संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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वार्षिकोत्सवः

पुत्री। अम्ब महती बुभुक्षा अस्ति।
माता। सुधे किमर्थं त्वरा।
पुत्री। मम विद्यालये वार्षिकोत्सवः अस्ति। तत्र नाटकं गीतं नृत्यं भाषणम् इत्यादि कार्यक्रमाः सन्ति।
माता। त्वं वार्षिकोत्सवे किं करोषि।
पुत्री। वृन्दगाने अहम् अस्मि। मम सखी नृत्ये अस्ति। बालकाः केवलं नाटके सन्ति। वयं बालिकाः पुनः रज्जुक्रीडायाम् अपि स्मः। द्वौ बालकौ विनोदनाटके स्तः।
माता। निपुणा खलु मम पुत्री।
सखी। सुधे कुत्र असि।
पुत्री। अत्र अस्मि। वद।
सखी। त्वं अद्य कदा विद्यालयं गमिष्यसि।
पुत्री। किमर्थम्। त्वम् अपि आगमिष्यसि किम्।
माता। युवां युगपत् कस्मिन्नपि कार्यक्रमे न स्थः किम्।
पुत्री। आवां द्वे अपि वृन्दगाने रज्जुक्रीडायां च स्वः।
पिता। पुत्रि किं करोषि युगपत्।
माता। अद्य पुत्र्याः विद्यालये वार्षिकोत्सवः अस्ति। वयं शीघ्रं गत्वा पुरतः उपविशामः।

#samvadah
माता। राधे पुनीत शीघ्रम् उत्तिष्ठताम्।
माता। राधा पुनीत जल्दी उठो।

राधा। अम्ब किमर्थं शीघ्रम्। अद्य रविवासरः खलु।
राधा। माँ जल्दी क्या है। आज तो रविवार है।

माता। शीघ्रं दन्तधावनं कुरुताम्। स्नानमपि समापयताम्। अद्य जनकस्य जन्मदिनम्।
माता। जल्दी मंजन करो स्नान भी करो आज पिता का जन्मदिन है।

पुनीतः। अम्ब कः उपाहारः।
पुनीत। माँ क्या नाश्ता है।

माता। अद्य उपाहारः अनन्तरम् प्रथमं सर्वे देवालयं गच्छामः।
माता। स्वल्पाहार बाद में पहले सभी हम मन्दिर जाएंगे।

पुनीतः। अम्ब उष्णं जलं सज्जीकुरु। अहं स्नानं करिष्ये।
पुनीत। माँ गरम पानी तैयार करो मैं नहाती हूँ।

पिता। नलिनि क्षीरार्क्षं पात्रम् आनय। शीघ्रं काफीं कुरु।
पिता। नलिनी दूध के लिए बर्तन ले आओ जल्दी काफी बनाओ।

माता। भो वार्तापत्रिकाम् अनन्तरं पठ। शीघ्रं सिद्धः भव।
माता। अरे समाचार पेपर बाद में पढ़ना जल्दी तैयार हो।

राधा। अम्ब महती बुभुक्षा। क्षीरं देहि।
राधा। माँ बहुत भूख लगी है दूध दो।

माता। वत्से क्षीरं स्वीकुरु। तदनन्तरं नूतनवस्त्रं धारय।
माता। बेटी दूध लो बाद में नए कपड़े पहनो।

पुनीतः। अम्ब ममापि नूतनवस्त्रं देहि।
पुनीत। माँ मेरे भी नए कपड़े दो।

पिता। नालिनि पूजार्थं सर्वं स्वीकुरु। गच्छामः किमु।
पिता। नलिनी पूजा के लिए तैयारी करो हम चलते हैं।

माता। पुनीत राधे द्वौ अपि देवं नमस्कुरुताम्। भोः आगच्छ आवां तत्र गच्छाव।
माता। पुनीत राधा दोनों भी देवता को प्रणाम करो। आओ हम दोनों वहाँ चले।

राधा। तात घण्टा उपरि अस्ति। अहं कथं वादयामि।
राधा। पिताजी घण्टा ऊपर है मैं कैसे बजाऊँ।

पुनीतः। किंचित् कूर्दनं कुरु।
पुनीत। थोड़ा कूदो।

माता। पुनीत त्वं चेष्टां मा कुरु। सा रोदिति।
माता। पुनीतः तुम चेष्टा मत करो।

पिता। भोः अर्चक एकाम् अर्चनां कुरु।
पिता। पुजारी जी पूजा कीजिए।

माता। भवान् एव प्रसादं स्वीकरोतु।
माता। आप ही प्रसाद स्वीकार करें।

पिता। पूजा समाप्ता। आगच्छत गच्छामः।
पिता। पूजा समाप्त हो गई आओ जाते हैं।

#vakyabhyas #samvadah
गिरीशः। हरिः ओम्।
गिरीश। हरि ओम् हैलो।

अनन्तः। हरि ओम्। कः वदति।
अनन्त। हरि ओम्। कौन बोल रहा है।

गिरीशः। अहं गिरीशः वदामि। मित्र गृहे कोऽपि नास्ति किम्।
गिरीश। मैं गिरीश बोल रहा हूँ मित्र घर में कोई नहीं है क्या।

अनन्तः। सर्वे सन्ति। पिता जपति। अम्बा पूजयति। अनुजः खादति। अग्रजा मालां करोति। पितामहः दूरदर्शनं पश्यति। पितामही स्नानं करोति।
अनन्त। सभी है पिता जप कर रहे है माँ पूजा कर रही है छोटा भाई खा रहा है बड़ी बहन माला बना रही है पितामह दादाजी टी.वी. देख रहे हैं दादी स्नान कर रही हैं।

गिरीशः। त्वं किं करोषि। क्रीडसि किम्।
गिरीश। तुम क्या कर रहे हो। खेल रहे हो क्या।

अनन्तः। अहं पठामि। उत्तरं लिखामि। तव अनुजौ किं कुरुतः।
अनन्त। मैं पढ़ रहा हूँ उत्तर लिख रहा हूँ तुम्हारे दोनों भाई क्या कर रहे हैं।

गिरीशः। मम अनुजौ शालां गच्छतः। अहं च पिता च विद्यालयं गच्छावः।
गिरीश। मेरे दोनों भाई स्कूल जा रहे है। मैं और पिताजी विद्यालय जा रहे हैं।

अनन्तः। अद्य त्वमपि विद्यालयं न गच्छ अहमपि न गच्छामि। वयं सर्वे अद्य मैसूरुनगरं गच्छामः। मम बान्धवाः अपि आगच्छन्ति।
अनन्त। आज तुम भी विद्यालय न जाओ मैं भी नहीं जा रहा हूँ हम सब आज मैसूर जा रहे है। मेरे परिवार के लोग भी आ रहे हैं।

गिरीशः। अपि भवतः पिता कार्यालयं न गच्छति ।
गिरीश। आपके पिता कार्यालय नहीं जाते क्या।

अनन्तः। अद्य मम पिता विरामं स्वीकरोति।
अनन्त। आज मेरे पिता अवकाश ले लिया है।

गिरीशः। अनन्त नहि भोः अहम् आगन्तुं न शक्नोमि। भवान् गच्छतु।
गिरीश। अनन्त मैं नहीं आ सकता आप जाओ।

अनन्तः। पुनः मिलामः धन्यवादः।
अनन्त। फिर मिलते है धन्यवाद।

#vakyabhyas #samvadah
अधिकारी। सुधाकर शीघ्रं लिपिकारम् आह्वय।
अधिकारी। सुधाकर शीर्घ लिपिक को बुलाओ।

सुधाकरः। अद्य लिपिकारः नागतवान्। सः हरिद्वारं गतवान् इति।
सुधाकर। आज लिपिक नहीं आया। वह हरिद्वार गया है।

अधिकारी। ह्यः वित्तकोषतः धनम् आनीतवान् किम्।
अधिकारी। कल बैंक से पैसा लाया क्या।

सुधाकरः। आम्। ह्यः अहं रमेशः च चित्तकोषं गतवन्तौ। धनम् आनीतावन्तौ अपि च।
सुधाकर। हां कल मैं और रमेश बैंक गये थे। धन ले आये।

अधिकारी। ह्यः सर्वे किं किं कार्यं कृतवन्तः।
अधिकारी। कल सभी ने क्याक्या काम किया।

सुधाकरः। ह्यः रामगोपालः गणनां समापितवान् गीता पत्राणि लिखितवती गौरीशः कार्याणि परिशीलितवान्। ह्यः प्रीतिः नागतवती। मुकुन्दः स्वच्छीकृतवान्।
सुधाकर। कल रामगोपाल अकाउंट पूरा किया। गीता ने पत्र लिखा। गौरीश काम को देखा। कल प्रीति नहीं आई। मुकुन्द ने सफाई की।

अधिकारी। प्रीतिः कुत्र गतवती इति किं कोऽपि जानाति।
अधिकारी। प्रीति कहां गई कोई जानता है।

सुधाकरः। प्रीतिः तीव्रम् अस्वस्था इति शृणुमः।
सुधाकर। प्रीति अस्वस्थ है ऐसा सुना है।

अधिकारी। सा औषधं स्वीकृतवती स्यात्।
अधिकारी। उसने दवाई ली।

सुधाकरः। वैद्यः सूच्यौषधं दत्तवान् इति श्रुतम्। ह्यः निवेदिताविद्यालयस्य शिक्षिकाः आगतवत्यः। भवान् न आसीत्। अतः एकं पत्रं दत्तवत्यः।
सुधाकर। वैद्य ने इजेक्शन और दवाई दी है ऐसा सुना है। कल निवेदिताविद्यालय की शिक्षिकाएँ आई थीं। आप नहीं थे इसलिए उन लोगों ने एक पत्र दिया।

अधिकारी। प्राचार्यः मुख्याध्यापिका च किम् आगतवत्यौ।
अधिकारी। क्या प्राचार्य और मुख्याध्यापिका आए थे।

सुधाकरः। नैव केवलं प्राचार्यः आगतवान्। भवान् दूरवाणीं करोतु इति उक्तवती।
सुधाकर। नहीं केवल प्राचार्य आए थे। आप दूरवाणी करेेंगे ऐसा कहे थे।

अधिकारी। भवतु भवान् गच्छतु।
अधिकारी। अच्छा ठीक है आप जाओ।

#vakyabhyas #samvadah
पिता। आगच्छ। यात्रा कथम् आसीत्।
पिता। आओ। यात्रा कैसी थी।

शिवरामः। सम्यक् आसीत् तात।
शिवराम। ठीक थी पिताजी।

पिता। त्वं कदा मुम्बय्यीं प्राप्तवान्।
पिता। तुम कब मुम्बई पहुँचे।

शिवरामः। अहं सोमवासरे प्रातः ७ वादने एव प्राप्तवान्
शिवराम। मैं सोमवार सुबह ७ बजे ही पहुँचा।

पिता। अनन्तरं त्वं किं किं कृतवान्।
पिता। फिर तुमने क्याक्या किया।

शिवरामः। ततः मित्रस्य गृहं गतवान्। तत्रैव स्नानमपि कृतवान्। उपाहारं खादितवान्। ततः मुम्बादेवीमन्दिरं गतवान्।
शिवराम। वहाँ से मित्र के घर गया। वहीं स्नान किया। स्वल्पाहार किया। फिर मुम्बादेवी के मन्दिर गया।

पिता। किं त्वम् एकाकी एव गतवान्।
पिता। क्या तुम अकेले ही गये।

शिवरामः। नैव मम मित्रम् अहं च गतवन्तौ। कार्यक्रमः न आरब्धः आसीत्। समये आवां प्राप्तवन्तौ।
शिवराम। नहीं मेरा मित्र और मैं दोनों गये। कार्यक्रम शुरू नहीं हुआ था। सही समय में हम दोनों पहुँचे।

पिता। तदनन्तरम्।
पिता। फिर।

शिवरामः। कार्यक्रमः दशवादने आरब्धः। श्यामला प्रार्थनां गीतवती। स्वागतान्तरं मम भाषणम् आसीत्। अहं भाषणं कृतवान्। अध्यक्षः मां श्लाघितवान्। जनाः उच्चैः हर्षोद्गारं कृतवन्तः। करताडनमपि कृतवन्तः। अधिकारी आगामिवर्ष अपि सम्मेलनं प्रति आगमनाय प्रार्थितवान्। ११.३० वादने कार्यक्रमः समाप्तः। अन्ते महिलाः वन्दे मातरं गीतवत्यः।
शिवराम। कार्यक्रम १० बजे से शुरू हुआ। श्यामला प्रार्थना की। स्वागत के बाद मेरा भाषण हुआ। मैंने भाषण दिया। अध्यक्ष ने मेरी प्रशंसा की। लोगों ने जोर से हर्ष व्यक्त किया। तालियाँ बजी। अधिकारी ने आगामी वर्ष के सम्मेलन में १२५आगमन के लिए प्रार्थना की। ११.३० बजे कार्यक्रम समाप्त हुआ। अन्त में महिलाओं ने वन्दे मातरम् गीत प्रस्तुत किया।

पिता। पुनः मित्रस्य गृहं किं न त्वं गतवान्।
पिता। पुनः मित्र के घर नहीं गये।

शिवरामः। मुम्बादेवीमन्दिरतः तस्य गृहं बहु दूरे अस्ति। अतः अहं साक्षात् याननिस्थानकं गतवान्। तत्र मम वयस्यौ मिलितवन्तौ। बहुकालं वयं सम्भाषणं कृतवन्तः ततः मध्यावने ३ वादने अहं प्रस्थितवान्।
शिवराम। मुम्बा देवी के मन्दिर से उसका घर दूर है। इसलिए मैं सीधे बसस्टेंड चला गया। वहाँ मेरे दो मित्र मिले। बहुत देर तक हम सब बात करते रहे। फिर दोपहर तीन बजे मैं निकल गया।

पिता। अस्तु स्नानं करु भोजनं कुरु कंचित्कालं विश्रामं स्वीकुरु।
पिता। अच्छा अब स्नान करो। भोजन करो और थोड़ी देर विश्राम करो।

शिवरामः। अस्तु तात।
शिवराम। ठीक है पिताजी।

#vakyabhyas #samvadah
प्रदीपः। अरुण भवतः गणितपुस्तकं दास्यसि किम्।
प्रदीप। अरुण तुम्हारी गणित की पुस्तक मिलेगी क्या।

अरुणः। भवान् किमर्थं विद्यालयं नागतवान्।
अरुण। आप विद्यालय क्यों नहीं आये।

प्रदीपः। मम अतीव शिरोवदेना आसीत्। अतः शयनं कृतवान्।
प्रदीप। मेरे सिर में दर्द था। इसलिए सोता रहा।

अरुणः। इतिहासपुस्तकं भवान् इतोऽपि न दत्तवान्। इदानीं गणितपुस्तकमपि नयसि। कदा प्रतिदास्यसि।
अरुण। इतिहास की पुस्तक आपने अभी तक नहीं दी। इस समय आप गणित की पुस्तक भी ले जा रहे हो।

प्रदीपः। श्वः सायंकाले भवते पुस्तकं दास्यामि।
प्रदीप। कल शाम को आपकी पुस्तक दूंगा।

ज्योतिः। प्रदीप भवान् असत्यं वदति किम्। श्वः भवान् बन्धुगृहं गमिष्यति। परश्वः आगमिष्यसि। कदा गणितपुस्तकं दास्यसि।
ज्योति। आप असत्य बोल रहे हैं क्या। कल आप भाई के यहाँ जाएंगे परसों आएंगे तो कब गणित की पुस्तक देंगे।

प्रदीपः। अहं विस्मृतवान्। परश्वः निश्चयेन पुस्तकं दास्यामि।
प्रदीप। मैं भूल गया। परसो निश्चित पुस्तक दे दूंगा।

कृष्ण। ज्योतिः अद्य मम गृहम् आगच्छ। सम्यक् पठिष्यावः।
कृष्ण। ज्योति मेरे घर आओ। अच्छे से पढ़ेंगे।

अरुणः। भवान् पठिष्यति लेखिष्यति इति वदति केवलम्।
अरुण। आप पढ़ेंगे लिखेंगे केवल इतना बोलते हैं।

कृष्णा। मालाशिक्षिका श्वः संस्कृतपाठं लेखिष्यति। द्वितीयपाठस्य प्रश्नान् प्रक्ष्यति। रिक्तस्थानानि पूरणार्थं दास्यति। अतः बहु पठिष्यामि।
कृष्णा। मालाशिक्षिका कल संस्कृत का पाठ लिखाएंगी। द्वितीय पाठ का प्रश्न पूछेंगी। खाली स्थान पूरा करो ऐसा प्रश्न देगीं। इसलिए बहुत पढ़ूंगी।

अरुणः। भवन्तः मम गृहम् आगच्छन्तु। सर्वे मिलित्वा पठिष्यामः।
अरुण। आप सभी मेरे घर आओ। हम मिलकर पढ़ेंगे।

ज्योतिः। भवन्तौ द्वौ अपि मिलतां चेत् न पठिष्यतः युद्धमेव करिष्यतः अतः स्वगृहे एव पठताम्।
ज्योति। आप दोनों मिल गये तो नहीं पढ़ोगे लड़ोगे। इसीलिए अपने घर में ही पढ़ो।

#vakyabhyas #samvadah
शिशिरः। अखिल कोऽपि नास्ति किं गृहे। 
शिशिर। अखिल घर में कोई नहीं है क्या। 

अखिलः। अहम् एकः एव अस्मि। पिता अम्बया सह संगीतकार्यक्रमं गतवान्। अग्रजा अरुणया सह चित्रमन्दिरं गतवती। अनुजः बालैः सह क्रीडति। 
अखिल। मैं अकेला ही हूँ। पिता जी माँ के साथ संगीत कार्यक्रम में गए हैं। बड़ी बहन अरुणा के साथ टॉकीज गई है। छोटा भाई बच्चों के साथ खेल रहा है। 

शिशिरः। भवन्तं विना सर्वेऽपि गतवन्तः भवान् मया सह आगच्छतु। मम माता आपणं गत्वा पुष्पाणि आनयतु इति उक्तवती। अहं स्यूतेन विना एव आगतवान्। 
शिशिर। तुम्हारे बिना सभी गए है आप मेरे साथ आओ। मेरी माता बोली है कि बाजार जाकर पुष्प ले आओ। मैं झोले बिना ही आ गया हूँ। 

अखिलः। चिन्ता मास्तु। अहं स्यूतं ददामि। धनेन विना आगतं किम् इति पश्य। 
अखिल। चिन्ता की बात नहीं है। मैं झोला देता हूँ। पैसे के बिना तो नहीं आए। देखो। 

शिशिरः। तिष्ठ। प्रथमं धनमस्ति किम् इति पश्यामि। किंचित् जलं ददातु भोः। 
शिशिर। ठहरो पहले पैसा है कि नहीं देखता हूँ थोड़ा पानी दो मित्र। 

अखिलः। स्वीकुरु तिष्ठ काफीं करोमि। भवान् शर्करया विना काफीं पिबति उत शर्करया सह। 
अखिल। ये लो पानी। रूको कॉफी बनाता हूँ। आप शक्कर के बिना कॉफी पीते हो या शक्कर के साथ। 

शिशिरः। अहं शर्करया सह एव पिबामि। किन्तु मास्तु इदानीं भवतः किमर्थं क्लेशः। 
शिशिर। मैं शक्कर के साथ ही पीता हूँ। कोई बात नहीं इस समय आपको परेशानी होगी। 

अखिलः। क्लेशो नास्ति। ममापि काफीसमयः एषः। तिष्ठ मया सह काफीं पिब। 
अखिल। परेशानी नहीं होगी मेरा भी यह कॉफी का समय है रूको मेरे साथ कॉफी पियो। 

#vakyabhyas #samvadah
अम्बा। कः तत्र।
बालकः। अहम् अस्मि।
अम्बा। किं करोषि।
बालकः। अम्ब मार्ज्मि।
अम्बा। किं मार्ष्टि।
बालकः। छदौ पत्राणि पतितानि। अतः स्थलं मार्ज्मि।
अम्बा। अस्तु। ततः शुष्कवस्त्राणि आनय।
बालकः। अहो तत्र नास्मि अधुना प्राङ्गणे अस्मि।
अम्बा। किं तत्र।
बालकः। जलं सिञ्चामि।
अम्बा। तर्हि पूजायै कुसुमानि अवचिनोतु।
बालकः। अहो इदानीमिदानीं जलसेचनं समाप्तम्। अधुना पूजागृहे अस्मि।
अम्बा। तर्हि दीपं प्रज्वालय।
बालकः। पूजा अपि समाप्ता।
(माता शयनप्रकोष्ठं गच्छति। पश्यति शयानं बालकम्।)
अम्बा। अधुना कुत्र असि।
बालकः। शौचालये।
अम्बा। अलमलम्। उत्तिष्ठ अधुना।

स शौचलये आसीत् तस्मात् अम्बा अलं मलम् इति वदितुम् अर्हति।

#samvadah #hasya
लघुनाटिका
 संस्कृतभाषा ज्ञानभाषा ।
नाटककारः। मंगेशः मुळी अम्बाजोगायी।

सर्वे छात्राः। आचार्य नमो नमः ।
आचार्यः। नमो नमः । उपविशत।
सर्वे छात्राः। धन्यवादः ।
छात्र १। हे आचार्य । अहं आगच्छानि।
आचार्यः।आगच्छ ।
छात्र १। आचार्य नमो नमः ।
आचार्यः। नमो नमः। विलम्बः किमर्थम् ।
छात्र १। मम द्विचक्रिकायाः चक्रात् अकस्मात् वायुः निर्गतः अतः विलम्बः अभवत् ।
आचार्यः। अस्तु । उपविश ।

आचार्यः। हे छात्राः किं जानीथ अद्य कः दिनविशेषः अस्ति।
छात्र २। आचार्य अद्य तु रक्षाबन्धनम् अस्ति ।
आचार्यः। शोभनं शोभनम् । अपरः।
छात्र ३। नारिकेलपौर्णिमा अपि अस्ति।
आचार्यः। शोभनं तथा च अद्य संस्कृतदिनम् अपि अस्ति।
छात्रः ४। आचार्य हैप्पी संस्कृतदिनम् ।
आचार्यः। धन्यवादः । किन्तु आंग्लभाषायां न संस्कृतभाषायां एव शुभाशयाः अपेक्षितम् । यथा सर्वेभ्यः संस्कृतदिनस्य शुभाशयाः ।
सर्वे छात्राः। संस्कृतदिनस्य शुभाशयाः
आचार्यः। हे छात्राः संस्कृतदिनस्य केवलं शुभेच्छा न अपेक्षिता किन्तु संस्कृतभाषायाः संरक्षणंप्रसारम् अपि अपेक्षितम्। संस्कृतभाषा विषये यूयं किं किं जानीथ।
छात्रः ५। संस्कृतभाषा चिरपुरातनी भाषा । सा सर्वासां भाषाणां जननी ।
आचार्यः। शोभनम् ।
छात्रः ६। संस्कृतभाषा ज्ञानभाषा । संस्कृतभाषा संगणकयोग्या भाषा ।
छात्रः ७। अस्माकं प्राचीनाः ग्रन्थाःसंस्कृतभाषायां एव सन्ति ।
आचार्यः। बहु सम्यक् । परह्यः इस्रोसंस्थायाः अध्यक्षः एस. सोमनाथन् उक्तवान् यत् पाश्चात्यैः ये संशोधनं कृतम् तत् सर्वं ज्ञानं अस्माकं वेदेभ्यः एव वर्तते किन्तु अस्माभिः दुर्लक्षितम् ।
सर्वे छात्राः। आम् आचार्य ।
आचार्यः। यूयं के के ग्रन्थाः जानीथ।
छात्रः। ८।चत्वारः वेदाश्च योगशास्त्रम्।
छात्र। ९। आयुर्वेदः सुश्रुतसंहिता च।
छात्र। १०। कणादमहर्षेः वैशेषिकसुत्राणि
आचार्यः। शोभनं शोभनम् । अतः संस्कृतभाषा केवलं भाषा न संस्कृतभाषा ज्ञानभाषा।
जयतु संस्कृतम् । जयतु संस्कृतम् ।
सर्वे छात्राः। जयतु संस्कृतम् । जयतु संस्कृतम् ।

#Samvadah
तमालपत्रम्

तमालचूर्णं रचयतो नस्यं जिघतः तथा वस्त्रशंसां कुर्वतो ग्राम्यवेषधारिणः पुरुषस्य प्रवेशः।

प्रथमः। अहो कीदृशं पवित्रं यस्तु इदं तमालपत्रं वर्तते वेदे शास्त्रे सर्वत्र अस्य महिमा वर्णितः अस्ति यथा त्रिपथगा गङ्गा सा
जगत् पवित्रं करोति तथैव तमालपत्रम् अपि सर्वं जगत् पवित्रं करोति।

क्वचित् हुक्का ववचित् थुक्का क्वचिन्नासाग्रवर्तिनी।
इयं त्रिपथगा गंगा पुनाति भुवनत्रयम्॥


द्वितीयः। अरे मूर्ख कथं वृथा अनर्गलं प्रलापं करोषि। ईदृशम् अपवित्रम् अनर्थंकरं च वस्तु सभायां निर्भयो भूत्वा एवं प्रशंससि।

प्रथमः। अरे किं तमालपत्रम् अपवित्रं वस्तु वर्तते शास्त्रेऽपि तमालपत्रस्य पवित्रताया वर्णनं वर्तते श्रूयताम् मम श्वसुरः महान् पण्डितः आसीत् स एकं श्लोकं कथयति स्म

विडोजाः पुरा पृष्टवान् पद्मयोनिं धरित्रीतले सारभूतं किमस्ति।
चतुर्भिर्मुखेरुत्तरं तेन दत्तम् तमालं तमालं तमालं तमालम्
॥ १॥

द्वितीयः। श्रुतं प्रमाणम् तर्हि कथ्यताम् कस्मिन् ग्रन्ये अयं श्लोकः अस्ति।

प्रथमः। अहं ग्रन्थस्य नाम न जानामि मम श्वसुरो महान् पण्डित आसीत् स एव इमं श्लोकं कथयति स्म।

द्वितीयः। आः तर्हि महत् अकाट्यं प्रमाणं वर्तते तव श्वसुरस्य वाक्यं वेदवाक्यम् अस्ति।

प्रथमः। अरे दुष्ट कथं मम श्वसुरस्य उपहासं करोषि यदि तमालपत्रं शास्त्रविरुद्धं तथा अपवित्रं वर्तते तर्हि कथं सर्वे पण्डिताः तमालपत्रं भक्षयन्ति।

द्वितीयः। कि पण्डिता अपि तमालपत्रं भक्षयन्ति।

प्रथमः। आं पण्डिता अपि भक्षयन्ति वैदिका ज्योतिर्विदः पौराणिका वैद्या व्याकरणाचार्याः साहित्याचार्याः वेदान्ताचार्याः किम्। धिक् धर्मशास्त्राचार्या अपि तमालपत्रं भक्षयन्ति न च केवलं गृहे प्रत्युत यज्ञे मन्दिरे विद्यालये पूजायां पाठे सभायां तीर्थे आश्रमे सर्वत्र निस्सङ्कोचं भक्षयन्ति।

द्वितीयः। यद्येवं तर्हि एष महान् अनर्थविषयः तथापि पण्डितानां भक्षणेन तमालपत्रस्य प्रामाणिकता न सिद्धयति। न खलु अस्माकं पण्डिताः प्रमाणं प्रत्युत शास्त्रं प्रमाणं बुद्धिश्च प्रमाणं वर्तते। साधारणबुद्धयाऽपि विचार्यमाणे तमालपत्रस्य उत्तमता न सिद्ध्यति अत एव लिखितं वर्तते।

न स्वादु नौषधमिदं न च वा सुगन्धि
नाऽक्षिप्रियं किमपि शुष्कतमा कुचूर्णम्।
किं चाक्षिरोगजनकं च तदस्य भोगे
बीजं नृणां नहि नहि व्यसनं विनाऽन्यत् ॥१॥


प्रथमः। अस्तु मन्ये अहं ते वचनं यत् पण्डिता अनुचितं कुर्वन्ति परन्तु अनेके अंग्रेज्यध्यापका यत् बीडीसिगरेटादिकं पिबन्ति एकम् एकं च बण्डलाख्यम् एकैकस्मिन् दिने समाप्तं कुर्वन्ति तत् किं तेऽपि अनुचितं कुर्वन्ति ते तु सभ्यमानवाः सन्ति।

द्वितीयः हसित्वा। अरे अंग्रेज्यध्यापकानां किमपि पुच्छं वर्तते यत् ते अनुचितं न कुर्वन्ति। शृणु तावत् तमालपत्रं धूमपानं वा इदं सर्वमपि स्वास्थ्यस्य कृते महत् हानिकरं वर्तते द्रव्यस्यापि अपव्ययो भवति समाजे निन्दापि जायते अतः कदापि तमालभक्षणं धूमपानं वा न कर्तव्यं दूरे निक्षिप निजं सर्वं तमालपत्रम्।

प्रथमः। गच्छ गच्छ यावत् सर्वं पण्डिताः मास्टराश्च परित्यागं न करिष्यन्ति तावत् अहमपि परित्यागं न करिष्यामि। निर्गच्छति।

द्वितीयः। मा परित्यागं कुरु कः त्वया सह शिरःस्फोटं कुर्यात् सर्वस्यौषधमस्ति शास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम्। निष्क्रान्तः।

#samvadah #hasya
शिशुः। पितः फलम् इच्छामि।
पिता। अस्तु स्वीकुरु।
शिशुः। त्वचम् अपाकुरु।
पिता। अस्तु करोमि। नय।
शिशुः। खण्डानि कुरु।
पिता। अस्तु अधुना खाद।
शिशुः। न इच्छामि। पुनः योजय।
पिता। अस्तु अन्यत् ददामि।
शिशुः। अन्यत् न इच्छामि। एतदेव
योजयित्वा देहि।

पिता निःसहायः।

#samvadah #hasya
मेहमान। नमस्ते रमेश।
अभ्यागतः। नमस्ते रमेश।

रमेश। नमस्ते सुरेश कैसे हो ।बैठो तो।तुम थके अवश्य होगे।
रमेशः। नमस्ते सुरेश भवान् कथम् । कृपया उपास्यताम्। मया प्रतीयते यत् भवान् अवश्यं श्रान्तः स्यात्।

सुरेश। ओह मैं थकावट से चूरचूर हो गया हूं।
सुरेशः। आः आम् इदानीम् अति श्रान्तोऽभुवम् ।

रमेश। हमलोग युगों के बाद मिल रहे हैं।तुम तो ईद के चांद हो गये हो ।
रमेशः। इदानीम् आवां बहुवर्षानन्तरं परस्परं मिलावः।भवतः दर्शनं तु पूर्णतया दुर्लभमभवत्।

रमेश। क्या आपके लिए चाय बनवाऊं। क्या पीने के लिए पानी भी गर्म करवाऊं।
रमेशः। अपि भवतः कृते चायं पाचयानि। पातुं जलमपि उष्णं कारयानि किम्।

रमेश। मेरे घर का चाय आपको कैसा लग रहा है।
रमेशः। मम गृहे पचितं चायं भवते कथं रोचते।

सुरेश। बहुत अच्छा।
सुरेशः। अत्युत्तमम्।

~उमेशगुप्तः #vakyabhyas #samvadah
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
मेहमान। नमस्ते रमेश। अभ्यागतः। नमस्ते रमेश। रमेश। नमस्ते सुरेश कैसे हो ।बैठो तो।तुम थके अवश्य होगे। रमेशः। नमस्ते सुरेश भवान् कथम् । कृपया उपास्यताम्। मया प्रतीयते यत् भवान् अवश्यं श्रान्तः स्यात्। सुरेश। ओह मैं थकावट से चूरचूर हो गया हूं। सुरेशः। आः आम्…
रमेश। राधा मेहमान के लिए स्वादिष्ट पकौड़ी बनाए।
रमेशः। राधा अतिथये रस्यां पक्ववटिकां पचतु।

रमेश। पकौड़ी चखकर बताइएगा कि इसका स्वाद कैसा है।
रमेशः।पक्वटिकां निस्स्वाद्य अस्य रसः कथम्।

सुरेश। बहुत स्वादिष्ट ।
सुरेशः। सुस्वाद्यम्।

रमेश। थोड़ा और लीजिए। रस्म अदाई न कीजिए।
रमेशः। किञ्चदधिकम् आदत्स्व मा शिष्टाचारं कुरु

रमेश। क्या और लीजिएगा।
सुरेश।जी नहींधन्यवाद।

रमेशः। इतोऽपि ग्रहिष्यति भवान् किम्।
सुरेशः। नैव महाशय धन्यवाद।

रमेश।यह तुम्हारा अपना घर है। कृपया कोई औपचारिकता नहीं निभाइए।
रमेशः।एतत् भवतः एव निजसदनम्। कृपया अलं शिष्टाचारेण।

सुरेश। इस प्यार के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।अच्छामैं चलता हूं।
सुरेशः। अस्य आतिथ्यसत्कारस्य कृते भवतः अतिशयेन धन्यवादाः। कृपया मां गन्तुम् अनुजानीहि।

रमेश। ठीक है। फिर आइएगा।
रमेशः। अस्तु। पुनः आगच्छतु भवान् अत्र।

~उमेशगुप्तः #vakyabhyas #samvadah
जितेन्द्र। क्या आप एक्शन कम्पनी का कपड़े का जूते बेचते हैं ।
→ अपि भवान् एक्षन्नाम पटोपानहं विक्रीणाति ।

दुकानदार। हाँ महाशय।आपको किस नाप के चाहिए ।और आपको कौनसा रंग पसंद है।
आपणिकः। आम्। महाशय भवते किं मानम् आवश्यकम्।तथा भवते किं वर्णं रोचते ।

जितेन्द्र। मुझे छह नम्बर के चाहिए।और जहां तक रंग की बात है मुझे काला रंग पसंद है।
→ मह्यं षट्संख्यकम् आवश्यकम्।यतो रङ्गस्य प्रश्नस्य प्रश्नोऽस्ति मह्यं कृष्णवर्णं इष्टम् ।

दुकानदार। यह रही आपकी पसंद।
→ तवेष्टा अत्रास्ति

जितेन्द्र।आहयह जूता जरा टाइट हो रहा है ।
→ अहएतद् उपानद्द्वयं तु किञ्चित् निबिडयति

दुकानदार। ठीक है। और दूसरा जोड़ा देखिए।
→ अस्तु।इतोऽपि अन्यद् उपानद्द्वयं परीक्ष्य अवलोकयतु।

जितेन्द्र। बहुत अच्छा।यह जूता तो मेरे पैर में अच्छी तरह से फिट बैठ रहा है।इस जोड़े की कीमत क्या है।
→ शोभनम्। एतद् उपानद्द्वयं तु मम पादाभ्यां पूर्णतया उपयुक्तम्।एतस्य उपानद्द्वयस्य मूल्यं किम् ।

दुकानदार। बस पांच सौ साठ रुपए।
→ केवलानि षष्ट्यधिकं पञ्चशतं रूप्यकाणि।

जितेन्द्र। ठीक है।इसे पैक कर दीजिए।
→ अस्तु। एनं पोट्टलीकुरु

#vakyabhyas #samvadah
रेलवे इनक्वाइरी से बातचीत

रेखा। आठ बजकर अंठावन मिनट को आने वाली Intercity Express ट्रेन की रिपोर्ट। द्विकलान्यूननववादने आगमनस्य Intercity Express नाम्नः रेलयानस्य सूचना ।

टिकट काउंटर। ओह आप गलत जगह आ गई है। कृपया कर आप वहां जाकर पूछताछ काउंटर से पूछिए।
चिटिकापटलम्। ओः भवती असम्यक् स्थानम् आगतवती। कृपया तत्र गत्वा परिपृच्छपटलं पृच्छ।

रेखा। क्या यह गाड़ी समय पर चल रही है।
किं रेलयानमिदं निर्दिष्टे समये चलति।

पूछताछ काउंटर। नहीं।यह गाड़ी समय पर नहीं चल रही है।यह एक घण्टा देर है।सभी गाड़ियां देर से चल रही है ।
परिपृच्छपटलम्। नैव रेलयानमिदं निर्दिष्टे समये न चलति।
अयं होरात्मकः विलम्बेन चलति। इदानीं सर्वाणि रेलयानानि विलम्बेन चलन्ति।

रेखा। क्या यह रामपुर के लिए सीधी गाड़ी है ।
एतद् रेलयानं रामपुरस्थानकं प्रति साक्षात् गच्छति किम्।

पूछताछ काउंटर। नहीं।आपको गाड़ी बदलनी होगी। लेकिन Bandra Express सीधे रामपुर जाती है।
परिपृच्छपटलम्। नैव। भवत्या रेलयानं परिवृत्येत। परन्तु Bandra Express इति रेलयानं साक्षात् रामपुरस्थानकं गच्छति।

रेखा। क्या रामपुर के लिए सीधा टिकट मिल सकता है।
साक्षात् रामपुरस्थानकं गमनाय मया चिटिका प्राप्स्यते किम्।

पूछताछ काउंटर। हां मिल सकता है।
परिपृच्छपटलम्। आम्।

रेखा। मालभाड़ा किस प्रकार लिया जाता है ।
वस्तूनां भाटकं कथं स्वीक्रियते ।

~उमेशगुप्तः #vakyabhyas #samvadah
माधवोऽयं वृक्षच्छायोपासीनां राधिकां वदति। कथम् असि राधिके। किं करोषि।

राधिका वदति। चिन्तनम्।

माधवः । अहो कस्योपरि।

राधिका । संसारस्य।

माधवः । संसारस्तु असारः।

राधिका । पिता वदति स्म यौवने प्राप्ते मम विवाहं कारयिष्यति।

माधवः । तदा तु बहुः कालः शेषः। अधुना त्वं कन्याऽसि।

राधिका। किमर्थं माम् अन्यस्मै कस्मैचिद् दास्यति। किम् अहं दानकरणार्थं जनिता मम पितृभ्याम्। किम् अहं भारोऽस्मि। मम भ्रात्रे कदाऽपि न त्यागस्य भयम्।

माधवः। कथम् एवं कुचिन्तनं मनसि उद्भूतं ते।

राधिका। निर्गच्छ त्वम् अपि पूरुषः। त्वं कन्यादुःखं कथं जानीयाः।

माधवः। प्राप्तवयाः कन्या सत्पुरुषाय ददाति पिता। सा तत्र गत्वा सम्पूर्णस्य गृहस्य स्वामिनी भूत्वा राजते। सा गृहं स्वानुकूलं पत्यनुकूलं च करोति यत्र प्रीतिः प्रफुल्लति। तौ दम्पती परस्परं मिलित्वा धर्मार्थकाममोक्षान् साध्नुतः। नापतिः सुखमेधेत इति सीतावचनम्।

अयं पितृमोहो न शोभते ते। या स्त्री प्राप्तवया अपि न विवाहिता तां दौर्भाग्यशालिनीं मन्यते लोकः तथा न कोऽपि शुभकार्येषु आमन्त्रणं ददाति तस्यै। सा आजीवनं बान्ध्या तिष्ठति। नरैश्च कुदृष्ट्या विलोक्यते सा।

राधिका। न एतादृशं चिन्तनं मया लक्षितम्। तत्र तु बहुक्लेशो भाति भोः।

माधवः। अत्र न संशयः। या स्त्री परवश्यताभयाद् विवाहो न करोति तस्य जीवनं रुक्षं भवति। दम्पत्योर्जीवनम् अतिप्रीतिकरो भवति। न केवलः सखाभावो विद्यते तत्र अपि तु पतिः परमेश्वररूपेण सेव्यते सन्नार्या। पुनश्च सैव देवीरूपेण पूज्यते सकुटुम्बेन पतिना। सम्मानश्च प्रेम च अपि अगाधौ भवतः। या स्त्री धनलोभाय श्रेष्ठत्वप्रदर्शनाय वा विवाहाद् भीता सा धनं मानं च प्राप्य अपि असन्तोषम् एव लभते न सुखम्॥


वृक्षच्छायोपासीनां । seated under tree shade । पेड़ की छाया में बैठी
जनिता। born (by)। जनी गई।
रुक्षं। rough । स्नेहरहित
परवश्यताभयाद्। From the fear of subjugation । पराधीनता के भय से
सकुटुम्बेन। With family । परिवार सहित
अगाधौ। Deep (respect and love) । गहरा (सम्मान और प्रेम)
प्राप्तवया। Of attained age । आयु प्राप्त
बान्ध्या। Childless । संतानहीन

@samvadah #samvadah
येन केन प्रकारेण युद्धं विजित्य म्लेच्छदेशात् समागत्य यवनाधिपो भारतस्य राजसिंहासने विरराज। तेन सह मेलितुं ब्राह्मणानां प्रमुखाः तेषां नेत्रा वैदेहीप्रियेण सह समागताः। 

सभामध्ये ब्राह्मणप्रमुखाः तदग्रे यवनाधिपस्य अभिमुखं च वैदेहीप्रियः स्थितः। आदौ स यवनाधिपम् अभ्यवादयत्। सशङ्कः स तत् स्वीकृत्य पप्रच्छ।

यवनाधिपः। कोऽसि त्वम्। किमर्थं चात्र समागताः स्थ।

वैदेहीप्रियः। यान् पराजित्य अत्र विराजसे तेषां गुरवो वयम्। प्रजायाश्च सततं ज्ञानमार्गस्य प्रदातारो वयं ब्राह्मणाः। अत्र वक्ता अयं श्रीरामकृपापात्रो वैदेहीप्रियः।

ब्राह्मणाः। साधो३ साधो३। 

सभा गुञ्ज्यते।

यवनाधिपः सोपहासम्। कियज्ज्ञानवान् असि।

वैदेहीप्रियः । एतावद् यद् वक्तुं शक्ये युद्धे अश्वपतनकारणेन तव दक्षिणपादः पीडयति। तस्य औषधिरपि ज्ञायते तद् मान्यवरः कौशिकशर्मा तुभ्यं दास्यति।

कौशिकशर्मा । यथा आज्ञापयति आर्यः।

यवनाधिपः । कथम् एतत् ज्ञातं त्वया।

वैदेहीप्रियः । उपवेशनरीत्या ते।

यवनाधिपः। न एतत् मम वैद्यैरपि निराकृतम्। तव औषधिः अनुपयोगिनी चेद् तव शिरच्छेदनं निश्चितम्।

वैदेहीप्रियः। स्वहस्तेन छित्वा दास्ये तुभ्यम्।

यवनाधिपः स्ववैद्यान् कोपेन अपश्यत्। ते सर्वे नतमुखाः सन्ति। पुनरवदत् वैदेहीप्रियम्। अत्र किमर्थम् आगमनम्।

वैदेहीप्रियः। युद्धविजयाद् अत्र राज्यं ते अधिकारः। अत्र शास्त्रवचनैः शासनं भवति तत्पालनं वो राजधर्मः। तत् सर्वान् नियमान् विलिख्य भवन्तम् अर्पयितुम् अस्माकम् आगमनम्।

यवनाधिपः। किङ्किङ्किम्। त्वं चिन्तयसि यद् तव नियमैर्मम शासनं प्रचलिष्यति। श्रूयताम्। 

सभासद उच्चैर्हसन्ति। यवनाधिपो मन्दं हसति।

वैदेहीप्रियः। विना शास्त्रवचनं नात्र शासनं ते सम्भवेत्। जनविद्रोहः अवश्यंभावी।

यवनाधिपः। आदौ त्वां तदनु च एकैकं हनिष्यामि।

ब्राह्मणा उच्चैः। अनार्यमिदम् अनार्यमिदम्।

ततः शान्तिः।

पुनः वैदेहीप्रियः। प्रजाः हत्वा शासनं केषु करिष्यसि। पूर्ववत् अतिदरिद्रयवनानाम् उपरि। न करम् अपि दास्यन्ति ते तुभ्यम्।

यवनाधिपः क्रुद्धः सन् उत्थाय वैदेहीप्रियस्य अतिनिकटं गच्छति। तं दृष्ट्वा सर्वे सभासदः अपि स्वस्वासनेभ्यः उत्तिष्ठन्ति।

यवनाधिपः। किं त्वं चिन्तयसि धनलोभेन अहं तव नियमान् स्वीकरिष्ये।

वैदेहीप्रियोऽपि निकटं गत्वा। किं भवान् चिन्तयति यद् मृत्युभयेन वयं शास्त्राणि त्यक्ष्यामः।

सर्वे सभासदः स्वखड्गान् स्वस्वपाणौ आकर्षयन्ति।

ब्राह्मणा उच्चैः। धर्मो विजयताम्। शास्त्राणि अभिवर्ध्यन्ताम्।

यवनाधिपः हस्तम् उत्थापयति। सभासदः शान्ता भवन्ति। तथैव वैदेहीप्रियोऽपि ब्राह्मणाश्च मौनाः।

दूत आयाति। 

दूतः। जयतु राजा। राजन् जनानां सहस्राणि दण्डपाणयः राजभवनं परितः तिष्ठन्ति।

वैदेहीप्रियः। भवतो वचनं प्रतीक्षन्ते।

यवनाधिपः‌। किं त्वं चिन्तयसि एते दण्डैर्मां जेष्यन्ति।

वैदेहीप्रियः। पराङ्मुखं भूत्वा न मरिष्यन्ति ते इति मम वचनं भवते।

यवनाधिपः वृद्धमन्त्रिणं पश्यति। 

वृद्धः। किमर्थं भवान् कुप्यति। यथा वदसि तथैव भविता। अस्माकं ग्रन्थेषु निर्देशो विद्यते यद् यः अस्माकं मतं न स्वीकर्तुं शक्नुवन्ति ते अतिरिक्तं करं दत्त्वा जीवितुं शक्नुवन्ति।

वैदेहीप्रियः। किं राजाऽपि तन्मतावलम्बी।

वृद्धः। अवश्यम् अवश्यम्। किन्नु राजन्।

यवनाधिपः। भवतु। भवतो वचनं सत्यं करिष्ये।

वृद्धः। अधुना प्रसीदत।

वैदेहीयप्रियः। साधो३ साधो३। 

ब्राह्मणाः। साधो३ साधो३।

इति शम्॥


आदौ। In the beginning। प्रारंभ में
यवनाधिपः। Muslim ruler। मुस्लिम शासक
श्रीरामकृपापात्रः। Recipient of Shri Ram's grace। श्रीराम की कृपा का पात्र
विरराज। Presided। विराजमान हुआ
अश्वपतनकारणेन। Due to the falling from the horse। घोड़े से गिरने के कारण
उपवेशनरीत्या। By the method of sitting। बैठने की विधि से
शिरच्छेदनं। Beheading। सिर काटना
नतमुखाः। With Bowed heads। झुके हुए सिर वालें
सभासदः। Assembly members। सभा के सदस्य
अनार्यम्। Uncivilized। असभ्य
आकर्षयन्ति। (They) draw। (वे तलवार) निकालते हैं।
दण्डपाणयः। With staff in hand। हाथ में दंड लिए हुए
अतिरिक्तं। Extra। अतिरिक्त
तन्मतावलम्बी। Adherent of that opinion। उस मत का अनुयायी
प्रसीदत। (You all) Be pleased। (आप सब) प्रसन्न हो

@samvadah #samvadah
प्रथमाभ्यासः।

गीता। सुदिनम् आर्य।

शिक्षकः। सुदिनं गीते। अपि सर्वं कुशलम्।

गोता। आम् आर्य सर्वं कुशलम्। एषा मम सखी संस्कृतेन भाषणं कर्तुम् इच्छति।

शिक्षकः। एवम्।

गीता। आम् आर्य।

शिक्षकः। उत्तमः कल्पः। अस्याः नाम किम्।

गीता सखीं प्रति। कथय स्वनाम कथय।

माधुरी। मम नाम माधुरी।

शिक्षकः। मधुरं नाम सुन्दरं नाम। अस्याः पितुः नाम सरोजः मन्ये।

गीता। आम् आर्य भवान् कथम् अजानात्।

शिक्षकः। मुखसादृश्यात्। सः मम सहपाठी आसीत्। माधुरीं प्रति तव निवासः कुत्र।

माधुरी। निकटे अर्धक्रोशकदूरे।

शिक्षकः। माधुरि त्वं तु संस्कृतं वदसि।

गीता। आर्य एषा विद्यालये वर्षद्वयं पठितवती। किन्तु अस्याः भयम् अस्ति।

शिक्षकः। भयम् अस्ति। कस्मात्।

माधुरी। न हि। व्याकरणात्। अहं रटितुं न शक्नोमि।

शिक्षकः। रटनं न आवश्यकम्।

गीता। आर्य तदेव अहम् अकथयम्। एषा विश्वासं न करोति।

शिक्षकः। माधुरि त्वम् अस्माकं पद्धतिं पश्य। यदि न रोचते न आगच्छ।

गीता। आर्य एषा कदा आगच्छेत्।

शिक्षकः। श्वः आगन्तुं शक्नोति।

गीता। श्वः कदा।

शिक्षकः माधुरीं प्रति। प्रभाते सप्तवादने आगन्तुं शक्नोषि।

माधुरी। आम् आर्य आगमिष्यामि।

शिक्षकः। साधु। भयं मा कुरु। अहं न ताडयिष्यामि।

माधुरी। अनुगृहीतास्मि। नमोऽस्तु आर्य।

शिक्षकः। नमस्ते। पुनर्दर्शनाय।

#samvadah
षष्ठाभ्यासः

शिक्षिका। भरतस्य सञ्चिका कुत्र।

भरतः। आर्ये एषः। ददामि। किञ्चित् अवशिष्टम् अस्ति।

शिक्षिका। शीघ्रं देहि। अत्र श्रद्धायाः सञ्चिकापि नास्ति।

श्रद्धा। आर्ये मम सञ्चिका लुप्ता।

शिक्षिका। तव सञ्चिका लुप्ता। कथं लुप्ता।

श्रद्धा। न जानामि।

शिक्षिका। कुतः नूतनसञ्चिकां न क्रीणासि।

श्रद्धा। अद्य क्रेष्यामि आर्ये क्षम्यतां तत्।

शिक्षिका। शान्त्याः सञ्चिकां न पश्यामि। केतक्याः सञ्चिकापि नास्ति।

शान्तिः। आर्ये मम सञ्चिका अधुनैव समाप्ता। मया अर्धं लिखितम्।

केतकी। ममापि समाप्ता। पश्य आर्ये।

दर्शयति।

शिक्षिका। अद्यैव नूतनसञ्चिकां क्रीणीहि।
शान्तिं प्रति। त्वम् अपि।

उभे। आम् आर्ये।

शिक्षिका। अभिजितः हस्तलेखं पश्यत। कोऽपि अस्य हस्तलेखं पठितुं शक्नोति।

अभिजित्। आर्ये मम हस्तलेखः इत्थम् एव। किं कुर्याम्।

शिक्षिका। प्रतिदिनं न्यूनतः पृष्ठमेकम् अनुलिख।

अभिजित्। लेखिष्यामि आर्ये।

शिक्षिका। अद्यैव आरम्भं कुरु।

अभिजित्। करिष्यामि।

शिक्षिका। अत्र रवेः मुखं न पश्यामि। सप्ताहात् रघोः दर्शनं नास्ति। किं जातं तयोः।

छात्राः। वयं न जानीमः।

शिक्षिका। कोऽपि तयोः गृहं जानाति।

विकासः। अहं जानामि आर्ये।

शिक्षिका। तयोः पितरं सूचय। तौ मां पश्येताम्।

विकासः। सूचयिष्यामि।

शिक्षिका। साधु।

#samvadah