https://perfectshayari.com/pagal-shayari/
कोई ऐसी कहानी मुकम्मल न हो जिसके आख़िर में कोई भी पागल न हो ख़ौफ़ आने लगा है मुझे दश्त में अब तो बसने को सहरा हो जंगल न हो मैंने पूछा यहाँ क्यूँ ये ख़ेमे लगे फिर ये सोचा कि शायद याँ होटल न हो बात कर यूँ इशारे से जिससे तेरा काम सारा निकल जाए, हलचल न हो उनकी गुज़री है हर रात बस ख़ौफ़ में जिनके दर पे लगाने को अरगल न हो हैं तलबगार सब दाद-ओ-तहसीन के ये वही हैं कि दिल जिनके कोमल न हो वो क़बीला बिखर जाए जिसमें कोई अद्ल-ओ-इंसाफ करने को फ़ैसल न हो