दोपहर नहीं, दुपहर शुद्ध वर्तनी है।
हिंदी व्याकरण में स्पष्ट नियम है कि संख्यावाचक शब्दों से उपसर्ग बनाते समय ह्रस्वीकरण की प्रक्रिया होती है।
उदाहरणार्थ
1. एक+तारा= इकतारा
2. दो+धार+ई =दुधारी
3. तीन राहों का समाहार = तिराहा
(इसी तरह तिरंगा कहते हैं; तीनरंगा नहीं कहते ।)
4. सात रंगों से बना सतरंगा या सतरंगी है; सातरंगा या सातरंगी नहीं।
5.नौ+दीप= नवदीप
और
नौ+रात्रि/ रात्र = नवरात्र (नवरात्रि अशुद्ध है)
अतः, हम देखते हैं कि नियम के अनुसार संख्यावाचक शब्द जुड़कर ह्रस्व हो जाते हैं ।
इसी नियम के अनुसार दो+पहर= दुपहर होना चाहिए। दुपहरिया में दुपहिया वाहन से मत निकालिए नहीं तो लू लग जाएगी,,🌞
हिंदी व्याकरण में स्पष्ट नियम है कि संख्यावाचक शब्दों से उपसर्ग बनाते समय ह्रस्वीकरण की प्रक्रिया होती है।
उदाहरणार्थ
1. एक+तारा= इकतारा
2. दो+धार+ई =दुधारी
3. तीन राहों का समाहार = तिराहा
(इसी तरह तिरंगा कहते हैं; तीनरंगा नहीं कहते ।)
4. सात रंगों से बना सतरंगा या सतरंगी है; सातरंगा या सातरंगी नहीं।
5.नौ+दीप= नवदीप
और
नौ+रात्रि/ रात्र = नवरात्र (नवरात्रि अशुद्ध है)
अतः, हम देखते हैं कि नियम के अनुसार संख्यावाचक शब्द जुड़कर ह्रस्व हो जाते हैं ।
इसी नियम के अनुसार दो+पहर= दुपहर होना चाहिए। दुपहरिया में दुपहिया वाहन से मत निकालिए नहीं तो लू लग जाएगी,,🌞
परिसीमन का सटीक विलोम अपरिसीमन होना चाहिए जैसे परिग्रह का अपरिग्रह ,परिमित ,अपरिमित किंतु निकटतम दूसरा विलोम असीमन भी सही है। सोशल मीडिया से लेकर अन्य स्थलों में इसका विलोम निरसीमन बताया जा रहा है जो की सही नहीं है क्योंकि निर् उपसर्ग लगने पर जो शब्द बनेगा वह निर्सीमन होगा, जैसे निर्विकार निर्विकल्प ,निर्वासन , निर्वाचन,निर्बल निर्वेद इत्यादि।
द्वैवार्षिक सही या द्विवार्षिक
Pragya Pravah: दो वर्ष में होने वाले को द्वैवार्षिक कहते हैं। यहां पर द्विवर्ष में संस्कृत का ठक् और हिंदी में उसका रूपांतरण कर इक प्रत्यय लगा है ।जब इक प्रत्यय लगता है तो स्वर में वृद्धि हो जाती है अर्थात अ, आ में इ तथा ई ,ऐ में और उ तथा ऊ ,औ में परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे समाज में इक प्रत्यय लगने पर स सा में, सामाजिक, दिन का दि दै में, - दैनिक (इ=ऐ)नीति में इक प्रत्यय लगने पर नैतिक ,उद्योग में इक प्रत्यय लगने पर औद्योगिक,(उ=औ) पुराण में इक प्रत्यय लगने पर पौराणिक इत्यादि। इस प्रकार द्विवार्षिक सही शब्द न होकर द्वैवार्षिक सही शब्द होगा ।क्योंकि द्वि में वृद्धि होने पर द्वै हो जाएगा। ठीक वैसे ही जैसे दिन में दि दै में बदलकर दैनिक हो गया। आप सबके समक्ष 'प्रामाणिक' प्रतिपादन कर दिया गया है। अब आप निश्चिंत होकर दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक ,वार्षिक, द्वैवार्षिक क्रियाकलाप त्रैलोक्य में संपादित करिए।😄
Pragya Pravah: दो वर्ष में होने वाले को द्वैवार्षिक कहते हैं। यहां पर द्विवर्ष में संस्कृत का ठक् और हिंदी में उसका रूपांतरण कर इक प्रत्यय लगा है ।जब इक प्रत्यय लगता है तो स्वर में वृद्धि हो जाती है अर्थात अ, आ में इ तथा ई ,ऐ में और उ तथा ऊ ,औ में परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे समाज में इक प्रत्यय लगने पर स सा में, सामाजिक, दिन का दि दै में, - दैनिक (इ=ऐ)नीति में इक प्रत्यय लगने पर नैतिक ,उद्योग में इक प्रत्यय लगने पर औद्योगिक,(उ=औ) पुराण में इक प्रत्यय लगने पर पौराणिक इत्यादि। इस प्रकार द्विवार्षिक सही शब्द न होकर द्वैवार्षिक सही शब्द होगा ।क्योंकि द्वि में वृद्धि होने पर द्वै हो जाएगा। ठीक वैसे ही जैसे दिन में दि दै में बदलकर दैनिक हो गया। आप सबके समक्ष 'प्रामाणिक' प्रतिपादन कर दिया गया है। अब आप निश्चिंत होकर दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक ,वार्षिक, द्वैवार्षिक क्रियाकलाप त्रैलोक्य में संपादित करिए।😄
गुरुदेव!वासुदेवनन्दन में चक्षूरोग शुध्द माना है। यही शुध्द है क्या ?
Pragya Pravah: समास की प्रक्रिया में चछुष्+रोग में ष् का विभिन्न व्याकरणिक प्रक्रियाओं के द्वारा बलिदान हो जाता है किंतु उसका बलिदान निरर्थक नहीं जाता और वह क्षु को बड़ा करके क्षू बनाते हुए स्वयं को लुप्त करता है और इस रूप में चक्षूरोग बनता है।
Pragya Pravah: समास की प्रक्रिया में चछुष्+रोग में ष् का विभिन्न व्याकरणिक प्रक्रियाओं के द्वारा बलिदान हो जाता है किंतु उसका बलिदान निरर्थक नहीं जाता और वह क्षु को बड़ा करके क्षू बनाते हुए स्वयं को लुप्त करता है और इस रूप में चक्षूरोग बनता है।
Forwarded from Pragya Pravah Mission IAS/PCS
Document 553-1.pdf
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Document from Dr.CL Tripathi💫
Forwarded from Pragya Pravah Mission IAS/PCS
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सर कौशल्या सही होगा या कौसल्या ?
कौशल्या शब्द कुशल देश से बना हुआ है जो इतिहास के विद्यार्थी हैं वे अच्छी तरह से जानते होंगे।। कौशल्या ही सही है किंतु वर्तमान भाषा वैज्ञानिक कौसल्या को भी सही मान रहे हैं।
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आप सभी ने अभी तक की तैयारी में स्वयं को लोहे जैसा ढाला है। सोने जैसा तपाया है। इसलिए भविष्य में स्वर्णिम सफलता सुनिश्चित होने वाली है।
11 फरवरी को आयोजित होने वाली समीक्षा अधिकारी /सहायक समीक्षा अधिकारी परीक्षा के लिएके लिए आप सबको हार्दिक शुभकामनायें ।11 February promise day रूप में प्रतिष्ठापित है। इसलिए यह दिन परीक्षा की दृष्टि से आपकी प्रतिज्ञा को पूरा करने का दिन है। हमारे अस्तित्व के कारक और व्यक्तित्व के निर्धारक माता-पिता सहित अपनों से और अपने से की गई प्रतिज्ञा पर खरा उतारने का दिन है। आप सभी निश्चित रूप से इस पर खरे उतरेंगे। किसी भी परीक्षा की तैयारी 1 दिन में होती नहीं है। अपने संपूर्ण जीवन के अध्ययन काल में जो भी सीखा और पढ़ा है वह सब हमारे मस्तिष्क में संचित रहता है ।जैसे ही अवसर मिले हमें उसे बाहर निकालना चाहिए और उसका समुचित प्रयोग करना चाहिए। मानव मात्र की विशिष्टता यही है कि उसकी तैयारी किसी भी क्षेत्र में कभी भी संपूर्ण नहीं होती। संपूर्णता की स्थिति या तो जड़ की होती है या तो देवताओं की ।इसलिए अब तक आपने जो तैयारी की है यह मान लीजिए वह प्रारंभिक परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए पर्याप्त है। जो प्राप्त है वह पर्याप्त है।अनावश्यक चिंता करने से कुछ हासिल नहीं होगा। केवल दबाव में आपके कुछ प्रश्न गलत हो सकते हैं। आप जानते हैं कि क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले तेंदुलकर भी कितनी बार नर्वस नाइंटीज के शिकार हो जाते थे। इसलिए नर्वसनेस से बाहर आइए। एक क्षण के लिए मान लीजिए कि यदि कुछ विपरीत होता है तो न तो धरती की गति रुक जाएगी और न ही आपकी प्रगति।परीक्षा की दृष्टि से आप की तैयारियां पूर्ण हैं। नहीं भी पूर्ण है तो उसे पूर्ण मानिए ।संपूर्ण सकारात्मकता के साथ परीक्षा में सम्मिलित हों। सरल प्रश्न बिल्कुल गलत न होने पाए। प्रारंभिक परीक्षा में असफलता का कारण कठिन प्रश्नों का सही होना नहीं है बल्कि सरल प्रश्नों का गलत हो जाना है। इस पर ध्यान रखिए। इसके पहले सफलता मिली है तो अपने पुरानी रणनीतियों पर और सबल रूप से आगे बढ़िए और अगर असफल हुए हैं तो कमियों को पहचानिए और उससे आगे बढ़िए । मैं भी विभिन्न क्षेत्रों में असफल हुआ हूं किंतु उसे स्वयं पर हावी नहीं होने दिया ।
उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और शिक्षाविद आचार्य विष्णु कांत शास्त्री की कविता मुझे हमेशा प्रेरणा देती है।
हारा हूं सौ बार गुनाहों से लड़ लड़ कर।
किंतु बारंबार उठा हूं गिर गिर कर ।
इससे मेरा हर गुनाह भी मुझसे हारा ।
मैंने अपने जीवन को इस तरह से संंवारा ।
आप भी अपने भविष्य को संवारिए । बिना किसी भय और तनाव के परीक्षा में सम्मिलित होइए । निश्चित रूप से सफलता आप का वरण करेगी।
होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन।
।परीक्षा के 3 घंटे मन को जितना प्रशांत रखेंगे सफलता का अनुपात उतना ही अधिक रहेगा ।उत्तर पुस्तिका में वांछित सूचनाओं का ध्यान से पढ़ें और भरें ।यहां पर कोई त्रुटि न होने पाये ।उत्तरों को भरते हुए सावधानी बरतें। प्रश्न में, हां और नहीं, केवल ,इत्यादि शब्दों पर ध्यान दें।।
जगदीश्वर है अवलंबन को ।
।नर हो न निराश करो मन को।
आप सब की सफलता के लिए परमात्मा से प्रार्थना और आपको शुभकामनाएं।
11 फरवरी को आयोजित होने वाली समीक्षा अधिकारी /सहायक समीक्षा अधिकारी परीक्षा के लिएके लिए आप सबको हार्दिक शुभकामनायें ।11 February promise day रूप में प्रतिष्ठापित है। इसलिए यह दिन परीक्षा की दृष्टि से आपकी प्रतिज्ञा को पूरा करने का दिन है। हमारे अस्तित्व के कारक और व्यक्तित्व के निर्धारक माता-पिता सहित अपनों से और अपने से की गई प्रतिज्ञा पर खरा उतारने का दिन है। आप सभी निश्चित रूप से इस पर खरे उतरेंगे। किसी भी परीक्षा की तैयारी 1 दिन में होती नहीं है। अपने संपूर्ण जीवन के अध्ययन काल में जो भी सीखा और पढ़ा है वह सब हमारे मस्तिष्क में संचित रहता है ।जैसे ही अवसर मिले हमें उसे बाहर निकालना चाहिए और उसका समुचित प्रयोग करना चाहिए। मानव मात्र की विशिष्टता यही है कि उसकी तैयारी किसी भी क्षेत्र में कभी भी संपूर्ण नहीं होती। संपूर्णता की स्थिति या तो जड़ की होती है या तो देवताओं की ।इसलिए अब तक आपने जो तैयारी की है यह मान लीजिए वह प्रारंभिक परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए पर्याप्त है। जो प्राप्त है वह पर्याप्त है।अनावश्यक चिंता करने से कुछ हासिल नहीं होगा। केवल दबाव में आपके कुछ प्रश्न गलत हो सकते हैं। आप जानते हैं कि क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले तेंदुलकर भी कितनी बार नर्वस नाइंटीज के शिकार हो जाते थे। इसलिए नर्वसनेस से बाहर आइए। एक क्षण के लिए मान लीजिए कि यदि कुछ विपरीत होता है तो न तो धरती की गति रुक जाएगी और न ही आपकी प्रगति।परीक्षा की दृष्टि से आप की तैयारियां पूर्ण हैं। नहीं भी पूर्ण है तो उसे पूर्ण मानिए ।संपूर्ण सकारात्मकता के साथ परीक्षा में सम्मिलित हों। सरल प्रश्न बिल्कुल गलत न होने पाए। प्रारंभिक परीक्षा में असफलता का कारण कठिन प्रश्नों का सही होना नहीं है बल्कि सरल प्रश्नों का गलत हो जाना है। इस पर ध्यान रखिए। इसके पहले सफलता मिली है तो अपने पुरानी रणनीतियों पर और सबल रूप से आगे बढ़िए और अगर असफल हुए हैं तो कमियों को पहचानिए और उससे आगे बढ़िए । मैं भी विभिन्न क्षेत्रों में असफल हुआ हूं किंतु उसे स्वयं पर हावी नहीं होने दिया ।
उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और शिक्षाविद आचार्य विष्णु कांत शास्त्री की कविता मुझे हमेशा प्रेरणा देती है।
हारा हूं सौ बार गुनाहों से लड़ लड़ कर।
किंतु बारंबार उठा हूं गिर गिर कर ।
इससे मेरा हर गुनाह भी मुझसे हारा ।
मैंने अपने जीवन को इस तरह से संंवारा ।
आप भी अपने भविष्य को संवारिए । बिना किसी भय और तनाव के परीक्षा में सम्मिलित होइए । निश्चित रूप से सफलता आप का वरण करेगी।
होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन।
।परीक्षा के 3 घंटे मन को जितना प्रशांत रखेंगे सफलता का अनुपात उतना ही अधिक रहेगा ।उत्तर पुस्तिका में वांछित सूचनाओं का ध्यान से पढ़ें और भरें ।यहां पर कोई त्रुटि न होने पाये ।उत्तरों को भरते हुए सावधानी बरतें। प्रश्न में, हां और नहीं, केवल ,इत्यादि शब्दों पर ध्यान दें।।
जगदीश्वर है अवलंबन को ।
।नर हो न निराश करो मन को।
आप सब की सफलता के लिए परमात्मा से प्रार्थना और आपको शुभकामनाएं।
Forwarded from Dr Cl Tripathi
Pragya Pravah : Mission IAS PCS
नमस्ते सर आप बताये है कि - माहात्म्य ✓ वासुदेव नंदन जी की बुक में - " महात्म्य " सही मान रहा किसको सत्य माना जाए
महान होने का भाव :- माहात्म्य
परस्पर अभिन्न होने का भाव :- तादात्म्य,वैसा ही रूप होने का भाव सारूप्य, तद्रूपता,
ऐकात्म्य, तादात्म्य का ही समानार्थी है
परस्पर अभिन्न होने का भाव :- तादात्म्य,वैसा ही रूप होने का भाव सारूप्य, तद्रूपता,
ऐकात्म्य, तादात्म्य का ही समानार्थी है
Forwarded from Dr Cl Tripathi
Pragya Pravah : Mission IAS PCS
नमस्ते सर आप बताये है कि - माहात्म्य ✓ वासुदेव नंदन जी की बुक में - " महात्म्य " सही मान रहा किसको सत्य माना जाए
प्रश्न यह नहीं है की वासुदेवनंदन में दिया गया है या हरदेव बाहरी में दिया गया है। प्रश्न यहां है की शब्द की रचना की प्रक्रिया के अनुसार क्या सही है??