जय बोलो श्री राम की
जय जनक नंदनी जानकी
जय पवनपुत्र हनुमान की
हर घर मे राम दरबार का एक चित्र होना ही चाहिए, क्योंकि परिवार में प्रेम सौहार्द और एक दूसरे के लिए लगाव बना रहता है, ग्रह क्लेश में कमी आती है विशेष कर "शनि और मंगल" की युति वाले लोग तो अपने ऑफिस के टेबल पर भी एक छोटा सा राम दरबार रखें, पूर्व जन्म में की गई कुछ कमियों को दिखाता है ये, इस चित्र को लगाने के साथ में ध्यान रखें कि प्रेम बहुत महत्वपूर्ण है और उससे भी आवश्यक है हमारी भाषाशैली, इससे अगर अब भी आप लोगों को कष्ट देंगे तो सब कर्मों का लेखा जोखा आगे कैरी फॉरवर्ड हो जाएगा।
जय जनक नंदनी जानकी
जय पवनपुत्र हनुमान की
हर घर मे राम दरबार का एक चित्र होना ही चाहिए, क्योंकि परिवार में प्रेम सौहार्द और एक दूसरे के लिए लगाव बना रहता है, ग्रह क्लेश में कमी आती है विशेष कर "शनि और मंगल" की युति वाले लोग तो अपने ऑफिस के टेबल पर भी एक छोटा सा राम दरबार रखें, पूर्व जन्म में की गई कुछ कमियों को दिखाता है ये, इस चित्र को लगाने के साथ में ध्यान रखें कि प्रेम बहुत महत्वपूर्ण है और उससे भी आवश्यक है हमारी भाषाशैली, इससे अगर अब भी आप लोगों को कष्ट देंगे तो सब कर्मों का लेखा जोखा आगे कैरी फॉरवर्ड हो जाएगा।
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𝐄𝐍𝐄𝐑𝐆𝐘 𝐎𝐅 𝐓𝐇𝐈𝐒 𝐒𝐇𝐋𝐎𝐊🙏🚩
क्यों लिखें राम राम, राधे राधे, या जय माता की❓❓❓
अगर आपको डर दिखाया जा रहा है और आप भगवद् नाम ले रहे हैं तो ये कैसे भी सही नही, पर अगर किसी की पोस्ट देखकर अनायास ही मन मे देव छवि का स्मरण हो जाए, और आप भावुक होकर देवता/देवी का नाम स्मरण करें और लिख भी दें तो इसमें बुरा कुछ नही है।
मंदिरों और देवस्थानों के चित्र पोस्ट करने और उन्हें बार बार देखने का प्रभाव ये है कि मैं उन देवताओं के विग्रह और मंदिर के नाम को पहचान लेती हूं जहाँ कि मैं अभी तक पहुंच भी नही पाई हूँ।
रामस्य नाम रूपं च लीला धाम परात्परम् ।
एतच्चतुष्टयं नित्यं सच्चिदानन्दविग्रहम् ।।
(वशिष्ठ संहिता)
भगवान राम का नाम,रूप,लीला और राम का धाम ये चारों नित्य सच्चिदानन्द-स्वरूप हैं । इसलिए नाम जप, नाम स्मरण, नाम चिंतन की अत्यंत महिमा कही गयी है।
अगर आपको डर दिखाया जा रहा है और आप भगवद् नाम ले रहे हैं तो ये कैसे भी सही नही, पर अगर किसी की पोस्ट देखकर अनायास ही मन मे देव छवि का स्मरण हो जाए, और आप भावुक होकर देवता/देवी का नाम स्मरण करें और लिख भी दें तो इसमें बुरा कुछ नही है।
मंदिरों और देवस्थानों के चित्र पोस्ट करने और उन्हें बार बार देखने का प्रभाव ये है कि मैं उन देवताओं के विग्रह और मंदिर के नाम को पहचान लेती हूं जहाँ कि मैं अभी तक पहुंच भी नही पाई हूँ।
रामस्य नाम रूपं च लीला धाम परात्परम् ।
एतच्चतुष्टयं नित्यं सच्चिदानन्दविग्रहम् ।।
(वशिष्ठ संहिता)
भगवान राम का नाम,रूप,लीला और राम का धाम ये चारों नित्य सच्चिदानन्द-स्वरूप हैं । इसलिए नाम जप, नाम स्मरण, नाम चिंतन की अत्यंत महिमा कही गयी है।
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हनुमान द्वादशनाम स्तोत्र
हनुमानंजनासूनुः वायुपुत्रो महाबलः ।
रामेष्टः फल्गुणसखः पिंगाक्षोऽमितविक्रमः ॥
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशकः ।
लक्ष्मण प्राणदाताच दशग्रीवस्य दर्पहा ॥
फलश्रुति-
द्वादशैतानि नामानि कपींद्रस्य महात्मनः ।
स्वापकाले पठेन्नित्यं यात्राकाले विशेषतः ।
तस्यमृत्यु भयंनास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥
1. हनुमान
2. अंजनी सुत
3. वायु पुत्र
4. महाबल
5. रामेष्ट
6. फाल्गुण सखा
7. पिंगाक्ष
8. अमित विक्रम
9. उदधिक्रमण
10. सीता शोक विनाशन
11. लक्ष्मण प्राण दाता
12. दशग्रीव दर्पहा
हनुमान जी के ये सुन्दर बारह नाम उनके माहात्म्य को बताते हैं। बुरे समय में, यात्रा में इसका जाप करने से भय नहीं रहता एवं सब कार्य में विजय प्राप्त होती है।
जय श्री राम🚩
हनुमानंजनासूनुः वायुपुत्रो महाबलः ।
रामेष्टः फल्गुणसखः पिंगाक्षोऽमितविक्रमः ॥
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशकः ।
लक्ष्मण प्राणदाताच दशग्रीवस्य दर्पहा ॥
फलश्रुति-
द्वादशैतानि नामानि कपींद्रस्य महात्मनः ।
स्वापकाले पठेन्नित्यं यात्राकाले विशेषतः ।
तस्यमृत्यु भयंनास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥
1. हनुमान
2. अंजनी सुत
3. वायु पुत्र
4. महाबल
5. रामेष्ट
6. फाल्गुण सखा
7. पिंगाक्ष
8. अमित विक्रम
9. उदधिक्रमण
10. सीता शोक विनाशन
11. लक्ष्मण प्राण दाता
12. दशग्रीव दर्पहा
हनुमान जी के ये सुन्दर बारह नाम उनके माहात्म्य को बताते हैं। बुरे समय में, यात्रा में इसका जाप करने से भय नहीं रहता एवं सब कार्य में विजय प्राप्त होती है।
जय श्री राम🚩
जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
जिन पर राम की कृपा होती है, उन्हें कोई सांसारिक दुःख छू तक नहीं सकता। परमात्मा जिस पर कृपा करते है उस पर तो सभी की कृपा अपने आप होने लगती है । और जिनके अंदर कपट, दम्भ (पाखंड) और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में रघुपति बसते हैं अर्थात उन्हीं पर प्रभु की कृपा होती है।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
जिन पर राम की कृपा होती है, उन्हें कोई सांसारिक दुःख छू तक नहीं सकता। परमात्मा जिस पर कृपा करते है उस पर तो सभी की कृपा अपने आप होने लगती है । और जिनके अंदर कपट, दम्भ (पाखंड) और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में रघुपति बसते हैं अर्थात उन्हीं पर प्रभु की कृपा होती है।
क्या आपके पास जप-माला है❓
अगर हाँ, तो कौन सी माला का प्रयोग करते हैं आप❓
अगर आपके पास जप माला नही है तो इस नवरात्र एक जपमाला और एक गौमुखी जरूर लें।
108 मनके की माला की जगह प्रयास करें कि 27 दाने की सुमिरनी लें क्योंकि 27×4 बार पाठ करने पर जप संख्या 108 हो ही जाएगी।
कई बार सुबह आफिस के लिए लेट हो रहे लोग माला ऐसे करते हैं जैसे भुगत रहे हैं, माला म् प्रेम समर्पण और धैर्य जरूरी है।
तो 108 जप का टाइम नही तो 27 बार ही सही पर, प्रेम और समर्पण के साथ, शुद्ध उच्चारण करते हुए करें जप।
भगवती के जप के लिए कमलगट्टे, स्फटिक की माला लें, एक रुद्राक्ष की माला तो होनी ही चाहिए।
बांकी साधना के अनुसार हल्दी, रक्त चंदन की माला आदि का भी प्रयोग होता है।
अगर हाँ, तो कौन सी माला का प्रयोग करते हैं आप❓
अगर आपके पास जप माला नही है तो इस नवरात्र एक जपमाला और एक गौमुखी जरूर लें।
108 मनके की माला की जगह प्रयास करें कि 27 दाने की सुमिरनी लें क्योंकि 27×4 बार पाठ करने पर जप संख्या 108 हो ही जाएगी।
कई बार सुबह आफिस के लिए लेट हो रहे लोग माला ऐसे करते हैं जैसे भुगत रहे हैं, माला म् प्रेम समर्पण और धैर्य जरूरी है।
तो 108 जप का टाइम नही तो 27 बार ही सही पर, प्रेम और समर्पण के साथ, शुद्ध उच्चारण करते हुए करें जप।
भगवती के जप के लिए कमलगट्टे, स्फटिक की माला लें, एक रुद्राक्ष की माला तो होनी ही चाहिए।
बांकी साधना के अनुसार हल्दी, रक्त चंदन की माला आदि का भी प्रयोग होता है।
पितृदोष के लक्षण और कारण
श्राद्ध क्या है❓
श्रद्धा शब्द से ही श्राद्ध शब्द बना है।
श्रद्धार्थमिदं श्राद्धम्
श्रद्धया कृतं सम्पादितमिदम्
श्रद्धया दीयते यस्मात् तच्छ्राद्धम्
श्रद्धया इदं श्राद्धम्
पित्रु द्देश्यकश्रद्धयान्नादि दानम्
श्रद्धया अन्नादेर्दानं श्राद्धं
श्रद्धया दीयते यस्माच्छ्राद्धम तेन निगद्यते
पितृगण के उद्देश्य से सविधि श्रद्धापूर्वक किये गये कर्म को ही श्राद्ध कहते हैं।
श्रद्धया पितृन् उद्दिश्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम्।
बिना श्रद्धा किये गए श्राद्ध का क्या औचित्य❓
बहुत दुर्भाग्य की बात है कि पितृ तीर्थ - गया जी या मातृ तीर्थ सिद्धपुर लोग अपने मन से अपने पितरों के प्रति कर्तव्य समझ कर नही जाते हैं बल्कि जब पितृ रूष्ट होते हैं या पितृदोष उत्त्पन्न होता है निम्नांकित समस्याएं होने लगती हैं।
◆संतान उत्त्पति मे बाधा आये।
◆पारिवारिक क्लेश हों।
◆तरक्की और समृद्धि के मार्ग में बाधाएं आएं।
◆घर मे शादी ब्याह से संबंधित कार्य बहुत प्रयास के बाद भी न हो पा रहे हों।
◆स्वास्थ्य संबंधित समस्यायें।
◆कामकाज बिज़नेस में अड़चनें इत्यादि।...
श्राद्ध क्या है❓
श्रद्धा शब्द से ही श्राद्ध शब्द बना है।
श्रद्धार्थमिदं श्राद्धम्
श्रद्धया कृतं सम्पादितमिदम्
श्रद्धया दीयते यस्मात् तच्छ्राद्धम्
श्रद्धया इदं श्राद्धम्
पित्रु द्देश्यकश्रद्धयान्नादि दानम्
श्रद्धया अन्नादेर्दानं श्राद्धं
श्रद्धया दीयते यस्माच्छ्राद्धम तेन निगद्यते
पितृगण के उद्देश्य से सविधि श्रद्धापूर्वक किये गये कर्म को ही श्राद्ध कहते हैं।
श्रद्धया पितृन् उद्दिश्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम्।
बिना श्रद्धा किये गए श्राद्ध का क्या औचित्य❓
बहुत दुर्भाग्य की बात है कि पितृ तीर्थ - गया जी या मातृ तीर्थ सिद्धपुर लोग अपने मन से अपने पितरों के प्रति कर्तव्य समझ कर नही जाते हैं बल्कि जब पितृ रूष्ट होते हैं या पितृदोष उत्त्पन्न होता है निम्नांकित समस्याएं होने लगती हैं।
◆संतान उत्त्पति मे बाधा आये।
◆पारिवारिक क्लेश हों।
◆तरक्की और समृद्धि के मार्ग में बाधाएं आएं।
◆घर मे शादी ब्याह से संबंधित कार्य बहुत प्रयास के बाद भी न हो पा रहे हों।
◆स्वास्थ्य संबंधित समस्यायें।
◆कामकाज बिज़नेस में अड़चनें इत्यादि।...
पितृपक्ष में श्राद्धकी महिमा-
आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्ति पुष्टिं बलं श्रियम् ।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात् ॥
आयुः प्रजां धनं वित्तं स्वर्ग मोक्षं सुखानि च।
प्रयच्छन्ति तथा राज्यं प्रीता नृणां पितामहाः ॥
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों को पिण्डदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि,बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्यादि की प्राप्ति करता है। यही नहीं, पितरों की कृपा से ही उसे सब प्रकार की समृद्धि, सौभाग्य, राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। आश्विनमास के पितृपक्ष में पितरों को आशा लगी रहती है। कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलाञ्जलि प्रदानकर संतुष्ट करेंगे। यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। अतएव प्रत्येक हिन्दू सद्गृहस्थ का धर्म है कि वह पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध एवं तर्पण अवश्य करे तथा अपनी शक्ति के अनुसार फल-मूल जो भी सम्भव हो, पितरों के निमित्त प्रदान करे।
आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्ति पुष्टिं बलं श्रियम् ।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात् ॥
आयुः प्रजां धनं वित्तं स्वर्ग मोक्षं सुखानि च।
प्रयच्छन्ति तथा राज्यं प्रीता नृणां पितामहाः ॥
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों को पिण्डदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि,बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्यादि की प्राप्ति करता है। यही नहीं, पितरों की कृपा से ही उसे सब प्रकार की समृद्धि, सौभाग्य, राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। आश्विनमास के पितृपक्ष में पितरों को आशा लगी रहती है। कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलाञ्जलि प्रदानकर संतुष्ट करेंगे। यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। अतएव प्रत्येक हिन्दू सद्गृहस्थ का धर्म है कि वह पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध एवं तर्पण अवश्य करे तथा अपनी शक्ति के अनुसार फल-मूल जो भी सम्भव हो, पितरों के निमित्त प्रदान करे।
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Which jyotirlinga connected with your Rashi ?
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तुलसी का अनोखा प्रयोग
तुलसी की सूखी लकड़ियाँ अगर घर मे हों तो एकादशी को करें ये उपाय, कार्तिक मास दीप जलाने का महीना है, अगर वो विष्णुप्रिया तुलसी जी के साथ हो तो क्या बात है।
तुलसी की सूखी लकड़ियाँ अगर घर मे हों तो एकादशी को करें ये उपाय, कार्तिक मास दीप जलाने का महीना है, अगर वो विष्णुप्रिया तुलसी जी के साथ हो तो क्या बात है।