संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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#Ramayan
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।

🍃 धर्मज्ञस्य वदान्यस्य महर्षिसमतेजसः।
तस्य भार्यासु तिसृषु होश्रीकीर्युपमासु च ॥१९॥

विष्णो पुत्रत्वमागच्छ कृत्वाऽऽत्मानं चतुर्विधम्।
तत्र त्वं मानुषो भूत्वा महद्धं लोककण्टकम् ॥२०॥

अवध्यं देवतैर्विष्णो समरे जहि रावणम्।
स हि देवान्सगन्धर्वान्सिद्धांध मुनिसत्तमान्॥२१॥

राक्षसा रावणो मूर्खा वीर्योत्सेकेन बाधते।
ऋपयस्तु ततस्तेन गन्धर्वाप्सरसस्तथा ॥२२॥

⚜️ भावार्थ - दानी और ऋषि तेजस्वी अयोध्यापति महाराज दशरथ की कीर्ति के समान तीन रानियों में अपने चार अंशों से पुत्रभाव स्वीकार करें। आप मनुष्य शरीर धारणा कर, महा अभिमानी लोक कण्टक उस रावण को, जो हम '( देवताओं) से भी प्रवध्य है, युद्ध में परास्त करें। क्योंकि वह मूर्ख राक्षस रावण देवता, गन्धर्व, सिद्ध और मुनियों को अपने वल से बहुत सताता है।।१९।।२०॥२१॥२२॥
📒📒📒 वेदपाठन 📒📒📒

📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।

🍃 क्रीडन्तो नन्दनवने क्रूरेण किल हिंसिताः।
बधार्थ वयमायातास्तस्य वै मुनिभिः सह ॥२३॥

⚜️ भावार्थ - देखिये, उस दुष्ट ने ( इन्द्र के ) नन्दनवन नामक उद्यान में क्रीड़ा करते हुए अनेक गन्धर्वो तथा अप्सराओं को मार डाला। उसी को मरवाने के लिये, हम यहाँ मुनियों सहित आये हैं ॥ २३ ॥

🍃 सिद्धगन्धर्वयक्षाश्च ततस्त्वां शरणं गताः।
त्वं गतिः परमा देव सर्वेषां नः परन्तप ॥२४॥

⚜️ भावार्थ - हम सिद्ध, गन्धर्व और यक्षों सहित आपके शरण में आये हैं। हे देव ! हमारी दौड़ तो आप ही तक है। ॥२४॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।

🍃 वधाय देवशत्रूणां नृणां लोके मनः कुरु ।
एवमुक्तस्तु देवेशो विष्णुत्रिदशपुङ्गवः ॥ २५ ॥

⚜️ भावार्थ - अतः आप देवताओं के शत्रु रावण का वध करने के लिये मनुष्यलोक में अवतीर्ण होइए। इस प्रकार देवताओं ने भगवान् विष्णु की स्तुति की ॥२५ ॥

🍃 पितामहपुरोगांस्तान्सर्वलोकनमस्कृतः ।
अब्रवीत्रिदशान्सर्वान्समेतान्धर्मसंहितान् ॥२६॥

⚜️ भावार्थ - सर्वलोको से नमस्कार किये जाने वाले अर्थात् सर्वपुज्य भगवान् विष्णु ने, शरण आये हुए एकत्रित ब्रह्मादि देवताओं से यह कहा ॥२६॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।

🍃 भयं त्यजत भद्रं वो हितार्थं युधि रावणम्।
सपुत्रपौत्रं सामात्यं समित्रज्ञातिवान्धवम्।।२७।।

हत्वा क्रूरं दुरात्मानं देवर्षीणां भयावहम्।
दश वर्षसहस्राणि दश वर्षशतानि च।
वत्स्यामि मानुषे लोके पालयन्पृथिवीमिमाम् ॥२८॥

⚜️ भावार्थ - हे देवताओ ! तुम्हारा मङ्गल हो तुम अब मत डरो। तुम्हारे हित के लिये मैं रावण से लडूँगा। मैं पुत्र, पौत्र, मंत्रि, मित्र, जाति वालों तथा वन्धु बान्धव सहित, उस क्रूर, दुष्ट और देवताओं तथा ऋषियों के लिये भयप्रद रावण को मारकर और ग्यारह हज़ार वर्ष तक मर्त्यलोक में रह कर, इस पृथिवी का पालन करूँगा ।।२७॥२८॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।

🍃 एवं दत्त्वा वरं देवो देवानां विष्णुरात्मवान्।
मानुषे चिन्तयामास जन्मभूमिमथात्मनः॥२९॥

⚜️ भावार्थ - इस प्रकार भगवान् विष्णु देवताओं को वरदान दे अपने जन्म लेने योग्य मनुष्य लोक में स्थान चुनने लगे॥२९ ॥

ततः पद्मपलाशाक्षः कृत्वाऽऽत्मानं चतुर्विधम्।
पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम्॥३०॥

⚜️ भावार्थ - कमलनयन भगवान् विष्णु ने अपने चार रूपों से महाराज दशरथ को अपना पिता बनाना, अर्थात् उनके घर में जन्म लेना पसंद किया॥३०॥

🍃 ततो देवर्षिगन्धवः सरुद्राः साप्सरोगणाः।
स्तुति॑भिर्दिव्यरूपाभिस्तुष्टवुर्मधुसूदनम् ॥३१॥

⚜️ भावार्थ - तब देवर्षि, गन्धर्व, रुद्र, अप्सरा इन सब ने मधुसूदन भगवान् की स्तुति कर, उनको सन्तुष्ट किया॥३१॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।

🍃 तमुद्धतं रावणमुग्रतेजसं प्रवृद्धदर्प त्रिदशेश्वरद्विपम्।
विरावणं साधु तपस्विकण्टकं तपस्विनामुद्धर तं भयावहम् ॥३२॥

तमेव हत्वा सबलं सवान्धवं विरावणं रावणमुग्रपौरुपम्।
स्वर्लोकमागच्छ गतज्वरविरं सुरेन्द्रगुप्तं गतदोपकल्मषम् ॥३३॥

👉 🚩॥ इति पञ्चदशः सर्गः॥

⚜️ भावार्थ - और कहा, हे प्रभु ! इस उद्दण्ड, बड़े तेजस्वी, अहंकारी, देवताओं के शत्रु, लोकों को रुलाने वाले, साधु तपस्वियों को सताने वाले और भयदाता रावण का नाश कीजिये। उस लोकों को रुलाने वाले और उग्र पुरुषार्थी रावण को बंधु, वान्धव तथा सेना सहित मार कर और संसार के दुःख को दूर कर इन्द्र पालित तथा पाप एवं दोषशून्य स्वर्ग में पधारिये ।।३२।।३३।।

👉 🚩बालकाण्ड का पन्द्रहवाँ सर्ग समाप्त हुआ।

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 ततो नारायणो देवा नियुक्तः सुरसत्तमैः।
जानन्नपि सुरानेवं श्लक्ष्णं वचनमब्रवीत् ॥१॥

⚜️ भावार्थ - देवताओं की स्तुति सुनकर, सब जानने वाले साक्षात् परब्रह्म नारायण, देवताओं के सम्मानार्थ यह मधुर वचन बोले ॥१॥

🍃 उपाय: को वधे तस्य राक्षसाधिपतेः सुराः।
यमहं तं समास्थाय निहन्यामृपिकण्टकम् ॥२॥

⚜️ भावार्थ - हे देवताओ ! यह तो बतलाओ कि, उस राक्षसों के राजा और मुनिनयों के शत्रु को हम किस उपाय से मारें ॥२॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 एवमुक्ताः सुराः सर्वे प्रत्यूचुर्विष्णुमव्ययम्।
मानुषीं तनुमास्थाय रावणं जहि संयुगे॥३॥

⚜️ भावार्थ - यह सुन देवताओं ने अव्यय विष्णु से कहा- मनुष्य रूप अवतीर्ण हो, रावण को युद्ध में मारिये ॥३॥

⚜️ स हि तप तपस्तीत्रं दीर्घकालमरिन्दम।
येन तुष्टोऽभवद्ब्रह्मा लोककृल्लोकपूजितः॥४॥

⚜️ भावार्थ - हे अमिरिन्द्र उसने बहुत दिनों तक कठोर तप कर लोककर्त्ता और लोकपूजित ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया॥४॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 संतुष्टः मददौ तस्मै राक्षसाय वरं प्रभुः।
नानाविधेभ्यो भूतेभ्यो भयं नान्यत्र मानुपात्॥५॥

⚜️ भावार्थ - तब उन्होंने प्रसन्न होकर उस राक्षस को यह वर दिया कि मनुष्य सिवाय हमारी सृष्टि के किसी भी जीव के मारे तुम न मरोगे ॥५॥

🍃 अवज्ञाता: पुरा तेन वरदानेन मानवाः।
एवं पितामहात्तस्माद्वरं प्राप्य स दर्पितः ॥६॥

⚜️ भावार्थ - वह मनुष्य को तुच्छ समझता था। अतः उसने मनुष्यों से मरने का वर न माँगा ब्रह्मा जी के वर से वह गर्वित हो गया॥६॥

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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 उत्सादयति लोकां स्त्रीन्स्त्रय श्चाप्यपकर्पति।
तस्मात्तस्य वधो दृष्टो मानुपेभ्यः परन्तप॥७॥

⚜️ भावार्थ - इस समय यह तीनों लोकों को उजाड़ता है और स्त्रियों को पकड़ कर ले जाता है, अतःएव वह मनुष्य के हाथ से ही मर सकता है। ॥७॥

🍃इत्येतद्वचनं श्रुत्वा सुराणां विष्णुरात्मवान्।
पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम् ॥८॥

⚜️ भावार्थ - देवताओं की इन बातों को सुनकर भगवान् विष्णु ने महाराज दशरथ को अपना पिता बनाना पसंद किया ॥८॥

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