख से जीता है।

वाचं शौचं च मनसः शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
सर्वभूते दया शौचं एतच्छौचं परार्थिनाम्।।
= मन और वाणी की पवित्रता, इन्द्रियों का संयम, प्राणिमात्र पर दया और धन की पवित्रता यही परोपकारियों (मुमुक्षुओं) की शुद्धि (पवित्रता) मानी गयी है।

सुखार्थी च त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी च त्यजेत्सुखम्। न विद्यासुखयोः सन्धिस्तेजस्तिमिरयोरिव।।
= सुखाभिलाषी को विद्या की आशा छोड़ देनी चाहिए और विद्यार्थी को सुखप्राप्ति की अभिलाषा छोड़ देनी चाहिए, क्योंकि विद्या और सुख का मेल ऐसे ही असम्भव है जैसे प्रकाश और अन्धकार का मिलन।

लुब्धानां याचकः शत्रुर्मूर्खाणां बोधकः रिपुः। जारस्त्रीणां पतिः शत्रुश्चोराणां चन्द्रमा रिपुः।।
= मांगनेवाला (याचक) लोभियों का शत्रु होता है। सदुपदेशक मूर्खों का शत्रु होता है। पति व्यभिचारिणी स्त्रियों का शत्रु होता है और चोरों के लिए शत्रु चन्द्रमा हुआ करता है।

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् ? लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ?
= बुद्धिहीन का कल्याण वेदादि शास्त्र उसी प्रकार नहीं कर सकते, जैसे नेत्रविहीन के लिए दर्पण बेकार होता है।

#vakyabhyas