भीड़ में चलती छायाएं हैं,
चेहरे सब पहचाने से, पर परछाइयां पराई हैं।
हर कोई बोलता बहुत है,
पर भीतर गूंजती बस खामोश सच्चाई है।
हर तालियाँ धोखा हैं शायद,
हर वाहवाही एक जाल है,
भीड़ में जो सबसे आगे है,
वो भी भीतर से निढाल है।
सत्य कभी भी शोर में न था,
न वो मंचों की रौनक में मिला,
वो तो बैठा था चुपचाप कहीं,
जहाँ आत्मा ने खुद को टटोला, और मिला।
एकांत में जो मिलता है न,
वो ही अमूल्य ज्ञान है,
वहाँ कोई दिखावा नहीं,
सिर्फ खुद से एक सच्चा संवाद है।
भीड़ भ्रम है, ये समझो साथियों,
सत्य तो अकेले में ही उगता है,
भीतर की शांति, भीतर की लौ
यही तो असली जीवन जगता है।
शुभ रात्रि 🚩
चेहरे सब पहचाने से, पर परछाइयां पराई हैं।
हर कोई बोलता बहुत है,
पर भीतर गूंजती बस खामोश सच्चाई है।
हर तालियाँ धोखा हैं शायद,
हर वाहवाही एक जाल है,
भीड़ में जो सबसे आगे है,
वो भी भीतर से निढाल है।
सत्य कभी भी शोर में न था,
न वो मंचों की रौनक में मिला,
वो तो बैठा था चुपचाप कहीं,
जहाँ आत्मा ने खुद को टटोला, और मिला।
एकांत में जो मिलता है न,
वो ही अमूल्य ज्ञान है,
वहाँ कोई दिखावा नहीं,
सिर्फ खुद से एक सच्चा संवाद है।
भीड़ भ्रम है, ये समझो साथियों,
सत्य तो अकेले में ही उगता है,
भीतर की शांति, भीतर की लौ
यही तो असली जीवन जगता है।
शुभ रात्रि 🚩