Man 1 :- Hey dear ! What happened to your nose ?
Man 2 :- I have to go abroad regularly for business purposes.This happened by taking sap continuously from the nose for RTPCR test to get a negative certificate on each trip.
#hasya
Man 2 :- I have to go abroad regularly for business purposes.This happened by taking sap continuously from the nose for RTPCR test to get a negative certificate on each trip.
#hasya
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)
मूलश्लोकः-86
देवताभ्यो वरं प्राप्य समुत्थाप्य च वानरान् ।
अयोध्यां प्रस्थितो राम: पुष्पकेण सुहृद्-वृत:।।86।
श्लोकान्वयः -
सुहृद्वृत: राम: देवताभ्य: वरं प्राप्य वानरान्
समुत्थाप्य च पुष्पकेण अयोध्यां प्रस्थित:।।86।।
हिन्दी-अनुवाद -
वानर आदि सुहृद्वृन्द से युक्त श्रीराम ने पहले देवताओं से प्राप्त वर के प्रभाव से युद्ध में हताहत वानरादि को
पुन: सचेत कर अपनी नगरी अयोध्या के लिए पुष्पक विमान द्वारा प्रस्थान किया।।86।।
English Meaning
राम: Rama, देवताभ्य: from devatas, वरम् boon, प्राप्य having obtained, वानरान् monkeys fallen in the battle, समुत्थाप्य च revived, सुहृद्वृत: accompanied by friends, पुष्पकेण by Pushpaka, the aerial car, अयोध्याम् Ayodhya, प्रस्थित: set out.
Having obtained a boon from the devatas (who had come to see him) Rama, revived all monkeys (fallen in the battle) and set out for Ayodhya accompanied by friends in the pushpaka (aerial car).
#SankshepaRamayanam
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)
मूलश्लोकः-86
देवताभ्यो वरं प्राप्य समुत्थाप्य च वानरान् ।
अयोध्यां प्रस्थितो राम: पुष्पकेण सुहृद्-वृत:।।86।
श्लोकान्वयः -
सुहृद्वृत: राम: देवताभ्य: वरं प्राप्य वानरान्
समुत्थाप्य च पुष्पकेण अयोध्यां प्रस्थित:।।86।।
हिन्दी-अनुवाद -
वानर आदि सुहृद्वृन्द से युक्त श्रीराम ने पहले देवताओं से प्राप्त वर के प्रभाव से युद्ध में हताहत वानरादि को
पुन: सचेत कर अपनी नगरी अयोध्या के लिए पुष्पक विमान द्वारा प्रस्थान किया।।86।।
English Meaning
राम: Rama, देवताभ्य: from devatas, वरम् boon, प्राप्य having obtained, वानरान् monkeys fallen in the battle, समुत्थाप्य च revived, सुहृद्वृत: accompanied by friends, पुष्पकेण by Pushpaka, the aerial car, अयोध्याम् Ayodhya, प्रस्थित: set out.
Having obtained a boon from the devatas (who had come to see him) Rama, revived all monkeys (fallen in the battle) and set out for Ayodhya accompanied by friends in the pushpaka (aerial car).
#SankshepaRamayanam
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
Duration : 30 minutes only
Time : IST 11:00 AM 🕚
Topic : Escape of Hindus from kashmir in 1990.
काश्मीरतः हिन्दुनां पलायनम् १९९०तमे वर्षे।
Date : 20thJanuary 2022,
Thrusday.
Please Join the voicechat on time.
😇 Please come prepared to discuss (किमर्थं हिन्दवः पलायितवन्तः, अधुना तेषां स्थितिः कीदृशी अस्ति।)in Sanskrit , If possible.
We are waiting for you.😇
Set a reminder.
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Topic : Escape of Hindus from kashmir in 1990.
काश्मीरतः हिन्दुनां पलायनम् १९९०तमे वर्षे।
Date : 20thJanuary 2022,
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🍃
♦️tatra taM buddhisaMyogaM labhate paurvadehikam|
yatate cha tato bhuuyaH saMsiddhau kurunandana6.43
⚜6.43 Thee he comes in touch with the knowledge acired in his former body and strives more than before for perfection, O Arjuna.
⚜।।6.43।। हे कुरुनन्दन वह पुरुष वहाँ पूर्व देह में प्राप्त किये गये ज्ञान से सम्पन्न होकर योगसंसिद्धि के लिए उससे भी अधिक प्रयत्न करता है।।
#geeta
तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्।
यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन
।।6.43।। ♦️tatra taM buddhisaMyogaM labhate paurvadehikam|
yatate cha tato bhuuyaH saMsiddhau kurunandana
⚜6.43 Thee he comes in touch with the knowledge acired in his former body and strives more than before for perfection, O Arjuna.
⚜।।6.43।। हे कुरुनन्दन वह पुरुष वहाँ पूर्व देह में प्राप्त किये गये ज्ञान से सम्पन्न होकर योगसंसिद्धि के लिए उससे भी अधिक प्रयत्न करता है।।
#geeta
🍃
♦️puurvaabhyaasena tenaiva hriyate hyavasho'pi saH|
jij~naasurapi yogasya shabdabrahmaativartate6.44
⚜6.44 By that very former practice he is borne on in spite of himself. Even he who merely wishes to know Yoga goes beyond the Brahmic word.
⚜।।6.44।। उसी पूर्वाभ्यास के कारण वह अवश हुआ योग की ओर आकर्षित होता है। योग का जो केवल जिज्ञासु है वह शब्दब्रह्म का अतिक्रमण करता है।।
#geeta
पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः।
जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते
।।6.44।। ♦️puurvaabhyaasena tenaiva hriyate hyavasho'pi saH|
jij~naasurapi yogasya shabdabrahmaativartate
⚜6.44 By that very former practice he is borne on in spite of himself. Even he who merely wishes to know Yoga goes beyond the Brahmic word.
⚜।।6.44।। उसी पूर्वाभ्यास के कारण वह अवश हुआ योग की ओर आकर्षित होता है। योग का जो केवल जिज्ञासु है वह शब्दब्रह्म का अतिक्रमण करता है।।
#geeta
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - द्वितीया सुबह ०८:०४ तक तत्पश्चात तृतीया
⛅️ दिनांक - २० जनवरी २०२२
⛅️ दिन - गुरुवार
⛅️ शक संवत -१९४३
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - शिशिर
⛅️ मास - माघ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - अश्लेशा सुबह ०८:२४ तक तत्पश्चात मघा
⛅️ योग - आयुष्मान् शाम ०३:४५ तक तत्पश्चात सौभाग्य
⛅️ राहुकाल - दोपहर ०२:१३ से शाम ०३:३५ तक
⛅️ सर्योदय - ०७:१९
⛅️ सर्यास्त - १८:१९
⛅️ दिशाशूल - दक्षिण दिशा में
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - द्वितीया सुबह ०८:०४ तक तत्पश्चात तृतीया
⛅️ दिनांक - २० जनवरी २०२२
⛅️ दिन - गुरुवार
⛅️ शक संवत -१९४३
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - शिशिर
⛅️ मास - माघ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - अश्लेशा सुबह ०८:२४ तक तत्पश्चात मघा
⛅️ योग - आयुष्मान् शाम ०३:४५ तक तत्पश्चात सौभाग्य
⛅️ राहुकाल - दोपहर ०२:१३ से शाम ०३:३५ तक
⛅️ सर्योदय - ०७:१९
⛅️ सर्यास्त - १८:१९
⛅️ दिशाशूल - दक्षिण दिशा में
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काश्मीरतः हिन्दुनां पलायनम् १९९०तमे वर्षे।
Date : 20thJanuary 2022,
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भगवान् शिवः __________ __________ अस्ति।
Anonymous Quiz
52%
पुष्पैः अलङ्कृतः
20%
पुष्पेण अलङ्कृतः
17%
पुष्पैः अलङ्कृतम्
11%
पुष्पेभ्यः अलङ्कृतः
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
दीपम् उभयतः शलभाः सन्ति = दीपक के दोनों ओर पतंगे हैं। दीपावलीम् उभयतः पतङ्गाः पतन्ति = दीपमाला के दोनों ओर पतंगे गिर रहे हैं। चम्पापुष्पम् अभितः चञ्चरिकौ स्तः = चम्पापुष्प के दोनों ओर भौंरे हैं। इन्दीवरं सर्वतः इन्दिन्दिराः विराजन्ते = नीलकमल के चारों ओर भौंरे…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ : (९) तृतीया विभक्ति (१) + यण सन्धिः
{करण कारक (क्रिया सम्पन्न करने का साधन) में तृतीया विभक्ति होती है।}
मथन्या मथ्नाति दधि माता = मां मथनी से दही बिलो रही है।
पर्पेण पर्पति पर्पिकः = पंगू (बैसाखीवाला) बैसाखी से चलता है।
वणिक् तुलया धान्यं माति = बनिया तराजू से धान तोल रहा है।
लेखिका लेखन्या लेखं लिखति = लेखिका लेखनी से लेख लिखती है।
सूक्ष्मशरीरेण आत्मा अतति = सूक्ष्म शरीर से आत्मा सतत गति (एक से दूसरे शरीर में) करता है।
पक्षेण पक्षिणः डयन्ते = पंख से पक्षी उड़ते हैं।
हस्तेन हस्ती भारं वहति = सूंड से हाथी भार ढोता है।
मनस्वी मनसा मनुते = मनस्वी मन से मनन करता है।
मनीषी मनीषया मनः ईषते = मनीषी बुद्धि से मन को जानता है।
पण्डितः पण्ड्या पण्डितत्वं प्राप्नोति = पण्डित बुद्धि (=पण्डा) से विद्वत्ता (=पण्डितत्व) को प्राप्त करता है।
बुद्धः बुद्ध्या बोध्यम् अवबुध्यते = ज्ञानी (=बुद्धः) बुद्धि से जाननेयाग्य पदार्थों को जानता है।
वेत्ता विद्यया विश्वं वेत्ति = विद्वान् विद्या से सब कुछ जानता है।
स्मर्त्ता स्मृत्या भूतकालं स्मरति = याद करनेवाला स्मृति से भूतकाल को याद करता है।
ज्ञानी ज्ञानेन ईश्वरमपि जानाति = ज्ञानी ज्ञान से ईश्वर को भी जान लेता है।
भर्त्ता भृत्त्या भृत्यं भरति = पालक (=भर्त्ता) वेतन (=भृत्तिः) से सेवक (=भृत्य) का भरण-पोषण करता है।
यात्री यानेन यात्रास्थलं याति = यात्री वाहन से यात्रास्थल को जाता है।
दाता दानेन दरिद्रं उपकरोति = दाता दान से दरिद्र का उपकार करता है।
ध्याता ध्यानेन धर्त्तारं ध्यायति = ध्यान करनेवाला (=ध्याता) ध्यान के द्वारा धारण करनेवाले ईश्वर (=धर्त्ता) का चिन्तन करता है।
द्रष्टा दर्शनेन दृश्यं पश्यति = ज्ञानी (=द्रष्टा) दर्शनशास्त्र स्त्र के द्वारा संसार (=दृश्यम्) को देखता है।
चित् चित्तेन चलाचलं जगत् चेतयति = चेतन आत्मा चित्त से चल-अचल जगत् को जानता है।
आनन्दः आनन्देन अस्मान् आनन्दयति = आनन्दस्वरूप ईश्वर हमें आनन्द देकर आनन्दित करता है।
अद्भिः गात्राणि शुध्यन्ति = पानी से शरीरावयव साफ होते हैं।
मनः सत्येन शुध्यति = मन सत्य से पवित्र होता है।
विद्यातपोभ्यां भूतात्मा शुध्यति = विद्या और तप से जीवात्मा शुद्ध होता है।
क्षान्त्या शुध्यन्ति विद्वांसः = विद्वान् क्षमा से शुद्ध होते हैं।
दानेन अकार्यकारिणः शुध्यन्ति = दान के द्वारा पापी शुद्ध होते हैं।
प्रच्छन्नपापाः जप्येन शुद्ध्यन्ति = गुप्त रूप (=मानसिकरूप) से पाप करनेवाले जप से शुद्ध होते हैं।
तपसा वेदवित्तमाः शुद्ध्यन्ति = तप से उत्तम विद्वान् (=वेदवित्) शुद्ध होते हैं।
#vakyabhyas
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ : (९) तृतीया विभक्ति (१) + यण सन्धिः
{करण कारक (क्रिया सम्पन्न करने का साधन) में तृतीया विभक्ति होती है।}
मथन्या मथ्नाति दधि माता = मां मथनी से दही बिलो रही है।
पर्पेण पर्पति पर्पिकः = पंगू (बैसाखीवाला) बैसाखी से चलता है।
वणिक् तुलया धान्यं माति = बनिया तराजू से धान तोल रहा है।
लेखिका लेखन्या लेखं लिखति = लेखिका लेखनी से लेख लिखती है।
सूक्ष्मशरीरेण आत्मा अतति = सूक्ष्म शरीर से आत्मा सतत गति (एक से दूसरे शरीर में) करता है।
पक्षेण पक्षिणः डयन्ते = पंख से पक्षी उड़ते हैं।
हस्तेन हस्ती भारं वहति = सूंड से हाथी भार ढोता है।
मनस्वी मनसा मनुते = मनस्वी मन से मनन करता है।
मनीषी मनीषया मनः ईषते = मनीषी बुद्धि से मन को जानता है।
पण्डितः पण्ड्या पण्डितत्वं प्राप्नोति = पण्डित बुद्धि (=पण्डा) से विद्वत्ता (=पण्डितत्व) को प्राप्त करता है।
बुद्धः बुद्ध्या बोध्यम् अवबुध्यते = ज्ञानी (=बुद्धः) बुद्धि से जाननेयाग्य पदार्थों को जानता है।
वेत्ता विद्यया विश्वं वेत्ति = विद्वान् विद्या से सब कुछ जानता है।
स्मर्त्ता स्मृत्या भूतकालं स्मरति = याद करनेवाला स्मृति से भूतकाल को याद करता है।
ज्ञानी ज्ञानेन ईश्वरमपि जानाति = ज्ञानी ज्ञान से ईश्वर को भी जान लेता है।
भर्त्ता भृत्त्या भृत्यं भरति = पालक (=भर्त्ता) वेतन (=भृत्तिः) से सेवक (=भृत्य) का भरण-पोषण करता है।
यात्री यानेन यात्रास्थलं याति = यात्री वाहन से यात्रास्थल को जाता है।
दाता दानेन दरिद्रं उपकरोति = दाता दान से दरिद्र का उपकार करता है।
ध्याता ध्यानेन धर्त्तारं ध्यायति = ध्यान करनेवाला (=ध्याता) ध्यान के द्वारा धारण करनेवाले ईश्वर (=धर्त्ता) का चिन्तन करता है।
द्रष्टा दर्शनेन दृश्यं पश्यति = ज्ञानी (=द्रष्टा) दर्शनशास्त्र स्त्र के द्वारा संसार (=दृश्यम्) को देखता है।
चित् चित्तेन चलाचलं जगत् चेतयति = चेतन आत्मा चित्त से चल-अचल जगत् को जानता है।
आनन्दः आनन्देन अस्मान् आनन्दयति = आनन्दस्वरूप ईश्वर हमें आनन्द देकर आनन्दित करता है।
अद्भिः गात्राणि शुध्यन्ति = पानी से शरीरावयव साफ होते हैं।
मनः सत्येन शुध्यति = मन सत्य से पवित्र होता है।
विद्यातपोभ्यां भूतात्मा शुध्यति = विद्या और तप से जीवात्मा शुद्ध होता है।
क्षान्त्या शुध्यन्ति विद्वांसः = विद्वान् क्षमा से शुद्ध होते हैं।
दानेन अकार्यकारिणः शुध्यन्ति = दान के द्वारा पापी शुद्ध होते हैं।
प्रच्छन्नपापाः जप्येन शुद्ध्यन्ति = गुप्त रूप (=मानसिकरूप) से पाप करनेवाले जप से शुद्ध होते हैं।
तपसा वेदवित्तमाः शुद्ध्यन्ति = तप से उत्तम विद्वान् (=वेदवित्) शुद्ध होते हैं।
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