Anand Vrindavan
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🌹Shrimad Bhagawat Katha (Shri HariBaba Ashram, ShriDham Vrindavan- Mathura ,U.P)🌹

🔴Day 7 (AM)

🔗 https://www.youtube.com/live/T2asoz_qmEg?feature=share

🌼गोपियाँ धर्म की नहीं परमधर्म की अधिकारिणी थी। गोपांगनाओं ने रास के प्रसंग में श्रीकृष्ण का धर्मोपदेश स्वीकार नहीं किया तो भगवान श्रीकृष्ण जान गये ये संसार से ऊपर उठ चुकी हैं। अब इनके चित्त में अनुराग है तो केवल श्रीकृष्ण के प्रति है। फिर भगवान ने अपनी ही आत्मा समझकर गोपांगनाओं के साथ लघुरास किया है।

🌼रास काम लीला नहीं काम विजय लीला है। जैसे सूर्य के सम्मुख रात्री नहीं टिकती, ज्ञान के सामने अज्ञान नहीं टिकता वैसे ही श्याम के सामने काम नहीं टिकता है।
🔸जहाँ श्याम वहाँ काम नहीं, जहाँ काम वहाँ श्याम नहीं रहते।

🌼श्यामसुन्दर का सहज स्वभाव है प्रेम करने का, सेवा करने का किन्तु गोपियों को सौभग मद् आ गया और श्रीकिशोरीजी को मान। मान होता है रसवर्धन के लिये, अन्दर से मान नहीं होता वह केवल क्रियाओं में होता है।

🌼भगवान श्रीकृष्ण ने अभी गोपियों के हृदय में अभिमान देखा। अभिमान पहले हृदय में आता है, फिर इन्द्रियों में उसके बाद क्रियाओं में आता है।
भगवान ने गोपियों को अभिमान छोड़ने के लिये प्रवचन नहीं दिया किन्तु इलाज सोच लिया और वे गोपियों के मध्य अन्तर्हित हो गये।

🌼आराधक को कभी आराधना इस भाव से नहीं करनी चाहिए कि परमात्मा यहाँ नहीं हैं दूर हैं।आराधना ऐसी करनी चाहिए कि हमारे आराध्य यहीं हैं और सुन रहे हैं।

🌼 श्यामसुंदर को खोजते-खोजते इन गोपियों का मन मिल गया था। इन लाखों गोपियों की क्रिया, मन, और स्वर एक हो गए थे तो जिस एक ईश्वर को मिलना था उनके वियोग में मिलकर एक गीत गाया जिस गीत का नाम गोपी गीत है।

🌼जो परमात्मा के लिए रोता है परमात्मा उसी के पास होते हैं। यदि हृदय में परमात्मा के लिए प्यास नहीं तो परमात्मा तुम्हारे पास नहीं।
🔸हृदय में परमात्मा के लिये प्यास जगाओ परमात्मा को पास पाओ।

🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
🎤By: Maharajshri Swami Shravananand Saraswati (Vrindavan)

📍Location: Shri HariBaba Ashram , ShriDham Vrindavan , Mathura, (U.P)

🗓 Dates:
27 February - 5 March (2023)

🕐Timing: 
9:00 AM-12:00 PM
3.00 PM -6.00 PM

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🔴Day 7 (PM)

🔗 https://www.youtube.com/live/doPzU4VJ0AE?feature=share

🌼भागवत की कथा कर्ण कुहरों से प्रविष्ट होकर अन्तःकरण को पवित्र करती ही है किंतु यह वर्तमान जीवन को भी मधुर बनाती है, रसीला बनाती है।संसार की समस्याओं को भी कैसे सुलझाया जाए, किस परिस्थिति में कैसा निर्णय लिया जाए यह भी श्रीमद्भागवत महापुराण से सीखने लायक है।

🌼 श्रीभीष्मक की लाड़ली सुता रुक्मणि ने भूदेव के माध्यम से श्रीकृष्ण से प्रेम का इज़हार किया उसमें उनका दृढ़ निश्चय भी बताया। हमारे वस्त्र, हमारी वाणी से नहीं, दृढ़ निश्चय से पता चलता है हमारा निश्चय कैसा है, क्या स्वार्थपूर्ति के लिए ही परमात्मा को अपना माना है कि सचमुच में परमात्मा को ही अपना माना है।

🌼निश्चय कैसा हो, यह निर्णय करो आप किसके हो? संसार के कि भगवान के! जो अपने को भगवान के भाग में रखता है वह भक्त है।
🔸हम भगवान के भोग्य हैं, हमारा भोक्ता केवल भगवान है।

🌼यह जो शरीर के साथ मोह है यह निश्चित रूप से देवमाया के कारण ही है, इसी कारण से जीव किसी को सुहृद, किसी को उदासीन, किसी को दुश्मन मानता है। एक ही परमात्मा आत्मा के रूप में सभी शरीरधारियों में है इसलिए किसी के साथ राग-द्वेष नहीं करना चाहिए।

🌼राग-द्वेष को समाप्त करने के लिये अध्यात्म के अतिरिक्त कोई साधन नहीं है।जब तक चित्त से राग-द्वेष समाप्त नहीं होता है तब तक व्यक्ति को शान्ति का संचार हो ही नहीं सकता है।
🔸दुनियाँ के किसी भी कोने में चले जाना, घर छोड़कर वन में झोपड़ी बना लेना किन्तु वहाँ भी क्या दुःख देने वाले लोग नहीं मिलेंगे? वहाँ भी चींटियाँ, चींटें, खटमल आते हैं, कई बार कौवे परेशान करेंगे, कहीं चले जाओ कुछ अनुकूलतायें होंगी तो कुछ प्रतिकूलतायें होंगी।
🔸इस खटपट की ज़िंदगानी में झटपट अपना काम करना है।
🔸समय चुराना सीखें- पूरे व्यस्त समय में कैसे अपना समय निकालकर आत्म कल्याण कर लेना है।

🌼काल को मिटाया नहीं जा सकता काल का श्रृंगार किया जा सकता है। राजर्षी परीक्षित काल को सँवार रहे थे, रागद्वेष में समय ख़राब नहीं कर रहे थे।

🌼अपने को प्रमाणित करने के लिए दो ही दृष्टि पर्याप्त है- गुरु और इष्ट!

🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
🎤By: Maharajshri Swami Shravananand Saraswati (Vrindavan)

📍Location: Shri HariBaba Ashram , ShriDham Vrindavan , Mathura, (U.P)

🗓 Dates:
27 February - 5 March (2023)

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🔴 Day 1 (AM)

🔗 https://www.youtube.com/live/yO_g2o08XNg?feature=share

💛हमारे भक्त कोकिल साईं कहते थे भक्त का हृदय हीरे का होना चाहिए स्फटिक का नहीं। हीरे पर किसी का प्रभाव नहीं पड़ता वैसे ही भक्त पर किसी का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।

💛सच्चा शिष्य वही है जिसपर गुरू अनुशासन कर सके, शासन उसी पर करते हैं जो अनुशासन को स्वीकार करता है। जिस पर गुरु अनुशासन कर लेते हैं उसी को ज्ञान से भर देते हैं।

💛 गुरु संसार नहीं देता है, संसार से ऊपर उठाने की विद्या देता है। गुरुजन संसार का सार परमात्मा देते हैं। सच्चा साधक वह है जो इहलोक- परलोक दोनों के सुख से ऊपर उठना चाहता है।

💛 भागवत सप्ताह की कथा यदि एक बार पवित्र आत्मा सुनते हैं तो परमात्मा मिल जाते हैं। पापात्मा सुनते हैं तो पवित्र हो जाते हैं।


🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
🎤By: Maharajshri Swami Shravananand Saraswati (Vrindavan)

📍Location: Nritya Gopal Temple Anand Vrindavan Ashram , Vrindavan .

🗓 Dates:
11th March - 17th March (2023)

🕐Timing: 
9:00 AM-12:00 PM
3.00 PM -6.00 PM

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🔴 Day 1 (PM)
🔗 https://www.youtube.com/live/G6tUx3n1cis?feature=share

💛श्रीमद्भागवत महापुराण के माहात्म्य की चर्चा के बाद ही व्यक्ति का दृढ़ निश्चय होता है।
महाभारत आदि ग्रंथो का सार यही है कि हम कृतज्ञ हो कृतघ्न न हो। जिसने एक कदम भी चलना सिखाया उसका जीवन भर उपकार मानना चाहिए।

💛शास्त्र की चर्चा जीवन में शासन प्रदान करती है और अन्तःकरण को पवित्र करती है।अशास्त्रीय चर्चा न हमारे जीवन में अनुशासन लाती है और नाही हमारे जीवन को पवित्र करती है।

💛संत माने सरल, रिजु, दंभरहित जीवन, जो अंदर बाहर एक हो, उसी का नाम संत है।

💛वृन्दावन की भूमि प्रेम की भूमि है, आनंद की भूमि है, रस की भूमि है। प्रेम में अधिक से अधिक नम्बर ज्ञान-वैराग्य को मिलेगा। प्रेम में यदि ज्ञान न हो तो वह वासना ही है और यदि वैराग्य न हो तो राग है।

💛संत का स्वभाव होता है संत पुरुषार्थी होता है संत कभी हार नहीं मानता है। वह जब तक लक्ष्य तक नहीं पहुँचते तबतक रुकते नहीं।

💛घर से वैराग्य उनको नहीं होता जिनके जीवन में धर्म नहीं है। यदि धर्म पूर्वक जीवन व्यतीत करो तो वैराग्य होगा ही होगा। आत्मदेव के जीवन में धर्म था, पुत्र भी धर्मपूर्वक चाहते थे भले शुरुवात में राग था किन्तु परिणाम में उन्हें वैराग्य हुआ।

🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
🎤By: Maharajshri Swami Shravananand Saraswati (Vrindavan)

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🗓 Dates:
11th March - 17th March (2023)

🕐Timing: 
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🔴 DAY 2 (AM)
🔗 https://www.youtube.com/live/qs5mIVgv7xo?feature=share


💛श्रीमद्भागवत महापुराण बहुत अलौलिक ग्रंथ है। गंभीर शैली होने के बाद भी श्रीमद्भागवत महापुराण में जिस विलक्षण शैली से वस्तु-विषय का निरूपण किया गया है - जिस रसीले ढंग से महापुरुषों ने इस ज्ञान को परोसा है … अन्य किसी पुराण में नहीं है।

💛 श्रीमद्भागवत की कथा पापी को पवित्र करती है और पवित्रात्मा को परमात्मा से मिला देती है।

💛 श्रीकृष्ण का रसीला स्वरूप होने के कारण श्रीमद्भागवत भी ऐसा ही रसीला है - श्रीकृष्ण जैसा रस से परिपूर्ण।

🔸 ‘तत् त्वम् असि’ महावाक्य का विस्तार है श्रीमद्भागवत महापुराण।
🔹 ‘तत्’ पदार्थ की व्याख्या सभी स्तुतियों के माध्यम से है।
🔹’त्वम्’ पदार्थ की व्याख्या महापुरुषों के विभिन्न उपदेशों में है और
🔹’असि’ पदार्थ आख्यान, उपाख्यान की अद्भुत शैली से प्रस्तुत है।

💛श्रीमद्भागवत का प्रथम स्कंध अधिकारी स्कंध है और द्वितीय स्कन्ध साधन स्कन्ध है।यदि भगवान के स्वरूप का दर्शन करें तो भगवान दो चरणों पर खड़े होंगे दायाँ और बायाँ ।प्रथम स्कन्ध भगवान का बायाँ चरण है और द्वीतीय स्कन्ध भगवान का दायाँ चरण है।

💛प्रयोग से अधिकार का निरूपण है। आत्म कल्याण ही भागवत् का उत्तम प्रयोग है। भागवत हमारे जीवन को, हमारे विचारों को भगवान से भर दे!

🌾🐘जिस प्रकार हाथी से हल जोतना समजदारी नहीं है, वह तो राजा की सवारी के लिये बना है…उसी प्रकार जिस श्रीमद्भागवत से भगवत्प्रेम और ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है उसका अन्य कोई भी प्रयोग (चंदा इकट्ठा करने में, समय भरने में या लोक कल्याण में) उत्तम अधिकार नहीं है।

💛भागवत साधान नहीं है साध्य है। भागवत सुनने से, भागवत कहने से भगवान मिलेंगें ऐसा नहीं है आपको भागवत मिलगया तो साक्षात् भगवान् मिल गये हैं - अब आप बस पहचानो।

💛 श्रीमद्भागवत व्यवहार को पवित्र तो करता है पर व्यवहार का प्रतिपादन नहीं करता । यह व्यवहार को नहीं, परमार्थ को सुधारने वाला ग्रंथ है - ‘सत्यं परम धीमही’।

💛गुरुदेव में करुणा और वैराग्य दोनों होने चाहिये। अगर गुरुदेव करुणा से भरे न हो तो वे गुरु बनने लायक नहीं है और यदि वैराग्यवान न हों तो संसार के राग से नहीं छुड़ा सकते।

💛कथा व्यथा क्यों हरती है?
व्यथा होती है मन में और कथा मन को ही हर लेती है । जब मन ही नहीं होगा तो व्यथा भी नहीं होगी।

💛जो दीनानाथ की कथा सुनता है वह कभी दीन नहीं होता क्योंकि उसे पता है कि दीनानाथ सदा उसके साथ हैं।


🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
🎤By: Maharajshri Swami Shravananand Saraswati (Vrindavan)

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🗓 Dates:
11th March - 17th March (2023)

🕐Timing: 
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🔴 Day 2(PM)

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💛 भगवान हमारे न्यायाधीश (judge) नहीं हैं - आप बेफ़िक्र रहें! परम दयालु भगवान की शरण ग्रहण करते हैं श्रीमद्भागवत में दोनों श्रीशुकदेव जी और श्रीउद्धवजी !

💛स्तुति से पता चलता है कि व्यक्ति की स्थिति क्या है - वह कहाँ विहार करता है, उसके विचार का विषय क्या है।

💛 शुकदेव ने स्तुति में भगवान के गुण और लीला के साथ शरणागति का महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रकट किया है।

💛 परमात्मा के द्वार पर जाने के लिये जाति का कोई महत्व नहीं है! अगर भगवान तक आपकी पहुँच नहीं है तो उनकी शरण ग्रहण करना चाहिए जिन्होंने भगवान का आश्रय लिया है - भगवान निश्चित रूप से आपको गले लगा लेंगे (‘ येऽन्ये च पापा यदुपाश्रयाश्रयाः’) ।

💛संसार की चर्चा से लोकमंगल नहीं होगा - भगवान हमारी वाणी का अलंकार हों। गोपियों के द्वारा भगवान की चर्चा त्रिभुवन को पवित्र करती है।

💙 जो इस “शुक स्तुति” का नित्य पाठ करता है उसके समक्ष श्रीमद्भागवत अपना हृदय खोल देता है - उसकी मति ‘भागवतमयी’ बनेगी।

💛 पवित्र अन्तःकरण की क्या पहचान है?

🌡️ धौतात्मा पुरुषः कृष्णपादमूलं न मुञ्चति।
मुक्त सर्वपरिक्लेशः पान्थः स्वशरणं यथा॥

💛 जैसे सरोवर का जल शरद ऋतु आने के बाद स्वच्छ हो जाता है वैसे ही कथा रूपी माँ के आने से अन्तःकरण में “मैं और मेरे” का मल धुल जाता है। इसी मल आदि के कारण परमात्मा रूपी पिता दिखते नहीं हैं!

💛 परिश्रम कब तक करना है? जब तक भगवान के दर्शन न हो जाए। उत्तम भागवत वह है जो सर्वत्र (स्थान सूचक) और सर्वदा (काल सूचक) भगवद्दर्शन करता है।

💛 शास्त्र ज्ञान श्रद्धा संपन्न हो कर के गुरु चरणों में श्रवण करने के बाद (अन्वय, व्यतिरेक पूर्वक जिज्ञासा सहित) मनन और तत्पश्चात् निदिध्यासन करना चाहिए।

💛 भागवत का संकल्प है की इसी ‘सर्वात्म स्वरूप परमात्मा में भक्ति हो’ और यही विद्या रहस्य सहित भगवान नारायण ने अपने पुत्र और शिष्य श्रीब्रह्मा ही को चार श्लोकों में दी है।

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🔴 Day 3(AM)
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💛 सुख की चिंता क्यों करते हो? जो दुःख भेजने में इतना सावधान है वह सुख भी समय पर भेज ही देंगे अतः सुख की चाह न करके सुखसिंधु भगवान को चाहो!

💛दुःख का कारण भगवान् की ओर से मुँह मोड़ना है और संसार की ओर मुँह करना।हमारी चित्तवृत्ति सुखसिंधु स्वरूप श्रीकृष्ण की ओर हों - संसार रूपी दुःखालय की ओर नहीं।

💛 घर से प्रेम करना कोई पाप का काम नहीं है परंतु यह राग बार-बार जन्म-मरण के चक्कर में डालता है। संसार से प्रेम एकांगी प्रीति है, भगवान का प्रेम ही उभयांगी प्रीति वाला है।

💛 जब तक भगवान् से रति न हो संसार कि रति नहीं छूटेगी। जब तक संतों से भगवत्कथा श्रवण नहीं करोगे यह भगवद् रति, श्रद्धा, और भक्ति नहीं होती। साधु से राग मोक्षका द्वार है।

💛 कथा में आने से पहले जो श्रद्धा होती है वह कच्ची होती है और कथा सुनते-सुनते जो श्रद्धा बनती है वह पक्की सत् को धारण करने वाली श्रद्धा होती है।

💛 भोग भोगने से वैराग्य नहीं होता है। वैराग्य जब भी होगा विचार से होगा। विवाह भोग के लिए नहीं योग के लिए है। अध्यात्म योग हमें सुख-दुःख से पार ले जाता है।

💛 भगवान को अपना सखा, पति, मित्र कुछ भी मानो तो अन्तःकरण पवित्र होगा परन्तु मोक्ष तो गुरु के सम्बंध से ही है!

💛 आत्यंतिक दुःख की निवृत्ति चाहो, तात्कालिक दुःख की निवृत्ति नहीं! यह केवल ज्ञान से संभव है। बंधन नामकी कोई चीज़ है ही नहीं, हम बंधे हैं केवल मान्यता से!

💛 संसार एक तरु की तरह है - एक सम्बंध काटो और अनेक बन जाते हैं। यही संसार का विस्तार है - यदि इसको अपना मान बैठोगे तो मर जाओगे! इसे काटने के लिए भगवान भक्तों के लिए कुठार बनते हैं।

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🔴 Day 3(PM)

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💛 हमारे ऋषि जीवन विज्ञान (चेतन) की खोज (research) करते हैं …जड़ वस्तु की खोज नहीं।

💛 जीव गर्भ में ‘जंतु’ कहलाता है जो माया में ऐसा फँस जाता है की अपना उत्थान नहीं, अपना पतन ही करता है। शरीरसे जब जीव निकलता है तब दस द्वार और दो रास्ते हैं जिस में से वह आगे यात्रा करता है।

💛 जिसे अपना लक्ष्य प्रिय हो वह प्रमदा से आसक्ति न करे और संतों का संग , सत्संग करना चाहिए।

💛 भगवान से सच्चे प्रेम का सब से बड़ा फल है संसार से वैराग्य करना न पड़े , वैराग्य हो जाये। इस वैराग्य का फल है आत्म दर्शन - ब्रह्मात्मैक्य बोध।

💛 भगवान कपिल ने अपनी जिज्ञासु माँ देवहूती को तत्त्व का बोध करवाया है ।

💛 श्रीमद्भागवत को समझने के लिए भागवत के विचार चाहिए - वह भी भागवत के आधार पर ही हों!

💛 पुरुषार्थ वह है जो परिश्रम से प्राप्त कर सके! भागवत के चतुर्थ स्कन्ध में पुरुषार्थ-चतुष्टय का वर्णन है-
७ अध्याय में धर्म का वर्णन है
५ अध्याय में अर्थ का वर्णन है
११ अध्याय में काम का वर्णन है
८ अध्याय में मोक्ष का वर्णन है।

💛 केवल प्रवचन का प्रभाव नहीं पड़ता है, आचरण का बहुत प्रभाव है।

💛 कोई भी यज्ञ दक्षिणा के बिना पूर्ण नहीं होता है।सामने वाले की योग्यता देख कर नहीं देना चाहिए अपनी योग्यता देख कर ब्राह्मणों को दक्षिणा अवश्य ही देनी चाहिए।

💛 श्रद्धा का बेटा शुभ है- इसका अर्थ है की जिसके जीवन में श्रद्धा होगी उसका कभी अशुभ नहीं होगा ! श्रद्धावान के जीवन में शुभ ही होता है। ठगों को ही लोग ठगते हैं! बिना पुरुषार्थ किए पाने की कामना ठग है।

💛 धर्म की अन्य पत्नियों में - मैत्री का बेटा प्रसाद है।
जिसके जीवन में दया है उसके जीवन में अभय होगा।
शान्ति का सम्बंध धर्म से होगा तो उसका बेटा सुख होगा।
तुष्टि का बेटा मोद है और पुष्टि का बेटा स्मय है।

💛 मूर्ति का सम्बंध धर्म से करोगे तो नर-नारायण पाओगे।

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🔴 Day 4(AM)
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💛अनुशासन तो जीवन में होना ही चाहिये।यदि अनुशासन नहीं है, भय नहीं है तो निश्चित रूप से व्यक्ति प्रमादी बन जाता है।

💛महापुरूष कहते हैं ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत!’
मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है। चाहे आप घर में रहो, वन में रहो या वृन्दावन में रहो यदि मन पर विजय प्राप्त नहीं करोगे तो मन तो मनोराज्य करेगा ही इसीलिए मन पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करो।

💛ज्ञान कहाँ अवतरित होता है?
जैसे जल का प्रभाव नीचे की ओर है वैसे ही ज्ञान भी विनम्र व्यक्ति पर ही प्रकट होता है ।

💛महात्माओं से ये चार बातें नहीं पूछनी चाहिये :
🔸 उनकी आयु
🔸 जाति
🔸 योग्यता
🔸 जन्म स्थान

💛भगवान की भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती भगवान की साधना कभी व्यर्थ नहीं जाती आप साधना प्रारम्भ करो यदि छूट जाये तबभी वह साधना काम आयेगी।

💛परमात्मा का अवतार केवल दुष्टों के दलन के लिये या सज्जन पुरुषों के रक्षण के लिये ही नहीं हुआ परमात्मा का अवतार मनुष्य को जीवन जीने की कला सीखाने के लिये हुआ है।

💛भारत की भूमि कर्म भूमि है। यहाँ अमर (देवता) भी मर कर जन्म लेना चाहता हैं। यह भारत भूमि की विशेषता है ।

💛जैसे एक बार मिट्टी के घड़े में मदिरा भरने के बाद गंगाजल भी डालने से वह पवित्र नहीं होगा वैसे ही प्रायश्चित चाहे कितने भी करलो यदि नारायण परायण नहीं हुए आपका मुख नारायण की तरफ नहीं हुआ तो ऐसे प्रायश्चित से कोई लाभ होने वाला नहीं है।

💛भगवान का नाम चाहे आप जानकारी में लो या अनजान में लो नाम तार देगा।

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11th March - 17th March (2023)

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🔴 Day 4 (PM)
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💛भागवत सप्ताह संयम सप्ताह के जैसे मनाना चाहिए। जिस उद्देश्य से हम कथा सुन रहे हैं उसका ध्यान रखना चाहिए। जीभ पर संयम हो । कथा सप्ताह में संयम सीखे और फिर उसका प्रयोग जीवन में भी होना चाहिये।

💛 भगवान प्रेम करने वाले के पक्ष में खड़े होते है। जो भगवान से प्रेम करता है भगवान भी उससे निश्चित रूप से प्रेम करते है। भगवान देवता-दैत्य नहीं देखते मनुष्य नहीं देखते पशु पक्षी नहीं देखते भगवान इतना ही देखते है कि यह हमसे प्रेम करता है।

💛भगवान प्रेम से भक्ति से मिलते है। भगवान को प्राप्त करना हो तो अपने हृदय में प्रेम बढ़ाओ।

💛 हम भोगों को नहीं भोग रहे है, भोग ही हमें भोग रहे है।
बुद्धिमान जानता है यदि दाद, खाज खुजली होने पर खुजलाते समय सुख तो मिलेगा किंतु बाद में जलन होगी वैसे ही मैथुन आदि गृहस्थी के सुख भोगने पर तो पहले सुख मिलता है किन्तु परिमाण में दुःख ही मिलता है। बुद्धिमान व्यक्ति परिणाम पर दृष्टि रखता है।

💛कामना ही व्यक्ति के बंधन का कारण है। भगवान से मांगना हों तो यह मांगना चाहिये की अब हमारे जीवन में किसी प्रकार की कामना न रहे।

💛जो परमात्मा और आत्मा का ऐक्य समझता है वही ज्ञानी भक्त है। ज्ञानी भक्त ही समदर्शी और प्रशांत रहता है।

💛जो वेद है वही परमात्मा है - जो परमात्मा है वही वेद है।

🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
🎤By: Maharajshri Swami Shravananand Saraswati (Vrindavan)

📍Location: Nritya Gopal Temple Anand Vrindavan Ashram , Vrindavan .

🗓 Dates:
11th March - 17th March (2023)

🕐Timing: 
9:00 AM-12:00 PM
3.00 PM -6.00 PM

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🐚SHRIMAD BHAGAWAT KATHA - (Anand Vrindavan Ashram - Vrindavan )🐚
🔴 Day 5 (AM)
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💛 भागवत सुनने के बाद जीवन में परिवर्तन होना चाहिये। आज से और अभी से ही संकल्प कर लो कि जीवन में किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं करेंगे।

💛 गुरु, शास्त्र और गोविंद इन तीनों से कभी उपरामता नहीं होनी चाहिए। ये तीनों ब्रह्मात्मैक्यबोध के बाद भी सदा वंदनीय है।

💛 भगवान पहले अपने दास के दास (दासानुदास) का उद्धार करते है और फिर अपने दास का उद्धार करते है ।

💛 जब भी विनोद करना हो तो हँसी का पात्र अपने को बनाओ। दूसरे की हँसी कभी नहीं उड़ानी चाहिये। जो लोग दूसरों की हँसी उड़ाते है, एक समय पर प्रकृति उनकी हँसी उड़ायेगी।

💛 संतो का कोप भी परमात्मा से मिलाता है तो उनका प्रेम उनका अनुग्रह तो परमात्मा से मिलायेगा ही मिलायेगा।

💛 जड़ मत बनो विनम्र बनो। यदि गलती हुई हो तो अपनी गलती माननी चाहिये।

💛 भगवान का स्वभाव ऐसा है कि भगवान करते सबकुछ है किन्तु दिखते कही नहीं हैं और हम लोग चाहे कुछ न भी करें किन्तु दिखना सब जगह चाहते है। संसार में जो भी सफलता हमें मिलती है उसमें अंदर से हाथ तो परमात्मा का ही होता है।

💛 चिन्तन करने लायक केवल परमात्मा ही है। दूसरों के दोष न चिंतन करने लायक है, न कथन करने लायक। जितनी देर आप दूसरों के दुर्गुणों का चिंतन करोगे उतनी देर यदि आप परमात्मा का चिंतन करोगे तो आपका जीवन पवित्र हो जायेगा।

💛 जिसका अन्तःकरण पवित्र ना हो उसमें प्रवचन ठहरता नहीं। जिनका अन्तःकरण पवित्र होता है उन्हें प्रवचन के वाक्य लगते हैं - वैराग्य जगता है।

💛तपस्या से बुद्धि सूक्ष्म होती है और भोग से बुद्धि स्थूल होती है।

💛संतोष में सुख बस्ता है। संसार में सुखी वही है जो संतुष्ट है।

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🔴 Day 5(PM)
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💛गोकुल माने इंद्रियों का समुदाय। परमात्मा साधु समान सूप के माध्यम से गोकुल से मथुरा आये। साधु (सूप) सारग्राही होते हैं जो हृदय में परमात्मा को इंद्रियों के सामने लाकर प्रस्तुत कर देता है।

💛जिसका मन लघु होता है उसे लघु संसार प्राप्त होता है और जिसका मन महान होता है उसे महान परमात्मा प्राप्त होते है। नंद बाबा महामना हैं।

💛परमात्मा यशोदा और नंद बाबा के घर आत्मज बनकर उत्पान हुए हैं। यशोदा वह है जो यश का दान,जो अपनी सफलता श्रेय दूसरों को दे।
नंद बाबा उदार हैं। नंद बाबा सहने के पक्ष में होते हैं, कहने के पक्ष में नहीं और जो सहने के पक्ष में होता है परमात्मा उसी के साथ रहने में पक्षधारी होते हैं।

💛जितने साधनों का वर्णन है वह भगवत्प्राप्ति के लिये नहीं हैं। वह तो सहज ही है क्योंकि भगवान तो यहीं हैं और अभी हैं! साधन का प्रयोजन इतना ही है की मन हमारा ऐसा बने की सम्मुख मनमोहन को पहचान सके!

💛व्यक्ति सम्पति अर्जन करने में तो बहुत सावधान है किंतु संस्कार अर्जन करने में सावधान नहीं है। जीवन में विकार सहज आते हैं और सांस्कार से जाते हैं। इसीलिये संस्कार होने ही चाहिये। जबतक जीव के जीवम में संस्कार नहीं होंगें तबतक वह विकार मुक्त नहीं होगा।

💛जैसे हम अपने घर का बीज ऊर्वरक भूमि में डालते हैं वैसे ही ध्यान देना चाहिये कि दान का धन भी योग्य पात्र को ही देना चाहिये अयोग्य पात्र को नहीं।

💛धन से ज़्यादा आशीर्वाद कीमती होता है। यदि गुरुजन कोई वस्तु दे दे तो आप बहुत सस्ते में निपट गये हो, जब वो आशीर्वाद देते है तो उनका पुण्य उनकी तपस्या उनका सच्चा धन अपने पास आता हैं।

💛सज्जन पुरूष न मांगता है, न लूटता है। सज्जन पुरूष तो केवल देने की प्रवृत्ति रखता है। गोपियाँ भगवान को ऐसा आशीर्वाद देती हैं कि वे जुग जुग जीये और भगवान सदा उनसे सर्वश्रेष्ठ होकर रहे।

💛हमे प्रशंसा क्यों प्रिय है?
जिनते भी गुण है सब परमात्मा के हैं और हम सब परमात्मा के अंश है - परमात्म के अंश होने के कारण परमात्मा की प्रशंसा अपनी आत्मा के रूप में सुनते हैं तो हमें अच्छी लगती है इसीलिये हमें प्रशंसा प्रिय है।

💛उदारता में परमात्मा का वास है और कृपणता में दलिद्रता का वास है।

💛भगवान को सबसे ज़्यादा कौन प्रिय है?
जो व्यक्ति सबको सम्मान दे और किसी से सम्मान न चाहे ऐसा व्यक्ति भगवान को प्राणों के समान प्रिय है।

💛 प्रमादी लोगों का काम है अपनी इंद्रियों को दूसरे लोगों पर छोड़ना। साधक वह है जो अपनी इंद्रियों पर अनुशासन स्वयं करता है। दूसरों को दोष देना प्रमादी व्यक्ति करता है। साधक अपना निरीक्षण करता है!

🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
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🔴 Day 6(AM)

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💛श्रीवल्लभाचार्यजी की परंपरा में तीन प्रकार की आराधनाएँ मानी गई है:
⁃ तनुजा (तन से आराधना)
⁃ वित्तजा (वित्त से आराधना)
⁃ मानसी (मन से आराधना)

💛 दधिमंथन के समय यशोदा माँ श्रीकृष्ण के लिये यह तीनों प्रकार की आराधनाएँ कर रही हैं। माँ मन से श्रीकृष्ण का स्मरण कर रही, तन से श्रीकृष्ण की सेवा कर रही हैं और वाणी से श्रीकृष्ण के गुणानुवाद गा रही हैं। उनका मन सतत् परमात्म चिंत्तन में लगा है।

💛 ऐसी परम उदार माँ यशोदा का चिंतन करने से वह एक दिन (एकदा) आपने लाल श्रीकृष्ण को आपके गोद में दे देंगी।

💛भगवान की सेवा में आने वाले सारे पदार्थ चिन्मय होते हैं।

💛जब काम की पूर्ति में व्यधान होता है तो क्रोध आता है और जब काम की पूर्ति होती है तो लोभ आता है। लोभ बढ़ने लगे तो सत्कर्म करके लोभ पर अनुशासन करो।

💛 होठ रजोगुण का प्रतीक है और दाँत सत्वगुण का प्रतीक। जबभी रजोगुण बढ़ने लगे तो सत्वगुण से दबाकर उसपर अनुशासन करना चाहिए। तमोगुण को रजोगुण से और राजोगन को सत्वगुण से दबाकर जीवन को अनुशासित करो।

💛संसार के सारे बंधन नाम-रूप के हैं और हमारे ठाकुर हमारे श्रीकृष्ण नाम रूप से परे है।भगवान को कोई बाँध नहीं सकता भगवान को भगवान की कृपा और उनके प्रेमियों का प्रेम ही बाँध सकता है।

💛भगवान साधन से नहीं मिलते, पुरूषार्थ से भी नहीं मिलते, भगवान जबभी मिलेंगे कृपा से , प्रेम से मिलेंगे।

💛अपने बड़ों को कभी बोझ मत समझो। उनकी सेवा करो। सब को एक दिन बुढ़ापा आता है। बड़ों को बोझ समझना बहुत बड़ा दुर्भाग्य है।

💛 जिस घर में बसेरा संत करते हैं,
निश्चित रूप से उस धर का सवेरा ठाकुर जी करते है।
मूर्ति में जो भगवान हैं वह तो प्राणप्रतिष्ठित हैं किंतु संत तो साक्षात भगवद् रूप ही हैं।

💛 धर्म-अधर्म का निर्धारण शास्त्रों के जानकार आचार्यचरण, गुरुजन ही करते हैं। यदि कोई संशय हो तो इनसे पूछ लेना चाहिए किन्तु अपने आप धर्म-अधर्म का निर्धारण नहीं करना चाहिए।

💛 सबकी उन्नति ठाकुरजी की ही उन्नति है। इसीलिए दूसरों की उन्नति पर जय-जय कार करो। यदि दूसरों की उन्नति देखकर आप दुःखी होते हो तो जान जाना आपके अन्तःकरण में पाप घुस गया है।

💛हे श्यामसुंसर आपसे हमारी प्रार्थना है :
हमारी वाणी आपके गुणों को गाती रहे
हमारे हाथ आपकी सेवा करते रहे
हमारा मस्तिष्क आपके चिंतन में लगा रहे और
हमारा ये सर संतो के चरणों मे झुकता रहे।।

💛जैसे गैया मैया चारा खाने के बाद एक जगह बैठकर खाये हुए चारे को दुबारा निकाल कर फिर चबाती है, उसका रस लेती है, उसी प्रकार आप इस ‘संयम सप्ताह’ में जो श्रीकृष्ण की लीलाओं का श्रवण कर रहे हो उनका एकांत में चिंतन करोगे तो आपको कभी भववेदन (संसार की वेदना) नहीं होगी …आप रस से भर जाओगे।

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🔴 Day 6(PM)

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सौभाग्यशाली वही है जिसके पास श्रद्धा और विश्वास हैं।

भक्तवत्सल वह जो अपने भक्तों के दोषों को भी आत्मसात् कर ले!

💛अपने से बड़ोंके सामने अनुमति लेकर अपना मत रखना चाहिये किन्तु इस विचार से नहीं कि हमारे मत का ही समर्थन हो। हमारी बात ही मानी जाए यह भी एक प्रकार का अभिमान ही है।

💛अपने मान के वर्धन के लिये जो दूसरों के मान का मर्दन करता है वह अपमान ही करता है, सम्मान नहीं करता।

💛 गिरिराजजी की पूजामें चार पूजाएँ समाई हुई हैं:
1. गाय की पूजा
2. ब्राह्मण की पूजा
3. गिरिराज गोवर्धन की पूजा और
4. गिरिराजधरण श्रीकृष्ण की पूजा।

💛अभिमान कैसे मिटेगा?
अच्छे-अच्छे काम करने से अभिमान नहीं मिटेगा। अभिमान तो केवल भगवान की कृपा से, गुरु की कृपा से मिटेगा।

💛 सबसे बड़ा सौभाग्यशाली व्यक्ति वह है जो जीवन में श्रद्धा और विश्वास से भरा है और सबसे बड़ा अभागा व्यक्ति वह है जिसके जीवन में श्रद्धा और विश्वास का अभाव है जिसके जीवन मे अभिमान है।

💛 चाहे कोई कितना बड़ा धनवाला हो कीर्तिवाला हो पर यदि उसके पास विश्वास का बल नहीं है तो वो शांति से जीवन जी नहीं सकेगा।

💛ब्रजवासियों पर भगवान बलिहार क्यों है?
एक भी गोप या गोपी ने श्रीकृष्ण को नहीं कहा कि इंद्र से पंगा मत लो।सब ने उनकी बात मान ली। गोपियाँ अपने इष्ट को छोड़कर और किसी के पास नहीं गई। ये ब्रजवासी सब अनन्य हैं अर्थात् उनकी दृष्टि में अपने इष्ट (श्रीकृष्ण) के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं है।

💛अपना नाथ कोई समर्थ ही होना चाहिए। यदि किसी असमर्थ को हम अपना नाथ बनायेंगे तो हम ही अनाथ हो जायेंगे।

💛 इष्ट की बात पर कभी अविश्वास नहीं करना चाहिए। यदि अपने गुरुदेवने आज्ञा दी है तो अपना कर्तव्य कार्य करने का हैं- यदि सफलता मिली तो वो जाने और न मिली तब भी वो जाने। अपने इष्ट के नाते कर्तव्य के प्रति विश्वास से भरो।

💛अध्यात्म का रास्ता कायरों का रास्ता नहीं है, पुरुषार्थियों का रास्ता है। सनातन धर्म के सारे ग्रंथ व्यक्ति को प्रमादी नहीं, उद्योगी बनाते है। जब हम उद्योगी बनेंगें तब हमें जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी।

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🔴 Day 7(AM)
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💛आठ वर्ष के श्यामसुंदर गोपांगनाओं के साथ ऐसे नृत्य करते है जैसे कोई निर्दोष बालक अपने ही प्रतिबिंब को देखकर नाच रहा हो।
"रूप रासि नृप अजिर बिहारी।
नाचहिं निज प्रतिबिंब निहारी॥"

💛 परमात्मा विकार शून्य है।परमात्मा में कोई विकार नहीं है।परमात्मा की रास आदि लीलाओं में विकार का चिंतन करना अपने अन्तःकरण में विकार का ही लक्षण है।

💛 जिस प्रकार पंखे के घूमते समय उसकी पंखुड़ी अलग अलग नहीं दिखती हैं वैसे ही गोपियों के साथ रास नाचते समय प्रभु का चिंतन करते-करते चित्तवृत्तियाँ ऐसी लीन हो जायेंगी की पता भी नहीं चलेगा।

💛 शारीरिक रोग जिस शरीर में होते है उसी शरीर में दिखाई देते है किंतु मानसिक रोग (काम, क्रोध,लोभ, मोह) होते तो अपने अंदर है किन्तु दिखते दूसरे के अंदर है।

💛जो रासपंचाध्यायी का श्रद्धापूर्वक श्रवण और वर्णन करता है उसे पराभक्ति की प्राप्ति होती है और निश्चित रूप से उसका हृदय रोग उसके मानस रोग (काम,क्रोध,लोभ, मोह) समाप्त हो जाते है।

💛 प्रयास करना चाहिए की अपनी वाणी से, अपनी क्रिया से - अपनी जानकारी में किसी का अपमान न हो। योजना बद्ध अपमान करना या कष्ट देना ही नहीं चाहिए!

💛 प्रेमी और संसारी (कामी) में क्या फर्क है?

कामी व्यक्ति अपने प्रियतम के वियोग में भूत को जीता है और रोता ही है जब की सहृदय प्रेमी व्यक्ति अपने प्रियतम के वियोग में चिंतन में निमग्न लीलाओं का गान करता है और वर्तमान की स्थिति (लीला) को अनुभव करता है - जैसे वनगमन के वक़्त गोपियों ने श्रीकृष्ण का किया है।

💛 जिसके कुंद कली सम अधरों पर सदा मुस्कान बनी रहती है उसका नाम मुकुंद है। हमारे ठाकुरजी ‘मुकुंद’ हैं- अर्थात् उनके चेहरे पर सदा मीठी मुस्कान बनी रहती है ।

💛ठाकुरजी की वेणु चेतन को जड़ कर देती है और जड़ को चेतन कर देती है। पाषाण को पानी बना दे और पानी को पाषाण बना दे। इस वेणु की ध्वनि से यमुना की कल कल धारा स्थगित हो जाये औए गिरिराज जी के पत्थर बह कर चलने लगे।

💛 जब हम भगवान के विचारों का चिंतन करते है उनकी लीलाओं का चिंतन करते हैं तब हम भगवान के पास ही होते हैं इसीलिए यदि विरह भी हो तो भगवान के गुण गाओ, भगवान का चिंतन करो।

💛 जो मति परमात्मा की ओर ले जाये वही मति महान है।

💛 संतो का संग करो और शास्त्र पढ़ो। यदि सत्संग नहीं करोगे और शास्त्र नहीं पढ़ोगे तो परमात्मा के पास होने पर भी उन्हें पहचान नहीं पाओगे।

💛 प्रेम में उलझना नहीं चाहिये। जितना वाद- विवाद में पड़ोगे उतना ही अपने प्रेमी से दूर होते जाओगे।प्रेम में तो गलती मान लेनी चाहिये। जीवन कोई न्यायालय नहीं है इसीलिए यह सिद्ध नहीं करना है की कौन सही है! कई बार व्यक्ति सिद्ध तो कर लेता है कि वह कितना सही है किंतु परिणाम में वह फिर अपने प्रेमी से दूर हो जाता है।

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🔴 Day 7(PM)
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💛भगवान की सारी लीलाएँ भगवत् स्वरुप ही हैं जो हमारे चित्त को पवित्र करती हैं।

💛 तमोगुण, रजोगुण में जीने वाले लोग सत्त्वगुणी को अपनी ओर खींचकर तमोगुणी रजोगुणी बना देते हैं और जो रजोगुण में जीते हैं वो तमोगुणी रजोगुणी घटनाओं को भी सत्त्वगुणी बनाकरके फिर गुणातीत हो जाते हैं।

💛 श्री शुकदेवजी महाराज ऐसे गुणातीत महापुरूष हैं जो विवाह, युद्ध आदि जैसी रजोगुणी-तमोगुणी घटनाओं को भी सत्त्वगुणी घटना बनाकर ऐसे प्रस्तुत करते है कि सुनने वाला गुणातीत बन जाये।

💛 वक्ता कैसा हो?
- अर्थ लोलुप व्यक्ति जब कथा करता है तो वो अर्थ को ही महत्व देता है,
⁃ धर्म प्रधान व्यक्ति यदि कथा करता है तो वो धर्म को महत्व देता है,
⁃ जब कोइ संत कथा करता है वो भक्ति- ज्ञान-वैराग्य को ही मुख्य रूपसे प्रतिपादित करते हैं।

प्रेमी जब परमात्मा की कथा करता है तो वह सुनकर लोग परमात्मा के प्रेमी बनते है।

💛श्रोता कैसा हो?
प्रेम प्रधान अन्तःकरण प्रेम को खींचता है।
जैसे वर्षा होते ही किसी एक स्थान में (गड्ढे में) पानी ठहरता जाता है ….वैसे ही प्रेम प्रधान अन्तःकरण की और प्रेम बहता है और उसमें प्रेम ठहरता है।

सभी कथा सुनते हैं परंतु विशेष रूपसे रुक्मिणी जैसे पवित्र और प्रेम प्रधान अन्तःकरण में प्रेम का जागरण होता है!

💛 सकाम व्यक्ति आपको परमात्मा से कभी नहीं मिलायेगा। निष्काम व्यक्ति ही आपको परमात्मा से मिला सकता है।

💛कभी ऐसा मत कहो कि हम यह काम नहीं करेंगे या यह काम नहीं कर सकते हैं। जीवन जीने की शैली तो यह है- “हम ठाकुर के यंत्र हैं! जैसे हमको ठाकुर जी करवायें हम वैसे ही करेंगे।”

💛 व्यवहार के सूत्र:
🔸 आलसी मत बनो, पुरूषार्थी बनो।
🔸 कार्य में सजकता, सावधानी रहे और
🔸समय पर प्रतिक्रिया हो।
🔸 अर्थ को व्यर्थ खर्च मत करो।

अर्थोपार्जन में सावधान रहो - जैसे पानी के हर बूंद-बूंद की कीमत है वैसे ही जीवन में एक-एक रुपयेकी कीमत है। पुरूषार्थ से, लक्ष्य प्राप्ति के प्रति उद्योग से सब सिद्ध होता है और मनोरथ की पूर्ति होती है।

💛 दुःख की आत्यंतिक निवृति न पैसे से होगी न आश्रम से होगी न किसी वैभव से होगी - जब भी होगी केवल अध्यात्म से ही होगी। जिसके पास अध्यात्म है वही दुःख से दूर है और जिनके पास अध्यात्म नहीं है वह सबसे बड़े कंगाल है ।

🌞Katha: Shrimad Bhagawat Mahapuran
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स्वामी सच्चिदानन्द सरस्वती की अध्यक्षता में आनन्द वृंदावन चैरिटेबल ट्रस्ट (मोतीझील, वृंदावन) द्वारा गौ सेवार्थ कान्हा गौ आश्रय सदन वृंदावन में एक विशाल बाड़े का निर्माण और लोकार्पण स्वामी श्रवणानन्द सरस्वती, स्वामी महेशानन्द सरस्वती, स्वामी आनन्दानन्द सरस्वती स्वामी सेवानंद जी के कर कमलों द्वारा कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में किया गया।

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भगवान प्रसन्न हैं- इसकी पहचान!

The Presence of Saint in our lives Marks the Proof of God's Happiness With Us
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Na dosh se apne ko Niharo Na Gunn se Apne ko Niharo
Nihaarna hain to Keval Bhagwan ki Karuna ko Niharo

-Shrimad Bhagawat Katha
Goverdhan,Mathura,U.P

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