आज रानी लक्ष्मीबाई की जयन्ती है। मेरे मन में यह जिज्ञासा हुई कि इतनी ऊँचाई से कोई कैसे कूद सकता है। इस जिज्ञासा का उत्तर तलाशते हुए मुझे समझ आया कि जब हिम्मत अपना आकार बढ़ाती है तो दीवारों का क़द बौना हो जाता है। प्रस्तुत है इस चिंतन के दो मुक्तक :
उन हाथों में बिजली की तेज़ी थी; तलवारों से पूछो
दुर्गा का साक्षात रूप थी; युग के हरकारों से पूछो
आँखों में अंगार, पीठ पर ममता लेकर ऊँचाई से
कैसे कूदी थी इक रानी; जाकर दीवारों से पूछो
हिम्मत की राहों में जब भी आईं तो चुक गयी दीवारें
कैसे कूदेगी अम्बर से रानी; उत्सुक भयी दीवारें
चण्डी स्वयं विराज रही थी उस दिन झाँसी की रानी में
रानी के तेवर देखे तो धरती तक झुक गयी दीवारें
© चिराग़ जैन
#RaniLaxmiBai
उन हाथों में बिजली की तेज़ी थी; तलवारों से पूछो
दुर्गा का साक्षात रूप थी; युग के हरकारों से पूछो
आँखों में अंगार, पीठ पर ममता लेकर ऊँचाई से
कैसे कूदी थी इक रानी; जाकर दीवारों से पूछो
हिम्मत की राहों में जब भी आईं तो चुक गयी दीवारें
कैसे कूदेगी अम्बर से रानी; उत्सुक भयी दीवारें
चण्डी स्वयं विराज रही थी उस दिन झाँसी की रानी में
रानी के तेवर देखे तो धरती तक झुक गयी दीवारें
© चिराग़ जैन
#RaniLaxmiBai