🌸 सत्पुरुषों के जीवन का रहस्य क्या है ? उनकी रहनी प्यारी होती है। उनके मन में सबके प्रति भाव प्यारा-प्यारा होता है। उनके जीवन में विनय की मधुरता, उनकी वाणी में संयम होता है, जो बोलना आवश्यक होता है, जिससे सबका कल्याण हो-ऐसी बात बोलते हैं। उनका व्यवहार हमेशा एक तरह का होता है - गरीब से मिलें, धनी से मिलें; आज मिलें, कल मिलें, रोज मिलें, चाहे बहुत दिनों के बाद मिलें। सत्पुरुषों के व्यवहार का वर्णन ऐसे आता है।
#SwamiAkhandanandSaraswati #SadhakSutra #AnandVrindavanAshram
#SwamiAkhandanandSaraswati #SadhakSutra #AnandVrindavanAshram
🙏1
⛰️SHRIMAD BHAGAWAT KATHA (Goverdhan, Mathura -U.P)⛰️
🔴Day 2(AM)
🔗 https://www.youtube.com/live/-HoaAXwfKig?Govardhan
🏔️ नैमिषारण्य की पावन पवित्र भूमि में सूतजी महाराज शौनकादि को सुना रहे है कि देवर्षि महाराज भक्ति महारानी को प्रसन्न करने के लिए सत्कर्म की खोज में थे।
🔹अकाशवाणी ने कहा सत्कर्म करो। सत्कर्म किसे कहते है यह महात्मा बतायेंगे।
🔹 नारदजी ने श्रीधाम वृन्दावन से लेकर बद्रीनाथ की यात्रा की और उस यात्रा में उनकी मुलाकात सनकादि से हुई।
🔹सनकादियो ने नारदजी को बताया सत्कर्म नाम ज्ञान यज्ञ का है
🏔️ तप करना है तो एकांत में जाना आवश्यक है किंतु सत्संग ऐसी जगह होंना चाहिये जहाँ अधिक से अधिक लोग लाभ ले सकें।
🔹सनकादियों ने नारदजी को कथा बद्रीनाथ में नहीं गंगाद्वार(हरिद्वार) में सुनाई।
🏔️ कथा के अर्थ से ज्ञान, भक्ति और वैराग्य प्रकट हुए और संतो के हृदय में बैठ गये।
🔹ज्ञान,भक्ति,वैराग्य और भागवत में अभिन्नता है।जब कोई बहुत आदर के साथ कथा सुनता है तो जैसे सनकादि की कथा मे ज्ञान भक्ति वैराग्य प्रकट हुए थे वैसे ही यह तीनो सुनने वाले के हृदय में, उसकी वाणी में,उसकी क्रिया में प्रकट हो जायेंगे।
🔹हमारा प्रयास यही हो कि ज्ञान वैराग्य और भक्ति केवल सत्संग में ही न रहे यह घर मे और जीवन में भी साथ रर्हे।
🏔️ धन्य वह नहीं है जिसके पास केवल धन है धन्य तो वह है जिसके जीवन में प्रेम का धन है ।
🔹जिसके हृदय में भगवत्प्रेम रूपी धन आ जाता है भगवान फिर उसके बस में हो जाते है ।
🔹जो दुनिया को नचाने वाला है वो प्रेमियों के कहने पर प्रेम से नाचता हैं।
🔹परमात्मा को नचना हो तो परमात्मा से अपने ह्रदय में प्रेम मांगो।
🏔️ क्रिया करने का सुख होना चाहिये - क्रिया को दिखाने का नहीं -हम यह सोचे कि हमारी कोई प्रशंसा करेगा तब हमें उस क्रिया का सुख मिलेगा तो फिर हमें कभी उस क्रिया को करने का सुख मिलेगा ही नहीं।
🔹हम वर्तमान में प्रत्येक क्षण को ऐसा रसीला बनाकर क्रिया करें कि कृष्ण हमारे व्यवहार में हमारी वाणी, हमारे चिंतन में उतर जाये।
🏔️जैसे उर्वरक भूमि में बोया हुआ अन्न कभी व्यर्थ नहीं जाता वैसे ही धर्म में खर्चा किया हुआ धन कभी व्यर्थ नहीं जाता।
🏔️ जैसे पैरों में अच्छे जूते पहन कर पत्थर और कंकरों के रास्ते से बचा जा सकता है वैसे ही हृदय में विचारों का कवच पहकर दुःखरूपी संसार में घटने वाली घटनाओं के दुःख से बचा जा सकता है।
🔹महात्मा लोग यही कवच अपने हृदय में पहन कर रखते है। यह विचारों का कवच हम पहन लें तो संसार में चाहे कैसी भी घटना घटे हम दुःखी नहीं होंगें।
🏔️जैसे कार में बैठने वाला व्यक्ति कार नहीं बनता,घर में रहने वाला व्यक्ति घर नहीं बनता वैसे शरीर में रहने वाला व्यक्ति कभी शरीर नहीं बनता। आप शरीर नहीं शरीरी हो।
🏔️साधु पुरुषों का संग करो उनसे ही आपके जीवन में समता आयेगी और आपकी ममता मिटेगी।
🏔️जगत में आये समता
संबंधों से मिटे ममता और
शरीर से मिटे अहंता।।
तो परमात्मा बहुत नजदीक है ।
🏔️आगे की कथा सुनने के लिए जुड़े रहे...
🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
🎤By: Maharajshri Swami Shravananand Saraswati (Vrindavan)
📍Location: Teerth Vikas Trust, Badi Parikrama Marg,Govardhan -Mathura
🗓 Dates:August 20- August 26 (2025)
🕐Timing: 9.00AM-12.00PM
3.00PM- 6.00PM
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🔹 नारदजी ने श्रीधाम वृन्दावन से लेकर बद्रीनाथ की यात्रा की और उस यात्रा में उनकी मुलाकात सनकादि से हुई।
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🔹सनकादियों ने नारदजी को कथा बद्रीनाथ में नहीं गंगाद्वार(हरिद्वार) में सुनाई।
🏔️ कथा के अर्थ से ज्ञान, भक्ति और वैराग्य प्रकट हुए और संतो के हृदय में बैठ गये।
🔹ज्ञान,भक्ति,वैराग्य और भागवत में अभिन्नता है।जब कोई बहुत आदर के साथ कथा सुनता है तो जैसे सनकादि की कथा मे ज्ञान भक्ति वैराग्य प्रकट हुए थे वैसे ही यह तीनो सुनने वाले के हृदय में, उसकी वाणी में,उसकी क्रिया में प्रकट हो जायेंगे।
🔹हमारा प्रयास यही हो कि ज्ञान वैराग्य और भक्ति केवल सत्संग में ही न रहे यह घर मे और जीवन में भी साथ रर्हे।
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🔹जिसके हृदय में भगवत्प्रेम रूपी धन आ जाता है भगवान फिर उसके बस में हो जाते है ।
🔹जो दुनिया को नचाने वाला है वो प्रेमियों के कहने पर प्रेम से नाचता हैं।
🔹परमात्मा को नचना हो तो परमात्मा से अपने ह्रदय में प्रेम मांगो।
🏔️ क्रिया करने का सुख होना चाहिये - क्रिया को दिखाने का नहीं -हम यह सोचे कि हमारी कोई प्रशंसा करेगा तब हमें उस क्रिया का सुख मिलेगा तो फिर हमें कभी उस क्रिया को करने का सुख मिलेगा ही नहीं।
🔹हम वर्तमान में प्रत्येक क्षण को ऐसा रसीला बनाकर क्रिया करें कि कृष्ण हमारे व्यवहार में हमारी वाणी, हमारे चिंतन में उतर जाये।
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🏔️ जैसे पैरों में अच्छे जूते पहन कर पत्थर और कंकरों के रास्ते से बचा जा सकता है वैसे ही हृदय में विचारों का कवच पहकर दुःखरूपी संसार में घटने वाली घटनाओं के दुःख से बचा जा सकता है।
🔹महात्मा लोग यही कवच अपने हृदय में पहन कर रखते है। यह विचारों का कवच हम पहन लें तो संसार में चाहे कैसी भी घटना घटे हम दुःखी नहीं होंगें।
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संबंधों से मिटे ममता और
शरीर से मिटे अहंता।।
तो परमात्मा बहुत नजदीक है ।
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03-Bhagawat Katha Govardhan | 20-26 Aug 2025 | Swami Shravananand Saraswati Anand Vrindavan
🌻Bhagawat Katha Govardhan | 20-26 Aug 2025 | Swami Shravananand Saraswati Anand Vrindavan
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🔴Day 2(PM)
🔗 https://www.youtube.com/live/SIHNoA0QU6Y?Govardhan
🏔️ तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।।10.10।।
भगवान जब कृपा करते हैं तो जीव को बुद्धियोग देते है और ऐसा बुद्धियोग देते हैं कि उसके जीवन में उल्टी घटनाएं भी यदि घट रही हो तो वह सीधी लगने लगती है और भगवान से जोड़ देती हैं।
🏔️ बुद्धि का बड़ा विलक्षण खेल है।जब बुद्धि बिगड़ जाती है तो सीधी भी घटना उल्टी लगने लगती है और जब बुद्धि सही होती है तो चाहे जितनी उल्टी घटना क्यों न घट रही हो वो हमें सीधी लगने लगती है और हमें भगवान से जोड़ लेती है।
🏔️जो हमसे अपराध होता है उसका फल तो हमे भोगना ही पड़ता है।इन कर्मो का फल हम यदि यहाँ भोग लेंगें तो सस्ते में निकल जायेंगे और यदि उन कर्मो के फल को भोगने के लिए नर्क में जाना पड़े तो उसकी पीड़ा बहुत अधिक होगी।
🏔️ईश्वर अंश जीव अविनाशी।
जीव अविनशी है उसका नाश कभी हो ही नहीं सकता। आत्मा अजर अमर हैं।
🔹यह स्मरण रखना कोई मरता नहीं है और कोई मर सकता नहीं है।
🔹मरण तो इस शरीर का होता है और गीता में भगवान ने इस शरीर को एक वस्त्र की उपमा दी है। शरीर का मरना वस्त्र को बदलने जैसा ही है।
🏔️प्रत्येक क्रिया में सही का समर्थन और गलत का विरोध होना ही चाहिये फिर चाहे वह क्रिया करने वाला हमारा बालक ही क्यों न हो।
🏔️रोग का इलाज है किन्तु मृत्य का नहीं।
🏔️दुनिया की व्यर्थ की बातें करके अपने समय को खराब मत करो समय बहुत कीमती है।यह दुबारा नहीं मिलेगा।समय को यथार्थ वस्तु में लगाने का, भजन में लगाने का प्रयास करो।
🏔️दुनिया के पीछे चाहे जितना पूछ-पूछ कर लो दुनिया सुधरने वाली नहीं है। जितना समय हम दुनिया को पूछने में लगाते है यदि वही समय हम भगवान के भजन में लगा दे तो भगवान हमारे पीछे पीछे आयेंगे हमे पूछने लगेंगे।
गाठ में बांधे नहीं माँगन में सकुचाय, पीछे पीछे हरि फिरे कहीं भूखा न रह जाए।
🏔️साधु प्रशंसा करने वालो के पीछे घूमता नहीं है और निंदा करने वालो की न निंदा करता है न उनसे घृणा करता है।
🔹साधु दोनों में सम रहता है। अगर उसके जीवन मे समता नहीँ है तो वह साधु नहीं है ।
🔹प्रशंसक और निंदक दोनों सम लगने लगे तब समझना जीवन में साधुता आई है।
🔹जो अपने और अपने परिवार के लिए जीते है मरने के बाद उनका नामोनिशान मिट जाता है किंतु जो समाज के लिए जीते है उनका नाम वर्षों तक चलता है।
🏔️महान परमात्मा को पाने के लिए अपनी बुद्धि महान बनाओ। लघु बुद्धि में परमात्मा कैसे बैठेगा?
अपने चित्त का विस्तार करो।
🔹अपना दायरा बढ़ाओ जितना दायर बढ़ाओगे उतना अपने नज़दीक परमात्मा को पाओगे। और अपना दायरा जितना छोटा करते जाओगे परमात्मा उतना ही दूर होता जायेगा।
🏔️आगे की कथा सुनने के लिए जुड़े रहिए...
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ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।।10.10।।
भगवान जब कृपा करते हैं तो जीव को बुद्धियोग देते है और ऐसा बुद्धियोग देते हैं कि उसके जीवन में उल्टी घटनाएं भी यदि घट रही हो तो वह सीधी लगने लगती है और भगवान से जोड़ देती हैं।
🏔️ बुद्धि का बड़ा विलक्षण खेल है।जब बुद्धि बिगड़ जाती है तो सीधी भी घटना उल्टी लगने लगती है और जब बुद्धि सही होती है तो चाहे जितनी उल्टी घटना क्यों न घट रही हो वो हमें सीधी लगने लगती है और हमें भगवान से जोड़ लेती है।
🏔️जो हमसे अपराध होता है उसका फल तो हमे भोगना ही पड़ता है।इन कर्मो का फल हम यदि यहाँ भोग लेंगें तो सस्ते में निकल जायेंगे और यदि उन कर्मो के फल को भोगने के लिए नर्क में जाना पड़े तो उसकी पीड़ा बहुत अधिक होगी।
🏔️ईश्वर अंश जीव अविनाशी।
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🔹यह स्मरण रखना कोई मरता नहीं है और कोई मर सकता नहीं है।
🔹मरण तो इस शरीर का होता है और गीता में भगवान ने इस शरीर को एक वस्त्र की उपमा दी है। शरीर का मरना वस्त्र को बदलने जैसा ही है।
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🏔️रोग का इलाज है किन्तु मृत्य का नहीं।
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गाठ में बांधे नहीं माँगन में सकुचाय, पीछे पीछे हरि फिरे कहीं भूखा न रह जाए।
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🔹साधु दोनों में सम रहता है। अगर उसके जीवन मे समता नहीँ है तो वह साधु नहीं है ।
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04-Bhagawat Katha Govardhan | 20-26 Aug 2025 | Swami Shravananand Saraswati Anand Vrindavan
🌻Bhagawat Katha Govardhan | 20-26 Aug 2025 | Swami Shravananand Saraswati Anand Vrindavan
🌸 लोग संसार में रचे-पचे हैं और दिन-भर में हजारों बार दुःखी होते हैं। कि आगे जाने क्या हो जाये और यही मूर्खता का लक्षण है। ऐसे लोगों को डर और दुःख से छूटने के लिए इच्छा करनी चाहिये ।
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🔴Day 3(AM)
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🏔️ संसार में दुःख नाम की कोई चीज़ है ही नहीं।दुःख का संबंध अज्ञान से है, नासमझी से है।
🔹जो जैसी वस्तु है उसके रूप में उसको न निहार पाना ,न जान पान ही दुःख का कारण है।
🔹दुःख का निवारण केवल ज्ञान से है, सत्संग से है।
🏔️चाहे कितनी ऊँची स्तिथि में पहुँच जाओ बिना सत्संग के जीवन में सुख मिलने वाला नहीं है।
🔹बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
जीवन में बिना सत्संग के विवेक नहीं होता और बिना भगवत्कृपा सत्संग नहीं मिलता।
🏔️वस्तु के अभाव का नाम त्याग नहीं है। वस्तुएं होने के बाद भी वस्तुओं का उपभोग न किया जाए उसका नाम त्याग है।
🏔️यह शरीर पंचमहाभूतों से बना हुआ है और प्रत्यक्ष रूप से भोगने के लिए इस शरीर में पाँच ही इंद्रियां हैं जब तक यह पाँच इंद्री जीवित है तबतक यह भोग मांगती रहेंगी। समझदारी यही है कि इन इंद्रियों पर संयम रख कर जीवन जिया जाए।
🔹 जो इन इन्द्रियों पर अनुशासन रखता है भोग रहने पर भी जो अनुशासन रखता है उसका नाम वैराग्य है।
🏔️तप से व्यक्ति महात्मा बनता है। जो जितना तप करता है उसके जीवन में उतनी ही साधुता आयेगी।
🏔️साधु नाम किसका है?
साधु माने सहनशील साधु माने सरल। जो सहने का गहना पहनता है उसी का नाम साधु है।
🏔️श्रोता जितना समर्पित होता है उतना ही उसके जीवन में ज्ञान का प्रकाश होता है
🏔️श्रद्धा और मनन जीवन में होने से ही पूर्णता आती है।
🏔️भाव का बहुत महत्व है।
भगवान को हमसे धन नहीं चाहिये भगवान भाव के भूखे हैं, वस्तु के नहीं। अपने भाव की रक्षा करो।। अपने भाव को कभी बिगड़ने मत दो।
🏔️महापुरुषों से प्रश्न परीक्षा के लिए नहीं पूछना चाहिये उनसे प्रश्न अपने जीवन को सुधारने के लिए ही पूछना चाहिये।
🔹शास्त्र कहता है महात्मा से उनकी आयु, उनकी जाति, और उनका जन्म स्थान नहीं पूछना चाहिये यह निषिद्ध है - महात्मा से यदि कुछ पूछना हो तो परमात्म सम्बन्धी प्रश्न ही पूछो।
🏔️सुख और दुःख दोनो आगमापाई है। चाहे कितना भी दुःख या सुख हो यह विचार करना चाहिये कि कुछ समय के बाद यह चला जायेगा।
न दुःखके समय में घबराने की ज़रूरत है और न सुख के समय मे इतराने की ज़रूरत है।
🏔️कामना ही हमें बंधन में बाँधती है। कुछ कामना मत करो। न दुःख की निवृत्ति की कामना करो, न सुख की प्राप्ति की कामना करो, कामना करनी हो तो भगवान को पाने की कामना करो।
🏔️ जैसे किसान खेती अनाज के लिए करता है भूसे के लिए नहीं भूसा तो अपने आप मिल जाता है वैसे ही आप भगवान से प्रेम करो तो सुख रूपी संसार का भूसा अपनेआप आपको मिल जायेगा।
आप भगवान की ओर बढ़ो।
🏔️आगे की कथा सुनने के लिए जुड़ें रहिए...
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🔹जो जैसी वस्तु है उसके रूप में उसको न निहार पाना ,न जान पान ही दुःख का कारण है।
🔹दुःख का निवारण केवल ज्ञान से है, सत्संग से है।
🏔️चाहे कितनी ऊँची स्तिथि में पहुँच जाओ बिना सत्संग के जीवन में सुख मिलने वाला नहीं है।
🔹बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
जीवन में बिना सत्संग के विवेक नहीं होता और बिना भगवत्कृपा सत्संग नहीं मिलता।
🏔️वस्तु के अभाव का नाम त्याग नहीं है। वस्तुएं होने के बाद भी वस्तुओं का उपभोग न किया जाए उसका नाम त्याग है।
🏔️यह शरीर पंचमहाभूतों से बना हुआ है और प्रत्यक्ष रूप से भोगने के लिए इस शरीर में पाँच ही इंद्रियां हैं जब तक यह पाँच इंद्री जीवित है तबतक यह भोग मांगती रहेंगी। समझदारी यही है कि इन इंद्रियों पर संयम रख कर जीवन जिया जाए।
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🏔️तप से व्यक्ति महात्मा बनता है। जो जितना तप करता है उसके जीवन में उतनी ही साधुता आयेगी।
🏔️साधु नाम किसका है?
साधु माने सहनशील साधु माने सरल। जो सहने का गहना पहनता है उसी का नाम साधु है।
🏔️श्रोता जितना समर्पित होता है उतना ही उसके जीवन में ज्ञान का प्रकाश होता है
🏔️श्रद्धा और मनन जीवन में होने से ही पूर्णता आती है।
🏔️भाव का बहुत महत्व है।
भगवान को हमसे धन नहीं चाहिये भगवान भाव के भूखे हैं, वस्तु के नहीं। अपने भाव की रक्षा करो।। अपने भाव को कभी बिगड़ने मत दो।
🏔️महापुरुषों से प्रश्न परीक्षा के लिए नहीं पूछना चाहिये उनसे प्रश्न अपने जीवन को सुधारने के लिए ही पूछना चाहिये।
🔹शास्त्र कहता है महात्मा से उनकी आयु, उनकी जाति, और उनका जन्म स्थान नहीं पूछना चाहिये यह निषिद्ध है - महात्मा से यदि कुछ पूछना हो तो परमात्म सम्बन्धी प्रश्न ही पूछो।
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न दुःखके समय में घबराने की ज़रूरत है और न सुख के समय मे इतराने की ज़रूरत है।
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05-Bhagawat Katha Govardhan | 20-26 Aug 2025 | Swami Shravananand Saraswati Anand Vrindavan
🌻Bhagawat Katha Govardhan | 20-26 Aug 2025 | Swami Shravananand Saraswati Anand Vrindavan
🔅Bhagwat Amrit🔅
🌼दशम स्कन्ध (भाग १९७)
🔸 इसके बाद यह कथा आती है कि बलरामजी कौरव-पाण्डवोंमें से किसीके भी पक्षधर न होकर तटस्थ थे और दोनों पक्षों का हित चाहते थे। इसलिए जब उन्होंने देखा कि दोनों पक्ष युद्धकी तैयारी कर रहे हैं तब वे तीर्थयात्राके बहाने बाहर चले गये।
🔸 वे यमुना-गंगाके तटवर्ती तीर्थोका भ्रमण करते हुए नैमिषारण्य-क्षेत्र पहुँचे तो वहाँ देखा कि रोमहर्षणजी सूत-जातिमें उत्पन्न होने पर भी ब्राह्मणोंसे ऊँचे आसन पर बैठे हैं और न तो उठकर स्वागत करते हैं और न प्रणाम करते हैं।
🔸 इसपर बलरामजीको क्रोध आ गया और उन्होंने उन पर कुशकी नोक से प्रहार कर दिया। होनहार ऐसा कि उतने ही प्रहारसे सूतजी मर गये।
🔸 यह देखकर ऋषि-मुनि हाहाकार करने लगे और उन्होंने बलरामजीके स्वरूपका ज्ञान होने पर भी कहा आपको इस हत्याके लिए प्रायश्चित्त करना चाहिए। बलरामजीने लोक-शिक्षाके लिए प्रायश्चित्त करना स्वीकार कर लिया।
🔸 उन्होंने रोमहर्षणके पुत्र रौमहर्षणि उग्रश्रवाको पिताके स्थान पर पुराणोंकी कथा कहनेके लिए प्रतिष्ठित किया और दीर्घायुष्य भी प्रदान कर दिया।
🔸 उसके बाद बलरामजी ऋषियोंके कहने पर वल्वल नामक दानवका वध करके अन्य तीर्थोंकी ओर चले गये।
🔸 इस प्रसंगका तात्पर्य यही है कि बलरामजीने कथाके क्षेत्रमें सूत परम्पराको बदलकर भागवतकी परम्परा स्थापित की। उनके मनमें यही था कि जैसे श्रुतिकी, नारायणकी परम्परामें शुकदेवजी हैं, वैसे ही शेष-परम्परा भी होनी चाहिए और उसके अनुसार उग्रश्रवा भागवतके वक्ता हो गये।
स्वामी श्रीअखण्डानन्द सरस्वतीजी महाराज
ग्रन्थ: भागवतामृत
पृ॰- २९९ - ३००
🔸 The story goes on to say that Balaramji favored neither the Kauravas, nor the Pandavas. He desired the welfare of both, and was steadfast in remaining
neutral.
🔸 When he saw the preparations for the imminent war, he made the
excuse of going on a pilgrimage, to absent himself. He visited the holy
places on the banks of the Yamuna and Ganga, and reached a region called Naimisharanya.
🔸 He saw Romaharshanji, who was born in the low caste of
Suta, seated higher than the Brahmins. It angered Balaramji that
Romaharshanji neither rose to welcome him, nor did he bow down in respect. Balaramji attacked him with the tip of the sharp Kusha grass, and Sutaji was killed by this attack.
🔸 The Rishi-Munis present rose up in horror. Even though they were aware of what Balaramji’s true form was, they told him to undertake some penance for his action. Balaramji accepted this suggestion, in order to set an example to people.
🔸 He placed Raomaharshani Ugrashravaa, the son of Romaharshan, on his father’s seat, did the necessary rituals, and asked him to give discourses. He also blessed Raumaharshini Ugrashravaa with a long life.
🔸 After this, Balaramji killed the demon Balval at the behest of the Rishis, and went to visit other places of pilgrimage.
🔸 The significance of this incident is that Balaramji made a major change in the area of discourses, by establishing the tradition of the discourse of the Bhagwat. It was his wish that the tradition of the Shesha should also endure, just like the traditions of the Shrutis and Shukadevji, who comes from
Narayana. As per his wish, Ugrashravaa became the preacher of the Bhagwat.
🟧To read previous chapters click-
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#SwamiAkhandanandSaraswati #BhagawatAmrit #ShrimadBhagawat #AnandVrindavanAshram
🌼दशम स्कन्ध (भाग १९७)
🔸 इसके बाद यह कथा आती है कि बलरामजी कौरव-पाण्डवोंमें से किसीके भी पक्षधर न होकर तटस्थ थे और दोनों पक्षों का हित चाहते थे। इसलिए जब उन्होंने देखा कि दोनों पक्ष युद्धकी तैयारी कर रहे हैं तब वे तीर्थयात्राके बहाने बाहर चले गये।
🔸 वे यमुना-गंगाके तटवर्ती तीर्थोका भ्रमण करते हुए नैमिषारण्य-क्षेत्र पहुँचे तो वहाँ देखा कि रोमहर्षणजी सूत-जातिमें उत्पन्न होने पर भी ब्राह्मणोंसे ऊँचे आसन पर बैठे हैं और न तो उठकर स्वागत करते हैं और न प्रणाम करते हैं।
🔸 इसपर बलरामजीको क्रोध आ गया और उन्होंने उन पर कुशकी नोक से प्रहार कर दिया। होनहार ऐसा कि उतने ही प्रहारसे सूतजी मर गये।
🔸 यह देखकर ऋषि-मुनि हाहाकार करने लगे और उन्होंने बलरामजीके स्वरूपका ज्ञान होने पर भी कहा आपको इस हत्याके लिए प्रायश्चित्त करना चाहिए। बलरामजीने लोक-शिक्षाके लिए प्रायश्चित्त करना स्वीकार कर लिया।
🔸 उन्होंने रोमहर्षणके पुत्र रौमहर्षणि उग्रश्रवाको पिताके स्थान पर पुराणोंकी कथा कहनेके लिए प्रतिष्ठित किया और दीर्घायुष्य भी प्रदान कर दिया।
🔸 उसके बाद बलरामजी ऋषियोंके कहने पर वल्वल नामक दानवका वध करके अन्य तीर्थोंकी ओर चले गये।
🔸 इस प्रसंगका तात्पर्य यही है कि बलरामजीने कथाके क्षेत्रमें सूत परम्पराको बदलकर भागवतकी परम्परा स्थापित की। उनके मनमें यही था कि जैसे श्रुतिकी, नारायणकी परम्परामें शुकदेवजी हैं, वैसे ही शेष-परम्परा भी होनी चाहिए और उसके अनुसार उग्रश्रवा भागवतके वक्ता हो गये।
स्वामी श्रीअखण्डानन्द सरस्वतीजी महाराज
ग्रन्थ: भागवतामृत
पृ॰- २९९ - ३००
🔸 The story goes on to say that Balaramji favored neither the Kauravas, nor the Pandavas. He desired the welfare of both, and was steadfast in remaining
neutral.
🔸 When he saw the preparations for the imminent war, he made the
excuse of going on a pilgrimage, to absent himself. He visited the holy
places on the banks of the Yamuna and Ganga, and reached a region called Naimisharanya.
🔸 He saw Romaharshanji, who was born in the low caste of
Suta, seated higher than the Brahmins. It angered Balaramji that
Romaharshanji neither rose to welcome him, nor did he bow down in respect. Balaramji attacked him with the tip of the sharp Kusha grass, and Sutaji was killed by this attack.
🔸 The Rishi-Munis present rose up in horror. Even though they were aware of what Balaramji’s true form was, they told him to undertake some penance for his action. Balaramji accepted this suggestion, in order to set an example to people.
🔸 He placed Raomaharshani Ugrashravaa, the son of Romaharshan, on his father’s seat, did the necessary rituals, and asked him to give discourses. He also blessed Raumaharshini Ugrashravaa with a long life.
🔸 After this, Balaramji killed the demon Balval at the behest of the Rishis, and went to visit other places of pilgrimage.
🔸 The significance of this incident is that Balaramji made a major change in the area of discourses, by establishing the tradition of the discourse of the Bhagwat. It was his wish that the tradition of the Shesha should also endure, just like the traditions of the Shrutis and Shukadevji, who comes from
Narayana. As per his wish, Ugrashravaa became the preacher of the Bhagwat.
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⛰️SHRIMAD BHAGAWAT KATHA (Goverdhan, Mathura -U.P)⛰️
🔴Day 3(PM)
🔗 https://www.youtube.com/live/xSP3WuuOVqk?Govardhan
🏔️ 84 लाख योनियों में घूमता हुआ यह जीव कभी ठाकुर का कृपाभाजन बन जाता है और उसे मनुष्य शरीर की प्राप्ति होती है।
🔹मनुष्य शरीर पाकर भी जो अपना काम नहीं कर पाता अर्थात् भगवद् प्राप्ति नहीं कर पाता वह आत्महत्यारा ही है।
🔹सारे शिकवा, शिकायत त्यागकरके मनुष्य को पुरुषार्थ करना चाहिये। मनुष्य के लिए 4 पुरुषार्थ निर्धारित है- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष!
⛰️संतुलन बनाओ! जीवन में जब संतुलन नहीं होता तब पतन हो जाता है।
🔹चारों पुरुषार्थों को अपने जीवन में स्थान दो।
अर्थ कमाते समय ध्यान रखो की अर्थ धर्मपूर्वक आरहा है कि नहीं तब वह तुम्हें मर्यादित काम और मोक्ष की ओर ले जायेगा।
⛰️दक्ष कार्यकुशल है, जो कार्यकुशल होता है उसीको पद मिलते हैं। पद मिलने के बाद यदि मद न आए तो फिर परमार्थ पथ पर व्यक्ति बढ़ जाता है।
🔹दक्ष प्रजापति को पद मिला तो इतना मद बढ़ गया की वह भगवान शंकर से ही प्रणाम कराने के चक्कर में पड़ गया और उसका सबकुछ नष्ट हो गया।
⛰️अर्थ पर यदि धर्म का अनुशासन रहे तो वह पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है।
🔹जिस दिन अर्थ को परमार्थ से जोड़ दोगे उस दिन वह ध्रुव हो जायेगा, और यह काम मति से होता है।
⛰️संसार में भगवान मिलने से ज़्यादा गुरु का मिलना कठिन है। भगवान सृष्टि के अभिन्निमित्तोपादान कारण हैं, वे तो सर्वत्र व्याप्त हैं, मिले मिलाएँ हैं, किन्तु उनको लखाने वाले महात्मा का मिलना दुर्लभ है।
⛰️माँ और पिता दोनों को एक साथ देखना है तो वह गुरू में देख सकते हैं।
🔹गुरु में माँ का कोमल हृदय होता है और पिता की कठोरता अनुशासन के लिए होती है।
⛰️कोई भी साधना मनमुखी नहीं गुरुमुखी होनी चाहिये।
⛰️जिस प्रकार एक राजा अपनी प्रजा पर अनुशासन करता है। उसी प्रकार नृपात्मज ध्रुव ने अपने प्राणों पर, अपनी इंद्रियों पर अनुशासन कर लिया, जिससे इन्द्रियों में बैठे देवता घबरा गये।
⛰️भक्त को जितनी उत्कंठा भगवान से मिलने की होती है, उससे कई गुणा ज़्यादा उत्कंठा भगवान को भक्त से मिलने की होती है।
'ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्'।
⛰️भगवान का
चक्र अग्नि तत्त्व है!
कमल जल तत्त्व है!
शंख आकाश तत्त्व है !
गदा वायु तत्त्व है!
⛰️बहिरंग साधन से भक्ति नहीं होती, व्यक्ति के व्यवहार से भक्ति प्रकट होती है।
⛰️सज्जन व्यक्ति का मार्ग तितिक्षा, करुणा, सौहार्द का होता है।
⛰️राग, द्वेष, अभिनिवेश, क्रोध यह सब बाहर नहीं, दिल के अंदर रहते हैं।
🔹यह कभी नहीं सोचना चाहिये कि हमें क्रोध नहीं आता हमें किसी से द्वेष नहीं है, यह बीज अंदर पड़े होते हैं और यह कब उत्पन्न हो जाए कुछ पता नहीं होता।
⛰️भगवद् भक्ति का फल यह है की जीवन में सहनशक्ति आ जाए।
⛰️नियम से मन संयम में रहता है इसलिए अपने जीवन में कुछ नियम रखने चाहिये।
⛰️गुरुजनों से शिष्य की महिमा तो बढ़ती ही है किंतु जीवन ऐसा जिया जाए कि अपने से भी अपने गुरू की महिमा बढ़ जाए।
🔹नारद जी की महिमा उनके शिष्य ध्रुव, प्रह्लाद से और भी बढ़ गयी।
🏔️आगे की कथा सुनने के लिए जुड़ें रहिए...
🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
🎤By: Maharajshri Swami Shravananand Saraswati (Vrindavan)
📍Location: Teerth Vikas Trust, Badi Parikrama Marg,Govardhan -Mathura
🗓 Dates:August 20- August 26 (2025)
🕐Timing: 9.00AM-12.00PM
3.00PM- 6.00PM
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🔴Day 3(PM)
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🏔️ 84 लाख योनियों में घूमता हुआ यह जीव कभी ठाकुर का कृपाभाजन बन जाता है और उसे मनुष्य शरीर की प्राप्ति होती है।
🔹मनुष्य शरीर पाकर भी जो अपना काम नहीं कर पाता अर्थात् भगवद् प्राप्ति नहीं कर पाता वह आत्महत्यारा ही है।
🔹सारे शिकवा, शिकायत त्यागकरके मनुष्य को पुरुषार्थ करना चाहिये। मनुष्य के लिए 4 पुरुषार्थ निर्धारित है- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष!
⛰️संतुलन बनाओ! जीवन में जब संतुलन नहीं होता तब पतन हो जाता है।
🔹चारों पुरुषार्थों को अपने जीवन में स्थान दो।
अर्थ कमाते समय ध्यान रखो की अर्थ धर्मपूर्वक आरहा है कि नहीं तब वह तुम्हें मर्यादित काम और मोक्ष की ओर ले जायेगा।
⛰️दक्ष कार्यकुशल है, जो कार्यकुशल होता है उसीको पद मिलते हैं। पद मिलने के बाद यदि मद न आए तो फिर परमार्थ पथ पर व्यक्ति बढ़ जाता है।
🔹दक्ष प्रजापति को पद मिला तो इतना मद बढ़ गया की वह भगवान शंकर से ही प्रणाम कराने के चक्कर में पड़ गया और उसका सबकुछ नष्ट हो गया।
⛰️अर्थ पर यदि धर्म का अनुशासन रहे तो वह पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है।
🔹जिस दिन अर्थ को परमार्थ से जोड़ दोगे उस दिन वह ध्रुव हो जायेगा, और यह काम मति से होता है।
⛰️संसार में भगवान मिलने से ज़्यादा गुरु का मिलना कठिन है। भगवान सृष्टि के अभिन्निमित्तोपादान कारण हैं, वे तो सर्वत्र व्याप्त हैं, मिले मिलाएँ हैं, किन्तु उनको लखाने वाले महात्मा का मिलना दुर्लभ है।
⛰️माँ और पिता दोनों को एक साथ देखना है तो वह गुरू में देख सकते हैं।
🔹गुरु में माँ का कोमल हृदय होता है और पिता की कठोरता अनुशासन के लिए होती है।
⛰️कोई भी साधना मनमुखी नहीं गुरुमुखी होनी चाहिये।
⛰️जिस प्रकार एक राजा अपनी प्रजा पर अनुशासन करता है। उसी प्रकार नृपात्मज ध्रुव ने अपने प्राणों पर, अपनी इंद्रियों पर अनुशासन कर लिया, जिससे इन्द्रियों में बैठे देवता घबरा गये।
⛰️भक्त को जितनी उत्कंठा भगवान से मिलने की होती है, उससे कई गुणा ज़्यादा उत्कंठा भगवान को भक्त से मिलने की होती है।
'ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्'।
⛰️भगवान का
चक्र अग्नि तत्त्व है!
कमल जल तत्त्व है!
शंख आकाश तत्त्व है !
गदा वायु तत्त्व है!
⛰️बहिरंग साधन से भक्ति नहीं होती, व्यक्ति के व्यवहार से भक्ति प्रकट होती है।
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⛰️राग, द्वेष, अभिनिवेश, क्रोध यह सब बाहर नहीं, दिल के अंदर रहते हैं।
🔹यह कभी नहीं सोचना चाहिये कि हमें क्रोध नहीं आता हमें किसी से द्वेष नहीं है, यह बीज अंदर पड़े होते हैं और यह कब उत्पन्न हो जाए कुछ पता नहीं होता।
⛰️भगवद् भक्ति का फल यह है की जीवन में सहनशक्ति आ जाए।
⛰️नियम से मन संयम में रहता है इसलिए अपने जीवन में कुछ नियम रखने चाहिये।
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🔹नारद जी की महिमा उनके शिष्य ध्रुव, प्रह्लाद से और भी बढ़ गयी।
🏔️आगे की कथा सुनने के लिए जुड़ें रहिए...
🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
🎤By: Maharajshri Swami Shravananand Saraswati (Vrindavan)
📍Location: Teerth Vikas Trust, Badi Parikrama Marg,Govardhan -Mathura
🗓 Dates:August 20- August 26 (2025)
🕐Timing: 9.00AM-12.00PM
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06-Bhagawat Katha Govardhan | 20-26 Aug 2025 | Swami Shravananand Saraswati Anand Vrindavan
🌻Bhagawat Katha Govardhan | 20-26 Aug 2025 | Swami Shravananand Saraswati Anand Vrindavan