कविग्राम
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यह चैनल कवि, कविता तथा कवि सम्मेलनों के साथ ही सृजन की समस्त संभावनाओं को समर्पित है।
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जिस तट पर प्यास बुझाने से अपमान प्यास का होता हो‚
उस तट पर प्यास बुझाने से प्यासा मर जाना बेहतर है।

जब आंधी‚ नाव डुबो देने की
अपनी ज़िद्द पर अड़ जाए‚
हर एक लहर जब नागिन बनकर
डसने को फन फैलाए‚
ऐसे में भीख किनारों की मांगना धार से ठीक नहीं‚
पागल तूफ़ानों को बढ़कर आवाज़ लगाना बेहतर है।

काँटे तो अपनी आदत के
अनुसारा नुकीले होते हैं‚
कुछ फूल मगर काँटों से भी
ज़्यादा ज़हरीले होते हैं‚
जिनको माली आँखें मीचे‚ मधु के बदले विष से सींचे‚
ऐसी डाली पर खिलने से पहले मुरझाना बेहतर है।

जो दिया उजाला दे न सके‚
तम के चरणों का दास रहे‚
अंधियारी रातों में सोये‚
दिन में सूरज के पास रहे‚
जो केवल धुआँ उगलता हो‚ सूरज पर कालिख मलता हो‚
ऐसे दीपक का जलने से पहले बुझ जाना बेहतर है।

~ बुद्धिसेन शर्मा

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