कविग्राम
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यह चैनल कवि, कविता तथा कवि सम्मेलनों के साथ ही सृजन की समस्त संभावनाओं को समर्पित है।
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नमस्ते जी!
कविग्राम परिवार कामना करता है कि आपकी मेधा की "अक्षय लक्ष्मी" और आपके बैंक अकाउंट की "चंचला" अनवरत वृद्धि को प्राप्त हो।
आपकी वाणी में "काव्योक्ति की वन्दनवार" सजे; आपके चिन्तन का आंगन "समृद्धि की रंगोली" से युक्त हो तथा आपकी आँखों में "संतुष्टि के दीप" दमकें।

(चिराग़ जैन)
सम्पादक
कविग्राम

https://kavigram.com/
सत्ता चाहे जिसकी भी हो अहम् नहीं स्वीकार प्रजा को
कर्मकाण्ड से कर्मयोग ने पल में लिया उबार प्रजा को
गोकुलवालो! छोड़ो छलिया इंद्रदेव का पूजन करना
पर्वत ढोकर ही मिलता है जीने का अधिकार प्रजा को

© चिराग़ जैन

गौवर्द्धन पर्व की शुभेषणा!

#Govardhan
#HindiPoetry
#kavigram
#ChiragJain
काका हाथरसी समारोह में आइये!

यहाँ होगा ढेर सारी खिलखिलाहट
बेहतरीन हास्य कविताएँ
काका की मुस्कुराती हुई स्मृतियाँ
संगीत तथा हास्य के पुरस्कार अर्पण
और एक ख़ूबसूरत गीत संग्रह का लोकार्पण

यहाँ आपको मिलेंगे
हिन्दी कवि-सम्मेलन जगत् के ढेर सारे सितारे और राजनीति, पत्रकारिता, संगीत तथा समाजसेवा से जुड़े देश-विदेश के सिलिब्रिटी।

12 नवम्बर 2021
प्यारेलाल भवन, बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग, नयी दिल्ली
शाम 05:30 बजे

भूल न जाना...

प्रवेश निःशुल्क है
और खिलखिलाहट अनमोल है।
मनजीत सिंह जी को काका हाथरसी हास्य रत्न सम्मान की बधाई
डॉ प्रवीण शुक्ल को पचासवें जन्मदिन की बधाई
चिराग़ जैन को ब्रज शुक्ल घायल सम्मान की बधाई
मनीषा शुक्ला को 'मीठा काग़ज़' के लोकार्पण की बधाई
नैतिकता और अनैतिकता के मध्य एक 'वास्तविकता' होती है जो सिर्फ़ परिस्थिति से उत्पन्न होती है। समाज उसमें नैतिक और अनैतिक के मापदंड लगाता रह जाता है और उस स्थिति के पात्र इन मापदंडों से कोसों दूर, केवल उस परिस्थिति को भोग रहे होते हैं।
मन्नू भण्डारी जी का 'आपका बंटी' ऐसे ही एक दृश्य का सम्यक चित्रण है। उस दृश्य को इतनी निर्लिप्तता से देखने वाली दृष्टि विलीन हो गयी है।
निजता के जिन कमरों में पवन का प्रवेश भी वर्जित था, वहाँ से किसी के चरित्र की झालर छुए बिना संवेदना उठा लाने वाली मन्नू जी की लेखनी अनुकरणीय है। उनकी संवेदना को प्रणाम!
आज रानी लक्ष्मीबाई की जयन्ती है। मेरे मन में यह जिज्ञासा हुई कि इतनी ऊँचाई से कोई कैसे कूद सकता है। इस जिज्ञासा का उत्तर तलाशते हुए मुझे समझ आया कि जब हिम्मत अपना आकार बढ़ाती है तो दीवारों का क़द बौना हो जाता है। प्रस्तुत है इस चिंतन के दो मुक्तक :

उन हाथों में बिजली की तेज़ी थी; तलवारों से पूछो
दुर्गा का साक्षात रूप थी; युग के हरकारों से पूछो
आँखों में अंगार, पीठ पर ममता लेकर ऊँचाई से
कैसे कूदी थी इक रानी; जाकर दीवारों से पूछो

हिम्मत की राहों में जब भी आईं तो चुक गयी दीवारें
कैसे कूदेगी अम्बर से रानी; उत्सुक भयी दीवारें
चण्डी स्वयं विराज रही थी उस दिन झाँसी की रानी में
रानी के तेवर देखे तो धरती तक झुक गयी दीवारें

© चिराग़ जैन

#RaniLaxmiBai
नमस्कार!
कविग्राम ने फेसबुक पर एक 'ग्रुप' की शुरुआत की है। इस ग्रुप में श्रेष्ठ रचनाएँ तथा कवि-सम्मेलन सम्बन्धी विशेष गतिविधियां साझा की जाएंगी। 24 घण्टे में लगभग 1300 लोग इस समूह से जुड़ चुके हैं। अनेक प्रतिष्ठित कविगण इस समूह के सदस्य हैं।
https://www.facebook.com/groups/kavigram/
ये भी मुमकिन है ये बौनों का शहर हो; इसलिए
छोटे दरवाज़ों की ख़ातिर अपना क़द छोटा न कर

~ राजगोपाल सिंह

#kavigram #hindipoetry
जिस तट पर प्यास बुझाने से अपमान प्यास का होता हो‚
उस तट पर प्यास बुझाने से प्यासा मर जाना बेहतर है।

जब आंधी‚ नाव डुबो देने की
अपनी ज़िद्द पर अड़ जाए‚
हर एक लहर जब नागिन बनकर
डसने को फन फैलाए‚
ऐसे में भीख किनारों की मांगना धार से ठीक नहीं‚
पागल तूफ़ानों को बढ़कर आवाज़ लगाना बेहतर है।

काँटे तो अपनी आदत के
अनुसारा नुकीले होते हैं‚
कुछ फूल मगर काँटों से भी
ज़्यादा ज़हरीले होते हैं‚
जिनको माली आँखें मीचे‚ मधु के बदले विष से सींचे‚
ऐसी डाली पर खिलने से पहले मुरझाना बेहतर है।

जो दिया उजाला दे न सके‚
तम के चरणों का दास रहे‚
अंधियारी रातों में सोये‚
दिन में सूरज के पास रहे‚
जो केवल धुआँ उगलता हो‚ सूरज पर कालिख मलता हो‚
ऐसे दीपक का जलने से पहले बुझ जाना बेहतर है।

~ बुद्धिसेन शर्मा

#kavigram #besthindipoetry
मुश्किलो, और बढ़ो, और बिछाओ काँटे
राह में, पाँव में, दामन में सजाओ काँटे
दर्द कम होगा तो आराम की याद आएगी
दूर मन्ज़िल है अभी, ढूंढ के लाओ काँटे

© चिराग़ जैन
सत्य, जिसकी हम अभागे खोज करते फिर रहे हैं 

वो युगों से वैभवों का दास बनकर जी रहा है
न्याय, जिसकी चाह में जीवन समर्पित कर चुके हैं
वो किसी दरबार में उपहास बनकर जी रहा है

पीर की सिसकी सुनी तो आँख का पानी पिलाया
दर्द बेघर था, उसे अपने बड़े दिल में बसाया
आह बेसुध थी, उसे सम्बल दिया अपनी भुजा का
हिचकियाँ बेचैन फिरती थीं, गले उनको लगाया
कष्ट की आँखें सजल पाकर उसे अपना कहा था
रंगमंचों पर वही, उल्लास बनकर जी रहा है

आपसी विश्वास, छल की छूट का पर्याय भर है
हर शपथ, मन में बसे इक झूठ का पर्याय भर है
धैर्य कड़वा घूँट है, कायर जनों का ढोंग कोरा
दान क्या है, आत्मा की लूट का पर्याय भर है
भाग्य जब हमसे मिला तो, ठूठ-सा था रूप उसका
आजकल वह बाग़ में मधुमास बनकर जी रहा है

ज्ञान, अपनी धूर्तता को, नीति कहने की कला है
धर्म, नियमों को नियति की रीति कहने की कला है
अर्थ है वह उपकरण जो पाप को भी पुण्य कर दे
प्रेम, कोरी वासना को प्रीति कहने की कला है
जो कथानक वास्तविकता के धरातल पर नहीं था
आजकल वह विश्व का इतिहास बनकर जी रहा है

© चिराग़ जैन
हर दिशा में विष घुला है
मृत्यु का फाटक खुला है
इक धुँआ-सा हर किसी के
प्राण लेने पर तुला है
साँस ले पाना कठिन है, घुट रहा है दम
नीलकंठी हो गए हैं हम

हम ज़हर के घूँट को ही श्वास कहने पर विवश हैं
ज़िन्दगी पर हो रहे आघात सहने पर विवश हैं
श्वास भी छलने लगी है
पुतलियाँ जलने लगी हैं
इस हलाहल से रुधिर की
वीथियाँ गलने लगी हैं
उम्र आदम जातियों की हो रही है कम
नीलकंठी हो गए हैं हम

पेड़-पौधों के नयन का स्वप्न तोड़ा है शहर ने
हर सरोवर, हर नदी का मन निचोड़ा है शहर ने
अब हवा तक बेच खाई
भेंट ईश्वर की लुटाई
श्वास की बाज़ी लगाकर
कौन-सी सुविधा जुटाई
जो सहायक थे, उन्हीं से हो गए निर्मम
नीलकंठी हो गए हैं हम

लोभ की मथनी चलाई, नाम मंथन का लिया है
सत्य है हमने समूची सृष्टि का दोहन किया है
देवता नाराज़ हैं सब
यंत्र धोखेबाज़ हैं सब
छिन चुके वरदान सारे
किस क़दर मोहताज हैं सब
हद हुई है पार, बाग़ी हो गया मौसम
नीलकंठी हो गए हैं हम

अब प्रकृति के देवता को पूज लेंगे तो बचेंगे
जो मिटाया है उसे फिर से रचेंगे तो बचेंगे
साज हैं पर स्वर नहीं हैं
राह है रहबर नहीं हैं
विष पचाकर जी सकेंगे
हम कोई शंकर नहीं हैं
मृत्यु ताण्डव कर रही है, द्वार पर है यम
नीलकंठी हो गए हैं हम

© चिराग़ जैन

#ChiragJain #pollution #hindipoetry