संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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शिक्षकः - अहं वाक्यद्वयं वदामि तयोः मध्ये कः भेदः अस्ति इति वदतु।
छात्रः - अस्तु।
शिक्षकः -
प्रथमं वाक्यं " सः पात्राणि प्रक्षालितवान्"।
द्वितीयं वाक्यं "तेन पात्राणि प्रक्षालितव्यानि आसन्"।
छात्रः - प्रथमे वाक्ये कर्ता "अविवाहितः" अस्ति।
द्वितीये वाक्ये कर्ता "विवाहितः" अस्ति।
😂😁😜

#hasya
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)

ूलश्लोकः-80
दर्शयामास चात्मानं समुद्र: सरितां पति:।
समुद्रवचनाच्चैव नलं सेतुमकारयत्‌।।80।।

श्लोकान्वयः -
सरितां पति: समुद्र: आत्मानं दर्शयामास (राम:)
समुद्रवचनात्‌ एव च नलं सेतुम्‌ अकारयत्‌।।80।।।

हिन्दी-अनुवाद -
नदियों के पति समुद्र ने लङ्का के लिए मार्ग न देने के अपराध को स्वीकार किया तथा
अपने स्वरूप को राम को दिखाया एवं अपने जल के ऊपर पुल बनवाने के लिए कहा।
समुद्र के वचन को सुनकर श्रीराम ने नल के द्वारा समुद्र पर पुल बनवाया।।80।।

English Meaning

सरितां पति: lord of rivers, समुद्र: Samudra, आत्मानम् in his own form, दर्शयामास appeared (to Rama), समुद्रवचनात् च एव on the advice of Samudra , नलम् through Nala, सेतुम् a bridge, अकारयत् got it built.

Samudra, lord of rivers, (afraid of Rama's anger) and having appeared in his own form, and on his advice got a bridge built with the help of Nala.

#SankshepaRamayanam
श्रीहरिहरात्मजाष्टकम्

हरिवरासनं विश्वमोहनम्
हरिदधीश्वरमाराध्यपादुकम् ।
अरिविमर्दनं नित्यनर्तनम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ १॥

चरणकीर्तनं भक्तमानसम्
भरणलोलुपं नर्तनालसम् ।
अरुणभासुरं भूतनायकम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ २॥

प्रणयसत्यकं प्राणनायकम्
प्रणतकल्पकं सुप्रभाञ्चितम् ।
प्रणवमन्दिरं कीर्तनप्रियम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ३॥

तुरगवाहनं सुन्दराननम्
वरगदायुधं वेदवर्णितम् ।
गुरुकृपाकरं कीर्तनप्रियम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ४॥

त्रिभुवनार्चितं देवतात्मकम्
त्रिनयनप्रभुं दिव्यदेशिकम् ।
त्रिदशपूजितं चिन्तितप्रदम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ५॥

भवभयापहं भावुकावकम्
भुवनमोहनं भूतिभूषणम् ।
धवलवाहनं दिव्यवारणम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ६॥

कलमृदुस्मितं सुन्दराननम्
कलभकोमलं गात्रमोहनम् ।
कलभकेसरीमाजिवाहनम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ७॥

श्रितजनप्रियं चिन्तितप्रदम्
श्रुतिविभूषणं साधुजीवनम् ।
श्रुतिमनोहरं गीतलालसम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ८॥

॥ इति श्री हरिहरात्मजाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

शरणं अय्यप्पा स्वामी शरणं अय्यप्पा ।
https://youtu.be/EEtJiDWdJoo
#SanskritCarnaticMusic
Forwarded from ॐ पीयूषः
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

Duration : 30 minutes only
Time : IST 11:00 AM 🕚
Topic :संस्कृतकथा,सुभाषितम्,
हास्यकणिका
Date : 15thJanuary 2022,
Saturday.
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😇 Please come prepared to discus (संस्कृतकथां, सुभाषितं, हास्यकणिकां ,स्वस्य कञ्चित् उत्तमम् अनुभवं ,प्रेरकप्रसङ्गं वा वदन्तु। ) in Sanskrit , If possible.
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Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [06.33]
🍃अर्जुन उवाचयोऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन। 
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात् स्थितिं स्थिराम्
।।6.33।। 

♦️arjuna uvaacha
yo'yaM yogastvayaa proktaH saamyena madhusuudana|
etasyaahaM na pashyaami cha~nchalatvaat sthitiM sthiraam6.33

6.33 Arjuna said This Yoga of equanimity taught by Thee, O Krishna, I do not see its steady continuance, because of the restlessness (of the mind). 

।।6.33।। अर्जुन ने कहा हे मधुसूदन जो यह साम्य योग आपने कहा मैं मन के चंचल होने से इसकी चिरस्थायी स्थिति को नहीं देखता हूं।। 

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [06.34]
🍃चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्। 
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्
।।6.34।। 

♦️cha~nchalaM hi manaH kRRiShNa pramaathi balavaddRRiDham|
tasyaahaM nigrahaM manye vaayoriva suduShkaram6.34

6.34 The mind verily is restless, turbulent, strong and unyielding, O Krishna: I deem it as difficult to control it as to control the wind. 

।।6.34।। क्योंकि हे कृष्ण यह मन चंचल और प्रमथन स्वभाव का तथा बलवान् और दृढ़ है उसका निग्रह करना मैं वायु के समान अति दुष्कर मानता हूँ ।। 

#geeta
🚩 जय सत्य सनातन 🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - त्रयोदशी रात्रि १२:५७ तक तत्पश्चात चतुर्दशी

दिनांक - १५ जनवरी २०२२
दिन - शनिवार
शक संवत -१९४३
अयन - उत्तरायण
ऋतु - शिशिर
मास - पौष
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - मृगशिरा रात्रि ११:२१ तक तत्पश्चात आर्द्रा
योग - ब्रह्म दोपहर ०२:३४ तक तत्पश्चात इन्द्र
राहुकाल - सुबह १०:०३ से सुबह ११:२६ तक
सूर्योदय - ०७:१९
सूर्यास्त - १८:३६
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

Duration : 30 minutes only
Time : IST 11:00 AM 🕚
Topic :संस्कृतकथा,सुभाषितम्,
हास्यकणिका
Date : 15thJanuary 2022,
Saturday.
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Live stream scheduled for
Namaste to all,

I am presenting a course on Srimad Bhagavatam with Sanskrit commentary.

A course on Srimad Bhagavatam, the greatest Puranic text, with Sanskrit commentary

The Srimad Bhagavatam is likened to the ripened fruit of the desire-yielding tree of the Veda. It is the sāra, quintessence, of Vedic knowledge. Its study elevates one’s consciousness to the realm of pure being and bliss.
It has twelve sections and deals with ten topics: sarga (fundamental creation), visarga (subsequent creation), sthiti (regulation), poṣaṇa (nourishment), uti-s (impetus for activity), manvantara (time periods of Manus), īsanukatha (activities of avataras of Bhagavan Vishnu), nirodha (annihilation), mukti (liberation), asraya (ultimate shelter). The tenth topic, asraya, is the main topic of the Bhāgavatam.

In this course, the students will gain an in-depth understanding of the following:
1) Philosophy of Srimad Bhāgavatam
2) Nature of the ultimate reality
3) Various avataras of Bhagavan Vishnu
4) The ultimate gain
5) The means to attain it

Method: Each verse will be explained by analysing the Sanskrit and referring to a Sanskrit commentary.
Philosophical and theological sections will be explained in great detail. The medium of teaching will be English.

Classes will be conducted online through Zoom, every Tuesday and Saturday 7-8 PM IST.
The initial aim of the course is to complete the first section (751 verses) out of the 12 sections of the Bhāgavatam in 84 classes.
Recorded video classes will be available to all registered participants.

Course begins: 5-Feb-2022, Saturday, 7-8 PM IST
Eligibility: Respect for Srimad Bhāgavatam

Teacher: Paras Mehta (Sastra-Vani Dasa)
PhD Research Scholar [Philosophy]
Research Associate, EFEO
M.A. Sanskrit [Indian Philosophy]
LinkedIn: https://www.linkedin.com/in/paras-mehta-a98200154/

Fees: Rs. 500/- per month
To register, contact the teacher at
Phone: +91 7045083765

Best regards,
Paras Mehta
PhD Research Scholar in Gaudiya Vedanta
M.A. Sanskrit
Phone: +91 7045083765
LinkedIn: https://www.linkedin.com/in/paras-mehta-a98200154/
'रामहतः' एतस्य विग्रहवाक्यं किं भवेत्।
Anonymous Quiz
11%
रामात् हतः
15%
रामस्य हतः
11%
रामं हतः
58%
रामेण हतः
7%
रामेण हतेन
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
पाठ (७) द्वितीया विभक्तिः (४) December 21, 2019 By Arun Aryaveer संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ (७) द्वितीया विभक्तिः (४) (अधि + शीङ्, अधि + स्था, अधि + आस्, अधि + वस्, आङ् + वस्, अनु + वस्, उप + वस्, अभि+नि+विश् इन धातुओं के आधार…
(क्रुध् व द्रुह् अर्थवाली सोपसर्ग धातुओं के प्रयोग में जिस पर क्रोध व द्रोह किया जाता है उसकी कर्म संज्ञा होती है और उससे द्वितीया विभक्ति होती है।)

जाल्मोऽयं पितरौ अभिक्रुध्यति = जालीम यह मां-बाप पर गुस्सा करता है।
स्नुषा श्वश्रुम् अभिक्रुध्यत् = बहु ने सास पर गुस्सा किया।
चण्डा भर्त्तारम् अभिचण्डेत् = क्रोधी महिला अपने पति पर गुस्सा कर सकती है।
कान्ता कान्तं प्रतिकोपिष्यति = पत्नी पति पर गुस्सा करेगी।
भामिनी पतिम् अभ्यभामिष्ट = गुस्सैल पत्नी ने अपने पति पर गुस्सा किया।
दुष्टः भ्रातरम् अभिद्रुह्यति = दुष्ट व्यक्ति भाई से द्रोह करता है।
राष्ट्रद्रोहिणः राष्ट्रम् अभिद्रोहिष्यन्ति = राष्ट्रद्रोही लोग राष्ट्र के प्रति द्रोह करेंगे।
विधर्मी धर्मम् अभ्यद्रुहत् = विधर्मी (अधार्मिक) ने धर्म से द्रोह किया।
कौरवाः पाण्डवान् अभिदुद्रुहुः = कौरवों ने पाण्डवों से द्रोह किया।
ननान्दा भ्रातृजायाम् अभिद्रुह्येत् = ननन्द भाभी से द्रोह कर सकती है।

(गत्यर्थक, ज्ञानार्थक, भक्षणार्थक, शब्दकर्मार्थक एवं अकर्मक धातुओं के अण्यन्तावस्था में जो कर्त्ता है, वह धातुओं की ण्यन्तावस्था में कर्मसंज्ञक होता है, अतः उससे द्वितीया विभक्ति होती है।)

गत्यर्थक

पुत्रः पाठशालां गच्छति = पुत्र पाठशाला जाता है।
पिता पुत्रं पाठशालां गमयति = बाप बेटे को पाठशाला भेज रहा है।

दुहिता विश्वविद्यालयं गमिष्यति = पुत्री कॉलेज जाएगी।
माता दुहितरं विश्वविद्यालयं गमयिष्यति = मां बेटी को कॉलेज भेजेगी।

औरसः पुत्रः विदेशम् अगमत् = सगा बेटा विदेश गया।
जननी औरसं पुत्रं विदेशम् अजीगमत् = माता ने सगे बेटे को विदेश भेजा।

पौत्री महाविद्यालयं गच्छेत् = पोती को उच्च विद्यालय में जाना चाहिए।
पितामहः पौत्रीं महाविद्यालयं गमयेत् = दादा को पोती महाविद्यालय में भेजनी चाहिए।

सेवकः आपणं प्रेष्यति = सेवक दुकान पर जाता है।
स्वामी सेवकं आपणं प्रेषयति = स्वामी सेवक को दुकान पर भेजता है।

वत्सा व्रजं व्रजति = बछड़ी गोशाला में जा रही है।
वत्सां व्रजं व्राजयति = बछड़ी को गोशाला में भेज रहा है।

अजा अजिरम् अजति = बकरी बाड़े में जा रही है।
अजां अजिरम् आजयति = बकरी को बाड़े में भेज रहा है।

जामाता प्रकोष्ठं प्रविशति = दामाद कमरे में प्रवेश करता है।
जामातरं प्रकोष्ठं प्रवेशयति = दामाद को कमरे में प्रवेश करवाता है।

यतिः मठं याति = यति मठ में जा रहा है।
यतिं मठं यापयन्ति = यति को मठ की ओर भेज रहे हैं।

वानप्रस्थी वनम् आगच्छति = वानप्रस्थी वन में आ रहा है।
वानप्रस्थिनं वनम् आगमयति = वानप्रस्थी को वन में भेज रहा है।

#vakyabhyas
शीतकालः
****
हेमन्तस्य हिमेन तेन विपुलं कृत्वा स्वमत्या हिमं
शीतर्तुः सकलक्षितौ क्षिपति तच्छीतं ततो वर्धते।
लब्ध्वा ज्ञानकणं हि शिष्यपरमः शक्त्या यथा व्यापकं
तत् संपाद्य विकाशते निजधिया सर्वत्र भूमण्डलम्।।
(व्रजकिशोरः)
कश्चित् उन्मत्तः आत्मानं दर्पणे दृष्ट्वा चिन्तयति।
एषः तु मया कुत्रचित् दृष्टः एव...
(सः तथैव बहुकालपर्यन्तं चिन्तितवान् अनन्तरं वदति)
अरे एषः तु सः एव अस्ति यः परह्यः मया सह केशान् कर्तयितुम् उपविष्टः आसीत्।

#hasya