Bhajan Diary (भजन डायरी)
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*ओ साँवरिया रे, एक झलक तो दिखादे,*
*अरमां मेरे प्यासे, मस्ती के दरिया सें,*
*दो चार बूंद पिला दे ।।*
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तेरे मेरे रिश्ते जूने,
मुझसे तेरी आँख मिचौनी,
दिल को भाई रे हरजाई,
सूरत तेरी श्याम सलौनी,
नैना नुकीले हैं, भाव लरजीले हैं,
मस्ती को कायम बनादे ।। एक झलक तो....
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घायल करके मन पंछी को,
तेरा परदे में छिप जाना,
मेरी दिवाली ओ वनमाली,
करते हो क्यों व्यर्थ बहाना,
आशा लगाई है, नजरें बिछाई हैं,
दर्दी को कुछ तो दवा दे ।। एक झलक तो....
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छेड़ के मेरे अरमानों को,
तड़फाना कोई खेल नहीं है,
मन मंदिर के ठाकुर से क्या,
मेरा अपना मेल नहीं है,
जीवड़ो दुखावै क्यूँ, नैणा नचावै क्यूँ,
किश्ती किनारे लगा दे ।। एक झलक तो....
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नीलवरण धारी नटवर नागर,
सागर है तूं नाथ दया का,
श्यामबहादुर लूट लिया है,
मेरा सबकुछ डाल के डाका,
'शिव' दास तेरा है, तूं मीत मेरा है,
सोया नसीबा जगा दे ।। एक झलक तो....
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*श्रद्धेय शिवचरणजी भीमराजका द्वारा 'ओ साथी रे, तेरे बिना भी क्या जीना' गीत की तर्ज़ पर रचित अनुपम रचना*
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🌹॥ सुभहकी कुछ सुभाषिते ॥🌹

🙏करदर्शनम् 🙏

कराग्रे वसते लक्ष्मी : 'करमुले सरस्वती |
करमध्ये तु गोविंदं ' प्रभाते करदर्शनम् ॥

🙏 धरती माता को वंदन 🙏

समुद्र वसने देवि! पर्वत स्तन मंडले |
विष्णुःपत्नी : नमसुंभ्यं पाद स्पर्श क्षमस्वमे ॥

🌹गोविंद को नमस्कार 🌹

वसुदेव सुतं देवं ' कंसचानुर मर्दनं |
देवकी परमानंदम् 'कृष्णं वंदे जगद्गुरुम ॥

🔥 सुर्यदेवता को नमस्कार 🔥

आदिदेवनम :स्तुभ्यं प्रसिदमम भास्कर |
दिवाकर : नम :स्तुभं प्रभाकर नमः स्तुते ॥
🔥 फलश्रृती 🔥
आदीतस्यनमस्कारं ये कुरवंती दिनेदिने I
जन्मातर शहस्त्रेशु नोप जाय ते ॥

🕉सात चिरंजिव 🕉

अश्वस्थामाबलीरव्यसो हनुमांसोबिभीषनः I
कृप: परशुरामश्च, सप्तैते चिरजीवीन :

पाच सती

अहल्याद्रोपदीसीता , तारा मंदोदरी तथा :
पंचकन्या स्मरेनित्यं महापात कनाशनम् ॥

💐सातमोक्षपुरी 💐

अयोध्यामथुरामाया ' काशीकांची अवंतिका |
पुरीद्वारीकाचैव सप्ततैते मोक्षदायी का : ॥

🌲 अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधी विनाशणं |
सुर्यपादोदंकंतिर्थम् जठरेधार याम्यहम् ॥🌲

👏 पुन्यश्लोको नलोराजा पुन्यश्लोको युधिष्ठिर :
पुन्यश्लोकाश्चवैदेहि पुन्यश्लोको जनार्दन : ॥👏

🌹॥श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥🌹

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हर हर महादेव 🙏🏻
*🥀२५ फरवरी २०२३ शनिवार🥀*
*//फाल्गुन शुक्लपक्ष षष्ठी २०७९//*

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*ऋषि चिंतन*
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*सुघड़ व्यक्तित्व गढ़ने की पाठशाला*
*--〰️परिवार〰️ --*
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👉 *"शालीनता" पुष्प वाटिका की तरह फैलती है ।* अपनी सुगंध और शोभा से दर्शकों का मन मोहती और वातावरण को सुगंध से भरती है, उसकी सर्वत्र सराहना होती है । इसके विपरीत हेय व्यक्ति के कण-कण में घुसी हुई निकृष्टता सर्वप्रथम अपने को अप्रमाणिक, अनगढ़ एवं घृणा-तिरस्कार का भाजन बनाती है । उसके उपरांत उसके साथी सहयोगी उस संस्कार छूत से प्रभावी होते हैं । कचरा जब सड़ता है तो विषाणु से सारे प्रभाव क्षेत्र में सड़न- असहनीय दुर्गंध भरती है । *"परिवार" कैसा बन पड़ा ? इसके संबंध में यही कहा जा सकता है कि जैसा कुछ उसे बनाया गया वैसा बन गया ।* कुंती और मदालसा ने अपने स्तर का प्रजनन और परिवार बना कर खड़ा कर दिया । परिवार बनाने में कोई बुद्धिमत्ता नहीं, यह कार्य तो क्षुद्र स्तर के प्राणी कीड़े-मकोड़े भी करते रहते हैं । *मनुष्य की गरिमा यह है कि वह परिवार के साथ रहने की प्रवृत्ति-प्रेरणा को सार्थक बनाने, सीखने सिखाने का, ढलने ढालने का क्रम जारी रखें ।*
👉 सेवा का दृष्टिकोण तो विश्व व्यापक स्तर का रखा जा सकता है, पर उसे व्यवहार में चरितार्थ कर पाना अपने निकटवर्ती क्षेत्र में ही बन पड़ता है । *"परिवार" एक ऐसी संस्था है, जो बालक के जन्मने से पूर्व ही उसे सहयोग प्रदान करने के लिए तैयार रहती है ।* अपनी बहुमुखी उदारता से उसे बना-बढ़ाकर लाभान्वित करती है, स्नेह देने और सुधारने सिखाने में उसकी अपने ढंग की भूमिका रहती है । *बड़े होने पर उस बालक का कर्तव्य हो जाता है कि जो अनुदान दिया गया है उसका प्रति दान देने की तैयारी करें और जब तक वह श्रृंखला पूरी तरह न बन पड़े तब तक नए उत्तरदायित्व अपने अपने ऊपर ओढ़ने का दुस्साहस न करें ।* यह उऋणता मात्र भोजन वस्त्र जैसी सुविधाएंँ जुटा देने भर से पूरी नहीं हो जाती वरन्
यह अपेक्षा रखती है कि अधिक *"सुसंस्कृत'* बनकर अपने परिवार का सदस्य उस भावनात्मक विभूतियों से उन्हें लाभान्वित करें, जो सच्चे अर्थों में किसी को प्रामाणिक, प्रतिभावान और सुसंस्कृत बनाती है । *परिवार की खदान भले "कोयले" जैसी रही हो पर उसमें से प्राणवान प्रतिभाओं को तो "हीरा" बन कर ही निकलना चाहिए । कीचड़ में "कमल" खिल सकते हैं, सीपियों में "मोती" बन सकते हैं तो कोई कारण नहीं है कि सामान्यतया अनगढ़ परिस्थितियों वाले परिवार में भी उच्च स्तरीय प्रतिभाएँ न जग सकें --इस सुयोग का बन पड़ना ही "पारिवारिकता" की उपलब्धि है ।*
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*परिवार को सुव्यवस्थित कैसे बनाएँ ?पृष्ठ-१९*
*🪴पं.श्रीराम शर्मा आचार्य🪴*
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*🥀//२९ जून २०२३ गुरुवार//🥀*
*//आषाढ़ शुक्लपक्षएकादशी २०८०//*
*👉 आज .................*
*🧑‍🎤देवशयनी एकादशी है*
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*ऋषि चिंतन*
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*हम "सभ्य" व "शिष्ट बनें *
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👉 "शिष्टाचार" और "सभ्यता" का बड़ा निकट संबंध है। *हम यह भी कह सकते हैं कि बिना "शिष्टाचार" के मनुष्य "सभ्य" कहला ही नहीं सकता और जो व्यक्ति वास्तव में "सभ्य" होगा उसमें "शिष्टाचार" की प्रवृत्ति स्वभावतः पाई जाएगी।* सभ्य पुरुष ऐसी प्रत्येक बात से अपने आपको बचाने का प्रयत्न करता है, जो दूसरों के मन को क्लेश पहुँचाने या उनमें चिढ़ या खीझ उत्पन्न करे। मनुष्य को समाज में अनेक प्रकार की प्रकृति या स्वभाव वाले मनुष्यों से संसर्ग पड़ता है। कहीं उसका मतभेद होता है, कहीं भावों में संघर्ष होता है, कहीं उसे शंका होती है, कहीं उसे उदासी, आक्षेप, प्रतिरोध या ऐसे ही अन्यान्य भावों का सामना करना पड़ता है। *"सभ्य" पुरुष का कर्त्तव्य ऐसे सब अवसरों पर अपने आपको संयम में रख सब के साथ "शिष्ट" व्यवहार करना है।* उसकी आँखें उपस्थित समाज में चारों ओर होती हैं। *वह संकोचशील व्यक्तियों के साथ अधिक नम्र रहता है। और मूर्खों का भी समाज में उपहास नहीं करता।* वह किसी मनुष्य से बात करते समय उसके पूर्व संबंध की स्मृति रखता है ताकि दूसरा व्यक्ति यह नहीं समझे कि वह उसे भूला हुआ है। *वह ऐसे वाद-विवाद के प्रसंगों से बचता है जो दूसरों के चित्त में खीझ उत्पन्न करें।* जान-बूझकर संभाषण में अपने आपको प्रमुख आकृति नहीं बनाना चाहता और न वार्तालाप में अपनी थकावट व्यक्त करता है। *उसके भाषण और वाणी में मिठास होती है और अपनी प्रशंसा को वह अत्यंत संकोच के साथ ग्रहण करता है।* जब तक कोई बाध्य न करे वह अपने विषय में मुख नहीं खोलता और किसी आक्षेप का भी अनावश्यक उत्तर नहीं देता। *अपनी निंदा पर वह कान नहीं देता न किसी से व्यर्थ हमला मोल लेता है।* दूसरों की नीयत पर हमला करने का दुष्कृत्य वह कभी नहीं करता, बल्कि जहाँ तक बनता है, दूसरों के भावों का अच्छा अर्थ बैठाने का यत्न करता है। यदि झगड़े का कोई कारण उपस्थित हो भी जावे तो वह अपने मन की नीचता कभी नहीं दिखाता।
👉 *वह किसी बात का अनुचित लाभ नहीं उठाता और ऐसी कोई बात मुँह से नहीं निकालता जिसे प्रमाणित करने को वह तैयार न हो।* वह प्रत्येक बात में दूरदर्शी और अग्रसोची होता है। वह बात-बात में अपने अपमान की कल्पना नहीं करता, अपने प्रति की गई बुराइयों को स्मरण नहीं रखता और किसी के दुर्भाव का बदला चुकाने का भाव नहीं रखता। *दार्शनिक सिद्धांतों के विषय में वह गंभीर और त्याग मनोवृत्ति वाला होता है।* वह चर्चा या वादविवाद में दूसरे लोगों की लचर दलीलें, तीक्ष्ण व्यंग्य या अनुचित आक्षेपों से परेशान नहीं होता बल्कि मृदु हास्य के साथ उन्हें टाल देता है। *अपने विचार में सही हो या गलत, परंतु वह उन्हें सदा स्पष्ट रूप में रखता है और जानबूझकर उनका मिथ्या समर्थन या जिद नहीं करता।* वह अपने आपको लघु रूप में प्रकट करता है, पर अपनी क्षुद्रता नहीं दर्शाता । वह मानवी दुर्बलताओं को जानता है और इस कारण उसे क्षमा की दृष्टि से देखता है। अपने विचारों की भिन्नता या उग्रता के कारण वह सज्जन पुरुषों व दूसरों का मजाक नहीं उड़ाता। *दूसरों के विचारों, सिद्धांतों और मन्तव्यों का वह उचित आदर करता है।*
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*"शिष्टाचार" और "सहयोग" पृष्ठ-२०*
*🪴पं.श्रीराम शर्मा आचार्य🪴*
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