Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform
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VAARTA : PM Modi to interact with District Magistrates of various districts
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
उच्छिष्टं पात्रं मृत्तोयैः शुद्ध्यति = जूठा बरतन मिट्टी व पानी से साफ होता है। धातवः अग्निना शुद्ध्यन्ति = धातुएं अग्नि से शुद्ध होती है। प्राणायामैः दहेत् दोषान् = प्राणायाम से दोषों को भस्म कर देवें। प्राणायामेन क्षीयते प्रकाशावरणम् = प्राणायाम से अज्ञान…
क्षमया किं न साध्यते ? = क्षमा से क्या प्राप्त नहीं होता ?
वाचा वदामि मधुमत् = वाणी से मैं मीठा बोलूं।
स्वेन क्रतुना संवदेत = (व्यक्ति) अपने कर्म से बोले।
क्रतुना ब्रवीतु = कर्म (आचरण) से बोलो।
विमानेन दिवं विगाहते = विमान से आकाश में घूम रहा है।
यत्नेन सिद्ध्यन्ति कामाः = पुरुषार्थ से कामनाएं पूर्ण होती हैं।
धर्मेण एधते नित्यम् = धर्म से (व्यक्ति) नित्य ही वृद्धि को प्राप्त होता है।
हविषा हूताशनो वर्धते = हवी से अग्नि बढ़ती है।
पुरुषार्थेन कार्याणि सिद्ध्यन्ति, न मनोरथैः = मेहनत से कार्यों की सिद्धि होती है न कि ख्याली पुलाव पकाने से।
सप्तभिः अश्वैः सविता संचरति सदा = सूर्य सदा सात घोड़ों से चलता है।
धनलोलुपः जलेन दुग्धं वर्धयति = धन का लोभी पानी से दूध बढ़ा रहा है।
अन्नेन भूतानि जीवन्ति = अन्न से प्राणी जीते हैं।
प्राणैः प्राणिनः प्राणन्ति = प्राणों से प्राणी जीते हैं।
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम = हम कानों से कल्याणकारी बातें सुनें।
भद्रं पश्येम अक्षभिः = आंखों से हम भला देखें।
माम् अद्य मेधया मेधाविनं कुरु = मुझे आज ही मेधा बुद्धि से मेधावी करो।
अस्मान् प्रजया, पशुभिः, ब्रह्मवर्चसेन, अन्नाद्येन समेधय = हमें प्रजा से, पशु (धन-सम्पत्ति) से, ब्रह्मतेज से, अन्न (भोग्य पदार्थों) से तथा अद्य (भोग सामर्थ्य) से अच्छी तरह बढ़ा।
आयुः यज्ञेन कल्पन्ताम् = आयु को यज्ञ से सम्पादित करो।
दीपेन दीपं दीप्येत् = दीपक से दीपक जलाना चाहिए।
यण् सन्धिः
इको यण् अचि। इक् = इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, लृ, के बाद अच् = अ आ… आदि स्वर हो तो इ एवं ई को य्, उ एवं ऊ को व्, ऋ तथा ॠ को र् तथा लृ को ल् हो जाता है।
इ / ई + अच् (इ, ई को छोड़ कर) = इ / ई को य्
उ / ऊ + अच् (उ, ऊ को छोड़ कर) = उ / ऊ को व्
ऋ / ॠ + अच् (ऋ, ॠ को छोड़ कर) = ऋ / ॠ को र
लृ + अच् = लृ को ल्
दधि + अशान = दध्यशान।
तिष्ठतु दध्यशान त्वं शाकेन = दही रहने दे, तू शाक से खा ले।
दधि + ओदनम् = दध्योदनम्।
दध्योदनं रुच्या खादति बालः = बालक दही-चावल रुची से खाता है।
अभि + आवहति = अभ्यावहति।
अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता = सुभाषित वाणी विविध प्रकार के कल्याण / सुखों को प्राप्त कराती है।
हि + एव = ह्येव।
आत्मा ह्येवात्मनो बन्धुः = आत्मा का भाई आत्मा खुद ही है।
नदी + अस्मान् = नद्यस्मान्।
नद्यस्मान् जलेन तृप्यति = नदी हमको जल से तृप्त करती है।
इति + उवाच = इत्युवाच।
वनं गमिष्यामि इत्युवाच रामः प्रहसन् = राम ने हंसते हुए वन में जाऊंगा ऐसा कहा।
अन्तेवासिनी + ऋग्वेदम् = अन्तेवासिन्यृग्वेदम्।
अन्तेवासिन्यृग्वेदं रटति = छात्रा ऋग्वेद रट रही है।
अन्तेषु + अपि = अन्तेष्वपि।
अन्तेष्वपि जातो वृत्तेन विशेष्यते = निम्नकुल में उत्पन्न होने पर भी आचरण से विशेष हो जाता है।
कटु + अपि = कट्वपि।
कट्वपि भेषजं गदहारी = कड़वी होने पर भी दवाई रोग दूर करनेवाली होती है।
स्वादु + औषधम् = स्वाद्वौषधम्।
कदाचित् स्वाद्वौषधमपि गदहारी भवति = कभी कभी मीठी दवाई भी रोगों को दूर करनेवाली होती है।
पातु एतम् + पात्वेतम्।
पात्वेतम् आत्मानं दुर्गुणैः = इस आत्मा की दुर्गुणों से रक्षा करो।
साधु + आलेखयति = साध्वालेखयति।
चित्रकथः रामं साध्वालेखयति = उत्तम कथाकार राम का अच्छा चित्रण करता है।
भर्त्तृ + एकमना = भर्त्रेकमना।
भर्त्रेकमना भार्या भवेत् = पति के समान मन वाली पत्नी होनी चाहिए।
पितृ + अर्थम् = पित्रर्थम्।
पित्रर्थं पुत्रः पिष्टान्नं पैषयत् = पिता के लिए पुत्र ने पंजीरी भेजी।
लृ + इति = लिति।
वत्स ! लित्यालेखयत्वत्र = बेटे ! ‘लृ’ ऐसा यहां लिखो।
#vakyabhyas
वाचा वदामि मधुमत् = वाणी से मैं मीठा बोलूं।
स्वेन क्रतुना संवदेत = (व्यक्ति) अपने कर्म से बोले।
क्रतुना ब्रवीतु = कर्म (आचरण) से बोलो।
विमानेन दिवं विगाहते = विमान से आकाश में घूम रहा है।
यत्नेन सिद्ध्यन्ति कामाः = पुरुषार्थ से कामनाएं पूर्ण होती हैं।
धर्मेण एधते नित्यम् = धर्म से (व्यक्ति) नित्य ही वृद्धि को प्राप्त होता है।
हविषा हूताशनो वर्धते = हवी से अग्नि बढ़ती है।
पुरुषार्थेन कार्याणि सिद्ध्यन्ति, न मनोरथैः = मेहनत से कार्यों की सिद्धि होती है न कि ख्याली पुलाव पकाने से।
सप्तभिः अश्वैः सविता संचरति सदा = सूर्य सदा सात घोड़ों से चलता है।
धनलोलुपः जलेन दुग्धं वर्धयति = धन का लोभी पानी से दूध बढ़ा रहा है।
अन्नेन भूतानि जीवन्ति = अन्न से प्राणी जीते हैं।
प्राणैः प्राणिनः प्राणन्ति = प्राणों से प्राणी जीते हैं।
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम = हम कानों से कल्याणकारी बातें सुनें।
भद्रं पश्येम अक्षभिः = आंखों से हम भला देखें।
माम् अद्य मेधया मेधाविनं कुरु = मुझे आज ही मेधा बुद्धि से मेधावी करो।
अस्मान् प्रजया, पशुभिः, ब्रह्मवर्चसेन, अन्नाद्येन समेधय = हमें प्रजा से, पशु (धन-सम्पत्ति) से, ब्रह्मतेज से, अन्न (भोग्य पदार्थों) से तथा अद्य (भोग सामर्थ्य) से अच्छी तरह बढ़ा।
आयुः यज्ञेन कल्पन्ताम् = आयु को यज्ञ से सम्पादित करो।
दीपेन दीपं दीप्येत् = दीपक से दीपक जलाना चाहिए।
यण् सन्धिः
इको यण् अचि। इक् = इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, लृ, के बाद अच् = अ आ… आदि स्वर हो तो इ एवं ई को य्, उ एवं ऊ को व्, ऋ तथा ॠ को र् तथा लृ को ल् हो जाता है।
इ / ई + अच् (इ, ई को छोड़ कर) = इ / ई को य्
उ / ऊ + अच् (उ, ऊ को छोड़ कर) = उ / ऊ को व्
ऋ / ॠ + अच् (ऋ, ॠ को छोड़ कर) = ऋ / ॠ को र
लृ + अच् = लृ को ल्
दधि + अशान = दध्यशान।
तिष्ठतु दध्यशान त्वं शाकेन = दही रहने दे, तू शाक से खा ले।
दधि + ओदनम् = दध्योदनम्।
दध्योदनं रुच्या खादति बालः = बालक दही-चावल रुची से खाता है।
अभि + आवहति = अभ्यावहति।
अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता = सुभाषित वाणी विविध प्रकार के कल्याण / सुखों को प्राप्त कराती है।
हि + एव = ह्येव।
आत्मा ह्येवात्मनो बन्धुः = आत्मा का भाई आत्मा खुद ही है।
नदी + अस्मान् = नद्यस्मान्।
नद्यस्मान् जलेन तृप्यति = नदी हमको जल से तृप्त करती है।
इति + उवाच = इत्युवाच।
वनं गमिष्यामि इत्युवाच रामः प्रहसन् = राम ने हंसते हुए वन में जाऊंगा ऐसा कहा।
अन्तेवासिनी + ऋग्वेदम् = अन्तेवासिन्यृग्वेदम्।
अन्तेवासिन्यृग्वेदं रटति = छात्रा ऋग्वेद रट रही है।
अन्तेषु + अपि = अन्तेष्वपि।
अन्तेष्वपि जातो वृत्तेन विशेष्यते = निम्नकुल में उत्पन्न होने पर भी आचरण से विशेष हो जाता है।
कटु + अपि = कट्वपि।
कट्वपि भेषजं गदहारी = कड़वी होने पर भी दवाई रोग दूर करनेवाली होती है।
स्वादु + औषधम् = स्वाद्वौषधम्।
कदाचित् स्वाद्वौषधमपि गदहारी भवति = कभी कभी मीठी दवाई भी रोगों को दूर करनेवाली होती है।
पातु एतम् + पात्वेतम्।
पात्वेतम् आत्मानं दुर्गुणैः = इस आत्मा की दुर्गुणों से रक्षा करो।
साधु + आलेखयति = साध्वालेखयति।
चित्रकथः रामं साध्वालेखयति = उत्तम कथाकार राम का अच्छा चित्रण करता है।
भर्त्तृ + एकमना = भर्त्रेकमना।
भर्त्रेकमना भार्या भवेत् = पति के समान मन वाली पत्नी होनी चाहिए।
पितृ + अर्थम् = पित्रर्थम्।
पित्रर्थं पुत्रः पिष्टान्नं पैषयत् = पिता के लिए पुत्र ने पंजीरी भेजी।
लृ + इति = लिति।
वत्स ! लित्यालेखयत्वत्र = बेटे ! ‘लृ’ ऐसा यहां लिखो।
#vakyabhyas
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)
मूलश्लोकः-89
नन्दिग्रामे जटां हित्वा भ्रातृभि: सहितोऽनघ:।
राम: सीतामनुप्राप्य राज्यं पुनरवाप्तवान्।।89।।
श्लोकान्वयः -
अनघ: राम: भ्रातृभि: सहित: नन्दिग्रामे जटां हित्वा
सीताम् अनुप्राप्य राज्यं पुन: अवाप्तवान्।।89।।
हिन्दी-अनुवाद -
निष्पाप राम अपने अनुज भरतादि के सहित नन्दिग्राम में जटा का शोधन करके
सीता को साथ बैठाकर फिर अयोध्या राज्य को प्राप्त किया जिसे पहले पिता के वचन से त्याग दिया था।।89।।
English Meaning
अनघ: sinless, राम: Rama, नन्दिग्रामे in Nandigrama, भ्रातृभि: सहित: along with his brothers,
जटाम् matted lock, हित्वा shedding, सीताम् Sita, अनुप्राप्य having regained, राज्यम् kingdom, पुन: again, अवाप्तवान् got (back).
At Nandigrama sinless Rama arrived, met his brothers. They shed their matted locks. With Sita restored he regained his kingdom.
#SankshepaRamayanam
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)
मूलश्लोकः-89
नन्दिग्रामे जटां हित्वा भ्रातृभि: सहितोऽनघ:।
राम: सीतामनुप्राप्य राज्यं पुनरवाप्तवान्।।89।।
श्लोकान्वयः -
अनघ: राम: भ्रातृभि: सहित: नन्दिग्रामे जटां हित्वा
सीताम् अनुप्राप्य राज्यं पुन: अवाप्तवान्।।89।।
हिन्दी-अनुवाद -
निष्पाप राम अपने अनुज भरतादि के सहित नन्दिग्राम में जटा का शोधन करके
सीता को साथ बैठाकर फिर अयोध्या राज्य को प्राप्त किया जिसे पहले पिता के वचन से त्याग दिया था।।89।।
English Meaning
अनघ: sinless, राम: Rama, नन्दिग्रामे in Nandigrama, भ्रातृभि: सहित: along with his brothers,
जटाम् matted lock, हित्वा shedding, सीताम् Sita, अनुप्राप्य having regained, राज्यम् kingdom, पुन: again, अवाप्तवान् got (back).
At Nandigrama sinless Rama arrived, met his brothers. They shed their matted locks. With Sita restored he regained his kingdom.
#SankshepaRamayanam
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
Duration : 30 minutes only
Time : IST 11:00 AM 🕚
Topic : Subhash chandra bose.
(सुभाषचंद्रः बोसः/पराक्रमदिवसः)
Date : 23rd January 2022,
Sunday.
Please Join the voicechat on time.
😇 Please come prepared to discuss (सुभाषचंद्रबोसस्य जीवनपरिचयं, जीवनघटनां, प्रेरकप्रसङ्गं वा वदन्तु।)in Sanskrit , If possible.
We are waiting for you.😇
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🍃
♦️j~naanaM te'haM savij~naanamidaM vakShyaamyasheShataH|
yajj~naatvaa neha bhuuyo'nyajj~naatavyamavashiShyate7.2
⚜7.2 I shall declare to thee in full this knowledge combined with realisation, after knowing which nothing more here remains to be known.
⚜।।7.2।। मैं तुम्हारे लिए विज्ञान सहित इस ज्ञान को अशेष रूप से कहूँगा जिसको जानकर यहाँ (जगत् में) फिर और कुछ जानने योग्य (ज्ञातव्य) शेष नहीं रह जाता है।।
#geeta
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते
।।7.2।। ♦️j~naanaM te'haM savij~naanamidaM vakShyaamyasheShataH|
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⚜7.2 I shall declare to thee in full this knowledge combined with realisation, after knowing which nothing more here remains to be known.
⚜।।7.2।। मैं तुम्हारे लिए विज्ञान सहित इस ज्ञान को अशेष रूप से कहूँगा जिसको जानकर यहाँ (जगत् में) फिर और कुछ जानने योग्य (ज्ञातव्य) शेष नहीं रह जाता है।।
#geeta
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🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅ 🚩तिथि - पंचमी सुबह ०९:१२ तक तत्पश्चात षष्ठी
⛅ दिनांक - २३ जनवरी २०२२
⛅ दिन - रविवार
⛅ शक संवत -१९४३
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - शिशिर
⛅ मास - माघ
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी सुबह ११:०९ तक तत्पश्चात हस्त
⛅ योग - अतिगण्ड दोपहर १२:५० तक तत्पश्चात सुकर्मा
⛅ राहुकाल - शाम ०५:०० से शाम ०६:२३ तक
⛅ सूर्योदय - ०७:१९
⛅ सूर्यास्त - १८:२१
⛅ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
🚩आज की हिंदी तिथि
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⛅ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
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♦️manuShyaaNaaM sahasreShu kash्ichadyatati siddhaye|
yatataamapi siddhaanaaM kash्ichanmaaM vetti tattvataH7.3
⚜7.3 Among thousands of men, one perchance strives for perfection; even among those successful strivers, only one perchance knows Me in essence.
⚜।।7.3।। सहस्रों मनुष्यों में कोई ही मनुष्य पूर्णत्व की सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है और उन प्रयत्नशील साधकों में भी कोई ही पुरुष मुझे तत्त्व से जानता है।।
#geeta
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्िचद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां कश्िचन्मां वेत्ति तत्त्वतः
।।7.3।। ♦️manuShyaaNaaM sahasreShu kash्ichadyatati siddhaye|
yatataamapi siddhaanaaM kash्ichanmaaM vetti tattvataH
⚜7.3 Among thousands of men, one perchance strives for perfection; even among those successful strivers, only one perchance knows Me in essence.
⚜।।7.3।। सहस्रों मनुष्यों में कोई ही मनुष्य पूर्णत्व की सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है और उन प्रयत्नशील साधकों में भी कोई ही पुरुष मुझे तत्त्व से जानता है।।
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Date : 23rd January 2022,
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VAARTA : Prime Minister Narendra Modi to unveil hologram statue of Netaji Subhash Chandra Bose
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