ये जो भरी जवानी में बुढ़ापा लिए घूम रहा हूँ मैं

कुछ नही बस " ये पहले इश्क़ का खरोच हैं मेरे चेहरे पर" जिसे छुपा रहा हूँ मैं !
काम-काज सारे दिन का, फिर बातें तुझ संग पल भर की,

जैसे दिन के ढल जाने पर, फिर याद आती है घर की।
ज़िन्दगी की उलझनों से फरार चाहिए

मुझे बचपन का एक दिन उधार चाहिए
मैं अकेले रहने से कभी नहीं थकती....
मैं थकती हूं लोगो के बीच बैठकर झुठी मुस्कुराहट करते करते।
तुम्हारे अचानक मुझे छोड़ जाने से भी ज्यादा कठिन रहा मेरा किसी को ना बता पाना कि तुम चली गयी
तेरे साथ लम्हें इतनी राफ्तार से गुजरे गए,

जैसे किसी बच्चे का दिन इतवार से गुजरे ।।
हम फिर कभी मिलेंगे... तो ऐसे मिलेंगे,
जैसे कभी मिले ही ना हो
तुम मुस्कुराते हुए गुजर जाना सामने से मैं शरीफों की तरह नजरें फेर लुंगी
बड़ी-बड़ी हैं बातें सबकी, पर लोग बहुत सस्ते हैं,

जो दुख में संग हँसते हैं, बस वे ही मन में बसते हैं।
सर पर है कुछ ज़िम्मेदारियाँ, सो काम किए जा रहें हैं,

ना ख्वाहिश, ना कारण कोई, हम बस जीए जा रहें हैं।
यूं भी कटा इतवार किसी का शाम किसी की .. याद किसी का
दुख भी बच्चों सा होता है

जो पैदा करता है

बस उसी से संभलता है
साथ ठहरना आना चाहिए चलने के लिए तो सब तैयार हैं..
रिहाई के लिए रिश्वत देते हैं लोग

तुम अपने दिल में उम्र कैद की कीमत बताओ
मिलती जुलती आदत वाले मिलते जुलते फरेब रखते हैं
प्रेमी घर से भागते हैं घर बसाने को क्या ये लतीफा काफ़ी है तुम्हें हंसाने को
मैं अपनी ही लड़ाईओं में मशरूफ कुछ इस कदर हूँ

दुनिया तारीफ करे तो भी ठीक, इलज़ाम लगाए तो भी ठीक ।
जब भरोसे पर चोट लगती है तो प्रेम अपाहिज़ हो जाता है
हर किसी की जरुरत पर, नंगे पांव पहुंचे हम,

हमारी बारी में, सबके यहां बहुत बारिश हो गई..
एक समय के बाद हम इंसान के लौटने से ज़्यादा उस स्मृति के लौटने की कल्पना करते हैं जिसको हम उस इंसान के साथ जी चुके होते हैं।
मेरा सबकुछ दांव पर लगा था एक शख्स के जबाब पर,

फिर हुआ यूं वो शख्स अपनी बातों से मुकर गया..!