Pragya Pravah : Mission IAS PCS
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धरती
जीवन को 'धारण' करने के कारण यह धरित्री या 'धरती' है,
जन्म से मृत्यु तक सब कुछ इसी पर होता है,भवति सर्वं अत्रैव, इसलिए यह 'भू' है।
सब के भार को सहन करने के कारण वह 'सर्वंसहा' है
तथा समर्थ होने के एवं क्षमताओं से युक्त होने कारण वह 'क्षमा 'है।
विश्व का भरण -पोषण करने के कारण 'विश्वंभरा' है।
सबको अन्न देने के कारण वह 'अन्नदा' और 'अन्नपूर्णा 'है।
पत्थर, औषधि तथा रत्नों की खान होने के कारण वह 'रत्नगर्भा' है।
वसुओं अर्थात् बहुमूल्य रत्नों को धारण करने के कारण 'वसुंधरा' है।
पुरा कथा के अनुसार मधु और कैटभ नामक दैत्यों के मेद (मांस) से उत्पन्न होने के कारण धरती 'मेदिनी' कहलाती है।
'पृथ्वी' शब्द महाराज 'पृथु' के नाम से जुड़ा हुआ है।
यह धरती का पहला सम्राट माना जाता है। उस समय धरती ऊबड़खाबड़ थी। महाराज पृथु ने ही उसे समतल बनाकर कृषि योग्य बनाया। जब वृक्षों पर फल नहीं रहे, प्रजा भूख से व्याकुल होकर पृथु के पास पहुँची। महाराज पृथु ने तभी से खेती का सूत्रपात किया।
इस घटना को पुराकथाओं में 'पृथ्वी दोहन' के नाम से जाना जाता है, जिसमें धरती गाय बनी, स्वयंभुव मनु ने बछड़ा बनकर सस्त धान्यों को दुहा। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में भी पृथ्वी को धेनु माता के रूप में वर्णित किया गया है।
माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः यहीं का विख्यात मंत्र है।
इस प्रसंग में विस्तार से उल्लेख है कि किस-किसने धरती से क्या-क्या पाया। ॠषियों ने वेद रूपी दूध दुहा, देवताओं ने अमृत तथा मनोबल रूप दूध पाया, दैत्य-दानवों ने मदिरा-आसव रूपी दूध पाया, गंधर्व और अप्सराओं ने संगीत-माधुर्य और सौंदर्य पाया, पशुओं ने तृण रूप भोजन पाया तथा वृक्षों ने विविध प्रकार के रस रूपी दूध को प्राप्त किया।
महाराज पृथु ने धरती को समतल करवाकर गाँव, कस्बे, नगर, बस्ती (घोष) खेठ, खर्वटों का निर्माण किया। कहा जाता है कि पृथु से पहले पुर-ग्राम आदि का विभाग नहीं था। इसप्रकार पृथ्वी का सबसे लोकप्रिय नाम महाराज पृथु से जुड़ा हुआ है।
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``````````````````````````````````````जीवन को 'धारण' करने के कारण यह धरित्री या 'धरती' है,
जन्म से मृत्यु तक सब कुछ इसी पर होता है,भवति सर्वं अत्रैव, इसलिए यह 'भू' है।
सब के भार को सहन करने के कारण वह 'सर्वंसहा' है
तथा समर्थ होने के एवं क्षमताओं से युक्त होने कारण वह 'क्षमा 'है।
विश्व का भरण -पोषण करने के कारण 'विश्वंभरा' है।
सबको अन्न देने के कारण वह 'अन्नदा' और 'अन्नपूर्णा 'है।
पत्थर, औषधि तथा रत्नों की खान होने के कारण वह 'रत्नगर्भा' है।
वसुओं अर्थात् बहुमूल्य रत्नों को धारण करने के कारण 'वसुंधरा' है।
पुरा कथा के अनुसार मधु और कैटभ नामक दैत्यों के मेद (मांस) से उत्पन्न होने के कारण धरती 'मेदिनी' कहलाती है।
'पृथ्वी' शब्द महाराज 'पृथु' के नाम से जुड़ा हुआ है।
यह धरती का पहला सम्राट माना जाता है। उस समय धरती ऊबड़खाबड़ थी। महाराज पृथु ने ही उसे समतल बनाकर कृषि योग्य बनाया। जब वृक्षों पर फल नहीं रहे, प्रजा भूख से व्याकुल होकर पृथु के पास पहुँची। महाराज पृथु ने तभी से खेती का सूत्रपात किया।
इस घटना को पुराकथाओं में 'पृथ्वी दोहन' के नाम से जाना जाता है, जिसमें धरती गाय बनी, स्वयंभुव मनु ने बछड़ा बनकर सस्त धान्यों को दुहा। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में भी पृथ्वी को धेनु माता के रूप में वर्णित किया गया है।
माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः यहीं का विख्यात मंत्र है।
इस प्रसंग में विस्तार से उल्लेख है कि किस-किसने धरती से क्या-क्या पाया। ॠषियों ने वेद रूपी दूध दुहा, देवताओं ने अमृत तथा मनोबल रूप दूध पाया, दैत्य-दानवों ने मदिरा-आसव रूपी दूध पाया, गंधर्व और अप्सराओं ने संगीत-माधुर्य और सौंदर्य पाया, पशुओं ने तृण रूप भोजन पाया तथा वृक्षों ने विविध प्रकार के रस रूपी दूध को प्राप्त किया।
महाराज पृथु ने धरती को समतल करवाकर गाँव, कस्बे, नगर, बस्ती (घोष) खेठ, खर्वटों का निर्माण किया। कहा जाता है कि पृथु से पहले पुर-ग्राम आदि का विभाग नहीं था। इसप्रकार पृथ्वी का सबसे लोकप्रिय नाम महाराज पृथु से जुड़ा हुआ है।
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धरती ``````````````````````````````````````` जीवन को 'धारण' करने के कारण यह धरित्री या 'धरती' है, जन्म से मृत्यु तक सब कुछ इसी पर होता है,भवति सर्वं अत्रैव, इसलिए यह 'भू' है। सब के भार को सहन करने के कारण वह 'सर्वंसहा' है तथा समर्थ होने के एवं क्षमताओं…
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रज्ञा प्रवाह में अवगाहन करने एवं निबंध सहित समीक्षा अधिकारी व अन्य विभिन्न परीक्षाओं में पूछे जाने वाले पर्यायवाची, तद्भव -तत्सम इत्यादि के लिए उपयोगी।
के कोरबो आमार कार्जो
कहे शंध्यारोबि ।
शुनिया जोगत रोहे
निरुत्तर छबि ।
माटीर दीपो छिलो
सेई कहिबे श्शामी
आमाके जेटुकु शाध्धे
करिबो तो आमी ।।
-- गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर
सन्ध्या का सूरज बोला >
" अब कौन करेगा मेरा काम ?
सुन कर सारी सृष्टि निरुत्तर
किसी ने मुंह नहीं खोला ,
माटी का छोटा दीपक बोला>>
अपनी शक्ति-भर आपके संकल्प का निर्वाह मैं करूंगा ।"
भले ही हमारी सामर्थ्य सूरज बनने की न हो किन्तु हम "आत्म दीपों भव "के रूप अपना प्रकाश तो बन ही सकते हैं । 7 मई को गुरुदेव की जयंती की सच्ची सार्थकता इसी में है कि हम अपने अंदर के दीप को ज्वलन्त और जीवन्त रखें।
कहे शंध्यारोबि ।
शुनिया जोगत रोहे
निरुत्तर छबि ।
माटीर दीपो छिलो
सेई कहिबे श्शामी
आमाके जेटुकु शाध्धे
करिबो तो आमी ।।
-- गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर
सन्ध्या का सूरज बोला >
" अब कौन करेगा मेरा काम ?
सुन कर सारी सृष्टि निरुत्तर
किसी ने मुंह नहीं खोला ,
माटी का छोटा दीपक बोला>>
अपनी शक्ति-भर आपके संकल्प का निर्वाह मैं करूंगा ।"
भले ही हमारी सामर्थ्य सूरज बनने की न हो किन्तु हम "आत्म दीपों भव "के रूप अपना प्रकाश तो बन ही सकते हैं । 7 मई को गुरुदेव की जयंती की सच्ची सार्थकता इसी में है कि हम अपने अंदर के दीप को ज्वलन्त और जीवन्त रखें।
Kaagaz_1685494156831.pdf
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Pragya Pravah : Mission IAS PCS
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तीनों उत्तर उत्कृष्ट रूप में लिखे गए हैं! Deputy SP से deputy collector की यात्रा का स्पष्ट संकेत। व्याख्या के संदर्भ में साहित्यिक उद्धरण प्रभावित करते हैं! इन्हें बनाए रखें!
Pragya Pravah : Mission IAS PCS
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पुलिस उपाधीक्षक के रूप में चयनित उमेश यादव जी की भावार्थ व्याख्या एवं प्रश्न उत्तर से संबंधित उत्तर पुस्तिका।
Forwarded from Pragya Pravah RO 2 Mains
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1dec, nibandh.pdf
शानदार निमिषा। पहली पंक्ति ने ही स्पष्ट कर दिया कि साहित्य और संस्कृति का कितना घनिष्ठ संबंध है। पूरे निबंध का आधा अंक तो प्रस्तावना में ही मिल जा रहा है किंतु आगे के लिए भी आपने संपूर्ण प्रयास किया है बिल्कुल व्यवस्थित रूप में साहित्य और संस्कृति को परिभाषित करते हुए इनके जितने भी आयाम हैं क्रमबद्ध रूप में स्पष्ट किया गया है और समापन भी शानदार। मानवता के साथ-साथ मानवता की मूरत के रूप में निमिषा भी विजयिनी होने जा रही है। रामायण एवं महाभारत के संदर्भ में महर्षि अरविंद की पंक्तियों को भारतीय संस्कृति से जोड़ते हुए उद्धृत करिए इससे निबंध और ऊंचाइयां प्राप्त करेगा।
Forwarded from Pragya Pravah : Mission IAS PCS
निमिषा भारद्वाज विज्ञान वर्ग की छात्रा रही हैं। इसके पहले इनका चयन अधिशासी अधिकारी नगर पंचायत के रूप में हुआ था। इस बार डिप्टी जेलर के रूप में चयनित हुई है। इनकी उत्तर पुस्तिकाएं सर्वश्रेष्ठ हुआ करती थीं। सामान्य हिन्दी और निबंध उत्तर लेखन से संबंधित उत्तर पुस्तिकाएं प्रेषित की जाएगी ।आप स्वयं देख सकते हैं ।हाथ कंगन को आरसी क्या ??निश्चित रूप से इन्हें डिप्टी कलेक्टर की यात्रा तय करनी है।
महर्षि अरविंद भारतीय सभ्यता और संस्कृति के शलाका पुरुष हैं ।अति मानस का योग सिद्धांत इनके द्वारा प्रस्तुत किया गया है। साहित्य और संस्कृति के अंतर्संबंधों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा है कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति , रामायण और महाभारत इन दो महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमती है ।चिरकाल से लेकर के आधुनिक काल तक, रामायण और महाभारत के मूल्य तथा कहानियां ,नाम, ये सब भारतीय संस्कृति में अनुगूंजित हैं।
Pragya Pravah : Mission IAS PCS
Photo from Pragya Pravah
कपिलवस्तु के सिद्धार्थ से विश्वव्यापी भगवान बुद्ध बनने की यात्रा में,मानवीय प्रयास की "पूर्ण "यात्रा समाहित है। जन्म पूर्णिमा को ,ज्ञान पूर्णिमा को और महाप्रयाण भी पूर्णिमा को इसी पूर्ण यात्रा के आयाम हैं। त्रेता युग में दशरथनन्दन राम राजपाट छोड़कर पिता के बारंबार मना करने पर भी लोक कल्याण के लिए वन गमन करते हैं। मर्यादा के मार्ग का स्वयं निर्माण करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं.। बालक सिद्धार्थ भी संसार के त्राण के लिए राजपाट त्याग कर सन्न्यासी बन जाते हैं। दुनिया भर के दिखावे, जिसके लिए हम मरते रहते हैं ।महात्मा बुद्ध इन्हीं सब को दुःख का कारण मानते हैं। जितना ही हम आडंबर से मुक्त होते जाएंगे उतना ही हम पूर्ण होते जाएंगें। अतिशय भोग और अतिशय वैराग्य दोनों ही अतियां, दुःखदायिनी हैं। स्वर्णिम मार्ग है ,मध्यम मार्ग ।यह मार्ग है करुणा, मुदिता ,मैत्री की उदार भावना का मार्ग। ऐसे सार्वभौमिक मूल्यों से युक्त होकर और इनके लिए प्रयास कर कोई भी मानव होकर बुद्धत्व को प्राप्त कर सकता है। हमें अपने जय और पराजय के लिए ,उत्कर्ष और अवसान के लिए, सुख और दुःख के लिए दूसरों को न देख कर, दूसरों को उत्तरदाई न ठहरा कर स्वयं ही प्रयास करना होगा।
आत्मदीप दीपो भव। भगवान कृष्ण भी गीता में कहते हैं ,व्यक्ति अपना मित्र और शत्रु स्वयं है. सत्पथ का अनुगामी मित्र है और कुपथ का अनुगामी शत्रु। महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग के रूप में संसार को शांति, सद्भाव और करुणा का रास्ता दिखाया है । संयुक्त राष्ट्र संघ के संबोधन में भारतीय प्रधानमंत्री ने इसी तथ्य को उद्घोषित किया था।"हमें गर्व है कि हमने संसार को बुद्ध दिया है युद्ध नहीं।" परमाणु जखीरे से भरी हुई धरती , संत्रास और अवसाद से भरी हुई मानवता के लिए SMILING BUDDHA का पथ ही वरेण्य है।बुद्धं शरणम् गच्छामि। बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।
आत्मदीप दीपो भव। भगवान कृष्ण भी गीता में कहते हैं ,व्यक्ति अपना मित्र और शत्रु स्वयं है. सत्पथ का अनुगामी मित्र है और कुपथ का अनुगामी शत्रु। महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग के रूप में संसार को शांति, सद्भाव और करुणा का रास्ता दिखाया है । संयुक्त राष्ट्र संघ के संबोधन में भारतीय प्रधानमंत्री ने इसी तथ्य को उद्घोषित किया था।"हमें गर्व है कि हमने संसार को बुद्ध दिया है युद्ध नहीं।" परमाणु जखीरे से भरी हुई धरती , संत्रास और अवसाद से भरी हुई मानवता के लिए SMILING BUDDHA का पथ ही वरेण्य है।बुद्धं शरणम् गच्छामि। बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।