भौम वैकुंठ वृन्दावन
तकारो मरणं प्रोक्तं तद् योग: स्यादुकारत:।
मृता लसति चेत्येवं तुलसीत्येव गीयते॥
‘त’ का अर्थ ‘मरण’ है। इसमें ‘उकार’ अर्थात योग लगा है जो मरणयोग्य अर्थात मृत है। ल+सी=लसी का अर्थ है ‘कान्ति’ अर्थात जो मृत होकर भी कान्तिपूर्ण है, वह ‘तुलसी’ है।
वृन्दा तथा जलंधर या शंखचूड़ दानव की कथा पद्म, देवीभागवत, ब्रह्मवैवर्त आदि पुराणों…
https://sambhashan.com/vrinda/
तकारो मरणं प्रोक्तं तद् योग: स्यादुकारत:।
मृता लसति चेत्येवं तुलसीत्येव गीयते॥
‘त’ का अर्थ ‘मरण’ है। इसमें ‘उकार’ अर्थात योग लगा है जो मरणयोग्य अर्थात मृत है। ल+सी=लसी का अर्थ है ‘कान्ति’ अर्थात जो मृत होकर भी कान्तिपूर्ण है, वह ‘तुलसी’ है।
वृन्दा तथा जलंधर या शंखचूड़ दानव की कथा पद्म, देवीभागवत, ब्रह्मवैवर्त आदि पुराणों…
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वसुधैवकुटुम्बकम्
“वसुधैवकुटुम्बकम्” हमारे सनातन धर्म की परम्परा में निहित है। यह सम्पूर्ण धरा हमारा परिवार है। किन्तु यह अधूरा भाव है, अधूरे अर्थ को जानने से भ्रम होता है, इसका वास्तविक अर्थ समझना आवश्यक है। यह महोपनिषद् के छठे अध्याय का ७१वां मंत्र है। पूरा इस प्रकार है – “अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु…
https://sambhashan.com/vasudhaiva-kutumbakam/
“वसुधैवकुटुम्बकम्” हमारे सनातन धर्म की परम्परा में निहित है। यह सम्पूर्ण धरा हमारा परिवार है। किन्तु यह अधूरा भाव है, अधूरे अर्थ को जानने से भ्रम होता है, इसका वास्तविक अर्थ समझना आवश्यक है। यह महोपनिषद् के छठे अध्याय का ७१वां मंत्र है। पूरा इस प्रकार है – “अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु…
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होली–रसराज महोत्सव
होलिका मंत्र –
असृक्पाभयसंत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव॥ – बृहन्नारदीय पुराण १२४.७८
फाल्गुन की पूर्णिमा में होलिका पूजन (असुर राक्षस विनाशात्मक पर्व) किया जाता है, लकड़ियाँ, गोइठे (उपले) आदि एकत्रित करके राक्षस नाशक मंत्रों को पढ़ते हुए उसमें विधिपूर्वक आग लगा दें। अग्नि की परिक्रमा करें, गाने-बजाने के साथ उत्सव…
https://sambhashan.com/holi-mahotsav/
होलिका मंत्र –
असृक्पाभयसंत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव॥ – बृहन्नारदीय पुराण १२४.७८
फाल्गुन की पूर्णिमा में होलिका पूजन (असुर राक्षस विनाशात्मक पर्व) किया जाता है, लकड़ियाँ, गोइठे (उपले) आदि एकत्रित करके राक्षस नाशक मंत्रों को पढ़ते हुए उसमें विधिपूर्वक आग लगा दें। अग्नि की परिक्रमा करें, गाने-बजाने के साथ उत्सव…
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षड्दर्शन तथा वेदान्त के उपदर्शन
भारतीय दर्शन की परम्परा में ६ प्रमुख दर्शन (षड्दर्शन) जो वेदों को प्रमाण मानते हैं और इसलिए इन्हें आस्तिक दर्शन कहा जाता है, निम्नलिखित हैं :
१. सांख्य दर्शन
• प्रणेता : महर्षि कपिल।
• मुख्य सिद्धांत : यह प्रकृति और पुरुष (चेतना) के द्वैतवाद पर आधारित है। सांख्य का अर्थ है – विवेक अथवा…
https://sambhashan.com/darshan-2/
भारतीय दर्शन की परम्परा में ६ प्रमुख दर्शन (षड्दर्शन) जो वेदों को प्रमाण मानते हैं और इसलिए इन्हें आस्तिक दर्शन कहा जाता है, निम्नलिखित हैं :
१. सांख्य दर्शन
• प्रणेता : महर्षि कपिल।
• मुख्य सिद्धांत : यह प्रकृति और पुरुष (चेतना) के द्वैतवाद पर आधारित है। सांख्य का अर्थ है – विवेक अथवा…
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शंकरात्मा मारुति: कपिसत्तम: (हनुमानजी)
गौतम ऋषि के शिष्य ‘शंकरात्मा’ पवनसुत हनुमान किस प्रकार हुए? (यह चरित्र बृहन्नारदीय पुराण में भगवान श्रीराम ने ऋषि सनत्कुमार से कहा है)
ऋषि गौतम के शिष्य ‘शंकरात्मा’ शिवयोगी थे, त्याज्य एवं ग्राह्य कर्मों से रहित थे, बुद्धियोग करते हुए महायशस्वी योगी थे, और उनका स्वरूप उन्मत्त था। कहीं वे उत्तम ब्राह्मण रूप से रहते…
https://sambhashan.com/shankaratma/
गौतम ऋषि के शिष्य ‘शंकरात्मा’ पवनसुत हनुमान किस प्रकार हुए? (यह चरित्र बृहन्नारदीय पुराण में भगवान श्रीराम ने ऋषि सनत्कुमार से कहा है)
ऋषि गौतम के शिष्य ‘शंकरात्मा’ शिवयोगी थे, त्याज्य एवं ग्राह्य कर्मों से रहित थे, बुद्धियोग करते हुए महायशस्वी योगी थे, और उनका स्वरूप उन्मत्त था। कहीं वे उत्तम ब्राह्मण रूप से रहते…
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पिण्डदान मीमांसा (श्रीयोगवासिष्ठ के अनुसार)
जिस मृतक का पिण्डदान नहीं हुआ है वह सूक्ष्म शरीर के निर्माण होने तक आकाश में भटकता ही रहता है, वह क्रमशः तीन दिन जल में, तीन दिन अग्नि में, तीन दिन आकाश में और एक दिन अपने घर में निवास करता है। जब तक मृतक के सूक्ष्म शरीर का निर्माण नहीं होता है, वह…
https://sambhashan.com/pinddaan-mimansa/
जिस मृतक का पिण्डदान नहीं हुआ है वह सूक्ष्म शरीर के निर्माण होने तक आकाश में भटकता ही रहता है, वह क्रमशः तीन दिन जल में, तीन दिन अग्नि में, तीन दिन आकाश में और एक दिन अपने घर में निवास करता है। जब तक मृतक के सूक्ष्म शरीर का निर्माण नहीं होता है, वह…
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श्रीमच्चक्रावतार सहस्त्रबाहु कार्तवीर्य अर्जुन
जब पृथ्वी पर कार्तवीर्य आदि सभी राजा अपने-अपने कर्म के अनुसार उत्पत्ति एवं लय को प्राप्त करते हैं, तब अन्य राजाओं का अतिक्रमण करके केवल नृपवर कार्तवीर्य ही कैसे लोगों के सेव्य (आराध्य) कहलाये? – देवर्षि नारद (बृहन्नारदीयपुराण)
कार्तवीर्य उसी यदुवंश में जन्मे थे जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। विष्णु पुराण में कहा…
https://sambhashan.com/kartveerya-arjuna/
जब पृथ्वी पर कार्तवीर्य आदि सभी राजा अपने-अपने कर्म के अनुसार उत्पत्ति एवं लय को प्राप्त करते हैं, तब अन्य राजाओं का अतिक्रमण करके केवल नृपवर कार्तवीर्य ही कैसे लोगों के सेव्य (आराध्य) कहलाये? – देवर्षि नारद (बृहन्नारदीयपुराण)
कार्तवीर्य उसी यदुवंश में जन्मे थे जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। विष्णु पुराण में कहा…
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Read “महान सृष्टि“ by संभाषण – एक वार्तालाप on Medium: https://medium.com/@Sambhashan_in/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BF-acc5583d771f
Medium
महान सृष्टि
वह कौन सा वन था? अथवा वह कौन सा वृक्ष था? जिससे ये स्वर्ग और पृथ्वी छाँट कर अलग किए गए। हे मनीषी विद्वद्गण! अपने मन से मनन करके पूछिए की…
Read “शबरी के राम“ by संभाषण – एक वार्तालाप on Medium: https://medium.sambhashan.com/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE-21e930c197f1
Medium
शबरी के राम
एक टक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से स्वर फूटे : कहो राम! सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ?
महान सृष्टि
वह कौन सा वन था? अथवा वह कौन सा वृक्ष था? जिससे ये स्वर्ग और पृथ्वी छाँट कर अलग किए गए। हे मनीषी विद्वद्गण! अपने मन से मनन करके पूछिए की कौन इन चौदह भुवनों को धारण करता हुआ अध्यक्ष बनकर बैठा है? — तैत्तिरीय ब्राह्मण
इन प्रश्नों का समाधान इसी ब्राह्मण ग्रंथ में किया…
https://sambhashan.com/mahan-shrishti/
वह कौन सा वन था? अथवा वह कौन सा वृक्ष था? जिससे ये स्वर्ग और पृथ्वी छाँट कर अलग किए गए। हे मनीषी विद्वद्गण! अपने मन से मनन करके पूछिए की कौन इन चौदह भुवनों को धारण करता हुआ अध्यक्ष बनकर बैठा है? — तैत्तिरीय ब्राह्मण
इन प्रश्नों का समाधान इसी ब्राह्मण ग्रंथ में किया…
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न वै मृत्य:
न वै मृत्य:, मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु व्याघ्र के समान प्राणियों का भक्षण नहीं करती है, इसका कोई रूप नहीं देखा जाता है, अतः मृत्यु तो है ही नहीं। वास्तव में प्रमादसंज्ञक अज्ञान ही मृत्यु है, इसी से जीव मोह को प्राप्त होते हैं और इस संसार में पुनः-पुनः शरीर धारण करते हैं। —…
https://sambhashan.com/na-vai-mriyah/
न वै मृत्य:, मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु व्याघ्र के समान प्राणियों का भक्षण नहीं करती है, इसका कोई रूप नहीं देखा जाता है, अतः मृत्यु तो है ही नहीं। वास्तव में प्रमादसंज्ञक अज्ञान ही मृत्यु है, इसी से जीव मोह को प्राप्त होते हैं और इस संसार में पुनः-पुनः शरीर धारण करते हैं। —…
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भगवान शिव का शरभावतार
भगवान शिव के शरभावतार की कथा शिव महापुराण, लिंग पुराण, स्कन्द पुराण आदि पुराणों में मिलती है। प्रस्तुत लेख में कथा का आधार लिंग महापुराण है।
हिरण्यकश्यपु का वध करने के उपरान्त भगवान विष्णु नृसिंह रूप में क्रोध से गर्जन कर रहे थे। उस समय नृसिंह भगवान को देख कर अपने प्राणों की रक्षा में…
https://sambhashan.com/sharabha/
भगवान शिव के शरभावतार की कथा शिव महापुराण, लिंग पुराण, स्कन्द पुराण आदि पुराणों में मिलती है। प्रस्तुत लेख में कथा का आधार लिंग महापुराण है।
हिरण्यकश्यपु का वध करने के उपरान्त भगवान विष्णु नृसिंह रूप में क्रोध से गर्जन कर रहे थे। उस समय नृसिंह भगवान को देख कर अपने प्राणों की रक्षा में…
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प्रणव, गायत्री आदि में स्त्रियों का अधिकार
अर्थ को देखते हुए गायत्री आदि मंत्रों, प्रणव (ॐ) के लिए यह फैलाया जाता है कि यह भगवान की स्तुति हैं अतः किसी को इनके जप में मनाही कैसे हो सकती है?
ऐसे वक्तव्य वही दे सकता है जिसका मंत्रों के विषय में ज्ञान शून्य हो। किन्तु हमारे यहां तो यह प्रथा ही है कि…
https://sambhashan.com/gayatri-mantra-stri-adhikar/
अर्थ को देखते हुए गायत्री आदि मंत्रों, प्रणव (ॐ) के लिए यह फैलाया जाता है कि यह भगवान की स्तुति हैं अतः किसी को इनके जप में मनाही कैसे हो सकती है?
ऐसे वक्तव्य वही दे सकता है जिसका मंत्रों के विषय में ज्ञान शून्य हो। किन्तु हमारे यहां तो यह प्रथा ही है कि…
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भगवद् अवतार का प्रयोजन
स वा इदं विश्वममोघलील (श्रीमद्भागवत), भगवान की लीला अमोघ है, वे लीला से ही इस संसार का सृजन, पालन और संहार करते हैं किन्तु इसमें आसक्त नहीं होते। चक्रपाणि भगवान की शक्ति और पराक्रम अनन्त है, उनकी कोई थाह नहीं पा सकता। उनकी लीला के रहस्य को वही जान सकता है, जो नित्य-निरंतर निष्कपटभाव से…
https://sambhashan.com/bhagwad-awatar/
स वा इदं विश्वममोघलील (श्रीमद्भागवत), भगवान की लीला अमोघ है, वे लीला से ही इस संसार का सृजन, पालन और संहार करते हैं किन्तु इसमें आसक्त नहीं होते। चक्रपाणि भगवान की शक्ति और पराक्रम अनन्त है, उनकी कोई थाह नहीं पा सकता। उनकी लीला के रहस्य को वही जान सकता है, जो नित्य-निरंतर निष्कपटभाव से…
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मायां तु प्रकृतिं
मायां तु प्रकृतिं विद्यान्मायिनं तु महेश्वरम्। – श्वेताश्वतरोपनिषद
उपनिषदों में प्रकृति को ‘लोहित-शुक्ल-कृष्ण’ (अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां) कहा गया है क्योंकि उसमें तीन गुण होते हैं। गुण साम्यावस्था बीजावस्था है, यही शुद्ध माया है – साम्यावस्था अभिमानिनी देवी ‘महालक्ष्मी’ हैं (सूक्तरूप भुवनेश्वरी देवी और महालक्ष्मी देवी दोनों एक ही हैं, आयुध भेद है)। “सदाहं कारणं शम्भो न…
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मायां तु प्रकृतिं विद्यान्मायिनं तु महेश्वरम्। – श्वेताश्वतरोपनिषद
उपनिषदों में प्रकृति को ‘लोहित-शुक्ल-कृष्ण’ (अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां) कहा गया है क्योंकि उसमें तीन गुण होते हैं। गुण साम्यावस्था बीजावस्था है, यही शुद्ध माया है – साम्यावस्था अभिमानिनी देवी ‘महालक्ष्मी’ हैं (सूक्तरूप भुवनेश्वरी देवी और महालक्ष्मी देवी दोनों एक ही हैं, आयुध भेद है)। “सदाहं कारणं शम्भो न…
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